Tuesday, June 25, 2024

मोगा के बलिदानी स्वयंसेवक – जब आतंकियों के सामने डटे रहे स्वयंसेवक

 - राकेश सैन

राष्ट्र विरोधी शक्तियों का स्वाभाविक व साझा दुश्मन है – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. जब भी, जहाँ भी और किसी भी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधि होती है, तो संघ स्वत: सामने आ खड़ा होता है. पंजाब में आतंकवाद के दौर में भी संघ ने आतंकवाद का सामना किया. इसी का परिणाम रहा कि आज ही के दिन (25 जून) 1989 को मोगा में संघ की शाखा पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें 25 स्वयंसेवकों ने अपना बलिदान दिया.

आतंकियों ने संघ का ध्वज उतारने के लिए कहा था, पर स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से स्पष्ट मना कर दिया और उनको रोकने का यत्न किया, पर किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अन्धाधुन्ध फायरिंग करनी शुरू कर दी, जिसमें 25 जीवन बलिदान हुए. घटना ने न केवल पंजाब में हिन्दू-सिख एकता को नवजीवन दिया, बल्कि आतंकियों के मंसूबे नाकाम हुए.  क्योंकि घटना के अगले ही दिन उस जगह दोबारा शाखा लगी, जिससे आतंकियों के मंसूबों को पस्त किया.

25 जून, 1989 को (अब के शहीदी पार्क) प्रतिदिन की ही तरह शहर निवासी सैर के लिए आए थे. उस दिन भी जहाँ नागरिक पार्क में सैर का आनन्द ले रहे थे, वहीं दूसरी तरफ शाखा भी लगी हुई थी. इस दिन संघ का एकत्रीकरण था, और शहर की सभी शाखाएँ नेहरू पार्क में लगी थीं. अचानक पिछले गेट से भाग-दौड़ की आवाज सुनाई दी और पता चला कि वहाँ से आतंकी अन्दर घुस आए हैं, बावजूद इसके कोई भागा नहीं. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आतंकवादियों ने आते ही शाखा में स्वयंसेवकों से ध्वज उतारने के लिए कहा, लेकिन स्वयंसेवकों ने साफ मना कर दिया. इस पर आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग (लगभग 6.25 पर) करनी शुरू कर दी. हर तरफ भगदड़ मच गई. गोलियों की बरसात रुकने के बाद हर तरफ खून का तालाब दिखाई दे रहा था. घायल स्वयंसेवक तड़प रहे थे.

इस गोली कांड के दौरान 25 लोग बलिदान हो गए, वहीं शाखा में शामिल स्वयंसेवकों के साथ ही आसपास के करीब 31 लोग घायल भी हो गए थे. घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, लेकिन फिर भी स्वयंसेवकों ने हिम्मत नहीं छोड़ी और अगले ही दिन 26 जून, 1989 को फिर से शाखा लगाई. बाद में नेहरू पार्क का नाम बदल कर शहीदी पार्क कर दिया गया, जो आज देशभक्तों के लिए तीर्थस्थान है.

इस गोली कांड में बलिदानी होने वालों में लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानन्द, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओमप्रकाश और छिन्दर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पण्डित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह, कुलवन्त सिंह थे.

गोली काण्ड में प्रेम भूषण, राम लाल आहूजा, राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीनानाथ, हंसराज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी, रामप्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचन्द और कुछ अन्य स्वयंसेवक घायल हुए थे.

दंपति ने आतंकियों को ललकारा

गोलीकाण्ड के बाद छोटे गेट से भाग रहे आतंकवादियों को वहाँ मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओम प्रकाश और छिन्दर कौर ने बड़े जोश से ललकारा और पकड़ने की कोशिश की. लेकिन एके-47 से हुई गोलीबारी ने उनको भी मौत की नीन्द सुला दिया. साथ ही आतंकवादियों को पकड़ते समय पास के घरों के पास खेल रहे बच्चों में से डेढ़ साल की डिम्पल को भी मौत ने अपनी तरफ खींच लिया.

10 साल की उम्र में गोलीकांड आँखों से देखने वाले एक नौजवान नितिन जैन ने बताया कि उनका घर शहीदी पार्क के बिल्कुल सामने था. रविवार का दिन होने के कारण वह सुबह पार्क में चला गया. जैसे ही आतंकवादियों ने धावा बोलकर गोलियाँ चलानी शुरू कीं, वह धरती पर लेट गया और जब आतंकवादी भाग रहे थे तो सभी ने उनको पकड़ने की कोशिश की. नितिन भी इसको खेल समझ कर भागने लगा, तो एक व्यक्ति ने उसको पकड़ कर घर भेजा.

