Friday, September 29, 2023

डॉ. स्वामीनाथन राष्ट्र के सर्वांगीण कल्याण के लिए समर्पित थे

भारत की हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के निधन से आधुनिक भारत के निर्माण में एक उज्ज्वल अध्याय समाप्त हो गया. हम उनके परिवार के सदस्यों और अनगिनत प्रशंसकों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं. डॉ. स्वामीनाथन राष्ट्र के सर्वांगीण कल्याण के लिए समर्पित व्यक्ति थे. आम आदमी के प्रति उनकी चिंता अनुकरणीय थी और यह करुणा ही है जिसने उन्हें हरित क्रांति लाने और लाखों लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया. उनकी कृषि क्षेत्र में शोध की मूलभूत पहल हमेशा सभी शोधकर्ताओं को प्रेरित करती रहेगी.

डॉ. स्वामीनाथन, जिन्होंने खाद्यान्न उत्पादन में भारत को विश्व मानचित्र पर स्थापित किया, अपनी भव्य दृष्टि, दृढ़ धैर्य और विनम्रता के माध्यम से देश के लिए एक प्रतीक बन गए. उनका यशस्वी जीवन नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा.

हम ईश्वर से दिवंगत आत्मा को चिर शांति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं.

ॐ शांति:॥

दत्तात्रेय होसबाले

सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

Wednesday, September 27, 2023

संघ के लिए कोई पराया नहीं, संघ का लक्ष्य संपूर्ण समाज का संगठन

लखनऊ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी के अवध प्रान्त प्रवास के अन्तिम दिन में सरस्वती कुंज निराला नगर लखनऊ में आज प्रबुद्ध नागरिकों के साथ बैठक सम्पन्न हुई.

प्रबुद्ध नागरिकों से चर्चा के दौरान सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ सम्पूर्ण समाज को संगठित करना चाहता है, इसमें संघ के लिए कोई पराया नहीं है. जो आज हमारा विरोध करते हैं, वे भी हमारे अपने हैं. यह हमारा पक्का है कि उनके विरोध से हमारी क्षति न हो, इतनी चिंता हम ज़रूर करेंगे. लेकिन हम लोग तो सर्व लोकयुक्त भारत वाले लोग हैं, मुक्त वाले नहीं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाते सबको जोड़ने का हमारा प्रयास है और सबको बुलाने का भी हमारा प्रयास रहता है. संघ के स्वयंसेवकों द्वारा समाज में अनेक अच्छे काम समाज परिवर्तन हेतु किए जा रहे हैं, आप सब प्रबुद्धजन उन कार्यों में सहयोगी हो सकते हैं.

सामाजिक परिवर्तन एवं राष्ट्र कार्यों में अपनी-अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन करते हुए राष्ट्र को अपने स्वत्व पर खड़ा करने के लिए और परम वैभव सम्पन्न बनाने के लिए, इस राष्ट्र को समझकर और सारे देश को एक करने की दिशा में जो भी छोटा-बड़ा काम आप अपनी पद्धति से करना चाहते हैं, वह कीजिए. इतिहास में हम यह लिखा देखना नहीं चाहते कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कारण देश का उद्धार हुआ, हम यह लिखा देखना चाहते हैं कि इस देश में एक ऐसी पीढ़ी निर्माण हुई, उन्होंने उद्यम किया और अपने देश को पूरी दुनिया का गुरु बनाया. उस पवित्र कर्तव्य के प्रारंभ के लिए आप सबका आह्वान करता हूँ.

Saturday, September 16, 2023

हिन्दी दिवस पर हिन्दुस्थान समाचार ने विभिन्न भारतीय भाषाओं के 18 पत्रकारों को किया सम्मानित

भाषा का सदुपयोग ही सनातन हिंदू धर्म है - जगद्गुरु शंकराचार्य

कार्यक्रम में अपना विचार रखते वरिष्ठ प्रचारक एवं हिन्दुस्थान समाचार के पूर्व सरंक्षक लक्ष्मी नारायण भाला जी

काशी| बहुभाषी न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार के तत्वावधान में आयोजित भारतीय भाषा सम्मान कार्यक्रम में 18 भारतीय भाषाओं के पत्रकारों व साहित्यकारों को ‘‘भारतीय भाषा सम्मान-2023’’ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में कांचीकामकोटि पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य श्री शंकर विजयेन्द्र सरस्वती जी महाराज ने कहा कि भाषा का सदुपयोग करना चाहिए और उसका देश के विकास में उपयोग करना चाहिए| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं पूर्व सरंक्षक हिन्दुस्थान समाचार लक्ष्मी नारायण भाला ने पंच प्रणभारतीय भाषाएं और समृद्ध भारत का प्रवर्तन करते हुए कहा कि पंच प्रण अपने शब्द से ही स्पष्ट है कि देश प्रथम है। अन्य वक्ताओं ने पंच-प्रण के उपयोग एवं महत्व पर प्रकाश डाला| 

