Saturday, December 19, 2020

अमर क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान

 

अशफ़ाक़ उल्ला भारत माता के ऐसे वीर सपूत थे जो देश की आजादी के लिये हंसते- हंसते फांसी पर झूल गए. उनका पूरा नाम अशफाक़ उल्ला खान वारसी हसरतथा. बचपन से ही इनके मन में देश के प्रति अनुराग था. देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढ़ाई करते थे. धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए. वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाए जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो. वे राम प्रसाद बिस्मिल से काफी प्रभावित थे, इसलिए जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे. धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए और बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए. इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आए.

जब काकोरी कांड हुआ और उन पर मामला चला तो वे पुलिस से आँख बचाकर भाग निकले. लोगों ने उनसे रूस चले जाने को कहा तो वे टाल जाते और कहते मैं सजा के डर से फरार नहीं हो सकता, मैं गिरफ्तार नहीं होना चाहता क्योंकि देश के लिये मुझे अभी बहुत काम करना है. वे लगातार संगठन के लिये काम करते रहे. आखिर 08 सितम्बर 1926 में दिल्ली में उन्हें पकड़ लिया गया. उन्हें लखनऊ लाया गया और फांसी की सजा दी गयी. उनका व्यवहार बड़ा मस्ताना था. उनको राम प्रसाद बिस्मिल का लेफ्टिनेंट कहा जाता था. जब उनको फांसी की सजा मुक़र्रर की गयी तो उन्हें ज़रा भी दुःख नहीं था. जब वह फांसी पर चढ़ रहे थे तो उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा – “मेरे हाथ इंसान के खून से कभी नहीं रंगे, मेरे ऊपर जो इल्जाम लगाया गया वह गलत है, खुदा के यहां मेरा इन्साफ होगाइसके बाद उनके गले में फंदा पड़ा और वे खुदा को याद करते हुए दुनिया से कूच कर गए. उनकी अंतिम यात्रा को देखने के लिये लखनऊ की जनता सड़कों पर उमड़ पड़ी. वृद्ध जन इस तरह से रो रहे थे मानो उन्होंने अपना ही पुत्र खोया हो. अमर शहीद अशफाक उल्ला खान देश की आजादी के लिये अपना सर्वस्व बलिदान कर पुण्य वेदी पर चढ़ गए. ऐसे वीर शहीद को कोटि कोटि नमन.

अशफाक़ उल्ला खां द्वारा लिखी गई कविता

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे,

आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे.

हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से,

तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे.

बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरखे का,

चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुँजा देंगे.

परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातमकी,

है जान हथेली पर, एक दम में गवाँ देंगे.

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज न निकालेंगे,

तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे.

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,

चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे.

दिलवाओ हमें फाँसी, ऐलान से कहते हैं,

खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे.

मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम,

आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे.

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