Friday, July 30, 2021

सेवागाथा - वैदिक परंपराओं का पुनर्जागरण सुरभि शोध संस्थान (वाराणसी)

- रश्मि दाधीच

त्रिपुरा के बालक मुक्ति की बांसुरी की धुन व नेपाल की आशा के ढोलक की थाप पर कृष्ण भजन, सुनकर मन भाव विभोर सा हो गया। पूर्वोत्तर राज्यों के इन बच्चों को, हिंदी भाषा में गीत गाते बजाते देख मैं ही नहीं मेरे संग गौशाला की गायें भी मानो झूम रहीं थी। बात करते हैं वाराणसी की ,भौतिकता की ओर अग्रसर वर्तमान आधुनिक समाज में विलुप्त होती शिक्षा पद्धति, कृषि पद्धतियां एवं वैदिक परंपराओं का, पुनर्जागरण है, यहां का \"सुरभि शोध संस्थान\"

सादा जीवन उच्च विचार को सार्थक करते संघ के स्वयंसेवक श्री  सूर्यकांत जालान जी की प्रेरणा से इस प्रकल्प का आरंभ 1992 में निर्जीव पड़ी गौशालाओं में, कुछ गायों और कसाई से छुड़ाए गए अनुपयोगी गोवंश को आश्रय दे, उनकी सेवा करने से हुई। समय के साथ इसे शिक्षा से जोड़ा गया।

सन 2000 में स्वावलंबी गौशाला में बने छात्रावास को पूर्वोत्तर राज्यों के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से वनवासी  जनजातियों के, 22 लडकों से शुरू किया गया ।आज छात्रावास में  दुर्गम पूर्वोत्तर के  600 विद्यार्थी  निःशुल्क आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ संगीत, पाक कला, जैविक कृषि, गोपालन, कृषि विज्ञानजल, भूमि व पर्यावरण संरक्षण,जैसे मूलभूत विषयों पर जीवन उपयोगी शिक्षा ही प्राप्त नहीं कर रहे,अपितु आतंकवाद, नक्सलवाद से कोसों दूर, विभिन्न संस्कृतियों सभ्यताओं के बीच समरसता और सामंजस्य स्थापित कर रहे हैं।

 यहीं से निकले सोनम भूटिया सिक्किम यूनिवर्सिटी के जनरल सेक्रेटरी रहे जो एम फिल कर रहे हैं।  वहीं यहां के कुछ बच्चे सिक्किम व नागालैंड में हिंदी पढ़ा रहे हैं। जालान जी गर्व से बताते हैं यहां से पढ़कर निकले नारबु लेप्चा सिक्किम में वन मंत्री के सेक्रेटरी हैं। नियमित होने वाली संगीत कक्षाओं से सीखकर सिक्किम के सच्कुम अल लेप्चा  अपना यूट्यूब चैनल सफलतापूर्वक चला रहे हैं।

 छात्रावास का कार्यभार देख रहे संघ के पूर्व प्रचारक रहे श्री हरीश भाई बताते हैं, कि पूर्वोत्तर राज्यों की सामाजिक परिस्थितियों के कारण यहां अनेक बच्चे कृषक परिवार से , कुछ अनाथ एवं कुछ सिंगल पेरेंटिंग के अनुभव से गुजर कर आये हैं। तीसरी चौथी कक्षा से आए बच्चों के लिए  संस्था ही उनका परिवार  हैं। उच्च शिक्षा तक इनकी पूरी सहायता की जाती है।

संस्थान के परिसर में स्थित चार छात्रावासों में करीब 424 लड़के व एक में करीब 178 लड़कियां रहती है। आत्मनिर्भरता के बीज बोता यह केंद्र बच्चों में हिंदी भाषी होने का गर्व और सुनहरे भविष्य के सपने जगा रहा है।

 हर घर बने आत्मनिर्भर और प्रत्येक व्यक्ति मेहनत और अपने पुरुषार्थ से अपनी व्यवस्थाएं जुटायें, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए संस्थान के अंतर्गत विभिन्न आयामों को चलाया गया। गोशाला के सम्पर्क से गांव वालों की समस्याएं जिनमें बंजर भूमि, पानी की कमी, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि की कठिनाई इत्यादि सामने आने लगी। कई महीनों तक प्राचीन पद्धति को ध्यान में रखते हुए बंजर जमीन को गोमूत्र और गोबर द्वारा पोषित कर, पहाड़ों से आते वर्षा के पानी को संरक्षित करने के लिए जगह-जगह छोटे तालाब, बांध, नालों का निर्माण कर, जल संरक्षण को बढ़ावा दिया गया । परिणामतः बंजर भूमि पर हरियाली लहराने लगी और गांवों में ऑर्गेनिक खेती, नर्सरी, वृक्षारोपण को बढ़ावा मिला। गौपालन से लेकर कृषि के अनेक क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाएं बढ़ी। शिक्षा के लिए विभिन्न क्षेत्रों में माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय खोले गए।

