Tuesday, April 28, 2020

कोरोना के बाद क्या है करना..?


आदिम आखेट युग के आगे बढ़ते हुए मानव प्रजाति ने अपने विकास क्रम में कुछ ऐसे युगांतरकारी पड़ावों को पार कियाजिनमें से हर एक पड़ाव के बाद एक नए युग का सूत्रपात होता गया और यह नया युग मानव समाज के जीवन का स्वरुप भी बदलता गया. जैसे कि आग पैदा करना और उसका प्रयोग करनालोहे की खोजपहिये का निर्माणखेती और अनाज पैदा करनासमुद्री मार्गों की खोजमशीनों और कारखानों का निर्माणचिकित्सा एवं औषधि के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार, आदि..आदि. इन सभी पड़ावों ने मानव समाज में व्यापक परिवर्तन किये. ये परिवर्तन मानव-निर्मित थे. लेकिन इसी बीच प्रकृति द्वारा भेजी गयी विभिन्न आपदाओं की भी मानव सभ्यता का स्वरुप बदलने में गंभीर भूमिका रही है. विश्वव्यापी महामारी के रूप में फैलने वाली बीमारियाँ भी ऐसी ही आपदाओं में से एक हैं. इन आपदाओं के अनेकानेक नकारात्मक प्रभाव होते हैंकिन्तु ये आने वाले समय के लिए मानव समाज के समक्ष अनेकानेक सकारात्मक सबक और समझ भी छोड़ जाती हैं. यह मानव समाज पर निर्भर है कि वह इन सकारात्मक सबक और समझ को अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए संजो कर रखता है या फिर अपने उसी पुराने ढर्रे पर बढ़ता रहता है.
विश्वव्यापी महामारियों के इतिहास पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि इतिहास में अभिलिखित विवरणों के अनुसार ईसा पूर्व 430 से लेकर सद्यःव्याप्त कोविड-19 तक के लगभग 2500 वर्षों में मानव सभ्यता पर भारी प्रभाव डालने वाली कुल 17 विश्वव्यापी महामारियों में से 10 पिछले 400 वर्षों में आयी हैं. इनकी प्रवृत्ति से पता चलता है कि जैसे-जैसे सभ्यता का आधुनिकीकरण तेज होता गया है, महामारियों का आवर्तन बढ़ता गया है और पिछले लगभग 100 वर्षों में ही हमें 5 महामारियों का प्रकोप झेलना पड़ा है. दुर्भाग्य से इन पाँचों घटनाओं ने व्यापक रूप से मानव जीवन का विनाश किया है. सो, महामारी या विश्वव्यापी महामारी का प्रथम और सर्वाधिक गंभीर पहलू मानव जीवन की पीड़ा और मृत्यु का तांडव है और यह पहलू हमेशा रहेगा. फिर भी किसी वायरस के प्रसार के बड़े आर्थिक निहितार्थ होते हैं. अनेक अध्ययन और शोध बताते हैं कि ऐसी महामारियों के भारी आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं. इस तरह हर विनाश-लीला के बाद एक नए तरह का आर्थिक संकट के विरुद्ध मानव समाज को संघर्ष में उतरना पड़ा है. विश्वव्यापी महामारी किसी वेगवान तूफ़ान की तरह अपने पीछे मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक विपत्ति के पदचिन्ह छोड़ जाते हैं. ऐसे में जब चिकित्सा विज्ञान से जुड़े लोग वर्तमान संकट से निकलने का मार्ग खोज रहे हैं, इस तूफ़ान के टलने के बाद वृहत् स्तर पर आर्थिक पुनर्निर्माण की आवश्यकता होगी, जिस पर अभी से चिंतन करना आवश्यक है.
ऐसी परिस्थिति में श्रम बल का आकार छोटा हो जाता हैउत्पादकता घट जाती हैकार्यस्थल में अनुपस्थिति बढ़ जाती है. कुल मिलाकर आर्थिक गतिविधि पर प्राणान्तक प्रहार होता है. इस सब के कारण लोगों की व्यक्तिगत और समाज की सामूहिक आमदनी में जो क्षति होती है, उसे सम्मिलित करते हुए विशेषज्ञों के हाल के अनुमानों के अनुसार गंभीर विश्वव्यापी इन्फ़्लुएन्ज़ा महामारी (1918 का उदाहरण ले सकते हैं) से उत्पन्न क्षति का कुल मूल्य प्रति वर्ष लगभग 500 बिलियन यूएस डॉलर के बराबर जा सकती हैजो वैश्विक आमदनी का लगभग 0.6% है. विशेषज्ञों के विश्लेषण यह भी बताते हैं कि इन क्षति में वार्षिक राष्ट्रीय आय पर अलग-अलग आनुपातिक असर होता है न्यून, मध्यम आय वाले देशों पर क्षति का ज्यादा गंभीर प्रभाव (1.6%) और उच्च आय वाले देशों पर अपेक्षाकृत काफी कम (0.3%) प्रभाव पड़ता है. एक विकासशील देश होने के नाते और विकसित देशों की तुलना में हमारे देश की न्यून प्रति व्यक्ति आय को देखते हुए हमारे लिए इस आर्थिक क्षति और आर्थिक पुनर्निर्माण पर गंभीरता से सोचना और भी ज़रूरी हो जाता है. इस सन्दर्भ में सबसे पहले यह विचारणीय है कि अर्थव्यवस्था के किन क्षेत्रों को यह महामारी अपनी चपेट में ले सकती है. सबसे पहले तो इसका असर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र पर होगा. इसके बाद मुख्य रूप से कृषि और कृषि व्यापारपर्यटनऔर शेयर बाज़ार  इसके प्रभाव-क्षेत्र में आ सकते हैं. हमें एक-एक करके इन बिन्दुओं को समझना और समाधान निकालना होगा.
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवा तंत्र पर इसका प्रभाव पड़ेगा. महामारी की अवस्था में सामान्य परिस्थिति में अस्पतालों में जो औसत भर्ती होती है, उसमें अचानक बेतहाशा वृद्धि हो जाती है और इसके प्रशासनिक और परिचालनगत खर्चे ऊंचाई छूने लगते हैं, जैसा कि अभी हम देख रहे हैं. भारत इस मामले में भाग्यशाली रहा है कि बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में फैली एचआईवी-एड्स, सार्स, मर्स या हाल के वर्षों के ज़ीका, इबोला, या विविध बर्ड फ़्लू आदि का बहुत गंभीर प्रहार नहीं झेलना पडा. इनमें सार्स और मर्स तो कोरोना वायरस से ही होने वाले रोग हैं. किन्तु इंग्लैंड जैसे ज्यादा प्रभाव वाले देशों में इन रोगों के कारण भारी आर्थिक बोझ वहन करना पड़ा. स्वास्थ्य सेवा में इस प्रकोप के कारण चिकित्सकीय उपकरण, विशेषकर जांच सामग्रियों और श्वसन यंत्रों की ज़रुरत होगी. भारत के प्रधानमन्त्री ने अच्छी पहल करते हुए इस दिशा में परस्पर सहयोग के लिए अपने पड़ोसी देशों और विश्व समुदाय को सक्रिय किया है.
- रवि प्रकाश
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत

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