Sunday, November 14, 2021

सनातन संस्कृति के सहारे पुनः विश्वगुरु बन सकता है भारत : आरिफ मोहम्मद खान

  • काशी में त्रिदिवसीय संस्कृति संसद का दूसरा दिन आठ सत्रों में संपन्न
  • दुनिया ने भारतीय सनातन संस्कृति को अपनी सोच के तौर पर नहीं, जरूरत के तौर पर स्वीकार किया

काशी। भारतीय सनातन संस्कृति वह है जिसमें सुदृढ़ करने की प्रक्रिया निरंतर चलती है। यह प्रक्रिया भी सनातन है। भारत की संस्कृति पुरातन है मगर इसमें नई बनाने की क्षमता रखता है, जो मेरी संस्कृति, आपकी संस्कृति और पूरे राष्ट्र की संस्कृति है। इसे दुनिया मानती है। इसी संस्कृति के आधार पर भारत पुनः विश्वगुरु बन सकता है। यह विचार केरल के राज्यपाल एवं संस्कृति संसद के दूसरे दिन के प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता आरिफ मोहम्मद खान ने रुद्राक्ष अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सम्मेलन केन्द्र, वाराणसी में व्यक्त किया।

आरिफ मोहम्मद ने कहा कि भारत का यह मत है कि हम किसी को भी बाहर नहीं कर सकते। मानव सेवा ही माधव सेवा होती है। हम सब एक ही आत्मा के बंधन से बंधे हुए है। हमारी संस्कृति में विपरित भक्ति की भी व्यवस्था है यानी जो निंदा करता है, उसे भी अपने साथ लेकर चलिए। धर्म और अर्धम के उलझे आदमी को शंकराचार्य, स्वामी विवेकानन्द और संतों की जरूरत होती है। आदि शंकराचार्यजी ने शांति की स्थापना के लिए भारत के चार कोनों में चार मठ स्थापित किए जो चार वेदों के उपदेश से संचालित होते हैं परंतु वेद से नहीं बल्कि विचार से एकता सुदृढ़ होगी। विदेशों में बोलने वाले स्वामी विवेकानन्द के विचार सुनकर विश्व के लोगों ने उसे अपनाया क्योंकि उनके विचार भारतीय संस्कृति से जुड़े थे। ऋषियों ने सिर्फ मानव कल्याण के लिए तपस्या कर यह प्राकृतिक सिद्धांत खोजा। हम अपनी संस्कृति पर गर्व करें अहंकार नहीं लेकिन जरूरत इसकी भी है कि थोड़ी शर्म करें। गर्व इसलिए कि पूरी दुनिया में भारत की संस्कृति को अंश विराजमान है। शर्म इसलिए कि हम अपनी संस्कृति को दुनिया में बताने में नाकाम हो रहे हैं। भारत विश्वगुरु था है और रहेगा, ये क्षमता उसे उसकी संस्कृति के माध्यम से मिलती है।

उन्होंने कहा कि काशी में शंकराचार्य ने चाण्डाल का भी पैर छुआ है। विद्या और विनय ये दोनों मनुष्य के लिए सबसे बड़ा ज्ञान है। सभी जीवों में एक ही परमात्मा का निवास होता है। भारत को नई दिशा दिखाने के लिए दुनिया में संस्कृति नस्ल, भाषा, रूप-रंग से बांटी जाती है परंतु ऋषि-मुनियों व संतों ने इन सभी को आधार ना मानकर आत्मा को आधार बनाया है। भारतीय संस्कृति इतनी समावेशी है जहां रावण के खिलाफ उसके दुष्ट व्यवहार के लिए कार्रवाई होती है। दुनिया ने इस संस्कृति को अपनी सोच के तौर पर नहीं, जरूरत के तौर पर स्वीकार किया। एक प्रश्न के उत्तर में आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जिन्ना के दादा मुसलमान नहीं थे और बाप भी पक्की उम्र में मुसलमान हुए हैं।

आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि आधुनिक लोकतंत्र भले ही पश्चिम की देन है परन्तु भारत में आध्यात्मिक लोकतंत्र हजारों वर्ष पुराना है। इस आध्यात्मिक लोकतंत्र का मूल आधार आत्मा है और यही आत्मत्व सबको एक करती है। उन्होंने कहा कि भारत में उस समय से महिलाओं का सम्मान है जबकि पश्चिम में महिलाओं में आत्मा को न मानने की परम्परा थी। उन्होंने कहा कि समभाव भारत की संस्कृति का मूल आधार है। इसे हमें मजबूत करना चाहिए।

इस सत्र की अध्यक्षता अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष आचार्य अविचल दास ने किया तथा सत्र का संचालन दूरदर्शन के अशोक श्रीवास्तव ने किया। स्वागत संस्कृति संसद कार्यक्रम की अध्यक्षा सांसद रुपा गांगुली ने की। सत्र का शुभारम्भ एवं समापन राष्ट्रगान से हुआ।

द्वितीय सत्र : पाकिस्तान एवं चीन से अपनी संस्कृति व देश को बचाने के लिए सतर्कता आवश्यक - डॉ. अशोक बेहुरिया

चीन पाकिस्तान की राजनीतिक, आर्थिक एवं रक्षा जैसे तीनों मोर्चों पर खुले रूप से पाकिस्तान की मदद कर रहा है। दोनों ही देश चीन व पाकिस्तान भारत को घेरने की कोशिश कर रहे है। सत्र में इस बात पर भी चिंता जताई गयी कि हमारे देश में हमारे आस पास पड़ोस में भी कुछ ऐसे छोटे-छोटे गुट हैं जो हमारे विरोधी मुल्क की मदद कर रहे हैं। यह विचार ‘ढाई युद्ध के मोर्चों पर भारत व राष्ट्रीय सुरक्षा में आम नागरिकों की भूमिका’ विषयक सत्र में रक्षा विशेषज्ञ डॉ. अशोक बेहुरिया (निदेशक आईडीएसए) ने व्यक्त किया। अशोक रक्षा विभाग से जुड़े हैं उनका उद्देश्य सरकार को ऐसे आंकड़े मुहैया कराना है। 

उन्होंने कहा कि भारत एक साथ दो मोर्चों पर युद्ध लड़ रहा है। पूरब की ओर चीन तो पश्चिम की ओर पाकिस्तान से खतरा है। पाकिस्तान में होने वाले परमाणु संयंत्रों में भी चीन का काफी योगदान रहा है। भारत ने अटल बिहारी वाजपेयी के समय से ही अपने ९० प्रतिशत हथियार जो वह रशिया से खरीदा था, उसको बदलकर अब वह आत्मनिर्भर या पश्चिमी देशों या अच्छी गुणवत्ता वाले हथियार बनाने वाले देशों की ओर ले गया। उत्तरी मोर्चे की बात की जाए तो २०२० और २०२१ में डोकलाम व गलवान घाटी में चल रहे गतिरोध को इसका एक मुख्य स्रोत माना जा सकता है। हमारे देश में कुछ लोग हमारी संस्कृति को कमजोर  करने में लगातार लगे हुए हैं| वह पाकिस्तान और चाइना का आंतरिक या परोक्ष रूप से हमेशा से समर्थन करते आ रहे हैं, जबकि यह किसी राष्ट्र भावना के लिए बहुत ही बड़ा शर्म की बात है। हमें इस भावना को हटाना होगा तथा ऐसे व्यक्तियों को समझाकर अपने साथ अपनी संस्कृति की मुख्यधारा में जोड़ना होगा।