जगद्गुरु शंकराचार्य श्री शंकर विजयेन्द्र सरस्वती जी महाराज ने भाषा की विशेषता बताते हुए भगवान हनुमान जी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि हनुमान जी की अमरत्व वाणी से सीता जी का आत्मविश्वास बढ़ा और उनमें रावण का सामना करने की शक्ति आयी। उन्होंने कहा कि भाषा मुख्य है, साहित्य मुख्य है। भाषा का सदुपयोग करना चाहिए और उसका देश के विकास में उपयोग करना चाहिए, उसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। सदुपयोग ही सनातन हिंदू धर्म है।

उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि समाचार शब्द काफी पुराना है। धर्म के प्रति जानकारी और जागरूकता हिन्दुस्थान समाचार के जरिये बढ़ रही है। चातुर्मास के दौरान भाषा विद्वानों को सम्मानित करना अच्छी पहल बताया।

वहीं, शंकराचार्य ने सनातन धर्म की विशेषता बताते हुए कहा कि भाषा का सदुपयोग ही सनातन हिंदू धर्म है। उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य जन्म निरर्थक नहीं होना चाहिए। जो काम हमें मनुष्य के रूप में मिले हैं उसे करना चाहिए। धर्माचरण मुख्य है। परोपकार से दूसरों की मदद करने के लिए हमसे जो कुछ हो सकता है करना चाहिए। कष्ट निवारण ही धर्म है। अच्छे कर्म करने के लिए सबको मौका देना हिन्दू धर्म है। उन्होंने मंदिर को धर्म का केंद्र बताया।

मुख्य अतिथि उपस्थित उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि पंच प्रण की दिशा में भारत के कदम बढ़ चुके हैं। हम सभी का प्रण देश को समृद्ध बनाना है। लेकिन संस्कार, शिक्षा और सुरक्षा के अभाव में समृद्धि अधूरी रहती है। इसलिए जरूरी है कि हम निष्ठा के साथ प्रण करें और संतों और अपने अभिभावकों का आशीर्वाद लेकर लक्ष्य को प्राप्त करें।

भाषा के रूप में हिंदी के विस्तार और उसकी प्रासंगिकता को लेकर उन्होंने कहा कि दुनिया भर के देश अपनी भाषा में शिक्षा प्राप्त कर गर्व करते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अब ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए मध्यप्रदेश में मेडिकल (एमबीबीएस) की पढ़ाई भी हिन्दी में कराने की योजना अग्रसर है। उन्होंने कहा कि भविष्य में बहुत जल्द  उत्तर प्रदेश में भी यह व्यवस्था शुरू होगी।

विशिष्ट अतिथि श्रीहनुमत निवासअयोध्या के महंत आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण जी महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि भारत वर्ष विलक्ष्ण है, इसकी विलक्ष्णता उसके भाषा, भाव और वेशभूषा और व्यवहार में परिलक्षित होता है। उन्होंने हिन्दी दिवस के लिए एक दिन निश्चित करने को लेकर कहा कि यह क्यों आवश्यक है कि एक दिन देश की प्रमुख भाषा हिन्दी के लिए क्यों हो, जिसे अधिकाधिक लोग अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं। हमें कोशिश इसे सभी दिनों के लिए सुनिश्चित करने के लिए करना चाहिए।

पंच प्रण जिसे लेकर हिन्दुस्थान समाचार लगातार कार्यक्रम आयोजित करता रहा है, उसके लिए उन्हंर साधुवाद है। वहीं पंच प्रण को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच शब्दों- विकसित भारत, धरोहर, औपनिवेशिकता, एकता-एकात्मता और नागरिकता के रूप में इसे बताया था।

