Friday, June 4, 2021

चीन - एक वैश्विक खतरा : तियानमेन स्‍क्‍वायर नरसंहार 1989 से लेकर कोविड 19 तक, जानें क्या है तियानमेन चौक नरसंहार...

The Narrative World द्वारा आयोजित सात दिवसीय वेबनार

चीन- एक वैश्विक खतरा (तियानमेन स्‍क्‍वायर नरसंहार 1989 से लेकर कोविड 19 तक) विषय पर 4 जून से 10 जून 2021 तक सायं 7 बजे से सात दिवसीय वेबनार का आयोजन The Narrative World के द्वारा किया जा रहा है।

जानें तियानमेन चौक नरसंहार (June 4)

कम्युनिस्टों द्वारा किए गए नरसंहार का इतिहास

चीन में कम्युनिस्ट सरकार 1949 से अस्तित्व में हैं. चीन में कम्युनिस्ट शासन की शुरुआत नरसंहारों से हुई थी| 1948-1951 यानि तीन सालों में 10,00,000 से भी ज्यादा लोगों की हत्या की गयी थी. यह सिलसिला कभी नहीं थमा| साल 1967 में 5000 लोगों को मार दिया गया| ऐसे ही 1979, 1994, 1998 और 2014 में भी नरसंहार हुए है|

क्या थीं तियानमेन चौक की घटना

अप्रैल, 1989 में रिफार्मिस्ट पार्टी के उपेक्षित नेता हु याओबांग की मौत पर क्षुब्ध छात्रों ने थियानमेन चौक पर कब्जा कर लिया था। वे एक पारदर्शी सरकार और अपने लिए ज्यादा लोकतांत्रिक अधिकार चाहते थे। इस नरसंहार को ‘‘चार जून की घटना’’ के रूप में भी जाना जाता है जो चीन के इतिहास में एक बड़ा धब्बा है|

4 जून, 1989 में बीजिंग में मानव खून की नदियाँ बह रही थी| एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के खिलाफ चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने बीजिंग की सड़कों पर टैंक उतार दिए| कुछ ही घटों में 10000 लोगों की जान चली गयी| इस घटना को थियानमेन स्‍क्‍वॉयर नरसंहार के नाम से जाना जाता है| 

चीन की कम्युनिस्ट सरकार स्वभावगत ही लोकतंत्र के खिलाफ है| यहाँ न चुनाव होते है, और न ही अभिव्यक्ति की आजादी है एवं सरकार की नीतियों का विरोध संभव नहीं है| इन्टरनेट पर भी कई प्रतिबन्ध लगाए हुए है|

भारत के कम्युनिस्ट चीन से बेहद प्रेरित हैं

कम्युनिज्म के इस विचार ने बंदूक और हिंसा के दम पर नक्सलवाद और अलगाववाद पैदा किया| सेना के जवानों के निधन पर जश्न मनाया और भारत के विभाजन का समर्थन किया है| पिछले दिनों जेएनयू में कम्युनिस्ट छात्रों द्वारा भारत विरोधी प्रदर्शन भी इसी वैचारिक परम्परा से पोषित था| आजकल इनका नया प्रारूप ‘अर्बन नक्सल’ के रूप में सामने है। 

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