Tuesday, January 31, 2023

गोरखनाथ मंदिर पर हमला करने वाले मुर्तजा को फांसी की सजा

 गोरखनाथ मंदिर पर हमले के मामले में एनआईए अदालत ने दोषी मुर्तजा अब्बास को फांसी की सजा सुनाई है. आरोपी मुर्तजा के खिलाफ UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया था, जांच में मुर्तजा का संबंध ISIS से भी मिला था. आतंकी मुर्तजा अब्बास को सोमवार को सुनवाई के लिए कड़ी सुरक्षा में लखनऊ में NIA/ATS की अदालत में लाया गया. जहाँ NIA कोर्ट के विशेष जज विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने उसे दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई. घटना के 10 माह के भीतर ही सभी साक्ष्य को देखते हुए आरोपी को फांसी की सजा सुनाई गई है.

मुर्तजा ने 4 अप्रैल, 2022 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर पर हमला किया था. 4 अप्रैल को गोरखनाथ चौकी के मुख्य कॉन्स्टेबल विनय कुमार मिश्रा ने मुर्तजा के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई थी. रिपोर्ट में बताया था कि वह मंदिर के गेट नंबर एक पर सुरक्षा प्रभारी था. मुर्तजा ने पीएसी के सिपाही अनिल कुमार पासवान पर अचानक धारदार हथियार से हमला कर उनसे हथियार छीनने की कोशिश की थी. अन्य सुरक्षाकर्मी जब बचाव में आए तो मुर्तजा ने उन पर भी हमला कर दिया. इसके बाद हथियार लहराते हुए अल्लाह हु अकबर के नारे लगाने लगा था.

पुलिस ने मशक्कत के बाद उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. मामले की गहनता से जांच में हथियार, लैपटॉप और उर्दू में लिखी सामग्री बरामद की गई थी. मुर्तजा के पास से उर्दू भाषा में लिखी एक किताब भी बरामद हुई थी. सिर्फ इतना ही नहीं जांच में यह भी सामने आया कि गोरखनाथ मंदिर के पास सिपाहियों पर हमले के मामले का हमलावर नेपाल भी गया था. सरकारी वकील एमके सिंह के अनुसार, विवेचना के दौरान हासिल साक्ष्यों के आधार पर धारा 16/18/20/ 40 के तहत केस दर्ज किया गया. विवेचना ATS को सौंपी गई थी.

 

पूछताछ में किया था चौंकाने वाला खुलासा

गिरफ़्तारी के बाद आरोपी मुर्तजा ने ATS के सामने स्वीकार किया कि वह देश में चल रहे हिजाब विवाद, CAA आदि मामलों को लेकर काफी गुस्से में था. उसे लग रहा था, मुसलमानों के साथ गलत हो रहा है. बस इसी बात का बदला लेने के लिए उसने इस हमले को अंजाम दिया. मुर्तजा ने ATS के सामने यह भी स्वीकार किया कि उसने गोरखनाथ मंदिर पर जाकर मरने के इरादे से यह हमला किया था. जांच में पता चला कि मुर्तजा नफरती भाषण देने वाले जाकिर नाइक सहित कई अन्य कट्टरपंथी और देश विरोधी तत्वों को फॉलो करता था और उनकी तकरीरें सुनकर प्रभावित था. मुर्तजा ने IIT मुंबई से इंजीनियरिंग की है.

60 दिन की सुनवाई के बाद सजा

सजा सुनाए जाने के बाद एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने कहा, लगातार 60 दिन की रिकॉर्ड सुनवाई के बाद सजा का ऐलान हुआ है. इसमें धारा 121 IPC के तहत फांसी की सजा और 307 जो पुलिस पर हमला हुआ था, उसमें उम्र कैद की सजा सुनाई गई है. सभी सबूतों को अदालत के सामने पेश किया गया, अदालत ने सबूतों को सही माना है. घटना के 10 महीने बाद आज यानि सोमवार को लखनऊ स्थित NIA की विशेष अदालत ने फैसला सुनाया.

Saturday, January 28, 2023

अशिक्षा-लोभ और गरीबी धर्मांतरण के प्रमुख कारण - पद्मश्री डॉ रविंद्र नारायण

प्रयागराज| अशिक्षा लोभ और गरीबी धर्मांतरण के प्रमुख कारण है| राष्ट्रीयता का भाव धर्म और राष्ट्र एक ही है| यदि धर्म नहीं तो राष्ट्र नहीं, राष्ट्र नहीं तो धर्म नहीं| केवल इसी राष्ट्र की पहचान पूरी दुनिया में धर्म के लिए है| उक्त विचार विश्व हिंदू परिषद माघ मेला शिविर में चिकित्सक सम्मेलन को संबोधित करते हुए विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष पद्मश्री डॉ रविंद्र नारायण सिंह ने चिकित्सकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किया|

      उन्होंने आगे कहा कि हमारा धर्म हमें न्याय और त्याग की प्रेरणा देता है हम समाज से अपने व्यवसाय में बहुत कुछ प्राप्त करते हैं और हम उस समाज को क्या देते हैं यह हमें सोचना चाहिए| पूरी दुनिया में सभी धर्मों के लिए बहुत अनेक प्रकार के संसाधन एवं मुद्राएं हैं जिससे वह अपने धर्म का विस्तार कर रहे हैं आज हमें अपने कम संसाधन में ही अपने को सुरक्षित रखते हुए अपने धर्म संस्कृति का संवर्धन संरक्षण करना है| विश्व हिंदू परिषद की स्थापना ही हिंदू समाज की एकजुटता के लिए हुई है, लेकिन आज धर्मांतरण हिंदू समाज के लिए एक कठिन चुनौती है|

      कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ.एस. पी. सिंह ने कहा कि चिकित्सक व्यवसाय के लिए नहीं सेवा के लिए कार्य करते हैं| समाज में उन्हें ईश्वर के रूप में देखा जाता है| विश्व हिंदू परिषद का कार्य ईश्वरीय कार्य है जिसकी स्थापना ही धर्म की रक्षा के लिए हुई और आज संगठन की स्थापना से आज तक विश्व हिंदू परिषद के लिए लक्ष्य निष्ठा के कारण पूर्ण हो रहे हैं| उन्होंने कहा कि भारत में ही नहीं दुनिया के अनेक देशों में संगठन के कार्य सक्रिय रुप से हैं और मुझे आज जानकारी हुई कि संगठन के माध्यम से लाखों विद्यालय एवं लाखों सेवा प्रकल्प ऐसे स्थानों पर चल रहे हैं जहां पर हिंदू समाज संसाधन विहीन है| सभी चिकित्सक बंधुओं से आग्रह हैं कि वह अपनी सेवा धर्म को सर्वोपरि रखें| डॉक्टर युगांतर पांडे ने कहा कि बिना लोक कल्याण के मोक्ष नहीं मिलता| इसलिए हमारा धर्म लोक कल्याण होना चाहिए वैभव नहीं, जो हिंदू धर्म का सार है| जो समाज से लिया वही समाज को वापस दिया, ऐसा ही होना चाहिए| डॉ. कृतिका अग्रवाल ने कहा कि मैंने विश्व हिंदू परिषद के सेवा प्रकल्प को देखा है आज यहां उपस्थित चिकित्सक साथियों की संख्या को देखकर में उत्साहित हूं कि अपने व्यस्ततम समय में भी वे अपने धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए तत्पर है और संगठन का कार्य सेवा, सुरक्षा, संस्कार के लिए जाना जाता है| धर्म की रक्षा से ही हमारी रक्षा है यह संगठन का धेय वाक्य है| विश्व हिंदू परिषद के प्रांत अध्यक्ष कविंद्र प्रताप सिंह ने सभी गणमान्य अतिथियों का परिचय कराया और विषय का प्रतिपादन किया कि चिकित्सक किस समाज में क्या भूमिका है राष्ट्र और धर्म के लिए चिकित्सक का क्या योगदान हो सकता है|

कार्यक्रम का संचालन विश्व हिंदू परिषद के प्रांत संगठन मंत्री मुकेश कुमार ने किया| कार्यक्रम में डॉ. सुबोध जैन, डॉ.युगांतर पांडे, आशु पांडे, वीके पांडे, अनिल दुबे, एसके अग्रवाल, विश्व हिंदू परिषद काशी प्रान्त के सह संगठन मंत्री नितिन सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे|



समाज को मार्गदर्शित एवं संस्कारित करने में महती भूमिका निभाएगा माधव आश्रम

 

जौनपुर। यह आश्रम हमारे कार्य का प्रेरणा स्रोत होना चाहिए। संघ यहां से सेवा, शिक्षा, चिकित्सा, संस्कार, राष्ट्रहित की भावना व हिंदू समाज के लिए कार्य करेगा। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र कार्यवाह डॉ. वीरेंद्र जायसवाल जी ने व्यक्त किया। वे शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जौनपुर विभाग के कार्यालय माधव संघ आश्रम के पूजन एवं लोकार्पण में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रांत प्रचारक श्रीमान रमेश जी ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान एवं भविष्य की परिस्थिति को देखते हुए इस आश्रम का निर्माण किया गया है। यह स्थान समाज में व्याप्त समस्या के समाधान का केंद्र बिंदु बने। हम सभी को इस आश्रम के प्रति हमेशा श्रद्धा बनी रहनी चाहिए। कार्यक्रम में उपस्थित माननीय प्रांत संघचालक डॉ विश्वनाथ विश्वनाथ लाल निगम जी ने कहा कि यह कार्यालय हमारी प्रेरणा का केंद्र है, यह समाज को संस्कारित करने में महती भूमिका निभाएगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महामंडलेश्वर भवानी नंदन यति महाराज सिद्धपीठ हथियाराम मठ जखनिया ने कहा कि संघ अनुशासन से पहचाना जाता है। संघ समाज को शिक्षित और संस्कारित कर रहा है। संघ का विषय राष्ट्र और राष्ट्रीयता है। इस आश्रम के माध्यम से संघ अपने उद्देश्यों को पूरा करेगा|

जौनपुर की धरती से निकले संघ प्रचारकों को किया गया सम्मानित

कार्यक्रम में जौनपुर विभाग में सेवा दे चुके एवं वहां से निकले हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों को सम्मानित किया गया, जिनमें प्रमुख रूप से काशी प्रांत प्रचारक प्रमुख रामचंद्र जी, मार्ग प्रमुख भोलेंद्र जी, जागरण पत्रिका प्रमुख नागेंद्र जी, कुटुम्ब प्रबोधन प्रमुख पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र अशोक उपाध्याय जी, ओम प्रकाश जी, जगदीश जी इत्यादि को सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त आश्रम निर्माण करने वाले श्रमिकों को सम्मानित किया गया|

कार्यक्रम में समाजसेवी ज्ञान प्रकाश सिंह, दिनेश चौधरी, सूर्यप्रकाश, जितेंद्र यादव एवं सुभाष यादव आदि उपस्थित रहें। प्रांत कार्यवाह मुरली पाल जी ने आभार व्यक्त किया। संचालन वीरेंद्र जी ने किया।

