Wednesday, October 24, 2012

विजयादशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक प.पू. सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत का उद्बोधन


   (बुधवार दिनांक 24 अक्तुबर 2012) के अवसर पर दिये गये उद्बोधन -


आज के दिन हमें स्व. सुदर्शन जी जैसे मार्गदर्शकों का बहुत स्मरण हो रहा है। विजययात्रा में बिछुड़े हुये वीरों की स्मृतियॉं आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। विजयादशमी विजय का पर्व है। संपूर्ण देश में इस पर्व को दानवता पर मानवता की, दुष्टता पर सज्जनता की विजय के रूप में मनाया जाता है। विजय का संकल्प लेकर, स्वयं के ही मन से निर्मित दुर्बल कल्पनाओं ने खींची हुई अपनी क्षमता व पुरुषार्थ की सीमाओं को लांघ कर पराक्रम का प्रारंभ करने के लिये यह दिन उपयुक्त माना जाता है। अपने देश के जनमानस को इस सीमोल्लंघन की आवश्यकता है, क्योंकि आज की दुविधा व जटिलतायुक्त परिस्थिति में से देश का उबरना देश की लोकशक्ति के बहुमुखी सामूहिक उद्यम से ही अवश्य संभव है। यह करने की हमारी क्षमता है इस बात को हम सबने स्वतंत्रता के बाद के 65 वर्षों में भी कई बार सिद्ध कर दिखाया है। विज्ञान, व्यापार, कला, क्रीड़ा आदि मनुष्य जीवन के सभी पहलुओं में, देश-विदेशों की स्पर्धा के वातावरण में, भारत की गुणवत्ता को सिद्ध करनेवाले वर्तमान कालीन उदाहरणों का होना अब एक सहज बात है। ऐसा होने पर भी सद्य परिस्थिति के कारण संपूर्ण देश में जनमानस भविष्य को लेकर आशंकित, चिन्तित व कहीं-कहीं निराश भी है। पिछले वर्षभर की घटनाओं ने तो उन चिन्ताओं को और गहरा कर दिया है। देश की अंतर्गत व सीमान्त सुरक्षा का परिदृश्य पूर्णत: आश्व स्त करनेवाला नहीं है। हमारे सैन्य-बलों को अपनी भूमि की सुरक्षा के लिये आवश्यक अद्ययावत शस्त्र, अस्त्र, तंत्र व साधनों की आपूर्ति, उनके सीमास्थित मोर्चों तक साधन व अन्य रसद पहुँचाने के लिये उचित रास्ते, वाहन, संदेश वाहन आदि का जाल आदि सभी बातों की कमियों को शीघ्रातिशीघ्र दूर करने की तत्परता उन प्रयासों में दिखनी चाहिए। इसके विपरीत, सैन्यबलों के मनोबल पर आघात हो इस प्रकार, सेना अधिकारियों का कार्यकाल आदि छोटी तांत्रिक बातों को बिनाकारण तूल देकर नीतियों व माध्यमोें द्वारा अनिष्ट चर्चा का विषय बनाया गया हुआ हमने देखा है। सुरक्षा से संबंधित सभी वस्तुओं के उत्पादन में स्वावलंबी बनने की दिशा अपनी नीति में होनी चाहिए। सुरक्षा सूचना तंत्र में अभी भी तत्परता, क्षमता व समन्वय के अभाव को दूर कर उसको मजबूत करने की आवश्यकता 
ध्यान में आती है। हमारी भूमिसीमा एवं सीमा अर्न्तगत द्वीपों सहित सीमा क्षेत्र का प्रबन्धन पक्का करने व रखने की पहली आवश्यकता है। देश की सीमाओं की सुरक्षा, उनके सामरिक प्रबंध व रक्षण व्यवस्था के साथ-साथ, सुरक्षा की दृष्टि से अपने अंतरराष्ट्रीय राजनय के प्रयोग-विनियोग पर भी आजकल निर्भर होती है। उस दृष्टि से कुछ वर्ष पूर्व से एक बहुप्रतीक्षित नयी व सही दिशा की घोषणा "Look East Policy" नामक वाक्यप्रयोग से शासन के उच्चाधिकारियों से हुयी थी। दक्षिण पूर्व एशिया के सभी देशों में इस सत्य की जानकारी व मान्यता है कि भारत तथा उनके राष्ट्रजीवन के बुनियादी मूल्य समान है, निकट इतिहास के काल तक व कुछ अभी भी सांस्द्भतिक तथा व्यापारिक दृष्टि से उनसे हमारा आदान-प्रदान का घनिष्ट संबंध रहा है। इस दृष्टि से यह ठीक ही हुआ कि हमने इन सभी देशों से अपने सहयोगी व मित्रतापूर्ण संबंधों को फिर से दृढ़ बनाने का सुनिश्च य किया। वहां के लोग भी यह चाहते हैं। परन्तु घोषणा कितनी व किस गति से द्भति में आ रही है इसका हिसाब वहां और यहां भी आशादायक चित्र नहीं पैदा करता। इस क्षेत्र में हमसे पहले हमारा स्पर्धक बनकर चीन दल-बल सहित उतरा है यह बात ध्यान में लेते है तो यह गतिहीनता चिन्ता को और गंभीर बनाती है। अपनी आण्विक तकनीकी पाकिस्तान को देने तक उसने पाकिस्तान से दोस्ती बना ली है यह हम अब जानते हैं ही। नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका ऐसे निकटवर्ती देशों में भी चीन का इस दृष्टि से हमारे आगे जाना सुरक्षा की दृष्टि से हमारे लिये क्या अर्थ रखता है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। इन सभी क्षेत्रों में भारतीय मूल के लोग भी बड़ी मात्रा में बसते हैं, उन के हितों की रक्षा करते हुये इन हमारे परम्परागत स्वाभाविक मित्र देशों को साथ में रखने की व उन के साथ रहने की दृष्टि हमारे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी होनी चाहिये।
