Saturday, November 15, 2025

सद्भावना भारत का स्वभाव है – डॉ. मोहन भागवत जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि  सद्भावना भारत का स्वभाव है। नियम और तर्क के आधार पर समस्याएं ठीक नहीं हो सकती, इसके लिए सद्भावना चाहिए और हमें यही काम करना है। उन्होंने कहा कि स्वार्थ भावना यह दुनिया का स्वभाव है। स्वार्थ भावना के आधार पर दुनिया को सुखी करने का प्रयास दो हज़ार साल से चल रहा है और विफल हो रहा है क्योंकि स्वार्थ सबका भला नहीं कर सकता। जिसमें ताकत है वो अपना स्वार्थ साध लेता है, उसके मन में कोई संवेदना नहीं रहती। स्वार्थ तो परस्पर विरोधी होता ही है।

सरसंघचालक जी शुक्रवार को मालवीय नगर स्थित पाथेय कण संस्थान के नारद सभागार में आयोजित सामाजिक सद्भाव बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि समाज को बचाना है तो उसका प्रबोधन करना आवश्यक है। कुछ शक्तियां ऐसी हैं जो भारत को आगे बढ़ना नहीं देना चाहती हैं। हिन्दू भारत का प्राण है, इसलिए भारत को तोड़ने की कोशिश करने वाले लोग हिन्दुओं को तोड़ना चाहते हैं। आज ड्रग्स का जाल फैलाया जा रहा है। इसके पीछे जो ताकतें हैं वो भारत को दुर्बल बनाना चाहती हैं।

उन्होंने कहा कि पंच परिवर्तन का कार्यक्रम हमने दिया है। बहुत सरल कार्यक्रम है। यह समरसता, पर्यावरण, कुटुम्ब प्रबोधन, स्व का जागरण और नागरिक कर्तव्य है। परिवार में आत्मीयता होती है तो ड्रग और लव जिहाद जैसी बातें हमेशा दूर रहती हैं। पर्यावरण के लिए छोटी-छोटी बातें करनी हैं, पानी बचाओ, सिंगल यूज प्लास्टिक हटाओ और पेड़ लगाओ। उन्होंने कहा कि सद्भावना के आधार पर ये बातें समाज के आचरण में लाना है, यह तब आएगी जब पहले हम इसे अपने आचरण में लाएंगे। सबमें सम्मान, प्रेम और आदर रहेगा तो सारे संकट समाप्त हो जाएंगे।

बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र संघचालक डॉ. रमेशचंद्र अग्रवाल, प्रदेश के विभिन्न समाजों के पदाधिकारी और गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

Tuesday, November 11, 2025

ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म की सामग्री का नियमन हो

 

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि समाज की गरिमा और नैतिकता को नष्ट करने की छूट दी जाए
  • 17वां राष्ट्रीय अधिवेशन, 7, 8, 9 नवंबर 2025 – रीवा
  • अखिल भारतीय साहित्य परिषद के रीवा अधिवेशन -2025 में पारित प्रस्ताव

परहित सरिस धर्म नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई, और परोपकराय सताम् विभूतयः की मान्यता पर आधारित हमारी संस्कृति आज अति भौतिकता से प्रभावित होकर बाजारवाद का संत्रास झेल रही है। आज हम जिस घोर व्यावसायिक समय में जी रहे हैं, उसने जीवन के मूलभूत संसाधनों को व्यापार में परिवर्तित कर दिया है। तकनीकों पर बाजारवादी शक्तियों का नियंत्रण है। इसी की परिणति है कि डिजिटल मीडिया का एक अति विशाल उद्योगतंत्र खड़ा हो गया है तथा पारंपरिक प्रसारण माध्यमों की जगह ऑनलाइन स्ट्रीमिंग ने ले ली है। ओवर-द-टॉप (ओटीटी) के सभी प्लेटफॉर्म और गेमिंग एप्स पर अधिकांश मनोरंजन की सामग्री का स्वरूप बदलकर नकारात्मक एवं जीवन मूल्यों रहित होता जा रहा है।

