विशेषांक से शिवाजी की सुशासन परम्परा को जानने का अवसर - लक्ष्मण आचार्य
काशी।
शिवाजी के शासन का उद्देश्य अपने अधीनस्थों को शान्ति, सहिष्णुता, सभी जाति-धर्मों के लिए समान अवसर और
शुद्ध प्रशासनिक प्रणाली प्रदान करना था। उनके राजनीतिक आदर्श ऐसे थे कि हम उन्हें
आज भी बिना किसी परिवर्तन के स्वीकार कर सकते हैं। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेन्द्र ठाकुर ने व्यक्त किया। वे मंगलवार
को होटल सूर्या में आयोजित विश्व संवाद केन्द्र काशी द्वारा प्रकाशित चेतना प्रवाह
के ‘हिन्दवी स्वराज विशेषांक’ के लोकार्पण समारोह को मुख्य वक्ता के रूप में
सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि छत्रपति
शिवाजी महाराज ने हिन्दू समाज के ‘स्व’ को जागृत करने के लिए मुगलों द्वारा ध्वस्त
किये गये हिन्दू मन्दिरों का पुनरुद्धार किया। फारसी के स्थान पर मराठी और संस्कृत
भाषा को प्राथमिकता दी। मुगल कर व्यवस्था को बदलकर अपनी कर प्रणाली लागू की।
शिवाजी ने अपनी स्वयं की राजमुहर का निर्माण किया जो फारसी के स्थान पर संस्कृत
भाषा में तैयार की गयी थी। शिवाजी ने अपने राज्य को सुरक्षित रखने के लिए अनेक
किलों का निर्माण किया। इसके अतिरिक्त कुशल सेना के साथ-साथ आधुनिक तकनीक का
प्रयोग करते हुए उन्होंने नौसेना का भी निर्माण किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा अपने राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की कार्यप्रणाली का वर्णन करते हुए मुख्य वक्ता श्री ठाकुर ने आगे कहा कि छत्रपति ने अपने राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से कृषि को प्रधानता दी। किसानों को कृषि के लिए प्रोत्साहित किया।
शिवाजी की शासन व्यवस्था में शत्रु परिवार की महिला-बच्चों का हित और सम्मान भी निहित था - लक्ष्मण आचार्य
समारोह
की अध्यक्षता करते हुए सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने कहा कि इस विशेषांक
का विमोचन न केवल “हिन्दवी स्वराज” के 350वें वर्ष पूर्ण होने और छत्रपति शिवाजी को स्मरण करने का अवसर प्रदान कर
रहा है, वरन् भारत में “सुशासन” की जो परम्परा चली आ रही है,
उसको भी समझने और जानने का एक सुन्दर अवसर है।
उन्होंने
आगे कहा कि छत्रपति शिवाजी की शासन व्यवस्था और सोच इस प्रकार की थी कि उन्होंने
जिन आक्रमणकारी मुगलों के विरुद्ध युद्ध किया, उनके परिवार की महिलाओं और बच्चों के हितों एवं सम्मान का भी ध्यान रखा।
उनकी शासन प्रणाली अत्यन्त सुव्यवस्थित और पारदर्शी थी। उन्होंने नौसेना का भी गठन
किया। उनको भारत के थोड़े भाग में मात्र 6-7 वर्षों तक ही
शासन का अवसर प्राप्त हुआ, परन्तु इतने अल्पकाल में ही
उन्होंने जो छाप छोड़ी, उसी से आज भी सुशासन के महत्वपूर्ण
सूत्र हम प्राप्त कर रहे हैं। छत्रपति शिवाजी को पारंपरिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिल
पायी थी, परन्तु माता जीजाबाई और अपने गुरु समर्थ गुरु
रामदास से उन्होंने भारतीय शास्त्रों और धर्म ग्रन्थों की भरपूर जानकारी प्राप्त
