Wednesday, July 26, 2023

मदनदास जी के दिए कार्यमंत्र के अनुसार कार्य आगे बढ़ाएंगे – डॉ. मोहन जी भागवत

अपने संपर्क में आए हुए हर व्यक्ति को विचारों और आंतरिक स्नेह से प्रेरित कर किसी न किसी काम में, सामाजिक कार्य में सक्रिय करने का बहुत बड़ा कार्य मदनदास जी ने किया. उनकी दी हुई सीख पर आचरण करते हुए काम बढ़ाना, यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी. इन शब्दों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने मदनदास जी देवी को मंगलवार को श्रद्धांजलि समर्पित की. उन्होंने कहा कि हम मदनदास जी के दिए हुए कार्यमंत्र के अनुसार कार्य आगे बढाएंगे.

ज्येष्ठ प्रचारक तथा संघ के पूर्व सह सरकार्यवाह मदनदास जी देवी का 24 जुलाई को प्रातः बेंगलुरु में निधन हो गय़ा था. उनका पार्थिव आज सुबह पुणे लाया गया. मोतीबाग स्थित कार्यालय में अंतिम दर्शन हेतु रखा गया था. उसके बाद वैकुंठ शमशान भूमि में मदनदास जी के भतीजे राधेश्याम देवी ने अंतिम संस्कार किए.

सरकार्यवाह दत्तात्रेय जी होसबाले, प्रांत संघचालक नानासाहेब जाधव, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, चंद्रकांत दादा पाटील, भाजपा के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, जिलाधिकारी डॉ. राजेश देशमुख, नगर निगम आयुक्त विक्रम कुमार, पुलिस आयुक्त रितेश कुमार, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुरेश गोसावी आदि उफस्थित रहे.

सरसंघचालक जी ने कहा कि, मदनदास जी देवी व्यक्ति के मन को छू जाते थे. जीवन को योग्य दिशा देने वाले वे अभिभावक थे. संगठन और मनुष्य को जोड़ने का काम करते समय काफी कुछ सहन करना पड़ता है. यह आसान नहीं है. ऐसे समय में आंतरिक ज्वलन सहन करते हुए भी उन्होंने किसी स्थितप्रज्ञ की तरह आयुष्य व्यतीत किया. जाते समय भी वे आनंददायी और आनंदी थे.

मदनदास जी देवी के जाने से मन में संमिश्र भावना है. जन्म-मृत्यु सृष्टि का नियम है. जो हजारों-लाखों लोगों को अपनेपन से बांधता है. ऐसे व्यक्ति के जाने का दुख सर्वव्यापी होता है. समाज जीवन के विविध क्षेत्रों के व्यापक जनसमुदाय को भी दुख हुआ है. उन्होंने केवल संगठन का काम नहीं किया, बल्कि मनुष्य जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है. व्यक्ति के मन को छूने की कला उन्हें अवगत थी. वे कार्यकर्ताओं को अपना मानते थे. उन्हें संभालते थे. मैं जब उनके संपर्क में आया, तब भी मैंने यह अनुभव किया. बाल आयु की शाखा के मित्रों से लेकर विभिन्न संगठनों के प्रमुखों तक के कार्यकर्ताओं से उनका निकट संपर्क था. वे सबकी चिंता करते थे. हर एक की उन्हें पूरी जानकारी होती थी.

उन्होंने कहा कि मदनदास जी का स्नेहस्पर्श हुआ यह मैं अपनी कृतार्थता मानता हूं. मदनदास जी संगठन और विचारों के पक्के थे. किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन करते समय वे यह ध्यान रखते थे कि व्यक्ति का अवमूल्यन नहीं होना चाहिए. यशवंतराव केलकर से आदर्श लेकर उन्होंने काम बढ़ाया. मनुष्य को मोह बिगाड़ता है. इस सबके पार जाकर ध्येय के प्रति समर्पित कार्यकर्ता उन्होंने तैयार किए. उनसे काफी कुछ सीखने जैसा था. उनका स्थान कोई नहीं ले सकता. लेकिन मेरे जाने के बाद यह काम बिना रूके आगे बढ़ता जाए, यह सीख उन्होंने दी है. अस्वस्थता के चलते पिछले कुछ वर्षों से सक्रिय काम में न होते हुए भी उनमें अकेलापन नहीं आया था. वे अत्यंत स्थितप्रज्ञ थे. अंतिम क्षण भी वे हंसमुख रहे. ध्येय के प्रति क्रियाशील समर्पण से उपजी यह प्रसन्नता थी. डॉ. भागवत ने कहा कि कार्य का जो मंत्र उन्होंने हमें सिखाया है, उसी के अनुसार आगे बढ़ते जाना, यही उनके प्रति श्रद्धांजलि होगी.

संगठन के दर्शन को विकसित किया मिलिंद मराठे

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व अध्यक्ष मिलिंद मराठे ने कहा कि मदनदासजी ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का वैचारिक आधार बिछाने और कार्यकर्ताओं में संगठन के दर्शन को विकसित करने का बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया. उन्होंने संगठन को वैचारिक आधार दिया. कार्यकर्ताओं से उनका रिश्ता पारिवारिक था. वे संगठन में कार्यकर्ता के काम की ही नहीं, बल्कि उसके पूरे जीवन की परवाह करते थे. उनकी तीक्ष्ण बुद्धि, प्रेमपूर्ण स्वभाव और आत्मीयता इन गुणों के चलते देश में हजारों कार्यकर्ता तैयार हुए.

