Monday, June 26, 2023

लोकतंत्र में व्यक्ति या संगठन के लिए संविधान के प्रावधान का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए – दत्तात्रेय होसबाले जी

आपातकाल के दौरान (1975-1977) की परिस्थितियों, सरकार की दमनकारी नीति, संघ की भूमिका पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी से विश्व संवाद केंद्र भारत की विशेष बातचीत के प्रमुख अंश…..

नई दिल्ली. देश के इतिहास में कई लोगों ने उस समय आपातकालीन संघर्ष को एक दृष्टि से द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम कहा है। और आज भी कई बार लगता है, ये सही व्याख्या है। विदेशी शासन के खिलाफ एक लंबा संघर्ष हुआ, स्वतंत्रता आन्दोलन हुआ। लेकिन देश के अंदर के ही अपने लोगों ने संविधान के प्रावधान का दुरुपयोग करके, देश के लोगों की आवाज को दमन करने का और जयप्रकाश नारायण जैसे व्यक्ति को भी दमन करने का कार्य किया, और सामान्य लोगों का दमन हुआ, इसलिए एक दृष्टि से द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम कहना योग्य है। ये आपातकाल क्यों हुआ? देश में आपातकाल तब होता है, जब देश असुरक्षित है। कोई व्यक्ति या पार्टी असुरक्षित है, अस्थिर है, उसके लिए संविधान के प्रावधान का उपयोग या दुरुपयोग करना यह लोकतंत्र में कभी भी नहीं होना चाहिए।

आपातकाल में संविधान प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों को रद्द कर दिया था। यही कारण है कि किसी भी प्रकार भाषण, लेखन, अभिप्राय के अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य, संगठन स्वातंत्र्य आदि नहीं हो सकते थे।

लोकतंत्र के इतिहास में काले अध्याय आपातकाल-1975 पर विश्व संवाद केंद्र भारत से विशेष बातचीत के दौरान सरकार्यवाह जी ने कहा कि अभी 48 वर्ष पहले के घटनाक्रमों को याद करना थोड़ा कठिन होता है, लेकिन आपातकाल और उसके विरुद्ध का संघर्ष ऐसा है, उसकी एक-एक घटना याद रखने वाली बात है। मैं उस समय बंगलूरु विश्वविद्यालय में एमए का विद्यार्थी था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश स्तर के कार्यकर्ता के नाते मैं भी आंदोलन में सहभागी रहा। भ्रष्टाचार के विरोध में, बेरोजगारी समाप्त करने के लिए, शिक्षा पद्धति में परिवर्तन लाने के लिए एक संघर्ष का बिगुल बजा था तो मई के अंतिम सप्ताह तक देश के अंदर विद्यार्थी युवा संघर्ष समिति बनी थी और देश भर में जनता संघर्ष समिति और विद्यार्थी जन संघर्ष समिति, ऐसे दो आन्दोलन के मंच बने थे।

जून के महीने में तीन महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। इन तीनों का परिणाम आपातकाल लागू करने के रूप में हुआ। एक जून आते-आते जेपी के नेतृत्व में आंदोलन देशव्यापी हो गया था, वह अत्यंत प्रखरता के चरम पर पहुँच गया था। दूसरा गुजरात में हुए चुनाव में इंदिरा कांग्रेस की घोर विफलता हुई, वह हार गईं। जून 12 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने रायबरेली से इंदिरा गाँधी के लोकसभा चुनाव में जीत को निरस्त कर दिया। तीनों मोर्चे पर इंदिरा जी हार गयीं।

एक है न्यायायिक, दूसरा है राजनीतिक क्षेत्र में चुनाव में, तीसरा जनता के बीच। इस कारण उन्होंने इस एक्स्ट्रीम क्रम का उपयोग किया। 25 जून को रात्रि आपातकाल घोषित कर दिया। उन दिनों न मोबाइल, न टीवी, कुछ नहीं था। आज के जमाने के लोगों को उस समय की परिस्थिति को समझना आसान नहीं है। 50 साल पहले हिन्दुस्तान में टीवी नहीं था और कम्प्यूटर्स नहीं थे। ई-मेल और मोबाइल आज हैं उस समय नहीं था, तो न्यूज कैसे मालूम हुआ? बीबीसी और आकाशवाणी से घोषणा होते ही पता चला। हम लोगों को सुबह 06:00 बजे के न्यूज से समाचार मिला। संघ की शाखा में गांधी नगर, बंगलूर में मैं और बाकी मित्र शाखा में थे, हमें शाखा जाते-जाते समाचार मिल गया। पार्लियामेंट कमेटी के काम के लिए अटल जी, अडवाणी जी, मधु दंडवते जी और एसएन मिश्रा जी बंगलूर आकर रुके थे। शाखा समाप्त होते ही हम लोग वहां गए और अटल जी, अडवाणी जी स्नान करके नीचे जलपान के लिए आ रहे थे। तो हमने कहा इमरजेंसी लागू हो गई। शायद उनको तब तक जानकारी भी नहीं थी या जानकारी होगी भी। उन्होंने पूछा, तो हमने कहा रेडियो में सुना। अडवाणी जी ने कहा, यूएनआई, पीटीआई को फोन लगाओ, फोन पर ही स्टेटमेंट देना है, इसका खंडन करने का। अटल जी ने कहा क्या कर रहे हैं, वे बोले मैं स्टेटमेंट देता हूं। अपनी तरफ से वक्तव्य दे रहा हूं। अटल जी ने कहा कौन छापने वाला है? अटल जी को पता चल गया था कि इमरजेंसी घोषित होते ही प्रेस सेंसर भी साथ-साथ हो गया है तो इसलिए स्टेटमेंट अगले दिन भी कोई छापने वाला नहीं है। थोड़े समय के अंदर पुलिस आ गई और अटल जी, अडवाणी जी, एसएन मिश्रा जी तीनों को पुलिस ने गिरफ्तार करके हाईग्रान पुलिस स्टेशन पर लेकर गए। उनके ऊपर मीसा लग गया। हम लोग वापिस गए और अंडरग्राउंड हो गए। हम लोग मीसा में वांटेड हैं, यह जानकारी मिलने पर भूमिगत हो गए थे। मैं दिसंबर तक भूमिगत रहा।

