Friday, June 15, 2012

सुलतानपुर में संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष का समापन


आंतरिक व बाह्य संकटों से घिरा है भारत: कन्नन 

 सुलतानपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह के.सी. कन्नन ने कहा कि आज देश आंतरिक एवं बाहरी संकटों से घिरा हुआ है। इसके लिए सबकुछ सरकार ही करें, ऐसा सोच कर बैठे रहना हमारा काम नहीं है। समाज में परिवर्तन की जरूरत है। देश चारों तरफ की सीमाओं पर दुश्मनों से घिरा हुआ है। जिसमें चीन सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है। सीमाओं पर दुश्मन तो देश के अन्दर भ्रष्टाचार व घोटाले का घुन लगा हुआ है। तमाम संकटों में संघ ने राष्ट्र रक्षा के लिए काम किया है और आगे भी करता रहेगा।  
उक्त बातें उन्होंने सुलतानपुर नगर के विवेकानन्दनगर स्थित सरस्वती विद्या मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय विवेकानन्दनगर परिसर में पिछले 21 मई से चल रहे काशी प्रान्त के प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का आज समापन था। इस अवसर पर आयोजित समारोह में श्री कन्नन ने स्पष्ट रूप से कहा कि चीन भारत के खिलाफ लड़ने का मौका तलाश रहा है। देश की सीमा कराची पोस्ट व दक्षिण सीमा पर आना शुरू हो गया है। चीन कई बार भारत की सीमा में घुस चुका है। भारत सरकार कुछ भी नकी करती है। पाकिस्तान जन्मजात दुश्मन है। अब तालिबान के पास भी अणुबम हो गया है। जिसका खतरा सबसे ज्यादा भारत के लिए है। ऐसी परिस्थिति में सबकुछ सरकार पर छोड़ देना ठीक नहीं है। हम देश के जिम्मेदार नागरिकों को जागरूक होकर आगे आना होगा। 
उन्होंने कहा कि देश के अन्तर की स्थिति भी कम नहीं है। देश में भ्रष्टाचार व घोटाला अपने चरम पर है। जिसके लिए आन्दोलन भी चल रहे है किन्तु यह सब कानून बनाने से खत्म होने वाला नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वह कानून बनाने के विरोधी नहीं हैं किन्तु देश मंे कानून की कमी नहीं है। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लोगों में मानसिक परिवर्तन की जरूरत है। इसके लिए शिक्षा में सबसे ज्यादा सुधार की जरूरत है। आज भी हम पाश्चात्य संस्कृति के पीछे चल रहे हैं। हमें अपने देश के त्यागी व गौरवपूर्ण गाथाओं को शिक्षा में लाना होगा। चुनावी प्रक्रिया पर भी प्रतिक्रिया करते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव में भी सुधार की जरूरत है। आज सांसद व विधायक करोड़ों खर्च करके जनप्रतिनिधि बन रहे हैं इसी कारण वह सत्ता में आते ही अपना हिसाब बराबर करने में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे है। उन्हीं के कारण उपर से नीचे तक भ्रष्टाचार है। उन्होंने जम्मू कश्मीर की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त करते हुए नागरिकों को झकझोरने का प्रयास किया। 
श्री कन्नन ने कहा कि संघ का एकमात्र उद्देश्य भारत को परमवैभव तक ले जाना है। इसलिए सम्पूर्ण हिन्दू समाज सका संगठन करना है। संघ एक सोसियो साइकोथेरिपी है। संघ सुधारवादी, राष्ट्रवादी संगठन है। केरल के एक कट्टर माक्र्सवादी प्रोफेसर ने सुधार के लिए अपने बेटे को भेजा जहाॅं वह सुधार गया। शाखा ने मलेशिया में होनी वाली आत्महत्या समाप्त होगी। यह बड़ा परिवर्तन मलेशिया ने डब्ल्यू एच ओ को बताया। भारत में संघ का सबसे बड़ा टेªड यूनियन भारतीय किसान संघ है। 
समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात चिकित्सक डाॅ0 आर0ए0 वर्मा ने कहा कि आज देश की सीमाएं जिस तरह से दुश्मनों से घिरी पड़ी हैं, उसमें हमें ऐसे नवजवानों की जरूरत है। जो राष्ट्रसेवा के लिए काम कर सके। 
इसके पहले वर्गाधिकारी नरेन्द्र बहादुर सिंह ने वर्ग का वृत्त प्रस्तुत करते हुए बताया कि प्रथम वर्ष का संघ शिक्षा वर्ग देश के कुल 41 प्रान्तों में प्रान्त सह नियोजित है और काशी प्रान्त के कुल 24 जिलों (12 शासकीय जिलों) से कुल 446 स्वयंसेवक सुदूर दक्षिण के वनांचल (सोनभद्र) से लेकर सुलतानपुर तथा कौशाम्बी से लेकर गाजीपुर तक के स्वयंसेवक अपने खर्च पर पूर्ण गणवेश की तैयारी कर, अपना-अपना यात्रा एवं अन्य शुल्क वहन कर प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह प्रशिक्षण वर्ग 21 मई से प्रारम्भ होकर 10 जून 2012 को पूर्ण हुआ। इन तरुण स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देने हेतु कुल 50 शिक्षक एवं लगभग 50 व्यवस्था के अन्य लोग दिन-रात अपनी सेवायें प्रदान किये। जिसमें 406 विद्यार्थी तथा 40 गैर विद्यार्थी भाग लिये। स्वयंसेवकों की दिनचर्या प्रातः 4.00 बजे जागरण से प्रारम्भ होकर रात्रि 10.00 बजे दीप विसर्जन के साथ पूर्ण होती है। इस अत्यधिक व्यस्त दिनचर्या में योजनानुसार 2.30 घण्टे प्रातः एवं 1.30 घण्टे सायं, कुल 4 घण्टे का विभिन्न शारीरिक कार्यक्रम जिसमें योग, दण्डयोग, समता एवं आसन आदि का प्रशिक्षण देकर चुस्त, दुरूस्त, अनुशासित कार्यकर्ता का निर्माण किया जा रहा है। शारीरिक के साथ-साथ स्वयंसेवकों के अन्दर राष्ट्रभाव को पुष्ट करने हेतु विभिन्न बौद्धिक कार्यक्रम जैसे 1 घण्टे का बौद्धिक, चर्चा, प्रवचन आदि होता है। इन सम्पूर्ण कार्यक्रमों को स्वयंसेवकों ने बडे़ ही मनोयोग के साथ आत्मसात किया, कुछ का प्रदर्शन आप स्वयं देख सकते हैं। 
कार्यक्रम में प्रान्त संघचालक विश्वनाथ लाल निगम, प्रान्त प्रचारक अभय जी, प्रान्त व्यवस्था प्रमुख जय प्रकाश, प्रान्त शारीरिक प्रमुख रत्नाकर, सह प्रान्त कार्यवाह बांकेलाल, वर्ग कार्यवाह डाॅ0 रमाशंकर पाण्डेय, वर्ग बौद्धिक प्रमुख डाॅ0 सत्य पाल तिवारी, विभाग प्रचारक धनंजय, मनोज, सुभाष सहित संघ के तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। 
प्रस्तुति: सत्य प्रकाश गुप्ता, सुलतानपुर।

