Thursday, April 30, 2020

संघ की संकल्पना : सेवा उपकार नहीं, समाज के प्रति कर्तव्य


देश के किसी भी हिस्से मेंजब भी आपदा की स्थितियां बनती हैंतब राहत/सेवा कार्यों में राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ के स्वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में दिखाई देते हैं. चरखी दादरी विमान दुर्घटनागुजरात भूकंपओडिसा चक्रवातकेदारनाथ चक्रवातकेरल बाढ़ या अन्य आपात स्थितियों में संघ के स्वयंसेवकों ने पूर्ण समर्पण से राहत कार्यों में अग्रणी रहकर महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया. अब जबकि समूचा देश कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा हैतब भी संघ के स्वयंसेवक आगे आकर सेवाकार्यों में जुटे हुए हैं. आश्चर्य की बात है कि स्वयंसेवकों का आपदा के समय में राहत कार्य करने का कोई विशेष प्रशिक्षण भी नहीं होताइसके बाद भी वे अपना जीवन दांव पर लगा कर समाज हित में आगे आते हैं. इसके पीछे का भाव क्या हैरहस्य क्या हैस्वयंसेवकों के इस समर्पण भाव को समझने के लिए 26 अप्रैल, 2020 को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के ऑनलाइन दिए उद्बोधन को सुनना और समझना चाहिए. सेवाकार्यों के संबंध में उन्होंने जो बातें कहींउसका सार यही है कि स्वयंसेवक के लिए सेवा उपकार नहीं हैउसके लिए यह ‘करणीय कार्य है’. इसलिए संघ का स्वयंसेवक अपना दायित्व मान कर सेवाकार्य करता है.
हम (संघ के स्वयंसेवक) सेवा कार्य क्यों करते हैंइसकी सुंदर व्याख्या की. सरसंघचालक जी ने कहा – “सेवा कार्यों की प्रेरणा के पीछे हमारा स्वार्थ नहीं है. हमें अपने अहंकार की तृप्ति और अपनी कीर्ति-प्रसिद्धि के लिए सेवा-कार्य नहीं करना है. यह अपना समाज हैअपना देश हैइसलिए हम कार्य कर रहे हैं. स्वार्थभयमजबूरीप्रतिक्रिया या अहंकारइन सब बातों से रहित आत्मीय वृत्ति का परिणाम है यह सेवा.” उनके इस वक्तव्य से उन लोगों को सीख लेनी चाहिए जो सिर्फ अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए सेवा कार्य करते हैं. इस क्रम में उन्होंने आगे जो कहावह और भी अधिक महत्व का है. वैसा कहने के लिए सामर्थ्य चाहिए. क्योंकि वर्तमान समय में तो अपने समाज और व्यक्ति का मानस ऐसा बन गया है कि जो किया है, उसका श्रेय तो लेना ही हैजो नहीं किया उसका भी श्रेय लूटने का प्रयत्न करना चाहिए. चारों और श्रेय लेने की होड़ लगी है. ऐसी स्थिति में वह स्वयंसेवकों को मार्गदर्शित करते हुए कहते हैं – “हमें निरहंकार वृत्ति से सेवा कार्य में जुटना चाहिए. हम जो कर रहे हैंउसमें समाज की सहभागिता हैइसलिए उसका श्रेय स्वयं न लेकर दूसरों को देना चाहिए.” जब हम कोई कार्य प्रारंभ करते हैं तो बहुत उत्साह रहता है. लेकिन जब वह लंबा खिंचने लगता है तो कार्य के प्रति ऊब पैदा होने लगती है. कोरोना संकट में सेवा कार्य अभी तो जोर-शोर से चल रहे हैंलेकिन यह संकट लंबा भी चल सकता है, इसलिए कार्य की गुणवत्ता और मात्रा में गिरावट न आएइसके लिए भी सरसंघचालक जी स्वयंसेवकों को मार्गदर्शन देते हैं. हालाँकिसंघ के स्वयंसेवक जिस कार्य को हाथ में लेते हैंउसे पूर्ण करके ही छोड़ते हैं. तब भी उन्होंने कहा कि अपने प्रयासों में सातत्य रहना चाहिए. हमें न तो ऊबना है और न ही थकना है. निरंतर कार्य करते रहना है. कोरोना के समाप्त होने के बाद भी संपूर्ण व्यवस्था को पुन: चलायमान बनाने के लिए भी अतिरिक्त कार्य की आवश्कता होगीउसकी भी तैयारी रहनी चाहिए. यह संघ की दूरदृष्टि है कि वह न केवल वर्तमान संकट से निपटने के लिए प्रयत्नशील है, बल्कि भविष्य में होने वाली कठिनाईयों की ओर भी देख रहा है.
