Sunday, February 28, 2010


संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्रीपति शास्त्री का ह्दयाघात से निधन

पुणे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता, पूर्व अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख प्रो. श्रीपति शास्त्री का आज पुणे में ह्दयाघात के कारण निधन हो गया। वे 74 वर्ष के थे।
उनका अंतिम संस्कार पुणे स्थित वैकुंठ धाम में प्रातः 11 बजे होगा। शास्त्रीजी पिछले कुछ समय से मधुमेह से पीड़ित थे और हाल ही में बंगलुरू में चिकित्सा के बाद पुणे वापस लौटे थे। यहां शनिवार दोपहर उन्हें ह्दयाघात हुआ, इसके पहले कि वह अस्पताल पहुंच पाते, उनके शरीर ने जीवन का साथ छोड़ दिया।
मूलतः मैसूर के पास के एक गांव के रहने वाले श्रीपति शास्त्री अंग्रेजी और इतिहास विषय के जाने-माने विद्वान थे। उन्होंने अपनी परास्नातक तक की शिक्षा अंग्रेजी विषय में प्राप्त की लेकिन आगे चलकर वह स्वरुचि से इतिहास विषय की ओर प्रवृत्त हुए और उन्होंने इसमें अद्भुत विशेषज्ञता प्राप्त की। उन्होंने आगे चलकर इतिहास में डॉक्टेरट उपाधि प्राप्त की और अध्यापन जगत में प्रवेश किया। अनेक महाविद्यालयों में पठन-पाठने करते हुए कालांतर में वह पुणे विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में प्रोफेसर नियुक्त हुए।
हिंदी, मराठी, अंग्रेजी, कन्नड़, तमिल आदि अनेक भाषाओं के जानकार श्रीपति शास्त्री इतिहास समेत धर्म और दर्शन के गूढ़ रहस्यों को भी अत्यंत रोचक ढंग से व्याख्यायित करने में सिद्ध थे। उनका वक्तृत्व इतना प्रभावी और तर्कपूर्ण होता था कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई भी उनकी वक्तृत्वकला और विद्वत्ता के मुरीद बन गए। एक बार उन्होंने भाजपा सांसदों के मध्य उन्हें वक्तृत्व के लिए आमंत्रित भी किया। भारतीय इतिहास और राजनीति पर पूरी रोचकता के साथ घंटों बोलने में समर्थ विद्वान के रूप में वह सर्वत्र लोकप्रिय थे। विशेषकर देश के विभाजन के मार्मिक अध्याय पर उनका सारगर्भित, धाराप्रवाह विश्लेषण सहज ही श्रोताओं को उन्हें सुनते रहने के लिए बाध्य कर देता था।
श्रीपति शास्त्री को देशाटन के साथ प्रांत-प्रांत के युवकों से वार्तालाप करने की गहन अभिलाषा रहती थी। संघ के नियमित प्रवासक्रम में वह विद्यार्थियों से मिलने, उन्हें सुनने और समझने में सर्वाधिक रुचि लेते थे। संघकार्य के लिए वह आजीवन देश का प्रवास करते रहे। उन्होंने अनेकानेक प्रतिभाओं को चुपचाप गढ़ने का अनूठा लोकसंग्रही कार्य करते हुए अपनी जीवनसाधना पूर्ण की। विश्व हिंदू वॉयस की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।
ब्यूरो। 27 फरवरी,

प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख नहीं रहे

प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख नहीं रहे
प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख नहीं रहे

प्रख्यात समाजसेवी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक, पद्मविभूषण नानाजी देशमुख नहीं रहे। उनका चित्रकूट स्थित उनके निवास स्थान सियाराम कुटीर में निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे और पिछले काफी समय से आयुवार्धक्य के कारण अस्वस्थ चल रहे थे। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उन्होंने 27 फरवरी को सायंकाल लगभग 5 बजे अंतिम सांस ली।



नई दिल्ली में नानाजी के निधन का समाचार मिलते ही संघ एवं सहयोगी संगठनों के कार्यालयों में शोक छा गया। झण्डेवाला स्थित दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान भवन में दिल्ली के कार्यकर्ताओं ने उनके चित्र के समक्ष पुष्पांजलि देकर श्रद्धांजलि समर्पित की। बड़ी संख्या में लोग चित्रकूट रवाना भी हुए हैं जहां 28 फरवरी को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