कुछ लोगों को डीआईआर और कुछ लोग मीसा एक्ट, ऐसे दो कानूनों में गिरफ्तार किया गया। डिफेंस ऑफ इंडिया रूल में कोर्ट में जाने का और वहां आरग्यू कर और शायद छूट भी जाने का प्रावधान था। मीसा में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। आपको चार्ज बताने की जरूरत भी नहीं। क्या गुनाह है और कोर्ट में जाने का तो कोई अधिकार नहीं था। सब प्रकार के फंडामेंटल राइट्स सस्पेंडेड होने के कारण मीसा में रहने वाले व्यक्ति को अंदर उनका क्या हुआ, घर के लोगों को भी पता चलना चाहिए.. ऐसा भी कोई प्रावधान नहीं था।

तब न फोन कर सकते थे, संपर्क भी नहीं कर सकते थे। इसलिए जनता के साथ, कार्यकर्ता के साथ संपर्क रखना, इसके लिए संघ और संघ प्रेरित संगठनों का जाल, हमारी घर-घर में संपर्क की पद्धति बहुत काम में आयी। घरेलू संपर्क की पद्धति दशकों से संघ और संघ प्रेरित संगठनों में है, उसका लाभ, आंदोलन में भी हुआ। मेरे पास बहुत ऐसे उदाहरण हैं। जैसे रवीन्द्र वर्मा जी बंगलूर आए थे तो उनको कहां रखना और पुलिस को पता ना चले, ऐसे उनको रेलवे स्टेशन से लेकर आना और सुरक्षित वापिस भेजना। ये काम अत्यंत गूढ़ता से हम लोग कर सके, उसका कारण है संघ की कार्यपद्धति के अंदर घर का संपर्क।

दूसरी बात, क्या चल रहा है लोगों को ये पता नहीं चलता था, क्योंकि समाचार पत्र सेंसर के कारण केवल सरकार की अनुमति से छपने वाले समाचार छोड़कर बाकी कोई भी समाचार नहीं छापता था। कौन, कहां अरेस्ट हो गया, किसका क्या हुआ, कोई पता नहीं चलता था। तो इसलिए एक भूमिगत साहित्य छापने को पत्रकारिता का एक जाल, अपना नेटवर्क बनाने की बहुत सफल योजना बनी और उसका क्रियान्वयन हुआ। ये दूसरी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, अपने देश के इमरजेंसी के भूमिगत संघर्ष की।

हो. वे. शेषाद्री  ने दक्षिण भारत के चार राज्यों में साहित्य प्रकाशन का नेतृत्व किया। उनका केंद्र बंगलूरु था। जगह-जगह पर प्रेस ढूंढकर रात को प्रेस में काम करना और प्रेस में काम करना तो आवाज नहीं आनी चाहिए। बहुत सावधानी रखनी पड़ती थी। दो पन्ने केचार पन्ने के पत्र पत्रिकाएं छपवानाउसमें न्यूज़ आइटमदेश के अन्यान्य भागों में क्या चल रहा हैइसके बारे में जानकारी इकट्ठा करना। ये जानकारी इकठ्ठा कैसे करनाभूमिगत काम करने वाले अलग-अलग लोगों सेप्रवास करने वाले लोगों से लिखवाकर लाते थे। कुछ कार्यकर्ता इसके लिए ही प्रवास करते थे। वो एक दृष्टि से पत्रकार जैसे ही अंडरग्राऊंड कार्य करते थे। उदाहरण के लिए कर्नाटक के चार जगह पर या महाराष्ट्र में अलग-अलग नाम से अंडरग्राउंड पत्रिकाएं छपती थीं। मराठी मेंकन्नड़ मेंतेलुगू मेंहिंदी में.. उस-उस राज्य में नाम भी अलग-अलग थे। दो प्रकार से छपती थीएक प्रिंटिंग प्रेसदूसरा साइक्लोस्टाइल करना। रातों-रात काम करते थे। रात भर काम करके एक-एक हजार प्रति निकालना। उसको सुबह साढ़े तीन-चार बजे से पांच बजे के बीच जाना और सड़क परघर के गेट के पास डाल देना आदि..आदि।

तीसरा है जिन लोगों को अरेस्ट किया या पुलिस स्टेशन में, जेल में जिनके ऊपर अमानवीय दमन और हिंसा हुई या जेल में भी रहे। या जेल में रहे हिंसा भले ही नहीं हो, जेल में रहने के कारण कई लोगों के आजीविका पर असर हुआ और उनके घरों में, परिवारों में कमाई करने वाला नहीं है और वो जेल में हैं तो इस कारण जो परिस्थिति बच्चों के लिए, परिवार के लिए थी, उसको संभालने का और उन लोगों के योगक्षेम की व्यवस्था करने के लिए, ये बहुत बड़ा काम था। और चौथा सबसे महत्वपूर्ण संघर्ष करते हुए आपातकाल के विरुद्ध लोगों की आवाज खड़ा करने के लिए, सत्याग्रह करने के लिए जो योजना बनी उसको सफल बनाना। तो यह चार प्रमुख काम उन दिनों में बहुत ही अच्छी योजना से सफलता पूर्वक बना सके।