विस्तार में न जाते हुए उन्होंने कहा कि पंच प्रण में पहला है विकसित भारत, जिसका तात्पर्य आत्मनिर्भर भारत है। दूसरा है विरासत, जिस पर गर्व का मतलब है कि हमें विचार करें कि हम किसके उत्तराधिकारी हैं। हम धन्य हैं कि प्रधानमंत्री यह राष्ट्र भारत है और हम इसके उत्तराधिककारी है। हमें महाकुंभ, चातुर्मास, सन्यासिययों की यात्रा को ही अपनी विरासत मानना चाहिए। तीसरा है औपनिवेशिकता, जन भावना में औपनिवेशिक की कुंठा से बाहर निकलना होगा। इसके लिए अपात्र होने के बाद भी चाहने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। चौथा है एकात्मता-एकता.. एकता बहुरंगी है और एकात्मता अंतरंगी है। बाहरी विभेद के बाद भी जब हम एक स्त्रोत से जुड़े होते हैं तो उससे ही एकात्मका का भाव आता है। एकता आचारगत है, एकात्मता विचार गत है। पांचवा और आखिरी है नागरिकता, जब तक नागरिक मूल्य को मानवीय मूल्य के साथ संयोजित नहीं कर सकते तब तक नागरिता के मूल्य को पूर्ण रूप से परिभाषित नहीं कर सकते।

इस अवसर पर उपस्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं पूर्व सरंक्षक हिन्दुस्थान समाचार लक्ष्मी नारायण भाला ने पंच प्रणभारतीय भाषाएं और समृद्ध भारत का प्रवर्तन करते हुए कहा कि पंच प्रण अपने शब्द से ही स्पष्ट है कि देश प्रथम है। ऐसे में जरूरी है कि इसके लिए जिस भाषा का प्रयोग हो वो देश को समृद्ध और गौरवपूर्ण बनाने महति भूमिका निभाए। उन्होंने पांच प्रण को विस्तृत तौर पर समझाते हुए कहा कि मूलरूप से तन, प्राण (जीवंतता), मन, बुद्धि, आत्मा... ही वो पांच तत्व हैं, जिनके द्वारा हम समूल तौर पर देश विकास में अपना समपूर्ण योगदान दे सकते हैं। वहीं उन्होंने श्लोकृ- त्रेतायां मंत्र-श्क्तिश्च ज्ञानशक्तिः कृते-युगे। द्वापरे युद्ध-शक्तिश्च, संघशक्ति कलौ युगे।।का उच्चारण करते हुए कहा कि देश और समाज के विकास के लिए सांगठिक तौर पर भी सशक्त होने की जरूरत है।

कार्यक्रम में हिन्दुस्थान समाचार समूह की पाक्षिक पत्रिका युगवार्ताऔर मासिक पत्रिका नवोत्थानके विशेषांक का लोकार्पण भी हुआ। इन दोनों विशेषांकों में भारतीय भाषाओं पर विद्वानों के तथ्यपरक लेख प्रकाशित किए गए हैं। इस दौरान डैलिम्स सनबीम विद्यालय के छात्रों द्वारा लिखित पुस्तक गोल्डेन सनका भी लोकार्पण हुआ।

पूर्व में हिन्दुस्थान समाचार निदेशक मंडल के सदस्य डा. प्रदीप बाबामधोक ने अतिथियों का स्वागत किया। आभार ज्ञापन न्यूज एजेंसी के वाराणसी ब्यूरो प्रमुख श्रीधर ने किया।

इन्हें मिला सम्मान :

संस्कृत भाषा के लिए झारखण्ड के हजारीबाग जनपद के निवासी और डीडी न्यूज यानि दूरदर्शन दिल्ली पर प्रसारित होने वाले संस्कृत के लोकप्रिय साप्ताहिक कार्यक्रम वार्तावलीके मुख्य सम्पादक डॉ नारायणदत्त मिश्र, हिन्दी भाषा के लिए पांचजन्यके सम्पादक हितेश शंकर, तेलुगु भाषा  के लिए वरिष्ठ पत्रकार डॉ के. विक्रम राव, मराठी भाषा के वरिष्ठ पत्रकार श्रीराम जोशी, गुजराती भाषा के लिए पद्मश्री डॉ. विष्णु पंड्या, पंजाबी भाषा के वरिष्ठ पत्रकार डॉ भाई परमजीत सिंह, बांग्ला भाषा के डॉ सुमन चन्द्र दास, असमिया भाषा के अरुण ज्योति बोरा, नेपाली के डिल्ली राम दुलार और सिंधी भाषा के कमल किशोर खत्री को सम्मानित किया गया।

इसी तरह मलयालम भाषा के लिए वरिष्ठ पत्रकार कावालम् शशिकुमार, तमिल भाषा के वी. श्रीनिवासन, कन्नड़ भाषा की सुश्री स्वाति चंद्रशेखर एवं पन्नग राज रामचंद्र राव कुलकर्णी, ओड़िआ भाषा के डॉ. समन्वय नंद तथा भोजपुरी भाषा के लिए केशव मोहन पाण्डेय को सम्मानित किया गया।