सम्मानित श्रमिक 





संचलन देख अभिभूत हुए सह सरकार्यवाह

संचलन में 6000 स्वयंसेवक सम्मिलित हुए

काशी| काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) का स्थापना दिवस इस वर्ष विशेष रहा| 108वें स्थापना दिवस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी दक्षिण भाग के महामना नगर द्वारा महामना परिवार-महासंचलनम कार्यक्रम का आयोजन किया गया| सञ्चलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्रीमान मुकुंद जी उपस्थित रहें| काशी में कार्यकर्ताओं का उत्साह और संचलन का विशाल रूप देख वे अभिभूत हुए| 

 संचलन के प्रारम्भ में विश्वविद्यालय के स्थापना स्थल (ट्रामा सेंटर) स्थित सरस्वती मंदिर में पू.उ.प्र. क्षेत्र के क्षेत्र कार्यवाह डॉ.वीरेन्द्र जायसवाल, मा.विभाग संघचालक डॉ.जेपी लाल, मा.सह विभाग संघचालक त्रिलोक जी, मा.भाग संघचालक सुनील जी एवं सभी नगरों के मा.संघचालकों द्वारा सपत्नीक वैदिक रीति से पूजन किया गया| इसके उपरांत स्वयंसेवकों द्वारा वन्देमातरम का गान किया गया| इसके पश्चात सभी स्वयंसेवकों ने गणवेष में पंक्तिबद्ध हो सञ्चलन निकाला| इस बार स्वयंसेवकों के साथ मातृशक्ति (माता/बहनें) एवं देवशक्ति (पुरुष/युवा) के संचलन का महासंगम देखने को मिला| सबसे आगे सुसज्जित वाहन पर डॉ.हेडगेवार, श्रीगुरुजी, मालवीय जी एवं भारत माता की झांकी चल रही थी| इसके पीछे घोष के धुन पर कदम ताल मिलाते हुए स्वयंसेवकों का समूह था| तत्पश्चात केशव नगर द्वारा प्रस्तुत स्वामी विवेकानन्द की झांकी संचलन में चल रही थी| मातृशक्ति एवं देवशक्ति का अपार जनसमूह हांथो में तिरंगा लेकर भारत माता की जय घोष करते हुए चल रहा था| मार्ग में विभिन्न स्थानों पर संचलन पर पुष्प वर्षा भी की गयी| 

 सञ्चलन ट्रामा सेन्टर से प्रारम्भ होकर रविदास गेट होते हुए लंका सिंह द्वार पर पहुंचा| जहाँ सह सरकार्यवाह श्रीमान मुकुंद जी ने महामना मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन कर माल्यार्पण किया| संचलन का विराम रुइया क्रीड़ा स्थल पर हुआ| 





Friday, January 27, 2023

शिव और भारत संतुलन की प्रतिमूर्ति है - मुकुंद जी

काशी| अध्यात्मिक दृष्टी से देखें तो भारत और शिव दोनों एक ही तत्व को प्रतिपादित करते है वह तत्व है संतुलन जिसका एक अर्थ है धर्म, धर्म अर्थात धारण करने की शक्ति भारत की संतुलन की क्षमता ही धर्म है वही शिव है| उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्रीमान मुकुंद जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में व्यक्त किया| वे गुरुवार को विश्वविद्यालय के 108वें स्थापना दिवस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी दक्षिण भाग के महामना नगर द्वारा आयोजित महामना परिवार-महासंचलनम कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे| 

उन्होंने आगे कहा कि काशी विश्व की प्राचीनतम सजीव नगरी है, ऐसी पुण्य नगरी में प. मदन मोहन मालवीय जी ने हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की| यह विश्वविद्यालय विश्वनाथ के प्रसाद स्वरुप गंगा माता के तटपर स्थापित है ,इसका उद्देश्य हिन्दू नाम मानवर्धन करना है , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उद्देश्य भी हिन्दू संस्कृति , हिन्दू धर्म , हिन्दू समाज का संरक्षण एवं संवर्धन करना है। विश्वविद्यालय के प्रथम कुलाधिपति मैसूर नरेश ने कहा था कि हिन्दू एक जीवन शैली है। जब हिन्दू समाज पतन की ओर जा रहा था और आत्मकेंद्रित हो रहा था ऐसे में समाज में संस्कारो को पुनर्जीवित करने का कार्य प. मालवीय जी और डॉ. हेडगेवार ने किया। 

   संघ को जो भी आवश्यकता हुई इस विश्वविद्यालय में महामना जी ने उपलब्ध कराया, द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी इसी परिसर में संघ से जुड़े| परिवार की आवश्यकता को बताते हुए वक्ता ने कहा कि समाज को युगानुकूल संस्कार देना परिवार की ही जिम्मेदारी है| पौध वितरण कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए सह सरकार्यवाह जी ने कहा की पर्यावरण का विषय बहुत विराट है परन्तु पौधा, पानी और प्लास्टिक पर समाज का प्रबोधन करने की आवश्यकता है| मुख्य वक्ता ने सभी समाज के लिए एक जल स्रोत, एक मंदिर, एक शमशान के संघ के संकल्प को दोहराया|

कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए नगर संघ चालक डॉ विवेक पाठक जी ने बताया कि सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, विद्या, देशभक्ति, , आत्मत्याग के शिक्षण हेतु इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है।

