Friday, July 29, 2022

महज राजनीतिक संकेतवाद नहीं द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति निर्वाचित होना

उमेश उपाध्याय (वरिष्ठ पत्रकार)

राजनीति और समाज जीवन में संकेतों की अपनी जगह होती है. बड़े लक्ष्य के लिए यदि संकेत के तौर पर किसी को कोई पद दिया जाए तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है. पंजाब में आतंकवाद की पृष्ठभूमि में जब ज्ञानी जैलसिंह 1982 में देश के सातवें राष्ट्रपति बने थे तो यह भी राजनीतिक संकेत ही था. उस समय ज्ञानी जी सर्वानुमति से राष्ट्रपति चुने गए थे. तब का विपक्ष इंदिरा जी का धुर विरोधी था. पक्ष और विपक्ष एक दूसरे को फूटी आँखों नहीं सुहाते थे, लेकिन आज के विपक्ष की तरह एक छद्म वैचारिक संघर्षके नाम पर ज्ञानी जी के नाम का विरोध तब के विपक्ष ने नहीं किया था.

अच्छा होता कि जनजाति समाज की पहली बेटी जब देश के प्रथम नागरिक के तौर पर देश के सर्वोच्च पद पर बैठी तो ये बिना चुनाव के होता. पर, संभवतः विपक्ष के नेताओं का व्यर्थ का अहंकार और हर कीमत पर विरोध ने उनकी आँखों पर एक पट्टी बांध दी है. अन्यथा, वे एक बनावटी वैचारिक संघर्ष के तर्क के आधार पर यशवंत सिन्हा को इस चुनाव में खड़ा नहीं करते.

श्रीमती #द्रौपदीमुर्मू के चुनाव को सिर्फ एक राजनीतिक संकेतवाद मानना उन भागीरथ प्रयासों की अनदेखी करना होगा जो पिछले कई दशकों से देश के अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और समविचारी संगठन चला रहे हैं. ये देखना हो तो वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा सुदूर क्षेत्रों में बालकों और बालिकाओं के लिए चलाये जा रहे सैकड़ों छात्रावासों में से किसी एक में जाइये. नहीं तो किसी एकल विद्यालय में ही होकर आइये. मैं स्वयं मणिपुर में वनवासी कल्याण आश्रम के एक हॉस्टल में कुछ दिन सपरिवार रहा. भाषा की दिक्कत होने के बावजूद उन बच्चियों के साथ मेरी बेटी दीक्षा और पत्नी सीमा का अपनेपन का एक सहज और निर्मल नाता जुड़ गया. कुछ साल बाद उनमें से भी कोई बच्ची किसी जिम्मेदारी को संभालेगी तो वह राजनीतिक संकेत मात्र नहीं होगा.

इस परिवर्तन को एक तरह अपनों का लम्बे समय बाद मिलना या सम्मिलन कहा जा सकता है. हम ही अपने वनवासी भाई बहनों से अलग हो गए थे अथवा हमें दूर कर दिया गया था. परिवर्तन की एक व्यापक, लेकिन निश्चित लहर ऊपर के अराजनीतिक उद्वेलन के बरक्स समाज रुपी नदी के गंभीर आँचल में बह रही है. श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जमीनी स्तर पर चल रही इस व्यापक क्रांति की प्रतीक हैं. वे भारत की उस लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से निकली हैं, जिसकी जड़ें देश की सांस्कृतिक विरासत में हैं. दिखने में विविध होते हुए भी यह धारा एकात्म ही है. एक अध्यापिका से पार्षद, उड़ीसा में मंत्री, झारखण्ड में राज्यपाल और अब देश की राष्ट्रपति कदम दर कदम उन्होंने एक लम्बी और संघर्षपूर्ण यात्रा तय की है. जो पद और सम्मान उन्हें मिला है, वे उसकी बराबरी की हकदार हैं.

देश का जनजाति समाज इस देश के बृहत् समाज का ही अभिन्न अंग है. वह भी देश की शताब्दियों से चली आ रही विरासत की अविरल धारा का उतना ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, जितना कि मुंबई अथवा दिल्ली जैसे बड़े और आधुनिक शहरों में रहने वाला कोई नागरिक. यह सोच #आदिवासी नाम देकर समाज के किसी हिस्से को पिछड़ा अथवा असंस्कारित नहीं घोषित करती. उन्हें कथित मुख्यधारा में जोड़ने के नाम पर उन्हें अपनी जड़ों से अलग करने का षड्यंत्र नहीं करती. इस सोच के अनुसार भारतीय समाज का एक हिस्सा वनों में रहता रहा है और एक हिस्सा शहरों और गांवों में. लेकिन समाज मूल रूप से एक ही है.

अंग्रेज़ों के आने के बाद इन वनवासियों को असंस्कारित घोषित कर उनका धर्म और रहन सहन बदलने का सुनियोजित षड्यंत्र किया गया जो आज भी बदस्तूर जारी है. उनको भारत और अन्य भारतीयों से अलग दिखाने के लिए कभी उन्हें मूल निवासी और कभी आदिवासी कहा गया. इसी आधार पर बड़े पैमाने पर उनका धर्म परिवर्तन किया गया.