इसके अतिरिक्त हिन्दुस्थान समाचार के दो पत्रकारों डॉ. शारदा वन्दना और गुंजन कुमार को कलमवीरसम्मान से सम्मानित किया|

Thursday, September 14, 2023

हमारी हिन्दी बन गई ‘सबकी हिन्दी’

अंग्रेजी में केवल 10 हजार के करीब शब्द, जबकि हिन्दी की शब्द सम्पदा ढाई लाख से भी अधिक

- लोकेन्द्र सिंह

विश्व में करीब तीन हजार भाषाएं हैं. इनमें से हिन्दी ऐसी भाषा हैजिसे मातृभाषा के रूप में बोलने वाले दुनिया में दूसरे स्थान पर हैं. मातृभाषा की दृष्टि से पहले स्थान पर चीनी है. बहुभाषी भारत के हिन्दी भाषी राज्यों की जनसंख्या 46 करोड़ से अधिक है. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की 1.2 अरब जनसंख्या में से 41.03 प्रतिशत की मातृभाषा हिन्दी है. हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर उपयोग करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिन्दी बोल सकते हैं. भारत के इन 75 प्रतिशत हिन्दी भाषियों सहित पूरी दुनिया में लगभग 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोल या समझ सकते हैं. भारत के अलावा हिन्दी को नेपालमॉरिशसफिजी, सूरीनाम, यूगांडादक्षिण अफ्रीकाकैरिबियन देशोंट्रिनिदाद एवं टोबेगो और कनाडा आदि में बोलने वालों की अच्छी-खासी संख्या है. इसके अलावा इंग्लैंडअमेरिकामध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं.

हिन्दी भारत की सीमाओं से बाहर निकलकर सबकी हिन्दीबन गई हैइसके पीछे भाषा का अपना संस्कार है. भारतीय संस्कृति की तरह हिन्दी उदार भाषा है. अन्य भाषाओं के प्रति सहिष्णु है. हिन्दी में प्रवाह है. वह सदैव बहती रही है. इसी कारण तमाम झंझावातों के बाद आज जिन्दा है और समृद्ध भी. सर्वसमावेशी भाषा होना हिन्दी का सबसे बड़ा सौन्दर्य है. हिन्दी ने बड़ी सहजता और सरलता से, समय के साथ चलते हुए कई बाहरी भाषाओं के शब्दों को भी अपने आंचल में समेट लिया. पहले से ही समृद्ध हिन्दी का शब्द भण्डार और अधिक समृद्ध हो गया है. हिन्दी को कभी भी अन्य भाषाओं के शब्दों से परहेज नहीं रहा. भारतीय भाषाएं तो उसकी अपनी सगी बहनें हैंउनके साथ तो हिन्दी का लेन-देन स्वाभाविक ही है. लेकिनहिन्दी ने बाहरी भाषाओं के शब्दों को भी बिना किसी फेरबदल केउनके स्वाभाविक सौंदर्य के साथ स्वीकार किया है. वास्तव मेंहिन्दी जीवंत भाषा है. वह समय के साथ बही हैकहीं ठहरी नहीं. जीवंत भाषाएं शब्दों की छुआछूत नहीं मानती हैं. शब्द जिधर से भी आएहिन्दी ने आत्मसात कर लिए. हिन्दी के पास भारतीय भाषाओं और बोलियों की अपार संपदा है. भारतीय भाषाओं के शब्द सामर्थ्य का मुकाबला कोई भी बाहरी भाषा नहीं कर सकती. अंग्रेजी में जितने शब्द हैंउससे कई गुना शब्द अकेली हिन्दी में हैं. फिरअन्य भारतीय भाषाओं को हिन्दी के साथ मिला लिया जाए तो अंग्रेजी ही क्यादुनिया की अन्य भाषाएं भी बौनी नजर आएंगी. अंग्रेजी में केवल 10 हजार के करीब शब्द हैं, जबकि हिन्दी की शब्द सम्पदा ढाई लाख से भी अधिक है. यही नहींहिन्दी का व्याकरण भी सर्वाधिक वैज्ञानिक है. हिन्दी की पांच उपभाषाएं और 17 बोलियां हैं. प्रमुख बोलियों में अवधीभोजपुरी, ब्रजभाषा, छत्तीसगढ़ीगढ़वालीहरियाणवीकुमांऊनीमागधी और मारवाड़ी शामिल है.