मदनदास जी सबके सहयोगी जे. पी. नड्डा

मदनदासजी ने देश के हजारों कार्यकर्ताओं को कर्म की दृष्टि दी, उन्हें जीवन की दिशा दी, उन्हें संस्कार दिये और जीवन को उद्देश्य दिया. सभी युवाओं को हमेशा यह महसूस होता था कि वे उनके वरिष्ठ सहकर्मी हैं. वे हमेशा ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए तत्पर रहते थे जो उनका मार्गदर्शन चाहता था. हमने उनसे सीखा है कि संगठन के सामने कई कठिनाइयां आने पर भी संगठन के विचार को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है. उन्होंने संगठन विज्ञान का गहन अध्ययन किया था. वह कार्यकर्ताओं को यात्रा कैसे करनी है, बैठकें कैसे करनी है, बातचीत कैसे करनी है, ऐसी कई बातें सिखाते थे. उनके बताए रास्ते पर चलते रहना और उस रास्ते को मजबूत करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

मोतीबाग में अंतिम दर्शन संघ कार्यालय में सरसंघचालक व सरकार्यवाह द्वारा आदरांजली

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सह सरकार्यवाह मदनदास जी देवी के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन हेतु मंगलवार को साधारण कार्यकर्ताओं से लेकर उच्चपदस्थ मंत्रियों तक सभी स्तरों के सैकड़ों नागरिक उपस्थित रहे. अंतिम संस्कार के लिए वैकुंठ शमशान भूमि में ले जाने से पूर्व उनका पार्थिव शरीर मोतीबाग संघ कार्यालय में रखा गया था. अनेक दशकों से उनके घनिष्ठ सहकारी रहे लोगों से लेकर, जिन्हें उन्होंने दीर्घ समय तक मार्गदर्शन किया ऐसे कार्यकर्ता, तथा रा. स्व. संघ और संबंधित संगठनों के वरिष्ठ पदाधिकारी भी अंतिम दर्शन लेने आए. इस अवसर पर मदनदास जी के भाई खुशालदास देवी, भगिनी और परिवार के अन्य सदस्य उपस्थित थे. मदनदास जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में सरसंघचालक मोहन जी भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय जी होसबाले, केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सुरेशजी सोनी जी, अनिरुद्ध देशपांडे जी, पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत कार्यवाह डॉ. प्रवीण दबडघाव, पूर्व प्रांत कार्यवाह विनायकराव थोरात, अभाविप के अखिल भारतीय संगठन मंत्री आशीष चौहान, सहकार भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री संजय पाचपोर, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे, वरिष्ठ कार्यकर्ता गीताताई गुंडे, गिरीश प्रभुणे आदि शामिल थे.

पुणे, मुंबई, दिल्ली में श्रद्धांजलि सभाएं

मदनदास जी देवी को श्रद्धांजलि समर्पित करने हेतु 31 जुलाई को दिल्ली में, 7 अगस्त को पुणे में और 8 अगस्त को मुंबई में श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की जाएंगी.

Saturday, July 22, 2023

समाज में भक्ति और शक्ति दोनों की आपूर्ति करने का काम सब मंदिर करें – डॉ. मोहन भागवत जी

मंदिर समाज की चिंता करने वाला हो, मंदिर में लोगों के दुःख दूर करने की व्यवस्था हो

काशी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि मंदिर हमारी परंपरा का अभिन्न अंग हैं. पूरे समाज को एक लक्ष्य लेकर चलाने के लिए मठ-मंदिर चाहिए. कभी हम गिरे, कभी दूसरों ने धक्का मारालेकिन हमारे मूल्य नहीं गिरे. हमारे जीवन का लक्ष्य एक ही हैहमारा कर्म और धर्म, यह लोक भी ठीक करेगा और परलोक भी.

उन्होंने कहा कि मंदिर सत्यम-शिवम-सुंदरम की प्रेरणा देते हैं. मंदिर की कारीगरी हमारी पद्धति को दिखाते हैं. अपने यहां कुछ मंदिर सरकार और कुछ समाज के हाथ में हैं. काशी विश्वनाथ का स्वरूप बदला, ये भक्ति की शक्ति है. परिवर्तन करने वाले लोग भक्त हैं और इसके लिए भाव चाहिए. मंदिर कैसे चलाए जाएं, इस पर हमें चिंता करनी चाहिए. मंदिर को चलाने वाले भक्त होने चाहिए.इसलिए मंदिरों के द्वारा समाज में भक्ति और शक्ति दोनों की आपूर्ति करने का काम सब मंदिर करें, यह समय की आश्यकता है.

मंदिर पवित्रता के आधार हैं. स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए. गुरुद्वारा जाना है तो पानी में होकर जाना होता है. लेकिन, ऐसा सभी मंदिरों में नहीं है. ऐसी ही स्वच्छता का ध्यान रखना है. ये सब मंदिरों में होना चाहिए.

सरसंघचालक जी वाराणसी में आयोजित International Temples Convention and Expo 2023 (22-24 जुलाई, 2023) के उद्घाटन सत्र में संबोधित कर रहे थे. रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में महासम्मेलन का शुभारंभ हुआ.

मोहन भागवत जी ने कहा कि, “समाज में धर्म चक्र परिवर्तन के आधार पर सृष्टि चलती है. शरीर, मन और बुद्धि को पवित्र करके ही आराधना होती है. मंदिर हमारी प्रगति का सामाजिक उपकरण हैं. मंदिर में आराधना के समय आराध्य का पूर्ण स्वरूप होना चाहिए. शिव के मंदिर में भस्म और विष्णु के मंदिर में चंदन मिलता है. यह उनकी ओर से समाज को प्रेरणा है.” “मंदिर केवल पूजा नहीं मोक्ष और चित्त सिद्धि का स्थल है. सत्य को प्राप्त करनाअपना आनंद सबका आनंद हो, इसके लिए धर्म ही समाज को तैयार करता है.

मंदिर में शिक्षा मिले, संस्कार मिले, सेवा भाव हो और प्रेरणा मिले. मंदिर में लोगों के दुःख दूर करने की व्यवस्था हो. सभी समाज की चिंता करने वाला मंदिर होना चाहिए. देश के सभी मंदिर का एकत्रीकरण समाज को जोड़ेगा, ऊपर उठाएगा, राष्ट्र को समृद्ध बनाएगा. मंदिर भक्तों के आधार पर चलते हैं. पहले मंदिर में गुरुकुल चलते थे. कथा प्रवचन और पुराण से नई पीढ़ी शिक्षित होती थी. संस्कार होता है कि मनुष्य को जहां धन, वैभव आदि मिलता है, वह वहां आता है.