संस्था के  प्रधान कार्यकर्ता श्री जटाशंकर जी बताते हैं घटती पैदावार से उदासीन किसानों को उन्नत फसलों के लिए शिक्षित कर, लुप्त होती सब्जियों, फलों और वनस्पति को संरक्षित किया गया। मात्र, तपोवन शाखा में ही आज करीब 60000 पेड़ पौधे हैं,जहां 25 प्रकार के फल और सब्जियां, 20 प्रकार की जड़ी बूटियां, गायों के चारे, मसाले इत्यादि का उत्पादन हो रहा है। अपने हाथों से  काम करना, पेड़ पौधे लगाना, गो सेवा करना, छात्रावास के बच्चों को स्वतः ही प्रकृति प्रेमी बना देता है।

शहरी हो या ग्रामीण क्षेत्र वर्तमान समय में रोटी की कहीं कमी नहीं है, पर नारी का सम्मान, मासूम बच्चों की छोटी-छोटी इच्छाएं, गृहणी को तड़पा देती है। उस पर घरेलू हिंसा , पति में नशे की लत, घर में विवाद पैदा करती है। 6 वर्षो से यहां काम करती, सविता मौर्या आत्मविश्वास से बताती है लॉकडाउन में भी हमारा हाथ मशीनों पर रुका नहीं, अब घर में इज्जत और बच्चों की खुशियां दोनों हमारे हाथ में है । राजलक्ष्मी, दुर्गा, आशा जैसी करीब 500 महिलाएं आज निशुल्क सिलाई का प्रशिक्षण लेकर यहीं से पैसे भी कमा रही है। संस्थान में पापड़, आचार,मसाले, मुरब्बा, गुलकंद जैसे कुटीर उद्योगों से आत्मनिर्भर बनती ग्रामीण महिलाओं का भी जीवन स्तर सुधरा है।

ग्रामीण परिवेश में प्रति 28 दिन से संस्था द्वारा डगमगपुर और मिर्जापुर प्रकल्प में निशुल्क स्वास्थ्य सेवा शिविर लगाए जाते हैं। जहां डॉ एस के पोद्दार जैसे कई डॉक्टर अपना समय देकर स्वास्थ्य और मिर्गी जागरूकता अभियान में एक बड़ा बदलाव लेकर आए हैं। निःशुल्क चिकित्सा से करीब 5000 लोगों को अब तक लाभ मिल चुका है और प्रत्येक शिविर में कम से कम 1100 लोग इस सेवा का लाभ उठा रहे हैं।

भारतीय संस्कृति के अनुसार गाय में समस्त देवता विराजमान है, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ये प्रकल्प, जो गौशाला से शुरू किया गया व आज विभिन्न क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन की मिसाल बन रहा है। 

स्रोत- https://sewagatha.org/know_more_content1.php?id=2&page=309

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक वर्ष

 - अतुल कोठारी

29 जुलाई, 2020 को भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गई थी. स्वतंत्र भारत की यह प्रथम नीति है जो भारत केन्द्रित एवं विद्यार्थी केन्द्रित है. इस नीति में समग्रता की दृष्टि के साथ-साथ भारतीय प्राचीन ज्ञान एवं आधुनिकता (ई-लर्निग आदि) तथा सिद्धांत के साथ व्यवहारिकता के समन्वय की बात कही गई है. इस कारण से देशभर में इस शिक्षा नीति का स्वागत किया गया है.

कोरोना महामारी के उपरांत देशभर में नीति पर व्यापक विचार विमर्श के कार्यक्रम आयोजित किए गए. कोरोना की दूसरी भयावह लहर के कारण यह प्रक्रिया खण्डित हो गई थी. आनन्द की बात है कि पुनः शिक्षा नीति पर विचार विमर्श प्रारम्भ हो गया है. परन्तु सबसे बड़ा प्रश्न है, इस नीति के क्रियान्वयन का? स्वतंत्र भारत में इसके पूर्व 1968 एवं 1986 में तत्कालीन केन्द्र सरकार द्वारा शिक्षा नीति प्रस्तुत की गई थी. इसके अतिरिक्त शिक्षा में सुधार हेतु 1949 में राधाकृष्ण आयोग, 1952 में मुदलियार आयोग एवं 1964 में कोठारी आयोग गठित किए गए थे. उन सभी ने कई अच्छे सुझाव दिए थे, परंतु दुर्भाग्य से इच्छा शक्ति के अभाव में इसका वास्तविक क्रियान्वयन नहीं हो सका. परिणामस्वरूप हमारी शिक्षा की गुणवत्ता का विकास नहीं हो पाया.