देश की पहचान हिंदुत्व :बाल कृष्ण त्रिपाठी

                                                               प्रेस विज्ञप्ति 
वाराणसी 09 जून (वि.सं.के.) | तुलसीपुर  स्थित निवेदिता शिक्षा सदन के परिसर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्वावधान में २० दिवसीय संघ शिक्षा वर्ग (विशेष) प्रथम एवं द्वितीय वर्ष के समापन अवसर पर मुख्य वक्ता संघ के अखिल भारतीय सह-व्यस्था प्रमुख बाल कृष्ण त्रिपाठी ने कहा कि  देश की पहचान  हिंदुत्व से है| संघ समाजजीवन में प्रत्येक वस्तु समाज के लिये संचित करता है | संस्थापक  डॉक्टर हेडगवार ने  यह माना था कि इस देश की पहचान हिन्दुओं से है और यह शब्द उपासना वाचक न होकर भौगोलिक एवं सांस्कृतिक है |  

उन्होंने कहा कि भारत माता कभी भी गुलाम न हो इसलिए स्वयं सेवक सदा सतर्क रहता है इस कार्य के लिये युवा, वृद्ध, सभी को संघ में प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे की वो राष्ट्र के लिये तत्पर तथा सतर्क रहे इन शिक्षा वर्गों में गर्मी,जाड़ा की चिता त्याग कर स्वयं सेवक भारत माता के लिये कार्य करता है    

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आपदा आदि में  स्वयं सेवक पीड़ितों की सहायता करता है| संघ ने पाकिस्तानी  हमले का दौर में सेना का हरसम्भव मदद किया संघ समाज में एकता और पारिवारिता का भाव बढ़ाता है| इसी भाव के कारण राष्ट्र पाकिस्तान के खिलाफ विजयी हुआ| उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में समाज में विश्वास की कमी हुई है इसलिए समाज में विश्वास बढ़ाना जरूरी है और विजय के लिये शक्ति संगठन जरूरी है| 
समापन समारोह के अध्यक्ष राजर्षिटंडन विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के संघचालक प्रोफ़ेसर देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि यह जीवन का पहला अवसर है, जब इस प्रकार के कार्यक्रम में अध्यक्षीय भाषण का मौका मिला| इस शिक्षा वर्ग में अपने व्यय पर आये स्वयं सेवक आज सबका सामने एक उदाहरण हैं |