उन्होंने कहा कि समाज प्रकृति और परंपरागत राजा पर निर्भर नहीं है. राजा का काम संचालन है. राजा अपना काम ठीक से करें, यह समाज को देखना पड़ता है. प्रजातंत्र में यह पद्धति है कि हम जिस प्रतिनिधि को चुनते हैं, वह देश चलाते हैं. हम उनको चुनकर सो नहीं जाते हैं. हम देखते रहते हैं कि वह क्या करते हैं, क्या नहीं करते. अच्छा करते हैं तो उसका फल मिलता है और बुरा करते हैं तो उसका फल चुनाव में मिलता है।

उन्होंने कहा कि, “हमें गली के छोटे-छोटे मंदिरों की भी सूची बनानी चाहिए. वहां रोज पूजा हो, सफाई रखी जाए. मिलकर सभी आयोजन करें. संगठित बल साधनों से संपूर्ण करें. मंदिर अपना-उनका छोड़कर एक साथ आगे आएं. जिसको धर्म का पालन करना है वो धर्म के लिए सजग रहेगा. निष्ठा और श्रद्धा को जागृत करना है. भारत के छोटे से छोटे मंदिर को समृद्ध व सशक्त बनाना है.

मंदिर को नई पीढ़ी को संभालना है तो उन्हें प्रशिक्षण देना होगा. अपने साधन और संसाधन को एक करके अपनी कला और कारीगरी को सशक्त करें. समाज के कारीगर को प्रोत्साहन मिले तो वह अपने को मजबूत करेगा.




Sunday, July 16, 2023

परस्पर सौहार्द एवं शांति स्थापित करने के प्रयासों को गति दें

 अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक 2023

कोयम्बतूर के निकट ऊटी में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठकमें संघ की शाखाओं को उनके सामाजिक दायित्वों के अनुरूप और अधिक सक्रिय करने की चर्चा हुई. संघ की यह प्रतिवर्ष होने वाली बैठक इस वर्ष दिनांक 13, 14 एवं 15 जुलाई 2023 को कोयम्बतूर के निकट ऊटी (ज़िला नीलगिरी), तमिलनाडु में आयोजित हुई थी.

बैठक में मणिपुर की वर्तमान स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई. मणिपुर में संघ के स्वयंसेवक समाज के प्रबुद्ध लोगों के साथ मिलकर शांति तथा परस्पर विश्वास का वातावरण बनाने तथा पीड़ित बंधुओं की आवश्यक सहायता करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. बैठक में संघ स्वयंसेवकों द्वारा पीड़ित लोगों के लिए चल रहे सहायता कार्यों को और अधिक व्यापक करने पर विचार हुआ. समाज के सभी वर्गों से अनुरोध किया गया कि परस्पर सौहार्द एवं शांति स्थापित करने के प्रयासों को गति दें. इसके साथ ही स्थायी शांति एवं पुनर्वास हेतु सरकार से हरसंभव कार्रवाई करने का आवाहन भी किया गया.

बैठक में हाल ही में हिमाचल के मंडी, कुल्लू आदि ज़िलों, उत्तराखंड एवं दिल्ली में आई बाढ़ से प्रभावित लोगों हेतु संघ द्वारा चलाए जा रहे सेवा कार्य की समीक्षा की गई, तुरंत करणीय उपायों पर विचार किया गया. पिछले दिनों आई अन्य विपदाओं में किये गए कार्यों से विभिन्न प्रांतों द्वारा सभी को अवगत कराया गया.

संघ की शाखाओं द्वारा सामाजिक दायित्वों के अनुरूप, उनके आसपास के क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुसार कई सारे सामाजिक एवं सेवा कार्य समय-समय पर किये जाते हैं. बैठक में ऐसे कार्यों के विवरणों के साथ अनुभवों का आदान-प्रदान भी हुआ तथा संघ की प्रत्येक शाखा को इस दिशा में अधिक सक्रिय करने पर योजना बनी है.

इस वर्ष 2023 में संघ के प्रथम, द्वितीय व तृतीय वर्ष मिलाकर कुल 105 संघ शिक्षा वर्ग संपन्न हुए, जिसमें देश भर से कुल 21566 शिक्षार्थी सहभागी रहे. इनमें चालीस वर्ष की आयु से कम 16908 तथा चालीस से पैंसठ आयु के 4658 शिक्षार्थियों ने भाग लिया.

बैठक में प्राप्त आँकड़ों के अनुसार देश भर में 39451 स्थानों पर संघ की कुल 63724 दैनिक शाखाएं तथा अन्य स्थानों पर 23299 साप्ताहिक मिलन एवं 9548 मासिक मंडली चल रही है. बैठक में संघ के विविध गतिविधियों के साथ आगामी शताब्दी वर्ष के कार्य विस्तार एवं शताब्दी विस्तारक योजना की भी समीक्षा की गई.

बैठक में मुख्यतः संगठनात्मक विषयों पर चर्चा हुई. इस बैठक में प्रांत प्रचारकों के साथ सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी तथा सभी सह सरकार्यवाह एवं अन्य सभी पदाधिकारी उपस्थित रहे. साथ ही संघ प्रेरित विविध संगठन के अखिल भारतीय संगठन मंत्रियों की सहभागिता रही.

सुनील आंबेकर

अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

Friday, July 14, 2023

इतिहास स्मृति – रणथम्भोर का जौहर; रानी रंगादेवी के नेतृत्व में स्त्रियों और बच्चों ने ली जल व अग्नि समाधि

रमेश शर्मा

भारत पर मध्यकाल के आक्रमण साधारण नहीं थे. हमलावरों का उद्देश्य धन संपत्ति के साथ स्त्री और बच्चों का हरण भी रहा. जिन्हें वे भारी अत्याचार के साथ गुलामों के बाजार में बेचते थे. इससे बचने के लिये भारत की हजारों वीरांगनाओं ने अपने बच्चों के साथ जल और अग्नि में कूदकर अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा की. ऐसा ही एक जौहर रणथम्भोर में 9 जुलाई, 1301 से आरंभ हुआ और 11 जुलाई तक चला. इस जौहर में राणा हमीरदेव की रानी रंगादेवी ने अपनी पुत्री पद्मा के साथ जौहर किया था. उनके साथ बारह हजार क्षत्राणियों ने जल और अग्नि में कूदकर अपने प्राणों का बलिदान दे दिया.