कई बार लगता है कि उस क्रूरता को भी याद करना क्या? संघ के तृतीय पूजनीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस जी ने आपातकाल के पश्चात एक बहुत महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया था। अपने सार्वजनिक भाषण में कहा था फॉरगिव एंड फॉरगेट। जो हो गया, हो गया। उसको भूल जाओ, उसको क्षमा करो। लेकिन देश के इतिहास में, जिस एक काले अध्याय के दौरान घोर दमन और अत्याचार हुआ वो इतिहास के पन्नों पर है। कई पुस्तकें इस विषय पर आई हैं। व्यक्तिगत तौर पर भी लोगों ने लिखा है और संगठनों ने भी साहित्य प्रकाशित किया है। इसलिए, नहीं भी बताएंगे तो भी वो है ही।

क्रूरता और अमानवीयता बहुत व्यापक प्रमाण में हुई। अपने देश में पुलिस-प्रशासन की व्यवस्था ऐसी बर्बरता दिखा सकती है, इसका एक अनुभव आपातकाल में हुआ। हाथ दोनों बांधकर ऊपर से खींचना और उस समय उनकी पीठ पर उनके पैर पर लाठी से मारना।

उस समय तीन प्रकार की क्रूरता हुई। एक जो अरेस्ट हुए उनके साथ लॉकअप में, पुलिस स्टेशन में क्रूरता हुई, उनको जेल भेजने से पहले। उस समय आंध्रप्रदेश (आज तेलंगाना) के एक कार्यकर्ता को कैंडल से शरीर पर लगभग सौ जगह जलाया गया, जबरन उनके मुंह से कुछ कहलवाने के लिए। किसी को नारियल के अंदर कीड़े रखकर नाभि के ऊपर बांध दिया गया। या पुलिस की भाषा में ऐरोप्लेन कहते हैं, गोली कहते हैं, चपाती कहते हैं, ये सब हिंसा के अलग-अलग प्रकार रहे। सीधा बिठाकर उसके ऊपर रोलिंग करना, इलेक्ट्रिक शॉक दो या पिन अंदर घुसा दो। इस प्रकार के भयानक अत्याचार किए।

लॉकअप में तीन दिन, चार दिन अमानवीय अत्याचार सहन कर जेल में आए लोगों का जेल में आने के बाद 10 दिन, 15 दिन तक उनकी मालिश करना, ये सब मैंने भी किया है। इन अमानवीय अत्याचारों से कुछ लोग जीवनभर विकलांग हो गए, कुछ लोगों को जीवनभर किसी न किसी प्रकार की व्याधि हो गई। ऐसा हमारी आंखों के सामने हुआ। जिनके साथ ऐसा हुआ, उनके मुंह से किसी भी प्रकार के कोई अपशब्द नहीं आए, इस आंदोलन से दूर नहीं गए। या उनके घर के लोगों ने संगठन को नहीं छोड़ा। कर्नाटक में पुलिस स्टेशन के अंदर राजू नाम के एक व्यक्ति की हत्या हो गई। ऐसे लॉकअप में कई प्रकार की हिंसा देश भर में बहुत जगह पर हुई।

ओमप्रकाश कोहली जी दिल्ली में थे, जो राज्य सभा सदस्य रहे, विद्यार्थी परिषद के अखिल भारतीय अध्यक्ष भी रहे, सब जानते हैं कि ओमप्रकाश कोहली जी चलने में थोड़ा- सा दिव्यांग थे। दिल्ली की तिहाड़ जेल में उनको पुलिस ने लात मारी थी। लॉकअप में उनके साथ अत्यंत अपमान का व्यवहार किया। वो कॉलेज के प्रोफेसर थे। खड़े होना मुश्किल था। ऐसे व्यक्ति के साथ ऐसा किया। ऐसे देश भर में हुआ है।

बंगलूर में गायित्री करके एक महिला ने आपातकाल के खिलाफ सत्याग्रह किया। सत्याग्रह करने के बाद उनको अरेस्ट किया। जेल में ले गए। वो गर्भवती थी, वो सत्याग्रह करके आई थीं….लॉकअप में लेकर जाने के बाद उन्हें प्रसव वेदना हुई तो हॉस्पिटल लेकर गए। हॉस्पिटल में उनको पलंग पर सुलाया था और उनकी डिलीवरी के समय उनके दोनों पैरों को जंजीर से बांधा हुआ था। उन बातों को आज याद करने से अपने मन में अनावश्यक यातना होती है. गर्भवती महिला कहीं भाग जाएगी, ऐसा तो नहीं है और डिलीवरी हो गई तो उनको बांध कर रखने की क्या जरूरत थी?

उत्तर भारत में व्यापक प्रमाण में नसबंदी हुआ, पकड़-पकड़ कर की। उस समय की सरकार को, प्रशासन को चलाने वाली चौकड़ी थी। उसमें जो भी लोग थे, उन्होंने नसबंदी के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए, देश के अंदर जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए, जिस प्रकार आपातकाल का दुरुपयोग कियावह घोर अमानवीय और मानवाधिकार के विरुद्ध के इतिहास के पन्नों पर हमेशा एक काला धब्बा है।

जेल में क्रिमिनल कैदी भी रहते हैं, उन लोगों को राजनीतिक कैदियों के खिलाफ उकसा कर झगड़ा करवा दिया, उनसे मारपीट करवाई। जेल के अंदर ऐसा जानबूझकर करवाने का प्रयत्न किया। झगड़े हो गए, बल्लारी जेल में लगभग 25 लोगों की हाथ की, पैर की हड्डी टूट गई। महीनों तक उनको अस्पताल में रखना पड़ा।