परन्तु राष्ट्र का हित हमारी नीति का लक्ष्य है कि नहीं यह प्रश्न  मन में उत्पन्न हो ऐसी घटनाएँ पिछले कुछ वर्षों में हमारे अपने शासन-प्रशासन के समर्थन से घटती हुई सम्पूर्ण जनमानस के घोर चिन्ता का कारण बनी है। जम्मू-कश्मीर की समस्या के बारे में पिछले दस वर्षों से चली नीति के कारण वहां उग्रवादी गतिविधियों के पुनरोदय के चिन्ह दिखायी दे रहे हैं। पाकिस्तान के अवैध कैंजे से कश्मीर घाटी के भूभाग को मुक्त करना; जम्मू, लेह-लद्दाख व घाटी के प्रशासन व विकास के भेदभाव को समाप्त करते हुये शेष भारत के साथ उस राज्य के सात्मीकरण की प्रक्रिया को गति से पूर्ण करना; घाटी से विस्थापित हिंदू पुनश्चक ससम्मान सुरक्षित अपनी भूमि पर बसने की स्थिति उत्पन्न करना; विभाजन के समय भारत में आये विस्थापितों को राज्य में नागरिक अधिकार प्राप्त होना आदि न्याय्य जनाकांक्षा के विपरित वहां की स्थिति को अधिक जटिल बनाने का ही कार्य चल रहा है। राज्य व केन्द्र के शासनारूढ़ दलों के सत्ता स्वार्थ के कारण राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करना व विदेशी दबावों में झुकने का क्रम पूर्ववत चल रहा है। इतिहास के क्रम में राष्ट्रीय वृत्ति की हिन्दू जनसंख्या क्रमश: घटने के कारण देश के उत्तर भूभाग में उत्पन्न हुयी व बढ़ती गयी इस समस्यापूर्ण स्थिति से हमने कोई पाठ नहीं पढ़ा है ऐसा देश के पूर्व दिशा के भूभाग की स्थिति देखकर लगता है। असम व बंगाल की सच्छिद्र सीमा से होनेवाली घुसपैठ व शस्त्रास्त्र, नशीले पदार्थ, बनावटी पैसा आदि की तस्करी के बारे में हम बहुत वर्षों से चेतावनियॉं दे रहे थे। देश की गुप्तचर संस्थाएँ, उच्च व सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों के राज्यपालों तक ने समय-समय पर खतरे की घंटियॉं बजायी थीं। न्यायालयों से शासन के लिये आदेश भी दिये गये थे। परंतु उन सबकी अनदेखी करते हुये सत्ता के लिये लांगूलचालन की नीति चली, स्पष्ट राष्ट्रीय दृष्टि के अभाव में गलत निर्णय हुये व ईशान्य भारत में संकट का विकराल रूप खड़ा हुआ सबके सामने है। घुसपैठ के कारण वहॉं पैदा हुआ जनसंख्या असंतुलन वहॉं के राष्ट्रीय जनसंख्या को अल्पमत में लाकर संपूर्ण देश में अपने हाथ पैर फैला रहा है। व्यापक मतांतरण के साये में वहां पर फैले अलगाववादी उग्रवाद की विषवेल को दब्बू नीतियॉं बार-बार संजीवनी प्रदान करती है। उत्तर सीमापर आ धड़की चीन की विस्तारवादी नीति का हस्तक्षेप भी होने की भनक वहॉं पर लगी है। विश्वी की “अल कायदा” जैसी कट्टरपंथी ताकतें भी उस परिस्थिति का लाभ लेकर वहॉं चंचुप्रवेश करना चाह रही है। ऐसी स्थिति में अपने सशस्त्र बलों की समर्थ उपस्थिति व परिस्थिति की प्रतिकार में उभरा जनता का दृढ़ मनोबल ही राष्ट्र की भूमि व जन की सुरक्षा के आधार के रूप में बचे हैं। समय रहते हम नीतियों में अविलम्ब सुधार करें। ईशान्य भारत में तथा भारत के अन्य राज्यों में भी घुसपैठियों की पहचान त्वरित करते हुये तथा मतदाता सुची सहित (राशन पत्र, पहचान पत्र आदि) अन्य प्रपत्रों से इन अवैध नागरिकों के नाम बाहर कर देने चाहिये व विदेशी घुसपैठियों को भारत के बाहर भेजने के प्रबंध करने चाहिये। विदेशी घुसपैठियों के पहचान के काम में किसी प्रकार का गड़बड़झाला न हो यह दक्षता बरती जानी चाहिये। सीमाओं की सुरक्षा के तारबंदी आदि के दृढ़ प्रबंध व रक्षण व्यवस्था में अधिक सजगता से चौकसी बरतने के उपाय अविलम्ब किये जाने चाहिये। राष्ट्रीय नागरिक पंजी (National Register of Citizens) को न्यायालयों द्वारा स्पष्ट रूप से निर्देशित, जन्मस्थल, माता-पिता के स्थान अथवा मातामहों-पितामहों के स्थानों के पुख्ता प्रमाणों के आधार पर तैयार करना चाहिए। ईशान्य भारत के क्षेत्र में व अन्यत्र भी यह पूर्व का अनुभव है कि जनमत के व न्यायालय के आदेशों के दबाव में विदेशी नागरिकों अथवा संशयास्पद मतदाताओं ( D voters) की  पहचान करने का दिखावा जब-जब प्रशासन या शासन करने गया तब-तब बंगलादेशी घुसपैठियों को तो उसने छोड़ दिया व वहॉं से पीड़ित कर निकाले गये व अब भारत में अनेक वर्षों से बसाये गये निरुपद्रवी व निरीह हिन्दुओं पर ही उनकी गाज गिरी।