सैमुअल पी हंटिंगटन सभ्यताओं के संघर्षनाम की अपनी पुस्तक में पिछड़े समाजों को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि ऐसा समाज वो है – 1) जो पढ़ा लिखा नहीं है, 2) जिसका शहरीकरण नहीं हुआ है और जो, 3) एक जगह पर स्थापित नहीं है. ऐसा हर समाज इस #पाश्चात्य अवधारणा के अनुसार आदिमऔर असभ्यहै. इस आदिम और असभ्य समाज को सभ्यता सिखाने के नाम पर उसका नरसंहार, उत्पीड़न और मतांतरण बड़े पैमाने पर दुनिया में किया गया. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में तो लाखों इंडियनऔर वहाँ रहने वाले एबोरीजन्स, यानि मूलवासियों को मार ही डाला गया. वनवासियों को इस निगाह से देखने का ये नजरिया पाश्चात्य दर्शन की देन है. हैरत की बात है कि इस तरह की सोच रखने वाले आज हमें मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रताओं पर भाषण देते हैं. अफ़सोस, अपने ही देश के बुद्धिजीवी वर्ग का एक हिस्सा ऐसे लोगों की इन भेदभावपूर्ण और सिरे से नस्लगत बातों पर तालियाँ पीटता है.

भारत की सोच यह नहीं है. पौराणिक काल से लेकर गांधीजी तक और गुरु गोलवलकर से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक #वनवासी समाज को अपना ही अभिन्न हिस्सा मानते हैं. रहने का स्थान जंगल में होने के कारण कोई भिन्न कैसे हो सकता है? कहने का ये अर्थ कदापि नहीं कि वनवासी समाज की अनदेखी नहीं हुई. इस समाज के साथ कतिपय कारणों से भेदभाव हुआ. ये सही है कि दूरस्थ इलाकों में रहने के काऱण समाज का ये हिस्सा आज की शिक्षा और अन्य विकासमूलक गतिविधियों में पिछड़ गया. इसके लिए संविधान में अनुसूचित जनजातियों के लिए अलग प्रावधान किये गए. जो बिलकुल उचित ही हैं.

ये देखते हुए राष्ट्रपति मुर्मू का पहला भाषण बहुत ही प्रेरणादायक और उत्साहित करने वाला था. उन्होंने स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी नायकों के साथ रानी चेन्नमा और रानी गाइडिन्ल्यू तथा संथाल, भील और कोल क्रांति को भी स्मरण किया. वे लगातार राष्ट्रपति पद के दायित्व बोध की बात करतीं रहीं. वे संयम, शालीनता, स्वाभिमान और स्वचेष्टा से परिपूर्ण रहीं. उन्होंने भारत की अविछिन्न लोकतान्त्रिक परम्परा और अविरल बहती सांस्कृतिक धारा का उल्लेख अपने भाषण में किया. उन्हें देखकर लगा कि वे राष्ट्रपति भवन का मान और मर्यादा दोनों ही बढ़ाएंगी.

निशांक को न्याय दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर आवाज तेज

निशांक को न्याय दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर आवाज तेज हो गयी है. नेटीजन्स ट्वीट करके उसकी हत्या करने वालों को पकड़ कर दंड देने की मांग कर रहे हैं. यह विषय ट्वीटर पर राष्ट्रीय स्तर पर ट्रेंड किया. “#SarTanSeJuda और #NishankRathore #JusticeForNishankRathore के माध्यम से निशांक को न्याय दिलाने की मांग हो रही है.

रविवार रात्रि में भोपाल-नर्मदापुरम रेलवे ट्रैक पर B.tech छात्र निशांक राठौर का शव मिला था. शव मिलने से पूर्व निशांक के इन्स्टाग्राम अकाउंट से स्टोरी पोस्ट हुई थी, उस पर लिखा था – “गुस्ताख-ए-नबी की इक सजा, सिर तन से जुदा. सारे हिन्दू कायरो देख लो अगर नबी के बारे में गलत बोलोगे तो यही हश्र होगा.

एक ट्विटर यूजर ने लोगों से एकजुट होने की अपील करते हुए लिखा आज निशांक राठौर है, कल हम भी हो सकते हैं. एकजुट हो जाओ और हाथ ऊपर करो. वहीं, दूसरे ने लिखा हमने #कन्हैयालाल, उमेश कोहले, #NishankRathore और कई अन्य लोगों को कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद और धर्म निरपेक्षता के लिए खो दिया है. अगर हिन्दू अभी भी नहीं जागेंगे और एकजुट नहीं होंगे, तो हिन्दू धर्म का कोई अस्तित्व नहीं होगा.

इस्लामिक कट्टरता पर अन्य व्यक्ति ने लिखा “#SarTanSeJuda नारे को सामान्य करना, इस्लामी आक्रमणकारियों का महिमामंडन और इस्लामवादियों द्वारा पथराव और हिंसा का औचित्य, छद्म धर्म निरपेक्षतावादी और पारिस्थितिकी तंत्र #निशांक राठौर और कई हिन्दुओं का सिर कलम करना और हत्या करना है. सर तन से जुदा का आह्वान करने वाले हर इस्लामवादियों को गिरफ्तार करो !मैं वास्तव में इस पर सर्वोच्च न्यायालय के विचार सुनना चाहता हूँ. कौन जिम्मेदार है?

निशांक राठौर के शव मिलने के बाद से ही हजारों लोगों ने सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज कराया है. उन्होंने दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग की है.