दंगा चाहने वाले भी हुए निराश

आतंकियों ने तो संघ पर हमला कर हिन्दू-सिक्ख एकता में दरार डालने का प्रयास किया था, साथ में कुछ दंगा सन्तोषियों ने भी कहना शुरू कर दिया कि सिक्खों ने अब लगाया है शेर की पूँछ को हाथ. संघ ने न तो देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने दिया और न ही शहर में. अगले ही दिन शाखा लगा कर आतंकियों व देशविरोधी ताकतों को संदेश दिया कि हिन्दू-सिक्ख एकता को कोई तोड़ नहीं सकता और न ही सिक्ख पंथ के नाम पर चलने वाला आतंकवाद पंजाबी एकता को तोड़ सकता है.

25 जून के अगले दिन संघ के स्वयंसेवक गीत गा रहे थे – कौन कहंदा हिन्दू-सिख वक्ख ने, ए भारत माँ दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात कौन कहता है कि हिन्दू-सिक्ख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की बाईं और दाईं आँख हैं.

अगली ही सुबह जब स्वयंसेवकों की ओर से शाखा का आयोजन किया गया तो उस दौरान बलिदानियों की याद को जीवित रखने के लिए शहीदी स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया. इसी कार्य के अधीन मोगा पीड़ित मदद और स्मारक समिति का भी गठन हुआ.

शहीदी स्मारक की नींव का पत्थर 9 जुलाई को माननीय भाऊराव देवरस द्वारा रखा गया. इस स्मारक का उद्घाटन 24 जून, 1990 को रज्जू भैया द्वारा किया गया. आज भी हर साल बलिदानियों की याद में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाता है.

#25जून #RSS4Nation

Saturday, June 22, 2024

व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर अग्रसर संघ - अनिल जी


प्रतापगढ़। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 98 वर्ष की यात्रा व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर निरन्तर अग्रसर है। संघ का स्वयंसेवक एवं कार्यकर्ता समाज जीवन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में न केवल भाव जागरण कर रहा है अपितु विभिन्न क्षेत्रों में समाज को नेतृत्व भी प्रदान कर रहा है। उक्त विचार मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, पूर्वी उ0प्र0 क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक श्रीमान अनिल जी ने व्यक्त किया। वे गुरुवार को सड़वा दुबान स्थित बाबू संत बख्श सिंह महाविद्यालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, काशी प्रान्त के 15 दिवसीय संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए आगे कहा कि आज भारत के लिए अत्यन्त गर्व का विषय है कि हम छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिन्दवी साम्राज्य दिनोत्सव का 350 वां वर्ष मना रहे हैं। भारत ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध पद्धति लोगों के कौतुहल का विषय बनी हुई है। इस बात का प्रमाण वियतनाम के राष्ट्रपति के संदेशवाहक के रुप में आये विदेश मंत्री द्वारा भारत आगमन पर सबसे पहले शिवाजी महाराज के समाधि पर जाने से मिलता है। जब पत्रकारों ने उनसे इस विषय में बात किया तो उन्होंने स्पष्ट किया कि वियतनाम जैसा छोटा देश अमेरिका जैसी बड़ी ताकत से शिवाजी महाराज की युद्ध पद्धति के प्रयोग द्वारा विजय प्राप्त कर सका। उन्होंने राष्ट्रपति का संदेश दिया कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी कब्र पर लिखा जाए कि मैं वीर शिवाजी का सैनिक हूं। इसी प्रकार विश्व में भारत की प्रभुता के विस्तार में भारतीय योग, आयुर्वेद तथा हमारी पर्यावरणीय दृष्टि विश्व के लिए प्रेरणा का श्रोत बन रही है।

मुख्य वक्ता ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 98 वर्ष की यात्रा व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर निरन्तर अग्रसर है। इस यात्रा को जीवन्त बनाने के लिए स्वयंसेवकों तथा कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम देश के विभिन्न स्थानों पर चलता है, जिसमें प्रतिवर्ष लगभग एक लाख तीस हजार स्वयंसेवक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इन प्रशिक्षण वर्गों में स्वयंसेवकों में कठोर साधना, अनुशासन, ईमानदारी, पारदर्शिता, समरसता, समाज और राष्ट्र को समय देने की प्रवृत्ति आदि अनेक अनिवार्य गुणों का प्रशिक्षण प्राप्त होता है। जिससे कार्यकर्ता अपने दैनिक संस्कारों में इन गुणों का प्रयोग करके समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने को उद्दत रहता है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम संघ कार्य को सर्वस्पर्शी, सर्वव्यापी और सर्वग्राही बनाने में भी सहयोगी होता है।