हम सभी को यह स्पष्ट रूप से समझना व स्वीकार करना चाहिए कि विश्वओभर के हिन्दू समाज के लिये पितृ-भू व पुण्य-भू के रूप में केवल भारत-जो परम्परा से हिन्दुस्थान होने से ही भारत कहलाता है, हिन्दू अल्पसंख्यक अथवा निष्प्रभावी होने से जिसके भू-भागों का नाम तक बदल जाता है- ही है। पीड़ित होकर गृहभूमि से निकाले जाने पर आश्रय के रूप में उसको दूसरा देश नहीं है। अतएव कहीं से भी आश्रयार्थी होकर आनेवाले हिन्दू को विदेशी नहीं मानना चाहिये। सिंध से भारत में हाल में ही आये आश्रयार्थी हो अथवा बंगलादेश से आकर बसे हों, अत्याचारों के कारण भारत में अनिच्छापूर्वक धकेले गये विस्थापित हिन्दुओं को हिन्दुस्थान भारत में सस्नेह व ससम्मान आश्रय मिलना ही चाहिये। भारतीय शासन का यह कर्तव्य बनता है वह विश्व्भर के हिन्दुओं के हितों का रक्षण करने में अपनी अपेक्षित भूमिका का तत्परता व दृढ़ता से निर्वाह करें। इस सारे घटनाक्रम का एक और गंभीर पहलू है कि विदेशी घुसपैठियों की इस अवैध कारवाई को केवल वे अपने संप्रदाय के है इसलिये कहीं पर कुछ तत्त्वों ने उनके समर्थन का वातावरण बनाने का प्रयास किया। शिक्षा अथवा कमाई के लिये भारत में अन्यत्र बसे ईशान्य भारत के लोगों को धमकाया गया। मुंबई के आजाद मैदान की घटना प्रसिद्ध है। म्यांमार के शासन द्वारा वहां के रोहिंगियाओं पर हुयी कार्यवाही का निषेध भारत में जवान ज्योति का अपमान करने में गर्व महसूस करनेवाली भारत विरोधी ताकतों को अंदर से समर्थन देनेवाले तत्त्व अभी भी देश में विद्यमान है यह संदेश साफ है।
      “ यह चिन्ता, क्षोभ व ग्लानी का विषय है कि देश हित के विपरित नीति का प्रशासन द्वारा प्रदर्शन हुआ व राष्ट्र विरोधी पंचमस्तम्भियों के बढ़े हुये साहस के परिणाम स्वरूप उन तत्त्वों द्वारा कानून व शासन का उद्दंड अपमान हुआ। सब सामर्थ्य होने के बाद भी तंत्र को पंगु बनाकर देश विरोधी तत्त्वों को खुला खेल खेलने देने की नीति चलाने वाले लोग दुर्भाग्य से स्वतंत्र देश के अपने ही लोग हैं। समाज में राष्ट्रीय मनोवृति को बढ़ावा देना तो दूर हमारे अपने हिन्दुस्थान में ही मतों के स्वार्थ से, कट्टरता व अलगाव से अथवा विद्वेषी मनोवृत्ति के कारण पिछले दस वर्षों में हिन्दू समाज का तेजोभंग व बल हानि करने के नीतिगत कुप्रयास व छल-कपट बढ़ते हुये दिखाई दे रहे हैं। हमारे परमश्रद्धेय आचार्यों पर मनगढंत आरोप लगाकर उनकी अप्रतिष्ठा के ओछे प्रयास हुये। वनवासियों की सेवा करने वाले स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की षडयन्त्रपूर्वक हत्या की गयी, वास्तविक अपराधी अभी तक पकड़े नहीं गये। हिन्दू मन्दिरों की अधिग्रहीत संपत्ति का अपहार व अप-प्रयोग धड़ल्ले से चल रहा है, संशय व आरोपों का वातावरण, निर्माण किया गया, हिंदू संतों द्वारा निर्मित न्यासों व तिरुअनन्तपुरम् के पद्मनाभ स्वामी मंदिर जैसे मंदिरों की संपत्ति के बारे में हिन्दू समाज की मान्यताओं, श्रेष्ठ परंपरा व संस्कारों को कलुषित अथवा नष्ट करनेवाला वातावरण निर्माण करनेवाले विषय जानबूझकर समाज में उछाले गये। बहुसंख्य व उदारमनस्क होते हुये भी हिन्दुसमाज की अकारण बदनामी कर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले कानून लाने का प्रयास तो अभी भी चल रहा है। प्रजातंत्र, पंथनिरपेक्षता व संविधान के प्रति प्रतिबद्धता का दावा करने वाले ही मतों के लालच में तथाकथित अल्पसंख्यकों का राष्ट्र की संपत्ति पर पहला हक बताकर साम्प्रदायिक आधार पर आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं। लव जिहाद व मतांतरण जैसी गतिविधियों द्वारा हिन्दू समाज पर प्रच्छन्न आक्रमण करनेवाली प्रवृत्तियों से ही राजनीतिक साठगांठ की जाती है। फलस्वरूप इस देश के परम्परागत रहिवासी बहुसंख्यक राष्ट्रीयमूल्यक स्वभाव व आचरण का निधान बनकर रहने वाले हिन्दू समाज के मन में यह प्रश्नक उठ रहा है कि हमारे लिए बोलनेवाला व हमारा प्रतिनिधित्व करनेवाला नेतृत्व इस देश में अस्तित्व में है कि नहीं?” 