हाल में ही हुए एक साइबर अटैक पर अपने निजी विचार प्रकट करते हुए उन्होंने बताया कि हमारे विभाग में सभी कंप्यूटर को हांगकांग की एक शाखा ने हैक कर लिया तथा कुछ हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा से निधि जानकारी एवं गोपनीयता से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी इकट्ठा कर ले गए। उन्होंने विचारों को साझा कर बताया कि हमें सांस्कृतिक तौर पर सुदृढ़ एवं मजबूत होने के लिए सैन्य राजनीतिक आर्थिक के साथ-साथ इंटरनेट व सोशल मीडिया पर भी नियंत्रण करना होगा जिससे हमारी संस्कृति में सेंध मारने वालों को करारा जवाब मिल सके।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में अलग-अलग धर्म जैसे देवबंदी, बरेली या शिया-सुन्नी, देवबंदी बरेली या आधी धर्मों में इस्लाम बंटा हुआ है। पाकिस्तान एक राष्ट्र के तौर पर खुद को इस्लाम कंट्री का मुख्य स्रोत मानता है, जबकि वह खुद ही आंतरिक गतिरोध से जूझ रहा है। देश को इकट्ठा करने का उसके पास मात्र एक भारत एवं कश्मीर मुद्दा ही है जिससे वह लोगों को बरगला कर अपने साथ समेटने की नाकाम कोशिश करता आ रहा है।

अफगानिस्तान के तालिबान की तर्ज पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का जन्म २०१५ के आसपास शुरू हुआ इसमें उस तालिबानी पाकिस्तानी सोच को दर्शाया गया है, जिसमें उनका कहना है कि भारत के विघटन अर्थात १९४७ में बंटवारे के बाद हमारी भूमि हमारा भौगोलिक अंश ना बांटकर हमारा धर्म ही बड़ा है। हमें इस धर्म को एक साथ करना होगा। वहीं पाकिस्तान के खिलाफ है वहां की सेना वहां के विचारों से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान अपना विचार पृथक करती हुई नजर आ रही है। उनका वक्तव्य हमारे संस्कृति के लिए अति महत्वपूर्ण हमें इसे हर मोर्चे पर देखना चाहिए। चाहे वह सैन्य हो राजनीतिक और आर्थिक हो व्यापारिक हो अथवा नवीन इंटरनेट का मोर्चा हो। सभी मोर्चों पर अपनी संस्कृति को बचाने तथा उसकी सुरक्षा करने के लिए हमें मुख्य रूप से आगे बढ़कर संस्कृति को आगे ले जाने का आवाहन करना चाहिए।

तृतीय सत्र : ११ से १६वीं सदी के बीच मारे गए दस करोड़ हिन्दू - कोनराड एल्स्ट

संस्कृति संसद के दूसरे दिन के तीसरे सत्र के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध इतिहासकार कोनराड एल्स्ट ने ‘हिन्दू होलोकास्ट; हिन्दू संस्कृति पर दो हजार वर्षों तक हुए हमले’ विषय पर बोलते हुए कहा कि हिंदुस्तान में लगभग ६३६ ई. से हिंसक हमले शुरू हुए। इस हमले में ११वीं शताब्दी से लेकर १६वीं शताब्दी के शुरुआत तक लगभग ८ से १० करोड़ हिन्दुओं का नरसंहार हुआ।

उन्होंने कहा कि यह आंकड़ा अनुमानित है। १९४७ में बंटवारे के समय व १९७१ में बांग्लादेश पाकिस्तान के बंटवारे के समय भी यही स्थिति हुई और लाखो लोग मारे गए। उक्त इतिहास में आज तक जितने हिन्दू नरसंहार की बात की गई है उस पर किसी भी सरकार ने शोध नहीं कराया और न इस पर दृष्टि ही गई। उन्होंने कहा कि हमलावरों का नरसंहार करने का कोई उद्देश्य नहीं था उनका उद्देश्य धर्मांतरण करवाना था। जिसने धर्मांतरण स्वीकार नहीं किया उसकी हत्या हुई। हिंदू नरसंहार पर चर्चा करते हुए कहा की नरसंहार शब्द को बहुत आसानी से इधर-उधर फेंक दिया जाता है। हिन्दू वंशसंहार की घटनाएं अभी भी किसी न किसी रूप में चल रही हैं जो दुःखद है।