अतीत के इन अनुभवों को ध्यान में रखकर इस शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर विशेष कार्य करने की आवश्यकता है. हमारे देश में इस प्रकार की नीतियों के क्रियान्वयन की बात होती है, तब अधिकतर लोगों का मानना होता है कि यह सरकार का कार्य है. सरकार की निश्चित भूमिका है, परंतु लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी नीति की सफलता के लिए सरकार एवं समाज दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. इस दृष्टि से शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में केन्द्र सरकार, राज्यों की सरकारें, विश्वविद्यालय, शिक्षाविद, शिक्षक, अभिभावक एवं छात्रों आदि की भूमिका अपेक्षित है, तभी समग्रता से क्रियान्वयन हो सकेगा.

कुछ निर्णय केन्द्र सरकार के स्तर पर होते हैं, जैसे उच्च शिक्षा आयोग का गठन, क्रेडिट व्यवस्था की संरचना, विद्यालयीन पाठ्यचर्या की पुनर्रचना आदि. इसी प्रकार राज्य सरकारों द्वारा अपने राज्य के विश्वविद्यालयों एवं अन्य शैक्षिक संस्थानों और प्रत्येक जिले में क्रियान्वयन का समय-पत्रक बनाना, विश्वविद्यालयों के साथ महाविद्यालयों की संबद्धता को समाप्त करने हेतु क्रमबद्ध योजना एवं इस हेतु कानून में आवश्यक परिवर्तन इत्यादि. इसी प्रकार विश्वविद्यालयों में क्रेडिट पद्धति लागू करने एवं नई संरचना स्थापित करने हेतु एक्ट में आवश्यक परिवर्तन, पाठ्यक्रमों की पुनर्रचना व्यवहारिकता एवं अधिक लचीलापन लाना तथा हर स्तर पर भारतीय ज्ञान परम्परा के समावेश के साथ द्विभाषा में पाठ्य-पुस्तकें तैयार करना इत्यादि शामिल है. इसके साथ ही शिक्षण अधिगम (पेडागोजी) में परिवर्तन की तैयारी करना. इस प्रकार के अन्य भी कई विषय हैं, जिसका वास्तविक क्रियान्वयन हो इस हेतु शिक्षकों को तैयार करना आवश्यक होगा.

इस शिक्षा नीति में कई नए विषयों का समावेश किया गया है. एक प्रकार से शिक्षा की समग्र संरचना में बदलाव की बात है. इस हेतु इस नीति के विभिन्न आयामों एवं पहलुओं पर देशभर में सघन विमर्श भी आवश्यक है. विशेषतः सभी स्तर के शिक्षक इस नीति का अध्ययन करें, जब वे नीति पर विमर्श का आयोजन करके प्रतिभाग करेंगे, तभी शिक्षा नीति की भावना को समझकर क्रियान्वयन में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर पाएंगे. इसके लिये सभी प्रकार के शैक्षिक संस्थानों में योजना बनाना आवश्यक है.

इसके साथ ही इस नीति की घोषणा को एक वर्ष पूर्ण हो रहा है, तब केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों, विश्वविद्यालयों से लेकर सभी स्तर के शैक्षिक संस्थानों में समीक्षा होनी चाहिए कि विगत एक वर्ष में शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर कितना कार्य किया गया है और इसके आधार पर भविष्य की योजना पर भी विचार होना चाहिए. इस नीति के क्रियान्वयन हेतु सतत एवं सांतत्यपूर्ण रूप  से कार्य करना होगा. नीति का वास्तविक एवं समग्रता से क्रियान्वयन होगा तो देश की शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन होने की पूर्ण संभावना है. शिक्षा किसी भी देश की नींव होती है. शिक्षा बदलेगी तो देश बदलेगा अर्थात् हम जिस प्रकार के समृद्ध, सशक्त एवं समर्थ भारत का स्वप्न देख रहे हैं, उस दिशा में हम अग्रसर हो सकेंगे.