 कार्यक्रम में सह सरकार्यवाह श्रीमान मुकुंद जी समेत सभी मंचस्थ अतिथिगण को स्मृति चिन्ह एबं रुद्राक्ष की माला भेंट किया गया| कार्यक्रम का प्रारम्भ राष्ट्रगान एवं विश्वविद्यालय के कुलगीत द्वारा किया गया| इसके उपरांत मन की एकाग्रता एवं पर्यावरण की शुद्धता के लिए ब्रम्ह्नाद के पाँचों प्रकार का उच्चारण किया गया| अतिथि परिचय नगर कार्यवाह डा.अरुण देशमुख द्वारा किया गया| अमृत वचन पुन्यांश एवं एकल गीत विक्रांत जी ने प्रस्तुत किया| मंच पर निर्मला एस मौर्य, कुलपति-पूर्वांचल विश्वविद्यालय, सुश्री सुनील डबास, वायस एडमिरल सुनील आनंद, जगतगुरु अनंतानंद जी, सूर्यकान्त जालान, मनोहर राम जी एवं माननीय विभाग संघ चालक जयप्रकाश लाल जी उपस्थित रहें।

जनमानस के मोबाइल फ़्लैश लाइट के बीच हुई भारत माता की महाआरती :

 पांच वैदिक विद्वानों द्वारा मंत्रोच्चार के बीच भारत माता की भव्य आरती की गयी| उपस्थित जनसमूह द्वारा मोबाइल के फ़्लैश लाइट जलाकर आरती में सहयोग करना कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा| भारत माता के चित्र के समीप उपस्थित जनसमूह द्वारा मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु वन्दनवार में आम और पीपल के पत्ते लगाये गये| इस बीच हजारों की संख्या में आकाशदीप कार्यकर्ताओं ने उड़ाये| कार्यक्रम में बनेठी कला के प्रदर्शन ने परिसर के सभी लोगों को आकर्षित किया| 

36 फीट ऊँचे संघ ध्वज का ध्वजारोहण :

 स्थापना दिवस पर प्रतिवर्ष होने वाले संघ का ध्वजारोहण इस बार ऐतिहासिक रहा| कार्यकर्ताओं द्वारा 36 फीट के ध्वजदण्ड पर ध्वजारोहण किया गया| इसके अतिरिक्त कार्यक्रम स्थल पर लहराने वाले ध्वज एवं पताकाओं के ध्वजदंड की कुल लम्बाई 1080 फीट रही| तत्पश्चात संघ प्रार्थना नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे... से परिसर गुंजायमान हो उठा| 

पूर्वोत्तर भारत के कलासाधकों ने किया लोक कला का प्रदर्शन 

 कार्यक्रम में पूर्वोत्तर भारत के असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम एवं नागालैंड से आये कलाकारों ने लोक नृत्य, लोक गायन की प्रस्तुति देकर भारत की विविधता में एकता को प्रदर्शित किया| 

संघ के पर्यावरण गतिविधि द्वारा 108 पौधों का हुआ वितरण :

 कार्यक्रम में पर्यावरण गतिविधि द्वारा 108 पौधों का वितरण कर पर्यावरण संरक्षण का सन्देश दिया गया| सभी पौधों को महामना परिवार बीएचयू के चयनित पर्यावरण मित्रों को वितरित किया गया| 


महापुरुषों के वेशधारी बालवृन्दों ने दिया सन्देश :

 अभिभावकों के साथ आये बच्चे विभिन्न महापुरुषों के वेष धारण कर लोगों को मोहित कर रहे थे| स्वामी विवेकनन्द, मालवीय जी, डा.हेडगेवार एवं श्री गुरूजी समेत अन्य महापुरुषों के वेषधारी बच्चों ने भारत की अखंडता एवं एकता का सन्देश दे रहे थे| 

सभी सेल्फी प्वाइंट पर जुटी रही भीड़ 

 कार्यक्रम में लगे 16 सेल्फी प्वाइंट पर जनसमूह की भीड़ लगी रही| विभिन्न महापुरुषों के कट आउट से सजे परिसर में लोग सेल्फी लेते दिखे| 

कार्यक्रम का समापन 4 मन्त्रों के माध्यम से किया गया| अन्त में स्वयंसेवकों द्वारा बनाये गये प्रसाद का वितरण हुआ| 

इस अवसर पर पू.उ.प्र. क्षेत्र के क्षेत्र कार्यवाह डॉ.वीरेन्द्र जायसवाल जी, प्रान्त प्रचारक श्री रमेश जी, प्रान्त प्रचारक प्रमुख राम चन्द्र जी, प्रान्त संपर्क प्रमुख दीन दयाल जी, प्रान्त गौ सेवा संयोजक अरविन्द जीी,  विभाग प्रचारक श्री कृष्णचंद्र जी, वरिष्ठ प्रचारकगण नागेन्द्र, राघवेन्द्र ,श्याम जी विभाग कार्यवाह अरुण जी सह विभाग कार्यवाह डॉ आशीष जी उपस्थित रहें| सञ्चालन सुनील किशोर द्विवेदी एवं मृत्युंजय जी ने किया|









विश्व में शांति के रूप में इस राष्ट्र की पहचान हिन्दू धर्म से है - रामानुजाचार्य वासुदेवाचार्य जी