वास्तव में संघ गत 98 वर्षों से कुछ नया नहीं कर रहा है बल्कि हमारे सनातन मूल्य, विश्व कल्याण से जुड़े हमारे धर्म और संस्कृति के तत्वों को समाज में पुनः स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। एक तरह से कहा जाए तो संघ स्वामी विवेकानन्द जी के सपने को पूरा कर रहा है। जब उन्होंने कहा था कि समाज एवं राष्ट्र के लिए समर्पित निःस्वार्थ बुद्धि से ओत-प्रोत ऐसे कुछ सौ युवा हमारे पास हों तो हम भारत को पुनः विश्व गुरु बना सकते हैं तथा भारत माता को परम वैभव पर आसीन कर सकते हैं। संघ स्वामी जी के इस अधूरे सपने को पूरा करने के लिए निरन्तर क्रियाशील है तथा लाखों स्वयंसेवकों को तैयार कर रहा है। वर्तमान पर दृष्टि डाली जाए तो यह स्पष्ट हो रहा है कि संघ का स्वयंसेवक एवं कार्यकर्ता समाज जीवन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में न सिर्फ भाव जागरण कर रहा है अपितु विभिन्न क्षेत्रों में समाज को नेतृत्व भी प्रदान कर रहा है। संघ का यह स्पष्ट और सुदृढ़ विचार है कि समाज परिवर्तन तथा राष्ट्रनिर्माण हेतु स्व प्रेरणा से युक्त व्यक्तियों द्वारा ही परिवर्तन किया जा सकता है। स्वदेशी, स्वभाषा, समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, ग्राम विकास, गौसंरक्षण जैसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य विषयों पर जागृत समाज द्वारा ही कार्य किये जा सकते हैं। सरकार पर हमारी निर्भरता न्यूनतम होनी चाहिए क्योंकि वर्तमान लोकतंत्र में प्रत्येक सरकारों के कार्य निष्पादन की अपनी सीमितता होती है। अतः उपरोक्त विषयों पर जागरुक समाज अपने नागरिक कर्तव्यों का पालन करते हुए समाज की सज्जन शक्ति को साथ लेकर एक बड़ा परिवर्तन कर सकता है। संघ के इस प्रयास का प्रतिफल भी अब स्थान-स्थान पर प्रकट होने लगा है। धर्म, संस्कृति, समाजिक न्याय, सनातन मूल्यों को लेकर बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। आज का युवा, प्रौढ़ और वृद्ध अपने सनातन मूल्यों के प्रति जागरुक हो रहा है जिसका प्रमाण आज का धार्मिक पर्यटन भी है, जिसमें स्थानीय लोगों को प्रचुर मात्रा में रोजगार प्राप्त हो रहा है तथा सनातन मूल्यों की पुर्नस्थापना भी हो रही है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सरदार मंजीत सिंह जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा राष्ट्र निर्माण में इसके किये जा रहे कार्यां पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि व्यक्ति का अस्तित्व राष्ट्र से ही सुरक्षित रहता है। संघ जिस प्रकार से राष्ट्र निर्माण के लिए व्यक्ति निर्माण के ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों को चला रहा है जिससे निश्चित रूप से समाज और राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा।

कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा छत्रपति शिवाजी के चित्र पर पुष्पार्चन कर किया गया। शिक्षार्थियों द्वारा पूर्ण गणवेश में भगवा ध्वज की परिक्रमा करके मान वन्दना किया गया। तत्पश्चात दण्ड, नियुद्ध, पदविन्यास, सामूहिक समता, व्यायाम योग, आसन इत्यादि शारीरिक प्रधान कार्यक्रम हुए। पूर्ण गणवेश में घोष वादन कर रहे स्वयंसेवक आकर्षण का केन्द्र रहे। मंचस्थ अधिकारियों का परिचय वर्ग के सर्वाधिकारी डॉ.अविनाश पाथर्डीकर ने कराया। संघ शिक्षा वर्ग के वर्ग कार्यवाह संजीव जी द्वारा वर्ग प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। उन्होंने बताया कि काशी प्रांत के 27 जिलों से 313 शिक्षार्थी आए। सभी ने अपना शुल्क, मार्ग व्यय एवं गणवेश स्वयं अपने खर्च से पूरा किया। सामाजिक सहभाग एवं समरसता की दृष्टि से प्रतिदिन 2 गांवों के अलग अलग 220 परिवारों से रोटी का सहयोग प्राप्त किया गया। परिसर में स्वच्छता, चिकित्सालय, आकस्मिक एंबुलेंस आदि की भी उत्तम व्यवस्था की गई। आभार ज्ञापन वर्ग के सर्वव्यवस्था प्रमुख एवं प्रतापग़ढ़ विभाग कार्यवाह हरीश जी द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संयोजन मुख्य शिक्षक नितेश जी द्वारा किया गया। इस अवसर पर क्षेत्र प्रचारक प्रमुख राजेन्द्र जी, प्रान्त प्रचारक रमेश जी, प्रान्त प्रचारक प्रमुख रामचन्द्र जी, प्रान्त कार्यवाह मुरली पाल जी, बाबू सन्त बख्श सिंह एजुकेशनल ट्रस्ट के निदेशक डॉ.राकेश सिंह, ब्लाक प्रमुख प्रेम लता सिंह आदि उपस्थित रहे।






Friday, June 14, 2024

मुगलों की स्तुति के लिए पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई को इतिहास में अनदेखा किया गया

मुगलों और अन्य सुलतानों की स्तुति के लिए इतिहास की पुस्तकों में पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई को अनदेखा ही किया गया और इतिहास में उनके योगदान पर पर्दा डाल दिया गया. अब उनके 300वें जयंती वर्ष के माध्यम से अहिल्याबाई के असाधारण व्यक्तित्व को समझने का प्रयास ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

देवी अहिल्याबाई का व्यक्तित्व अपने आप में ही गत दशकों में गढ़े गए भ्रामक विमर्श को धराशायी करता है. वे स्त्री थी, विधवा थी और तथाकथित उच्च जाति वर्ग से नहीं थी. इसके बावजूद, गढ़ी गई तमाम धारणाओं के विपरित, स्वतन्त्र थीं, सुशिक्षित थीं, प्रशिक्षित थीं और कथित पुरुष वर्चस्व समाज में ससम्मान स्वीकृत भी थीं.

देवी अहिल्याबाई अत्यंत कुशल और योग्य प्रशासक थीं. उन्होंने तीस वर्ष के लम्बे कालखंड तक मालवा पर राज किया और सुशासन के नए प्रतिमान खड़े किए. माता अहिल्या के पति खांडेराव होलकर का निधन एक युद्ध के दौरान 1754 में हो गया था. इसके बाद उनके श्वसुर और होलकर साम्राज्य के निर्माता मल्हारराव होलकर ने उन्हें राजनीति, युद्धनीति और कूटनीति का प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया. 1766 में मल्हारराव होलकर की मृत्यु के पश्चात मालवा की सत्ता के सारे सूत्र देवी अहिल्याबाई के हाथों में आ गए. उस समय तक छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति सम्भाजी महाराज, बाजीराव पेशवा और अन्य मराठा वीरों के साहस और पराक्रम के बल पर मराठे देश की सबसे बड़ी सत्ता बन चुके थे. मुगल एक प्रतीकात्मक शक्ति भर बचे थे, पुर्तगाली परास्त हो चुके थे और अंग्रेज एक शक्ति बनने की प्रक्रिया के प्रारंभिक दौर में थे. मध्य और उत्तर भारत के एक बहुत बड़े क्षेत्र पर होलकरों का अधिपत्य था. जाहिर है उस क्षेत्र की कर वसूली के अधिकार भी होलकरों के पास थे.

राजमाता अहिल्या देवी ने इस शक्ति और संपन्नता का उपयोग राज्य के उत्थान और धर्म की पुनर्स्थापना में किया. वे स्वयं अत्यन्त सामान्य जीवन शैली से जीवन यापन करती रहीं. राजसी ठाठ-बाठ और भव्य राजप्रासाद के स्थान पर उन्होंने अपना धन विगत सदियों में मुगलों द्वारा नष्ट भ्रष्ट किए देश भर के सनातनी तीर्थ स्थलों के पुनर्निर्माण और तीर्थयात्रियों हेतु सुविधाएं विकसित करने में लगाया. चाहे काशी विश्वेश्वर मन्दिर का नवनिर्माण हो, या बद्रीनाथ धाम का सुवर्ण कलश हो, रामेश्वर हो या बिहार में गया तीर्थ हो, पश्चिम में द्वारिका हो पूर्व में जगन्नाथ पुरी हो, पूरे देश के महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों पर देवी अहिल्याबाई का विराट योगदान रहा.