Wednesday, July 27, 2022

यह कैसे हो सकता है, बाबा अमरनाथ हमारे पास और मां शारदा पीओजेके में हो – राजनाथ सिंह

जम्मू. जम्मू कश्मीर के इतिहास में पहली बार 1947 से लेकर आज तक बलिदान होने वाले प्रदेश के लगभग दो हजार जांबाजों को सामूहिक श्रद्धांजलि देने के साथ बलिदानियों के परिजनों को सम्मानित किया गया. रविवार को स्वतंत्रता के 75 वर्ष एवं कारगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में जम्मू कश्मीर पीपुल्स फोरम द्वारा गुलशन ग्राउंड, गांधीनगर में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया. समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले वशिष्ट अतिथि और देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मुख्य अतिथि थे. समारोह में बलिदानियों के परिवारों, पूर्व सैनिकों, अर्द्ध सैनिक बलों के पूर्व जवानों और अधिकारियों, पूर्व सैन्य अधिकारियों, जम्मू कश्मीर पुलिस के पूर्व कर्मियों और अधिकारियों सहित अन्य लोग सम्मिलित हुए.

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अब भारत विश्व का एक ताकतवर देश है. देश का अहित चाहने वाली विदेशी ताकतों को कड़ा सबक सिखाया जाएगा. अगर युद्ध होता है तो दुश्मन को मिट्टी में मिला दिया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश को अब विश्व में गंभीरता से लिया जाता है. उन्होंने जेकेपीएफ की कारगिल विजय दिवस की 23वीं वर्षगांठ मनाने के लिए भी सराहना की.

उन्होंने कहा कि कई युद्धों में मात खाने के बाद भी गिद्ध दृष्टि रखने वाले पाकिस्तान को हमारी ताकत का अंदाजा है. पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के पायलेट अभिनंदन को रिहा कर उसका प्रमाण दिया था. पाकिस्तान के विदेश मंत्री का बयान था कि अगर पाकिस्तान ने रात 9 बजे से पहले अभिनंदन को नहीं छोड़ा तो भारत पाकिस्तान पर हमला कर देगा.

उन्होंने पाकिस्तान को इशारों में कहा कि पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर भारत का अटूट अंग है. पीओजेके भारत का हिस्सा था और रहेगा. यह कैसे हो सकता है कि श्री अमरनाथ हमारे पास हों और मां शारदा पीओजेके में हो. देश के लिए बलिदान देने वाले सभी वीरों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि बलिदानियों के परिजनों को पूरा सम्मान देना जनता की राष्ट्रीय जिम्मेदारी है. उन्होंने मेजर मोहम्मद उसमान, मेजर सोमनाथ, मेजर शैतान सिंह और मेजर बिक्रम बत्रा की वीर गाथाओं का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के मौजूदा स्वरुप को बनाए रखने में सेना के जवानों का अहम योगदान रहा है.

चीन व पाकिस्तान से लड़े गए युद्धों का हवाला देते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत अब विश्व का एक ताकतवर देश है. कोई भी दुश्मन हमारी ओर अब आंख उठाकर नहीं देख सकता है. चीन ने कई ऐसी गतिविधियां की हैं, जिससे साबित हुआ है कि उसकी नीयत ठीक नहीं है. भारतीय सेना पहले भी कई ऑपरेशन कर चुकी है और भविष्य में जरूरत पड़ी तो सैन्य अभियान चलाए जाएंगे. उन्होंने कहा कि 1962 की गलतियों का खामियाजा आज तक देश भुगत रहा है.

अब भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. रक्षा बजट में से 68 प्रतिशत रक्षा उपकरणों की खरीद भारत में निर्मित उत्पादों की ही होगी. भारत पहले रक्षा क्षेत्र में उपकरणों का आयात करने वाला विश्व में नंबर एक का देश था, लेकिन अब भारत उन प्रथम 25 देशों की सूची में आ गया है जो रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रहे हैं.


भारत की मिट्टी तीर्थ क्षेत्र, इसका कण-कण वंदनीय – दत्तात्रेय होसबाले

जम्मू कश्मीर के इतिहास में पहली बार 1947 से लेकर आज तक बलिदान होने वाले प्रदेश के लगभग दो हजार जांबाजों को सामूहिक श्रद्धांजलि देने के साथ बलिदानियों के परिजनों को सम्मानित किया गया. रविवार को स्वतंत्रता के 75 वर्ष एवं कारगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में जम्मू कश्मीर पीपुल्स फोरम द्वारा गुलशन ग्राउंड, गांधीनगर में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया. समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले वशिष्ट अतिथि और देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मुख्य अतिथि थे. समारोह में बलिदानियों के परिवारों, पूर्व सैनिकों, अर्द्ध सैनिक बलों के पूर्व जवानों और अधिकारियों, पूर्व सैन्य अधिकारियों, जम्मू कश्मीर पुलिस के पूर्व कर्मियों और अधिकारियों सहित अन्य लोग सम्मिलित हुए.

इस अवसर पर परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह, सेवानिवृत्त जस्टिस प्रमोद कोहली, पूर्व डीपीपी डॉ. एसपी वैद, सेवानिवृत्त ले. जनरल वीके चतुर्वेदी, पूर्व ले. जनरल राकेश कुमार शर्मा, पूर्व ले. जनरल एसके गोसाईं, पूर्व ले. जनरल एलआर सडोत्रा, पूर्व मेजरल जनरल एसके शर्मा, पूर्व आईपीएस अधिकारी सच्चिदानंद श्रीवास्तव, डीआरडीओ के पूर्व डीजी डॉ. सुदर्शन शर्मा, प्रांत संघचालक डॉ. गौतम मैंगी, पद्मश्री प्रो शिवदत्त निर्मोही, पद्मश्री पंडित विश्वमूर्ति शास्त्री, पूर्व सीएमडी जेके बैंक और निदेशक आरके छिब्बर, केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू के कुलपति डॉ. संजीव जैन, स्कॉस्ट जम्मू के कुलपति प्रो जेपी शर्मा, सेवानिवृत्त आईएफएस सीएम सेठ, सेवानिवृत्त आईएएस निर्मल शर्मा, सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर बीएस सम्बयाल, सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर दीपक बडयाल और जम्मू कश्मीर पीपुल्स फोरम के अध्यक्ष रमेश सभरवाल उपस्थित थे.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने बलिदानियों और उनके परिवार के सम्मान में आयोजित समारोह को स्वर्णिम दिवस बताते हुए कहा कि इसमें सम्मिलित होना उनके लिए सौभाग्य की बात है. आज वह उन परम पुण्यात्माओं के परिवारों के बीच उपस्थित हैं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी तथा अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष राष्ट्र की सेवा के लिये लगा दिये.