अक्सर राष्ट्रीय विचार के विरोधी लोग संघ के संदर्भ में दुष्प्रचार करते हैं कि आरएसएस मुसलमानों-ईसाईयों से भेद करता है. किंतु, यह वास्तविकता नहीं. यह एक झूठ है, जिसे वर्षों से बोला जा रहा है. वैसे तो संघ किसी का विरोध नहीं करता है, लेकिन उन लोगों के आचरण पर आपत्ति अवश्य करता है, जिनकी गतिविधियां देश-समाज के हित में नहीं होती हैं, फिर वे चाहें किसी भी संप्रदाय से संबंध रखने वाले लोग हों. आपदा की स्थिति में तो संघ के लोग किसी के साथ भी भेद नहीं रखते. सरसंघचालक जी ने कहा भी – “हमें सबके लिए काम करना है. कोई भेद नहीं करना है. जो-जो पीड़ित हैं, वे सब हमारे अपने हैं. भारत ने जिन दवाईयों के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ था, दुनिया के हित के लिए उस प्रतिबंध को हटाकर और स्वयं थोड़ा नुकसान सह कर भी हमने दूसरे देशों को दवाइयाँ भेजी हैं. जो माँगेंगे, उनको देंगें, क्योंकि यह हमारा स्वभाव है. हम मनुष्यों में भेद नहीं करते और ऐसे प्रसंगों (संकट काल) में तो बिल्कुल नहीं करते. सब अपने हैं. जो-जो पीडि़त हैं और जिस-जिस को आवश्यकता है, उन सबकी सेवा हम करेंगे. जितनी अपनी शक्ति है, उतनी सेवा करेंगे. अपने कार्य का आधार है अपनत्व की भावना. स्नेह और प्रेम अपने व्यवहार में दिखना चाहिये.देशभर से सेवाकार्यों की जो तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं, वे इस बात की पुष्टि करते हैं कि संघ के स्वयंसेवक पीड़ित के प्रति अपनत्व का भाव रखकर उनकी सहायता कर रहे हैं. संघ के स्वयंसेवक एवं राष्ट्रीय विचार से ओत-प्रोत समविचारी संगठनों के कार्यकर्ता सेवाकार्य चला रहे हैं. देश के प्रत्येक राज्य-जिले में संघ की प्रेरणा से भोजन पैकेट, राशन सामग्री, दवाएं, फल, सब्जियां, मास्क और अन्य आवश्यक सामग्री का वितरण किया जा रहा है. समाज के जिस वर्ग को सहायता की आवश्यकता है, वहाँ तक यह सहायता पहुँच रही है.
संघ अपने प्रारंभ से ही ‘प्रसिद्धिपंरागमुखता’ के सिद्धांत का पालन करता रहा है. इसलिए इसमें किसी को संदेह नहीं कि संघ अपनी कीर्ति-प्रसिद्धि के लिए सेवाकार्य करता है. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने स्पष्ट किया- “जो लोग सहयोगी बनना चाहते हैंउनको समुचित जानकारी हो इसलिये कुछ प्रसिद्धि भी करनी पड़ती है. अपने कार्य की रचना में हम सबको सविस्तार वृत्त ठीक-ठीक पता चलेइसलिये उसको प्रकाशित करना पड़ता है. लोगों को प्रेरणा मिलेइसलिये भी ऐसे कार्य में आने वाले अनुभवों का लेखन-प्रकाशन करना पड़ता है. परन्तु अपना डंका बजाने के लिये हम ये काम नहीं कर रहे हैं.” यानि संघ के सेवाकार्यों की जो जानकारी हमारे सामने मीडिया या सोशल मीडिया के माध्यम से आ रही हैउसका उद्देश्य संघ की शक्ति का डंका बजाना नहीं हैबल्कि अन्य लोगों को प्रेरणा देना है.