समापन समारोह में प्रतिभागियों द्वारा पथ संचलन, दंड प्रहार,योग, प्राणायाम,आसन.सूर्य नमस्कार आदि का प्रदर्शन किया गया| तीन सप्ताह के इस विशेष संघ शिक्षा वर्ग में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर सहित भारत के आठ राज्यों एवं नेपाल राष्ट्र के 423 शिक्षार्थियों ने भाग लिया| 

मंच पर विशेष शिक्षा वर्ग के सर्वाधिकारी श्रीकृष्ण सिंघल एवं वर्गाधिकारी श्री मालेंदु प्रताप उपस्थित थे| मंचासीन अधिकारियों का परिचय वर्ग के कार्यवाहक लालराम ने कराया| 

इस  अवसर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र के कार्यवाहक श्री राम दुलार वर्मा जी, सुभाष वोहरा,  क्षेत्रीय धर्मजागरण प्रमुख रामलखन जी, प्रान्त कार्यवाहक श्री विरेन्द्र जी आदि उपस्थित थे|  समापन समारोह का संचालन गेशव गोपाल जी एवं आभार ज्ञापन दीनदयाल जी ने किया| 

विश्व संवाद केंद्र काशी

सरकारी वार्ताकारों द्वारा तुष्टीकरण के आधार पर तैयार की गई रपट का अर्थ है एक और पाकिस्तान


नरेन्द्र सहगल

जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के दायरे से बाहर करने (1952) तुष्टीकरण की प्रतीक और अलगाववाद की जनक अस्थाई धारा 370 को विशेष कहने, भारतीय सुरक्षा बलों की वफादारी पर प्रश्नचिन्ह लगाने, पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर एक पक्ष बनाने, पाक अधिकृत कश्मीर को पाक प्रशासित मानने और प्रदेश के 80 प्रतिशत देशभक्त नागरिकों की अनदेखी करके मात्र 20 प्रतिशत पृथकतावादियों की ख्वाइशों/ जज्बातों की कदर करने जैसी सिफारिशें किसी देशद्रोह से कम नहीं हैं।

लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त वार्ताकारों ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए एक रपट तैयार की है। यदि मुस्लिम तुष्टीकरण में डूबी सरकार ने उसे मान लिया तो देश के दूसरे विभाजन की नींव तैयार हो जाएगी। यह रपट जम्मू-कश्मीर की अस्सी प्रतिशत जनसंख्या की इच्छाओं, जरूरतों की अनदेखी करके मात्र बीस प्रतिशत संदिग्ध लोगों की भारत विरोधी मांगों के आधार पर बनाई गई है। तथाकथित प्रगतिशील वार्ताकारों द्वारा प्रस्तुत यह रपट श्स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्र का श्रोड मैपश् है।
रपट का आधार अलगाववाद
1952-53 में जम्मू केन्द्रित देशव्यापी प्रजा परिषद महाआंदोलन के झंडे तले डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाए रखने के लिए अपना बलिदान देकर जो जमीन तैयार की थी उसी जमीन को बंजर बनाने के लिए अलगाववादी मनोवृत्ति वाले वार्ताकारों ने यह रपट लिख दी है। इस रपट के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति, संसद, संविधान, राष्ट्र ध्वज, सेना के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिए गए हैं। देश के संवैधानिक संघीय ढांचे अर्थात एक विधान, एक निशान और एक प्रधान की मूल भावना को चुनौती दी गई है।
आईएसआई के एक एजेंट गुलाम नबी फाई के हमदर्द दोस्त दिलीप पडगांवकर, वामपंथी चिंतक एम. एम. अंसारी और मैकाले परंपरा की शिक्षाविद् राधा कुमार ने अपनी रपट में जो सिफारिशें की हैं वे सभी कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक दलों, अलगाववादी संगठनों, आतंकी गुटों और कट्टरपंथी मजहबी जमातों द्वारा पिछले 64 वर्षों से उठाई जा रहीं भारत विरोधी मांगें और सरकार, सेना विरोधी लगाए जा रहे नारे हैं। स्वायत्तता, स्वशासन, आजादी, पाकिस्तान में विलय, भारतीय सेना की वापसी, सुरक्षा बलों के विशेषाधिकारों की समाप्ति, जेलों में बंद आतंकियों की रिहाई, पाकिस्तान गए कश्मीरी आतंकी युवकों की घर वापसी, अनियंत्रित नियंत्रण रेखा और जम्मू-कश्मीर एक विवादित राज्य इत्यादि सभी श्अलगाववादी जज्बातों, ख्वाइशों को इस रपट का आधार बनाया गया है।
तुष्टीकरण की पराकाष्ठा
रपट के अनुसार एक संवैधानिक समिति का गठन होगा जो 1953 के पहले की स्थिति बहाल करेगी। 1952 के बाद भारतीय संसद द्वारा बनाए गए एवं जम्मू-कश्मीर में लागू सभी कानूनों को वापस लिया जाएगा जो धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दी गई स्वायत्तता का हनन करते हैं। इस सीमावर्ती प्रदेश के विशेष दर्जे को स्थाई बनाए रखने के लिए धारा 370 के साथ जुड़े अस्थाई शब्द को विशेष शब्द में बदल दिया जाएगा, ताकि स्वायत्तता कायम रह सके।
रपट में स्पष्ट कहा गया है कि प्रदेश में तैनात भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बलों की टुकडि़यां कम की जाएं और उनके विशेषाधिकारों को समाप्त किया जाए। वार्ताकार कहते हैं कि राज्य सरकार के मनपसंद का राज्यपाल प्रदेश में होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर में कार्यरत अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की संख्या पहले घटाई जाए और बाद में समाप्त कर दी जाए। जिन्होंने पहली बार अपराध किया है उनके केस (एफ आई आर) रद्द किए जाएं। अर्थात् एक-दो विस्फोट माफ हों, भले ही उनमें सौ से ज्यादा बेगुनाह मारे गए हों।
पाकिस्तान का समर्थन
रपट की यह भी एक सिफारिश है कि कश्मीर से संबंधित किसी भी बातचीत में पाकिस्तान, आतंकी कमांडरों और अलगाववादी नेताओं को भी शामिल किया जाए। रपट में पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को पाक प्रशासित जम्मू-कश्मीर (पीएजेके) कहा गया है। वार्ताकारों के अनुसार कश्मीर विषय में पाकिस्तान भी एक पार्टी है और पाकिस्तान ने दो तिहाई कश्मीर पर जबरन अधिकार नहीं किया, बल्कि पाकिस्तान का वहां शासन है, जो वास्तविकता है।
