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Monday, November 14, 2011

नक्सली युवक हिंसा छोड़ें और राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ें : श्री श्री रविशंकर


Loknath Vns द्वारा 11 नवंबर 2011 को 19:28 ब जे पर

चन्दौली, 8 नवम्बर। विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु तथा आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर ने कहा कि नक्सली युवक हिंसा छोड़कर समाज के विकास के लिए राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ें क्योंकि व्यवस्था परिवर्तन में हिंसा बाधक है।

यह उद्गार जमसोती (चन्दौली) में स्थित महुआ बाबा सेवा आश्रम में यूथ फार नेशन की ओर से स्थापित वनवासी स्वावलंबन केंद्र का उद्घाटन करने के बाद विराट वनवासी समागम को संबोधित करते हुए श्री श्री ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि भगवान राम ने वनगमन किया इसके पीछे वन क्षेत्र का स्वच्छ पर्यावरण, स्वच्छ गांव और वनवासियों की मानवीयता और विश्वास अहम था और जहाँ विश्वास होता है वही ईश्वर होता है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं की रक्षा में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि वनवासी क्षेत्र में विकास के साथ ही स्कूल, कालेज, अस्पताल, शुद्ध पानी तथा सड़कों की आवश्यकता है। इस क्षेत्र के हर बच्चे को शिक्षा देने के लिए हम संकल्पित हैं। उन्होंने कहा कि दिलों में दर्द है, लेकिन व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में हिंसा का रास्ता बाधक है। इसलिए नक्सली युवक बंदूक छोड़कर राष्ट्र और विकास के साथ ही समाज की मुख्यधारा से जुड़े।

इस अवसर पर उन्होंने किसानों का आह्वान करते हुए कहा कि रसायनमुक्त खेती से ही रोगरहित समाज का निर्माण संभव है। इसलिए वे दालों, जड़ी बूटी, बागवानी और सब्जियों की खेती पर जोर दें। उन्होंने कहा कि यह प्रजाति जैविक रूप से पैदा की जा सकती है तथा इसकी उत्पादन दर अधिक है। श्रीश्री ने कहा कि महुआ बाबा का आश्रम क्षेत्र में आध्यात्म की अलख के साथ ही मानव सेवा का केंद्र बन गया है। इसकी सेवा का लाभ वनवासियों को मिलता है। इसलिए इस आश्रम की सुविधाओं के विस्तार के लिए वे भरपूर सहयोग देंगे। इस दौरान श्रीश्री ने महुआ बाबा आश्रम के संचालक श्री गोविंद बाबा और विख्यात लोकगीत गायक रामजन्म बागी को अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया।

प्रस्तुति : लोकनाथ, वाराणसी

विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु तथा आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर, महुआ बाबा आश्रम के संचालक श्री गोविंद बाबा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा पारित प्रस्ताव






अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल, युगाब्द 5113
14 - 16 अक्टूबर 2011, गोरखपुर
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये प्रभावी रणनीतिक पहल आवश्यक

अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल देश की सीमाओं पर बढ़ते तनाव, सीमा पार से देश में अलगाववाद व आतंकवाद को बढ़ावा देने की बढ़ती घटनाओं, देश की वायु व सामुद्रिक सीमाओं पर उभरती चुनौतियों एवं अन्तर्राष्ट्रीय सामुद्रिक क्षेत्र व अंतरिक्ष में राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध उभरते खतरों के प्रति सरकार की उपेक्षा के प्रति गम्भीर चिन्ता व्यक्त करता है। इस सन्दर्भ मंे कार्यकारी मण्डल सुरक्षा सम्बन्धी निम्नलिखित चुनौतियों पर ध्यान आकृष्ट करना चाहता है।
चीन से चुनौतियाँ
चीन भारतीय सीमा पर सैन्य दबाव बनाने के साथ-साथ वहाँ पर बार-बार सीमा का अतिक्रमण करते हुए सैन्य व असैन्य सम्पदा की तोड़ फोड़ एवं सीमा क्षेत्र में नागरिकों को लगातार आतंकित कर रहा है। भारत की सुनियोजित सैन्य घेराबन्दी करने के उद्देश्य से हमारे पड़ौसी देषों में चीन की सैन्य उपस्थिति, वहाँ उसके सैनिक अड्डों का विकास व उनके साथ रणनीतिक साझेदारी को भी गम्भीरता से लेने की आवष्यकता है। पाकिस्तान का भारत के विरुद्ध सशस्त्रीकरण व वहाँ पर भारत विरोधी आतंकवाद को संरक्षण, पाक अधिकृत जम्मू कष्मीर में चीन की सैन्य सक्रियता, माओवाद के माध्यम से नेपाल में षासन के सूत्रधार के रूप में उभरने के प्रयत्न एवं बाँग्लादेष, म्याँमा व श्रीलंका में चीनी सैन्य विशेषज्ञों की उपस्थिति इस घेराबन्दी के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
कार्यकारी मण्डल का मानना है कि सीमा पार से देश में आतंकवाद व अलगाववाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुटों को चीन का सक्रिय सहयोग देश की एकता व अखण्डता को सीधी चुनौती है। चीन द्वारा अपने साइबर योद्धाओं के माध्यम से देश के संचार व सूचना तंत्र में सेंध लगाने की घटनाएँ एवं देश के विविध संवेदनशील स्थानों के निकट अत्यन्त अल्प निविदा मूल्य पर परियोजनाओं में प्रवेश के माध्यम से अपने गुप्तचर तंत्र का फैलाव भी देश की सुरक्षा के लिये गम्भीर संकट उत्पन्न करने वाला है।
चीन द्वारा 1962 के युद्ध में हस्तगत की गयी देश की 38,000 वर्ग किमी भूमि को वापस लेने के उसी वर्ष के 14 नवम्बर के संसद के संकल्प को भारत सरकार ने तो विस्मृत ही कर दिया है। दूसरी ओर चीन हमारे देश की 90,000 वर्ग किमी अतिरिक्त भूमि पर और दावा जता रहा है, जिस पर सरकार की प्रतिक्रिया अत्यन्त शिथिल रही है। इन दावों व सीमा क्षेत्र में चीन की सैन्य गतिविधियों को देखते हुए सीमा क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जैसी आधारभूत संरचनाएँ यथा दूरसंचार, रेल, सड़क व विमानपत्तन आदि की सुविधाएँ चाहिये, उनके विकास के प्रति भी सरकार की घोर उपेक्षा अत्यन्त चिन्तनीय है।
सुरक्षा की दृष्टि से चीन द्वारा एक साथ कई परमाणु बम ले जाने मंे सक्षम लम्बी दूरी के अन्तर्महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों को भारतीय सीमा पर तैनात किया जाना एक गम्भीर चुनौती है। चीन द्वारा उपग्रह भेदी एवं जहाज भेदी प्रक्षेपास्त्रों के सफल परीक्षण कर लिये गये हैं। उसने 8500 किमी की दूरी तक परमाणु बम ले जाने में सक्षम पनडुब्बी प्रक्षेपित बेलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र युक्त, परमाणु पनडुब्बिया भी विकसित कर रखी है। इन सभी के प्रभावी प्रतिकार की सामथ्र्य का विकास भारत के लिए अविलम्ब आवष्यक है।
भारतीय बाजारों में चीन के उत्पादों की भरमार से रुग्ण होते भारतीय उद्यमों के साथ-साथ चीन के साथ भारी व्यापार घाटा भी देश की अर्थव्यवस्था के लिये अत्यन्त गम्भीर चुनौती बन कर उभर रहा है। दूरसंचार के क्षेत्र में प्रथम पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी के विकास के आगे भारत द्वारा कोई प्रयत्न नहीं करने से आज तीसरी व चैथी पीढ़ी की अर्थात् 3जी व 4जी दूरसंचार प्रौद्योेगिकी के सारे साज सामान चीनी ही लगाये जा रहे हैं। यह हमारे सूचना व संचार तंत्र की सुरक्षा के लिये संकट का द्योतक है। विद्युज्जनन संयत्रों सहित अन्य उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में भी चीन पर बढ़ते अवलम्बन से देष उन सभी क्षेत्रों में स्थायी रूप से चीन पर आश्रित होता जा रहा है।
चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नद व अन्य अनेक नदियों के बहाव को मोड़ने की शुरुआत के विरुद्ध भी कड़ा रुख अपनाते हुए भारत को चीन व तिब्बत से निकलने वाली नदियों के बहाव को मोड़ने से प्रभावित होने वाले सभी देशों यथा बाँग्लादेश, पाकिस्तान, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया, थाईलैण्ड व म्याँमा को साथ लेकर नदी जल के न्यायपूर्ण वितरण के समझौते के लिए चीन को वाध्य करना चाहिए।
पाकिस्तानी कुचक्र
भारत की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान की गतिविधियां भी चिन्ताजनक हैं। स्वयं प्रधानमंत्री ने सेना के कमाण्डरों को सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया है कि सीमा पार से घुसपैठ की घटनाओं में विगत कुछ माह के दौरान अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। एक अनुमान के अनुसार अकेले कश्मीर की सीमा पर विगत साढ़े चार माह के दौरान छिटपुट फायरिंग या घुसपैठ की 70 घटनाएँ घटी हंै। पाक सेना में कट्टरपंथियों का बढ़ता प्रभाव वहां के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी एक गम्भीर चुनौती बनता जा रहा है।
विगत दिनों सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद का सरगना माने जाने वाले ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान में मारा जाना और वहाँ उसकी सपरिवार वर्षों तक रहने की पुष्टि, पाकिस्तानी सेना व आई.एस.आई. के अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के साथ गहरे सम्बन्धों को प्रकट करता है। यह भी उल्लेखनीय है कि ओसामा को पकड़ने में मदद करने वाले चिकित्सक को गिरफ्तार कर उसपर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा रहा है।
पाकिस्तान लगातार अफगानिस्तान में हामिद करजई सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है। अपने आन्तरिक कारणों से अगले वर्ष से आरम्भ करते हुए अमरीकी सेना के वहाँ से हटने की स्थिति में पाकिस्तान वहाँ पुनः भारत विरोधी कट्टरपंथी तालिबान को सत्ता में लाना चाहता है। अफगानिस्तान में ऐसी कोई परिस्थिति भारत के लिए सीधी चुनौती होगी। अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल पाक-अफगानिस्तान क्षेत्र की इन घटनाओं की तरफ सरकार का ध्यान आकृष्ट करना चाहता है।