राष्ट्रीय विचार के प्रति निरंतर दुष्प्रचार के कार्य में संलग्न व्यक्तियों/संस्थाओं को उद्बोधन के उस हिस्से पर विशेष ध्यान देना चाहिएजिसमें वे कह रहे हैं कि कुछ लोगों की भयवशक्रोधवश या जानबूझकर की गई गलती के कारण उससे संबंध रखने वाले पूरे वर्ग से दूरी नहीं बनानी चाहिए. कुछ लोगों की गलती के लिए सारे समूह को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. उन्होंने स्पष्ट किया कि सब जगह दोष रखने वाले लोग होते हैं. उन्होंने उचित ही कहा कि ऐसे समय में सभी लोगों को यह सावधानी रखनी होगी कि यह अपने देशहित का विषय है और इसमें हमारी भूमिका सहयोग की ही होगीकभी भी विरोध की नहीं होगी. भारत का 130 करोड़ का समाज भारत माता का पुत्र हैअपना बंधु है. इस बात को ध्यान में रखना चाहिये. भय और क्रोध दोनों तरफ से नहीं करना चाहिये. जो-जो अपने समूह के समझदार लोग हैंउन्हें अपने-अपने समूह के लोगों को इससे बचाना चाहिये और भय या क्रोधवश होने वाले ऐसे कृत्यों में हम लोगों को शामिल नहीं रहना चाहिए. संभवत: उनका संकेत जमात से जुड़े लोगों की अभद्रता और उपद्रव के कारण समाज में मुस्लिम संप्रदाय के प्रति बन रहे हेय वातावरण के प्रति था. नि:संदेह जमात से जुड़े और अन्य कुछ लोगों की हरकतों के कारण सामान्य लोगों के मन में मुस्लिम संप्रदाय से दूर रहने का विचार घर करने लगा है. इस संबंध में समाज का प्रबोधन आवश्यक है. किंतुभारत विरोधी ताकतों ने इसे एक अवसर की तरह लिया और उन्होंने इसे ‘इस्लामोफोबिया’ का विशेषण देकर वैश्विक मीडिया और सोशल मीडिया में भारत के प्रति नकारात्मक वातावरण बनाने का प्रयास किया. सरसंघचालक जी ने ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ का कुविचार रखने वालों की धूर्तता से सावधान रहने की बात भी कही. उन्होंने कहा कि हमें उनके प्रोपोगंडा से बचना है. ये लोग हमारा कुछ बिगाड़ न सकें, इतनी सावधानी और इतना बल सजग जागृत रखना. लेकिन हमारे मन में इसके कारण प्रतिक्रिया वश कोई खुन्नस या कोई दुश्मनी नहीं होनी चाहिए.
वर्तमान परिदृश्य और हमारी भूमिका’ विषय पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का यह ऑनलाइन प्रबोधन केवल स्वयंसेवकों तक सीमित नहीं थाबल्कि यह शासन-प्रशासनसमाज की सज्जनशक्ति के लिए भी पाथेय था. कोरोना संकट के बीत जाने के बाद फिर से नये और आकांक्षावान भारत के निर्माण के लिए सबको मिलकर सामूहिक प्रयास करने का आह्वान उन्होंने किया है. इस उद्बोधन में उन्होंने स्वदेशी अर्थव्यवस्थासमाज के स्वावलंबन एवं पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों पर भी दिशा-सूत्र दिए. उनका यह उद्बोधन ‘संघ की बात’ एवं ‘संघ के विचार’ को समाज के सामने प्रस्तुत करता हैसाथ ही संघ की वास्तविक छवि को भी प्रकट करता है. संभव है कि इस उद्बोधन से अनेक लोगों के मन से संघ के प्रति बने/बनाए गए भ्रम दूर हुए होंगे. संघकार्य की स्पष्टता भी बनी होगी. संघ के संबंध में यह बात गाँठ में बाँध लेनी चाहिए कि यह विशाल संगठन समय के साथ कदमताल करता हैयह सिर्फ लकीर नहीं पीटता. समय की आवश्कता के अनुरूप अपना स्वरूप तय करता है और प्रत्येक परिस्थिति में समाज-देश की सेवा में जुट जाता है.
