प्रस्ताव - 1विश्व मंगल गो ग्राय यात्रा: गोवंश रक्षण व ग्राम विकास की सार्थक पहल
पूज्य साधु-संतों द्वारा विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा के सफल आयोजन पर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा देश भर केे सभी साधु-संतों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए इस यात्रा को मिले अपूर्व जन-सहयोग के लिए देश की जनता एवं विविध सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों का हार्दिक अभिनंदन करती है। विकास की वर्तमान अवधारणा से पर्यावरण को हो रही क्षति से आज जब सम्पूर्ण विश्व गम्भीर रूप से चिन्तित है, ऐसे में इस यात्रा ने प्रकृति के अनुकूल और गोवंश व ग्राम केन्द्रित विकास की वैकल्पिक कार्य योजना के क्रियान्वयन की आवश्यकता को पुनः बल प्रदान किया है।28 सितम्बर 2009 से 17 जनवरी 2010 के बीच आयोजित इस यात्रा की मुख्य व उपयात्राओं के अन्तर्गत देश के 4.11 लाख ग्रामों में सम्पर्क हुआ है। कुल 2.34 लाख स्थानों पर हुई सभाओं में लगभग डेढ़ करोड़ जनता उपस्थित रही है। गोवंश रक्षा की माँग के समर्थन में लगभग साढ़े आठ करोड़ नागरिकों के हस्ताक्षर हुए हैं, जिनमें सभी मत-पंथों के लोगों सहित बड़ी संख्या में विविध दलों के सांसद व विधायक भी सम्मिलित हैं। प्रतिनिधि सभा का मानना है कि इतने विशाल हस्ताक्षर अभियान से यह स्पष्ट हो जाता है कि गोवंश रक्षा के पक्ष में कितना व्यापक जन समर्थन है। यह केन्द्र व राज्य सरकारों को उनके दायित्व का स्मरण कराता है कि वे गोवंश रक्षण एवं गौ केन्द्रित ग्राम विकास की व्यापक कार्य योजना के क्रियान्वयन की पहल व प्रयास करें। रासायनिक कृषि की अलाभकारिता, स्वास्थ्य पर संकट व उससे बंजर होती भूमि, गाँवों में शिक्षा-चिकित्सा जैसी जीवन की मौलिक सुविधाओं के अभाव एवं सिंचाई हेतु जल की कमी जैसे कारणों से गाँवों से बढ़ते पलायन को देखते हुए पहली प्राथमिकता ग्राम विकास की होनी चाहिये। इस हेतु सरकार को गाँवों में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, चिकित्सा व परिवहन आदि सुविधाओं का विस्तार और कुटीर, लघु व ग्रामोद्योगों के माध्यम से रोजगार के अवसरों का विकास करना चाहिये। सन्तुलित फसल चक्र, जैविक, प्राकृतिक व पर्यावरण सम्पोषक कृषि, पारम्परिक जल स्रोतों व नवकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास द्वारा ही स्वावलम्बी ग्राम व्यवस्था के माध्यम से सम्पूर्ण आर्थिक व पर्यावरणीय संकटों का समाधान सम्भव है। इस हेतु ग्रामों की भू-सम्पदा, जल सम्पदा, वन सम्पदा, गौ सम्पदा व अन्य जीव सम्पदा की सुरक्षा व समन्वित विकास की दिशा में अविलम्ब कदम उठाए जाने चाहिये। साथ ही देश खाद्यान्न के विषय में आत्म निर्भर बना रहे, इसलिए कृषि भूमि के क्षेत्रफल में कमी न आने पाये, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये। पंचगव्य से दैनिक उपयोग के विविध उत्पाद व औषधियों के निर्माण से ग्रामीण जनता की आय में वृद्धि की जा सकती है। इसी प्रकार गोबर गैस व बैल-चलित ऊर्जा उत्पादन संयंत्र से ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। गौ केन्द्रित ग्राम विकास से गाँवों को समृद्धि की ओर ले जाया जा सकता है। इसलिए इस सम्पूर्ण गोै आधारित विज्ञान व प्रौद्योगिकी पर अनुसंधान, इसका व्यापक प्रसार व पाठ्यक्रम में समावेश होना चाहिये। भारत में पिछले कुछ वर्षों में सामाजिक कार्यकर्ताओं व वैज्ञानिकों ने इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय पहल की है, जिसके कारण गोशालाओं के पारंपरिक उत्पादों के साथ-साथ पंचगव्य आधारित विविध नवीन उत्पादों तथा उपकरणों के विकास के प्रयास भी चल रहे हंै। इन सब प्रयासों