इसी क्रम में इतिहासकार विक्रम संपथ ने कहा कि आजकल तक भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व पर हुए हमले से हमें सीख लेनी चाहिए और साथ ही होलोकास्ट विषय पर भी चर्चा की जानी चाहिए। अगर आक्रान्ताओं की बात करें तो सबसे अधिक नुकसान उत्तर भारतीय मंदिरों को हुआ लेकिन दक्षिण भारतीय मंदिरों की स्थिति आज भी पूर्व के समान ही है, क्योंकि आक्रांता वहां तक पहुंच ही नही पाये जिससे कि उनकी सम्पन्नता आज भी बनी हुई है। आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि गजनी का भारत पे आक्रमण का मकसद धन अर्जित करना नही बल्कि उनका नास करना है। उन्होंने कहा कि नालन्दा विश्वविद्यालय को नष्ट करने हेतु उसके ९०,००० पुस्तक नष्ट कर दिए। हिंदुकुश और कश्मीरी पंडितों के नरसंहार भी हिन्दू होलोकास्ट की ही परम्परा का भाग है। इस सत्र का संचालन सी.पी. सिंह ने किया।

चतुर्थ सत्र : पूर्वोत्तर भारत के लोगों से सम्पर्क बढ़ाना आवश्यक

वर्तमान समय में पूर्वोत्तर भारत राष्ट्रविरोधी शक्तियां अपना षड्यंत्र चला रही हैं। उसे रोकने के लिए आवश्यक है कि हम पूर्वोत्तर के लोगों से निकटतम सम्बंध बनाए तथा वहां जाएं। यह विचार भाजपा के राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर ने ‘पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक चुनौतियाँ’ विषयक सत्र में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर भारत में वर्तमान सरकार के प्रयासों से सकारात्मक वातावरण बन रहा है और इसे बढ़ाने के लिए हमें पूर्वोत्तर भारत के लोगों से सम्पर्क संवाद बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए पूर्वोत्तर भारत के पर्यटन को भी बढ़ावा देना चाहिए। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि सभी मुसलमान एक ही तरह के नहीं हैं उसमें भी कुछ राष्ट्रवादी हैं। इसी तरह उन्होंने घरवापसी को राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक माना।

इसी क्रम में लोकसभा के सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल ने कहा कि भारतीय संस्कृति की समस्या पर समाधान मिल गया है लेकिन काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है, जहां भी हैं हमें पूर्वोत्तर से प्रेम करना है। आप सभी पूर्वोत्तर के बारे में पढ़े और उसे जानें| आप जहां भी रहते हैं आपको पूर्वोत्तर भारत के बच्चे मिलेंगे। कर्मचारियों के रूप में, अलग-अलग जगह पर। सबसे पहले चेहरे के अलगाव से उसे भारतीय ना मानना यह गलत है| हमारे देश के व्यक्ति को कोई बाहर का व्यक्ति कुछ बोले यह अपमान नहीं होना चाहिए। बल्कि हमें उस व्यक्ति के साथ आत्मीयता और दोस्ती का भाव रखना चाहिए। भले वह इसाई हो। हमें उससे दोस्ती करनी चाहिए। यदि किसी को डराकर, धमकाकर बलपूर्वक उसका धर्म परिवर्तन कराया गया है तो उसके साथ आत्मीयता का प्रेम भाव रखकर उसके सत्य का साक्षात्कार करेंगे। तो वह वापस आ जाएगें। संचालन गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री (संग.) गोविंद शर्मा ने किया।

पांचवां सत्र : सरकारें मस्जिद और चर्च में नहीं वरन मंदिर में करती हैं हस्तक्षेप - आलोक कुमार

विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने १९९१ में बने उपासना स्थल कानून के बारे में कहा कि यह कानून अचानक बना दिया गया था लेकिन लोगों ने मन से इसे स्वीकार नहीं किया। इसे भी बदलना आवश्यक है। यह विचार उन्होंने पांचवें सत्र में व्यक्त किया।