कानपुर के बैंक खातों से हो रही थी टेरर फंडिंग, आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की साजिश थी

नई दिल्ली. लखनऊ से गिरफ्तार किए दो आतंकियों से जानकारी मिली है कि कानपुर के बैंक खातों से टेरर फंडिंग हो रही थी. जिनमें लाखों रुपये का लेनदेन हुआ था. फिलहाल बैंक खातों को सीज़ कर दिया गया है. 11 जुलाई को लखनऊ के काकोरी क्षेत्र से मिन्हाज और मड़ियांव से मुशीर को एटीएस ने गिरफ्तार किया था. दोनों आतंकवादी मानव बम बनकर 15 अगस्त से पहले लखनऊ सहित कई शहरों में आतंकी घटना को अंजाम देने की योजना बना रहे थे. एटीएस ने दोनों के कब्जे से विस्फोटक पदार्थ बरामद किया था. दोनों आतंकवादी अलकायदा समर्थित अंसार गजवा तुल हिंद संगठन के हैं. यह आतंकी संगठन उमर नाम का एक आतंकवादी चला रहा था.

अलकायदा के दोनों आतंकियों से पूछताछ में एटीएस को जानकारी मिली है कि कानपुर नगर के 13 बैंक खातों से टेरर फंडिंग हो रही थी. इनमें से नौ ऐसे हैं, जिनमें पिछले छह महीने में 32 लाख रुपये का विदेश से लेन-देन भी हुआ. सभी बैंक खातों को सीज़ कर एटीएस हवाला कारोबारियों को तलाश रही है. इससे पहले आतंकी मिन्हाज और मुशीर को उनके मददगार शकील, मुस्तकीम और मुईद के सामने बिठाकर पूछताछ की गई थी.

उत्तर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने गिरफ्तारी के समय बताया था कि सूचना मिलने पर पुलिस ने मिन्हाज अहमद के लखनऊ स्थित घर पर दबिश दी. उसके घर से भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद हुआ. एक पिस्टल व आईईडी बरामद हुई है. बरामद आईईडी को निष्क्रिय कराया गया. पुलिस की एक अन्य टीम ने अभियुक्त मशीरुद्दीन के लखनऊ स्थित घर पर दबिश देकर भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद किया.

जानकारी के अनुसार, अलकायदा समर्थित अंसार गजवा तुल हिंद संगठन एक आतंकी संगठन है. यह पेशावर व क्वेटा से संचालित किया जा रहा था. आतंकी उमर लखनऊ में जेहादी प्रवृत्ति के लोगों को तैयार कर रहा था. मिनहाज अहमद और मशीरुद्दीन उर्फ मुशीर इस संगठन के सदस्य हैं. उस समय पूछताछ के दौरान आतंकियों ने पुलिस को बताया था कि इस आतंकी षड्यंत्र में शामिल कुछ अन्य लोग भी शामिल थे.

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

Monday, July 26, 2021

हम सावधानी से रहेंगे, तो तीसरी लहर को रोक पाएंगे..!!

 - सुखदेव वशिष्ठ

भारत में कोरोना की तीसरी लहर को लेकर बार-बार चर्चा हो रही है. सरकार-प्रशासन द्वारा तीसरी लहर के संकट को कम करने के लिए नियमों का पालन करने के प्रति जागरूक भी किया जा रहा है. तीसरी लहर का संकट इसलिए क्योंकि हम अभी भी हर्ड इम्यूनिटीके स्तर तक नहीं पहुंचे हैं और न ही हम संक्रमण के चरण में पहुंचे हैं. हम संक्रमण के माध्यम से हर्ड इम्यूनिटीहासिल नहीं करना चाहते हैं. दुनियाभर में कोरोना की तीसरी लहर दस्तक दे चुकी है और अगर हमने कोरोना नियमों का पालन नहीं किया तो हमें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वी.के. पॉल के शब्दों में, “कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में अगले 100-125 दिन महत्वपूर्ण हैं.

इंडोनेशिया में 40 हजार से अधिक मामले प्रतिदिन आ रहे हैं. बांग्लादेश में पहले सात हजार मामले मिल रहे थे, लेकिन अब 13 हजार से अधिक मामले हर दिन मिल रहे हैं. ब्रिटेन में भी कोरोना की तीसरी लहर आ चुकी है. वहां दूसरी लहर में प्रतिदिन 50 हजार से ज्यादा मामले मिल रहे थे, पर अभी तीसरी लहर की शुरुआत में ही 35 हजार से अधिक मामले सामने आ रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया के भी कई शहरों में लॉकडाउन लगाया जा चुका है. स्पेन में सप्ताह में कोरोना वायरस मामलों की संख्या में 64 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि नीदरलैंड में 300 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है.