प्रयागराज| हिंदू समाज स्वयं आगे आकर धर्मांतरण का विरोध करें गौ हत्या बंद हो इसके लिए पूज्य संतों को आगे आना चाहिए पूरी दुनिया में शांति के लिए इस राष्ट्र की पहचान है वो हिंदू धर्म के कारण है हमारा धर्म और संस्कृति संरक्षित और संवर्धित हो हमें इसके लिए प्रयास करना चाहिए| उक्त विचार जगतगुरु रामानुजाचार्य वासुदेवाचार्य जी ने व्यक्त किया| वे बुधवार को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद माघ मेला शिविर के हिंदू समाज के रीति रिवाज परंपराओं मान्यताओं देवी-देवताओं आस्था से जुड़े विषयों पर मार्गदर्शक मंडल की बैठक को सम्बोधित कर रहे थे| मार्गदर्शक मंडल की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू समाज के लिए वैश्विक स्तर पर एक समग्र नीति बननी चाहिए जिसका मार्गदर्शन सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक स्तर पर हो| हिंदू समाज सशक्त हो सभी जाति मत-पंथ-संप्रदाय की एकता ही हिंदू समाज की एकता है|

मार्गदर्शक मंडल की बैठक में अपना विचार रखते हुए डॉ. रामकमल दास वेदांती जी ने कहा समान नागरिक आचार संहिता ही हिंदू समाज के ऊपर हो रहे हमले को रोकने में एक सशक्त कदम होगा| देश में एक निशान एक विधान हो हमारी सरकार को इसका चिंतन करना चाहिए, जिससे समाज में संतुलन बना रहेगा| बैठक में वैदेही वल्लभा देवाचार्य जी ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी वनवासी क्षेत्रों में हम संतो को निकलकर प्रवास करना चाहिए| हिंदू संस्कृति और धर्म की मुख्यधारा से जो हटे हैं, जो समाज से हटा है, उसे मुख्यधारा में लाने का कार्य हम संतो को करना है| उन्होंने कहा कि जब-जब हिंदू धर्म और इस राष्ट्र पर किसी प्रकार का आक्रमण हुआ है तो पूज्य संत ही आगे आए हैं| हिंदू समाज हमको श्रद्धा और आस्था के भाव से देखता है| इसलिए हमको आगे आना चाहिए और समाज में जागरण का कार्य करना चाहिए|

            बैठक में पूज्य संतोष दास सतुआ बाबा जी ने कहा कि लगातार हमारे जनजाति समाज के ऊपर हमले हो रहे हैं| हिंदू समाज को बांटने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है| हमें जात के नाम पर बांटने का बहुत बड़ा खेल ईसाई मिशनरियों द्वारा किया जा रहा है| हमारे असहाय निरीह बंधुओं को लालच देकर धर्मांतरण का खेल चलाया जा रहा है इसलिए हम संत समाज से यह आग्रह करते हैं कि वह समाज में जाकर इस घिनौने कुचक्र को समझाएं| सामाजिक समरसता के अनेक कार्यक्रम पूज्य संतों के द्वारा आयोजित किए जाएं अनेक समरसता मूलक कार्यक्रमों के आयोजन हों | जिसमें सभी जाति मत पंथ संप्रदाय संपूर्ण हिंदू समाज की एकता का प्रदर्शन हो| बैठक में बोलते हुए कृष्ण आचार्य जी ने कहा कि आज हिंदू समाज में बाल संस्कार के लिए विश्व हिंदू परिषद ने जो योजना बनाई है, उस पर संत समाज पूरा सहयोग करेगा और संत समाज भी हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियां बुराइयों को समाप्त करने के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित करने की पहल करेगा| बैठक में अपने विचार रखते हुए विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय उपाध्यक्ष श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री श्री चंपत राय जी ने कहा कि आज हिंदू समाज के ऊपर अनेक प्रकार से आक्रमण हो रहे हैं जो कहीं अशांति की ओर ले जाने का प्रयास है| हिंदू समाज के धैर्य की परीक्षा न ली जाए| उन्होंने आगे कहा कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण प्रगति पर है| श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन इन्हीं पूज्य संतों के मार्गदर्शन पर हुआ| पूज्य संतों के मार्गदर्शन से ही हिंदू समाज आज पूरे दुनिया में हिंदू संस्कृति एवं हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा सर्वोच्च है, जो पूज्य संत लगातार हिंदू समाज को संगठित और संस्कार युक्त बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं| यह वही पुण्यभूमि है जहां पर लिया गया संकल्प पूर्ण होता है|

            बैठक में डॉ. नरसिंह दास जी ने कहा इस राष्ट्र की संस्कृति इतनी महान है कि हमारे महापुरुष हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं| हम आगे आने वाली पीढ़ियों में केवल अपने संस्कृति का ज्ञान और महापुरुषों का इतिहास का ज्ञान करवाते रहें यह कार्य हम संतो को करना है| हिंदू समाज की रक्षा के लिए हमें अपने इस जीवन को लगा देना चाहिए| विश्व हिंदू परिषद का कार्य ईश्वरीय है इसलिए इस पुण्य भूमि पर हम लोग एकत्रित होकर जो संकल्प लेते हैं वह अब तक पूरा होता आया है| बैठक में पूज्य संतों के समक्ष विचारणीय विषय वैदिक सनातन जीवन मूल्य, ग्रामीण वनवासी क्षेत्रों में प्रवास,  घर वापसी,  राष्ट्रीय जनसंख्या नीति,  समान नागरिक संहिता, लव जिहाद और धर्मांतरण का प्रस्ताव अखिल भारतीय धर्माचार्य संपर्क प्रमुख जिवेशवर मिश्र जी ने रखा| संचालन अखिल भारतीय संत संपर्क प्रमुख श्री अशोक तिवारी जी ने किया| प्रमुख रूप से स्वामी गोपाल जी महाराज सच्चा आश्रम स्वामी रामरतन दास जी महाराज फुलहरि बाबा स्वामी लाल बाबा जी, विश्व हिंदू परिषद के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पू. उ. प्रदेश गजेंद्र जी, प्रांत संगठन मंत्री मुकेश कुमार, सह संगठन मंत्री प्रांत नितिन, काशी प्रांत धर्माचार्य संपर्क प्रमुख अद्या शंकर जी, विश्व हिंदू परिषद काशी प्रांत के अध्यक्ष के. पी. सिंह आदि उपस्थित रहे|