रानी रंगादेवी चित्तौड़ की राजकुमारी थीं और रणथम्भोर के इतिहास प्रसिद्ध राजा हमीरदेव को ब्याही थीं. रणथम्भोर का यह राजपरिवार पृथ्वीराज चौहान का वंशज माना जाता है. मोहम्मद गौरी के हमले से दिल्ली के पतन के बाद उनके एक पुत्र ने रणथम्भोर में राज स्थापित कर लिया था. इसी वंश में आगे चलकर 7 जुलाई, 1272 को हमीरदेव चौहान का जन्म हुआ था. उनके पिता राजा जेत्रसिंह चौहान ने भी दिल्ली सल्तनत के अनेक आक्रमण झेले थे. लेकिन रणथम्भोर किले की रचना ऐसी थी कि हमलावर सफल न हो पाए. लगातार हमलों से राजपूताने की महिलाएं भी आत्मरक्षा के लिये शस्त्र संचालन सीखती थीं. हमीरदेव की माता हीरादेवी भी युद्ध कला में प्रवीण थीं. परिवार की पृष्ठभूमि ही कुछ ऐसी थी कि हमीरदेव ने कभी स्वाभिमान से समझौता नहीं किया. उन्होंने अपने जीवन में कुल 17 युद्ध लड़े और 16 युद्ध जीते. जिस अंतिम युद्ध में उनकी पराजय हुई, उसी में उनका बलिदान हुआ. उन्होंने 16 दिसंबर, 1282 को रणथम्भोर की सत्ता संभाली थी, परंतु उनका पूरा कार्यकाल युद्ध में बीता. दिल्ली के शासक जलालुद्दीन ने 1290 से 1296 के बीच रणथम्भोर पर तीन बड़े हमले किये, पर सफलता नहीं मिली. अलाउद्दीन उसका भतीजा था, जो 1296 में चाचा की हत्या करके गद्दी पर बैठा. गद्दी संभालते ही अलाउद्दीन ने राजस्थान और गुजरात पर अनेक धावे बोले, परंतु रणथम्भोर अजेय किला था. वह अपने चाचा के साथ रणथम्भोर में पराजय का स्वाद चख चुका था, इसलिए उसने यह किला छोड़ रखा था. तभी 1299 में एक घटना घटी. अलाउद्दीन की सेना गुजरात से लौट रही थी. उसके दो मंगोल सरदार मोहम्मद खान और कुबलू खान रास्ते में रुक गए और रणथम्भोर में राजा हमीरदेव के पास पहुँचे.

दोनों ने अलाउद्दीन के विरुद्ध शरण माँगी. हमीरदेव ने विश्वास करके दोनों को न केवल शरण दी, अपितु जगाना की जागीर भी दे दी. इस घटना के लगभग दो वर्ष बाद अलाउद्दीन ने रणथम्भोर पर धावा बोला. यह कहा जाता है कि अलाउद्दीन इन दोनों को शरण देने से नाराज था, इसलिए धावा बोला, परंतु कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह अलाउद्दीन खिलजी की रणनीति थी. इन दोनों ने न केवल किले के कई भेद दिये, अपितु हमीरदेव की सेना में भेद पैदा कर दिए. इससे हमीरदेव के दो अति विश्वस्त सेनापति रणमत और रतिपाल अलाउद्दीन से मिल गए.

इतना करने के बाद 1301 में अलाउद्दीन ने रणथम्भोर पर धावा बोला. तब हमीरदेव एक धार्मिक आयोजन में व्यस्त थे और उन्होंने अपने इन्हीं दोनों सेनापतियों को युद्ध में भेजा. लेकिन दोनों के मन में विश्वासघात आ गया था. इनके अलाउद्दीन से मिल जाने से रणथम्भोर की सेना कमजोर हुई. तब किले के दरवाजे बंद कर लिये गए. लेकिन किले के भीतर गद्दार थे. रसद सामग्री में विष मिला दिया गया. किले के भीतर भोजन की विकराल समस्या उत्पन्न हो गई. इस विष मिलाने के संदर्भ में अलग-अलग इतिहासकारों के अलग अलग मत हैं. कुछ का मानना है कि मोहम्मद खान और कुबलू खान की कारस्तानी थी, जबकि कुछ रणमत और रतिपाल का विश्वासघात मानते हैं. विवश होकर हमीरदेव ने केसरिया बाना पहन कर साका करने का निर्णय लिया और किले के भीतर सभी महिलाओं ने रानी रंगादेवी के नेतृत्व में जौहर करने का. यह जौहर 9 जुलाई से आरंभ हुआ जो तीन दिन चला. यह जौहर दोनों प्रकार का हुआ अग्नि जौहर भी और जल जौहर भी. तीसरे दिन 11 जुलाई, 1301 को रानी रंगादेवी ने अपनी बेटी पद्मा के साथ जल समाधि ली. राजा हमीरदेव 11 जुलाई को केसरिया बाना पहनकर निकले और बलिदान हुए. इस जौहर में कुल बारह हजार वीरांगनाओं ने अपने स्वत्व की रक्षा के लिये प्राण न्यौछावर कर दिये. यह राजस्थान का पहला बड़ा जौहर माना जाता है.

इतिहास के विवरण के अनुसार रणमत और रतिपाल अलाउद्दीन खिलजी के हाथों मारे गए, जबकि मोहम्मद खान और कुबलू खान का विवरण नहीं मिलता. इसी से यह अनुमान लगाया जाता है कि इन दोनों सरदारों को हमीरदेव के पास भेजने की रणनीति अलाउद्दीन की ही रही होगी ताकि किले के गुप्त भेद पता लग सकें और भीतर से विश्वासघाती पैदा किये जा सकें. चूँकि युद्ध के पहले का घटनाक्रम साधारण नहीं है. अलाउद्दीन की धमकियों के बीच युद्ध की तैयारी करने की बजाय एक विशाल पूजन यज्ञ की तैयारी करना आश्चर्यजनक है. किसने युद्ध के घिरते बादलों से ध्यान हटाकर यज्ञ में लगाया? अब सत्य जो हो पर रंगादेवी के जौहर का वर्णन सभी इतिहासकारों के लेखन में है, जो तीन दिन चला.