ध्यान से देखें तो स्पष्ट होगा कि वार्ताकारों ने पूरे जम्मू-कश्मीर को श्आजाद मुल्क की मान्यता दे दी है। इसी मान्यता के मद्देनजर रपट में कहा गया है कि पीएजेके समेत पूरे जम्मू-कश्मीर को एक इकाई माना जाए। इसी एक सिफारिश में सारे के सारे जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले करने के खतरनाक इरादे की गंध आती है। पाकिस्तान के जबरन कब्जे वाले कश्मीर को पाक प्रशासित जम्मू-कश्मीर मानकर वार्ताकारों ने भारतीय संसद के उस सर्वसम्मत प्रस्ताव को भी अमान्य कर दिया है जिसमें कहा गया था कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न भाग है। 1994 में पारित इस प्रस्ताव में पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का संकल्प भी दुहराया गया था।
राष्ट्रद्रोह की झलक
कश्मीर विषय पर पाकिस्तान को भी एक पक्ष मानकर वार्ताकारों ने जहां जम्मू-कश्मीर में सक्रिय देशद्रोही अलगाववादियों के आगे घुटने टेके हैं, वहीं उन्होंने पाकिस्तान द्वारा कश्मीर को हड़पने के लिए 1947, 1965, 1972 और 1999 में भारत पर किए गए हमलों को भी भुलाकर पाकिस्तान के सब गुनाह माफ कर दिए हैं। भारत विभाजन की वस्तुस्थिति से पूर्णतया अनभिज्ञ इन तीनों वार्ताकारों ने महाराजा हरिसिंह द्वारा 26 अक्तूबर, 1947 को सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर का भारत में किया गया विलय, शेख अब्दुल्ला के देशद्रोह को विफल करने वाला प्रजा परिषद् का आंदोलन, 1972 में हुआ भारत-पाक शिमला समझौता, 1975 में हुआ इन्दिरा-शेख समझौता और 1994 में पारित भारतीय संसद का प्रस्ताव इत्यादि सब कुछ ठुकराकर जो रपट पेश की है वह राष्ट्रद्रोह का जीता-जागता दस्तावेज है।
केन्द्र सरकार के इशारे और सहायता से लिख दी गई 123 पृष्ठों की इस रपट में केवल अलगाववादियों की मंशा, केन्द्र सरकार का एकतरफा दृष्टिकोण और पाकिस्तान के जन्मजात इरादों की चिंता की गई है। जो लोग भारत के राष्ट्र ध्वज को जलाते हैं, संविधान फाड़ते हैं और सुरक्षा बलों पर हमला करते हैं, उनकी जी-हुजूरी की गई है। यह रपट उन लोगों का घोर अपमान है, जो आज तक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को थामकर भारत माता की जय के उद्घोष करते हुए जम्मू-कश्मीर के लिए जूझते रहे, मरते रहे।
कांग्रेस और एनसी की मिलीभगत
वार्ताकारों ने जम्मू-कश्मीर की आम जनता के अनेक प्रतिनिधिमंडलों से वार्ता करने का नाटक तो जरूर किया है, परंतु महत्व उन्हीं लोगों को दिया है जो भारत के संविधान की सौगंध खाकर सत्ता पर काबिज हैं (कांग्रेस के समर्थन से) और भारत के संविधान और संसद को ही धता बताकर स्वायत्तता की पुरजोर मांग कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अनेक बार अपने दल नेशनल कांफ्रेंस (एन.सी.) के राजनीतिक एजेंडे श्पूर्ण स्वायत्तता की मांग की है। स्वायत्तता अर्थात् 1953 के पूर्व की राजनीतिक एवं संवैधानिक व्यवस्था। इस रपट से पता चलता है कि इसे केन्द्र की कांग्रेसी सरकार, नेशनल कांफ्रेंस, आईएसआई के एजेंटों और तीनों वार्ताकारों की मिलीभगत से घढ़ा गया है।
अगर यह मिलीभगत न होती तो जम्मू-कश्मीर की 80 प्रतिशत भारत-भक्त जनता की जरूरतों और अधिकारों को नजरअंदाज न किया जाता। देश विभाजन के समय पाकिस्तान, पीओके से आए लाखों लोगों की नागरिकता का लटकता मुद्दा, तीन- चार युद्धों में शरणार्थी बने सीमांत क्षेत्रों के देशभक्त नागरिकों का पुनर्वास, जम्मू और लद्दाख के लोगों के साथ हो रहा घोर पक्षपात, उनके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक अधिकारों का हनन, पूरे प्रदेश में व्याप्त आतंकवाद, कश्मीर घाटी से उजाड़ दिए गए चार लाख कश्मीरी हिन्दुओं की सम्मानजनक एवं सुरक्षित घरवापसी और प्रांत के लोगों की अनेकविध जातिगत कठिनाइयां इत्यादि किसी भी समस्या का समाधान नहीं बताया इन सरकारी वार्ताकारों ने।
फसाद की जड़ धारा 370
इसे देश और जनता का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि पिछले छह दशकों के अनुभवों के बावजूद भी अधिकांश राजनीतिक दलों को अभी तक यही समझ में नहीं आया कि एक विशेष मजहबी समूह के बहुमत के आगे झुककर जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के तहत दिया गया विशेष दर्जा और अपना अलग प्रांतीय संविधान ही वास्तव में कश्मीर की वर्तमान समस्या की जड़ है। संविधान की इसी अस्थाई धारा 370 को वार्ताकारों ने अब विशेष धारा बनाकर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण स्वायत्तता देने की सिफारिश की है। क्या यह भारत द्वारा मान्य चार सिद्धांतों, राजनीतिक व्यवस्थाओं-पंथ निरपेक्षता, एक राष्ट्रीयता, संघीय ढांचा और लोकतंत्र का उल्लंघन एवं अपमान नहीं है?