ऐसे वीरों के शौर्य और पराक्रम को स्मरण करते हुए कहा कि हमें स्वतंत्रता मिले 75 वर्ष हो गए हैं. स्वतंत्रता के लिए हमारे पूर्वजों ने एक लम्बा संघर्ष किया था. इस संघर्ष में स्वतंत्रता सेनानियों के तप, त्याग और बलिदान की गाथाएं छिपी हैं. वर्तमान पीढ़ी जो स्वतंत्रता के बाद जन्मी है, उसे इसका ज्ञान होना चाहिए. हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए क्या किया है, इसे केवल जानना ही नहीं चाहिए. बल्कि इससे प्रेरणा भी लेनी चाहिए ताकि भारत वर्ष को आगे ले जाने के लिए आज की पीढ़ी के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी हो और भारत को विश्व का सिरमौर बनाने में सहायता मिले.

सरकार्यवाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर देश की स्वतंत्रता के समय से ही पाकिस्तान की कुदृष्टि का शिकार रहा है. प्रारम्भ से ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर में कभी आक्रमण, कभी आतंकवाद तो कभी अलगाववाद को बढ़ावा दिया है. उन्होंने जम्मू कश्मीर की जनता का पाकिस्तानी और देश विरोधी शक्तियों के षडयंत्रों को विफल करने में सेना, सुरक्षा बलों और जम्मू कश्मीर पुलिस का सहयोग करने के लिए भारत के समस्त देशवासिदयों की ओर से अभिनंदन किया. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जहाँ  अलगाववाद और आतंकवाद को भड़काने में लगा था तो स्थानीय जनता का राष्ट्र के प्रति प्रेम और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जाने के दृढ़ संकल्प ने निरन्तर इस अलगाववाद और आतंकवाद को परास्त किया.

उन्होंने कहा कि इस दृढ़ संकल्प का प्रथम उदाहरण जम्मू कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह स्वयं हैं जो एक महान शासक और दूरदर्शी विभूति थे. 1947 में एक तरफ पाकिस्तान जम्मू कश्मीर पर आँखें गढ़ाए बैठा था तो दूसरी तरफ अंग्रेजों की भी यह साजिश थी कि जम्मू कश्मीर का अधिमिलन पाकिस्तान में होना चाहिये भारत में नहीं. लेकिन महाराजा ने पाकिस्तान और अंग्रेज दोनों की साजिशों को निष्फल करते हुए जम्मू कश्मीर का अधिमिलन अथवा विलय भारत में किया. उस महान निर्णय के कारण हम जम्मू कश्मीर के लोग गर्व से कह सकते हैं कि हम भारत के नागरिक हैं.

दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि जम्मू कश्मीर का विलय अथवा अधिमिलन तो भारत में हो गया, लेकिन उस समय के केन्द्रीय नेतृत्व की अदूरदर्शिता और जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राजनीतिक शासकों के षड्यंत्रों के चलते जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान को पूरी तरह लागू करने में अड़चनें पैदा करने के प्रयास किये जाने लगे. ऐसे समय में स्वतंत्र भारत का पहला आन्दोलन प्रजा परिषद आन्दोलन राज्य में शुरू हुआ था. इस आन्दोलन को राज्य में और फिर पूरे देश में सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित प्रेमनाथ डोगरा के अतुलनीय योगदान को हम नहीं भूल सकते. एक हाथ में तिरंगा पकडे़, दूसरे हाथ में संविधान पकडे़ और गले में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की फोटो लेकर हजारों लोग सड़कों पर निकल आये थे, उनका नारा सिर्फ एक था एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे.उन्होंने कहा कि जब जब वह जम्मू कश्मीर में प्रवेश करते हैं, उनको कर्नल नारायण सिंह, ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित प्रेमनाथ डोगरा जैसी महान विभूतियों का स्मरण होता है.

पीओजेके पर 1947 में हुए पाकिस्तानी आक्रमण और उसके बाद की स्थिति का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि उस समय मीरपुर, मुज़फ़्फ़राबाद, भिम्बर, कोटली आदि स्थानों से हिन्दू और सिखों का नरसंहार हुआ, महिलाओं पर अनेक अत्याचार किये गए, भारतीय सेना के वीर जवानों ने राजौरी, पुंछ और बारामुला के क्षेत्रों को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त करवाया. उन्होंने कहा कि हम कैसे भूल सकते हैं बड़गाम के युद्ध में वीरता का परिचय देने वाले प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा, पुंछ के रक्षक के रूप में प्रसिद्ध ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह, महावीर चक्र विजेता और झंगड़ के युद्ध के हीरो ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, स्कार्दू में मेजर शेरजंग थापा जैसे वीरों को और इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे हमारी सेना के अधिकारियों और जवानों ने बलिदान देकर जम्मू कश्मीर के बड़े क्षेत्र को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त करवाया था. पाकिस्तान के कब्जे में आने वाले जम्मू कश्मीर (पीओजेके) में रहने वाले लोग आज भी पीड़ित हैं, वे अभी भी स्वतंत्र नहीं हैं, वे भारत की ओर देख रहे हैं.