Wednesday, January 25, 2023

26 जनवरी – पूर्ण स्वराज्य/गणतंत्र दिवस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

डॉ. श्रीरंग गोडबोले

भारत में 26 जनवरी को प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवसके रूप में मनाया जाता है. कम लोग इस तथ्य को जानते हैं कि 1930 से 1947 तक इसे स्वतंत्रता दिवसके रूप में मनाया जाता था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (अब संघ) के आलोचक संगठन पर गणतंत्र दिवस से अलग रहने का आरोप लगाते हैं. 26 जनवरी 1930 का दिन था, जब पूर्ण स्वराज्य दिवस (स्व शासन का पूर्ण दिवस) मनाया गया था. 1950 के पश्चात यह दिन गणतंत्र दिवसके रूप में मनाया जाने लगा. 26 जनवरी, 1930 को संघ कहाँ था? पुनः 26 जनवरी, 1950 को वह कहाँ था? यह लेख संघ के अभिलेखागार में मौजूद समकालीन प्रलेखों और मराठी समाचार पत्र केसरीमें प्रकाशित समाचार सामग्री के आधार पर इन प्रश्नों के उत्तर देता है. इससे पहले हमें यह जानना होगा कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवसके रूप में क्यों चुना गया था?

गणतंत्र का जन्म

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ने अविभाजित भारत को 15 अगस्त, 1947 को दो स्वतंत्र उपनिवेशों -भारत और पाकिस्तान के रूप में विभक्त किया. भारत की संविधान सभा ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल से भारतीय डोमिनियन के विधायी कार्यों को ले लिया. इसने 26 नवंबर, 1949 को संविधान के प्रारूप को मंजूरी दे दी. संविधान के प्रभावी होने के लिए एक प्रारंभ तिथि का चयन किया जाना शेष था. 1950 के प्रारंभ की किसी तिथि को चुनना स्पष्ट रूप से सुविधाजनक था. नए वर्ष का पहला दिन चुनना पुराने शासकों की नकल करने जैसा होता. और जनवरी के अंतिम दिन का चयन गांधी की हत्या की तिथि के निकट होता जो उचित नहीं होता. ऐसे में प्रश्न यह था कि जनवरी में कोई अन्य तिथि कौन सी हो सकती है? 20 वर्ष पूर्व जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 26 जनवरी, 1930 को पूर्ण स्वराज्य दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था, इसलिए इस तिथि को गणतंत्र दिवस के रूप में मनोनीत किया गया (केसरी 27 जनवरी, 1950).

पूर्ण स्वतंत्रता का स्वीकार कांग्रेस की दॄष्टि से भले ही ऐतिहासिक निर्णय हो लेकिन इससे पहले के 5 दशकों में  सैकड़ों गुमनाम क्रांतिकारियों और उनके परिवारों को पूर्ण स्वतंत्रता के लिए मृत्यु, निर्वासन, कारावास और संपत्ति की जब्ती का सामना करना पड़ा थानेहरू ने क्रांतिकारियों के योगदान की  हमेशा उपेक्षा की.  इसलिए कांग्रेस और विशेषकर नेहरू के लिए महत्त्व की तिथि को गणतंत्र दिवस के रूप में निर्धारित किया गया. इस प्रकार से संप्रभु लोकतांत्रिक भारतीय गणराज्य का जन्म हुआ.


आनंद और आक्रोश

नए गणतंत्र के जन्म का उल्लास मनाने के लिए 26 और 27 जनवरी 1950 को दो दिवसीय आनंदोत्सव की घोषणा की गई थी. भारतीय राजनीति के परिदृश्य में विभिन्न लोगों ने नए गणराज्य की स्थापना को कैसे देखा? अपने राजनीतिक प्रभुत्व को देखते हुए, कांग्रेस स्वाभाविक रूप से उत्साहित थी. गांधी हत्याकांड को लाठी की तरह उपयोग करते हुए, नेहरू अखिल भारत हिन्दू महासभा और संघ जैसे हिन्दू पुनरुत्थान में लगे समूहों को कुचलने में लगे हुए थे. राष्ट्रीय सहमति की यदि नेहरू की कोई परिकल्पना थी भी तो उसमें इन समूहों को कोई स्थान नहीं था. हिन्दुत्व के अग्रणी नेता विनायक दामोदर सावरकर महात्मा गांधी हत्याकांड में अग्निपरीक्षा से गुजरे थे और एक साल से भी कम समय पहले ही जेल से रिहा हुए थे. फिर भी, एक उल्लेखनीय बयान में, सावरकर ने कहा, “प्रत्येक नागरिक जिसकी अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा संदेह से ऊपर है, बिना शर्त और पूरे दिल से है, वह ब्रिटिश गुलामी से अपनी मातृभूमि की मुक्ति के उपलक्ष्य में उस दिन राष्ट्रीय समारोह में खुशी से शामिल हुए बिना नहीं रह सकता. हम उस दिन प्रांत, व्यक्ति और पार्टी के अपने छोटे-छोटे झगड़ों को भुला दें और केवल एक और साझा मंच अपने संकुचित मोर्चों को छोड़, एक मातृभूमि के मंच पर दुनिया के सामने अपनी राष्ट्रीय जीत की घोषणा करें … (बॉम्बे क्रॉनिकल, 5 अप्रैल 1950 ) उम्रदराज सावरकर ने अपनी सेवाएं नए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की इच्छा पर छोड़ दीं.

