Saturday, September 2, 2023

हमारी मातृशक्ति-वीरांगनाओं ने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया - रमेश जी

मीरजापुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मीरजापुर द्वारा आयोजित रक्षाबंधन उत्सव को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रान्त प्रचारक रमेश जी ने कहा कि हमारी मातृशक्ति-वीरांगनाओं ने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया परन्तु मार्क्सवादी इतिहासकारों ने इतिहास का मजाक बनाते हुए उनको महत्व नही दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्सवों के माध्यम से समरस समाज का निर्माण करने और समाज में व्याप्त कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए विगत 98 वर्ष से प्रयासरत है।

गुरुवार को नगर के राजस्थान इंटर कालेज के सभागार में कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मातृशक्तियों की तप के कारण ही भारत व् भारत की प्राचीन संस्कृति बची है| वीरांगना किरण देवी की बहादुरी का वर्णन करते हुए बताया कि हिन्दू बेटियों बहुओं पर कुदृष्टि रखने वाले अकबर को उसी के मीना बाजार में उसके सीने पर लात रखकर गर्दन पर तलवार की नोक लगाने का काम  महाराज उदय सिंह के पुत्र शक्ति सिंह की बेटी किरण देवी ने किया था| लेकिन मार्क्सवाद प्रेरित इतिहासकारों ने इसकी कोई चर्चा नहीं की। मुगलों के कुदृष्टि के कारण ही हमारे समाज में पर्दा प्रथा, बाल विवाह के साथ-साथ रात्रि विवाह का प्रचलन शुरू हुआ।

प्रांत प्रचारक ने कहा कि जब जब देश की संस्कृति और परंपरा पर आघात हुआ तो मातृ-शक्तियों ने पूरी ताक़त के साथ इसका प्रतिकार किया।अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में नारी का कोई स्थान नहीं उन्हें वोट देने का भी अधिकार नहीं दिया था,लेकिन भारतीय संस्कृति में मातृ देवो भव का भाव है और हम गर्व से कहते हैं कि माता भूमि: पुत्रों अहम पृथीव्या: । यहाँ नारी अबला नही सबला है और श्रद्धा ही नही बल्कि शक्ति का प्रतीक है। मातृशक्ति कभी भी अपने लिए नही बल्कि वह पुत्र-पति परिवार व सम्पूर्ण समाज के लिए, व्रत उपवास करती हैं ओ हमेशा संस्कार के लिए समर्पित रही है और है। सती अनुसूइया जैसी योगिनी नही हुई। पन्ना धाय को पता था की हश्र क्या होगा, फिर भी प्रिय पुत्र की बलिदान देकर उन्होंने मेवाड़ की रक्षा की। बामनावतार विष्णु भगवान ने महाराजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर ही दान का संकल्प कराया और भगवान विष्णु के बामनावतार को तीन पग दान (सर्वस्व अर्पण) से प्रसन्न कर बली हमेशा के लिए पाताल लोक ले गया था। काफी दिन न लौटने पर श्रावण पूर्णिमा के दिन ही माता लक्ष्मी वहां मातृशक्ति रूप मे पहुची और महाराज बलि को रक्षासूत्र बाधा। बलि ने पूछा क्या चाहिए तो लक्ष्मी जी ने कहा हमे हमारे स्वामी चाहिए और तथास्तु कहते ही अपने रूप मे आ गयी। लेकिन विष्णु भगवान ने कहा कि मै प्रत्येक वर्ष पाताल लोक में चार माह स्यान एकादशी से उठवानी एकादशी तक (चतुर्मास) पाताल लोक मे रहूँगा। देवताओ की रक्षा के लिए मातृ शक्तियो का प्राकट्य होता रहा। इन्द्र के विजय के लिए इंद्राणी रक्षासूत्र बांधती है और शक्ति प्रदान करती है और दैवीय शक्तियो के बल पर आसुरी शक्तियो पर विजय प्राप्त किया।

उन्होंने कहा कि बहुत सारे देश अतीत में चले गए लेकिन हमारी सभ्यता संस्कृति एवं पर्वों के चलते मिली ऊर्जा से गुलामी का दंश झेलने के बाद भी, 1300 वर्ष तक ग्रीक,  हुड, शक, यवन, मुगल और अंग्रेजो के आघात का प्रतिकार करने के बाद भी हमारे उत्सवों के परंपरा के कारण ही संस्कार और संस्कृति जीवंत है। संस्कृति सभ्यता और समाज को तोड़ने वाली शक्तियां लगी, लेकिन पर्वों ने देश को जोड़े रखा।

हमारी संस्कृति में कोई भी पर्व हो संदेश देता है कि 'सब समाज को लिए साथ में आगे है बढ़ते जाना, .. जहां पूर्णता मर्यादा हो सीमाओं की डोर नहीं। ऐसे मे हम सभी को संकल्प लेना होगा कि समाज को तोड़ने वाली शक्तियो का सामना कर प्रखर राष्ट्रीयता की ओर लौटना होगा और संपूर्ण समाज मे ऐसा भाव लाना होगा, ताकि अपना देश परम वैभव और विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हो।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में परम पवित्र भगवा ध्वज को रक्षासूत्र बांधकर राष्ट्र के परं वैभव की कामना के साथ परिवार सहित पहुंची बहनों ने भाईयो की कलाई मे रक्षासूत्र बांधकर राष्ट्ररक्षा का संकल्प लिया।

इस अवसर पर मा.प्रान्त सह संघचालक अंगराज सिंह जी, मा.विभाग संघचालक तिलकधारी जी, मा.सह विभाग संघचालक धर्मराज जी, मा.ज़िला संघचालक शरद जी, विभाग कार्यवाह सच्चिदानंद त्रिपाठी, जिला कार्यवाह चंद्रमोहन जी, विभाग प्रचारक परितोष जी,  जिला प्रचारक धीरज जी, राजेन्द्र प्रसाद जी, कुलदीप जी, लखन जी, सोहन श्रीमाली सहित बड़ी संख्या में स्वयंसेवक बंधु एवं राष्ट्र सेविका समिति की बहनों की उपस्थिति रही।

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