यह एक सच्चाई है कि भारतीय संविधान की धारा 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान ने कश्मीर घाटी के अधिकांश मुस्लिम युवकों को भारत की मुख्य राष्ट्रीय धारा से जुड़ने नहीं दिया। प्रादेशिक संविधान की आड़ लेकर जम्मू-कश्मीर के सभी कट्टरपंथी दल और कश्मीर केन्द्रित सरकारें भारत सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय महत्व के प्रकल्पों और योजनाओं को स्वीकार नहीं करते। भारत की संसद में पारित पूजा स्थल विधेयक, दल बदल कानून और सरकारी जन्म नियंत्रण कानून को जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जा सकता।
देशघातक और अव्यवहारिक सिफारिश
सरकारी वार्ताकारों ने आतंकग्रस्त प्रदेश से सेना की वापसी और अर्धसैनिक सुरक्षा बलों के उन विशेषाधिकारों को समाप्त करने की सिफारिश की है जिनके बिना आधुनिक हथियारों से सुसज्जित प्रशिक्षित आतंकियों का न तो सफाया किया जा सकता है और न ही सामना। आतंकी अड्डों पर छापा मारने, गोली चलाने एवं आतंकियों को गिरफ्तार करने के लिए सामूहिक कार्रवाई के अधिकारों के बिना सुरक्षा बल स्थानीय पुलिस के अधीन हो जाएंगे जिसमें पाक समर्थक तत्वों की भरमार है। वैसे भी जम्मू-कश्मीर पुलिस इतनी सक्षम और प्रशिक्षित नहीं है जो पाकिस्तानी घुसपैठियों से निपट सके।
अलगाववादी, आतंकी संगठन तो चाहते हैं कि भारतीय सुरक्षा बलों को कानून के तहत इतना निर्बल बना दिया जाए कि वे मुजाहिद्दीनों (स्वतंत्रता सेनानियों) के आगे एक तरह से समर्पण कर दें। विशेषाधिकारों की समाप्ति पर आतंकियों के साथ लड़ते हुए शहीद होने वाले सुरक्षा जवान के परिवार को उस आर्थिक मदद से भी वंचित होना पड़ेगा जो सीमा पर युद्ध के समय शहीद होने वाले सैनिक को मिलती है।
क्या आजाद मुल्क बनेगा कश्मीर?
1953 से पूर्व की राज्य व्यवस्था की सिफारिश करना तो सीधे तौर पर देशद्रोह की श्रेणी में आता है। इस तरह की मांग, सिफारिश का अर्थ है कश्मीर में भारतीय प्रभुसत्ता को चुनौती देना, देश के किसी प्रदेश को भारतीय संघ से तोड़ने का प्रयास करना और भारत के राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान, संविधान एवं संसद का विरोध करना। सर्वविदित है कि 1953 से लेकर आज तक भारत सरकार ने अनेक संवैधानिक संशोधनों द्वारा जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ जोड़कर ढेरों राजनीतिक एवं आर्थिक सुविधाएं दी हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों द्वारा चुनी गई संविधान सभा ने 14 फरवरी, 1954 को प्रदेश के भारत में विलय पर अपनी स्वीकृति दे दी थी। 1956 में भारत की केन्द्रीय सत्ता ने संविधान में सातवां संशोधन करके जम्मू-कश्मीर को देश का अभिन्न हिस्सा बना लिया।
इसी तरह 1960 में जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में लाया गया। 1964 में प्रदेश में लागू भारतीय संविधान की धाराओं 356-357 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन की संवैधानिक व्यवस्था की गई। 1952 की संवैधानिक व्यवस्था में पहुंचकर जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के जबड़े में फंस जाएगा। पाक प्रेरित अलगाववादी संगठन यही तो चाहते हैं। तब यदि राष्ट्रपति शासन, भारतीय सुरक्षा बल और सर्वोच्च न्यायालय की जरूरत पड़ी तो क्या होगा? क्या जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले कर देंगे?
भारत की अखण्डता से खिलवाड़
पाकिस्तान का अघोषित युद्ध जारी है। वह कभी भी घोषित युद्ध में बदल सकता है। जम्मू-कश्मीर सरकार अनियंत्रित होगी। हमारी फौज किसके सहारे लड़ेगी। जब वहां की स्वायत्त सरकार, सारी राज्य व्यवस्था, न्यायालय सब कुछ भारत सरकार के नियंत्रण से बाहर होंगे तो उन्हें भारत के विरोध में खड़ा होने से कौन रोकेगा? अच्छा यही होगा कि भारत की सरकार इन तथाकथित प्रगतिशील वार्ताकारों के भ्रमजाल में फंसकर जम्मू-कश्मीर सहित सारे देश की सुरक्षा एवं अखंडता के साथ खिलवाड़ न करे।