अपने उदार हृदय और सर्वसमावेशी प्रकृति के कारण हिन्दी जगत का निरंतर विस्तार होता जा रहा है. अब हिन्दीहिन्द तक ही सीमित नहीं है. दुनिया के 40 से अधिक देश और उनकी 600 से अधिक संस्थाओंविद्यालयोंमहाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है. आज हिन्दी मात्र साहित्य की भाषा नहीं है. बल्कि विज्ञान और तकनीक की भी भाषा बन गई है. गूगल ने कई महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर और सेवाएँ जारी की हैंजिनके माध्यम से विभिन्न तकनीकी युक्तियों में हिन्दी पाठ्य का उपयोग आसान हो गया है. एंड्रोयड युक्तियों में बोलकर लिखने की प्रणाली (गूगल वॉयस इनपुट) सेवा का आगमन सुखद भी है और क्रांतिकारी भी. इससे पहले गूगल ने हिन्दी हस्तलिपि पहचान सॉफ्टेवयर जारी किया था. गूगल मैप्स और सर्च में भी बोलकर हिन्दी लिखी जा सकती है और हिन्दी में ही परिणाम देखे जा सकते हैं. ऑनलाइन हिन्दी के शब्दकोश मौजूद हैं. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने हिन्दी का प्रथम ओपन सोर्स यूनीकोड वर्तनी परीक्षक एवं शोधक सॉफ्टवेयर मालातैयार किया हैजिसमें दो लाख से अधिक हिन्दी के शब्द हैं. इस बीच, देवनागरी में डोमेन नेमों का पंजीकरण शुरू हो गया हैजिनका डोमेन विस्तार ‘.भारतहै. अब आप देवनागरी लिपि में भी अपनी वेबसाइट का पता रजिस्टर्ड करा सकते हैं. मोबाइल फोन में हिन्दी आने से हिन्दी जगत का और अधिक विस्तार हो गया है. अब तक मोबाइल फोन में रोमन लिपि में हिन्दी लिखी जा रही थी, लेकिन टेक्नोलॉजी की मदद से अब सभी मोबाइल डिवाइस में हिन्दी लिखना-पढ़ना आसान हो गया है. आईफोन बनाने वाली एप्पल सरीखी कंपनी भी हिन्दी को ध्यान में रखकर अपने उपकरण तैयार कर रही है.

एक भ्रम यह खड़ा किया जाता है कि अंग्रेजी रोजगार की भाषा हैहिन्दी नहीं. जबकि स्थितियां इसके उलट हैं. भारत दुनिया के लिए सबसे बड़ा बाजार है. इसलिए यहां व्यापार के लिए हिन्दी जरूरी हो गई है. विज्ञापन की दुनिया को हम देख सकते हैं किस तरह वहां हिन्दी का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. विज्ञापन क्षेत्र के विशेषज्ञ मानते हैं कि हिन्दी में आते ही विज्ञापन की पहुंच 10 गुना बढ़ जाती है. बड़े-बड़े कॉरपोरेट घराने अपने शोरूमों के नाम हिन्दी साहित्य से उठा रहे हैं. खादिममोचीबुनकर ऐसे ही नाम हैं. मनोरंजन के क्षेत्र में तो हिन्दी का मुकाबला ही नहीं है. भारतीय बाजार में हिन्दी के मनोरंजन वाहनियों (चैनल्स) की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत है. बॉलीवुड दुनिया में सबसे अधिक फिल्में बनाने का ठिकाना है. बॉलीवुड के जरिए हिन्दी की दुनिया का दायरा भी बढ़ा है. हिन्दी का आकर्षण इतना है कि दुनिया के प्रभावशाली मीडिया घरानों को भी हिन्दी में अपनी सेवाएं शुरू करनी पड़ीं.

बीबीसीडिजनीडिस्कवरी और स्टार ग्रुप हिन्दी में अपने चैनल चला रहा है. भारत में संचार माध्यमों की बात करें तो हिन्दी में प्रकाशित समाचार-पत्रों की प्रसार संख्या किसी भी भाषा में प्रकाशित समाचार-पत्रों की प्रसार संख्या से कहीं अधिक हैं. हिन्दी के चैनल टीआरपी की होड़ में सबसे आगे रहते हैं. वेबदुनिया से शुरू हुआ वेब पत्रकारिता का सिलसिला आज कहीं आगे निकल चुका है. यूनिकोड फॉन्ट के आने के बाद से इंटरनेट पर हिन्दी बहुत तेजी से अपना संसार रच रही है. एक समय इंटरनेट पर अंग्रेजी का वर्चस्व था, लेकिन आज हिन्दी के ब्लॉगवेबसाइटपोर्टल्स की भरमार है. सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर हिन्दी में संवाद किया जा रहा है. ऑनलाइन हिन्दी किताबों का संसार भी बढ़ता जा रहा है. इंटरनेट ने जन-जन तक हिन्दी साहित्य की पहुंच आसान कर दी है. इंटरनेट ने हिन्दी की दुनिया को बढ़ाया है. हिन्दी को वैश्विक पहचान मिली है.