सामान्यतः जो टॉर्चर हुआ, अधिकतर टॉर्चर पुलिस लॉकअप में हुआ वो स्वयंसेवकों पर ही हुआ। इसके दो कारण हैं। एक भूमिगत काम में सक्रिय स्वयंसेवक अधिक थे, इसलिए वही पकड़े गए। दूसरा उनको लगता था कि इनसे बहुत जल्दी हम बुलवाएंगे। उदाहरण के लिए, अंडरग्राउंड लिटरेचर छपता था, पूछते थे कहां छपता है। तो स्वयंसेवक बोलता नहीं था। टॉर्चर करने के बाद भी स्वयंसेवक के मुंह से शब्द नहीं निकलते थे। इसलिए उनका अधिक टॉर्चर हुआ।

लोकतंत्र, प्रजातंत्र के अंतर्गत ही अपने को संघर्ष करना चाहिए। संविधानात्मक ढंग से ही करना चाहिए। बंदूक उठा कर क्रान्ति नहीं करनी है। शस्त्र उठाकर, संघर्ष करके आपातकाल का विरोध करना गलत है। ऐसा समिति का स्पष्ट अभिप्राय था। लोगों को हिंसा के मार्ग पर नहीं लाना, यह स्पष्ट निर्देशित था। सत्याग्रह यानि कैसेतो किसी भी सड़क के चौराहे पर या किसी जगह पर, बस स्टैंड पर, रेलवे स्टेशन पर, जितनी संख्या में हो सके उतनी संख्या में लोग आना। आपातकाल के विरोध में नारे लगाना, अपनी डिमांड के नारे लगाना। पुलिस आएगी पकड़ेगी, लेकर जाएंगे। सत्याग्रह करना, और यथा संभव साहित्य पर्चे लोगों को देना, क्योंकि कोई और रास्ता नहीं था। इसलिए सत्याग्रह के लिए जाते समय जेब में, थैली में पर्चे रखो, सबको दो।

इस आपातकाल को जनता ने स्वीकार नहीं किया है, यह लोकतंत्र के विरुद्ध है। लोकतंत्र का दमन हो गया है। इसलिए इसके विरुद्ध आवाज उठाना, समाज मरा नहीं है, ऐसा दिखाना, सत्याग्रह का यह बहुत बड़ा एक उद्देश्य था। जगह जगह पर लगभग 49 हजार से अधिक सत्याग्रही अरेस्ट हुए।

संघ ने सारे संघर्ष में, जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में और बाद में आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष में काम किया। इसलिए संघ का दमन करना, यह मुख्य बात होने के कारण अन्य 25 संगठन के साथ संघ को भी बैन कर दिया था। इसलिए संघ पर प्रतिबंध लगाना और संघ का दमन करना, यह सरकार के वरिष्ठों के, नेताओं के, प्रधानमंत्री का स्पष्ट उद्देश्य था। संघ का दमन करने के लिए स्वयंसेवकों की पुरानी-पुरानी सूची उनको मिली और कहीं किसी डायरी में मिल गयी या कार्यालय उन्होंने बंद करवाए। कार्यालय पर छापेमारी की, कार्यालय पर ताला लगाया, कार्यालय के अंदर जो सूची मिलीतो कार्यकर्ताओं की सूची, गुरु दक्षिणा की सूची तो ऐसी सूची पकड़-पकड़ कर उन घरों में गए। घर पर बैठे व्यक्ति को भी ले गए, उनको संघ की व्यवस्था पद्धति का लाभ मिला। संघ के कार्यकर्ता सरकारी या कॉलेज में, बैंक में नौकरी में हैं तो दबाव डालकर उनको वहां सस्पेंड किया, व्यापारियों पर दबाव बनाया।

बहुत सारे स्वयंसेवक नित्य की शाखा में नहीं थे। कई वर्ष पहले वो शाखा के नित्य के काम में थे। किसी न किसी व्यक्तिगत कारण से, घर की कुछ कठिनाई के कारण नित्य शाखा के काम में नहीं होंगे। हमारे लिए गर्व का विषय है कि बहुत बड़ी संख्या में ऐसे स्वयंसेवक आपातकाल में भागे नहीं, दूर नहीं गए, उल्टा सक्रिय हो गए। उन्होंने कहा देखो, हम स्वयंसेवक हैं। पुलिस को पता नहीं है क्योंकि हमारे नाम अभी सूची में नहीं है, इसलिए हमारे घर का उपयोग करिए। हमारे घर में भूमिगत कार्यकर्ता रुकें, भोजन करें, क्योंकि हमारे घर पुलिस के राडार में नहीं है। ये कहने की हिम्मत स्वयंसेवकों ने की, उन्होंने अपनी तरफ से हर प्रकार का सहयोग किया। दूसरे संगठन, दूसरी पार्टीके लिए भी स्वयंसेवकों ने किया। सर्वोदय के दो कार्यकर्ताओं के घर में कर्नाटक में जब परिस्थिति अच्छी नहीं थी, संघ के स्वयंसेवकों ने उनकी व्यवस्था की। संघर्ष के लिए जो निधि चाहिए, वो भी स्वयंसेवकों ने समाज से इकट्ठा की।

किसी भी देश में लोकतंत्र जहां है, वहां लोक की आवाज को दमन करने का, कुचलने का कोई भी प्रयत्न सफल नहीं हो सकता। और कुछ समय के लिए आप दमन कर सकते हैं। जैसे 20 महीने आपातकाल रहा, लेकिन दमन नहीं हो सकता। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों की आवाज हमेशा बुलंद रह सकती है, उसको बुलंद रहना चाहिए। आपातकाल के विरुद्ध के संघर्ष क्यों सफल हुआ? क्योंकि लोगों को जागृत करने और संगठनात्मक नेतृत्व ने उस समय लोगों को योग्य मार्गदर्शन दिया। उस आंदोलन में विशेष कर विद्यार्थियों, युवाओं के आंदोलन से देश भर में एक परिवर्तन के लिए आंदोलन चला। इसलिए देश के नौजवान विद्यार्थी और नौजवान लोग देश समाज के बारे में जागृत रहकर अपनी आवाज उठाना, सही दिशा क्या है इसके बारे में निर्णय करते हुए एक प्रबल जनशक्ति की आवाज बनना, यह हमेशा उनकी ट्रेनिंग रहती है तो समाज के लिए हमेशा एक रक्षाकवच बनता है, आशादीप बनता है।