से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि भारतीय मूल के गोवंश के अद्भुत गुणों को देखते हुए उसकी रक्षा, विकास तथा नस्ल सुधार के प्रयास अत्यंत लाभकारी होंगे। प्रतिनिधि सभा का मत है कि इन सभी प्रयासों को और अधिक समन्वित व संगठित करने की आवश्यकता है। कई प्रदेशों द्वारा जैविक कृषि हेतु किए जा रहे आरम्भिक प्रयासों को और भी अधिक व्यापक करना चाहिए। गोशालाओं को प्रति गाय, प्रतिदिन की दर से देय अनुदान सम्बन्धी पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय का निर्णय भी सभी राज्यों के लिये गोवंश रक्षण की दिशा में एक अनुकरणीय कदम होगा।हमारे संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में गोहत्या रोकने के निर्देश के साथ ही पर्यावरण, जल-स्रोतों एवं वन्य जीवों के संरक्षण व संवर्द्धन को शासन व नागरिकों का कत्र्तव्य बतलाते हुए प्राणी मात्र पर करुणा का निर्देश दिया है। गुजरात सरकार के सम्पूर्ण गोवंश की हत्या पर रोक लगाने के लिए बने कानून का सर्वोच्च न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ ने अपने 2005 के ऐतिहासिक निर्णय में समर्थन कर इन नीति निर्देशक सिद्धांतों को बल प्रदान किया है। आज जिन राज्यों में गोवंश रक्षण सम्बन्धी कानून हैं, उन्हें और अधिक प्रभावी बनाते हुए उनका समुचित क्रियान्वयन किया जाना चाहिये। कर्नाटक सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तुत गोरक्षा सम्बन्धी विधेयक सभी राज्यों के लिए अनुकरणीय प्रारूप सिद्ध हो सकता है। केन्द्र सरकार को भी गोवंश के मांस-निर्यात पर दिए जा रहे अनुदान को समाप्त करते हुए उसके निर्यात एवं गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का स्पष्ट मत है कि संविधान के नीति निर्देशक सिद्धान्तों, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय तथा विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा में हुई जनभावनाओं की प्रबल अभिव्यक्ति के उपरान्त भी यदि केन्द्र तथा राज्य सरकारें अपना कत्र्तव्य नहीं निभाती हैं तो यह जनतंत्र तथा संविधान की भावनाओं की अक्षम्य अवहेलना होगी। प्रतिनिधि सभा केन्द्र तथा सभी राज्य सरकारों से आग्रह करती है कि वे - 1. सम्पूर्ण गोवंश की हत्या बंदी के कानून का विधेयन कर, उसके प्रभावी क्रियान्वयन पर ध्यान देते हुए पड़ोसी देशों में हो रहे गोवंश के निर्यात व तस्करी को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएं।2. भारतीय नस्ल के गोवंश को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर, उसकी नस्लीय शुद्धता को बनाए रखने के सभी सम्भव प्रयास करें।3. गोशालाओं, देशी गोवंश, गोचर भूमि, गोबर गैस जनित व बैल-चालित ऊर्जा उत्पादन, जैविक व प्राकृतिक कृषि एवं पंचगव्य चिकित्सा जैसे गो-संवर्द्धन के विविध आयामों के विकास के लिए पहल करें।4. देश के ग्राम स्वावलम्बी व समृद्ध हों, इस हेतु वहाँ शिक्षा, चिकित्सा व परिवहन आदि की पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ और भू व जल संरक्षण के सभी उपायों सहित ग्रामोद्योगों एवं ऊर्जा के नवकरणीय स्रोतों के प्रचुर विकास के प्रयास करंे। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा समस्त देश-वासियों और विशेषकर स्वयंसेवकों से आवाहन करती है कि ग्राम विकास एवं गोवंश रक्षा हेतु इस यात्रा में दिये गये संदेश ”चलें गाँव की ओर, चलें गाय की ओर, चलें प्रकृति की ओर“ को सक्रियतापूर्वक क्रियान्वित कर सार्थक करें।
प्रस्ताव - २ जम्मू - कश्मीर: स्थायी समाधान के लिए राष्ट्रीय सहमति का सम्मान करें