उन्होंने कोटली की घटना का स्मरण कराते हुए कहा कि 1947-48 में जब रणक्षेत्र में भारतीय फौज लड़ रही थी, तब भी जम्मू कश्मीर के लोग सेना के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर कर अपना योगदान दे रहे थे. कोटली में भारतीय सेना ने उस समय गोला बारूद से भरे बॉक्स एयर ड्राप किये, किन्तु वो गलत जगह गिर गए. कोटली के बलिदानी धरमवीर खन्ना, वेद प्रकाश चड्ढा, प्रीतम सिंह और सुक्खा सिंह को कौन भूल सकता है. जिन्होंने गोलियों की बौछार के बीच खुद जाकर गोला बारूद लाने का निर्णय लिया वो कामयाब भी हुए, किन्तु गोलाबारी में घायल हुए और बाद में वीरगति को प्राप्त हुए. पुंछ के अमृत सागर ने स्थानीय लोगों को एकत्र कर भारतीय सेना की मदद के लिए प्रेरित किया था. नई पीढ़ी के लोगों को यह बातें याद रखनी चाहिएं.

कश्मीर में देशभक्त मकबूल शेरवानी के योगदान को अत्यंत स्मरणीय बताते हुए कहा कि कैसे शेरवानी ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए पाकिस्तानी फौज को रास्ता भटका दिया था. जिसके चलते पाकिस्तानी फौज को श्रीनगर पहुंचने में देर हो गयी. और जब तक पाकिस्तानी फौज बड़गाम तक पहुंची, तब तक भारतीय सेना मोर्चा संभाल चुकी थी. सिक्खों के बलिदान का उल्लेख करते हुए कहा कि पाकिस्तानी आक्रमण की वजह से अपने गाँवों को छोड़ कर सिक्ख एक गांव में इक्ट्ठा हुए थे. जब पाकिस्तानी फौज यहाँ पहुंची तो ऐसे विकट समय में एक स्थानीय कश्मीरी सिक्ख महिला बीबी नसीब कौर के नेतृत्व में सिक्ख महिलाओं ने पुरुषों का वेष धारण कर पाकिस्तानी सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा था, यहां सैकड़ों सिक्ख महिला, बच्चों और पुरुषों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर पाकिस्तान के सामने घुटने नहीं टेके थे. उन्होंने कहा कि भारत की यह मिट्टी अथवा जम्मू कश्मीर एक तीर्थ क्षेत्र हैं. यह श्रद्धा का स्थान है. जैसा आज कार्यक्रम हुआ है, इस प्रकार के कार्यक्रम पूरे देश में होने चाहिए.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के हमले के कारण आज जम्मू कश्मीर और लद्दाख का बहुत बड़ा क्षेत्र पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है. वहां से विस्थापित हुए लाखों लोग आज जम्मू कश्मीर और शेष भारत में रह रहे हैं. विस्थापितों का शायद ही ऐसा कोई परिवार होगा, जिसने अपने परिवार में से किसी न किसी सगे सम्बन्धी को ना खोया हो. इतनी भयंकर त्रासदी झेलने की बाद भी इस समाज ने अपना धैर्य नहीं खोया. वे दोबारा अपने पैरों पर खड़े होने की जद्दोजहद में लग गए. विस्थापित होने के बाद भी जम्मू कश्मीर में इनका योगदान सराहनीय है.

उन्होंने कहा कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना ने शौर्य, पराक्रम और देशभक्ति का परिचय देते हुए 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. इसके बावजूद पाकिस्तान ने दोबारा 1999 में जम्मू कश्मीर के कारगिल क्षेत्र पर आक्रमण किया था. किन्तु भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम के समक्ष पाकिस्तानी टिक नहीं पाए. मेजर सौरभ कालिया, कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पाण्डेय, ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव, मेजर राजेश अधिकारी, मेजर विवेक गोता, नायक दिगेंद्र कुमार, राइफ़ल मैन संजय कुमार के योगदान को हमें हमेशा स्मरण करना चाहिए. हमें ऐसे बलिदानियों और वीर सपूतों से प्रेरणा लेनी चाहिए. ऐसे बलिदानियों के परिवारों के साथ देश और समाज खड़ा रहे, यह आवश्यक है.

उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर और लदाख की देशभक्त जनता भी लगातार आंतरिक और बाहरी दोनों चुनौतियों से संघर्षरत रही है. इसी परंपरा का निर्वाहन हमारे लद्दाख के स्थानीय नागरिकों ने कारगिल युद्ध के दौरान भी किया. कारगिल युद्ध के समय सेना को पहाड़ों पर रसद पहुंचाना बहुत महत्वपूर्ण था और ये जिम्मेदारी लद्दाख के देशभक्त पोर्टरों ने निभाकर कारगिल युद्ध की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. यह प्रमाणित करता है कि देशभक्ति चित्रों में और प्रदर्शनी में नहीं होती, सामान्य पोर्टर कैसे देश की रक्षा के लिए खड़ा हो जाता है, यह देशभक्ति है.