विगत दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर हुए विस्फोट में एक बार पुनः आई. एस. आई. की संलिप्तता के प्रमाण मिले हंै। इधर इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण मिल रहे हैं कि माओवादियों को मदद पहँुचाने में आई. एस. आई. का नेटवर्क चीन की मदद कर रहा है। पाक-अफगानिस्तान में सक्रिय अत्यन्त खतरनाक हक्कानी गुट के आई.एस.आई. से सम्बन्ध की बात अब जगजाहिर है। परन्तु इस सारे परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार का रवैया अभी भी निष्क्रियता का ही बना हुआ है।
बाँग्लादेष सीमा सम्बन्धी मुद्दे
सितम्बर 2011 में बाँग्लादेश के साथ हुई वार्ता में राष्ट्रीय हितों की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है। असम व प. बंगाल की कई हजार एकड़ भारतीय भूमि को यह कहकर बाँग्लादेष को सौंपना कि ‘‘वहाँ पर उनका अवैध अधिकार पहले से ही है’’, किसी भी तरह उचित नहीं माना जा सकता। भूमि की अदला-बदली में कम भूमि पाकर अधिक भूमि देने की बात विवेकहीन व अस्वीकार्य है। साथ ही ऐसा करने से कूचबिहार व जलपाईगुड़ी जैसे जिलों में बड़ी संख्या में बाँग्लादेशी मुसलमानों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ की जनसांख्यिकी बदल जाने से वहाँ अलगाववाद का संकट बढ़ेगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसी वार्ताओं में भारत में अवैध रूप से रह रहे करोड़ों बाँग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में कोई चर्चा ही नहीं की जाती है। कार्यकारी मण्डल की माँग है कि बाँग्लादेश से होने वाले समझौतों में राष्ट्रहित, एकता और क्षेत्रीय अखण्डता के मुद्दों को सर्वाेपरि रखा जाना चाहिए।
हिन्द महासागर क्षेत्र की चुनौतियाँ
अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल इस बात पर भी चिंतित है कि हिन्द महासागर क्षेत्र में नये शक्ति समूहों के बीच तीव्र हो रही वर्चस्व की लड़ाई में यह क्षेत्र शीत युद्ध काल के यूरोप जैसा अखाड़ा बन रहा है। हिन्द महासागर क्षेत्र के देश संसाधन सम्पन्न हैं तथा नये शक्ति समीकरणों मंे रणनीतिक महत्व के स्थान लिये हुए हंै। भारत का सदियों से इस क्षेत्र में प्रमुख स्थान रहा है। अ.भा.का.म. का मत है कि इस समूचे क्षेत्र के साथ दो हजार वर्षों से चले आ रहे सभ्यतामूलक व सांस्कृतिक सम्बन्धों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में और अधिक सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
चीन ने अपनी समुद्री शक्ति तथा नौसैनिक गतिविधियों में अत्यधिक वृद्धि की है। इस क्षेत्र में उसकी आक्रामक उपस्थिति तनाव उत्पन्न करने वाली है। दूसरी ओर अमरीका दिएगो गार्सिया के सुदूर क्षेत्र में स्वयं को असहज पाकर इस क्षेत्र में निकटता पूर्वक अपनी पैठ और मजबूत करने के प्रयास में है। वर्ष 2003 में इण्डोनेशिया से ईस्ट टिमोर का अलग होना, अपने पड़ोसी श्रीलंका व लिट्टे का संघर्ष, ताइवान मुद्दा आदि इस क्षेत्र में बड़े शक्ति संघर्ष के द्योतक हैं। इन दो शक्तिओं के बीच वर्चस्व की स्पद्र्धा इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन बिगाड़ कर तनाव बढ़ा रही है।
अ.भा.का.म. का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में भारत मूक दर्शक बन कर नहीं रह सकता। इस क्षेत्र के कई देश भारत को शान्ति व स्थिरता का आश्वासन देने वाली कल्याणकारी शक्ति के रूप में देखना चाहतेे हैं।
हमारी सरकार की पूर्वोन्मुख ( स्ववा म्ंेज ) नीति को 20 वर्ष पूरे होने जा रहे हंै। कार्यकारी मण्डल सरकार से आग्रह करता है कि अब इस नीति को कार्य रूप में बदलकर क्षेत्र के सभी देशों से सम्बन्ध और अधिक सुदृढ़ किये जाएँ। हमारी विदेश नीति के उद्देश्य हमारी रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुरुप होना चाहिए। इस सम्बन्ध में म्याँमा व वियतनाम जैसे देशों के साथ की गयी नयी पहल का कार्यकारी मण्डल स्वागत करता है।
हिन्द महासागर में चीन व उसके सहयोगी देशों के इस युद्धोन्माद का हाल में भारत भी अनुभव कर रहा है। विगत दिनों की दो घटनाएँ उनकी इस प्रकार की अक्खड़ता की परिचायक हैें। पहली वियतनाम के पास दक्षिण चीनी समुद्र में भारत तथा चीनी नौ सेनाओं में तनाव की व दूसरी सिन्धु सागर (अरब सागर) में भारत व पाकिस्तानी युद्धपोतों के बीच की घटना है। ग्वाडर से हम्बनतोटा व चटगाँव से कोको द्वीप तक हिन्द महासागर में बढ़ता हुआ चीनी प्रभाव हमारी सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है। हिन्द महासागर में अपनी नौ सैनिक उपस्थिति बढ़ाने के लिये ही चीन ने वहाँ 10,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाॅली मेटेलिक सल्फाइड्स के खनन की अनुज्ञा प्राप्त की है।
हमारे सशस्त्र सैन्य बल ऐसे सभी खतरों से निपटने में पूरी तरह से सक्षम है। हमारे सैन्य बलों ने अपनी इस क्षमता का कई बार प्रदर्शन किया है। लेकिन सरकार द्वारा उन्हे वांछित ढाँचागत व शस्त्रास्त्र आधुनिकीकरण में सहयोग प्रदान नहीं किया जा रहा है।
देश की सामान्य जनता में व्यापक रूप से विध्यमान राश्ट्रवादी आकांक्षाओं तथा हमारे राजनीतिक तंत्र के नीतिगत दृष्टिकोण के बीच गहरी खाई है। हमारे पास प्रचुर मात्रा में वैज्ञानिक दक्षता, सैन्य क्षमता तथा देशभक्ति का ज्वार है। लेकिन, दुर्भाग्य से इन तत्वों की अभिव्यक्ति सरकार की नीतिगत पहल में दिखाई नहीं पड़ती है।
सुरक्षा सम्बन्धी इन चुनौतियों के चलते अ.भा.कार्यकारी मण्डल सरकार से आग्रह करता है कि वह भारत-तिब्बत सीमा सहित देष की सम्पूर्ण थल सीमा, सामुद्रिक सीमा, वायु सीमा, अंतरिक्ष व समग्र सामुद्रिक क्षेत्र में राश्ट्रीय हितों की सुरक्षा हेतु प्रभावी कदम उठाए। साथ ही अलगाववाद, आतंकवाद व अवैध घुसपैठ जैसी सभी सुरक्षा सम्बन्धी चुनौतियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करे। कार्यकारी मण्डल की माँग है कि सरकार देश के समक्ष उभरती सभी रक्षा चुनौतियों के प्रतिकार हेतु प्रभावी सुरक्षा प्रणालियों के विकास के साथ-साथ आर्थिक व उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी समग्र स्वावलम्बन के लिये व्यापक प्रयत्न करे। अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल जनता से भी आवाहन करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर निरन्तर सजग रहते हुए सरकार को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने के लिये बाध्य करे।