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं.)

समन्वय बैठक में वर्तमान प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दों व सामाजिक परिवर्तन के प्रयासों पर होगी चर्चा – सुनील आंबेकर जी

पुणे, 13 सितंबर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक 2023 पुणे में हो रही है, जिसमें 36 संगठनों के लगभग 266 प्रमुख पदाधिकारी सम्मिलित हो रहे हैं. पर्यावरण पूरक जीवनशैली, जीवन मूल्य आधारित परिवार व्यवस्था, समरसता का आग्रह, स्वदेशी का आचरण और नागरिक कर्तव्यों का वहन इन पांच मुद्दों पर बैठक में चर्चा की जाएगी. यह जानकारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर जी ने दी. रा. स्व. संघ समन्वय बैठक के विषय में जानकारी देने हेतु आयोजित पत्रकार वार्ता में सुनील जी के साथ पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत कार्यवाह डॉ. प्रवीण दबडघाव जी भी उपस्थित रहे.

उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक अपने शाखा कार्य के माध्यम से लगातार राष्ट्र की सेवा में लगे हुए हैं. शाखा के काम करने के साथ-साथ समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्र में जाकर अलग-अलग प्रकार के कार्य में लगे हैं. वे सारे कार्य सेवा और राष्ट्र निर्माण के कार्य के लिए हैं.

बैठक में सम्मिलित होने वाले सभी संगठन संघ से प्रेरित हैं, समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में स्वायत्त रूप से काम करते हैं. इन संगठनों की वर्ष में एक बार बैठक होती है, अपने कार्यों व अनुभवों को साझा करते हैं और इस अवसर पर एक दूसरे से सीखने और समझने का अवसर मिलता है. ये सभी संगठन समान उद्देश्य और लक्ष्य लेकर कार्य करते हैं. कई संगठन मिलकर काम करते हैं, बैठक में इस प्रकार के सामूहिक कार्यों पर भी चर्चा होती है.

बैठक का उद्देश्य होता है कि समाज के सामने जो चुनौतियां आती हैं, उनका संकलन कर एक दिशा तय करना और राष्ट्रीय भावना से कार्य करना, जिससे कार्य करने की गति बढ़ सके. लगभग जीवन के हर क्षेत्र में काम करने वाले अलग-अलग संगठन के प्रतिनिधि यहां पर सहभागी होंगे. यह सारे संगठन कई वर्षों से सामाजिक जीवन में सक्रिय हैं और अपने परिश्रम से उन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है. इसमें अपने-अपने क्षेत्र के उनके जो अनुभव हैं, वह इस बैठक में साझा करेंगे. राष्ट्रीय स्थिति और वर्तमान परिदृश्य के संदर्भ में भी वह अपने अनुभव यहां बताएंगे. उससे जुड़े हुए कई विषयों पर यहां मूलभूत चिंतन भी होगा और संगठन की आगामी क्या दिशा है, अपने-अपने क्षेत्र में उन्होंने क्या सोचा है, इसके बारे में भी अपनी योजनाओं को यहां पर साझा करेंगे.

उन्होंने कहा, कि बैठक में सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय जी होसबाले, सभी सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी, डॉ. मनमोहन वैद्य जी, अरूण कुमार जी, मुकुंदा जी और रामदत्त जी चक्रधर सहित प्रमुख पदाधिकारी बैठक में सम्मिलित होंगे. बैठक में विद्या भारती, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, सक्षम, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ सहित अन्य सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधि सहभागी होंगे.

उन्होंने बताया कि सामाजिक परिवर्तन के जो प्रयास चल रहे हैं, उसमें जीवन मूल्यों के साथ परिवार चलने चाहिए, अपने जीवन को पर्यावरण की सुरक्षा के साथ चलाना चाहिए, स्वदेशी के साथ अपनी आर्थिक नीतियां बननी चाहिए और साथ ही यह सब करते हुए हमारे जीवन में समरसता का संदेश होना चाहिए ताकि जातिगत भेदभाव समाप्त हो. ऐसे कई विषयों पर इन तीन दिनों में चर्चा होगी.

यह बैठक प्रतिवर्ष आयोजित होती है. पिछले वर्ष बैठक छत्तीसगढ़ रायपुर में आयोजित हुई थी.