पिछले कुछ वर्षों से जम्मू-कश्मीर राज्य की परिस्थितियाँ जिस गलत दिशा में जा रही हैं, उस पर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा चिंता व्यक्त करती है। राज्य तथा केन्द्र सरकारों द्वारा उठाए हुए कदम उसे और अधिक स्वायत्तता एवं पृथकतावाद की ओर ढकेल रहे हैं।अ.भा.प्र.सभा जम्मू-कश्मीर सरकार की लोकतंत्र विरोधी, अनुसूचित जाति विरोधी, मानवाधिकार विरोधी, महिला विरोधी एवं अलगाववाद समर्थक मानसिकता की घोर निंदा करती है। यह एक विडम्बना है कि सरकार विधानसभाजैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं का निर्लज्जतापूर्वक दुरुपयोग करते हुए कुछ राजनीतिक दलों के साथ मिलकर, राज्य के राष्ट्रभक्त लोगों के प्रति विद्वेष की राजनीति चला रही है। कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित, ससम्मान व गरिमा के साथ घर वापसी की कोई संभावना दिखाई नहीं देने से उनकी वेदनाओं का कहीं कोई अंत नहीं दिखाई दे रहा है। पश्चिमी पाकिस्तान से आए दो लाख शरणार्थी, छम्ब से विस्थापित एक लाख लोग एवं पाक व्याप्त कश्मीर से आए आठ लाख विस्थापित अब भी दशकों की उपेक्षा एवं मूलभूत अधिकारों से अपवंचना की यातना झेल रहे हैं। राज्य की अनुसूचित जाति के हिन्दुओं ने लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद ही आरक्षण का अधिकार प्राप्त किया है। अब राज्य सरकार पिछले दरवाजे से उन्हें उनके इन विधिक अधिकारों से वंचित करने के लिए कानून बना रही है, जिससे जम्मू क्षेत्र की अनुसूचित जातियाँ घाटी में आरक्षण से लाभ नहीं उठा पाएँगी।राजनीतिक सत्ता लोकतांत्रिक संस्थाओं का दुरुपयोग अलगाववादी शक्तियों को प्रोत्साहित करने के लिए कर रही है। वह ऐसी ‘आत्म-समर्पण नीति’ की बात कर रही है जिसके अन्तर्गत 20 वर्ष पूर्व पाकिस्तान जा चुके आतंकवादियों को घाटी में पुनर्वास के प्रस्ताव के साथ वापस लाया जाएगा। वह उस मृत प्राय विधेयक - पर्मानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट (डिस्क्वालिफिकेशन) बिल-को पुनर्जीवित करने की बात कर रही है जिसके अन्तर्गत राज्य की उन महिलाओं की नागरिकता समाप्त करने का प्रस्ताव है जो शेष भारत के किसी व्यक्ति से विवाह करेंगी। ऐसा कदम न केवल महिलाओं के मूल अधिकारों के विरुद्ध है अपितु अन्र्तराष्ट्रीय अधिनियमों ;बवदअमदजपवदेद्ध का भी उल्लंघन होगा। अ.भा.प्र.सभा कश्मीर समस्या के प्रति केन्द्र सरकार के दृष्टिकोण व कार्यवाइयों की निंदा करती है। इनसे जम्मू-कश्मीर सरकार के भीतर तथा बाहर विघटनकारी शक्तियों को ही मदद मिली है। प्रधानमंत्री द्वारा गठित कार्यदल के अध्यक्ष जस्टिस सगीर अहमद की रिपोर्ट में अनुच्छेद 370 को स्थायी करने, राज्य विधानसभा द्वारा राज्यपाल के चुनाव तथा राज्य को और अधिक स्वायत्तता देने जैसी बातों का खुला समर्थन अलगाववादी स्वरों को ही बल प्रदान करता है।केन्द्रीय गृहमंत्री के इस वक्तव्य से कि जम्मू-कश्मीर समस्या ”एक विशिष्ट राजनीतिक समस्या है जिसके विशेष समाधान की आवश्यकता है“ अंतर्निहित भ्रम एवं परिस्थिति की कम समझ का पता चलता है। प्रतिनिधि सभा यह दुहराती है कि जम्मू-कश्मीर समस्या मूलतः सीमा पार से पाकिस्तान के प्रोत्साहन एवं सहयोग से चलने वाला आतंकवाद है। इसके साथ कड़ाई से निपटा जाना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केन्द्र सरकार इस समस्या का समाधान ‘गुपचुप कूटनीति’ ;फनपमज कपचसवउंबलद्ध के माध्यम से करना चाहती है। प्रतिनिधि सभा आग्रह करती है कि सरकार जम्मू-कश्मीर पर पारदर्शिता बरते।अ.भा.प्रतिनिधि सभा इस बात पर गहरा दुःख प्रकट करती है कि केन्द्र सरकार की दुर्बलतापूर्ण नीति ने पृथकतावादियों तथा उनके आकाओं के मनोबल को बढ़ाने का ही काम किया है। हुर्रियत तथा अन्य भारत विरोधी गुटों के नेताओं को फरवरी 2010 में दिल्ली में पाक विदेश सचिव से भेंट करने की अनुमति दी गई, उन्हें पाक दूतावास के भोज में भाग लेने दिया गया और उन्हें इस्लामी राष्ट्र संघ (ओ.