भारत में लोकतंत्र को सफल करने और उसे आम आदमी के प्रति उत्तरदायी बनाने वाले अग्रणी नायकों में नानाजी को शुमार किया जाता रहा है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए चले आपात विरोधी आंदोलन के अग्रणी नेताओं में नानाजी एक थे। उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण को आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए राजी करने से लेकर उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संख के निकट लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। नानाजी को देखकर एक बार जेपी ने कहा था कि जिस संगठन ने देश को नानाजी जैसे रत्न दिए हैं वह संगठन कभी सांप्रदायिक और कट्टरवादी नहीं हो सकता।

वस्तुतः नानाजी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उस पीढ़ी के कार्यकर्ता थे जिन्हें संघ संस्थापक एवं आद्य सरसंघचालक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने अपने हाथों से दीक्षित किया था। 11 अक्तूबर, सन् 1916 में उनका जन्म महाराष्ट्र के परभणी जिले के कदोली नामक एक छोटे से कस्बे के एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनका बचपन घोर अभावों में बीता। यहां तक कि उनकी स्कूली शिक्षा भी ठीक से पूरी नहीं हो पाती थी। उन्होंने जीवन के प्रारंभिक दिनों में ट्यूशन पढ़ाने और ठेले पर फल-सब्जी बेचकर आजीविका कमाने का कार्य भी किया। देशभक्ति उनके जीवन में कूट-कूटकर भरी हुई थी। वे लोकमान्य तिलक के अनन्य भक्त थे। और बाद में डॉ. हेडगेवार ने उनके जीवन को नई दिशा दिखाई। सन् 1940 में जब डॉ. हेडगेवार का निधन हो गया, नानाजी ने अपना संपूर्ण जीवन संघ प्रचारक के रूप में देश को समर्पित करने का मन बना लिया।

वह प्रचारक बनकर कुछ दिन आगरा में रहे जहां उनकी मुलाकात पंडित दीनदयाल उपाध्याय से हुई। उसके बाद संघ कार्य के विस्तार के लिए उन्होंने पूर्वी उत्तरप्रदेश को चुना और गोरखपुर आए। यहां कई महीनों तक भटकने के बाद दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक विख्यात महानुभाव के घर घरेलु नौकर के रूप में उन्होंने काम शुरू किया। लेकिन चूंकि उनके मन और मिशन में संघ कार्य के विस्तार की ललक थी, अतएव वह खाली समय में संघ की शाखा का नियमित संचालन करने लगे। बच्चों में संस्कार निर्माण के इस अनूठे कार्य को देखकर लोग-बाग उनकी ओर खिंचे चले आए। धीरे-धीरे उन्होंने गोरखपुर समेत आस-पास के अनेक जनपदों में संघकार्य का विस्तार किया। शिक्षा के प्रति उनके मन में बचपन से ही तीव्र अनुराग था। यही कारण है कि उन्होंने गोरखपुर में नौनिहालों की शिक्षा के लिए देश के पहले सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की।

नानाजी देशमुख भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे। सन् 1975 में आपातकाल के समय गठित जनता पार्टी के वे संस्थापक महासचिव नियुक्त हुए। आपात विराधी आंदोलन में उन्होंने केंद्रीय भूमिका का निर्वहन किया। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित आपातकाल विरोधी रैली में उनके साहस को आज भी लोग बरबस याद करते हैं। तब बाबू लोकनायक जयप्रकाश नारायण को पुलिस लाठियों की बर्बरता से बचाने के लिए लाठियों के प्रहारों को अपने ऊपर झेल लेने का उत्कट एवं लोमहर्षक साहस प्रदर्शित कर उन्होंने जेपी और उनके समाजवादी समर्थकों को सदा के लिए अचंभित कर दिया था। वह आपात काल के बाद हुए आम चुनावों में गोण्डा से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्हें केबिनेट मंत्री बनने का प्रस्ताव मिला लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया और सन् 1978 में स्वप्रेरणा से राजनीति का पथ त्यागकर लोकसेवा के उदात्त पथ की यात्रा पर निकल पड़े।

सामाजिक सेवा एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरूजी की प्रेरणा से दीनदयाल शोध संस्थान नामक एक अद्वितीय संगठन की नींव डाली। उनके जीवन पर भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय और संपूर्ण क्रांति के दिग्दर्शक नेता बाबू लोकनायक जयप्रकाश नारायण का अद्भुत प्रभाव था। संभवतः इन दोनों महानुभावों के वैचारिक और प्रेरक जीवन का प्रभाव था कि उन्होंने इनके विचारों के अनुरूप स्वावलंबी ग्राम और स्वराज को असली मायनों में जिन्दा करने के लिए राजनीतिक पथ से विरत हो अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। इसके माध्यम से उन्होंने गोण्डा में बाबू लोकनायक जयप्रकाश नारायण एवं उनकी धर्मपत्नी प्रभावती के नाम पर जयप्रभा ग्राम को विकास के आदर्श के रुप में स्थापित किया। उन्होंने पुणे के बीड़ और कालांतर में चित्रकूट में समग्र विकास के अनूठे प्रकल्प हाथ में लिए और एक दशक के भीतर ही उन्हें रोजगार, कृषि, स्वास्थ्य, पेयजल, अवस्थापना सुविधाओं से सुसज्जित कर ग्रामीण विकास को नवीन आयाम दिए।