। हिन्दुत्व व हिन्दुस्थान को मिटाना चाहनेवाली दुनिया की एकाधिकारवादी, जड़वादी व कट्टरपंथी ताकतों तथा हमारे राज्यों के व केन्द्र के शासन में घुसी मतलोलुप अवसरवादी प्रवृत्तियों के गठबंधन के षडयंत्र के द्वारा और एक सौहार्दविरोधी कार्य करने का प्रयास हो रहा है। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर परिसर के निकट विस्तृत जमीन अधिग्रहीत कर वहां पर मुसलमानों के लिये कोई बड़ा निर्माण करने के प्रयास चल रहे हैं ऐसे समाचार प्राप्त हो रहे हैं। जब अयोध्या में राममंदिर निर्माण का प्रकरण न्यायालय में है तब ऐसी हरकतों के द्वारा समाज की भावनाओं से खिलवाड़ सांप्रदायिक सौहार्द का नुकसान ही करेगी। 30 सितंबर 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को ध्यान में लेते हुए वास्तव में हमारी संसद के द्वारा शीघ्रातिशीघ्र भव्य मंदिर के निर्माण की अनुमति रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास को देनेवाला कानून बने व अयोध्या की सांस्द्भतिक सीमा के बाहर ही मुसलमानों के लिये किसी स्थान के निर्माण की अनुमति हो यही इस विवाद में घुसी राजनीति को बाहर कर विवाद को सदा के लिये संतोष व सौहार्दजनक ढंग से सुलझाने का एकमात्र उपाय है। परंतु देश की राजनीति में आज जो वातावरण है वह उसके देशहितपरक, समाजसौहार्दपरक होने की छवि उत्पन्न नहीं करता। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के माध्यम से बड़ी विदेशी कंपनियों का खुदरा व्यापार में आना विश्वर में कहीं पर भी अच्छे अनुभव नहीं दे रहा है। ऐसे में खुदरा व्यापार तथा बीमा व पेंशन के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाना हमें लाभ पहुँचाने के बजाय अंततोगत्वा छोटे व्यापारियों के लिये बेरोजगारी, किसानों के लिये अपने उत्पादों का कम मूल्य मिलने की मजबूरी तथा ग्राहकों के लिये अधिक मंहगाई ही पैदा करेगा। साथ ही अपनी खाद्यान्न सुरक्षा के लिये भी खतरा बढ़ेगा। देश की प्राद्भतिक संपदा की अवैध लूट तथा विकास के नामपर जैव विविधता व पर्यावरण के साथ ही उनपर निर्भर लोगों को बेरोजगारी से लेकर तो विस्थापन तक समस्याओं के भेट चढ़ाना अनिर्बाध रूप से चल ही रहा है। देश के एक छोटे वर्गमात्र की उन्नति को जनता की आर्थिक प्रगति का नाम देकर हम जिस तेज विकास दर की डींग हांकते थे वह भी आज 9 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तक नीचे आ गया है। संपूर्ण देश नित्य बढ़ती महंगाई से त्रस्त है। अमीर और गरीब के बीच लगातार बढ़ते जा रहे अन्तर में विषमता की समस्या को और अधिक भयावह बना दिया है। न जाने किस भय से हड़बड़ी में इतने सारे अधपके कानून बिना सोच-विचार-चर्चा के लाये जा रहे हैं। इन तथाकथित “सुधारों” के बजाय में जहॉं वास्तविक सुधारों की आवश्यकता है उन क्षेत्रों में-चुनाव प्रणाली, करप्रणाली, आर्थिक निगरानी की व्यवस्था, शिक्षा नीति, सूचना अधिकार कानून के नियम- सुधार की मॉंगों की अनदेखी व दमन भी हो रहा है। अधूरे चिन्तन के आधार पर विश्व  में आज प्रचलित विकास की पद्धति व दिशा ही ऐसी है कि उससे यही परिणाम सर्वत्र मिलते हैं। ऊपर से अब यह पद्धति धनपति बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठानों के खेलों से उन्हीं के लिये अनुकूल बनाकर चलायी जाती है। हम जब तक अपनी समग्र व एकात्म दृष्टि के दृढ़ आधार पर जीवन के सब आयामों के लिये, अपनी क्षमता, आवश्यकता व संसाधनों के अनुरूप व्यवस्थाओं के नये कालसुसंगत प्रतिमान विकसित नहीं करेंगे तबतक न भारत को सभी को फलदायी होनेवाला संतुलित विकास व प्रगति उपलब्ध होगी न अधूरे विसंवादी जीवन से दुनिया को मुक्ति मिलेगी। चिन्तन के अधूरेपन के परिणामों को अपने देश में राष्ट्रीय व व्यक्तिगत शील के अभाव ने बहुत पीड़ादायक व गहरा बना दिया है। मन को सुन्न करनेवाले भ्रष्टाचार-प्रकरणों के उद्‌घाटनों का तांता अभी भी थम नहीं रहा है। भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाने के, कालाधन वापस देश में लाने के, भ्रष्टाचार को रोकनेवाली नयी कड़ी व्यवस्था बनाने के लिये छोटे-बड़े आंदोलनों का प्रादुर्भाव भी हुआ है। संघ के अनेक स्वयंसेवक