क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? - श्री अश्वनी कुमार , पंजाब केसरी


श्री अश्वनी कुमार जी, पंजाब केसरी
सम्पादकीय
(दिनांक ८,७ तथा ६ नवम्बर के अंको के )

भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ का काफी दुरुपयोग होता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में चार विवाह की छूट एवं तलाक लेने की सरल प्रक्रिया के कारण मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव एवं अत्याचार तो होते ही हैं, अन्य धर्मों के लोग भी दूसरी शादी के लिए इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेते हैं। भारत में अल्पसंख्यको को अनेक प्रकार की सुविधाएं दी जाती हैं। अल्पसंख्यको को अपने धार्मिक शिक्षण संस्थान चलाने की छूट है और सरकार इन शिक्षण संस्थानों को करोड़ों रुपए का अनुदान भी देती है।

बदलती दुनिया और महिला अधिकारिता के प्रति जन जागृति आने के बाद कई मुस्लिम देशों ने अपने कानूनों में सुधार किया है। सीरिया, मिस्र, तुर्की, मोरक्को और ईरान में भी एक से अधिक विवाह प्रतिबंधित हैं। ईरान, दक्षिण यमन और कई देशों में मुस्लिम कानूनों में सुधार किया गया। हाल ही में सऊदी अरब के शासकों ने महिलाओं को वोट डालने का अधिकार दिया है और सऊदी शासक महिलाओं को उनके अधिकार देने के लिए भारतीय व्यवस्था का अध्ययन कर रहे हैं। पाकिस्तान ने भी १९६१ में दूसरे विवाह पर रोक लगाते हुए एक सरकारी कौंसिल की स्थापना की थी तथा दूसरी शादी के इच्छुक व्यक्ति को उचित कारण बताकर अनुमति लेना जरूरी बना दिया था। भारत में कई मौके आए जब अदालतों ने शरीयत कानून के विरुद्ध निर्णय दिया, परन्तु भारत के राजनीतिज्ञों ने वोट बैंक के लालच में अदालतों के फैसलों की अवमानना की।

मैं यहां कुछ प्रकरणों का उल्लेख करना चाहूंगा।

मोहम्मद अदमद खान बनाम शाहबानो बेगम और अन्य (ए.आई.आर. १९८५ एस.सी. ९४५) के प्रकरण में सन् १९८५ में शाहबानो नाम की मुस्लिम महिला अपने पति द्वारा तलाक दिए जाने पर न्यायालय में गई। उच्चतम न्यायालय ने उसके पक्ष में निर्णय सुनाते हुए उसके पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश देते हुए यह सुझाव दिया कि मुस्लिम समुदाय को पर्सनल लॉ में सुधार के लिए आगे आना चाहिए। एक 'समान नागरिक संहिता असमानता को मिटाकर राष्ट्रीय एकता के लिए सहायक होगी परन्तु १९८६ में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने संसद में विधेयक लाकर उच्चतम न्यायालय के निर्णय को ही पलट दिया और तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के लिए सरकारी धन देने की व्यवस्था कुछ विशेष परिस्थितियों में की गई तथा पति को सभी प्रकार के उतरदायित्व से मुक्त कर दिया गया।

दूसार प्रकरण श्रीमती जोर्डेन डेंगडेह बनाम श्री एस.एस. चोपड़ा (ए.आई.आर. १९८५ एस.सी. ९३५) का है। विदेश सेवा में कार्यरत इस ईसाई महिला ने क्रिश्चियन विवाह कानून १९७२ के अन्तर्गत एक सिख पुरुष से विवाह किया था। १९८० में अपने साथ की जा रही क्रूरता के आधार पर उसने तलाक की मांग की, परन्तु उसके तलाक की प्रार्थना स्वीकार नहीं की गई, तो उसने उच्चतम न्यायालय में पति के शारीरिक रूप से अक्षम होने के आधार पर तलाक की मांग की। उच्चतम न्यायालय ने इस विवाद पर निर्णय सुनाते हुए भारत के विधि एवं न्याय मंत्रालय को स्पष्ट रूप से दिशा-निर्देश जारी किया कि विवाह अधिनियम में पूर्णत: सुधार होना चाहिए तथा जाति एवं धर्म की परवाह न करते हुए एक समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए। यह भी कहा गया कि न्यायालय शीघ्र एवं अनिवार्य रूप से समान नागरिक संहिता की आवश्यकता अनुभव करता है। बाकी दो मु2य प्रकरणों का उल्लेख मैं कल के सम्पादकीय में करूंगा।

भारत में सरकारें बदलती रहीं। तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के नाम पर गठबंधन होते रहे, सरकारें बनती रहीं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के बाद देश में ही नहीं देश के बाहर भी यह संदेश भेजने की प्रक्रिया का सूत्रपात किया गया कि अटल जी की सरकार एक सांप्रदायिक किस्म की सरकार थी, अब यहां धर्मनिरपेक्ष सरकार का वर्चस्व हो चुका है। धर्मनिरपेक्षता क्या है इसकी कानूनी या संवैधानिक व्याख्या आज तक नहीं हो सकी। कानून का नया विद्यार्थी भी जब भारत में संविधान की ओर एक विहंगम दृष्टि डालता है तो पाता है कि संवैधानिक दृष्टिकोण से भारत में १९७६ से पूर्व धर्मनिरपेक्षता नहीं थी। भारत के संविधान के नीति निर्देशक तत्व या अधिकारों से सर्वधर्म समभाव झलकता था कि नहीं, मैं इस बहस में नहीं पडऩा चाहता पर यह शब्द धर्मनिरपेक्ष ४२वें संशोधन के बाद प्राक्कथन में आया।