आई.सी.) की बैठक में भाग लेने के लिए विदेश जाने तक की भी अनुमति दी गई। प्रतिनिधि सभा यह जानना चाहती है कि ऐसी घोर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को अनुमति देने के पीछे सरकार की क्या विवशता रही है।इस ढुलमुल रवैये के कारण विगत कुछ माह में घाटी में हिंसा तथा आतंकवाद की घटनाएँ बढ़ी हैं। सेना ने भी माना है कि घुसपैठियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सेना तथा अर्द्धसैनिक बलों ने ‘आन्दोलनात्मक आतंकवाद’ के रूप में पाक प्रायोजित नए कुचक्र का उल्लेख किया है। आक्रामक प्रदर्शनकारियों के हाथों विगत कुछ महीनों में 1500 से अधिक सी.आर.पी.एफ. के जवान घायल हुए हैं तथा उनके 400 से अधिक वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं।अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा राज्य में हमारे सुरक्षा बलों के मनोबल को गिराने के प्रयासों पर चिंता व्यक्त करती है। घाटी से 35000 जवानों की वापसी ने सुरक्षा बलों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। झूठे शोपियान बलात्कार कांड तथा श्रीनगर फायरिंग जैसी घटनाओं में सुरक्षा बलों को फँसाने के प्रयासों से सशस्त्र बलों का मनोबल और अधिक गिर रहा है। यह रवैया इस गंभीर स्तर तक पहुँच गया है कि बी.एस.एफ. के एक कमाण्डेण्ट को आतंकवादी भीड़ पर अश्रु गैस के गोले दागने का आदेश देने के आरोप में गिरफ्तार कर जम्मू- कश्मीर पुलिस को सौप दिया गया। प्रतिनिधि सभा का आग्रह है कि केन्द्र सरकार को भारत-पाक संबंधों के बारे में अपनी नीति को सुसंगत व स्पष्ट करना चाहिए। गिलगिट-बालुचिस्तान को अपने देश का पांचवाँ प्रांत घोषित करने के निर्णय से पाकिस्तान की बढ़ती हठवादिता का पता चलता है। भारत सरकार को इस पर गहरी आपत्ति दर्ज करनी चाहिए क्योंकि यह क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर का भाग है और इसीलिए हमारे देश का अंग है। यह सभा सरकार को 22 फरवरी 1994 के संसद के उस सर्वसम्मत प्रस्ताव का स्मरण कराना चाहती है जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर के भारत में सम्पूर्ण वापसी का संकल्प व्यक्त किया गया था।अ. भा. प्रतिनिधि सभा सरकार का आवाहन करती है कि वह जम्मू-कश्मीर समस्या के स्थायी समाधान के लिए इस प्रस्ताव में व्यक्त राष्ट्रीय सहमति का अनुगमन करे। इस संदर्भ में सरकार को निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए:1. जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय अन्तिम तथा किसी प्रकार की समझौता-वार्ता से परे है।2. जम्मू-कश्मीर के लिए पृथक संविधान व झण्डा भारत की अखण्डता के विरुद्ध है। यह हमारे संविधान की भावना, लोकतांत्रिक हितों तथा जनता के मूलभूत अधिकारों के भी विरुद्ध है। इसलिए इसे समाप्त होना ही चाहिए। 3. हमारे संविधान में शामिल किया गया अनुच्छेद 370 एक ‘अस्थाई व संक्रमणकालीन व्यवस्था’ थी। परन्तु समाप्त होने के स्थान पर यह आज भी अलगाववादी तत्त्वों का हथियार बना हुआ है।4. समर्पण नीति, खुली सीमाएँ, ए.एफ.एस.पी. (आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल पाॅवर्स) एक्ट को हटाने जैसे प्रश्नों को पाक-अफगान सीमा पर घट रही घटनाओं तथा भारत की सुरक्षा पर हो़ने वाले उनके प्रभावों जैसे व्यापक संदर्भों में देखा जाना चाहिए।5. जम्मू-कश्मीर से सेना की वापसी एवं सुरक्षा बलों का मनोबल गिराने से हमारी आंतरिक व अंतर्राष्ट्रीय स्थिति कमजोर पड़ेगी। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सरकार को चेतावनी देती है कि जम्मू-कश्मीर के बारे में कोई भी गलत निर्णय या समझौता राष्ट्र सहन नहीं करेगा।