मनोरंजन के नाम पर इनके द्वारा जो हिंसक, अश्लील एवं मर्यादाहीन सामग्रियां परोसी जा रही हैं, वे अत्यंत लज्जास्पद एवं निंदनीय हैं। ये युवावर्ग और बालमन व मस्तिष्क में उग्रता, अश्लीलता, विकृत यौनाचार और नशाखोरी जैसे दुराचारों को महिमा मंडित कर उन्हें अधोपतन की ओर अग्रसित कर रही हैं। इन माध्यमों में प्रदर्शित अधिकांश दृश्य, वोकिज़्म और नकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने वाली होती हैं। आज इस तरह के प्लेटफॉर्म और गेमिंग एप्स युवाओं को आत्महत्या के लिए प्रेरित कर रहे हैं। साथ ही अधिकांश प्लेटफॉर्म भारत के सांस्कृतिक मूल्यों एवं परम्पराओं पर आघात कर उनको विकृत रूप में चित्रित करती हैं। इनका अनियंत्रित प्रसारण समाज एवं राष्ट्र जीवन के लिए अत्यधिक घातक है।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद, जो भारतीय साहित्य, संस्कृति और चिंतन के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए समर्पित है, इस गंभीर स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करती है। परिषद का यह मानना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि समाज की गरिमा और नैतिकता को नष्ट करने की छूट दी जाए। स्वतंत्रता और अनुशासन, सृजन और मर्यादा, ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

अतः यह अधिवेशन भारत सरकार तथा सभी राज्य सरकारों से मांग करता है कि –

1.  ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म एवं गेमिंग एप्स पर प्रसारित होने वाली प्रत्येक सामग्री के परीक्षण, नियमन, और वर्गीकरण हेतु शासन द्वरा एक सशक्त, स्वायत्त विधायी नियामक संस्था का गठन किया जाए।

2.  डिजिटल माध्यमों में प्रस्तुत किसी भी दृश्य, संवाद या विचार जो भारत की संविधानिक गरिमा, धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक मूल्यों या सामाजिक मर्यादा और सनातन परंपरा को आहत करते हों, उन पर कड़ी निगरानी रखी जाए।

3.  किशोरों और युवाओं के लिए उपयुक्त सामग्री के आयु आधारित नियंत्रण तंत्र को अनिवार्य बनाया जाए।

4.  जो मंच या माध्यम अश्लीलता, हिंसा, नशाखोरी या विकृत जीवन मूल्यों का प्रचार करते हैं, उनके विरुद्ध कठोर कानूनी दंडात्मक कार्रवाई की जाए।

5.  भारतीय भाषाओं और संस्कृति के संवर्धन हेतु भारतीय मूल्यों पर आधारित वैकल्पिक मनोरंजन माध्यमों को प्रोत्साहित किया जाए।

    अंत में, अखिल भारतीय साहित्य परिषद का मानना है कि साहित्य, संस्कृति और समाज की शुचिता तभी सुरक्षित रह सकती है, जब जनमानस में सजगता, संवेदनशीलता और नैतिकता बनी रहे। अतः अखिल भारतीय साहित्य परिषद भारत सरकार तथा सभी राज्य सरकारों से यह मांग करती है कि उपर्युक्त सभी विषयों का संज्ञान लेकर इस दिशा में उचित कदम उठाए।

देश में बनी वस्तुओं के साथ भाषा-भूषा, भजन, भवन, भ्रमण और भोजन का भी स्वदेशी होना आवश्यक — मनोज जी

प्रयागराज। स्वदेशी का तात्पर्य केवल देश में बनी वस्तुओं का उपयोग नहीं, बल्कि स्वदेशी भाषा-भूषा, भजन, भवन, भ्रमण और भोजन को आत्मसात करना ही स्वदेशी आंदोलन का मूल उद्देश्य है। उक्त विचार भारतीय मजदूर संघ जैसे अनेक राष्ट्रवादी संगठनों के शिल्पकार एवं राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के 105वें जयन्ती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र संपर्क प्रमुख मनोज कुमार जी ने व्यक्त किया। सोमवार को प्रो० राजेन्द्र सिंह (रज्जू भय्या) विश्वविद्यालय, प्रयागराज में आयोजित कार्यक्रम को सम्बो​धित करते हुए उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे अपने जीवन में स्वदेशी भाव का संचार करें, जब भारत अपनी जड़ों से जुड़ेगा, तभी सशक्त और आत्मनिर्भर बनेगा।” आगे कहा कि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने मजदूर, किसान और व्यापारी तीनों वर्गों के बीच एक समन्वित दृष्टि प्रस्तुत की।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ईस्टर्न यूपी चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, प्रयागराज के अध्यक्ष विनय कुमार टंडन ने कहा कि “वर्तमान समय में उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में स्वदेशी का महत्व और भी बढ़ गया है। स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने से न केवल रोजगार सृजन होगा, बल्कि भारत विश्व अर्थव्यवस्था में सशक्त स्थान प्राप्त करेगा। विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों में नवाचार और उद्यमिता की भावना विकसित करें।”