सन् 1991 में उन्होंने चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की। सन् 1999 में देश को समर्पित सेवाओं के लिए उन्हें पद्म विभूषण के सम्मान से नवाजा गया। देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति के रूप में नानाजी के चित्रकूट प्रकल्प को देखने के बाद सार्वजनिक रूप से उनके कार्य का चतुर्दिक बखान किया। नानाजी सन् 1999 में राज्यसभा में मनोनीत किए गए। सांसद पद का सदुपयोग करते हुए उन्होंने चित्रकूट में विकास कार्यों को नई बुलंदियों तक पहुंचाया। राज्यसभा के सदस्य के रूप में उन्होंने देश में फैले आकंठ भ्रष्टाचार और राजनीतिक अकर्मण्यता पर जमकर चोट की। वे सांसदों को मिलने वाले भत्तों और विशेष सुविधाओं के सख्त विरोधी थे और उनके कार्यकाल में जब सांसदो के वेतन-भत्तों में वृद्धि की गई, उन्होंने उसे लेने से इनकार कर उसे प्रधानमंत्री सहायता कोश में जमा करवाने का निर्देश दिया।

दिल्ली में दीनदयाल शोध संस्थान की छठवीं मंजिल पर ही उनका निवास स्थान था, जहां वह दिल्ली प्रवास के समय ठहरते थे।
चित्र विवरण- ऊपर से प्रथम- लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ नानाजी देशमुख, द्वितीय चित्र में-पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर, उद्योगपति रामनाथ गोयनका एवं डॉ. शांति पटेल के साथ 24 मार्च, 1979 को जेपी के स्वास्थ्य के लिए मुंबई में प्रार्थना करते हुए नानाजी देशमुख)

राकेश उपाध्याय, Panchjanya, New Delhi

श्री नानाजी देशमुख

नमस्ते,
हमें अत्यंत खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि रा.स्व.संघ के वरिष्ट चिन्तक एवं महान समाजसेवक श्री नानाजी देशमुख हमारे बीच नहीं रहे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत जी द्वारा भेजा गया शोक सन्देश आपके पास प्रकाशनार्थ भेजा जा रहा है.
नोट: स्वर्गीय श्री नानाजी देशमुख का पार्थिव शरीर कल (दिनांक 28 -2 -2010 ) शाम 3 बजे संघ कार्यालय केशव कुञ्ज झंडेवाला नई दिल्ली, में जनता के दर्शन हेतु रखा जायेगा.

Dr. SRIPATI SHASTRI of PUNE and Sri NANAJI DESHMUKH

Namaste,

We are sad to inform you that two veteran RSS leaders Dr. SRIPATI SHASTRI of PUNE and Sri NANAJI DESHMUKH of CHITRAKOOT passed away today.

Dr. SRIPATI SHASTRI was basically from HARIHARA of CHITRADURGA district in Karnataka. A gold medalist from Mysore University in history. He did his Ph. D thesis on "history of constitution of the world". Then he joined department of history at Pune University and worked as professor of history for two decades.

He was an active member of RSS from his student days. Dr. Shastry was a well known intellectual, speaker and thinker. He was a member of national executive committee. his lectures on "Partition of Bharat" and "1857 freedom movement" were highly inspiring. He visited several western countries and participated in many RSS functions. Unmarried, he dedicated much of his life for the cause of society. His famous book on "RSS on Christian activities" was a noted work.He was respected by all spectrum of the society irrespective of political and religious groups. His nature was acceptable to everyone and was a great teacher of history for thousands. RSS pays tributes to the great soul.


Jyotipunj

Ulhas Latkar (Publisher, Ameya Prakashan, Pune) Manohar Joshi, Ravindra Dani (Translator), Narendra Modi, Gopinath Munde, Dr. Sripati Shastri (extreme right)

Sri. Nanaji Deshmukh

Sri. Nanaji Deshmukh known for his work on rural development of villages in Madhyapradesh. His work based at Chitrakoot was model in the rural development field and regarded as "a complete laboratory of rural development". He was the founder of 'Deendayal Research institute' at Arogyadham parisar of Chitrakoot, Satna District, Madhyapradesh.