इतिहास के जिन ग्रंथों में इस जौहर का विवरण है, उनमें हम्मीर ऑफ रणथम्भोरलेखक हरविलास सारस्वत, जोधराकृत हम्मीररासो संपादक श्यामसुंदर दास, जिला गजेटियर सवाई माधोपुर तथा सवाईमाधोपुर दिग्दर्शन संपादक गजानंद डेरोलिया प्रमुख हैं. इधर हम्मीर रासो में लिखा है कि जौहर के समय रणथम्भोर में रानियों ने शीश फूल, दामिनी, आड़, तांटक, हार, बाजूबंद, जोसन पौंची, पायजेब आदि आभूषण धारण किए थे. हम्मीर विषयक काव्य ग्रंथों में अलाउद्दीन द्वारा हमीर की पुत्री देवलदेह, नर्तकियों तथा सेविकाओं की मांग करने पर देवलदेह के उत्सर्ग की गाथा मिलती है, किन्तु इसका ऐतिहासिक संदर्भ नहीं मिलता. इतिहासकार ताऊ शोखावटी ने लिखा है कि हमीरदेव की पत्नी रंगादेवी ने अपनी सेविकाओं और अन्य रानियों के साथ जौहर किया था.

Thursday, July 13, 2023

जनसंख्यकीय असंतुलन और भारतीयता का भविष्य – 1

- जयराम शुक्ल

स्वतंत्रता प्राप्ति के पाँच वर्ष पश्चात ही एकात्ममानव दर्शन के प्रणेता और अन्त्योदय के विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने चेताया था कि निकट भविष्य में भारत में रहने वाले मुसलमान खुलकर पाकिस्तान के प्रति अपने भाव व्यक्त करने लगेंगे, ऐसी स्थिति किसी भी सरकार के लिए असहज होगी.

इन दिनों समान नागरिक संहिता कानून को लेकर विमर्श चल रहा है. इसे लेकर मुस्लिम व मुस्लिम परस्त बौद्धिकों को लेकर लगभग वैसे ही प्रतिक्रियाएं आ रही हैं जैसे कि कश्मीर से धारा 370 हटाने के पूर्व आईं थीं. अधिसंख्य मुसलमानों के मन में भारत को लेकर क्या धारणा है, इसे जरा दो वर्ष  पुरानी परिघटना के बरक्स देखें.

24 अक्तूबर, 2021 को टी-ट्वंटी क्रिकेट मैच में भारत पर पाकिस्तान की जीत के बाद जम्मू-कश्मीर, उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों से पाकपरस्तों की जो प्रतिक्रियाएं उभर कर आईं और उस पर पाकिस्तान के मंत्री शेख रसीद ने भारत पर इस्लाम की विजय का वक्तव्य जारी किया था. उससे पं. उपाध्याय जी की चेतावनी और भी गंभीर हो जाती है.

दो वर्ष पूर्व विजयादशमी प्रबोधन पर सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने अपने बौद्धिक में जनसंख्या के बढ़ते असंतुलन को लेकर जो चिंता व्यक्त की थी, उसका मूल सिरा भविष्य के इसी खतरे के साथ जुड़ा हुआ है. देश के एक वर्ग की स्थिति रेगिस्तान के शतुरमुर्ग की भाँति है जो आँधी के समय रेत में सिर छुपाकर स्वयं को सुरक्षित मान लेता है.

जिस बात का खतरा है

1952 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अखंड भारत क्यों…? के शीर्षक से लिखे लेख में कहा था – “कल तक जो काम मुस्लिम लीग एक संस्था के रूप में करती थी, आज वही कार्य पाकिस्तान एक स्टेट के रूप में कर रहा है. निश्चित ही समस्या का परिवर्तित स्वरूप अधिक खतरनाक है. पाकिस्तान के निर्माण में सहायक भारतवासी मुसलमानों की साम्प्रदायिक मनोवृत्ति को भी पाकिस्तान से बराबर बल मिलता रहता है तथा भारत के राष्ट्रीय क्षेत्र में साढ़े तीन करोड़ (आज की स्थिति में साढ़े 17 करोड़) मुसलमानों की गतिविधि किसी भी सरकार के लिए शंका का कारण बनी रहेगी.

पं. उपाध्याय ने भारत से काटकर पाकिस्तान के निर्माण के बाद भविष्य की आसन्न चुनौतियों का गहन शोधात्मक आंकलन किया था..जो अखंड भारत क्यों.?” नाम की पुस्तिका के रूप में छपा था. 68 साल पहले कही गईं बातों का असली रूप अब ऐसे मौकों पर प्रायः उभरकर दिखने लगता है, खासतौर पर जब पाकिस्तान और इस्लामिक चरमपंथ की बात होती है. इसके अलावा भी चाहे बात कश्मीर के आतंकवादियों की हो, फलस्तीन के हमास, अफगानिस्तान के तालिबान या अलकायदा की या फिर क्रिकेट ही क्यों न, इनके चेहरों से पलस्तर उधड़कर नग्न रूप सामने आ जाता है.

24 अक्तूबर को दुबई में खेले गए टी-20 क्रिकेट मैच में भारत पर पाकिस्तान की विजय के बाद देशभर में जहां-तहाँ मुस्लिम युवाओं ने पटाखे फोड़कर खुशियां व्यक्त कीं. कश्मीर के एक महाविद्यालय के छात्रों ने खुलकर जश्न मनाया, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए.

हो सकता है कि देश में रह रहे 17 करोड़ मुसलमानों में से यह संख्या अल्प है. लेकिन इस संख्या के साथ मूक सहमति का आँकलन करना लगभग वैसे ही है, जैसे भूगर्भ में सक्रिय ज्वालामुखी का स्पष्ट अंदेशा लगाना. ये छात्र और युवा उसी घर-समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनसे देश ऐसे मौकों पर राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की अपेक्षा करता है.