मैं आगे बढऩे से पहले दो और प्रमाणों को पेश करना चाहूंगा। एक और प्रकरण शायरा बानो नाम की मुस्लिम महिला का है, जिसने अपने एवं अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा १९८७ (ए.आई.आर. १९८७ एस.सी. ११०७) में खटखटाया। न्यायालय ने शाहबानो बेगम के केस का उदाहरण देते हुए भरण-पोषण का आदेश दिया।एक और मामला ११ मई, १९९५ में उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय का है। एक हिन्दू महिला जिसके पति ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर दूसरी शादी कर ली थी, की याचिका पर निर्णय सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि हिन्दू कानून के अनुसार धर्मांतरण के पश्चात् पूर्व शादी समाप्त नहीं होती तथा पुनर्विवाह धारा ४९४ के अनुसार दंडनीय है। विवाह,तलाक और पंथ यह स्वभाव और बहुत कुछ आस्था और विश्वास का विषय है, सुविधा का विषय नहीं है।

एक हिन्दू कलमा पढ़कर मुसलमान बन जाता है या एक मुसलमान मंत्र पढ़कर हिन्दू बन जाता है। यह भरोसा, विश्वास और आस्था एवं तर्क का विषय है। किसी के द्वारा पंथ का घटिया दुरुपयोग तुरन्त रोका जाना चाहिए, मतान्तरण सुविधा के लिए नहीं होना चाहिए। यह बहुत ग6भीर, सामाजिक, राजनीतिक अपराध है। न्यायाधीशों ने कहा कि समान नागरिक संहिता उत्पीडि़त लोगों की सुरक्षा तथा राष्ट्र की एकता एवं अखंडता दोनों के लिए अत्यावश्यक है। न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि जिन लोगों ने विभाजन के पश्चात् भारत में रहना स्वीकार किया, उन्हें स्पष्ट रूप से यह जान लेना चाहिए कि भारतीय नेताओं का विश्वास दो राष्ट्र या तीन राष्ट्र के सिद्धांत में नहीं था और भारतीय गणतंत्र में मात्र केवल एक राष्ट्र है। कोई भी समुदाय पंथ के आधार पर पृथक अस्तित्व बनाए रखने की मांग नहीं कर सकता। विधि ही वह प्राधिकरण है न कि पंथ जिसके आधार पर पृथक मुस्लिम पर्सनल लॉ को संचालित करने एवं जारी रखने की स्वीकार्यता मिली। इसलिए विधि उसे अधिक्रमित कर सकती है या उसके स्थान पर समान नागरिक संहिता की स्थापना कर सकती है।

न्यायालय के निर्णय में प्रधानमंत्री को संविधान के अनुच्छेद ४४ पर स्वच्छ दृष्टि डालने को कहा गया, जिसमें राज्य के द्वारा सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की बात कही गई है। सरकार को यह भी निर्देश दिया गया कि विधि आयोग को स्त्रियों के वर्तमान मानवाधिकारों को दृष्टि में रखते हुए एक विस्तृत समान नागरिक संहिता का प्रारूप तैयार करने को कहा जाए। बीच में कालखंड में एक समिति बनाई जानी चाहिए जो इस बात का निरीक्षण करे कि कोई मतान्तरण के अधिकार का दुरुपयोग न कर सके। ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे प्रत्येक नागरिक जो धर्मांतरण करता है वह पहली पत्नी को तलाक दिए बिना दूसरी शादी नहीं कर सकता। उच्चतम न्यायालय ने सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिव को भी यह निर्देश दिया कि उत्तरदायित्वअधिकारी के द्वारा अगस्त १९९६ तक इस आशय का शपथ पत्र प्राप्त होना चाहिए कि न्यायालय के निर्देश के पश्चात् केन्द्र सरकार के द्वारा नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने हेतु कौन से कदम उठाए गए और 1या प्रयास किए गए, जो पिछले चार दशकों से शीत गृह में पड़ा हुआ है लेकिन सरकारों ने कुछ नहीं किया।

संविधान की आत्मा को पहचानने वाले, बड़े संविधानविदों का कहना है कि संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द की जरूरत नहीं थी, यह संविधान की आत्मा में निहित भाव था, परन्तु श्रीमती इंदिरा गांधी को मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए ऐसा करना पड़ा। श्रीमती गांधी ने ऐसा क्यों किया? लेकिन धर्मनिरपेक्षता शब्द के साथ धर्म भी जुड़ा है अत: आइए बिना पूर्वाग्रह के इस ओर राष्ट्र के हित में एक दृष्टि डालें।

आज सारे विश्व के नीतिज्ञ इस बात को मानते हैं कि इस पृथ्वी पर श्रीकृष्ण से बड़ा राजनीति का जानकार कोई दूसरा नहीं था। विद्वानों की इस धारणा के बाद दूसरा न6बर आता है कौटिल्य का और शेष आधे में विश्व के सभी राजनीतिज्ञ समेटे जा सकते हैं।

बस केवल ढाई राजनीतिज्ञ ही इस पृथ्वी पर हुए हैं। श्री कृष्ण ने विषम से विषम परिस्थिति में यह नहीं कहा कि मैं इस पृथ्वी पर'राजनीतिÓ की स्थापना करने को अवतरित हुआ। उनका स्पष्ट उद्घोष है

''धर्मसंस्थापनार्थाय स6भवामि युगे-युगेÓÓ

मैं बार-बार आता हूं ताकि धर्म की स्थापना हो सके।

इस धर्म में एक बात और छिपी है

''साधुओं का त्राण और दुष्टों का नाश’

दूसरी बात जो आज विचारणीय है और सनातन वाङ्गमय के हर आराधक को जाननी होगी वह है भगवान के ये वचन कि 'अपने धर्म में रहकर मृत्यु को प्राप्त होना अच्छा है, पर दूसरों का धर्म विनाशकारी है, वह भयावह है। यह उक्ति विश्व के सबसे बड़े नीतिज्ञ की है। क्या यहां भगवान कृष्ण को हम सांप्रदायिक कहें और अपनी ओढ़ी हुई धर्मनिरपेक्षता की कसौटी पर उन्हें नकार दें। क्या यह उचित होगा?