-      लोकेन्द्र सिंह
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत

इबादत नहीं साजिश की पनाहगाह


भारत में स्वतन्त्रता के बाद परवर्ती कांग्रेसी सरकारों द्वारा धर्म-निरपेक्षता के नाम पर देश के एक विशाल वर्गऔर सच कहें तो विशाल बहुमत वर्ग के साथ अन्याय करते हुए वोट की राजनीति के वशीभूत कुछ कट्टर धार्मिक उन्मादियों को जिस प्रकार प्रश्रय दिया गयाउसके परिणाम आज देश के सामने प्रकट हो रहे हैं. दुःख की बात यह है कि ये परिणाम एक ऐसे वक्त में सामने आ रहे हैंजब सारा देश केंद्रीय मंत्रिमंडल के संचालकदेश के सर्वप्रिय नेता प्रधानमंत्रीनरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में एक अभूतपूर्व गंभीर चुनौती का एकजुट होकर मुकाबला कर रहा है.
मुझे यह कहने का साहस करने दीजिये कि वे धार्मिक उन्मादी कौन हैंयह किसी से छिपा नहीं है. ये वही लोग हैं जो रहते तो भारत में हैंसपने अरब के देखते हैंजो पानी तो भारत का पीते हैं और चाह जमजम की रखते हैंजो खाते तो भारत का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं. ये वही लोग हैं जो माँ के नाम पर ग़जल लिखते हैंलेकिन भारत माता के सामने सर झुकाने में अपनी तौहीन समझते हैं. ये वही लोग हैं जो बात तो अकीदतइबादत और मुहब्बत की करते हैंलेकिन काम अदावततिजारत और नफरत का करते हैं. नफरत इनकी किताबों में इतने मोटे हर्फों में लिखा है कि धरती पर हर वैसा आदमी जो सर पर गोल टोपीचेहरे पर मूंछ रहित दाढ़ीकंधे पर झूलता हुआ कुर्ता और कमर में टखने से ऊपर तक के पाजामा से अलग हटकर किसी धार्मिक बाने का अनुसरण करता हैवह काफिर हो जाता है और काफिरों की दुनिया को इस्लाम का चारागाह बनाने की राह पर खून बहाकर मरने वाले को जन्नतनशीं कहता हैआतंकी की मौत को शहादत कहता है. ये वही लोग हैं जो मौलाना साद जैसे इंसान के दुश्मन के बहकावे में कोरोना जैसी महामारी में पूरे देश को झोंकने में ज़रा भी शर्म महसूस नहीं करते.
नाम खोलकर कहूं तो मैं मुसलमानों मेंजो भारतीय संस्कृति को स्वीकार करते हैंअपनी धार्मिक आस्था में विश्वास रखते हुए अन्य धर्मों की इज्जत करते हैंदेश में अमन और भाईचारे के लिए काम करते हैंविज्ञान और वैज्ञानिक तरक्की में यकीन रखते हैंउनकी बात नहीं कर रहा. मैं बात कर रहा हूँ तबलीगी जमात की. उनकी एक कौम होती हैएक खिलाफत होती हैऔर खलीफा के कहने पर काफिरों” की दुनिया पर कब्जा करने के अभियान में ये सारे देशों की सीमा को ध्वस्त कर देने में संकोच नहीं करते. सरजिल इमाम का नाम याद है न आपकोजो इस्लाम के नाम परमुसलमानों के हक़ में संविधान को गरियाते हुए पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से अलग करने की जहरीली विचारधारा का प्रचार कर रहा था. यही एक उदाहरण काफी है. यह साबित करने के लिए कि वह तभी तक देशभक्त रहता हैजब तक देश के बाकी सभी लोगों की कीमत पर उसे मुफ्त का माल मिलता रहे. और इसमें उसका सहयोगी बनता है धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाएप्रगतिशीलता का जामा पहने वामपंथी गिरोह. एक ओर मौलवियोंउलेमाओं के माफियातंत्र के नेतृत्व में देश को तोड़ने की बात करता है तो दूसरी ओर वामपंथी गिरोह के नेतृत्व में उसके गुर्गे ऐसे देशद्रोहियों के साथ मिलकर भारत तेरे टुकड़े होंगेइंशा अल्लाह इंशा अल्लाह” का नारा लगाते हैं. इन दोनों की समानता और साझा साजिशों को आज हर उस भारतीय को समझना होगाजो अपनी मातृभूमि से प्यार करता हैजो मंगल पाण्डेयभगत सिंहसुभाष चन्द्र बोसश्यामा प्रसाद मुख़र्जी आदि सपूतों की कुर्बानी को मौलवियों के माफियातंत्र की साजिशों से बचाना चाहता है.