उन्होंने कहा कि अलगाववाद व आतंकवाद कमजोर हुआ है, किंतु समाप्त नहीं हुआ. निराश-हताश आतंकी अपनी शैलियों में परिवर्तन कर रहे हैं. ऐसे में सुरक्षा बल तो लगातार सतर्क रहकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं, परन्तु समाज को भी वर्तमान चुनौतियों को समझ कर अपना जवाब देना होगा. अनुच्छेद 370 को अप्रभावित बना दिया गया और 35-ए हट चुका है. यह जम्मू कश्मीर में रहने वाले दलितों, महिलाओं, एसटी, वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी, गोरखा सभी के विरुद्ध था. इसके विरुद्ध भी राज्य की जनता ने एक लम्बा संघर्ष लड़ा और अन्त में विजय पायी. अब महिलाओं को सामान अधिकार मिले हैं, दलितों को अब वे सारे अधिकार हैं जो उन्हें देश में हर जगह मिलते है. ओबीसी को चिन्हित करने का कार्य किया जा रहा है. डीडीसी के चुनाव हुए हैं.

सरकार्यवाह ने कहा कि दुनिया के सामने भारत को खड़ा करने का आज स्वर्णिम अवसर आया है. देश में सकारात्मक परिवर्तन की लहर है. भारत खड़ा करने के लिए समाज के योगदान का भी आह्वान किया. समाज अपनी जागरुकता और प्रतिबद्धता के साथ वीर सैनिकों और बलिदानियों के परिवारों के साथ खड़ा रहे. बलिदानियों के परिवारों के प्रोत्साहन की ज़िम्मेदारी सरकार के साथ साथ समाज भी ले. संस्थानों के नाम, स्मारक इत्यादि अमर बलिदानियों के नाम पर रखे जाएं. 15 अगस्त, 26 जनवरी इत्यादि राष्ट्रीय उत्सव पर बलिदानियों को अवश्य याद करें. साहित्य, कहानी, लोकगीत बलिदानियों के नाम पर बनें, ऐसे कार्यों के लिए हमें संकल्पबद्ध होना चाहिए.

Tuesday, July 26, 2022

भगवा कपड़े पहन माहौल खराब करने की कोशिश, कमाल व आदिल गिरफ्तार

बिजनौर में रविवार की शाम शहर की तीन मजारों में तोड़फोड़ कर माहौल खराब करने का प्रयास किया गया. मजारों में तोड़फोड़ कर कुछ चादरों को जला दिया गया. मजारों में तोड़फोड़ करने वाले दो सगे भाई निकले हैं, जिनके नाम आदिल व कमाल है. वे भगवा कपड़े पहनकर तोड़फोड़ करने पहुंचे थे. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया है.

ADG लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने बताया कि आरोपियों से पुलिस और इंटेलिजेंस पूछताछ कर रही है. यह पूरा मामला कांवड़ यात्रा के बीच माहौल खराब करने की कोशिश है. अराजक तत्वों द्वारा साजिश के तहत जानबूझकर कर प्रदेश का माहौल और साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है.

बिजनौर के शेरकोट थाना क्षेत्र में दरगाह भूरे शाह बाबा, जलालशाह बाबा और कुतुबशाह बाबा की मजार है. रविवार की शाम पुलिस को सूचना मिली कि भगवा कपड़े पहने दो युवक मजारों में तोड़फोड़ कर रहे हैं. लोगों ने उनको पकड़ने का प्रयास किया ताे उनमें से एक फरार हो गया. दूसरे युवक को दबोच लिया गया. आरोप है कि दोनों युवकों ने मजारों को सरिया और हथौड़े से तोड़ने के बाद वहां चढ़ाई गई चादरों में भी आग लगाई.

गिरफ्तार आरोपी कमाल और आदिल सगे भाई हैं. दोनों ही राजमिस्त्री का काम करते हैं. जांच में सामने आया है कि यह दोनों देवबंदी फिरके के हैं, जो मजारों में विश्वास नहीं रखते हैं. इसी वजह से इन दोनों ने मजारों में तोड़फोड़ की है. हालांकि, दोनों ने तोड़फोड़ के समय भगवा पहन रखा था, जिससे मामले को दूसरा रंग दिया जा सके. फिलहाल दोनों से पूछताछ की जा रही है.

 स्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत 

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी के उद्बोधन के अंश - …जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है

 

नई दिल्ली. देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमन्ना ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई. राष्ट्रपति पद की शपथ के बाद द्रौपदी मुर्मू ने एक अलग अंदाज में सांसदों का अभिवादन किया.


राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी के उद्बोधन के अंश

जोहार ! नमस्कार !

मैं भारत के समस्त नागरिकों की आशा-आकांक्षा और अधिकारों की प्रतीक इस पवित्र संसद से सभी देशवासियों का पूरी विनम्रता से अभिनंदन करती हूँ.

आपकी आत्मीयता, आपका विश्वास और आपका सहयोग, मेरे लिए इस नए दायित्व को निभाने में मेरी बहुत बड़ी ताकत होंगे.

मुझे राष्ट्रपति के रूप में देश ने एक ऐसे महत्वपूर्ण कालखंड में चुना है, जब हम अपनी स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. आज से कुछ दिन बाद ही देश अपनी स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे करेगा. ये भी एक संयोग है कि जब देश अपनी स्वाधीनता के 50वें वर्ष का पर्व मना रहा था, तभी मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी. और आज 75वें वर्ष में मुझे ये नया दायित्व मिला है.

26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस है. ये दिन, भारत की सेनाओं के शौर्य और संयम, दोनों का ही प्रतीक है. मैं आज, देश की सेनाओं को तथा देश के समस्त नागरिकों को कारगिल विजय दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं देती हूं.