भारत में कोविड का वर्तमान परिदृश्य

दूसरी लहर के पीक यानि मई महीने के दौरान भारत में प्रतिदिन औसतन चार लाख नए मामले दर्ज किए जा रहे थे, वो अब औसतन 50,000 से कम हैं. राज्यों में सख्ती के बाद कोरोना के नए मामलों में गिरावट संभव हो पाई है. कोरोना संक्रमण के नए मामले पहले की तुलना में कम हुए हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर गलतियों को दोहराया गया, तो ये गलतियां तीसरी लहर के घातक होने का कारण बन सकती हैं. लोगों ने कोविड के सेफ़्टी प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया, तो इससे वायरस को तेज़ी से फैलने में मदद मिलेगी जो तीसरी लहर के जल्दी आने का कारण बन सकती है. डेल्टा वेरिएंट की वजह से भारत को कोरोना की दूसरी लहर का सामना करना पड़ा. लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर वायरस के प्रसार को अतिसंवेदनशील आबादी में फैलने से रोका नहीं गया, तो कोरोना के ऐसे कुछ और वेरिएंट आ सकते हैं.

दिल्ली सहित उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में कोविड की स्थिति नियंत्रण में है. लेकिन, केरल  और महाराष्ट्र में संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अकेला केरल ही भारत के कुल कोरोना मामलों का 30.3% हिस्सेदार है, जबकि अप्रैल में यह आंकड़ा मात्र 6.2% का ही था और जून में यह क्रम से बढ़ते हुए 10.6% और 17.1 % हो गया. कुछ ऐसी ही हालत महाराष्ट्र की है. देश के कुल केस का 20.8% महाराष्ट्र में है. अप्रैल में यह 26.7% ही था, जबकि उस समय दूसरी लहर अपने चरम पर थी. इसके साथ ही तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, ओडिशा में भी अप्रैल-मई की अपेक्षा वर्तमान में भारत के कुल केसों में हिस्सेदारी बढ़ गई है. मणिपुर, मिजोरम , त्रिपुरा ,आंध्र प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में भी कोविड-19 केसों में बढ़ोतरी देखने को मिली है.

नए वेरिएंट और भारत में कोविड की तीसरी लहर

भारत में जून महीने तक क़रीब 30 हज़ार सेंपल सीक्वेंस किए हैं, लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि गति बढ़ाए जाने की ज़रूरत है. तीसरी लहर का प्रभाव और इसका प्रसार इस बात पर भी निर्भर करेगा कि भारतीय आबादी में इम्युनिटी कितनी है. जिन लोगों को वैक्सीन लग चुकी है, उन्हें कोरोना से संभावित इम्युनिटी मिल चुकी है. साथ ही जिन लोगों को एक बार कोरोना संक्रमण हो चुका है, उन्हें भी इस वायरस से कुछ हद तक इम्युनिटी मिल गई है.

प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के. विजय राघवन का कहना है तीसरी लहर टाली नहीं जा सकती. लेकिन यह कब आएगी, इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है. सावधानियां अपनाकर, नियमों का पालन करके इससे कुछ हद तक बचा जा सकता है.

प्रधानमंत्री भी कह चुके हैं कि, “कई बार लोग सवाल पूछते हैं कि तीसरी लहर के बारे में क्या तैयारी है? तीसरी लहर पर आप क्या करेंगे? आज सवाल यह होना चाहिए कि तीसरी लहर को आने से कैसा रोका जाए.

कोरोना ऐसी चीज है, वह अपने आप नहीं आती है. कोई जाकर ले आए, तो आती है. इसलिए हम अगर सावधानी से रहेंगे, तो तीसरी लहर को रोक पाएंगे. कोरोना की तीसरी लहर को आते हुए रोकना बड़ी बात है. इसलिए कोरोना प्रोटोकॉल का पालन जरूरी है.

Sunday, July 25, 2021

आमागढ़ – अपनी राजनीति चमकाने के लिए समाज को तोड़ने के प्रयास क्यों?

पिछले कुछ समय से हिन्दू समाज को तोड़ने का उद्देश्य लेकर विघटनकारी शक्तियां देश में सक्रिय हैं. समाज में दरार पैदा करने के लिए नित नए षड्यंत्रों का सहारा लेते हैं. अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति समाज के भोले-भाले लोगों को निशाना बना रहे हैं, उन्हें बरगला रहे हैं. और इस षड्यंत्र में नक्सली ब्रिगेड तथा मतांतरण के कार्य में लगे मिशनरी भी उनका साथ दे रहे हैं.