इन निर्माण कार्यों का महत्व मात्र तीर्थ स्थलों का पुनरुद्धार भर नहीं था, इन कार्यों से सनातन हिन्दू समाज का आत्मसम्मान भी पुनर्जागृत हुआ. विगत कुछ सदियों से हिन्दू समाज अपने तीर्थों का अपमान और विध्वंस ही देख रहा था. उन्हीं तीर्थों का पुनरुद्धार युग के परिवर्तन का प्रतीक था. मन्दिर बचाने की जगह मन्दिर निर्माण समाज के लिए क्या अर्थ रखता होगा, यह समझने के लिए हमें उस युग की कल्पना करनी होगी. जब अपने स्वयं के घर में पूजा करना भी कठिन हो गया था.

देवी अहिल्याबाई ने तीर्थ स्थलों के पुनरुद्धार के अतिरिक्त आम जनता की सुविधा के लिए भी अनेक योजनाएं क्रियान्वित कीं. राजधानी महेश्वर में उन्होंने कपड़ा उद्योग को नई दिशा और नया आकार दिया और आज भी महेश्वरी साड़ियां शौक से खरीदी व पहनी जाती हैं. किसानों के लिए तालाब आदि निर्मित कर सिंचाई सुविधाओं का विकास किया तो धर्मशालाएं, कुएं, बावड़ियां और प्रशस्त मार्ग बनवाकर आम जनता के जीवन को भी सुगम बनाया.

राजमाता अहिल्याबाई के विराट व्यक्तित्व को एक लेख भर में बांधा ही नहीं जा सकता. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने घोषणा की है कि “धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे”. निश्चय ही अपने युग में माता अहिल्याबाई ही इस कार्य के लिए चुनी गई व्यक्तित्व थीं. माता अहिल्याबाई का जीवन उदाहरण है कि सत्ता और ऐश्वर्य मिलने पर उसका सदुपयोग कैसे किया जाता है.

- श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर

Friday, June 7, 2024

‘सक्षम’ का राष्ट्रीय अधिवेशन – दिव्यांगों के सशक्तिकरण पर होगी चर्चा; प्रेरक दिव्यांग व्यक्तित्व रहेंगे उपस्थित


पुणे. दिव्यांगों को सशक्तिकरण हेतु समर्पित राष्ट्रीय संगठन समदृष्टि, क्षमता विकास एवं अनुसन्धान मण्डल (‘सक्षम’) का त्रैवार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन पुणे में महर्षि कर्वे स्त्री शिक्षण संस्था में 8 9 जून को संपन्न होगा. संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोविन्द राज, स्वागताध्यक्ष  एडवोकेट एस. के. जैन तथा प. महाराष्ट्र प्रान्त अध्यक्ष एडवोकेट मुरलीधर कचरे ने अधिवेश के संबंध में जानकारी प्रदान की.

राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन  शनिवार, ८ जून २०२४ को सुबह 10 बजे होगा. इसमें मुख्य रूप से श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र अयोध्या के कोषाध्यक्ष पूज्य स्वामी गोविन्ददेव गिरि जी महाराज, महाराष्ट्र के उप मुख्यमन्त्री देवेन्द्र फडणवीस मुख्य अतिथि होंगे. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी मार्गदर्शन करेंगे. साथ ही इन्दौर के प्रसिद्ध अन्तरराष्ट्रीय तैराक पद्मश्री सत्येन्द्र सिंह लोहिया, महाबलेश्वर के प्रसिद्ध उद्योजक भावेश भाटिया, अभिनेत्री कु. गौरी गाडगिल, अहमदाबाद के प्रसिद्ध आईटी उद्योजक शिवम् पोरवाल प्रेरक दिव्यांग अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे.

सक्षम’ एक ऐसे वातावरण के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है, जहाँ दिव्यांगजन सामाजिक, व्यावहारिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक इत्यादि जीवन के विविध क्षेत्रों में समरसता का अनुभव करें. साथ ही स्वावलम्बन, आत्मसम्मान तथा गरिमा के साथ जीवनयापन कर सकें एवं राष्ट्र के पुनर्निमाण में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन कर सकें. इसी दृष्टिकोण को सामने रखकर राष्ट्रीय अधिवेशन में चर्चा की जाएगी. अधिवेशन में पूरे देश से ५०० जिलों से १५०० प्रतिनिधि उपस्थित रहेंगे.