Sunday, October 25, 2020

विजयादशमी २०२०- भारत की भावात्मक एकता व विविधता के सम्मान के मूल में हिंदू संस्कृति – डॉ. मोहन भागवत

  राष्ट्रीय एकात्मता के विरुद्ध सक्रिय अलगाववादी ताकतों को परास्त करें

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने विजयादशमी उत्सव (रविवार, 25 अक्तूबर 2020) के अवसर पर उद्बोधन में कहा कि शासन-प्रशासन व समाज के सभी अंगों ने मिलकर कोरोना के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों का सामना कियाउसके कारण विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारा भारत संकट की इस परिस्थिति में अधिक अच्छे प्रकार से खड़ा हुआ दिखाई देता है.

सरसंघचालक ने कहा कि कोरोना की प्रतिक्रिया के रूप में विश्व में जागृत हुए स्व’ के महत्वपर्यावरण संरक्षण व संवर्धनराष्ट्रीयता व अन्य सांस्कृतिक मूल्यों की महत्ता को बनाए रखने के लिए परिवार एक महत्वपूर्ण इकाई है.” अपने छोटे-छोटे आचरण की बातों में परिवर्तन लाने का क्रम बनाकरनित्य इन सब विषयों के प्रबोधन के उपक्रम चलाकरहम अपनी आदत के इस परिवर्तन को कायम रखकर आगे बढ़ा सकते हैं. प्रत्येक कुटुम्ब इसकी इकाई बन सकता है.”  उन्होंने कहा कि सौहार्द को बढ़ावा  देने हेतुसभी अपनी सबकी एक बड़ी पहचान हिंदुत्व’ को स्वीकार करें.

स्वदेशी व स्वावलंबन की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा, ”स्वदेशी केवल सामान व सेवा तक सीमित नहीं. इसका अर्थ राष्ट्रीय आत्मनिर्भरताराष्ट्रीय सम्प्रभुता तथा बराबरी के आधार पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की स्थिति को प्राप्त करना है….स्वावलम्बन में स्व’ का अवलम्बन अभिप्रेत हैस्व या आत्मतत्त्व का विचार इस व्यापक परिप्रेक्ष्य में सबको आत्मसात करना होगातभी उचित दिशा में चलकर यह यात्रा यशस्वी होगी.

कोरोना को लेकर भारतीय समाज व शासन की प्रतिक्रिया के संबंध में उन्होंने कहा, ” अपने समाज की एकरसता कासहज करुणा व शील प्रवृत्ति कासंकट में परस्पर सहयोग के संस्कार काजिन सब बातों को सोशल कैपिटल ऐसा अंग्रेजी में कहा जाता हैउस अपने सांस्कृतिक संचित सत्त्व का सुखद परिचय इस संकट में हम सभी को मिला.

सरसंघचालक ने स्वास्थ्यकर्मियोंप्रशासन के कर्मचारियों तथा सामान्य नागरिको की प्रशंसा करते हुए कहा, ”प्रशासन के कर्मचारीविभिन्न उपचार पद्धतियों के चिकित्सक तथा सुरक्षा और सफाई सहित सभी काम करने वाले कर्मचारी उच्चतम कर्तव्यबोध के साथ रुग्णों की सेवा में जुटे रहे. स्वयं को कोरोना वायरस की बाधा होने की जोखिम उठाकर उन्होंने दिन-रात अपने घर परिवार से दूर रहकर युद्ध स्तर पर सेवा का काम किया. नागरिकों ने भी अपने समाज बंधुओं की सेवा के लिए स्वयंस्फूर्ति के साथ जो भी समय की आवश्यकता थीउसको पूरा करने में प्रयासों की कमी नहीं होने दी.

इस संदर्भ में भावी चुनौतियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ”इस परिस्थिति से उबरने के लिए अब दूसरे प्रकार की सेवाओं की आवश्यकता है. … कोरोना के कारण जिन विद्यालयों को शुल्क नहीं मिलाउन विद्यालयों के पास वेतन देने के लिए पैसा नहीं है. जिन अभिभावकों के काम बंद हो जाने के कारण बच्चों के विद्यालयों का शुल्क भरने के लिए धन नहीं हैवे लोग समस्या में पड़ गए हैं. इसलिए विद्यालयों का प्रारम्भशिक्षकों के वेतन तथा बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ सेवा सहायता करनी पड़ेगी. विस्थापन के कारण रोजगार चला गयानए क्षेत्र में रोजगार पाना हैनया रोजगार पाना है उसका प्रशिक्षण चाहिएयह समस्या विस्थापितों की है… अतः रोजगार का प्रशिक्षण व रोजगार का सृजन यह काम करना पड़ेगा. इस सारी परिस्थिति के चलते घरों में व समाज में तनाव बढ़ने की परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है. ऐसी स्थिति में अपराधअवसादआत्महत्या आदि कुप्रवृत्तियां ना बढ़ेंइसलिए समुपदेशन की व्यापक आवश्यकता है.