Chitrakoot Project is an integrated and holistic model for the development of rural India, based on the principles outlines in Pt. Deendayal Upadhyaya's Integral Humanism to create a society based on the complimentarity of the family, primary school and the local population. The Chitrakoot Project is a self-reliance campaign that was launched on 26th January 2002 and will cover 500 villages around Chitrakoot in 2 phases. The 80 villages taken up in the 1st phase will be self-reliant by 15th August 2005, and the remaining villages will achieve self-reliance by 26th January 2009. The Campaign has also been started in the villages covered by the Institute in Gonda and Beed districts. The self-reliance campaign covers all aspects of individual, family and societal life of the villagers. The key to the campaign is the concept of Samaj Shilpi Dampati (SSD), 'graduate' couples that lives within the villages itself, and are responsible for motivating and guiding a cluster of 5 villages.


Dr. Abdul Kalam on Nanaji Deshmukh and his works :

"I recently visited Chitrakoot in Madhya Pradesh, where I met Shri Nanaji Deshmukh, 90+ and his team belonging to the Deendayal Research Institute (DRI). The DRI is a unique institution developing and implementing a village development system, which is most suited for India. As a part of integrated rural development, villagers are engaged in water harvesting; effectively using it for cultivation of food grains, medicinal and aromatic and horticulture cultivation. They are transforming herbs into herbal products and marketing them. Apart from all these development activities, the institute is facilitating a cohesive conflict free society. As a result of this, eighty villages around Chitrakoot are almost litigation free. Villagers have unanimously decided that no dispute will find its way to court. Differences will be sorted out amicably in the village itself. The reason given by Nana Deshmukhji is that if the people fight among each other they will have no time for development. This is also true in the life of a nation in every political system. The work of the DRI has enabled the generation of employment for a large number of farmers in the Chitrakoot region. During my visit, I went to a small village called Patni where the villagers talked to me about the progress of their village and their problems. Many women said they have to send their children long distances for studying beyond the 10th Class. They requested up-gradation of the school to the plus 2 level. They also felt the need for a road which would connect multiple villages. The then Chief Minister readily agreed and announced in the meeting itself, that school upgradation and the provision of roads would be implemented immediately. I am sure that would add to the happiness of many village farmers. The DRI understands that people's power is very potent. Social advancement and prosperity are possible only by injecting the spirit of self-reliance and excellence in the younger generation. Using this principle the DRI has plans to develop a hundred clusters of villages having approximately five villages each around Chitrakoot, based on the experience of 80 villages in 16 clusters. All these have been accomplished through the DRIs "samajshilpi dampati" a new concept of counseling and intervention promoted by the DRI as a well conceived societal mission.

I would like to share a few thoughts with the Honorable Members of this Legislative Assembly on the topic "Missions for Madhya Pradesh's Prosperity" with reference to the core competence of Madhya Pradesh and national vision."