पं. दीनदयाल उपाध्याय ने पाकिस्तान जाने का विकल्प न चुनने वाले मुसलमानों को लेकर जो आशंका व्यक्त की थी, पाकिस्तान के एक मंत्री शेख रसीद ने उसकी सत्यता पर यह कहते हुए अपनी मुहर लगा दी कि – “दुनिया के मुसलमान सहित हिन्दुस्तान के मुसलमानों के जज्बात पाकिस्तान के साथ हैं. इस्लाम को फतह मुबारक हो. पाकिस्तान जिन्दाबाद.

शेख रसीद के इस वक्तव्य पर भारत के किसी बौद्धिक मुसलमान का कोई प्रतिवाद नहीं आया. जबकि यही लोग कश्मीर के हर आतंकवादी को निर्दोष और मासूम बता देने में एक मिनट का भी वक्त जाया नहीं करते. और उन कथित मानववादी विचारकों के बारे में क्या कहना जो संसद हमले, मुंबई विध्वंस के गुनहगारों अफजल गुरु और मोहम्मद कसाब की सजामुक्ति को लेकर हस्ताक्षर अभियान चलाते हैं. बहरहाल क्रिकेट प्रकरण को वैसी ही एक बानगी समझिए जैसी कि जेएनयू जैसे शैक्षणिक संस्थानों में भारत तेरे टुकड़े होंगे..इंशाअल्लाह.. इंशाअल्लाह.

इससे ज्यादा गंभीर खतरा उस रणनीति का है जो जनसंख्यकीय बल के आधार पर निकट भविष्य में देश पर प्रभुत्व जमाने का मंसूबा पाले हुए है.

जनसंख्यकीय असंतुलन का यथार्थ

विजयादशमी के महत्वपूर्ण उद्बोधन में उन्होंने तथ्यों और आँकड़ों के साथ जनसंख्या में असंतुलन और उससे जुड़े खतरे को लेकर नीति नियंताओं को सचेत किया और समय रहते सर्वव्यापी, सर्वसमावेशी नीति तैयार कर सभी नागरिकों पर समभाव से लागू करने की बात की. कहा – “देश में जनसंख्या नियंत्रण हेतु किये विविध उपायों से पिछले दशक में जनसंख्या वृद्धि दर में पर्याप्त कमी आयी है, लेकिन 2011 की जनगणना के पांथिक आधार (Religious ground) पर किये गये विश्लेषण से विविध संप्रदायों की जनसंख्या के अनुपात में जो परिवर्तन सामने आया है, उसे देखते हुए जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता प्रतीत होती है. विविध सम्प्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अन्तर, अनवरत विदेशी घुसपैठ व मतांतरण के कारण देश की समग्र जनसंख्या विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात में बढ़ रहा असंतुलन देश की एकता, अखंडता व सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है.

विश्व में भारत उन अग्रणी देशों में से था, जिसने 1952 में ही जनसंख्या नियंत्रण के उपायों की घोषणा की थी, परन्तु सन् 2000 में जाकर ही वह एक समग्र जनसंख्या नीति का निर्माण और जनसंख्या आयोग का गठन कर सका. इस नीति का उद्देश्य 2.1 की सकल प्रजनन-दरकी आदर्श स्थिति को 2045 तक प्राप्त कर स्थिर व स्वस्थ जनसंख्या के लक्ष्य को प्राप्त करना था. ऐसी अपेक्षा थी कि अपने राष्ट्रीय संसाधनों और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्रजनन-दर का यह लक्ष्य समाज के सभी वर्गों पर समान रुप से लागू होगा. परन्तु 2005-06 का राष्ट्रीय प्रजनन एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण और सन् 2011 की जनगणना के 0-6 आयु वर्ग के पांथिक आधार पर प्राप्त आँकड़ों से असमानसकल प्रजनन दर एवं बाल जनसंख्या अनुपात का संकेत मिलता है. यह इस तथ्य में से भी प्रकट होता है कि वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अन्तर के कारण देश की जनसंख्या में जहाँ भारत में उत्पन्न मतपंथों के अनुयायियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 प्रतिशत से बढ़ कर 14.23 प्रतिशत हो गया है.

इसके अतिरिक्त, देश के सीमावर्ती प्रदेशों तथा असम, पश्चिम बंगाल व बिहार के सीमावर्ती जिलों में तो मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, जो स्पष्ट रूप से बांग्लादेश से अनवरत घुसपैठ का संकेत देता है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त उपमन्यु हाजरिका आयोग के प्रतिवेदन एवं समय-समय पर आए न्यायिक निर्णयों में भी इन तथ्यों की पुष्टि की गयी है. यह भी एक सत्य है कि अवैध घुसपैठिये राज्य के नागरिकों के अधिकार हड़प रहे हैं तथा इन राज्यों के सीमित संसाधनों पर भारी बोझ बन सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक तथा आर्थिक तनावों का कारण बन रहे हैं.

पूर्वोत्तर के राज्यों में पांथिक आधार पर हो रहा जनसांख्यिकीय असंतुलन और भी गंभीर रूप ले चुका है. अरुणाचल प्रदेश में भारत में उत्पन्न मत-पंथों को मानने वाले जहाँ 1951 में 99.21 प्रतिशत थे, 2001 में 81.3 प्रतिशत व 2011 में 67 प्रतिशत ही रह गए हैं. केवल एक दशक में ही अरूणाचल प्रदेश में ईसाई जनसंख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसी प्रकार मणिपुर की जनसंख्या में इनका अनुपात 1951 में जहाँ 80 प्रतिशत से अधिक था, वह 2011 की जनगणना में 50 प्रतिशत ही रह गया है. उपरोक्त उदाहरण तथा देश के अनेक जिलों में अस्वाभाविक वृद्धि दर कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा एक संगठित एवं लक्षित मतांतरण की गतिविधि का ही संकेत देती है.

2015 में राँची में सम्पन्न अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की प्रतिबद्धता का स्मरण कराते हुए कहा था कि कार्यकारी मंडल इन सभी जनसांख्यिकीय असंतुलनों पर गम्भीर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से आग्रह करता है कि

  1. देश में उपलब्ध संसाधनों, भविष्य की आवश्यकताओं एवं जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए देश की जनसंख्या नीति का पुनर्निर्धारण कर उसे सब पर समान रूप से लागू किया जाए.
  2. सीमा पार से हो रही अवैध घुसपैठ पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाया जाए. राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (National Register of Citizens) का निर्माण कर इन घुसपैठियों को नागरिकता के अधिकारों से तथा भूमि खरीद के अधिकार से वंचित किया जाए.