भी इन आंदोलनों में सहभागी हैं। परन्तु भ्रष्टाचार का उद्गम शील के अभाव में है यह समझकर संघ अपने चरित्रनिर्माण के कार्य पर ही केन्द्रित रहेगा। लोगों में निराशा व व्यवस्था के प्रति अश्रद्धा न आने देते हुये व्यवस्था परिवर्तन की बात कहनी पड़ेगी अन्यथा मध्यपूर्व के देशों में अराजकता सदृश स्थिति उत्पन्न कर जैसे कट्टरपंथी व विदेशी ताकतों ने अपना उल्लू सीधा कर लिया वैसे होने की संभावना नकारी नहीं जा सकती। अराजनैतिक सामाजिक दबाव का व्यापक व दृढ़ परन्तु व्यवस्थित स्वरूप ही भ्रष्टाचार उन्मूलन का उपाय बनेगा। उसके फलीभूत होने के लिये हमें व्यापक तौर पर शिक्षाप्रणाली, प्रशासनपद्धति तथा चुनावतंत्र के सुधार की बात आगे बढ़ानी होगी। तथा व्यापक सामाजिक चिन्तन-मंथन के द्वारा हमारी व्यवस्थाओं के मूलगामी व दूरगामी परिवर्तन की बात सोचनी पड़ेगी। अधूरी क्षतिकारक व्यवस्था के पीछे केवल वह प्रचलित है इसलिये आँख मूंद कर जाने के परिणाम समाज जीवन में ध्यान में आ रहे है। बढ़ता हुआ जातिगत अभिनिवेश व विद्वेष, पिछड़े एवं वंचित वर्ग के शोषण व उत्पीड़न की समस्या, नैतिक मूल्यों के ह्‌रास के कारण शिक्षित वर्ग सहित सामान्य समाज में बढती हुई महिला उत्पीडन, बलात्कार, कन्या भू्रणहत्या, स्वच्छन्द यौनाचार ,हत्याएँ व आत्महत्याएँ , परिवारों का विघटन, व्यसनाधीनता की बढती प्रवृत्ति, अकेलापन के परिणाम स्वरूप तनावग्रस्त जीवन आदि हमारे देश में न दिखी अथवा अत्यल्प प्रमाण वाली घटनाएँ अब बढ़ते प्रमाण में दृग्गोचर हो रही है। हमें अपने शाश्वलत मूल्यों के आधार पर समाज के नवरचना की काल सुसंगत व्यवस्था भी सोचनी पड़ेगी।

अतएव सारा उत्तरदायित्व राजनीति, शासन, प्रशासन पर डालकर हम सब दोषमुक्त भी नहीं हो सकते। अपने घरों से लेकर सामाजिक वातावरण तक क्या हम स्वच्छता, व्यवस्थितता, अनुशासन, व्यवहार की भद्रता व शुचिता, संवेदनशीलता आदि सुदृढ़ राष्ट्रजीवन की अनिवार्य व्यवहारिक बातों का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं? सब परिवर्तनों का प्रारम्भ हमारे अपने जीवन के दृष्टिकोण व आचरण के प्रारंभ से होता है यह भूल जाने से, मात्र आंदोलनों से काम बननेवाला नहीं है। स्व. महात्मा गांधी जी ने 1922 के Young India के एक अंक में सात सामाजिक पापों का उल्लेख किया था। वे थे। Politics without Principles Wealth without Work pleasure without Conscience तत्त्वहीन राजनीतिश्रमविना संपत्तिविवेकहीन उपभोग शील Knowledge without Character Commerce without Morality Science Without Humanity Worship without Sacrifice विना ज्ञाननीतिहीन व्यापारमानवता विना विज्ञानसमर्पणरहित पूजा आज के अपने देश के सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य का ही यह वर्णन लगता है। ऐसी परिस्थिति में समाज की सज्जनशक्ति को ही समाज में तथा समाज को साथ लेकर उद्यम करना पड़ता है। इस चुनौति को हमें स्वीकार कर आगे बढ़ना ही पड़ेगा। भारतीय नवोत्थान के जिन उद्गाताओं से प्रेरणा लेकर स्व. महात्मा जी जैसे गरिमावान लोग काम कर रहे थे उनमें एक स्वामी विवेकानन्द थे। उनके सार्ध जन्मशती के कार्यक्रम आनेवाले दिनों में प्रारंभ होने जा रहे हैं। उनके संदेश को हमें चरितार्थ करना होगा। निर्भय होकर, स्वगौरव व आत्मविश्वाउस के साथ, विशुद्ध शील की साधना करनी होगी। कठोर निष्काम परिश्रम से जनों में जनार्दन का दर्शन करते हुए नि:स्वार्थ सेवा का कठोर परिश्रम करना पड़ेगा धर्मप्राण भारत को जगाना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य इन सब गुणों से युक्त व्यक्तियों के निर्माण का कार्य है। यह कार्य समय की अनिवार्य आवश्यकता है। आप सभी का प्रत्यक्ष सहभाग इसमें होना ही पड़ेगा। निरंतर साधना व कठोर परिश्रम से समाज अभिमंत्रित होकर संगठित उद्यम के लिये खड़ा होगा तब सब बाधाओं को चीरकर सागर की ओर बढ़नेवाली गंगा के समान राष्ट्र का भाग्यसूर्य भी उदयाचल से शिखर की ओर कूच करना प्रारम्भ करेगा। अतएव स्वामीजी के शब्दों में “उठो जागो व तबतक बिना रूके परिश्रम करते रहो जबतक तुम अपने लक्ष्य को नहीं पा लोगे।” उत्तिष्ठत! जाग्रत!! प्राप्यवरान्निबोधत!!!
