Thursday, June 26, 2025

हिटलर की तानाशाही का पुनरावृत्ति रहा इंदिरा का आपातकाल — रामाशीष जी

उच्च न्यायालय के 1700 कमरों पर चलाया गया था बुलडोजर

काशी। जर्मनी में 1933 में जिस प्रकार हिटलर द्वारा मौलिक अधिकारों का शमन किया गया था, 42 वर्षों बाद भारत में 1975 में इन्दिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाकर उस प्रकार के वातावरण की पुनरावृत्ति की गयी। 26 जून 1975 को पूरे भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस सहित बड़े विपक्षी नेताओं को जेल में डालकर घोर यातना दी गयी। उक्त विचार बुधवार को मुख्य वक्ता के रूप में प्रज्ञा प्रवाह के अ0भा0 केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष जी ने संस्कार भारती एवं विश्व संवाद केन्द्र काशी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित "आपातकाल में राजनीतिक अस्थिरता" विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किया।

आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित इस संगोष्ठी को लंका स्थित विश्व संवाद केन्द्र काशी के माधव सभागार में मुख्य वक्ता ने कहा कि 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित सरकार का विरोध करने हेतु रैली में अपार जनसमूह आया। जिससे घबराकर मध्य रात्रि को अनुच्छेद 352 का आधार लेकर देश को आपातकाल में झोक दिया गया। विदित हो कि 12 जून 1975 इला​हाबाद उच्च न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार के आधार पर इन्दिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध माना गया था। लोकतंत्र का यह काला अध्याय 21 महीनों तक चला। मुख्य वक्ता ने बताया कि वास्तव में आपातकाल का प्रभाव केवल राजनैतिक न होकर समाज के प्रत्येक आयाम पर पड़ा। इन्दिरा गांधी ने विपक्षी नेताओं सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर विशेष रूप से कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगाए। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जेल में विभिन्न प्रकार की यातानाएं दी गयी। इसके विरोध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह चलाया। 14 अगस्त 1975 से 26 जनवरी 1976 तक एक लाख ​स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारी दी। जिनमें 98 स्वयंसेवक यातना के कारण दिवगंत हो गये। इस आपातकाल का दुष्प्रभाव न्यायपालिका एवं लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ प​त्रकारिता पर भी पड़ा। संजय गांधी द्वारा उच्च न्यायालय के 1700 कमरों पर बुलडोजर चलाया गया। परन्तु प्रेस पर प्रतिबन्ध के कारण यह समाचार कही भी उल्लिखित नहीं है। निरंकुश इन्दिरा गांधी द्वारा संविधान की मूल भावना ​के विपरीत 42वां संशोधन किया गया। जिसमें संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष एवं समाजवादी शब्दों को सम्मिलित किया गया।

आपातकाल की यातना के दिनों के साक्षी रहे संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक रामसूचित पाण्डेय ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन दिनों वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के गणित विभाग में कार्यरत थे। प्राय: प्रतिदिन ही संघ के अन्य कार्यकर्ताओं के विषय में सीआईडी के अधिकारियों द्वारा उनसे पूछताछ की जाती थी। अपने घर वह पुलिस अधिकारियों से छुपछुपाकर जाते थे। उन्हीं दिनों काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित संघ भवन को गिरा दिया गया। संघ के स्वयंसेवकों के लिए आपातकाल दूसरा स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन जैसा था। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कार भारती काशी महानगर के अध्यक्ष रामवीर शर्मा ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचस्थ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन किया गया। संस्कार भारती का ध्येय गीत नवीन जी द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का सहसंयोजन के0वी0 जनकल्याण ट्रस्ट द्वारा किया गया। संचालन कार्यक्रम संयोजिका डॉ0प्रेरणा चतुर्वेदी द्वारा किया गया। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से संघ के वरिष्ठ प्रचारक जागेश्वर जी, संस्कार भारती के उपाध्यक्ष प्रेमनारायण, संजय सिंह, प्रमोद पाठक, प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्र संयोजक डॉ0कमलेश शर्मा, सुष्मिता सेठ, विष्णु भाई, सुधीर, दिनेश, डॉ0 आशीष सहित बड़ी संख्या में मातृशक्ति एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहें।



Thursday, May 22, 2025

आपरेशन सिन्दूर : काशी में शक्ति के सम्मान में उतरीं मातृशक्ति, गौरव यात्रा में गूंजा भारत माता की जय

 - मातृशक्तियों ने एक स्वर में कहा कि सिंदूर का अर्थ अब सिर्फ श्रृंगार नहीं, ये भारत की सुरक्षा का पहचान है