उन्होंने कहा कि किसी ने नहीं सोचा था कि आज अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण होगा। इसी तरह कश्मीर से धारा ३७० व ३५ए आसानी से हटेगी, यह भी किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन यह आज संभव हो पाया है। कुछ वामपंथी एनजीओ और चर्च द्वारा हिंदुओं में ऐसी भावना पैदा कर दी गई है कि हमें लगे कि हम ही गलत है। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि इसके लिए हमारे त्योहारों को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारें मस्जिद और चर्च में तो हस्तक्षेप नहीं करती लेकिन मंदिर में हस्तक्षेप करती है। अपनी शिक्षा संस्थान चलाने का अधिकार सिर्फ अल्पसंख्यकों का है, हमें नहीं।

इसी क्रम में ‘उपासना स्थल अधिनियम १९९१ एवं अन्य धार्मिक कानून, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदुओं का दमन’ विषय पर चर्चा करते हुए गंगा महासभा और अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि १९९१ में सरकार के द्वारा बनाए गए कानून जिसके अनुसार मंदिर और मस्जिद उसी स्थिति में रहेंगे। इसे काला कानून बताया। उन्होंने कहा कि इसे लोगों ने स्वीकार नहीं किया। १८ इतिहासकारों द्वारा बिना अयोध्या में आए यहां के बारे में गलत इतिहास लिखा गया जिसे बाद में खारिज कर दिया गया लेकिन हमारी न्याय प्रणाली ऐसी है| किसी इतिहासकारों के ऊपर कोई कार्यवाही नहीं हुई। स्वामी जी ने कहा कि हमारे शिक्षक पाठ्यक्रम में उनके इतिहास पढ़ाए जा रहे हैं। आयोग उन पर भी कोई मुकदमा नहीं कर रहा है| उन्होंने धर्म के आधार पर बंटवारे के संदर्भ में कहा कि आजादी के ७५ साल बाद भी हम अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं, अल्पसंख्यकों को जितना अधिकार है, उतना अधिकार हिंदुओं को नहीं है।

सत्र को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि देश को विकास के लिए एक समान नागरिक संहिता आवश्यक है। समान नागरिक संहिता भारतीय संविधान की आत्मा है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों द्वारा १८६० में बनाई गई भारतीय दंड संहिता, १९६१ में बनाया गया| पुलिस ऐक्ट, १८७२ में बनाया गया| एविडेंस एक्ट और १९०८ में बनाया गया| सिविल प्रोसीजर कोड सहित सभी कानून बिना किसी भेदभाव के सभी भारतीयों पर समान रूप से लागू हैं।

उन्होंने कहा कि सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने वाले कानून आज भी हमारे देश में मौजूद हैं, जिनका विरोध कोई नहीं कर रहा जबकि यह भारतीय नागरिक की जिम्मेदारी हैं कि वो अंग्रेजी कानूनों का विरोध करे। कांग्रेस को घेरते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने सभी कानून अपने वोट के लिये बनाये जो कि अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानूनों के समान है।

उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता शुरू से भाजपा के मैनिफेस्टो में है, इसलिए भाजपा समर्थक इसका समर्थन करते हैं और भाजपा विरोधी इसका विरोध करते हैं लेकिन सच्चाई तो यह है कि समान नागरिक संहिता के लाभ के बारे में न तो इसके अधिकांश समर्थकों को पता है और न तो इसके विरोधियों को, इसीलिए समान नागरिक संहिता का एक ड्राफ्ट तत्काल बनाना नितांत आवश्यक है। कहा कि वर्तमान समय में अलग-अलग धर्म के लिए लागू अलग-अलग ब्रिटिश कानूनों से सबके मन में हीन भावना व्याप्त है| इसलिए सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता' लागू होने से हीन भावना से मुक्ति मिलेगी। कहा कि ‘एक पति-एक पत्नी’ की अवधारणा सभी पर समान रूप से लागू होगी और बांझपन या नपुंसकता जैसे अपवाद का लाभ एक समान रूप से मिलेगा चाहे वह पुरुष हो या महिला, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या इसाई। अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून होने के कारण अनावश्यक मुकदमे में उलझना पड़ता है। सबके लिए एक नागरिक संहिता होने से न्यायालय का बहुमूल्य समय बचेगा। सत्र का संचालन गोविंद शर्मा ने किया।