जयपुर के गलता तीर्थ स्थित आमागढ़ दुर्ग पर विधायक की उपस्थिति में धर्म ध्वजा (भगवा ध्वज) फाड़ने का मामला अत्यंत गम्भीर है. राजनीति चमकाने या स्वयं को अलग दिखाने के लिए किया गया कृत्य समाज की सद्भावना के लिए घातक है.

दुर्ग पर लगाए गए भगवा ध्वज को हटाने व फाड़ने से सम्बंधित घटना के वीडियो में गंगापुर सिटी के निर्दलीय विधायक रामकेश मीणा की उपस्थिति दिख रही है. वीडियो में कहते दिख रहे हैं कि इस ध्वज को हटाया जाए. एक वीडियो और है, जिसमें स्थानीय लोग जिन्होंने यह ध्वज लगाया, इस बात से आहत हैं कि यह ध्वज हटाने को कहा जा रहा है. एक युवक तो इस हद तक आहत हुआ कि उसका गला रुंध गया. ऐसा नहीं था कि ध्वज पर किसी समाज विशेष का नाम था. यह विशुद्ध तौर पर भगवा ध्वज था जो भारत की सनातन संस्कृति का प्रतीक है और भारत में जन्मे हर धर्म में भगवा का अपना महत्व है. इसके बावजूद इसे हटाया गया और फाड़ा गया.

इस काम की अगुवाई करने वाले विधायक कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रहे हैं, उनका कहना है कि यहां अम्बामाता का मंदिर है और मीणा समाज का ऐतिहासिक धर्मिक स्थल है. इस पर असामाजिक तत्व कब्जा करने के प्रयास कर रहे थे और इसीलिए यह ध्वज लगाया गया था. बाद में उन्होंने यह सफाई भी दी कि जिन लोगों ने ध्वज लगाया था, उन्होंने ही उसे हटाया भी है. वह सार्वजनिक तौर पर यह कहते हैं कि अनुसूचित जनजाति समाज हिन्दू नहीं है. उनकी परम्पराएं और मान्यताएं हिन्दुओं से पूरी तरह अलग हैं. लेकिन साथ ही वे यह भी कहते हैं कि यहां हमारी माता का मंदिर है और यह मीणा समाज की ऐतिहासिक धरोहर है. यह अपने आप में ही एक विरोधाभासी बयान हो जाता है.

घटना की एक परत यह भी

आमागढ़ दुर्ग में हुई इस घटना को एकाकी रूप में नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि इस घटना की एक परत और भी है. दरअसल जहां अम्बामाता का मंदिर है, वहीं साथ में एक शिव मंदिर भी है. पांच जून को कुछ अज्ञात लोगों ने यहां स्थापित शिव पंचायत को खंडित कर दिया था. इस मामले में एक केस भी दर्ज हुआ था और मुस्लिम समुदाय के कुछ लड़कों को इस मामले में पकड़ा भी गया था. यह केस वहीं के एक स्थानीय व्यक्ति ने दर्ज कराया था, लेकिन बाद में मामला रफा-दफा हो गया. इस बीच सर्व समाज के लोगों ने कुछ समय प्रतीक्षा की और 13 जुलाई को इस शिव पंचायत को पुनः स्थापित कर दिया. इसी के बाद यहां यह भगवा ध्वज लगाया गया था.

भगवा ध्वज को फाड़ने की घटना के मामले में पुलिस में रिपोर्ट कराने वाले भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष जितेन्द्र मीणा का कहना है कि अम्बामाता मीणा समाज की आराध्य हैं, लेकिन मंदिर सबका होता है और हिन्दू समाज की परम्परा है कि हर मंदिर के साथ शिव पंचायत भी बैठाई जाती है. यदि रामकेश मीणा को मीणा समाज की धरोहर की इतनी ही चिंता थी तो उन्हें जब मूर्तियां खंडित हुईं, तब यहां आकर विरोध करना चाहिए था, क्योंकि वे मूर्तियां इसी मंदिर का हिस्सा थीं. मीणा ने कहा कि जिस व्यक्ति के खुद के नाम में राम है, वह इस तरह की गतिविधियां और बयान दे कर हिन्दू समाज को तोड़ने की साजिश कर रहा है. यह अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि समाज को तोड़ने और आपस में लड़ाने की साजिश का हिस्सा बनना सही नहीं है.