जेल में सुबह से शाम तक हम कैम्प जैसे चलाते थे। डीआईआर में जिनके केस चलते, वे 15 दिन या एक महीने में कई बार जेल से छूट जाते थे, बेल मिल जाती थी। मीसा में, न कोई चार्जशीट, न ही कोई कोर्ट, ऐसे चलता था। इसलिए मीसा में रहने वाले लोगों की जीवन शैली अलग थी। मीसा में रहने वाले लोग आए तो बाहर जाएंगे, कब जाएंगे कोई पता नहीं। जेल में अंग्रेजों के जमाने के कानून थे। उन दिनों वो कानून ही चलता था। स्वयंसेवकों ने जेल के अंदर उन कानूनों के खिलाफ भी संघर्ष किया, कानून के खिलाफ ज्ञापन देना, उसके खिलाफ सत्याग्रह करना, अंदर अनशन करना, ये सब किया तो इस कारण प्रशासन को कुछ कानून बदलना पड़े।

इसी बीच, सॉलिसिटर जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट में आर्गुमेंट किया और उनके आर्गुमेंट को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया। उनका आर्गुमेंट था मीसा के तहत लोगों को देश की सुरक्षा के लिए रखा है, उनके ऊपर कोई चार्जशीट नहीं और कब तक रहना है, इसकी कोई गारंटी नहीं है। They may end their life in jail. दूसरा आर्गुमेंट किया यदि देश की सुरक्षा के लिए उनको जेल के अंदर ही शूट भी किया तो भी सरकार पर कोई अपराध नहीं है।

लोकसभा के सदस्य कामत ने कमेंट किया इट इज़ नॉट अमेंडिंग द कांस्टीट्यूशन, इट इज़ नॉट मेंडिंग द कॉंस्टीट्यूशन, इट इज़ एंडिंग द कॉंस्टीट्यूशन।

सरकार ने संविधान के साथ क्या किया, इट वाज़ ऑलमोस्ट एंडिंग द कॉंस्टीट्यूशन। उन्होंने अमेंडमेंट किया, संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म, दो शब्दों को जोड़ा। जो पहले नहीं थे। वो आज तक हैं। उस समय संविधान के साथ छेड़छाड़ करने के भरपूर प्रयत्न किए गए। लोकसभा के पांच वर्ष के कार्यकाल को छह वर्ष किया, एक वर्ष ज्यादा कर दिया था। उन सारी चीजों को जनता सरकार आने के बाद फिर से संशोधन करके ठीक किया गया।

मेरा हमेशा कहना है लोकतंत्र सुरक्षित है, अपने देश की संसदीय व्यवस्था, संविधान वगैरह के कारण। लेकिन उससे भी बढ़ कर जागृत समाज और उनको जागृत रखने के कार्य करने वाले समाज का गैर राजनीतिक नेतृत्व उनके जीवन की स्वच्छ, निःस्वार्थ और देश भक्ति की उनकी प्रखरता, यह यदि है तो समाज के लोग भी ऐसे लोगों के समर्थन में खड़े होते हैं। इसलिए हमेशा देश के लिए इस प्रकार का नेतृत्व समाज में हर क्षेत्र में रहना चाहिए, वह देश के लिए भरोसा है।

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Sunday, June 25, 2023

स्‍मृतियों के मोती – यथावत है आपातकाल का दर्द; आज की पीढ़ी भी समझे!

- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

सुबह का समय था, समूचे देश ने रेडियो पर तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज में संदेश सुना, ‘भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है. इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है.लेकिन लोग सुबह जब तक सोकर उठते और अपनी प्रधानमंत्री को रेडियो पर सुनते, इससे पहले आधी रात से ही देश भर से विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गईं थीं.  25 जून, 1975 की अंधेरी रात से जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीस जैसे दिग्‍गज नेताओं को ही नहीं, हर उस नेता को जेल में डाला जा रहा था, जिनसे जरा भी लगता कि यह कांग्रेस की केंद्रीय सत्‍ता और इंदिरा गांधी को चुनौती दे सकते हैं. इसके परिणाम स्‍वरूप एक समय ऐसा भी आया कि जेलों की काल कोठरियों में दो गज जमीन भी कम पड़ गई थी.

आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे. अभिव्यक्ति का कोई अधिकार शेष नहीं रह गया था, जिसने भी थोड़ी ऊंची आवाज की या जिस पर भी इस प्रकार का शक आया, उसे सीधा जेल में ही जाना था, न वकील, न दलील और न कोई सुनवाई. कह सकते हैं कि लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था. 25 जून की रात से ही प्रेस की सेंसरशिप लागू थी. इस दौर की अनेक कहानियां हैं, जिन्‍हें सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते है, बदन में से पसीना स्‍वत: बहने लगता है और आँखें न चाहते हुए भी लाल और गीली हो जाती हैं.

आपातकाल के दौर का यह अनुभव है मध्‍यप्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री सुन्‍दल लाल पटवा जी का. आज फिर भले ही देह रूप में हमारे सामने न हों, किंतु जब-जब भी आपातकाल का जिक्र आएगा, उनके विचारों से हम उन्‍हें अपने सामने पाएंगे.