छठा सत्र : निर्मल गंगा हमारी जिम्मेदारी - इंद्रेश कुमार

गंगा हमेशा निर्मल और अविरल रहे यह हमारी जिम्मेदारी है। इसके लिए भारत सरकार ने एक आयोग बनाया है। यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने ‘संस्कृति की अविरल धारा माँ गंगा’ विषयक सत्र में व्यक्त किया।

उन्होंने कहा कि गंगा रक्षा के लिए संस्कृत और हिंदी भाषा को विश्व की संवाद भाषा बनाएं। गंगा हमें प्रकृति से प्रेम का संदेश देती है। भारत में अनेक नदियां हैं लेकिन मन और शरीर को निर्मल करने वाली नदी माँ गंगा हैं। हमारी संस्कृति में बहुत शक्ति है। भ्रष्टाचार हमारी जीवनशैली बन गयी है। गंगा हमेशा निर्मल रहे, स्वच्छ रहे यह हमारी जिम्मेदारी है। हमें संकल्प लेना चाहिए कि गंगा को हमेशा स्वच्छ रखें। सत्र का संचालन स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने किया।

सातवां सत्र : फिल्मों से गायब है भारतीय संस्कृति - अखिलेन्द्र मिश्र

फिल्मों से भारतीय संस्कृति गायब है। यह दुःखद है। वर्तमान समय में इसके कारण युवाओं पर कुप्रभाव पड़ रहा है तथा युवा अपराध की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्व की सांस्कृतिक राजधानी काशी में संस्कृति संसद का आयोजन कई मायनों में अद्भुत है। सिनेमा और साहित्य दो यथार्थ का मिलन है। १९२० के बाद साहित्यिक फिल्मों का आगमन हुआ। १९३४ में आई फिल्म ‘मिल और मजदूर’ का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि फिल्म को देखकर मजदूर वर्ग में जागरुकता का संचार हुआ। उन्होंने आज के सिनेमा को शराब के व्यापारी जैसा बताया। उन्होंने कहा कि पहले दौर में सिनेमा को समाज के लिए कई मायनों में अच्छा नहीं माना जाता था। आज की सामाजिक गतिविधियों पर फिल्म बनाने की भी चर्चा की। उन्होंने आगे कहा कि मदर इंडिया जैसी फिल्म को १९५६ में ऑस्कर मिला उसके कई दशकों बाद लगान फिल्म को २००१ में एक अवॉर्ड मिला। इन दोनों फिल्मों के बीच का जो समय था उसमें फिल्मों के साथ कोई गम्भीरता नहीं दिखाई गई। इसका एक प्रमुख कारण फिल्मों से भारतीय संस्कृति का गायब होना है। हिन्दी फिल्मों में संस्कृति का उपयोग नाममात्र रह गया है। उन्होंने कहा कि माता-पिता ऐसी फिल्मों को देखकर ही बच्चों को संस्कृति से दूर कर रहे हैं, उन्हें भारतीय संस्कृति की तनिक भी जानकारी नहीं है। फिल्म बनाने वालों को भी भारतीय संस्कृति की जानकारी नहीं है। वेबसीरिज की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी फिल्में समाज के लिए घातक हैं, जो अश्लीलता और अपराध दिखाए जा रहे हैं| इसका युवाओं पर गलत प्रभाव पड़ रहा है। अब सिनेमा समाज के लिए नहीं, व्यापार के लिए बनाया जा रहा है।