समाज के लिए खतरनाक है यह स्थिति

प्रदेश में पिछले कुछ समय से जनजाति समाज के कुछ प्रतिनिधियों द्वारा खुल कर यह बयान दिए जा रहे हैं कि वे हिन्दू नहीं हैं. ऐसे बयान देने वालों में अधिकतर कांग्रेस या उसे समर्थन देने वाले विधायक या भारतीय ट्राइबल पार्टी से जुड़े लोग हैं. प्रदेश के वनवासी अंचल में ये ताकतें लम्बे समय से सक्रिय हैं और जनजाति समाज की अलग पहचान के नाम पर उन्हें बरगलाने के प्रयासों में जुटी हुई हैं. जनजाति समाज की अलग मान्यताओं और परम्पराओं से किसी का कोई विरोध नहीं है, लेकिन स्वयं को अलग दिखाने और उसके नाम पर हिन्दू समाज को तोड़ने की यह प्रवृत्ति खतरनाक संकेत है. इसे रोकने के लिए तुरंत और तेजी से प्रयास करने की आवश्यकता है.

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत 

Saturday, July 24, 2021

गुरु पूजन एवं श्रीगुरु दक्षिणा


एक स्वयंसेवक ने कहा संघ कार्य हिन्दू समाज का कार्य है. इसलिए जो आर्थिक मदद दे सकते हैं, ऐसे संघ से सहानुभूति रखने वाले लोगों से धन एकत्रित किया जाए. अन्य स्वयंसेवक ने भी सुझाव का समर्थन करते हुए कहा कि समाज जीवन की उन्नति हेतु चलने वाले सभी प्रकार के कार्य आखिर लोगों द्वारा दिए गए दान, अनुदान और चंदे की रकम से ही चलते हैं. अत: हमें भी इसी तरीके से धन जुटाना चाहिए.

एक अन्य स्वयंसेवक ने इस पर आपत्ति उठाते हुए कहा कि हमारा कार्य सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय कार्य है. इसका लोगों को बोध कराना होगा. किंतु इसके लिए उनसे आर्थिक मदद मांगना उचित नहीं होगा. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए अन्य स्वयंसेवक ने कहा कि यदि हम इसे अपना ही कार्य कहते हैं तो संघ जैसे उदात्त कार्य हेतु हम स्वयं ही अपना धन लगाकर खर्च की व्यवस्था क्यों न करें?

डॉक्टर हेडगेवार जी ने उसे अपना विचार अधिक स्पष्ट रूप से कहने का आग्रह किया.

तब उस स्वयंसेवक ने कहा, अपने घर में कोई धार्मिक कार्य अथवा विवाह आदि कार्य होते हैं. कोई अपनी लड़की के विवाह के लिए चंदा एकत्रित कर धन नहीं जुटाता. इसी प्रकार संघ कार्य पर होने वाला खर्च भी, जैसे भी संभव हो, हम सभी मिलकर वहन करें.

स्वयंसेवक खुले मन से अपने विचार व्यक्त करने लगे. एक ने आशंका उपस्थित करते हुए कहा, यह धन राशि संघ के कार्य हेतु एकत्र होगी. क्या, इसे हम कार्य हेतु अपना आर्थिक सहयोग मानें? दान, अनुदान, चंदा आर्थिक सहयोग आदि में पूर्णतया निरपेक्ष भाव से देने का भाव प्रकट नहीं होता. अपनी घर-गृहस्थी ठीक तरह से चलाते हुए, हमें जो संभव होता है, वही हम दान, अनुदान चंदा आदि के रूप में देते हैं. किंतु हमारा संघ कार्य तो जीवन में सर्वश्रेष्ठ वरण करने योग्य कार्य है. वह अपना ही कार्य है, इसलिए हमें अपने व्यक्तिगत खर्चों में कटौती कर संघ कार्य हेतु जितना अधिक दे सकें, उतना हमें देना चाहिए, यह भावना स्वयंसेवकों में निर्माण होनी चाहिए. अपने व्यक्तिगत जीवन में भी धन-सम्पत्ति की ओर देखने का योग्य दृष्टिकोण हमें स्वीकार करना चाहिए.

मुक्त चिंतन के चलते स्वयंसेवक अपने अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. डॉक्टर जी ने सबके विचारों को सुनने के बाद कहा, कृतज्ञता और निरपेक्षता की भावना से गुरु दक्षिणा समर्पण की पद्धति भारत में प्राचीनकाल में प्रचलित थी. संघ कार्य करते समय धन संबंधी हमें अपेक्षित भावना गुरु दक्षिणा की इस संकल्पना में प्रकट होती है. हमें भी वही पद्धति स्वीकार करनी चाहिए. डॉक्टर जी के इस कथन से सभी स्वयंसेवकों के विचार को एक नई दिशा मिली और विशुद्ध भावना से गुरुदक्षिणासमर्पण का विचार सभी स्वयंसेवकों के हृदय में बस गया.