कोरोना वायरस के प्रकोप के इस संकटकाल में जब देश कोसरकार को सहयोग देने की ज़रुरत थीतब तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना साद के इशारे पर हज़ारों तबलीगियों ने देश के कोने-कोने में कोरोना का संक्रमण फैलाने का काम किया. मस्जिदें खुदा की इबादत और इंसान से मुहब्बत के बदले इस साजिश का पनाहगाह बन गयीं. इलाहाबाद में प्रोफेसर तक ने गैरकानूनी ढंग से देश में घुसे विदेशी तबलीगियों को छिपाने का देशद्रोहीजन-विरोधी कुकर्म किया. इन तबलीगियों ने डॉक्टरों परनर्सों परपुलिस परजन सेवकों पर हमले कियेभारत विरोधी विदेशी ताकतों से मिलकर देश को अस्थिर करने का कुत्सित प्रयास किया. शाहीन बाग़ को खाली करने को तैयार नहीं हुए. भारत विरोधी ताकतों की एजेंट अरुंधती रॉय मुसलमानों को ललकारती रही कि नाम पूछे तो रंगा-बिल्ला” बतानाघर पूछे तो “7, रेस कोर्स” बताना. लेकिन कोरोना के सवाल पर जब तबलीगियों की जांच का वक्त आया तो अरुंधती रॉय का कहीं पता नहीं था. इस बुद्धिजीवी को यह फर्ज याद नहीं आया कि वह इन सिरफिरे धार्मिक उन्मादियों से कहे कि वे अपना यात्रा वृत्तान्त प्रशासन को बताएं और अपनी जांच करायें. इन बुद्धिजीवियों को यह फर्ज याद नहीं आया कि शाहीन बाग़ से निठल्लों से कहते कि इस भीड़ से तुम खुद भी मारे जाओगेएक तबलीगी घुस गया शाहीन बाग़ की भीड़ में तो कोई नहीं बचेगाउठ जाओ दादियोंफूफियोंखालाओं और पागल मर्दोंलड़कोंउठ जाओ!” यह कहना रास नहीं आयासबसे मजे की बात तो यह रही कि 100 से अधिक दिनों तक सड़क पर बेमतलब कब्जा करवाने में हर रोज जाकर भाषण झाड़ने वाले वीर-बहादुरों में से एक भी माई का लाल इन निठल्लों के पक्ष में शाहीन बाग़ नहीं पहुंचाउस वक्त जब पुलिस राष्ट्रहित और जनहित में इन सिरफिरों को सड़क से हटा रही थी. यह इनके दोगलेपन और क्रांतिकारी वीरता का असली चेहरा है.
अब बड़ा शोर किया जा रहा हैसरकार के साथ असहयोग करनेडॉक्टरों-नर्सों के साथ बदतमीजी और मारपीट करने के बावजूद सरकार के प्रयास और खर्चे तथा डॉक्टरों-नर्सों की दिन-रात की मेहनत से ठीक होने के बाद अब तबलीगी खून दान करेंगेउनके प्लाज्मा से कोरोना-संक्रमित रोगियों का इलाज होगा. वही लोगजो कल तक पूरे देश को कोरोना के दंश का शिकार बनाने के लिए इन तबलीगियों की खुराफातों का बचाव कर रहे थेआज कहीं एक-दो तबलीगियों द्वारा खून दान करने की बात को इस प्रकार प्रचारित कर रहे हैंमानो इन तबलीगियों के सिवाय इस देश में आज तक न किसी ने खून दान किया है और न अभी इनके सिवाय कोई और खून दान कर रहा है. ये ऐसा भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं जैसे कि ये तबलीगी ही हैंजिनके कारण कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों का इलाज हो पा रहा है.