इसी क्रम में जगद्गुरु स्वामी श्री राजराजेश्वराचार्य ने आयोजकों और कार्यकर्ताओं का धन्यवाद करते हुए कहा कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से काशी का अलग महत्व है। आज के युवाओं को अपने वेदों का पाठ करना चाहिए और उन्हीं कहानियों से जुड़ी फिल्मों को देखना चाहिए। फिल्म निर्माताओं को भी चाहिए कि भारतीय वेदों, पुराणों और संस्कृति से जुड़ी फिल्मों का प्रचार-प्रसार करे। वर्तमान समय में युवाओं में संस्कृति का जो बीज बोया जा रहा है, वह सच्चाई से बिलकुल अलग है। सत्र संचालन सुनील किशोर द्विवेदी ने किया। तत्पश्चात भक्ति किरण शास्त्री ने बाबा विश्वनाथ के जयकारें लगाते हए सभी अतिथियों को गंगाजली भेंट कर उनका सम्मान किया।

आठवां सत्र : युगानुकूल धर्म के आचरण की व्यवस्था है स्मृतियों में प्रो0 वाचस्पति

वेदों की व्यवस्था का विकास पुराणों एवं स्मृतियों में है। स्मृतियों में युगधर्म के अनुसार धर्माचरण की व्यवस्था है। इसे ही सरल भाषा में पुराणों में व्यक्त किया गया है। यह विचार दिल्ली के विद्वान प्रोफेसर वाचस्पति ने युगानुकूल आचार संहिता एवं हिन्दू धर्मिक निर्णय विषयक सत्र में व्यक्त किया।

उन्होंने कहा कि लॉर्ड मैकाले शिक्षा पद्धति ने हमारी संस्कृति में ही छेद कर दिया है। हमारे वैदिक संस्कृति सभ्यता को पंगु बना दिया है। मैकाले शिक्षा पद्धति ने हमारे युवाओं को वेदों के बारे में ना जानने के लिए अपनी शिक्षा नीति हम पर थोपी तथा फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई। उन्होंने कहा कि हमारा सनातन धर्म बहुत उदार है, पृथ्वी पर ऐसा कोई धर्म नहीं है। धर्म के स्रोत की बात करें तो वेद हमारे धर्म की जड़ में निहित है। वेद धर्म के मूल में है, इसमें तर्क करने का आदेश नहीं है। वही स्मृति के अनुसार धर्म में निर्णय लेने की बात कही गई है। पुराणों को सरलतम भाषा में लिखा गया है जिसे बदलते युगों में मानव को अपने धर्म को पढ़ने तथा उसे दिनचर्या में लाने में आसानी हो। उन्होंने कहा कि जैसे भारत के संविधान में समय-समय पर संशोधन होता है उसी तरह से भारतीय सनातन धर्म में युगानुकूल परिवर्तन की व्यवस्था है।

इसी क्रम में प्रोफेसर राम किशोर त्रिपाठी ने बताया कि अपवित्रता की स्थिति में मंदिरों में पूजन नहीं करना चाहिए क्योंकि पत्थरों को तराश कर मूर्ति बनाई जाती है| मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और अपवित्रता की स्थिति में उस प्राण को पुनः उस मूर्ति में प्रतिष्ठित किया जाता है इसलिए हमें अपवित्र होने के संदर्भ में मंदिर में पूजन कार्य नहीं करना चाहिए। उन्होंने बताया कि संक्रामक रोगों से लड़ने के लिए हमारे वेदों में पहले से ही भोजन को एकांत में करने की व्यवस्था बनाई गई है, जिससे संक्रामक रोग एक से दूसरे व्यक्ति में न पहुंच सके जो एक वैज्ञानिक लक्षण को दर्शाता है। सतयुग में मूर्ति पूजा नहीं होती थी ओंकार आकृति पूजा होती थी| सबसे पहले लिंग पूजा भगवान श्रीराम ने की और इससे स्पष्ट है कि सनातन धर्म में युगानुरुप पूजा पद्धति एवं धार्मिक व्यवस्था में परिवर्तन हुए। इस सत्र का संचालन सुनील किशोर द्विवेदी ने किया।

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