- भारत माता की जय -

पूर्व सरसंघचालक की अस्थियां संगम में विसर्जित इलाहाबाद 27 सितम्बर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक कुपहल्ली सीतारमैय्या सुदर्शन की अस्थियां गुरूवार को वैदिक मंत्रों के साथ गंगा-यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में विसर्जित कर दी गयी। इस अवसर पर संघ परिवार से जुड़े पूरे राज्य के वरिष्ठ पदाधिकारी एवं भाजपा नेता भारी संख्या में संगम तट पर मौजूद रहे। अस्थियों को विसर्जित करने के लिए संगम स्थल पर बांस और तख्त का एक विशेष मंच बनाया गया था जहां संघ मुख्यालय नागपुर के प्रचारक सुनील नियाड़े व संघ के अन्य पदाधिकारी स्टीमर से अस्थि कलश लेकर पहुंचे। संगम में अस्थियों को प्रवाहित करने से पहले वैदिक विद्वानों एवं आचार्यों द्वारा आवश्यक पूजन की प्रक्रिया भी पूरी की गयी। इससे पहले पूर्व सरसंघचालक का अस्थि कलश ज्वाला देवी इण्टर कालेज से संगम तक एक सजे हुए विशेष वाहन से लाया गया। साथ में हजारों की संख्या में संघ परिवार के स्वयंसेवक और भारतीय जनता पार्टी के नेता व कार्यकर्ता अस्थि कलश के साथ चल रहे थे। श्री सुदर्शन का अस्थि कलश बुधवार शाम को नागपुर से सुनील नियाड़े लेकर यहां पहुंचे। अस्थि कलश को रात भर के लिए संघ के सिविल लाइंस कार्यालय पर रखा गया था। गुरूवार को प्रातः सात बजे ज्वाला देवी इण्टर कालेज में अस्थि कलश को लोगों के दर्शन एवं श्रद्धांजलि के लिए रखा गया था। स्वावलम्बन के पक्के पक्षधर थे सुदर्शन-डा.जोशी इलाहाबाद 27 सितम्बर (हि.स.)। भाजपा के वरिष्ठ नेता डा0 मुरली मनोहर जोशी का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक कुपहल्ली सीतारमैय्या सुदर्शन स्वावलम्बन के पक्के पक्षधर थे। वह व्यक्ति, समाज और देश में स्वावलम्बन की स्थिति कैसे आए इसके लिए भी सतत् चिन्तनशील रहते थे। आवश्यकता पड़ने पर लोगों का मार्गदर्शन भी करते थे। श्रद्धांजलि देते डा0 मुरली मनोहर जोशी डा0 जोशी गुरूवार को नगर के ज्वाला देवी इण्टर काॅलेज प्रांगण में केएस सुदर्शन की श्रद्धाजंलि सभा में बोल रहे थे। डा0 जोशी ने कहा कि पूर्व सरसंघचालक चाहते थे कि देश की अपनी भाषा और अपना विज्ञान हो। वह विज्ञान के अतिरिक्त कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, उद्योग और ऊर्जा सभी क्षेत्र में देश को स्वावलम्बी देखना चाहते थे। वैकल्पिक ऊर्जा के वे प्रबल पक्षधर थे। पूर्व सरसंघचालक से अपने निकटतम संबंधों की चर्चा करते हुए देश के पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा0 जोशी ने बताया कि जब वे केन्द्र में मंत्री थे श्री सुदर्शन उन्हें अक्सर शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुझाव देते रहते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गरिमामयी सरसंघचालक पद से हटने के बाद भी उनका कृषि के प्रति अटूट प्रेम नहीं हटा और वे भोपाल प्रवास के दौरान अपने छोटे से आवास के छत पर भी जैविक खेती का प्रयोग करते थे और यदि उनके पास कोई कृषि वैज्ञानिक पहुंचता था तो उसे वह उस खेती को दिखाकर यह कहना भी नहीं भूलते थे कि हमारे देश के किसान इस तरह की खेती करके भारतवर्ष को स्वावलम्बी बना सकते हैं। डा0 जोशी ने बताया कि श्री सुदर्शन अद्भुत राष्ट्रप्रेमी थे। शायद इसीलिए वे देश में हिन्दू और मुस्लिम समन्वय के प्रति सतत् चिन्तनशील रहे। साथ ही देश के सारे समाज को हिन्दुत्व की धारा से जोड़े रखना और उसके लिए सदैव प्रयत्नशील रखना श्री सुदर्शन के व्यक्तित्व का अनूठा लक्षण था। उ0प्र0 के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने उक्त अवसर पर कहा कि लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्मयोग का सहारा लेते हैं लेकिन श्री सुदर्शन के अन्दर इन तीनों का सम्मिश्रण विद्यमान था। यद्यपि उनके अन्दर कर्मयोग ज्यादा प्रधान था। श्री सिंह ने बताया कि पूर्व सरसंघचालक सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विषयों पर जो भी चिन्तन प्रस्तुत करते थे वह सदैव मौलिक हुआ करता था। भारत की चुनाव प्रणाली भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हो, इसके वह प्रबल पक्षधर रहे। साथ ही श्री सुदर्शन अपने विचारों को बेबाक रूप से प्रस्तुत करते थे। संघ के क्षेत्र संघचालक ईश्वर चंद्र गुप्त एवं सह क्षेत्र संघचालक प्रो. देवेन्द्र प्रताप सिंह ने श्री सुदर्शन के साथ कार्य करने