दो दिन बाद ही व्यास पूर्णिमा थी. गुरु पूजन और गुरु दक्षिणा समर्पण हेतु परम्परा से चला आ रहा, यह पावन दिवस सर्वदृष्टि से उचित था. इसलिए डॉक्टर जी ने कहा कि इस दिन सुबह ही स्नान आदि विधि पूर्णकर हम सारे स्वयंसेवक एकत्रित आएंगे और श्री गुरु पूर्णिमा व श्री गुरु दक्षिणा का उत्सव मनाएंगे. डॉक्टर जी की यह सूचना सुनते ही घर लौटते समय स्वयंसेवकों के मन में विचार-चक्र घूमने लगा. परसों हम गुरु के नाते किसकी पूजा करेंगे? स्वयंसेवकों का गुरु कौन होगा? स्वाभाविकतया सबके मन में यह विचार आया कि डॉक्टर जी के सिवा हमारा गुरु कौन हो सकता है? हम परसों मनाए जाने वाले गुरु पूजन उत्सव में उन्हीं का पूजन करेंगे. कुछ स्वयंसेवकों के विचार में, राष्ट्रगुरु तो समर्थ रामदास स्वामी हैं. प्रार्थना के बाद नित्य हम उनकी जय जयकार करते हैं. अत: समर्थ रामदास जी के छायाचित्र की पूजा करना उचित रहेगा. उन्हीं दिनों अण्णा सोहनी नामक एक कार्यकर्ता शाखा में उत्ताम शारीरिक शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे, उनकी शिक्षा से हमारी शारीरिक क्षमता और विश्वास में वृद्धि होती है, अत: क्यों न उन्हें ही गुरु के रूप में पूजा जाए? अनेक प्रकार की विचार तरंगें स्वयंसेवकों के मन में उठने लगीं.

व्यास पूर्णिमा के दिन प्रात:काल सभी स्वयंसेवक निर्धारित समय पर डॉक्टर जी के घर एकत्रित हुए. ध्वजारोहण, ध्वज प्रणाम के बाद स्वयंसेवक अपने अपने स्थान पर बैठ गए. व्यक्तिगत गीत हुआ और उसके बाद डॉक्टर जी भाषण देने के लिए खड़े हुए. अपने भाषण में उन्होंने कहा कि संघ किसी भी जीवित व्यक्ति को गुरु न मानते हुए अपने परम पवित्र भगवा ध्वज को ही अपना गुरु मानता है. व्यक्ति चाहे जितना ही श्रेष्ठ क्यों न हो, वह सदा अविचल-अडिग उसी स्थिति में रहेगा इसकी कोई गारंटी नहीं. श्रेष्ठ व्यक्ति में भी कोई न कोई अपूर्णता या कमी रह सकती है. सिद्धांत ही नित्य अडिग बना रह सकता है. भगवा ध्वज ही संघ के सैद्धांतिक विचारों का प्रतीक है. इस ध्वज की ओर देखते ही अपने राष्ट्र का उज्ज्वल इतिहास, अपनी श्रेष्ठ संस्कृति और दिव्य दर्शन हमारी आंखों के सामने खड़ा हो जाता है. जिस ध्वज की ओर देखते ही अंत:करण में स्फूर्ति का संचार होने लगता है, वही भगवा ध्वज अपने संघ कार्य के सिद्धांतों का प्रतीक है. इसलिए वह हमारा गुरु है. आज हम उसी का पूजन करें और उसे ही अपनी गुरुदक्षिणा समर्पित करें.

कार्यक्रम बड़े उत्साह से सम्पन्न हुआ और इसके साथ ही भगवा ध्वज को अपना गुरु और आदर्श मानने की पद्धति शुरु हुई. इस प्रथम गुरु पूजा उत्सव में कुल 84 रु. श्रीगुरु दक्षिणा के रूप में एकत्रित हुए. श्रीगुरुदक्षिणा का उपयोग केवल संघ कार्य हेतु ही हो, अपने व्यक्तिगत कार्य के लिए उसमें से एक भी पैसा उपयोग में नहीं लाया जाए. इसकी चिंता स्वयं डॉक्टर जी किया करते. वही आदत स्वयंसेवकों में भी निर्माण हुई. इस प्रकार आत्मनिर्भर होकर संघ कार्य करने की पद्धति संघ में प्रचलित हुई.

(पुस्तक- संघ कार्यपद्धति का विकास)