वस्‍तुत: आपातकाल का कालखण्‍ड भारतीय राजनीति का एक ऐसा अध्‍याय है, जिसमें जब भी मध्‍य प्रदेश का कोई संदर्भ आएगा तब-तब पटवा जी याद आएंगे. आपातकालीन संघर्ष को लेकर जब मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा से बात की गई थी, तब वे अंतस में कहीं गहरे उतर जाते हैंथोड़ी देर मौन रहते हैं. फिर बहुत धीमी आवाज में अपनी स्‍मृतियों में गोते लगाते हुए आपातकालीन संघर्ष को बताना शुरू करते हैं. वे बताते हैं कि आपातकाल के पहले दिन ही रात्रि को मंदसौर में उन्हें पकड़ लिया गया था. मंदसौर जेल में चार दिन रखने के बाद उन्हें इंदौर भेज दिया गया. जेल के अंदर मुझे कई प्रकार के खट्टे-मीठे अनुभव हुए. बड़े-बड़े नेताओं की सही पहचान उन 19 महीनों में हो गई जो स्वयं को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते थे.

यह देखकर आश्चर्य होता था कि कई लोग भयभीत होकर राजनीति छोड़ने की बात करते थे. उन्हें यह विश्वास ही नहीं था कि जेल से बाहर जाने का अवसर कभी मिलेगा. ऐसे लोग मुझसे कहा करते थे कि श्रीमती इंदिरा गांधी के पास लिखकर आवेदन भिजवा देते हैं कि वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे. उन्हें छोड़ दिया जाए. उन्हें भय था कि जेल में पुलिस उन्हें मार डालेगी और उनकी हड्डियां ही बाहर निकलेंगी.

संघ के तरुण स्‍वयंसेवकों का उत्‍साह और बालपन हम जैसे सभी कार्यकताओं को त्याग और समर्पण की प्रेरणा देता

स्‍व. पटवा जी ने आपातकाल पर दिए अपने साक्षात्‍कार में लेखक को तत्‍कालीन समय में बताया कि  ‘ऐसे विपरीत कालखंड में संघ के तरुण स्वयंसेवकों का उत्साह देखते ही बनता था. वे बेफ्रिक होकर जेल में ही शाखा लगाते और कबड्डी, बैडमिंटन, बालीबॉल जैसे खेल खेलते थे. उनका बालपन हम जैसे सभी कार्यकताओं को त्याग और समर्पण की प्रेरणा देने वाला रहा. जब जेल में संघ प्रार्थना महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्तेका सामूहिक स्‍वर गूंजता तो सारे दुख-दर्द दूर हो जाते थे. यही लगता कि ये कंटक दिन जरूर दूर होंगे. हमारा ये जीवन तो मातृभूमि की सेवा के लिए है, हमने तो स्‍वयं से ही अपने लिए ये जीवन चुना है, इसलिए डटे रहना है. अन्‍याय के विरुद्ध अड़े रहना है. जब तक इंदिरा जी अपना ये देश पर थोपा हुआ आपातकाल वापिस नहीं ले लेती, हमें जेल में रहते हुए जागरण की अलख जगाते रहना है.

मुझे जेल जाने का कभी दुख नहीं रहा. क्योंकि अंदर से कहीं न कहीं पूर्वाभास हुआ करता था कि लोकतंत्र की हत्या कर थोपा गया यह आपातकाल तीन साल से ज्यादा नहीं रह सकेगा. मुझे तो यह लगता है कि वास्तव में यह समय इंदिरा गांधी के लिए ही आपातकाल रहा होगा. जब इस आपातकाल के बाद के समय को देखकर सोचते हैं तो ध्‍यान में आता है कि देश के भविष्य के लिए यह मानो स्वर्णकाल के रूप में सामने आया था. इस संदर्भ में पटवा जी यह मानते थे कि ऐसा हुआ भी. क्‍योंकि आपातकाल के समय सबसे ज्यादा कष्ट हम जैसे राजनीतिक और सामाजिक कार्यकताओं की पत्नियों ने झेले. मेरी पत्नी भारती के साहस की मैं आज भी दाद दूंगा. वह जब भी जेल में मिलने आतीं तो कहतीं कि आपसे मिलने के लिए पांव उछल कर चलते हैं और जब जाने की बारी आती है तो यही पैर सवा मन के हो जाते हैं. उस समय लोग मीसा बंदियों के घर आने से डरते थे. उन्हें भय था कि कहीं पुलिस उनसे संबंधों के आधार पर हमें भी पकड़कर जेल में न डाल दे. मीसा बंदियों के घर वालों को अनेक कष्ट दिये जाते थे. जिलाधीश मीसा बंदियों की पत्नियों को मिलने का समय नहीं देते थे, परिवारजनों को भी आसानी से समय नहीं मिल पाता था.

काशआज की पीढ़ी यह बात समझेस्‍वाधीनता कभी यूं ही नहीं मिल जाती

वर्तमान समय के हालातों के संदर्भ में स्‍व. पटवा जी, अपने दर्द को कुछ यूं बयां करके गए हैं, ‘काशआज की पीढ़ी यह बात समझे. वह पहले की अपेक्षा अधिक पढ़ी-लिखी है, लेकिन उतनी ही जल्दबाज भी. आपातकाल के अनुभव बताते हैं कि स्‍वाधीनता कभी यूं ही नहीं मिल जाती. उसके लिए धैर्यपूर्वक जनान्‍दोलन चलाते हुए संघर्ष और बलिदान करना ही पड़ता है. आज की युवा पीढ़ी जिस स्वतंत्रता का आनन्‍द उठा रही है, उसे जो यह स्‍वतंत्रता मिली है उसमें हजारों-लाखों लोगों का बलिदान निहित है. भविष्य में इसे सहेज कर रखना अब उनका ही उत्तरदायित्व है.