का अनुभव बांटा और बताया कि हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम था। इसीलिए उनके सामने बात करते वक्त हम सबको अधिक सावधान रहना पड़ता था। प्रो0 सिंह ने बताया कि पूर्व सरसंघचालक देश में चिकित्सा और अभियांत्रिकी की शिक्षा को भी हिन्दी माध्यम से करवाना चाहते थे। पूर्व में क्षेत्र कार्यवाह रामकुमार ने श्री सुदर्शन के जीवन परिचय पर प्रकाश डाला। श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए सच्चा बाबा अरैल के महन्त गोपालजी महाराज ने आशा व्यक्त की कि अपने अधूरे कार्यों को पूरा करने हेतु श्री सुदर्शन इस धरती पर पुनः किसी न किसी रूप में अवश्य आयेंगे। कार्यक्रम का संचालन विभाग कार्यवाह नागेन्द्र जायसवाल ने किया। कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार, कलराज मिश्र, प्रदेश अध्यक्ष डा0 लक्ष्मी कान्त बाजपेयी, डा0 महेन्द्र सिंह, प्रदेश के पूर्वमंत्री डा0 नरेन्द्र सिंह गौर, जय प्रकाश, डा0 यज्ञ दत्त शर्मा, उदयभान करवरिया, योगेश शुक्ला, प्रांत संघचालक विश्वनाथ लाल निगम, गोरक्ष प्रांत संघचालक डा0 उदय प्रताप सिंह, अवध प्रांत संघचालक प्रभुचंद्र श्रीवास्तव, उ0प्र0 लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 केबी पाण्डेय, क्षेत्र प्रचारक शिव नारायण, काशी प्रांत प्रचारक अभय कुमार, गोरक्ष प्रांत प्रचारक अनिल, सह प्रान्त प्रचारक राजेन्द्र, अवध प्रांत प्रचारक संजय, विभाग प्रचारक मनोज, कानपुर प्रान्त कार्यवाह काशीराम, विहिप के प्रान्त संगठन मंत्री मनोज कुमार, भारतीय मजदूर संघ के अनुपम कुमार, प्रो0 गिरीश चन्द्र त्रिपाठी, श्री चिन्तामणी सिंह, अम्बरीश, रामानन्दाचार्य, विनोद प्रकाश श्रीवास्तव, विभाग संघचालक राम शिरोमणि, ओमप्रकाश, दिनेश कुमार, अशोक मेहता सहित हजारों की संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित रहे। गौरतलब है कि पूर्व सरसंघचालक श्री सुदर्शन का विगत 15 सितम्बर को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में निधन हो गया था। उनका अंतिम संस्कार 16 सितम्बर को संघ के मुख्यालय नागपुर में सम्पन्न हुआ। बुधवार शाम को उनका अस्थि कलश संगम में प्रवाहित करने हेतु इलाहाबाद लाया गया था।






इलाहाबाद 27 सितम्बर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक कुपहल्ली सीतारमैय्या सुदर्शन की अस्थियां गुरूवार को वैदिक मंत्रों के साथ गंगा-यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में विसर्जित कर दी गयी। इस अवसर पर संघ परिवार से जुड़े पूरे राज्य के वरिष्ठ पदाधिकारी एवं भाजपा नेता भारी संख्या में संगम तट पर मौजूद रहे। 
अस्थियों को विसर्जित करने के लिए संगम स्थल पर बांस और तख्त का एक विशेष मंच बनाया गया था जहां संघ मुख्यालय नागपुर के प्रचारक सुनील नियाड़े व संघ के अन्य पदाधिकारी स्टीमर से अस्थि कलश लेकर पहुंचे। संगम में अस्थियों को प्रवाहित करने से पहले वैदिक विद्वानों एवं आचार्यों द्वारा आवश्यक पूजन की प्रक्रिया भी पूरी की गयी। 
इससे पहले पूर्व सरसंघचालक का अस्थि कलश ज्वाला देवी इण्टर कालेज से संगम तक एक सजे हुए विशेष वाहन से लाया गया। साथ में हजारों की संख्या में संघ परिवार के स्वयंसेवक और भारतीय जनता पार्टी के नेता व कार्यकर्ता अस्थि कलश के साथ चल रहे थे। 
श्री सुदर्शन का अस्थि कलश बुधवार शाम को नागपुर से सुनील नियाड़े लेकर यहां पहुंचे। अस्थि कलश को रात भर के लिए संघ के सिविल लाइंस कार्यालय पर रखा गया था। गुरूवार को प्रातः सात बजे ज्वाला देवी इण्टर कालेज में अस्थि कलश को लोगों के दर्शन एवं श्रद्धांजलि के लिए रखा गया था। 
स्वावलम्बन के पक्के पक्षधर थे सुदर्शन-डा.जोशी
इलाहाबाद 27 सितम्बर (हि.स.)। भाजपा के वरिष्ठ नेता डा0 मुरली मनोहर जोशी का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक कुपहल्ली सीतारमैय्या सुदर्शन स्वावलम्बन के पक्के पक्षधर थे। वह व्यक्ति, समाज और देश में स्वावलम्बन की स्थिति कैसे आए इसके लिए भी सतत् चिन्तनशील रहते थे। आवश्यकता पड़ने पर लोगों का मार्गदर्शन भी करते थे। 

श्रद्धांजलि देते डा0 मुरली मनोहर जोशी
डा0 जोशी गुरूवार को नगर के ज्वाला देवी इण्टर काॅलेज प्रांगण में केएस सुदर्शन की श्रद्धाजंलि सभा में बोल रहे थे। डा0 जोशी ने कहा कि पूर्व सरसंघचालक चाहते थे कि देश की अपनी भाषा और अपना विज्ञान हो। वह विज्ञान के अतिरिक्त कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, उद्योग और ऊर्जा सभी क्षेत्र में देश को स्वावलम्बी देखना चाहते थे। वैकल्पिक ऊर्जा के वे प्रबल पक्षधर थे।