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉo अखिलेश कुमार सिंह ने कहा कि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने भारतीय चिंतन, श्रम एवं अर्थव्यवस्था को स्वदेशी दृष्टिकोण से जोड़कर आत्मनिर्भर भारत की वैचारिक नींव रखी। आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में उनके विचार न केवल प्रासंगिक हैं, बल्कि भारत के विकास का पथ-प्रदर्शन करने में सहायक हैं।

कार्यक्रम में जनपद प्रयागराज के उपजिलाधिकारी विजय शर्मा जी, हिमांशु मौर्य, जिला प्रचारक मंगल, अंकित पांडे समेत विश्वविद्यालय के अनेक संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, ग्राहक पंचायत, लघु उद्योग भारती, सहकार भारती एवं अन्य संवैचारिक संगठनों के लोग, अधिकारीगण एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं की सहभागिता रही। कार्यक्रम का संयोजन स्वदेशी जागरण मंच स्वावलंबी भारत अभियान काशी प्रांत के सह समन्वयक गंगेश नारायण पांडेय ने किया।

Saturday, November 1, 2025

धरती आबा बिरसा मुंडा के 150वें जन्म वर्ष पर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी का वक्तव्य

धरती आबा बिरसा मुंडा के 150वें जन्म वर्ष पर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी का वक्तव्य

भारत के गौरवशाली स्वाधीनता संग्राम में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों व योद्धाओं की एक दीर्घ परंपरा रही है और उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है। भगवान बिरसा मुंडा का इस स्वतंत्रता संग्राम के श्रेष्ठतम नायकों, योद्धाओं में विशेष स्थान है। 15 नवंबर 1875 को उलीहातु (झारखंड) में जन्मे भगवान बिरसा का यह 150 वाँ जन्म वर्ष है। अंग्रेजों और उनके प्रशासन द्वारा जनजातियों पर किए जा रहे अत्याचारों से त्रस्त होकर उनके पिता उलीहातु से बंबा जाकर बस गए। लगभग 10 वर्ष की आयु में उन्हें चाईबासा मिशनरी स्कूल में प्रवेश मिला। मिशनरी स्कूलों में जनजाति छात्रों को उनकी धार्मिक परंपराओं से दूर कर ईसाई मत में मतांतरित करने के षड़यंत्र का उन्हें अनुभव आया। मतांतरण से न केवल व्यक्ति की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक चेतना अवरुद्ध होती है बल्कि धीरे-धीरे समाज की अस्मिता भी नष्ट हो जाती है। केवल 15 वर्ष की आयु में ईसाई मिशनरियों के षडयंत्रों को समझते हुए उन्होंने समाज जागरण के द्वारा अपनी धार्मिक अस्मिता और परम्पराओं की रक्षा के लिए संघर्ष प्रारंभ कर दिया। मात्र 25 वर्ष की आयु में भगवान बिरसा ने उनके समाज में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लहर पैदा कर दी जो स्वयं विकट परिस्थितियों से ग्रस्त था। ब्रिटिश शासन द्वारा प्रशासनिक सुधार के नाम पर वनों का अधिग्रहण करते हुए जनजातीय समाज से भूमि का स्वामित्व छीनना तथा जबरन श्रम नीतियां लागू करने के विरोध में भगवान बिरसा ने व्यापक जन आंदोलन खड़ा किया। उनके आंदोलन का नारा “अबुआ दिशुम-अबुआ राज” (हमारा देश-हमारा राज) युवाओं के लिए एक प्रेरणा मंत्र बन गया, जिससे हजारों युवा “स्वधर्म” और “अस्मिता” के लिए बलिदान देने हेतु प्रेरित हुए। जनजातियों के अधिकारों, आस्थाओं, परंपराओं और स्वधर्म की रक्षा के लिए भगवान बिरसा ने अनेक आंदोलन व सशस्त्र संघर्ष किए। अपने पवित्र जीवन लक्ष्य के लिए संघर्ष करते हुए वह पकड़े गए और मात्र 25 वर्ष की अल्पायु में कारागार में दुर्भाग्यपूर्ण और संदेहास्पद परिस्थिति में उनका बलिदान हुआ।