इन परिस्थितियों में संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ”संघ के स्वयंसेवक तो मार्च महीने से ही इस संकट के संदर्भ में समाज में आवश्यक सब प्रकार के सेवा की आपूर्ति करने में जुट गए हैं. सेवा के इस नए चरण में भी वे पूरी शक्ति के साथ सक्रिय रहेंगे.

इस अवसर पर बीते वर्ष की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के विषय में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ”गत मार्च महीने से देश दुनिया में घटने वाली सभी घटनाओं को कोरोना महामारी के प्रभाव की चर्चा ने मानो ढक दिया है. पिछले विजयादशमी से अब तक बीते समय में चर्चा योग्य घटनाएं कम नहीं हुईं. संसदीय प्रक्रिया का अवलंबन करते हुए अनुच्छेद 370 को अप्रभावी करने का निर्णय तो विजयादशमी के पहले ही हो गया था. दीपावली के पश्चात् नवंबर को श्रीरामजन्मभूमि के मामले में अपना असंदिग्ध निर्णय देकर सर्वोच्च न्यायालय ने इतिहास बनाया. भारतीय जनता ने इस निर्णय को संयम और समझदारी का परिचय देते हुए स्वीकार किया. यह मंदिर निर्माण के आरंभ का भूमिपूजन दिनांक अगस्त को संपन्न हुआतब अयोध्या में समारोह स्थल पर हुए कार्यक्रम के तथा देशभर में उस दिन के वातावरण के सात्विकहर्षोल्लासित परंतु संयमितपवित्र व स्नेहपूर्ण वातावरण से ध्यान में आया.

देश की संसद में नागरिकता अधिनियम संशोधन कानून पूरी प्रक्रिया को लागू करते हुए पारित किया गया. कुछ पड़ोसी देशों से सांप्रदायिक कारणों से प्रताड़ित होकर विस्थापित किए जाने वाले बन्धुजो भारत में आएंगेउनको मानवता के हित में शीघ्र नागरिकता प्रदान करने का यह प्रावधान था. उन देशों में साम्प्रदायिक प्रताड़ना का इतिहास है. भारत के इस नागरिकता अधिनियम संशोधन कानून में किसी संप्रदाय विशेष का विरोध नहीं है. भारत में विदेशों से आने वाले अन्य सभी व्यक्तियों को नागरिकता दिलाने के कानूनी प्रावधानजो पहले से अस्तित्व में थेयथावत् रखे गए थे. परन्तु कानून का विरोध करना चाहने वाले लोगों ने अपने देश के मुसलमान भाइयों के मन में उनकी संख्या भारत में मर्यादित करने के लिए यह प्रावधान है ऐसा भर दिया. उसको लेकर जो विरोध प्रदर्शन आदि हुए उनमें ऐसे मामलों का लाभ उठाकर हिंसात्मक तथा प्रक्षोभक तरीके से उपद्रव उत्पन्न करने वाले तत्त्व घुस गए. देश का वातावरण तनावपूर्ण बन गया तथा मनों में साम्प्रदायिक सौहार्द पर आँच आने लगी. इससे उबरने के उपाय का विचार पूर्ण होने के पहले ही कोरोना की परिस्थिति आ गईऔर माध्यमों की व जनता की चर्चा में से यह सारी बातें लुप्त हो गईं. उपद्रवी तत्त्वों द्वारा इन बातों को उभार कर विद्वेष व हिंसा फैलाने के षड्यंत्र पृष्ठभूमि में चल रहे हैं.