थोड़ा सा इस बात को इसलिए समझना होगा क्योंकि भारत में जो कानून बनते हैं, उनका सबसे बड़ा स्रोत धर्म है। 'स्वधर्म’ की बात भगवान इसलिए करते हैं क्योंकि जन्म के साथ ही मनुष्य के संस्कार एक विशेष दिशा में बनने शुरू हो जाते हैं और उसी के अनुसार उसकी श्रद्धा का निर्माण होता है।

एक विशुद्ध आर्यसमाजी परिवार का उदाहरण लें। उस परिवार में उत्पन्न बालक को वेदों में अगाध निष्ठा होगी, वह एक ही ईश्वर को मानने वाला होगा, स्वामी दयानंद के विचारों पर आस्था रखने वाला होगा, स्पष्टवादी होगा। अगर ऐसे किसी युवक को आप यह कहें कि, ''तुम कल से पांचों व1त नमाज पढऩी शुरू कर दो’ तो यह उसके लिए विनाशकारी कृत्य हो जाएगा। हो सकता है वह विक्षिप्त हो जाए। ऐसा ही किसी आस्थावान मुस्लिम को यह कहें कि वह रोज सत्यनारायण की कथा घर पर करवाए तो उसकी क्या हालत होगी?वह असहज हो जाएगा।

ऐसी बात नहीं कि इनके मन में कोई द्वेष है, बात यह है कि यह स्वधर्म के विरुद्ध है। वेदवाणी है कि केवल स्थित प्रज्ञ या ब्रह्मज्ञान को प्राप्त व्यक्ति की दृष्टि ही ऐसी हो सकती है। भगवान कहते हैं, ''पर धर्मो भयावह:। ऐसे लोग जो यह दिखावा करते हैं कि वह सारे धर्मों को एक ही दृष्टि से देखते हैं, या तो वह ब्रह्मज्ञानी हैं या पहले दर्जे के बेईमान व धूर्त । 'धर्मनिरपेक्ष’ कौन है इसका फैसला आप स्वयं करें। किसी धर्म का अपमान न करो, विवेकानंद कहते हैं, परन्तु अपना धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है। धर्मनिरपेक्ष शब्द बड़ा भयावह है, क्योंकि इसे तथाकथित राजनीतिज्ञ अस्तित्व में लाए हैं इससे बचना होगा। यह प्राणघातक है।

धर्मनिरपेक्षता, देश की एकता, राष्ट्रभक्ति और सामाजिक सौहार्द की दुहाई राजनीतिक दल और उनके नेता दे रहे हैं, मुझे लगता है कि उन्हें धर्म, देश, राष्ट्र की न तो जानकारी है और न ही चिंता। कांग्रेस,कम्युनिस्टों , तीसरे और चौथे मोर्चे के नेता और अनेक क्षेत्रीय नेता ऐसा कर रहे हैं। आजादी के बाद से ही मजहबी संकीर्णता, जातिवाद और क्षेत्रवाद जितना इन्होंने फैलाया है उतना किसी ने नहीं फैलाया। अल्प्संख्य्नको के वोट थोक में बटोरने के लिए बहुसंख्यक हिन्दुओं की आस्थाओं पर लगातार आघात करना और राष्ट्रीय अस्मिता पर प्रहार करना इनकी आदत बन चुका है। जो कुछ आज हो रहा है उसकी शुरूआत अंग्रेजों के शासनकाल में हुई थी, जिसकी चर्चा मैं कल करूंगा।

sabhar : Panjab kesari

Wednesday, September 28, 2011

Riot's Occured When Congress was and is Ruling Where is the Minority now ??

Riot's Occured When Congress was and is Ruling Where is the Minority now ??
Why Don't speak against Congress???
If riot occurred in Non-Congress Ruling state then its "Communal Riot" .and if riot occurred in Congress Ruling state then its "Secular Riot"MOST RECENT RIOTrecent Riot of Rajsthan around 8 people have been killed... less than week ago.. tell me how many media have Highlighted that ??1) 1964 Communal riots in Rourkela & Jamshedpur 2000 Killed Ruling party CONGRESS(2) 1947 Communal riots in Bengal 5000 Killed Ruling party happened to be CONGRESS(3) August 1967 200 Killed Communal riots in Ranchi Party ruling again CONGRESS(4) 1969 Communal riots in Ahmedabad More than 512 Killed Ruling party happened to be CONGRESS(5) 1970 Bhiwandi communal riots in Maharashtra Around 80 killed Ruling party CONGRESS(6) April 1979 Communal riots in Jamshedpur , West Bengal More than 125 killed Ruling party CPIM (Communist Party)(7) August 1980 Moradabad Communal riots Approx 2000 Killed Ruling Party CONGRESS(8) May 1984 Communal riots in Bhiwandi 146 Killed , 611 Inj Ruling party CONGRESS CM – Vasandada Patil(9) Oct 1984 Communal riots in Delhi 2733 Killed Ruling party CONGRESS(10) April 1985 Communal riots inAhmedabad 300 Killed Ruling party CONGRESS(11) July 1986 Communal violence in Ahmedabad 59 Killed Ruling party CONGRESS(12) Apr-May 1987 Communal violence in Meerut , UP 81 killed Ruling party CONGRESS(13) Feb 1983 Communal violence in Nallie, Assam 2000 killed PM – Indira Gandhi (CONGRESS)14)Bhagalpur riots in 1989 where 150 were killed, mostly muslims. Ruling party Congress.15) Godhra riots in 1969 where 5000 were killed, mostly muslims. Ruling Party Congressif the Riot occurred in BJP-led state then it is communaland if Riot occurred in Congress-led state . then its Secular ?
-- Rajendra Kumar ChadhaNational Joint ConvenerPrajna PravahA - 161 SURAJ MAL VIHAR DELHI110092011-22374518 M +919818603977rchaddha@gmail.com

'Communal Violence Bill' will create differences among citizens: Mohanji Bhagwat

Jammu, Sep 25 (ANI):