संयोग देखिये. उधर साद की क्वारेंटाइन अवधि समाप्त होती है. उसका वकील उसकी ओर से बातें रखने की बात करता है. और इधर एकाध तबलीगी खून दान करने की बात करने लगते हैं. खून दान करना चाहते हैंकरेंकोई हर्ज नहीं है. लेकिन इनकी असली मंशा और मंसूबों को समझने की ज़रुरत है. यह अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने और देश के लाखों लोगों के सामने संकट पैदा करने के जघन्य अपराध के सन्दर्भ में सहानुभूति बटोरने के सिवाय और कुछ नहीं है. किसी की ह्त्या करने के बाद उसके बच्चों को भोजन देने से ह्त्या का अपराध समाप्त नहीं हो जाता. इसलिए ज़रूरी है कि तबलीगी मरकज के जलसे में शामिल एक-एक तबलीगी की खोज की जाएउसका इतिहास खंगाला जाए और कोरोना फैलाने के उनके अपराध के लिए हर हाल में उन्हें क़ानून के सामने पेश किया जाए.
-      रवि प्रकाश
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष ज़फरुल इस्लाम ख़ान की देश को धमकी


जफरुल ने इस्लामिक कट्टरपंथियों और जाकिर नायक की प्रशंसा की
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम के फेसबुक पोस्ट के विवाद खड़ा हो गया है. जफरुल अपनी पोस्ट में हिन्दुओं को धमका रहे हैं, साथ ही कट्टरपंथियों की प्रशंसा कर रहे हैं. अपनी पोस्ट में उन्होंने भारत के मुसलमानों के साथ खड़े होने पर धन्यवाद किया है तथा भारत के हिन्दुओं को “Hindutva bigots” कहा है. जफरुल ने पोस्ट 28 अप्रैल को फेसबुक और ट्विटर हैंडल पर शेयर की थी.
जफरुल इस्लाम खान लिखते हैं धन्यवाद कुवैत, भारत के मुसलमानों के साथ खड़े होने के लिए! “Hindutva bigots” हिंदुओं ने सोचा था कि अरब और मुस्लिम देश भारत के साथ अपने बड़े आर्थिक संबंधों के कारण मुसलमानों के उत्पीड़न की परवाह नहीं करेंगे. कट्टरपंथी भूल गए हैं कि भारत के मुसलमानों को अरब और मुस्लिम देशों में जबरदस्त लोकप्रियता प्राप्त है. क्योंकि उन्होंने सदियों से इस्लाम की सेवा की है. शाह वलीउल्लाह देहलवी, इकबाल, अबुल हसन नदवी, वहीदुद्दनी खान, ज़ाकिर नाइक, और कई अन्य नाम अरब व मुस्लिम देशों के घर-घर में प्रसिद्ध हैं. Mind you, Bigots भारत के मुसलमानों ने अब तक मुस्लिम उत्पीड़न की शिकायत अरब और मुस्लिम देशों से नहीं की है, जिस दिन मुसलमानों ने शिकायत कर दी तो Bigots  तुम्हें तूफान (Avalanche), का सामना करना पड़ेगा.
इससे पहले 03 अप्रैल को दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान ने दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगों में शामिल कुछ लोगों के खिलाफ कार्रवाई पर दिल्ली पुलिस आयुक्त को नोटिस भेज चुके हैं. नोटिस में दिल्ली दंगों के मामलों में पुख्ता सबूत होने पर ही गिरफ्तारी करने के लिए कहा था. नोटिस में यह भी कहा था – लॉकडाउन खुलने के पश्चात तथा स्थितियां सामान्य़ होने पर हम इन गिरफ्तारियों की समीक्षा करेंगे.
विदेश मंत्रालय पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि – हमने कुवैत में गैर-सरकारी सोशल मीडिया हैंडलों पर भारत के संदर्भ में कुछ चीजें देखी हैं. कुवैत सरकार ने हमें आश्वासन दिया है कि वो भारत के साथ दोस्ताना रिश्तों के लिए प्रतिबद्ध हैं. वे भारत के आंतरिक मामलों में भी किसी तरह की हस्तक्षेप का समर्थन नहीं करते.
अधिवक्ता प्रशांत पटेल उमराव ने ट्वीट कर जानकारी दी कि उन्होंने जफरुल इस्लाम खान की पोस्ट पर दिल्ली पुलिस से शिकायत की है तथा उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आग्रह किया है.
