Wednesday, December 8, 2021

अमृत महोत्सव : स्वतंत्रता संग्राम के अज्ञात सेनानी – कांगड़ा के वीर सिंह गुलेरिया, बर्लिन से हिन्दुस्तान में देते थे नेता जी का संदेश

 

देश की स्वतंत्रता के लिए आजाद हिन्द सेना के संस्थापक नेता जी सुभाष चंद्र बोस जर्मनी के बर्लिन रेडियो स्टेशन से हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान से बाहर रहने वाले भारतीयों से संवाद स्थापित करते थे. देशभक्ति से ओत- प्रोत नेता जी के शब्दों को कांगड़ा जिला के रैत ब्लॉक के टुंडु गांव निवासी वीर सिंह गुलेरिया धाराप्रवाह अंग्रेजी और हिंदी में हिन्दुस्तानियों तक पहुंचाते थे. बर्लिन रेडियो स्टेशन पर दो साल तीन महान रेडियो अनाउंसर रहे गुलरिया बेशक अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन आजाद हिन्द सेना के इस सिपाही की राष्ट्रभक्ति की चमक आज भी बरकरार है. स्वतंत्रता सेनानी वीर सिंह के जीवन से जुड़े कुछ प्रसंग


देश के नाम क्रांति का संदेश

गाजियों में बू रहेगी जब तलक इंमान की,

तब तो लंदन तक चलेगी तेग हिन्दोस्तान की
क्रांति का बिगुल फूंकने वाले इन शब्दों के साथ जर्मनी के बर्लिन में स्थित फ्री इंडिया सेंटर रेडियो स्टेशन के कार्यक्रमों की शुरूआत होती थी. नेता जी की खास रणनीति के तहत तैयार किए जाने वाले इन कार्यक्रमों का प्रसारण नियमित होता था और यह कार्यक्रम हिन्दुस्तानियों पर गहरा प्रभाव डालते थे. अंग्रेजी और हिंदी धाराप्रभाव बोलने के चलते अनाउंसर की जिम्मेवारी वीर सिंह गुलेरिया को सौंपी गई थी. अपने काम को गुलेरिया कितनी शिद्दत से निभाते रहे, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने पत्रों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कई बार उनकी पीठ थपथपाई.

15 नवंबर, 1920 को रैत के टुंडु गांव में पैदा हुए वीर सिंह ने एसएम हाई स्कूल इंदौरा से मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की. 20 साल की आयु में सेना में हैड क्लर्क भर्ती हो गए. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रजों की ओर से लड़ने के लिए उन्हें लीबिया के मोर्चे पर जर्मन भेजा गया. वहां उन्हें अनाबर्ग कैंप में बतौर कैदी रखा गया. इसी दौरान उनकी मुलाकात आजाद हिन्द सेना के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई और उन्हें आजाद हिन्द सेना में अहम जिम्मेवारी सौंपी गई, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया.



कैदी कैंप से रेडियो स्टेशन

नेताजी सुभाषचंद्र बोस उन दिनों जर्मनी में थे. बर्लिन में जर्मन सरकार की सहायता से उन्होंने भारत की आजादी के लिए फ्री इंडिया कैंप बना रखा था. इस सेंटर का स्वतंत्र रेडियो स्टेशन था, जिसके माध्यम से विदेशों में रहे हिन्दोस्तानियों के लिए कार्यक्रम प्रसारित किए जाते थे. नेताजी को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो अंग्रेजी व हिंदी अच्छी तरह से जानता हो और कार्यक्रम सफलतापूर्वक पेश कर सके. इसी तलाश में नेताजी भारतीय कैदी कैंप में पहुंचे और दसवीं या इससे ज्यादा पढ़े सभी कैदियों के साक्षात्कार लिए और वीर सिंह गुलेरिया को अनाउंसर के लिए चुन लिया गया.

सादा जीवन व उच्च विचार रखने वाले वीर सिंह गुलेरिया असंख्य यातनाएं सहकर भी अंग्रेजों के आगे नहीं झुके. उन पर मुकद्दमे चले, परंतु वल्लभ भाई पटेल व जवाहर लाल नेहरू के सहयोग से 15 अप्रैल, 1946 को जेल से छूट कर घर लौटे. आजादी मिलने के बाद उन्होंने 21 साल भारतीय सेना में दोबारा नौकरी की. इसके बाद धर्मशाला कॉलेज में क्लर्क के रुप में काम किया. ताम्र पत्र, सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित वीर सिंह गुलेरिया की कहानी संघर्षों की एक लंबी गाथा है.


हवाई हमलों के बीच प्रसारण

वीर सिंह ने जर्मन के बर्लिन रेडियो पर दो साल तीन महीने हिंदोस्तानी अनाउंसर के तौर पर कार्य किया. यह वह दौर था, जब सारा विश्व युद्व की आग में जल रहा था. बर्लिन में दिन-रात हवाई हमलों की आशंका के चलते जीवन कष्टदायक था. वह मौत के साये में जीवन गुजार कर भी धारा प्रवाह अपने कार्यक्रम देते रहे और नेताजी के संदेश रेडियो के माध्यम से देश-दुनिया तक पहुंचाते रहे. मार्च 1945 में जर्मनी में लड़ाई के दौरान कार्यक्रम का प्रसारण बंद हो गया. रेडियो प्रसारण के बंद होने पर उन्हें बर्लिन से ब्रिटेन और फिर भारत को बहादुरगढ़ कैंप में भेज दिया गया. उनकी सैन्य सेवाएं रद्द कर दी गईं और भविष्य में सरकारी सेवाओं के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया.

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

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