RSS Chief Mohanji BhagavatRashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) chief Mohan Bhagwat on Sunday said the proposed 'Communal Violence Bill' would create differences among the citizens and divide the country on the basis of caste, creed and religion.
Addressing a meet in Jammu and Kashmir's Jammu city, Bhagwat said the bill does not adhere to the constitutional principles and democratic values.
"Communal Violence Bill is about to be introduced. If somebody goes through it cursorily, you do not need a scholastic approach for it, that person will understand that it is a bill to create differences. So, that tension and differences prevail in the country and India will break due to differences. Such kind of a bill it is," said Bhagwat.
"It is contrary to the general rules of law, neither it follows the constitutional principles, nor it holds the democratic values. It discriminates among the citizens of the country," he added.
The Prevention of Communal and Targeted Violence (Access to Justice and Regulations) Bill 2011, seeks to protect various groups from communal riots.
It has proposed to define the victim groups as 'religious and linguistic minority, in any state in India, or Scheduled Castes and Scheduled Tribes'.
Talking about the UPA Government, Bhagwat said the government is neck-deep in corruption and has lost its credibility due to their alleged involvement in various scams.
"In such a situation, people who should guide the society are quarrelling for being in power. These people have lost their credibility due to corruption. They are extremely selfish. Just to attain power; they are ready to stoop down to any level. The existence of country, for which they are attaining the power, has been put on stake," said Bhagwat.
Speaking about the perforated international borders, Bhagwat said the borders are not fully secured and are not fenced properly and there are repeated attempts of infiltration.
"In northern region, there is China, which time and again keeps on threatening the country. It has its peripheral presence surrounding the country and has befriended India's enemy Pakistan. The friendship is so strong, that Pakistan dares threaten America, that if they (America) will interfere much in the country's (Pakistan) matters, then we (Pakistan) would end this friendship and they (America) will lose a friend," said Bhagwat.
"And in this condition, our borders are perforated. Our borders are not fully secured, infiltration bids are taking place, and borders are not fenced. At some places, the demarcation of border lines is unclear," he added. (ANI

Friday, January 14, 2011

अजीज बर्नी सुनो, देश का मुसलमान क्या कह रहा है ?


सहारा उर्दू अखबार के संपादक ‘अजीज बर्नी’ अपनी लेखनी को लेकर हमेशा विवादों में रहे हैं | अक्सर उनकी लेखनी में भारतद्रोह की बू नज़र आती है | लेकिन इस बार मुंबई हमले पर अपनी किताब ” आरएसएस की साजिश -26/11?” में सीधे तौर पर पाकिस्तान का समर्थन करके अपने राजनीतिक उद्देश्यों को साधने की कोशिश की है | हालाँकि अब तक यह काम केवल मुसलमानों को संघ या भाजपा का भय दिखाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने वाले नेता हीं करते आये थे | लेकिन अजीज बर्नी ने भी लालू-मुलायम-पासवान की तरह भूल कर दी कि देश का मुसलमान ना तो पाकिस्तानपरस्त है और ना हीं ओसामा को अपना आदर्श मानता है | और बर्नी के किताब पर एक मुस्लिम पत्रकार ‘सैयद असदर अली’ के लिखे प्रतिक्रियात्मक लेख से यह स्पष्ट हो जाता है |
अजीज बर्नी के नाम खुला पत्र : सैयद असदर अली

हाल के दिनों में देश में आतंकवाद पर जिस तरह की सियासत देखी जा रही है यह निहायत हीं शर्म की बात है | ऐसे समय में जबकि भारत आतंकवाद से लड़ रहा है ,इस मुद्दे पर सियासत करना घोर निंदनीय है | जो लोग इस पर सियासत कर रहे हैं ,ऐसा करके वह देश को इस लड़ाई में कमजोर करने के साथ-साथ पड़ोसी देश पाकिस्तान का समर्थन करने का काम कर रहे हीं , जो पूरी तरह से राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को दर्शाता है | विश्व के कई अन्य देशों ने भी भारत में हो रही आतंकवादी घटनाओं में पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादियों के शामिल होने की बात को खुले तौर पर ना केवल मान है बल्कि पाकिस्तान की इस बात के लिए कड़े शब्दों में निंदा भी की है कि पाकिस्तान ऐसे आतंकवादियों को खुलकर शह देता है | मुंबई का 26/11 हमला ,अक्षरधाम मन्दिर पर हमला , देश की सांसद पर चोट पहुंचाने के सात-साथ ऐसी अन्य कई वारदातों में यह बात साफ़ हो चुकी है कि इन सभी घटनाओं को नजाम देने वाले बुजदिल लोग पकिस्तान में हीं आतंकवाद की शिक्षा लेने के बाद हमारे देश में अपने नापाक इरादों के साथ आकर इन वारदातों को अंजाम दिया है | इन सभी का ताल्लुक लश्कर-ए-तोयबा, जमात-उद-दावा, इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों से पाया गया है। इन घटनाओं को अंजाम देने वाले आतंकवादी खुद को दुर्भाग्यवश इस्लाम का पैरोकार बताकर धर्म विशेष को बदनाम करने के साथ-साथ हमारे बीच सांप्रदायिकता का बीज भी बो जाते हैं।

लेकिन दुर्भाग्य से दिग्विजय सिंह व अजीज बर्नी जैसे लोग इन जेहादी आतंकवादियों के पक्ष में खड़े दिखकर सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं , बल्कि पाकिस्तान को अपना पक्ष मजबूत करने का मौका दे रहे हैं | इन भटके हुए मुस्लिम युवकों को भी यह बात समझनी चाहिए कि जीवन जीने की जितनी आज़ादी हमारा भारतवर्ष देता है वैसा विश्व में शायद हीं खिन और होता होगा | देश का हित ध्यान में रखते हुए एक सच्चे देशप्रेमी की तरह हमें हर समय देश के सौन्दर्य और सौहाद्र को बरकरार रखना चाहिए |