इन विषयों के प्रति जो भी नीति बनती हो, उसके सार्वत्रिक संपूर्ण तथा परिणामकारक क्रियान्वयन के लिये अमलीकरण के पूर्व व्यापक लोकप्रबोधन तथा निष्पक्ष कार्यवाई आवश्यक रहेगी. सद्यस्थिति में असंतुलित जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में स्थानीय हिन्दू समाज पर पलायन का दबाव बनने की, अपराध बढ़ने की घटनाएं सामने आयी हैं.

पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा में हिन्दू समाज की जो दुरावस्था हुई उसका, शासन प्रशासन द्वारा हिंसक तत्वों के अनुनय के साथ वहां का जनसंख्या असंतुलन यह भी एक कारण था. इसलिए यह आवश्यक है कि सब पर समान रूपसे लागू हो सकने वाली नीति बने. अपने छोटे समूहों के संकुचित स्वार्थों के मोहजाल से बाहर आकर सम्पूर्ण देश के हित को सर्वोपरि मानकर चलने की आदत हम सभी को करनी ही पड़ेगी.

Wednesday, July 12, 2023

सामाजिक समरसता के लिए समर्पित श्रीगुरुजी का जीवन

- लोकेन्द्र सिंह


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रद्धेय माधव सदाशिवराव गोलवलकर जी का जीवन हिन्दू समाज के संगठन, उसके प्रबोधन एवं सामाजिक-जातिगत विषमताओं को समाप्त करके एकरस समाज के निर्माण के लिए समर्पित रहा. जातिगत ऊँच-नीच एवं अस्पृश्यता को समाप्त करने की दिशा में श्रीगुरुजी के प्रयासों से एक बड़ा और उल्लेखनीय कार्य हुआ, जब 13-14 दिसंबर, 1969 को उडुपी में आयोजित धर्म संसद में देश के प्रमुख संत-महात्माओं ने एकसुर में समरसता मंत्र का उद्घोष किया

हिन्दव: सोदरा: सर्वे, न हिन्दू: पतितो भवेत्.

मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र: समानता..

अर्थात् सभी हिन्दू सहोदर (एक ही माँ के उदर से जन्मे) हैं, कोई हिन्दू नीच या पतित नहीं हो सकता. हिन्दुओं की रक्षा मेरी दीक्षा है, समानता यही मेरा मंत्र है. श्रीगुरुजी को विश्वास था कि देश के प्रमुख धर्माचार्य यदि समाज से आह्वान करेंगे कि अस्पृश्यता के लिए हिन्दू धर्म में कोई स्थान नहीं है, इसलिए हमें सबके साथ समानता का व्यवहार रखना चाहिए, तब जनसामान्य इस बात को सहजता के साथ स्वीकार कर लेगा और सामाजिक समरसता की दिशा में बड़ा कार्य सिद्ध हो जाएगा. इस धर्म संसद में श्रीगुरुजी के आग्रह पर सभी संतों ने सर्वसम्मति से सामाजिक समरसता का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया. श्रीगुरुजी ने अपनी भूमिका को यहीं तक सीमित नहीं रखा, अपितु अब उन्होंने विचार किया कि यह शुभ संदेश लोगों तक कैसे पहुँचे. क्योंकि उस समय आज की भाँति मीडिया की पहुँच जन-जन तक नहीं थी. सामाजिक समरसता के इस अमृत को जनसामान्य तक पहुँचाने के लिए श्रीगुरुजी ने 14 जनवरी, 1970 को संघ के स्वयंसेवकों के नाम एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि कर्नाटक में कार्यकर्ताओं की अपेक्षा से कई गुना अधिक सफल आयोजन हुआ. मानो हिन्दू समाज की एकता एवं परिवर्तन के लिए शंख फूंक दिया गया हो. परंतु हमें इससे आत्मसंतुष्ट होकर बैठना नहीं है. अस्पृश्यता के अभिशाप को मिटाने में हमारे सभी पंथों के आचार्य, धर्मगुरु और मठाधिपतियों ने अपना समर्थन दिया है. परंतु प्रस्ताव को प्रत्यक्ष आचरण में उतारने के लिए केवल पवित्र शब्द काफी नहीं हैं. सदियों की कुरीतियां केवल शब्द और सद्भावना से नहीं मिटती. इसके लिए अथक परिश्रम और योग्य प्रचार करना पड़ेगा. नगर-नगर, गाँव-गाँव, घर-घर में जाकर लोगों को बताना पड़ेगा कि अस्पृश्यता को नष्ट करने का निर्णय हो चुका है. और यह केवल आधुनिकता के दबाव में नहीं, बल्कि हृदय से हुआ परिवर्तन है. भूतकाल में हमने जो गलतियां की हैं, उसे सुधारने के लिए अंत:करण से इस परिवर्तन को स्वीकार कीजिए. श्रीगुरुजी के इस पत्र से हम समझ सकते हैं कि अस्पृश्यता को समाप्त करने और हिन्दू समाज में एकात्मता का वातावरण बनाने के लिए उनका संकल्प कैसा था? धर्माचार्यों से जो घोषणा उन्होंने करायी, वह समाज तक पहुँचे, इसकी भी चिंता उन्होंने की. संघ की शाखा पर सामाजिक समरसता को जीने वाले लाखों स्वयंसेवक सरसंघचालक के आह्वान पर हिन्दव: सोदरा: सर्वेके मंत्र को लेकर समाज के सब लोगों के बीच गए.