हिन्दू महासभा के उपाध्यक्ष और इसके संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष आशुतोष लाहिड़ी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अंडमान में कारावास झेला था. उन्होंने सभी स्थानीय हिन्दू सभा इकाइयों को नए संविधान को अपनाने से संबंधित उत्सवों में भाग लेने और सहयोग करने का आह्वान किया (केसरी, 24 जनवरी 1950). 27 जनवरी को मुंबई में आयोजित एक बैठक में, हिन्दू महासभा की कार्यकारी समिति ने भारतीय गणराज्य के स्वागत का प्रस्ताव पारित किया (केसरी, 31 जनवरी 1950) .

नए गणतंत्र के जन्म से कुछ वर्गों में नाराजगी हुई. 26 जनवरी को मुंबई के काला चौकी क्षेत्र में कम्युनिस्टों ने विरोध रैली निकाली. जब पुलिस ने कम्युनिस्टों को वापस जाने के लिए कहा तो उन्होंने पुलिस पर एसिड बम फेंके . इसमें दो पुलिस इंस्पेक्टर्स को चोटें आईं. पुलिस ने चार राउंड गोलियां चलाईं, जिसमें आठ लोग घायल हुए. करीब 55 कम्युनिस्टों को गिरफ्तार किया गया (केसरी, 27 जनवरी 1950). कम्युनिस्ट मुंबई के कोलाबा इलाके में आयोजित एक ध्वज-वंदन समारोह में पहुंचे और वहां एकत्रित लोगों से काले झंडे फहराने का आग्रह किया. इससे थोड़ी झड़प भी हुई (केसरी, 31 जनवरी 1950). केसरी ने प्रकाशित किया कि “26 जनवरी को फॉरवर्ड ब्लॉक, पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी और अन्य संगठनों के कार्यालयों पर काले झंडे फहराए जाने की घटनाएं हुईं. कम्युनिस्टों ने मुंबई और कलकत्ता जैसे शहरों में भी उत्सव को खराब करने के घृणित प्रयास किए” (केसरी, 3 फरवरी 1950).

काम्पटी (मध्यप्रांत) में एक  मस्जिद के सामने गणतंत्र दिवस जुलूस को रोक दिया गया क्योंकि यह संगीत बजा रहा था. राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की तस्वीर पर पत्थर फेंके गए. संगीत बंद करने के बाद ही जुलूस को आगे बढ़ने दिया गया. वापसी के दौरान प्रतिभागियों पर लाठी चलाने वाले गैर-हिन्दुओंने हमला किया और यह केवल सशस्त्र सैनिकों की उपस्थिति थी, जिसने दंगा रोका (केसरी, 6 फरवरी 1950).

केसरी (24 जनवरी, 1950) ने बताया कि कांग्रेस सेवा दल, बॉय स्काउट्स, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य संगठनों के स्वयंसेवक 26 जनवरी की सुबह प्रभात फेरी (सुबह जुलूस) निकालेंगे. अलग-अलग जुलूस पुणे के ऐतिहासिक शनिवार वाड़ा के मैदान में मिलेंगे”. केसरी की रिपोर्ट के अनुसार, संघ के युवा स्वयंसेवकों ने दो दिवसीय उत्सव में कांग्रेस सेवादल और समाजवादी राष्ट्र सेवा दल के समान गर्व के साथ भाग लिया था (27 जनवरी 1950).

मुंबई में संघ के कार्यक्रम को रिपोर्ट करते हुए केसरी ने टिप्पणी की, ”26 जनवरी की सुबह चौपाटी पर संघ का प्रभावशाली ध्वज-वंदन समारोह हुआ. इसकी भव्यता और अनुशासन ने सेना और पुलिस को भी चकित कर दिया” (31 जनवरी 1931).

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से जालंधर ,गुरदासपुर,खरड़,भीलवाड़ा ,अंबाला, रोहतक आदि स्थानों में प्रथम गणतंत्र दिवस के आयोजन के दस्तावेज अंकित हैं . 26 जनवरी 1950 की सुबह इंदौर में संघ ने एक अद्भुत और विशेष कार्यक्रम किया. बड़ी संख्या में भिखारियों (महिलाओं सहित )को इस अवसर पर स्वयंसेवकों ने परोसकर ससम्मन भोजन करवाया . इस अवसर पर बोलते हुए इंदौर के संघ कार्यवाह पंडित रामनारायण  शास्त्री  (जो कुछ वर्षों बाद मध्य प्रदेश के प्रांत संघचालक बने ) ने कहा हम चाहते हैं कि तुम्हारी यह दशा शीघ्र बदल दें. हम चाहते हैं कि वह शुभदिन शीघ्र आवे जब कोई भी न भूखा रहे और न नंगा.  वह स्थिति शीघ्र आवे जब आप भी हमें भोजन करवा सकें. अब आप अपने आप को भिखारी न समझें, दीन-हीन न समझें, बल्कि अपने आप को इस देश का राजा समझें “( आकाशवाणी साप्ताहिक ,जालंधर 5 फरवरी 1950)