देश के सामने आज आतंकवाद सबसे कठिन समस्या बन चुकी है जिसे पड़ोसी देश में बैठे आतंक के आकाओं के इशारों पर अंजाम दिया जाता है। ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर वे सिर्फ इमारतों पर हमला नहीं करते बल्कि हमारे दिलों पर चोट पहुंचाते हैं। यह तो हमारा आत्मविश्वास है कि हम घटनाओं के दूसरे ही पल फिर से खड़े होकर उनके चेहरों पर तमाचा मारते हैं।

भारत पर जब भी कोई आतंकवादी हमला होता है, देश के बहादुर सैनिक और सुरक्षाबल डट कर उसका मुकाबला करते हैं और अंततः इन कायर आतंकवादियों को मौत के घाट उतार कर ही दम लेते हैं। इस दौरान हमारे बहादुर जवान हमारी रक्षा करने के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं करते और शहीद हो जाते हैं, लेकिन हम लोगों की जान बचा लेते हैं। मुंबई का 26/11 हमला हो या दिल्ली का बटला हाउस मुठभेड़, हर जगह पर हमारे बहादुर जवानों ने अपनी जान देकर भी हमारी जान की रक्षा की है। पूरा देश इन सभी बहादुरों को सलाम करता है। परन्तु हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हमारे जवानों की शहादत पर भी सवाल उठाने से नहीं कतराते, क्योंकि ऐसा करके उन्हें घटिया प्रचार जो लेना होता है ।

ऐसे हीं लोगों में एक संपादक अजीज बर्नी भी शामिल हैं | अपनी लेखनी से वह देश में पूरी तरह साम्प्रदायिकता फैलाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं | शायद यह सब करके बर्नी देश के मुसलमानों का नेतृत्वा करने का सपना संजोये बैठे हैं | रंतु शायद इन्हें नहीं मालूम कि देश का मुसलमान बहुत ही समझदार एवं सामाजिक और राजनीतिक तौर पर पूरी तरह जागरूक हो चुका है और वह इस बात को भलीभांति जानता है कि बर्नी की मंशा क्या है? अजीज बर्नी अपनी नई किताब “आरएसएस की साजिश -26/11? ” अपनी विकृत सोच को हीं सामने लाये हैं | स किताब से यह बात पूरी तरह साबित होती है कि बर्नी की देश और देशवासियों के प्रति सोच क्या है। अच्छा होता कि वे अपने इन विचारों को समे लाने से पहले एक बार यह सोच लेते कि वे एक भारतवासी हैं, और एक सच्चे भारतीय के तौर पर अपने अन्य देशवासियों के दिल पर चोट पहुंचा कर वे भी एक तरह का आतंक फैला रहे हैं। अजीज बर्नी ने अपनी किताब में मुंबई के 26/11 हमले में आतंकियों की गोलियों का निशाना बने एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की शहादत पर सवाल उठाया है। ऐसी ही बातें बर्नी ने दिल्ली के बाटला हाऊस मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस इंसपेक्टर मोहन चन्द शर्मा की मौत पर भी कही थी।

इन शहीदों की शहादत पर जब इनके परिवार वालों को कोई संदेह नहीं हुआ तो बर्नी को ऐसा संदेह क्यों हुआ ? इन सबके बावजूद अगर अजीज बर्नी इनकी बहादुरी या शहादत पर सवाल उठाते हैं तो इसके पीछे बर्नी की ओछी राजीनीति की मंशा साफ़ झलकती है | ऐसा करके बर्नी ने ना सिर्फ राष्ट्र के साथ विश्वासघात किया है बल्कि पत्रकारिता के स्तर को भी नीचे गिराया है |

बर्नी ने अपनी किताब “आरएसएस की साजिश -26/11? ” में मुंबई हमले के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ होने की आशंका जताई है जिसके पक्ष में उन्होंने कई निराधार बातें कही हैं | इस कोशिश में बर्नी ने हमले के दौरान हुई कई प्रमुख बातों का खुद को ज्ञान न होने की बात स्पष्ट की है |

इन्होंने मुंबई हमले को देश में बैठे संघ के लोगों की साजिश करार तो दिया, परंतु उन्हें यह नहीं मालूम कि जिस समय मुंबई पर हमला हो रहा था उसी दौरान खुफिया एजेंसियों ने आतंकियों के मोबाइल कॉल्स को जब ट्रेप किया था तो पता चला कि हमलावर लगातार पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से संपर्क कर रहे थे, जहां से उनके आका उन्हें आगे की रणनीति बताते हुए दिशा-निर्देश दे रहे थे। पाकिस्तान में बैठे आका मुंबई के ताज होटल एवं ओबरॉय होटल के बाहर सुरक्षा बलों की गतिविधियों का ब्योरा भी इन होटलों में घुसे आतंकियों को दे रहे थे, जिससे उन्हें अपना काम अंजाम देने में दिक्कत न हो।


क्या यह बातें अजीज बर्नी को नहीं मालूम ? क्या पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के आका संघ के लोग थे ? या वे मुंबई पर हमला करने के लिए अजमल आमिर कसाब के संग आये | पाकिस्तानी नागरिक क्या संघ के कार्यकर्त्ता थे ? इसका जवाब अजीज बर्नी को देना चाहिए |
वैसे अगर मेरी जानकारी गलत नहीं तो मुंबई के 26/11 हमले के दिन अजीज बर्नी पाकिस्तान के कराची शहर में मौजूद थे। वहां 25/11 को ही अपने एक साथी पत्रकार के साथ गए थे और 26/11 को मुंबई पर हमला होने के बावजूद बर्नी पाकिस्तान में ही मौजूद रहे। अपने द्वारा किए जा रहे तथाकथित खुलासों के साथ-साथ क्या बर्नी 26/11 के दौरान अपने पाकिस्तान यात्रा एवं इसके मकसद पर भी प्रकाश डालेंगे? वैसे यह हमले के जांच में जुटी जांच एजेंसियों के लिए भी जांच का विषय है कि ठीक हमले के दौरान अजीज बर्नी पाकिस्तान क्या करने गए थे। बर्नी की वहां किन-किन लोगों से मुलाकात हुई एवं उनकी मुलाकात का एजेंडा क्या था?

साभार: पाञ्चजन्य ,16 जनवरी 2010