इसी धर्म संसद का एक और मार्मिक एवं प्रेरक संस्मरण है. तथाकथित अस्पृश्य जाति से आने वाले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी आर. भरनैय्या की अध्यक्षता में ही हिन्दव: सोदरा: सर्वेका प्रस्ताव पारित हुआ. प्रस्ताव को लेकर कई प्रतिभागियों ने अपने विचार भी व्यक्त किए. जैसे ही कार्यक्रम समाप्त हुआ, मंच से उतरते ही भरनैय्या भाव-विभोर होकर श्रीगुरुजी के गले लग गए. उनकी आँखों से आँसू निकल रहे थे. वे गदगद होकर बोले – आप हमारी सहायता के लिए दौड़ पड़े. इस उदात्त कार्य को आपने हाथ में लिया हैआप हमारे पीछे खड़े हो गए यह आपका श्रेष्ठ भाव है.

हिन्दुओं को जातीय भेदभाव के आधार पर एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने के प्रयास भारत विरोधी विचारधाराएं प्रारंभ से करती आई हैं. श्रीगुरुजी ने 1 जनवरी, 1969 को दैनिक समाचारपत्र नवाकालके संपादक को एक साक्षात्कार दिया, जिसमें जाति-व्यवस्था को लेकर दिए गए उनके उत्तरों को तोड़-मरोड़ कर प्रकाशित किया गया. जिन शब्दों का उपयोग श्रीगुरुजी ने किया नहीं, ऐसे भ्रम पैदा करने वाले शब्दों को संपादक ने गुरुजी के उत्तरों में शामिल कर लिया. उसके आधार पर कुछ राजनेताओं ने संघ की छवि खराब करने और समाज में जातीय वैमनस्यता को बढ़ावा देने का प्रयास किया. तब श्रीगुरुजी ने इस संबंध में एर्नाकुलम से ही 4 फरवरी, 1969 को स्पष्ट किया – “शहरों से लेकर ग्रामीण भागों तक और गिरि-कंदराओं से लेकर मैदानों तक फैले हुए हिन्दू समाज के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति जाति-पाति, गरीबी, अमीरी, साक्षर, निरक्षर, विद्वान आदि का विचार न करते हुए सबको एकत्र लाना, यही संघ का कार्य है. इस उद्देश्य को व्याघात पहुँचाने वाली कोई भी बात मुझे कभी पसंद नहीं आ सकती. प्रगतिशीलपन की भाषा बोलने वाले राजनीतिज्ञ केवल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए समाज में भय पैदा करने वाले कार्य कर रहे हैं”.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर इस प्रकार का दुष्प्रचार क्यों किया जाता है, इसका उत्तर श्रीगुरुजी ने 8 मार्च, 1969 को ऑर्गेनाइजर को दिए साक्षात्कार में दिया है. उनसे पूछा गया कि जातिगत व्यवस्था विषयक आपके कथित मत के विषय में विगत कुछ दिनों से काफी हंगामा हो रहा है. लगता है, उस विषय में कुछ भ्रांति है. श्रीगुरुजी ने स्पष्टता के साथ कहा – “भ्रांति जैसी कोई बात नहीं है. कुछ लोग ऐसे हैं, जो मेरे प्रत्येक कथन को तोड़-मरोड़कर रखते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि देश को मटियामेट करने के उनके षड्यंत्रों में एकमेव संघ ही बाधक है”. श्रीगुरुजी का यह कथन शत-प्रतिशत सत्य है. आज भी भारत एवं हिन्दू विरोधी ताकतों के निशाने पर संघ ही रहता है, क्योंकि उन्हें पता है कि संघ हिन्दुओं का प्रमुख संगठन है, संघ को कमजोर या बदनाम किए बिना वे अपनी साजिशों में सफल नहीं हो सकते. इसलिए तथ्यहीन बातों को आधार बनाकर संघ के बारे में दुष्प्रचार फैलाना कई नेताओं एवं तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों ने अपना एकमेव लक्ष्य बना लिया है.

अपने उद्बोधनों एवं कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत संवाद में भी श्रीगुरुजी का यही कहना होता था कि संघ विभिन्न वर्ण एवं उपजातियों में बँटे हिन्दू समाज के अंदर हम सब एक हैं, एक भारत माता के पुत्र हिन्दू हैं, सब समान हैं कोई ऊँचा नहीं, यह भाव उत्पन्न कर एकरस, एकजीव हिन्दू समाज बनाने के काम में लगा है. यह एकरस, एकजीव हिन्दू समाज का निर्माण कर पाए तो हमने इस जीवन में सफलता पायी, ऐसा कह सकेंगे”. श्रीगुरुजी का यह विचार एवं आह्वान आरएसएस के सभी स्वयंसेवकों का ध्येय है.

Tuesday, July 11, 2023

ऊटी – आरएसएस की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक 13-15 जुलाई तक

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठकइस वर्ष दिनांक 13, 14 एवं 15 जुलाई 2023 को कोयम्बटूर के निकट ऊटी (ज़िला नीलगिरी), तमिलनाडु में आयोजित हो रही है. यह वार्षिक बैठक मुख्यतः संगठनात्मक विषयों पर चर्चा करने हेतु प्रतिवर्ष आयोजित होती है. इस बैठक में पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत, माननीय सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी के साथ सभी सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, डॉ. मनमोहन वैद्य, श्री सी.आर. मुकुंद, श्री अरुण कुमार, श्री रामदत्त मुख्य रूप से सहभागी होंगे. बैठक में सभी प्रांतों के प्रांत प्रचारक तथा सह प्रांत प्रचारक एवं क्षेत्र प्रचारक व सह क्षेत्र प्रचारक के साथ सभी कार्य विभागों के अखिल भारतीय अधिकारी भी उपस्थित रहेंगे. बैठक में संघ प्रेरित विविध संगठन के अखिल भारतीय संगठन मंत्री भी शामिल होंगे.

बैठक में मुख्यतः इस वर्ष हुए संघ शिक्षा वर्गों के वृत्त व समीक्षा, संघ शताब्दी कार्य विस्तार योजना की अभी तक हुई प्रगति, शाखा स्तर के सामाजिक कार्यों का विवरण व परिवर्तन के अनुभवों का आदान-प्रदान आदि विषयों पर चर्चा होगी. बैठक में आगामी चार-पॉंच माह के कार्यक्रमों की योजना तथा वर्तमान स्थिति के संदर्भ में भी चर्चा होगी.

सुनील आंबेकर

अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