किया, अपने माता पिता और गुरु का उनके व्यक्तित्व पर भरपूर
प्रभाव था।
छत्रपति
शिवाजी के राज्याभिषेक के लिए मुगलों के रोकटोक और निषेध के आदेश के बावजूद काशी
से जाकर पं. गागा भट्ट ने उनका राजतिलक किया। जिससे पौराणिक नगरी काशी का सम्मान
और बढ़ा। विषय प्रवर्तन करते हुए पत्रिका के प्रधान सम्पादक प्रो0ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक सम्राट
चंद्रगुप्त मौर्य की राज्याभिषेक की स्मृति को जीवंत करता है। चंद्रगुप्त मौर्य और
छत्रपति शिवाजी के बीच समानता यह है कि दोनों महान शासक थे लेकिन किसी राजवंश
परंपरा के उत्तराधिकारी नहीं थे। यह विषय वस्तु इस विशेषांक का मुख्य आकर्षण है।
इस विशेषांक में छत्रपति शिवाजी की नौसेना एवं मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि के
साथ-साथ औरंगजेब जैसे क्रूर मुगल शासक को मात देकर उन्होंने हिंदवी स्वराज की
स्थापना किया। इसके साथ ही इस विशेषांक में शिवजी के दो दिन के काशी गुप्त प्रवास
एवं शिवाजी का राजतिलक करने वाले काशी के पंडित गंगा भट्ट की वंशावली भी इस
विशेषांक में है।
विशिष्ट
अतिथिद्वय वाराणसी के महापौर आशोक तिवारी एवं जाणता राजा महानाट्य समिति, काशी प्रान्त के अध्यक्ष अभय सिंह ने विशेषांक की सराहना करते हुए कहा कि
यह विशेषांक वर्तमान पीढ़ी को शिवाजी की
कार्यप्रणाली, कूटनीति और शासन व्यवस्था से परिचित कराएगी।
कार्यक्रम
के प्रारम्भ में अतिथियों ने भारत माता एवं छत्रपति शिवाजी के चित्र के समक्ष दीप
प्रज्ज्वलित कर पुष्पार्चन किया। इसके साथ ही पारम्परिक रूप से मंगलाचरण एवं शंख
ध्वनि से शिवाजी के राज्याभिषेक जैसा वातावरण प्रस्फूटित हुआ। स्वागत उद्बोधन
विश्व संवाद केन्द्र काशी कार्यसमिति के अध्यक्ष डॉ.हेमन्त गुप्त एवं अतिथि परिचय
सचिव प्रदीप चौरसिया ने कराया। मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उ0प्र0क्षेत्र के क्षेत्र कार्यवाह डॉ0वीरेन्द्र जायसवाल एवं काशी प्रान्त कार्यवाह मुरली पाल उपस्थिति रही।
कार्यक्रम
में प्रज्ञा प्रवाह पू.उ.प्र., बिहार एवं झारखण्ड के
संयोजक रामाशीष जी, पू.उ.प्र. के मुख्य मार्ग प्रमुख
राजेन्द्र सक्सेना, काशी प्रान्त प्रचारक रमेश जी, प्रधानाचार्य परिषद उ0प्र0 के
प्रदेश अध्यक्ष डॉ.हरेन्द्र राय, डॉ.सत्य प्रकाश पाल, डॉ.अजय परमार, प्रांत सह कार्यवाह डॉ. राकेश तिवारी, जाणता राजा
महानाट्य आयोजन समिति के राहुल सिंह, अनिल किंजवाडेकर,
सी.ए. सतीश चंद्र जैन, भारत विकास परिषद के
प्रमोद राम त्रिपाठी, रविप्रकाश जायसवाल, डॉ. कमलेश तिवारी, डॉ. अमिता सिंह, डॉ. कुमकुम पाठक एवं कार्यक्रम के सह संयोजक डॉ. अशोक सोनकर, डॉ. कविता शाह आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे और कार्यक्रम की सफलता हेतु
सहयोग प्रदान किया। धन्यवाद ज्ञापन पत्रिका के प्रबन्ध सम्पादक नागेन्द्र एवं
संचालन कार्यक्रम संयोजक नवीन श्रीवास्तव ने किया।
छत्रपति शिवाजी की शासन व्यवस्था आज भी प्रासंगिक है।
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