अंत में यही कि भले ही सुन्‍दरलाल पटवा जी अब हमारे बीच नहीं, किंतु उनकी ये बातें आज भी आपातकाल के संघर्ष की याद दिलाने के साथ उस युवा मन के सच को बता देती हैं, जो आधुनकिता में इस तरह डूबता जा रहा है कि उसके लिए सिर्फ वो, वो और वो ही प्रथम और अंतिम हो रहा है. काश, हम सभी ये समझ पाएं कि देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें….

Tuesday, June 20, 2023

भवानी देवी ने रचा इतिहास, एशिया फेंसिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता

नई दिल्ली. भारत की स्टार फेंसर सीए भवानी देवी ने सोमवार को एशियाई तलवारबाजी चैंपियनशिप (एशिया फेंसिंग चैंपियनशिप) में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया. फेंसिंग प्रतियोगिता में भारत का यह पहला पदक है. सेमीफाइनल में भवानी को उज्बेकिस्तान की जेनाब डेयिबेकोवा के खिलाफ कड़े मुकाबले में 14-15 से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में भारत के लिए पहला पदक सुनिश्चित किया.

    भवानी ने क्वार्टर फाइनल में गत विश्व चैंपियन जापान की मिसाकी एमुरा को 15-10 से हराकर उलटफेर किया था. मिसाकी के खिलाफ भवानी की पहली जीत थी. भवानी को राउंड ऑफ 64 में बाई मिली थी, अगले दौर में उन्होंने कजाखस्तान की डोस्पे करीना को हराया. 29 वर्षीय भारतीय खिलाड़ी ने प्री क्वार्टर फाइनल में भी उलटफेर करते हुए तीसरी वरीय ओजाकी सेरी को 15-11 से हराया. भारतीय तलवारबाजी संघ के महासचिव राजीव मेहता ने भवानी को उनकी एतिहासिक उपलब्धि पर बधाई दी.

    "यह भारतीय तलवारबाजी के लिए बेहद गौरवपूर्ण दिन है. भवानी ने वह किया है, जिसे इससे पहले कोई और हासिल नहीं कर पाया. वह प्रतिष्ठित एशियाई चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय तलवारबाज हैं. पूरे तलवारबाजी जगत की ओर से उन्हें बधाई देता हूं.

    ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज बनीं भवानी तोक्यो खेलों में राउंड ऑफ 32 से बाहर हो गईं थी.

Friday, June 16, 2023

प्रखर राष्ट्रभक्ति ही देश की समस्याओं का एकमात्र समाधान - अनिल जी

काशी। प्रखर राष्ट्रभक्ति ही देश की समस्याओं का एकमात्र समाधान है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विगत 98 वर्षों से संघ अपनी शाखा एवं कार्यक्रमों के माध्यमों से राष्ट्रभाव का जागरण कर रहा है। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उ०प्र० क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक श्रीमान अनिल जी ने व्यक्त किया। वे बाबतपुर स्थित एस. एस. पब्लिक स्कूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रांत द्वारा आयोजित संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष के प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।

     उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में सम्पूर्ण देशभर में इस प्रकार के 108 वर्ग पूरे हो रहे हैं। इन वर्गों की दिनचर्या भी एक विशेष प्रकार की होती है। प्रशिक्षार्थी स्वयंसेवक भीषण गर्मी में साढ़े चार घण्टे का शारीरिक, सभी सुख सुविधाओं को त्याग कर और अपने प्रशिक्षण का शुल्क देकर सहर्ष ही वर्ग पूरा करता है। आज की युवा पीढ़ी का सबसे बड़ा त्याग सचल दूरभाष (मोबाइल) से दूर रहना होता है। प्रारम्भ के दिनों से ही सभी के मोबाइल जमा हो जाते हैं। इस वर्ग में केवल शिक्षार्थी स्वयंसेवकों का ही प्रशिक्षण नहीं होता अपितु व्यवस्था में लगे सैकड़ों स्वयंसेवक कार्यकर्ताओं का भी प्रशिक्षण होता है। इस वर्ग के माध्यम से इस विद्यालय के आस-पास के लगभग 40 ग्रामों के समाज के सभी वर्गों के परिवारों से माताओं-बहनों के द्वारा बनायी गयी रोटियां आयी। इस वर्ग में रोटी एकत्रिकरण के माध्यम से उन परिवारों का भी भावनात्मक लगाव इस वर्ग के साथ जुड़ा। पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के संघ के सभी प्रशिक्षण वर्गों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों के परिवारों का आत्मीय भाव जागरण हुआ।

