आत्मनिर्भरता
की हवा कुछ ऐसी चली कि दूसरों पर आश्रित रहने वालों ने अपनी जीवन शैली ही बदल दी.
कुछ ने अपने रोजगार की शुरुआत की तो कुछ ने नयी चीजों का अविष्कार ही कर डाला
जिससे उन्हें स्वावलंबी बनने में मदद मिलती है. इतना ही नहीं आत्मनिर्भरता की इस
होड़ में कुछ ने तो अपने स्वावलंबी बनने के साथ दूसरों को भी स्वालंबी बनाया और
उन्हें नौकरी भी दी.
लक्ष्मी विश्वकर्मा
इनमें से ही एक है काशी की लक्ष्मी विश्वकर्मा जो पहले दूसरों के यहाँ नौकरी करती थी लेकिन अब उन्होंने अपने यहाँ ही कई लोगों को दे चुकी हैं. पेशे से डिज़ाइनर लक्ष्मी की रेडीमेड कपड़ों की फैक्ट्री है जिसमें 50-60 लोग इस उद्योग से जुड़कर काम कर रहे हैं. |
रीना ने पति के साथ तीन हजार महिलाओं को भी बनाया स्वावलंबी
रीना |
शहंशाहपुर
की रीना ने जो काम किया वह आज दुनिया के लिए उदाहरण बन चुका है. रीना ने मुंबई में
नौकरी करने वाले पति को न सिर्फ व्यापार कराया बल्कि तीन
हजार महिलाओं को भी सरकार द्वारा लागू किये गये विभिन्न योजनाओं के माध्यम से
स्वावलम्बी बना चुकी हैं, उन्हें स्वरोजगार से जोड़ चुकी हैं.
40 से
ज्यादा महिलाओं को रोजगार से जोड़ा
सुमन
सुमन
की कहानी भी रीना से कम नहीं. सुमन का जीवन भी शादी के बाद आम महिलाओं जैसी हो
गयी. लेकिन सुमन ने इसमें परिवर्तन की ठानी और दिल्ली की फैक्ट्री में काम करने
वाले अपने पति को साथ लेकर सरकारी योजनाओं की सहायता से टाइल्स की दूकान खोली. अब
सुमन दूकान चलाने में अपने पति की मदद कर रही हैं. सुमन यहीं नहीं रुकी ऊन्होने 40 से
ज्यादा महिलओं को रोजगार से जोड़ चुकी है स्वरोजगार करने वाली महिलाओं को लाभकारी
योजनाओं के अंतर्गत लोन दिलाने और उन्हें रोजगार की व्यवस्था कराने में सहायता
करती हैं.
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