आरएसएस की समन्वय बैठक पुणे में प्रारंभ



पुणे, 14 सितंबर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक आज प्रातः 9 बजे पुणे में प्रारम्भ हुई. बैठक का शुभारंभ सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन करके किया. बैठक में 36 संगठनों के प्रमुख 267 पदाधिकारी भाग ले रहे हैं, जिनमें लगभग 30 बहनें भी शामिल हैं.

बैठक में प्रमुख रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी, डॉ. मनमोहन वैद्य जी, अरूण कुमार जी, मुकुंदा जी और रामदत्त चक्रधर जी, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य भय्याजी जोशी, सुरेश सोनी जी, वी. भागैय्या जी, राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांतक्का जी, प्रमुख कार्यवाहिका अन्नदानम सीताक्का, महिला समन्वय से चन्दाताई, स्त्री शक्ति की अध्यक्षा शैलजा जी, राष्ट्रीय सेवा भारती की महामंत्री रेणु पाठक, वनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष रामचन्द्र खराड़ी, विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष राजशरण शाही, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, भारतीय किसान संघ के संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी, विद्या भारती के अध्यक्ष रामकृष्ण राव, पूर्व सैनिक सेवा परिषद के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) विष्णुकान्त चतुर्वेदी, भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष हिरण्मय पंड्या, संस्कृत भारती के संगठन मंत्री दिनेश कामत आदि उपस्थित हैं.

बैठक में वर्तमान राष्ट्रीय व सामाजिक परिदृश्य, शिक्षा, सेवा, आर्थिक व राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी. सामाजिक परिवर्तन के पर्यावरण, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, स्वदेशी आचरण तथा नागरिक कर्तव्य के विषयों को आगे बढ़ाने पर भी चर्चा होगी. संगठन के विस्तार और विशेष प्रयोगों की जानकारी भी साझा की जाएगी.

बैठक का समापन 16 सितम्बर शाम को होगा.

Wednesday, September 13, 2023

भारत नाम का इतिहास

शिवभूषण सिंह 'सलील'

देश का नाम भारत है कि हिंदुस्तान. इंडिया है कि आर्यावर्त या फिर जम्बूद्वीप. ये हमेशा से बहस का मुद्दा रहा है. फिलहाल बहस सिर्फ दो नाम के ईर्द-गिर्द केंद्रित हो गई है. ये वो दो नाम हैं इंडिया और भारत. अभी तक तो हमें यही पता था कि देश का नाम भारत है, जिसका अंग्रेजी अनुवाद इंडिया होता है. यही भारत के संविधान में भी स्वीकृत है.

भारत के संविधान की जो प्रस्तावना है, हिंदी में उसकी शुरुआत होती है हम भारत के लोग से, जबकि अंग्रेजी में जो प्रस्तावना है, उसकी शुरुआत होती है, वी द पीपल ऑफ इंडिया से. नाम तो नाम होता है. वो हिंदी या अंग्रेजी कैसे हो सकता है. इसी वजह से पूरी बहस के केंद्र में जो नाम है, वो है भारत, जिसके तार जुड़ते हैं उसी सनातन धर्म से जो एक अलग ही वजह से बहस का मुद्दा बना हुआ है. उस बहस को फिलहाल छोड़ते हैं और कोशिश करते हैं भारत शब्द की उत्पत्ति को समझने की, जिसका जिक्र सनातन धर्म के पुराणों तक में भी हुआ है और कई बार हुआ है.

भारत का नाम भारत क्यों है, इसके पीछे कई कहानियां हैं. इनमें भी दो कहानियां खास तौर पर सुनाई जाती हैं. पहली कहानी तो ये है कि इस देश का नाम ऋषभदेव के बेटे भरत के नाम पर भारत पड़ा. इसका जिक्र मिलता है विष्णु पुराण में. विष्णु पुराण के अंश दो के अध्याय एक के श्लोक संख्या 28 से 31 तक में इस बात का जिक्र है कि देश का नाम भारत कैसे पड़ा.

32वां श्लोक कहता है कि-

ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषु गीयते

भरताय यत: पित्रा दत्तं प्रातिष्ठता वनम्

यानी कि पिता ऋषभदेव ने वन जाते समय अपना राज्य भरतजी को दे दिया था. तब से यह इस लोक में भारतवर्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

लिंग पुराण में भी श्लोक है. वो कहता है-

सोभिचिन्तयाथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सल:

ज्ञानवैराग्यमाश्रित्य जित्वेन्द्रिय महोरगान्।

हिमाद्रेर्दक्षिण वर्षं भरतस्य न्यवेदयत्।

तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधा:।

यानी अपने इन्द्रिय रूपी सांपों पर विजय पाकर ऋषभ ने हिमालय के दक्षिण में जो राज्य भरत को दिया तो इस देश का नाम तब से भारतवर्ष पड़ा.