पूर्व सरसंघचालक से अपने निकटतम संबंधों की चर्चा करते हुए देश के पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा0 जोशी ने बताया कि जब वे केन्द्र में मंत्री थे श्री सुदर्शन उन्हें अक्सर शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुझाव देते रहते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गरिमामयी सरसंघचालक पद से हटने के बाद भी उनका कृषि के प्रति अटूट प्रेम नहीं हटा और वे भोपाल प्रवास के दौरान अपने छोटे से आवास के छत पर भी जैविक खेती का प्रयोग करते थे और यदि उनके पास कोई कृषि वैज्ञानिक पहुंचता था तो उसे वह उस खेती को दिखाकर यह कहना भी नहीं भूलते थे कि हमारे देश के किसान इस तरह की खेती करके भारतवर्ष को स्वावलम्बी बना सकते हैं। 
डा0 जोशी ने बताया कि श्री सुदर्शन अद्भुत राष्ट्रप्रेमी थे। शायद इसीलिए वे देश में हिन्दू और मुस्लिम समन्वय के प्रति सतत् चिन्तनशील रहे। साथ ही देश के सारे समाज को हिन्दुत्व की धारा से जोड़े रखना और उसके लिए सदैव प्रयत्नशील रखना श्री सुदर्शन के व्यक्तित्व का अनूठा लक्षण था।
उ0प्र0 के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने उक्त अवसर पर कहा कि लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्मयोग का सहारा लेते हैं लेकिन श्री सुदर्शन के अन्दर इन तीनों का सम्मिश्रण विद्यमान था। यद्यपि उनके अन्दर कर्मयोग ज्यादा प्रधान था। श्री सिंह ने बताया कि पूर्व सरसंघचालक सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विषयों पर जो भी चिन्तन प्रस्तुत करते थे वह सदैव मौलिक हुआ करता था। भारत की चुनाव प्रणाली भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हो, इसके वह प्रबल पक्षधर रहे। साथ ही श्री सुदर्शन अपने विचारों को बेबाक रूप से प्रस्तुत करते थे। 
संघ के क्षेत्र संघचालक ईश्वर चंद्र गुप्त एवं सह क्षेत्र संघचालक प्रो. देवेन्द्र प्रताप सिंह ने श्री सुदर्शन के साथ कार्य करने का अनुभव बांटा और बताया कि हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम था। इसीलिए उनके सामने बात करते वक्त हम सबको अधिक सावधान रहना पड़ता था। प्रो0 सिंह ने बताया कि पूर्व सरसंघचालक देश में चिकित्सा और अभियांत्रिकी की शिक्षा को भी हिन्दी माध्यम से करवाना चाहते थे। 
पूर्व में क्षेत्र कार्यवाह रामकुमार ने श्री सुदर्शन के जीवन परिचय पर प्रकाश डाला। श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए सच्चा बाबा अरैल के महन्त गोपालजी महाराज ने आशा व्यक्त की कि अपने अधूरे कार्यों को पूरा करने हेतु श्री सुदर्शन इस धरती पर पुनः किसी न किसी रूप में अवश्य आयेंगे। कार्यक्रम का संचालन विभाग कार्यवाह नागेन्द्र जायसवाल ने किया। 
कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार, कलराज मिश्र, प्रदेश अध्यक्ष डा0 लक्ष्मी कान्त बाजपेयी, डा0 महेन्द्र सिंह, प्रदेश के पूर्वमंत्री डा0 नरेन्द्र सिंह गौर, जय प्रकाश, डा0 यज्ञ दत्त शर्मा, उदयभान करवरिया, योगेश शुक्ला, प्रांत संघचालक विश्वनाथ लाल निगम, गोरक्ष प्रांत संघचालक डा0 उदय प्रताप सिंह, अवध प्रांत संघचालक प्रभुचंद्र श्रीवास्तव, उ0प्र0 लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 केबी पाण्डेय, क्षेत्र प्रचारक शिव नारायण, काशी प्रांत प्रचारक अभय कुमार, गोरक्ष प्रांत प्रचारक अनिल, सह प्रान्त प्रचारक राजेन्द्र, अवध प्रांत प्रचारक संजय, विभाग प्रचारक मनोज, कानपुर प्रान्त कार्यवाह काशीराम, विहिप के प्रान्त संगठन मंत्री मनोज कुमार, भारतीय मजदूर संघ के अनुपम कुमार, प्रो0 गिरीश चन्द्र त्रिपाठी, श्री चिन्तामणी सिंह, अम्बरीश, रामानन्दाचार्य, विनोद प्रकाश श्रीवास्तव, विभाग संघचालक राम शिरोमणि, ओमप्रकाश, दिनेश कुमार, अशोक मेहता सहित हजारों की संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित रहे।
गौरतलब है कि पूर्व सरसंघचालक श्री सुदर्शन का विगत 15 सितम्बर को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में निधन हो गया था। उनका अंतिम संस्कार 16 सितम्बर को संघ के मुख्यालय नागपुर में सम्पन्न हुआ। बुधवार शाम को उनका अस्थि कलश संगम में प्रवाहित करने हेतु इलाहाबाद लाया गया था।