Visit www.chitrakoot.org and www.driindia.org

Tuesday, February 23, 2010

पुणे विस्फोट के बहाने

केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा देश के कुछ शहरों में शहरों में आतंकी हमले की आशंका जताने के बाद भी जिस प्रकार पुणे के एक बेकरी में विस्फोट हुआ उससे वस्तुस्थिति का अंदाजा होता है. इससे स्पष्ट है कि चेतावनी के बाद भी अब तक लोग पूरी तरह सजग नहीं हुए है तथा वे सीखते जरूर है पर हाथ जला लेने के बाद. यह स्थिति निश्चय ही बेहतर नहीं कही जा सकती पर सच्चाई यही है तथा इस पर राजनीतिक लाभ हानि के हिसाब से बयानबाजी करने की बजाए व्यवस्था को और चुस्त एवं प्रभावशाली बनाए जाने पर बल दिया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुद इसे काफी गंभीरता से लिया है तथा मामले की तेजी से जांच के लिए केन्द्र एवं महाराष्ट्र सरकार को समन्वित तथा कारगर कार्रवाई का निर्देश दिया है. जबकि विपक्षी पार्टियां खासकर भाजपा एवं वामदलों ने सरकारी तंत्र की खुफिया जानकारी जुटाने की क्षमता पर सवाल खड़ा किया है. जाहिर है विपक्ष इसके पीछे खुफिया तंत्र की नाकामी मानता है जबकि केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने दो टूक कहा कि पूणे विस्फोट के पीछे खुफिया नाकामी नहीं है. वैसे कुछ लोग इसके लिए राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं. उनकी नजर में राज्य सरकार ने खुफिया रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया जबकि सरकार का कहना है कि संभावित निशानों पर सुरक्षा उपाय किए गए थे जाहिर है यहां जो कुछ हुआ वह धोखे से रखे गए बम के कारण हुआ. दरअसल सुरक्षा व्यवस्था की अपनी सीमा है. महत्वपूर्ण संबंधित ठिकानों एवं व्यक्तियों की सुरक्षा तो संभव है पर हर समय, हर जगह सुरक्षाबल की व्यवस्था संभव नहीं है. यानि सुरक्षा मामले में सुरक्षाबलों के साथ ही आम जनता की अहम भूमिका है. इसमें सजगता एक अहम मामला है. यदि सभी लोग इस खतरे के प्रति सजग हो तो स्थिति को बहुत हद तक काबू में लाया जा सकता है. लावारिश वस्तुओं को नहीं छूना तथा इसकी सूचना जांच एजेंसियों को देना ऐसी चीज है जिसका पालन हर हाल में किया जाना चाहिए. खासकर जब वह क्षेत्र किसी कारण से खास हो तथा आतंकियों के लिए आसान टारगेट हो. यदि खुफिया सूचना के हिसाब से वह क्षेत्र संवेदनशील हो ऐसे में जिम्मेवारी और बढ़ जाती है. पर दुर्भाग्यवश पूणे में ऐसा नहीं हुआ. मुंबई के कोरेगांव पार्क स्थित वह बेकरी यहूदी प्रार्थना सभा एवं ओशो आश्रम के कारण भी निशाने पर था. आतंकवादियों के निशाने पर होने के कारण पुलिस ने उस क्षेत्र में जांच की थी. जाहिर है वस्तुस्थिति को भांप आतंकवादियों ने प्रमुख केन्द्र की बजाए बेकरी जैसा आसान लक्ष्य चुना जहां लोग मनपसंद चीजें खाने आते है तथा भीड़-भाड़ के समय लोगों का ध्यान अन्य चीजों की ओर नहीं जाता. आतंकियों का यह अनुमान सही साबित हुआ. पुलिस बड़े लक्ष्य पर निगाह गड़ाए रही तथा आतंकवादियों ने अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण लक्ष्य को अपना निशान बना लिया. ठीक है कि इससे वे किसी बड़ा हादसा का अंजाम देने में कामयाब नहीं हुए पर फिर भी सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगाकर उन्होंने यह दिखा दिया कि वे इसमें सक्षम हैं. जाहिर है इससे अब सुरक्षा व्यवस्था की सारी रणनीति की नए सिरे से समीक्षा करनी होगी तथा व्यवस्था को और चुस्त करना होगा. इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि हर नागरिक इस मामले में जागरूकता का परिचय दे तथा सजग रहे. विपक्ष अपनी धरदार व प्रभावशाली भूमिका निभाए इससे भला किसी को क्या एतराज हो सकता है. बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह जरूरी भी है. सरकार की कमजोरियों की आलोचना गलत नहीं कही जा सकती पर यह भी जरूरी है कि वह महज रस्मअदायगी नहीं हो तथा महज आलोचना के लिए आलोचना नहीं हो. इसके कारण भारत पाकवात्र्ता को निशने पर लेना सही नहीं होगा.भाजपा भारत-पाक वार्ता शुरू किए जाने के विरूद्ध है तथा उसने इस मुद्दे पर खुलकर सरकार की आलोचना की है. निश्चत ही यह काफी संवेदनशील मामला है. सरकार इस मुद्दे पर अडिग रही है कि जब तक पाक भारत विरोधी आतंकवादियों के विरूद्ध समुचित कार्रवाई नहीं करता उसके साथ वार्ता बहाल नहीं की जानी चाहिए. यह गलत भी नहीं है पर इस महाद्वीप में आतंकवाद की बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए 'डेडलॉकÓ की स्थिति भी बुद्धिमत्ता पूर्ण नहीं मानी जा सकती. चुप बैठकर उस दिन का इंतजार नहीं किया जा सकता जब पाकिस्तान खुद की लगाई आतंकी आग में जलकर खाक हो जायेगा. पाकिस्तान का पतन भारत के लिए कोई राहत की बात नहीं होगी क्योंकि अफगानिस्तान का अंजाम हम सबके सामने है. अत: महज चुप्पी खुद में समस्या का समाधान नहीं है. सारे बिन्दुओं को ध्यान में रखकर ही बात कना बेहतर होगा. ऐसे मुद्दे पर राजनीति करना तो किसी भी तरह से अच्छा नहीं होगा.आलेख - चदंन कुमार, जमशेदपुर