रपट से संबन्धित समीक्षात्मक बिन्दू
 इस रपट में पाकिस्तान की ओर से हो रही सशस्त्र घुसपैठ, प्रायः सभी मुस्लिम देशों की सहायता से जम्मू-कश्मीर में व्याप्त हिंसक जेहादी आतंकवाद और चार लाख भारत भक्त कश्मीरी हिन्दुओं के बलात् विस्थापन से आंखें मूंद ली गई हैं।
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 जम्मू-कश्मीर की वर्तमान ज्वलनशील/विस्फोटक गतिविधियों के लिए भारत की सरकार, संविधान और सेना को भी दोषी मानकर पाकिस्तान, अलगाववादियों, आतंकवादियों और स्वायत्तता/स्वशासन के झण्डाबरदारों के सब गुनाह माफ कर दिए गए हैं। 
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 वार्ताकारों ने जिन 700 (?) प्रतिनिधि मंडलों से कथित बातचीत करने का दावा किया है उनके नामों, टिप्पणियों और सुझावों का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया। जिस वृहत साहित्य (?) का वार्ताकारों ने अध्ययन करने का दावा किया है उनमें से एक भी पुस्तक अथवा लेख का नाम तक नहीं बताया गया। 
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 वास्तविकता यह है कि इन सरकारी वार्ताकारों ने उन भारत विरोधी अलगाववादी संगठनों, आतंकवादी गुटों, कट्टरपंथी मजहबी संगठनों के एजेंडों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है, जिनके नेताओं ने उनसे बात करना भी उचित नहीं समझा। 
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ये सारी रपट पाकिस्तान की कश्मीर नीति, पूर्व पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कश्मीर फार्मूले, सत्ताधारी एन.सी. के घोषित मेनिफेस्टो, पी.डी.पी. के दलीय दस्तावेज सेल्फरूल और  हुर्रियत काॅनफ्रेंस के तथाकथित उदारवादी नेता मीरवाइज उमर फारुख के दिमाग की उपज युनाईटेड स्टेट्स आॅफ कश्मीर पर आधारित है।
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वार्ताकारों ने मजहबी जुनून पर आधारित जेहादी आतंकवाद, मजहबी कश्मीर केन्द्रित राजनीति पर आधारित क्षेत्रीय भेद-भाव, 1947 में पाक/पाक अधिकृत कश्मीर से उजड़ कर आए लगभग 14 लाख हिन्दुओं के अधिकारों के हनन और 4 लाख कश्मीरी हिन्दुओं के बलात् जाति आधारित विस्थापन की वास्तविक पृष्ठभूमि (इस्लामिक फंडामेंटलिज्म) की जानकारी लेने की रत्ती भर भी कोशिश नहीं की।
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 कश्मीर समस्या से सम्बधित सभी मामलों में पाकिस्तान को शामिल करने का सुझाव देकर वार्ताकारों ने भारत और पाकिस्तान को बराबरी का दर्जा दे दिया है। जबकि ये एक तथ्यात्मक सच्चाई है कि पकिस्तान हमलावर (युद्ध एवं आतंकवाद दोनों में) और भारत पीडि़त है। 
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 पाक अधिकृत कश्मीर को पाक प्रशासित कह कर वार्ताकारों ने दो तिहाई भारतीय कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा मान लिया है। यही वास्तव में कश्मीर में सक्रिय अलगाववादियों की भाषा है। यहां वार्ताकारों ने भारत की संसद और यू.एन.ओ. के प्रस्तावों की भी धज्जियां उड़ा दी हैं। 
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 वार्ताकारों ने जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक घड़ी की सुईयों को जिस साठ साल पुराने दिल्ली समझौते की ओर मोड़ने की बेबुनियाद कोशिश की है वह समझौता केवल दो व्यक्तियों नेहरू और शेख के बीच हुए जुबानी जमाखर्च का असंवैधानिक दस्तावेज है जिसे शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के कुछ कश्मीर केन्द्रित पिठ्ठुओं को छोड़कर शेष सारे जम्मू-कश्मीर और देश ने नकार दिया था। 
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 वार्ताकारों ने 1952 के बाद जम्मू-कश्मीर पर लागू हुए सभी भारतीय कानूनों, संवैधानिक संशोधनों एवं अनेक विकास की योजनाओं की समीक्षा करने के लिए एक संवैधानिक समिति गठित करने का सुझाव भी दिया है। ये समिति भारत के संविधान, संसद और सरकार को चुनौती देने वाली एक ऐसी टोली होगी जो इन वार्ताकारों की ही अलगाववादी मानसिकता की लकीरों पर चलेगी। 
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 जम्मू-कश्मीर में व्याप्त विदेश प्रेरित अलगाववाद की जन्मदाता, पोषक और संरक्षक भारतीय संविधान की धारा 370 को विशेष शब्द से नवाजने की सिफारिश करके वार्ताकारों ने एक विशेष प्रकार के राष्ट्र विरोधी मजहबी जुनून को संवैधानिक मान्यता देने का अत्यंत निंदनीय प्रयास किया है। 
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 वार्ताकारों ने सुरक्षाबलों के विशेषाधिकारों तथा अशांत क्षेत्रों की समीक्षा करने और नागरिक सुरक्षा कानून में संशोधन करने की शिफारिश करके भारतीय सुरक्षा बलों को कटघरें में खड़ा करने का जघन्य प्रयास किया है। 
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 मजहबी, क्षेत्रीय एवं जातिगत कुंठा से ग्रस्त वार्ताकारों ने कश्मीर घाटी में बनी बेनाम कब्रों की जांच के लिए न्यायिक आयोग गठित करने की बात तो की है परन्तु आतंकियों के हाथों मारे गए लाखों बेगुनाह लोगों के मुद्दे को छुआ तक नहीं। 
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 गहराई से इस रिपोर्ट का अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि यह रिपोर्ट अगर सरकारी स्तर पर मान ली गई तो यह दूसरे पाकिस्तान का शिलान्यास साबित होगी। 
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प्रस्तुति: नरेन्द्र सहगल
मोबाइल न. 9811802320
स्थाई स्तम्भकार पांचजन्य 

Saturday, June 2, 2012

संघ शिक्षा वर्ग के स्वयंसेवकों ने किया पथ संचलन






वाराणसी, 2 जून। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 20 दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग के स्वयंसेवकों ने शहर के प्रमुख मार्गों से पथ संचलन निकाला। पथ संचलन कर रहे स्वयंसेवकों का अनेक स्थानों पर नागरिकों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया।
 निवेदिता शिक्षा सदन के प्रांगण में 423 की संख्या में देश के कोने-कोने (उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, चण्डीगढ़, उत्तराखण्ड, हिमांचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर एवं नेपाल राष्ट्र) से आये स्वयंसवेकों ने कदम से कदम मिलाकर पथसंचलन किया। यह संचलन निवेदिता शिक्षा सदन से होते हुए, सिगरा महमूरगंज रोड, रघुनाथ नगर, तुलसीपुर त्रिमुहानी, आकाशवाणी मार्ग, माहेश्वरी भवन, पाणिनी कन्या महाविद्यालय होते हुए निवेदिता बालिका इण्टर कालेज में जाकर स्वयंसेवकों ने हिन्दू साम्राज्य दिवस मनाया। स्थानीय निवेदिता शिक्षा सदन परिसर में संघ का 20 दिवसीय संघ शिक्षा वर्ग प्रथम व द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण चल रहा है। संघ शिक्षा वर्ग अपने आप में एक उदहारण हैं जहाँ स्वयंसेवक स्वयं अपना व्यय वहन करके प्रशिक्षण लेने आते हैं। यही संघ में कार्यकर्ता निर्माण की प्रक्रिया है। यहां पर स्वयंसेवकों में देशभक्ति, अनुशासन, संस्कारित नागरिक बनने व राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। 
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में कार्यकर्ता निर्माण हेतु प्रशिक्षण शिविरों की चार स्तरीय योजना होती है। इसमें प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष विशेष, द्वितीय वर्ष विशेष और तृतीय वर्ष विशेष के प्रशिक्षण वर्ग होते हैं। प्राथमिक संघ शिक्षा वर्ग की अवधि 7 दिन, प्रथम और द्वितीय वर्ष की अवधि 20-20 दिन, तथा तृतीय वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग की अवधि 30 दिन होती है। विशेष संघ शिक्षा वर्ग में 40 वर्ष की आयु पूर्ण करने वाले स्वयंसेवक ही भाग लेते हैं। शिविर में दिन का आरम्भ प्रातः 4.00 बजे होता है। इसके बाद प्रातः 5.00 बजे एकात्मता स्त्रोत, प्राणायाम तथा शाखा के साथ दैनिक गतिविधियाँ आरम्भ होती हैं। इनमें अनेक सत्र होते हैं, जहाँ स्वयंसेवकों को शारीरिक, बौद्धिक, सेवा कार्य, आपदा प्रबन्धन, ग्राम विकास, स्वास्थ्य चेतना, पत्रकारिता इत्यादि विषयों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
हिन्दू साम्राज्यदिवस (ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी) पर वक्ताओं ने कहाकि छत्रपति शिवाजी के जन्म से पहले देश में निराशा का वातावरण था। भारत की सत्ता विदेशियों द्वारा संचालित होती थी, आज भी देश लगभग वैसी ही स्थिति से गुजर रहा है। ऐसे में केवल वीर शिवाजी का जीवन ही हमारे लिए प्रेरणादायी व मार्गदर्शक हो सकता है। 
 इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय अधिकारी, सर्वश्री बालकृष्ण जी, हस्तीमल जी, वर्ग कार्यवाह, सुभाष बोहरा, वर्ग पालक रामलखन सिंह, मुख्य शिक्षक गेशव गोपाल, राधेश्याम जी, सह मुख्यशिक्षक राजीव जी, वर्ग बौद्धिक प्रमुख नरेन्द्र जी, सेवा प्रमुख अजय जी, पर्यवेक्षक जागेश्वर जी आदि मौजूद थे।