विहिप ने भी जफरुल की टिप्पणी पर निशाना साधा है. विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र जैन ने अपने ट्वीट में कहा कि – #Zafarulislam जिस देश का खाते हो उसी को तूफान की धमकी देते हो? तुम्हारे आदर्शों में आतंकी #jakirnayak है, देशभक्त #APJ नहीं है! दूसरे #जिन्ना बनना चाहते हो? ग़द्दार #जमातियों के पापों पर पर्दा डालने के लिए हिन्दुओं को गाली देते हो? यह 1947 नहीं है. देश को धमकी देना भारी पड़ेगा.
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत

Wednesday, April 29, 2020

आहत राष्ट्र ने दी पालघर के पूज्य संतों को श्रद्धांजलि


पालघर में पूज्य संतों व उनके चालक की नृशंस सामूहिक हत्या से क्षुब्ध राष्ट्र ने आज उन्हें एक दीप जलाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दोषियों को शीघ्र कठोरतम सजा की मांग दोहराई. दक्षिणी दिल्ली स्थित विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) मुख्यालय में दीप जलाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए विहिप के केन्द्रीय महामंत्री मिलिंद परांडे ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है कि संतों व आध्यात्मिक परम्परा के इस देश में पूज्य संतों के अनेक हत्यारे घटना के 13वें दिन भी खुले में घूम रहे हैं. सम्पूर्ण भारत ने एक दीया संतों के नाम जलाकर हिन्दू समाज की विराट एकजुटता का संदेश दिया है. घटना के मूल षड्यंत्रकारियों की अविलम्ब गिरफ्तारी तथा कठोरतम दण्ड ही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी. साथ ही ध्यान रहे कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को दण्ड ना मिले, इस हेतु भी हिन्दू समाज सदैव खड़ा है.
उन्होंने कहा कि साम्यवादी राजनैतिक व गैर राजनैतिक संगठनों के साथ ईसाई मिशनरियों की हिन्दू द्रोही विद्वेषपूर्ण गतिविधियाँ पालघर जिले सहित देश के अनेक स्थानों पर भोले-भाले वनवासी समाज को देश भर में हिंसा के लिए प्रेरित कर रही हैं. त्रिपुरा में पूज्य श्री शांतिकाली जी महाराज व उड़ीसा में पूज्य स्वामी लक्ष्मणानंद जी महाराज की जघन्य हत्याएं इन्हीं हिंसक प्रवृतियों का ही दुष्परिणाम था.
विश्व हिन्दू परिषद्, हिन्दू धर्म आचार्य सभा व अखिल भारतीय संत समिति के आह्वान पर पूज्य साधू-संतों के अनेक अखाड़ों, मठ-मंदिरों, आश्रमों, गुरुद्वारों व जैन स्थानकों, घरों व व्यावसायिक स्थलों इत्यादि असंख्य जगहों पर सम्पूर्ण भारत में दीया जलाकर, पूज्य संतों की अमर हुतात्माओं को, लॉकडाउन के नियमों का पूरी तरह पालन करते हुए, श्रद्धांजलि दी गई. साथ ही, अनेक राज्यों की राजधानियों में राज्यपालों व जिला मुख्यालयों पर जिलाधीशों को राष्ट्रपति को सम्बोधित करते हुए ज्ञापन भी दिए गए. ज्ञापन में वीभत्स घटना की उच्चस्तरीय जाँच कर हत्यारों एवं षड्यंत्रकारियों को अविलम्ब गिरफ्तार कर कड़ी से कड़ी सजा की माँग की गई.
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत

सच्‍चे हीरो ऐसे नहीं होते


इंसान दो ही तरह के होते हैंअच्छे और बुरे. चाहे वो किसी भी धर्म को मानने वाले क्यों न हों. हर धर्म में अच्छे लोग भी हैंबुरे लोग भी हैं. दो दिन से ट्विटर पर तबलीगी हीरोज़तबलीगी जमात पर गर्व हैआदि ट्रेंड करवाया जा रहा है. इसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या सचमुच यह लोग हीरो हैं और जो अब तक इन्हें गलत बता रहे थे – वह विलेन हैं?
मैंने इस ट्रेंड के बहुत सारे ट्वीट पढ़ेपर एक भी ट्वीट मुझे ऐसा नहीं मिला जो इन्हें हीरो बनने का अवसर देने वालों का एहतराम करे. निःसंदेह दूसरों को खून देकर जान बचाने वाले लोग हीरो ही हैं. उनके इस प्रयास का जितना भी धन्यवाद किया जाएउनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है. लेकिन काश कि यह लोग उन लोगों से माफी भी मांग लेतेजिनके कारण आज इस लायक हो पाए हैं कि दूसरों की जान बचा सकें.