काशी। आपरेशन सिन्दूर देश के दुश्मनों के लिए एक संदेश सिद्ध हुआ। आतंकिस्तान के साथ पाकिस्तान को भी हिला कर रख देने वाला भारतीय सेना का यह मिशन भारत की शक्ति को पुनः स्थापित किया। भारत में बेटियों को शक्ति का रूप माना गया है और इस मिशन में भारतीय सेना का नेतृत्व कर रही दो बेटियों ने बता दिया कि सिन्दूर की ओर आंख उठाने का परिणाम क्या होगा। आपरेशन सिन्दूर के बाद देश भर में हर्ष का माहौल है। इसी क्रम में बुधवार को वाराणसी में भी मातृशक्तियों ने भारतीय मातृशक्ति गौरव समिति, काशी द्वारा आयोजित विशाल गौरव यात्रा निकालकर भारत की सैन्य शक्ति का सम्मान किया है। सीमा पर युद्ध में वीरगति को प्राप्त भारत माता के बलिदानी वीर सपूतों को श्रद्धांजलि दी है। सिगरा नगर निगम स्थित शहीद उद्यान से निकली इस यात्रा में हजारों की संख्या में उपस्थित मातृशक्ति ने गगनभेदी उद्घोष  से भारत की तरफ आंख उठाने वालों को सन्देश दिया कि सेना के साथ हम भी डटे हैं। मातृशक्तियों ने एक स्वर में कहा कि सिंदूर का अर्थ अब सिर्फ श्रृंगार नहीं, ये भारत की सुरक्षा की पहचान है। इसी के साथ वन्देमातरम और भारत माता की जय के उद्घोष महानगर गुंजायमान होता रहा। यह यात्रा अपने विश्राम स्थल भारत माता मन्दिर पहुंची। मन्दिर परिसर में उपस्थितजनों को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता एन.सी.सी. बीएचयू की सीनियर गर्ल्स कैडेट श्रुति श्रीवास्तव ने कहा कि आपरेशन सिन्दूर से हमारी सेना ने बता दिया कि हम शान्ति चाहते है, किन्तु अगर कोई युद्ध थोपेगा तो विजय हम ही लिखेंगे। उन्होंने कहा कि आज का दिन मात्र एक आयोजन नहीं, गौरव का उत्सव है। बलिदानियों के बलिदान का प्रणाम करने का संकल्प है, और भारत माता के प्रति अपनी निष्ठा को दोहराने का अवसर है। इसके पूर्व मन्दिर परिसर में भारत माता की प्रतिमूर्ति बालिका का माल्यार्पण किया गया। दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। विषय प्रस्तावना सह संयोजिका प्रो0 अमिता सिंह ने किया। अतिथि परिचय एवं धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजिका प्रो0 मंजू द्विवेदी एवं संचालन डॉ.शिप्राधर व सीए जमुना शुक्ला ने किया। इस अवसर पर डॉ.आनन्द प्रभा, डॉ.रंजना श्रीवास्तव, प्रो0 भावना, डॉ.रूचि, गूंजन नन्दा, सीमा तिवारी ने अपने महत्वपूर्ण योगदान से कार्यक्रम को सफल बनाया।

भारत माता एवं अहिल्याबाई की झांकी से यात्रा का नेतृत्व

यात्रा का नेतृत्व भारत माता एवं देवी अहिल्याबाई की झांकी से किया गया। देवी अहिल्या के नौ रूपों में शिवलिंग लेकर आयी बालिकाओं ने भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और प्राचीन नारीशक्ति से परिचित कराया, जिसका संयोजन डॉ.शिप्राधर ने किया। देवी अहिल्याबाई श्रीकाशी विश्वनाथ की अनन्य भक्त रहीं। यह झांकी लोगों में आकर्षण का केन्द्र रही।









Thursday, May 1, 2025

विश्व में अपनेपन के भाव से ही शांति आएगी – डॉ. मोहन भागवत जी

काशी के खोजवां क्षेत्र में शंकुलधारा पोखरे पर बुधवार को आयोजित अक्षय कन्यादान महोत्सव की पावन बेला पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी उपस्थित रहे। समारोह में कुल 125 कन्याओं का विवाह संपन्न हुआ। सरसंघचालक जी ने सोनभद्र के रेणूकूट की जनजाति समाज की बेटी राजवंती का कन्यादान किया, उसके वर अमन के पांव पखारे। सरसंघचालक जी ने परिणय सूत्र में बंधने पर सभी दंपत्तियों को शुभाशीर्वाद दिया।

सरसंघचालक जी ने कहा कि विश्व में अपनेपन से शांति लाई जा सकती है। जिसने भी विश्व को अपना कुटुंब माना, उसके सामने सब झुक जाते हैं। जैसे ठोस मकान के निर्माण में पक्की ईंट की भूमिका होती है। उसी तरह कुटुंब संस्कारों से पक्का होता है। प्रत्येक समाज की ईंट परिवार होता है और यह परिवार संस्कारों से, अपनेपन से पक्का होता है। संस्कारित व्यक्ति, समाज और देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अच्छे मनुष्य का प्रशिक्षण कुटुंब में ही होता है। जो समाज का अविभाज्य अंग होता है। कई बार अपनों के लिए हमें त्याग करना पड़ता है, जो संस्कार से आता है। यह अपनेपन को और मजबूती देता है। इसी अपनेपन से विश्व में शांति आएगी। यह स्वभाव हम सभी को अपने में विकसित करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि विवाह के बाद दूसरे घर से आई कन्या को हम अपनेपन के कारण ही परिवार का सदस्य बना पाते हैं। अपनेपन की ऐसी रीति है कि वह सतत बढ़ता है। भारतीय समाज का यही अपनापन जब एक व्यक्ति में उत्पन्न होता है, तो वह सारी दुनिया को अपना परिवार मानता है। भारत का संस्कार इस प्रकार का है कि अपनों के लिए कार्य करने की हमारी पुरानी परंपरा है और यही संस्कार देश का उद्धार करने वाला होगा, यही संस्कार संपूर्ण विश्व में शांति की स्थापना करेगा।