पूर्ण स्वतंत्रता के लिए कांग्रेस की गड्डमड्ड राह

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव जवाहरलाल नेहरू ने 27 दिसंबर 1927 को कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा. प्रस्ताव इस प्रकार पढ़ा गया – “कांग्रेस पूर्ण स्वराज को भारतीय जनता का लक्ष्य घोषित करती है .” (१९२७ को मद्रास में आयोजित बयालीसवीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रिपोर्ट, स्वागत समिति, मद्रास, पृ. 15)  भारत की स्वतंत्रता और ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार नेहरू द्वारा पेश किया गया प्रस्ताव गांधी जी को पसंद नहीं था (डी.जी. तेंदुलकर, महात्मा: मोहनदास करमचंद गांधी का जीवन, विठ्ठलभाई के. झवेरी और डी.जी. तेंदुलकर, मुंबई, 1951, खंड 2, पृ. 402, 429-430) . अब तक, औपनिवेशिक स्व-शासन कांग्रेस का लक्ष्य था, जिसे कांग्रेस अध्यक्ष मुख्तार अहमद अंसारी ने गांधी के शब्दों में स्पष्ट किया था – “यदि संभव हो तो साम्राज्य के भीतर, यदि आवश्यक हो तो उसके बाहर” (मद्रास कांग्रेस रिपोर्ट, परिशिष्ट 1, पृ.3).

कांग्रेस के लक्ष्य को लेकर 29 दिसंबर, 1928 से 1 जनवरी, 1929 तक कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में मतभेद उभरकर सामने आए. श्रीनिवास अयंगर, जवाहरलाल नेहरू और सुभाष बोस ने पूर्ण स्वतंत्रता के ध्येय का समर्थन किया, जबकि गांधी और कांग्रेस के निर्वाचित अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू डोमिनियन स्टेटस के पक्षधर थे. इसी डोमिनियन स्टेटस के आधार पर मोतीलाल नेहरू ने सर्व दलीय परिषद के अनुरोध पर भविष्य के भारत के संविधान को लेकर रिपोर्ट तैयार की थी. मोतीलाल नेहरू ने स्पष्ट कह दिया था कि यदि उन्हें अपनी रिपोर्ट के पक्ष में समर्थन नहीं मिलेगा तो वह कांग्रेस की अध्यक्षता नहीं करेंगे. गांधी जी ने बीच का रास्ता ढूंढा और यह प्रस्ताव दिया कि यदि यह 31 दिसंबर 1930 से पहले ब्रिटिश संसद द्वारा संविधान को स्वीकार न करने की स्थिति में कांग्रेस अपना अहिंसक असहयोग आंदोलन प्रारंभ करेगी (तेंदुलकर, पृ. 439-440.)

गांधी जी द्वारा घोषित निर्धारित अंतिम तिथि से पहले ही वायसराय लॉर्ड इरविन ने 31 अक्तूबर, 1929 को घोषणा की कि डोमिनियन स्टेटस की प्राप्ति यही भारत की संवैधानिक प्रगति की स्वाभाविक परिणति थी. इस शानदार घोषणा के बावजूद 23 दिसंबर को गांधी, जिन्ना और अन्य लोगों से मुलाकात के दौरान वायसराय ने कहा कि गोलमेज परिषद को किसी विशेष भूमिका पर पहले से बांधकर रखना उनके लिए संभव नहीं. इस प्रकार से डोमिनीयन स्टेटस मिलने की कोई गारंटी अब नहीं रही. पीछे हटने के सभी रास्ते बंद हुए यह घोषित करते हुए गांधी ने अब स्वयं को निश्चित रूप से स्वतंत्रता का पक्षधर बताया.

स्वतंत्रता के पक्षधर जवाहरलाल नेहरू को दिसंबर 1929 में लाहौर में होने जा रहे कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष के रूप में चुने जाने से पूरे देश में स्वतंत्रता संबंधी अपेक्षित प्रस्ताव के प्रति उत्साह को बढ़ावा मिला. (आर.सी. मजूमदार, हिस्टरी ऑफ द फ्रीडम मूव्हमेंट इन इंडिया, फर्मा के.एल.मुखोपाध्याय, कलकत्ता, खंड ३, पृ. 322, 325).

लाहौर अधिवेशन में गांधी जी ने अब यह घोषणा की कि कांग्रेस के संविधान के आर्टिकल 1 में स्वराज शब्द का अर्थ होगा पूर्ण स्वतंत्रता, और नेहरू कमेटी (मोतीलाल) की रिपोर्ट की पूरी योजना धराशायी हो गई, और आशा व्यक्त की कि अब से सभी कांग्रेस कार्यकर्ता अपना पूरा ध्यान समर्पण के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की ओर लगाएंगे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, चौवालीसवे वार्षिक अधिवेशन का रिपोर्ट, लाहौर , स्वागत समिति, पृ. 88)

राष्ट्र के समक्ष स्वतंत्रता के आदर्श को आगे बढ़ाने के लिए 02 जनवरी, 1930 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यसमिति ने निर्णय लिया कि पूरे भारत में 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्व-शासन) दिवस मनाया जाएगा. गांधी द्वारा एक घोषणा पत्र तैयार किया गया और उसे कार्यसमिति ने स्वीकार किया, जिसे भारत के प्रत्येक गांव और कस्बे में लोगों के समक्ष पढ़कर और श्रोताओं से समर्थन में हाथ खड़े करने को कहा गया (मजूमदार पृ.331) .

पूर्ण स्वतंत्रता के इस राष्ट्रव्यापी उत्साह के बीच संघ कहाँ था? इसे अगले लेख में जानेंगे.

…..शेष अगले लेख में