     उन्होंने आगे कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी के अधूरे सपने को साकार करने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है। स्वामी जी का बड़ा प्रसिद्ध वाक्य था "देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत यदि 100 नवयुवक मिल जाये तो इस देश की तस्वीर को बदल दूं।" स्वामी जी अल्पायु में ही हम सभी को छोड़कर चले गये। उनके अधूरे सपने को पूरा करने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है। इस राष्ट्र भाव के जागरण का परिणाम आज सम्पूर्ण देश में देखने को मिल रहा है। अगर हम पूर्वोत्तर के राज्य (7 सिस्टर) की बात करें तो आज के तीन दशक पहले नागालैण्ड का व्यक्ति जब दिल्ली जाता था तो अपने स्वजनों से बोलता था कि मैं इण्डिया जा रहा हूँ। आज यह तस्वीर बदली हुई है। कभी पूर्वोत्तर राज्य के बन्धु बान्धव बन्दूकों के साये में जीवन गुजारते थे। महिनों कर्फ्यू लगते थे, आन्दोलन करके चक्काजाम किया करते थे। आज उन्हीं सड़कों पर नवयुवक भारत माता की जय बोलता हुआ, हाथ में तिरंगा लेकर यात्रा निकालता है। चाहे शहर हो, गांव हो या वनवासी क्षेत्र हो जहां शासन तंत्र की सुविधाएं नहीं पहुंच पाती वहां संघ का स्वयंसेवक सेवा के कार्य कर रहा है, सर्वदूर इसके परिणाम परिलक्षित हो रहे हैं। विगत वर्षों में स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के कार्यक्रम गांव-गांव, कस्बे कस्बे में हुए, समाज ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर हर्षोल्लास के साथ कार्यक्रम में सहभाग लिया। उन्होंने परिसर में उपस्थित स्वयंसेवकों से आह्वान करते हुए कहा कि संघ समाज के अन्दर देशभक्ति, समाजभक्ति एवं स्व के भाव का जागरण करते हुए सामाजिक समस्याओं का निवारण समाज के द्वारा ही करना चाहता है। आज का समाज जो सरकारों के ऊपर आश्रित होता जा रहा है, वहां से संघ इस समाज को उठाकर उसी समाज के संगठित शक्ति के आधार पर कार्य करना चाहता है। संघ का मानना है कि सरकार के काम सरकार करे एवं समाज के कार्य समाज करे। समाज की क्षमता सरकार की क्षमता से भी कहीं अधिक है। इसका ताजा उदाहरण हम देखें तो पिछले दो वर्षों में कोरोना काल में समाज ने अपनी क्षमता का परिचय जिस ढंग से दिया है, इससे सिद्ध होता है कि समाज की क्षमता सरकार की क्षमताओं से कहीं अधिक है। संघ समाज से आह्वान करता है कि स्व की प्रेरणा से समाज की संगठित शक्ति के बल पर समाज की बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान करने के लिए आगे बढ़ें।

     कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अन्नपूर्णा माता मन्दिर काशी के महन्त शंकर पूरी ने वर्ग समापन के अवसर पर कहा कि ये जो 20 दिनों का प्रशिक्षण वर्ग चलता है, इसमें राष्ट्रीय विषयों, शैक्षिक विषयों एवं सामाजिक विषयों पर राष्ट्र सुरक्षा से सम्बन्धित वैश्विक परिस्थितियों में राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक कार्य करते हैं। समाज के सभी वर्गों को सशक्त बनाने के लिए संघ निरन्तर कार्य कर रहा है। आगे उन्होंने समाज का आह्वान करते हुए कहा कि वर्तमान समय में जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक कार्य कर रहे हैं, इससे जुड़कर समाज का सहयोग करें जिससे अपना राष्ट्र सर्वांगीण उन्नति कर सके और भारत की एक विशेष छवि (विश्व गुरु ) परिलक्षित हो।

दिखा अनुशासन का भव्य रूप :

     समारोह में अनुशासन का भव्य रूप दिखाई दिया। मुख्य शिक्षक प्रवेश जी के संपत की आज्ञा के पश्चात प्रशिक्षिण प्राप्त कर रहे सभी कार्यकर्ता पूर्ण गणवेष में संगठन द्वारा निर्धारित पंक्ति रचना के अनुसार निश्चित क्रम में खड़े हो गये। सह मुख्य शिक्षक रजत जी द्वारा दी जाने वाली सीटी के संकेत पर ही कार्यकर्ता एकलय, एक क्रम में अपनी गतिविधियों का प्रदर्शन कर रहे थे।

घोष एवं शारीरिक प्रशिक्षण का प्रदर्शन बना आकर्षण का केन्द्र :

     दल प्रमुख राममिलन जी (प्रधानाचार्य सरस्वती शि.म., मीरजापुर) के नेतृत्व में घोष दल द्वारा वाद्य यंत्रों पर बजाई जा रही रचनाएं किरण, भूप, सोनभद्र, श्रीराम सुनकर समारोह स्थल पर उपस्थित लोग मंत्रमुग्ध हो रहे थे। शारीरिक प्रशिक्षण प्राप्त कर कार्यकर्ताओं द्वारा किये जाने वाले प्रदर्शन से हर काई आकर्षित दिखा। कार्यकर्ताओं ने दण्ड, पदविन्यास, दण्ड युद्ध, यष्टि, नियुद्ध, सामूहिक समता, दण्ड समता, दण्ड व्यायाम योग, व्यायाम योग एवं आसन का प्रदर्शन कर अपने प्रतिभा से परिचित कराया।

     कार्यक्रम का प्रारम्भ संघ प्रार्थना एवं भगवा ध्वजप्रणाम के पश्चात किया गया। वर्ग का वृत्त निवेदन एवं अतिथि परिचय सच्चिदानन्द द्वारा कराया गया। सामूहित गीत ओमप्रकाश जी ने किया। अमृत वचन महेन्द्र एवं रोहित, एकल गीत आर्यन ने किया। उक्त अवसर पर अखिल भारतीय गौसेवा संयोजक अजित महापात्रा, संयुक्त क्षेत्र संयोजक प्रज्ञा प्रवाह रामाशीष जी, क्षेत्र कार्यवाह डॉ. वीरेन्द्र जायसवाल, क्षेत्र प्रचारक प्रमुख राजेन्द्र जी, मुख्य मार्ग प्रमुख राजेन्द्र सक्सेना, सह क्षेत्र सेवा प्रमुख युद्धवीर जी, मा. प्रान्त संघचालक डा.विश्वनाथ लाल निगम, मा. सह प्रान्त संघचालक अंगराज जी, प्रान्त प्रचारक रमेश जी, सह प्रान्त प्रचारक मुनीष जी, वर्ग पालक रामचन्द्र जी एवं बड़ी संख्या में मातृशक्ति समेत वरिष्ठ नागरिकों की उपस्थिति रही ।