अक्षय कन्यादान महोत्सव आयोजक एवं संघ के क्षेत्र कार्यवाह वीरेंद्र जायसवाल जी को शुभकामनाएं देते हुए इस कार्यक्रम को आगे भी जारी रखने का संकल्प दिलाया।

यह विवाह कार्यक्रम उपकार की भावना से आयोजित नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे अपनत्व का भाव कार्य कर रहा है। विवाह से कुटुंब, कुटुंब से समाज और उससे देश का निर्माण होता है। भारतीय समाज में कुटुंब अपनेपन के कारण स्थायी रहता है। उन्होंने दो महत्वपूर्ण बिंदुओं को लेकर आग्रह किया, प्रथम आज जिन-जिन यजमानों ने कन्यादान किया है, वह सभी उन परिवारों से वर्ष में कम से कम एक बार मिलने जाएंगे। दूसरा सामूहिक विवाह जैसे संस्कारित कार्यक्रम समाज में प्रतिवर्ष आयोजित होने चाहिए क्योंकि ऐसे ही संस्कार युक्त कार्यक्रम मर्यादा की सीमा से बाहर आकर स्वभाव में आते हैं। सामूहिक विवाह का प्रतिवर्ष आयोजन समाज में अपनेपन की भावना में वृद्धि करेगा।





Saturday, January 18, 2025

महाकुम्भ- भारत की प्राचीन परंपराएं, विश्व को सही दिशा प्रदान करने में सक्षम

महाकुम्भ नगर। दिव्य प्रेम सेवा मिशन, हरिद्वार द्वारा तीर्थराज प्रयाग की पावन भूमि पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। प्रेरणादायक और वैचारिक कार्यक्रम का विषय था – “भारत की गौरव गाथा बनाम आत्महीनता की भावना”, जो भारतीय संस्कृति की उज्ज्वल परंपराओं और सामाजिक चेतना को जागृत करने का सार्थक प्रयास था।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आचार्य महामंडलेश्वर निरंजनी अखाड़ा स्वामी कैलाशनन्द गिरी जी महाराज ने आध्यात्मिक अनुभव और गीता के गहन अर्थों को साझा करते हुए सनातन धर्म की अनंत महिमा का वर्णन किया। भारत की प्राचीन परंपराएं, जैसे ध्यान, तप और यज्ञ, आज भी विश्व को सही दिशा प्रदान करने में सक्षम हैं।

मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने भारत की महान सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक समरसता के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत की गरिमा को पुनः स्थापित करने के लिए सभी वर्गों को एकजुट होकर कार्य करना होगा। उनका उद्बोधन समाज में व्याप्त ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त कर “वसुधैव कुटुंबकम्” के आदर्श को साकार करने की प्रेरणा देता है।

कार्यक्रम अध्यक्ष उत्तर प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण जी ने कहा कि भारत को पुनः विश्वगुरु के स्थान पर पहुंचाने के लिए युवाओं को आत्मविश्वास और भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ना होगा। उन्होंने आयुर्वेद, योग और भारतीय चिंतन के महत्व पर जोर देते हुए इसे जीवन में अपनाने की आवश्यकता बताई।

मंच पर दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. आशीष गौतम जी, संयोजक संजय चतुर्वेदी जी, अपर महाधिवक्ता महेश चतुर्वेदी जी, और सह संयोजक राघवेंद्र सिंह जी सहित मिशन के अनेक पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे। श्रद्धालुओं और गणमान्य अतिथियों ने भी बड़ी संख्या में सहभागिता की।

स्वामी कैलाशनन्द गिरी जी महाराज ने आत्महीनता की भावना को त्यागने और सनातन धर्म के आलोक में जीवन को श्रेष्ठ बनाने का आह्वान किया। भारतीय संस्कृति के मौलिक तत्व, जैसे धर्म, सत्य, और अहिंसा, ही मानवता का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

दिव्य प्रेम सेवा मिशन के आयोजन ने भारतीय संस्कृति, सनातन परंपरा, और राष्ट्रीय गौरव के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया। कार्यक्रम राष्ट्र निर्माण और समाज में सकारात्मक परिवर्तन के प्रति एक समर्पित पहल के रूप में सभी के हृदय में अमिट छाप छोड़ गया।