भागवत पुराण के अध्याय 4 में श्लोक है. लिखा है-

येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्ठगुण

आसीद् येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति

यानी कि भगवान ऋषभ को अपनी कर्मभूमि अजनाभवर्ष में 100 पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र महायोगी भरत को उन्होंने अपना राज्य दिया और उन्हीं के नाम से लोग इसे भारतवर्ष कहने लगे.

इसके अलावा दूसरी कहानी ये है कि राजा दुष्यंत और शकुंतला के बेटे का नाम भरत था, जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा.

महाभारत के आदिपर्व में दूसरे अध्याय के श्लोक संख्या 96 में लिखा है-

शकुन्तलायां दुष्यन्ताद् भरतश्चापि जज्ञिवान

यस्य लोकेषु नाम्नेदं प्रथितं भारतं कुलम्

यानी कि परम तपस्वी महर्षि कण्व के आश्रम में दुष्यंत के द्वारा शकुंतला के गर्भ से भरत के जन्म की कथा इसी में है. उन्हीं महात्मा भरत के नाम से यह भरतवंश संसार में प्रसिद्ध हुआ, लेकिन अब इन कहानियों से इतर देखते हैं कि आखिर पुराणों में भारत का जिक्र किन संदर्भों में हुआ है और आखिर वो कौन-कौन से श्लोक हैं, जो भारत शब्द की व्याख्या करते हुए दिखते हैं.

विष्णु पुराण का एक श्लोक है, जो भारत की सीमाओं को प्रदर्शित करता है. विष्णु पुराण के दूसरे खंड के तीसरे अध्याय का पहला श्लोक कहता है-

उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।

वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ।।

यानि समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो देश है, उसे भारत कहते हैं और इस भूभाग में रहने वाले लोग इस देश की संतान भारती हैं.

विष्णु पुराण के ही दूसरे खंड के तीसरे अध्याय का 24वां श्लोक कहता है-

गायन्ति देवा: किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।

स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरूषा सुरत्वात्

यानी कि देवता निरंतर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्ग के बीच में बसे भारत में जन्म लिया है, वो पुरुष हम देवताओं से भी ज्यादा धन्य हैं.

कूर्मपुराण के पूर्वभाग के अध्याय 47 के श्लोक 21 में लिखा है-

भारते तु स्त्रियः पुंसो नानावर्णाः प्रकीर्तिताः।

नानादेवार्चने युक्ता नानाकर्माणि कुर्वते॥

यानी कि भारत के स्त्री और पुरुष अनेक वर्ण के बताए गए हैं. ये विविध प्रकार के देवताओं की आराधना में लगे रहते हैं और अनेक कर्मों को करते हैं. इसके अलावा महाभारत के भीष्म पर्व के नौवें अध्याय में धृतराष्ट्र और संजय के बीच की जो बातचीत है, उसका केंद्र भारत ही है.  इसके अलावा भी तमाम और पुराणों जैसे कि स्कंद पुराण, वायु पुराण, ब्रह्मांड पुराण, अग्नि पुराण और मार्कंडेय पुराण में भी भारत के नाम का जिक्र है. बाकी तो जब भी हिंदू धर्म से जुड़ा कोई भी अनुष्ठान होता है तो उस अनुष्ठान की शुरुआत से पहले अनुष्ठान से जुड़ा एक संकल्प करना पड़ता है.

उस संकल्प के श्लोक में भारत के तमाम नाम हैं, लेकिन उन नामों में हिंदुस्तान नहीं है.

श्लोक कहता है-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये पर्राधे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतर्वषे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते.

इसके बाद क्षेत्र का नाम, विक्रम संवत, महीने का नाम, पक्ष का नाम, तिथि और तमाम दूसरी चीजों का जिक्र किया जाता है, लेकिन इस संकल्प में देश के तमाम नामों जैसे जम्बूद्वीप और आर्यावर्त के साथ ही भारतवर्ष और भरतखंड भी समाहित है.

कुल मिलाकर तथ्य तो यही है कि सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथ पुराणों में भी भारत का जिक्र है और महाभारत में भी. इसलिए ये शब्द तो सनातन की ही उपज है. इसलिए इस शब्द की उत्पत्ति पर किसी को किसी तरह का शक-ओ-सुबहा नहीं ही होना चाहिए. बाकी तो भारत का नाम भारत ही रहेगा कि अंग्रेजी में वो इंडिया हो जाएगा।

- (लेखक भारतीय मजदुर संघ उ०प्र० के कोषाध्यक्ष हैं)