मैं साफ तौर पर यह मानता हूं कि दिल्ली में जो मरकज हुआउसके लिए जितना गुनाहगार तबलीगी जमात हैउतना ही बड़ा गुनाह सरकार ने भी किया है. यह संभव ही नहीं कि सरकार की जानकारी के बिना इतना बड़ा सम्मेलन हो जाएइतने देशों के लोग आ जाएंवह भी ऐसे समय में जब पूरी दुनिया में यात्रा पर प्रतिबंध लगने वाला था या लग चुका था. लेकिन तबलीगी जमात ने अपनी बदनामी खुद की. काश कि यह लोग स्वयं आगे आ जाते और स्वयं ही यह घोषणा कर देते कि हां भाई हम इस मरकज में शामिल थेहमारा टेस्ट करो और अगर हम पॉजिटिव हैं तो हमारा इलाज करो. हम नहीं चाहते कि हमारे कारण हमारे दूसरे भाई बंधु खतरे में पड़ें. आज पूरे देश में इनकी वाहवाही होती. आज देश का हर इंसान इनका ऋणी होता और कोरोना से लडाई  की स्थिति भी अपने देश में निश्चित ही इस से बेहतर होती.
हिन्दू और मुस्लिम समुदाय कन्धे से कन्धा मिलाकर एकसाथ यह जंग लड़ता. एक शानदार और एक भारत का संदेश पूरी दुनिया के सामने जाताकिंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया. इन्होंने अपना टेस्ट करने आए लोगों पर पत्थर फेंकना शुरू कियाउन पर थूकना शुरू कियाउनका इलाज करने वाली महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार किया और इसी कारण देश की आम जनता में इनके  खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआउसके पहले नहीं. स्थिति तब और बिगड़ गईजब इनके समाज के लोगों ने इनकी निंदा कर पुलिससरकार और स्वास्थ्य कर्मियों के साथ सहयोग करने की सलाह देने की बजाय इन का बचाव करना शुरू कर दिया. आज अगर सरकारस्वास्थ्य कर्मियों और पुलिस वालों ने अपने अपमान को भुलाकरजोर जबरदस्ती कर इनका इलाज ना किया होता तो यह सब लोग अपने साथ-साथ अपने अपनों को भी लेकर जमीन के अंदर सो रहे होते. दूसरों का जीवन बचाने के लिए खुद जीवित भी रह पातेइसमें संदेह है.
ध्यान देने की बात यह है कि कोरोना योद्धाओं में सभी समुदायों के लोग शामिल हैं. इंदौर में टेस्ट करने गई एक मुस्लिम महिला स्वास्थ्य कर्मी पहले दिन चोट खाने के बाद दूसरे दिन पुनः उसी जगह पर उन्हीं लोगों का टेस्ट करने गईजिन लोगों ने उस पर पत्थर बरसाये थे. उसे कभी ‘हीरो’ नहीं बताया गया. हम आशा करते हैं जो लोग इन को हीरो बनाने पर तुले हुए हैं वो लोग सरकारस्वास्थ्य कर्मियों और पुलिसकर्मियों की भी सराहना अवश्य करेंगेअपना अपमान और शारीरिक हिंसा सहकर भी इन लोगों ने सच्ची इंसानियत की जो अद्वितीय मिसाल कायम की हैखुद जख्म खाकर भी जख्म देने वाले का जीवन बचाया हैउसका भी एहतराम अवश्य करेंगे. ये अवश्य स्वीकार करेंगे कि विलेन तो कोई नहीं हैकिंतु इन्हें अपनी जान पर खेल कर हीरो बनने का मौका देने वाले उस से भी बडे़ हीरो अवश्य मौजूद हैं. संख्या बल के आधार पर किसी मुद्दे को ट्रेंड कर देना अलग बात है और इंसानियत के आधार पर किसी के दिल में जगह बना लेना अलग. संकट गहरा हैअदृश्य हैबहुत ही भयंकर है और वार करने से पहले हिंदू मुस्लिम नहीं देखता.
भारत जिन्दाबाद!
- मुकेश कुमार सिंह
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत