Saturday, July 28, 2012

असम में हुए हिंसा के विरोध में काशी के संतों ने भरी हुंकार



       
 वाराणसी 28 जुलाई (विश्व संवाद केन्द्र, काशी)। असम में हो रहे हिंसा के विरोध में काशी के सभी प्रमुख मठों, मंदिरों और अखाड़ों के साधु संतों औए सामाजिक संगठनों ने सुमेरु मठ से अस्सी घाट तक विरोध मार्च निकाला। मार्च का नेतृत्व कर रहे श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती जी महराज ने कहा कि असम में अपने ही घर से बेघर  किये गए मूल निवासियों को तत्काल समुचित आवास व्यवस्था प्रदान की जाय तथा उन्हें अपने घरों में वापस सुरक्षात्मक प्रबंध सहित रहने की व्यवस्था एक सप्ताह के अन्दर की जाय। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि इसमें विलम्ब हुआ तो देश के लाखों राष्ट्र भक्त हिन्दू असम के लिए कूच करेंगे और ऐसी स्थिति में संत समाज अपना चातुर्मास्य व्रत त्यागने को मजबूर होगा। जिसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी जो संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का केंद्र सरकार हनन माना जायगा।      
       इस अवसर पर काशी विद्वत परिषद् के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. कामेश्वर उपाध्याय ने कहा कि असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों  की तलाश कर उन्हें बाहर किया जाय अथवा उन्हें बंदी बनाकर राष्ट्र द्रोह कानून के तहत जेलों में बंद किया जाय। असम में कानून व्यवस्था कायम रखने में वहां की सरकार असफल रही है। अतः राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था शांति स्थापन काल तक पूरी तरह सेना को सौप दिया जाय। 
        उन्होंने केंद्र और असम सरकार को आगाह करते हुए कहा कि असम में हो रहे नर संहार के लिए जिम्मेदार लोगों को तत्काल खोजकर उनके खिलाफ कठोर दमनात्मक कारवाई की जाय, ताकि उनके हिंसक मनोबल को नियंत्रित किया जा सके, अन्यथा ढिलाई बरतने पर ये घुसपैठिये देश के अन्य प्रान्तों में अपना जल फैलाकर राष्ट्रीय अस्थिरता और अशांति की भयावह स्थिति पैदा कर सकते हैं।
        संतों के इस विरोध मार्च में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व वेड विभागाध्यक्ष प्रो. व्यास मिश्र, दंडी सन्यासी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मठ मछलीबंदर के महंत स्वामी विमल देव, अनंत विज्ञान मठ के महंत स्वामी इन्द्र प्रकाश आश्रम (नाग बाबा), आचार्य आद्या प्रसाद द्विवेदी, आचार्य नन्द किशोर, आनंद त्रिपाठी, जयप्रकाश त्रिपाठी, स्वामी दुर्गेश्वरानंद तीर्थ , स्वामी श्यामदेव आश्रम, स्वामी शिव आश्रम सहित अनेक संत और सदगृहस्त शामिल थे। 

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