हमारा स्वाधीनता संग्राम उन संघर्षों और बलिदानों की अविरल धारा था, जिसने स्वतंत्र भारत के लिए कितने ही आदर्शों और संभावनाओं को सींचा था. महात्मा गांधी ने हमें स्वराज, स्वदेशी, स्वच्छता और सत्याग्रह द्वारा भारत के सांस्कृतिक आदर्शों की स्थापना का मार्ग दिखाया था.

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, नेहरू जी, सरदार पटेल, बाबा साहेब आंबेडकर, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे अनगिनत स्वाधीनता सेनानियों ने हमें राष्ट्र के स्वाभिमान को सर्वोपरि रखने की शिक्षा दी थी.

रानी लक्ष्मीबाई, रानी वेलु नचियार, रानी गाइदिन्ल्यू और रानी चेन्नम्मा जैसी अनेकों वीरांगनाओं ने राष्ट्ररक्षा और राष्ट्र निर्माण में नारीशक्ति की भूमिका को नई ऊंचाई दी थी.

संथाल क्रांति, पाइका क्रांति से लेकर कोल क्रांति और भील क्रांति ने स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज के योगदान को सशक्त किया था. सामाजिक उत्थान एवं देश-प्रेम के लिए धरती आबाभगवान् बिरसा मुंडा जी के बलिदान से हमें प्रेरणा मिली थी.

दशकों पहले मुझे रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला था. कुछ ही दिनों बाद श्री अरबिंदो की 150वीं जन्मजयंती मनाई जाएगी. शिक्षा के बारे में श्री अरबिंदो के विचारों ने मुझे निरंतर प्रेरित किया है.

मैंने देश के युवाओं के उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है. हम सभी के श्रद्धेय अटल जी कहा करते थे कि देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे सिर्फ अपना ही भाग्य नहीं बनाते, बल्कि देश का भी भाग्य बनाते हैं. आज हम इसे सच होते देख रहे हैं.

मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है, जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है. मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है. हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं. मैंने अपने अब तक के जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है.

जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है

मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ”.

अर्थात, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है.

जगत कल्याण की भावना के साथ, मैं आप सब के विश्वास पर खरा उतरने के लिए पूरी निष्ठा व लगन से काम करने के लिए सदैव तत्पर रहूंगी.

Saturday, July 23, 2022

लोकमान्य जी का स्मरण – लोकमान्य तिलक और पत्रकारिता

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक देश के स्वतंत्रता संग्राम का एक स्वर्णिम व्यक्तित्व. स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर ही रहूँगा.इस अदम्य आशावाद के साथ तिलक जी ने देश के स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ किया..! पुणे में अध्ययन करते समय उनका मन ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असंतोष से उबल रहा था. उन्होंने इसे लोगों तक पहुँचाया और वह भारतीय क्रांति के जनकबन गए. उन्होंने समाज के निचले तबके का पक्ष लिया और इसलिए वहतेली तंबोलियों के नेताबन गए.

उनका स्वतंत्रता आंदोलन भी योजनाबद्ध था. गोपाल गणेश आगरकर और विष्णुशास्त्री चिपलूनकर तथा कुछ अन्य साथियों की सहायता से उन्होंने जनवरी 1881 में केसरी’ (मराठी) और मराठा (अंग्रेजी) समाचार पत्र आरंभ किए.

लोगों के प्रबोधन हेतु आरंभ किए केसरीऔर मराठासमाचार पत्रों का मूल उद्देश्य लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरित करना, सामाजिक परिवर्तन के लिए जागरूकता पैदा करना और सरकारी अन्याय का प्रतिकार करना था. केसरी के पहले ही अंक में रात में हर सड़क पर दिए लगे होने से और पुलिस गश्त लगातार घूमते रहने से जो उपयोग होता हैं, वही उस स्थान पर समाचार पत्र कर्ताओं की लेखनी नियमित चलने से होता हैं”, इन शब्दों में केसरी की नीति को समझाया गया था. 1982 के अंत तक केसरी भारत में सबसे अधिक खपत वाला क्षेत्रीय समाचार-पत्र बन गया. 1884 में केसरी की सर्कुलेशन 4,200 थी, जुलाई 1897 में यह बढ़कर 6,900 तक हो गयी. 1902 में बर्मा (म्यांमार), सीलोन (श्रीलंका), अफ्रीका और अफगानिस्तान को भी केसरी का निर्यात किया जाता रहा था.आरंभ में केसरी के संपादक आगरकर थे और मराठा के संपादक तिलक थे. 03 सितंबर, 1891 को केसरी और मराठा दोनों समाचार पत्रों के संपादक के रूप में तिलक ने स्वयं के नाम का डिक्लरेशन किया. इस बीच उन्होंने शराब पाबंदी, बंगभंग बहिष्कार, प्लेग, सूखा राहत और विभिन्न विषय़ों पर आंदोलन चलाया. उसमें एक लड़ाई समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता की भी थी. केसरीऔर मराठाआरंभ होने के कुछ समय पश्चात ही कोल्हापुर संस्थान के दीवान माधवराव बर्वे के संबंध में प्रसिद्ध हुए लेखन के लिए तिलक और आगरकर को चार महीने के कारावास का दंड सुनाया गया.

1896 के अकाल और उसके तुरंत पश्चात प्लेग महामारी, दोनों समय केसरी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. केसरी में प्रकाशित ब्रिटिश विरोधी लेखों के लिए तिलक को तीन बार राजद्रोह के अभियोगों का सामना करना पड़ा. 1897 और 1908 में तिलक का लेखन केसरी की प्रसिद्धि का कारण बने थे, जबकि 1916 का अभियोग उनके भाषणों के कारण प्रस्तुत किया गया था.