चीन तथा भारत के अन्य पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों के बारे में सरसंघचालक ने कहा, ”इस महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही यह तो कहा ही जा सकता हैपरंतु भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने किया वह तो सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है. भारत का शासनप्रशासनसेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर खड़े होकर अपने स्वाभिमानदृढ़ निश्चय व वीरता का उज्ज्वल परिचय दियाइससे चीन को अनपेक्षित धक्का मिला लगता है. इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा. चीन ने अपनी विस्तारवादी मनोवृत्ति का परिचय इसके पहले भी विश्व को समय-समय पर दिया है. आर्थिक क्षेत्र मेंसामरिक क्षेत्र मेंअपनी अंतर्गत सुरक्षा तथा सीमा सुरक्षा व्यवस्थाओं मेंपड़ोसी देशों के साथ तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चीन से अधिक बड़ा स्थान प्राप्त करना ही उसकी राक्षसी महत्त्वाकांक्षा के नियंत्रण का एकमात्र उपाय है. इस ओर हमारे शासकों की नीति के कदम बढ़ रहे हैं ऐसा दिखाई देता है. श्रीलंकाबांग्लादेशब्रह्मदेशनेपाल ऐसे हमारे पड़ोसी देशजो हमारे मित्र भी हैं और बहुत मात्रा में समान प्रकृति के देश हैंउनके साथ हमें अपने सम्बन्धों को अधिक मित्रतापूर्ण बनाने में अपनी गति तीव्र करनी चाहिए. इस कार्य में बाधा उत्पन्न करने वाले मनमुटावमतान्तरविवाद के मुद्दे आदि को शीघ्रतापूर्वक दूर करने का अधिक प्रयास करना पड़ेगा.

विभाजनकारी शक्तियों के प्रति समाज को सचेत करते हुए उन्होंने कहा, ”शासन-प्रशासन के किसी निर्णय पर या समाज में घटने वाली अच्छी बुरी घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते समय अथवा अपना विरोध जताते समयहम लोगों की कृतिराष्ट्रीय एकात्मता का ध्यान व सम्मान रखकरसमाज में विद्यमान सभी पंथप्रांतजातिभाषा आदि विविधताओं का सम्मान रखते हुए व संविधान कानून की मर्यादा के अंदर ही अभिव्यक्त हो यह आवश्यक है. दुर्भाग्य से अपने देश में इन बातों पर प्रामाणिक निष्ठा न रखने वाले अथवा इन मूल्यों का विरोध करने वाले लोग भीअपने आप को प्रजातंत्रसंविधानकानूनपंथनिरपेक्षता आदि मूल्यों के सबसे बड़े रखवाले बताकरसमाज को भ्रमित करने का कार्य करते चले आ रहे हैं. 25 नवम्बर, 1949 के संविधान सभा में दिये अपने भाषण में श्रद्धेय डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने उनके ऐसे तरीकों को अराजकता का व्याकरण”(Grammer of Anarchy) कहा था. ऐसे छद्मवेषी उपद्रव करने वालों को पहचानना व उनके षड्यंत्रों को नाकाम करना तथा भ्रमवश उनका साथ देने से बचना समाज को सीखना पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि विभाजनकारी व समाज को खंडित करने का प्रयास कर रहे तत्व जानबूझकरहिन्दुत्व’ को अपने तिरस्कार व टीका टिप्पणी का पहला लक्ष्य बनाते हैं. हिन्दू किसी पंथसम्प्रदाय का नाम नहीं हैकिसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं हैकिसी एक जाति की बपौती नहीं हैकिसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है. वह इन सब विशिष्ट पहचानों को कायम स्वीकृत व सम्मानित रखते हुएभारत भक्ति के तथा मनुष्यता की संस्कृति के विशाल प्रांगण में सबको बसाने वालासब को जोड़ने वाला शब्द है. इस शब्द पर किसी को आपत्ति हो सकती है. आशय समान है तो अन्य शब्दों के उपयोग पर हमें कोई आपत्ति नहीं है.

उन्होंने कहा, ” ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ ऐसी घोषणाएँ देने वाले लोग इस षड्यंत्रकारी मंडली में शामिल हैंनेतृत्व भी करते हैं. राजनीतिक स्वार्थकट्टरपन व अलगाव की भावनाभारत के प्रति शत्रुता तथा जागतिक वर्चस्व की महत्वाकांक्षाइनका एक अजीब सम्मिश्रण भारत की राष्ट्रीय एकात्मता के विरुद्ध काम कर रहा है. यह समझकर धैर्य से काम लेना होगा. भड़काने वालों के अधीन ना होते हुएसंविधान व कानून का पालन करते हुएअहिंसक तरीके से व जोड़ने के ही एकमात्र उद्देश्य से हम सबको कार्यरत रहना पड़ेगा.

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