प्लेग नियंत्रण के लिए नियुक्त कमिशनर रॅन्ड के अधीन गोरे अधिकारियों ने पुणे में उत्पात मचाया था. इसलिए 22 जून, 1897 को चाफेकर बंधुओं ने रॅन्ड का वध कर दिया. इस संदर्भ में तिलक ने सरकार का दिमाग ठिकाने पर है या नहीं ?’ और सरकार चलाने का तात्पर्य बदला लेना नहीं होताजैसे शीर्षक से अग्रलेख लिखे. परिणामस्वरूप उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया. तिलक को 18 महीने की कड़ी सजा सुनाई गई थी. 4 जुलाई, 1899 को जेल से रिहा होने पर तिलक ने पुनश्च हरि:ओम!शीर्षक से अग्रलेख लिखकर नई स्फूर्ति से स्वराज्य प्राप्ति का कार्य आरंभ किया. देश का दुर्दैव’(12 मई 1908) और यह उपाय टिकाऊ नहीं हैं’ (9 जून 1908) शीर्षक से प्रकाशित लेखों के कारण पुन: राजद्रोह का अभियोग चलाया गया. जिसमें तिलक को छह साल के काले पानी और 1000 रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई गई.

अपने समाचार पत्र में कौन-सा शब्द किस प्रकार छपकर आना चाहिए, इस संबंध में उन्होंने एक विशेष पुस्तिका तैयार की थी. उस पुस्तिका में लगभग साढ़े तीन हजार शब्द थे. मराठी भाषा की लेखन पद्धति पर उन्होंने चार अग्रलेख लिखे. प्रत्येक समाचार पत्र की भाषा उस संपादक की भाषा से निर्धारित होती है. तिलक की भाषा उनके जैसी ही उग्र, तथा लोगों के मन में जगह निर्माण करने वाली थी. उनके अग्रलेखों के शीर्षक पर दृष्टिपात करने से इस तथ्य की प्रतीति होती हैं. सन् 1881 से 1920 के कालखंड में तिलक जी ने लगभग 513 अग्रलेख लिखे. पत्रकार, पंडित, राजनीतिज्ञ और भविष्यदृष्टा नेता जैसी विभिन्न भूमिकाओं में लोकमान्य ने लेखन किया.

राष्ट्रीय अभ्युदय और मानव जाति का कल्याण उनके राजनीतिक जीवन की मुख्य प्रेरणाएं थीं. अकाल हो या प्लेग, विपत्तियों का सामना करने के लिए उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से जनता में साहस निर्माण किया. उनके द्वारा आरंभ किए त्यौहार अथवा आन्दोलन किसी जाति विशेष के लिए नहीं थे. यह उन्होंने अपने लेखों में प्रस्तुत किया और अधिक सशक्त रूप से अपनी कृति द्वारा दर्शाया.

किसानों की स्थिति, कृषि सुधार, कृषिकर प्रणाली आदि विषयों पर उन्होंने भूमि का स्वामित्व डूबा’, ‘महाजन मरा किसान भी मरा !’, पुनर्निरिक्षण का जुल्म’, जैसे कई अग्रलेख लिखे. उन्होंने कहा, “हिन्दुस्थान का किसान राष्ट्र की आत्मा है. उस पर पड़ा दरिद्रता का पर्दा हटा दिया जाए, तब ही हिंदुस्तान का उद्धार होगा. इसके लिए किसान आपका और आप किसान केऐसा प्रतीत होना आवश्यक है.

देश सधन हो या निर्धन, जित हो या अजित हो, जनसंख्या के संबंध में निम्न स्तर के अर्थात मेहनत मजदूरी करके निर्वाह करने वाले लोगों की संख्या अधिक रहेगी ही. इसलिए जब तक कि इस समाज की स्थिति में सुधार नहीं होगा, तब तक यह कभी भी नहीं कहा जा सकता है कि देश में सुधार हुआ है. देश का तात्पर्य क्या है? लोग कौन हैं? यह लोकमान्य जी ने अपने मन से निश्चित किया था. देश का अर्थ है किसान, देश का अर्थ है कड़ी मेहनत मजदूरी करने वाली जनता. सच्चा हिंदुस्तान गाँवों में है और वहाँ राष्ट्र का निर्माण करने का अर्थ इन गाँवों में जागरूकता निर्माण करना है. नि:संकोच मिल-कारखानों में काम करने वाला मजदूर वर्ग भी उन्हें उतना ही महत्वपूर्ण लगता था. 1902-03 से तिलक जी ने उस वर्ग में भी राष्ट्रीय चेतना निर्माण करने हेतु प्रयास आरंभ किए. इसलिए 1908 में तिलक की सजा के विरोध में मजदूर हड़ताल पर चले गए और सरकारी अत्याचारों से न डरते हुए यह हड़ताल छह दिनों तक चलती रही.

जो हिंदी राजनीति पहले सरकार सम्मुख थी और बौद्धिक स्तर पर चल रही थी. वह लोकमान्य जी ने लोगों की भाषा में बोलकर उसे लोकाभिमुख बनाया था और उसे कृति से जोड़ा, इसलिए उनकी वाणी को मंत्र की शक्ति प्राप्त हुई. इसी कारण से संपूर्ण राष्ट्र का समर्थन उन्हें प्राप्त हुआ और वह लोक युगके निर्माता बन गए.

लेखक केसरी (पुणे) के पूर्व कार्यकारी संपादक हैं और विभिन्न विषयों के ज्ञाता हैं.