समाज के प्रति अपने प्रेम और बलिदान के कारण संपूर्ण जनजाति समाज उन्हें देव स्वरूप मानकर धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा कहकर श्रद्धान्वत होता है। भारत सरकार ने संसद भवन परिसर में उनकी प्रतिमा स्थापित कर उनका समुचित सम्मान किया है। प्रतिवर्ष 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा का जन्मदिन “जनजाति गौरव दिवस” के रूप में मनाया जाता है। उनका बलिदान स्वाधीनता संघर्ष में जनजातियों के महती योगदान का उदाहरण बनते हुए संपूर्ण राष्ट्र के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है। धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक परम्परा, स्वाभिमान और जनजातीय समाज की अस्मिता की रक्षा हेतु भगवान बिरसा मुंडा के जीवन का संदेश आज भी प्रासंगिक है ।

वर्तमान काल में विभाजनकारी विचारधारा के लोगों द्वारा भारत के संदर्भ में जनजाति समुदाय को लेकर एक भ्रांत और गलत विमर्श खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे समय में भगवान बिरसा मुंडा की धार्मिक और साहसिक पराक्रम की गाथाएं अनेकानेक भ्रांतियों को दूर करते हुए समाज में स्वबोध, आत्मविश्वास और एकात्मता को दृढ़ करने में सदैव सहायक सिद्ध होगी। भगवान बिरसा मुंडा की 150 वीं जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयंसेवकों सहित संपूर्ण समाज को आवाहन् करता है कि भगवान बिरसा मुंडा के जीवन-कर्तृत्व और विचारों को अपनाते हुए “स्व बोध” से युक्त संगठित और स्वाभिमानी समाज के निर्माण में महती भूमिका का निर्वहन करें।

राष्ट्रगीत वंदेमातरम् के 150 वर्ष पूर्ण होने पर दत्तात्रेय होसबाले जी का वक्तव्य

राष्ट्रगीत वंदेमातरम् के 150 वर्ष

मातृभूमि की आराधना और संपूर्ण राष्ट्र जीवन में चेतना का संचार करने वाले अद्भुत मन्त्र “वंदेमातरम्” की रचना के 150 वर्ष पूर्ण होने के शुभ अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रगीत के रचयिता श्रद्धेय बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। 1875 में रचित इस गीत को 1896 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रकवि श्रद्धेय रविंद्रनाथ ठाकुर ने सस्वर प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। तब से यह गीत देशभक्ति का मंत्र ही नहीं अपितु राष्ट्रीय उद्घोष, राष्ट्रीय चेतना तथा राष्ट्र की आत्मा की ध्वनि बन गया।

तत्पश्चात बँग-भंग आंदोलन सहित भारत के स्वाधीनता संग्राम के सभी सैनानियों का घोष मंत्र “वंदेमातरम्” ही बन गया था। इस महामंत्र की व्यापकता को इस बात से समझा जा सकता है कि देश के अनेक विद्वानों और महापुरुषों जैसे महर्षि श्रीअरविंद, मैडम भीकाजी कामा, महाकवि सुब्रमण्यम भारती, लाला हरदयाल, लाला लाजपत राय आदि ने अपने पत्र पत्रिकाओं के नाम में वंदेमातरम् जोड़ लिया था। महात्मा गांधी भी अनेक वर्षों तक अपने पत्रों का समापन “वंदेमातरम्” के साथ करते रहे।

वंदेमातरम्” राष्ट्र की आत्मा का गान है जो हर किसी को प्रेरणा देता है। वंदेमातरम् अपने दिव्य प्रभाव के कारण 150 वर्षों के बाद भी संपूर्ण समाज को राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना से ओत-प्रोत करने की सामर्थ्य रखता है। आज जब क्षेत्र, भाषा, जाति आदि संकुचितता के आधार पर विभाजन करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, तब “वंदेमातरम्” वह सूत्र है, जो समाज को एकता के सूत्र में बांधकर रख सकता है। भारत के सभी क्षेत्रों, समाजों एवं भाषाओं में इसकी सहज स्वीकृति है। यह आज भी समाज की राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक पहचान और एकात्म भाव का सशक्त आधार है। राष्ट्रीय चेतना के पुनर्जागरण और राष्ट्र निर्माण की इस पावन बेला में इस महामंत्र के भावों को हृदयंगम करने की आवश्यकता है।

वंदेमातरम्” गीत की रचना के 150 वर्ष पूर्ण होने के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी स्वयंसेवकों सहित सम्पूर्ण समाज से आवाहन् करता है कि वंदेमातरम् की प्रेरणा को प्रत्येक हृदय में जागृत करते हुए “स्व” के आधार पर राष्ट्र निर्माण कार्य हेतु सक्रिय हों और इस अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को उत्साहपूर्वक भागीदारी करें।

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक

30-31 अक्टूबर-1 नवम्बर 2025, जबलपुर

 

माननीय सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले जी का वक्तव्य

श्री गुरुतेगबहादुर जी - भारतीय परंपरा के दैदीप्यमान नक्षत्र

सिख परम्परा के नवम गुरु, श्री गुरुतेगबहादुर जी की शहादत के 350 वें प्रेरणादायी दिवस पर इस वर्ष विभिन्न धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं सहित भारत के सम्पूर्ण समाज द्वारा श्रद्धा एवं सम्मान के साथ अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है।

संघर्ष के उस कालखंड में भारत का अधिकांश भू-भाग विदेशी शासक औरंगजेब के क्रूर अत्याचारों से त्रस्त था। सम्पूर्ण भारतवर्ष में अनादिकाल से चली आ रही धर्माधिष्ठित संस्कृति एवं आस्थाओं को नष्ट करने हेतु बलपूर्वक मतांतरण किया जा रहा था। उसी कालखंड में कश्मीर घाटी से समाज के प्रमुख जन एकत्र होकर पं. कृपाराम दत्त जी के नेतृत्व में श्री गुरुतेगबहादुर जी के पास मार्गदर्शन हेतु आए। श्री गुरुजी ने परिस्थिति की भीषणता को समझते हुए समाज की चेतना एवं संकल्प शक्ति को जगाने हेतु निज के देहोत्सर्ग का निश्चय किया और औरंगजेब की क्रूर सत्ता को चुनौती दी। धर्मांध कट्टरपंथी शासन ने उन्हें गिरफ्तार कर मुसलमान बनो या मृत्युदंड स्वीकार करने को कहा। गुरु तेगबहादुरजी ने अत्याचारी शासन के सामने सिर झुकाने के स्थान पर आत्मोत्सर्ग का मार्ग स्वीकार किया। श्री गुरुतेगबहादुर जी के संकल्प और आत्मबल को तोड़ने की कुचेष्टा में मुगल सल्तनत ने उनके शिष्यों, भाई दयाला (देग में गरम तेल में उबालकर), भाई सतीदास (रुई-तेल में लपेटकर जीवित जलाकर) तथा भाई मतिदास (आरे से चीर कर) की नृशंसतापूर्वक हत्या की।

 तदुपरांत श्री तेगबहादुर जी मार्गशीर्ष शुक्ल 5, संवत् 1732 ( सन् 1675) को दिल्ली के चांदनी चौक में धर्म की रक्षा के लिए दिव्य ज्योति में लीन हो गए। उनकी शहादत ने समाज में धर्म की रक्षा के लिए सर्वस्वार्पण एवं संघर्ष का वातावरण खड़ा कर दिया, जिसने मुगल सत्ता की नींव हिला दी। श्री गुरु तेगबहादुर जी का जीवन समाज में धार्मिक आस्था के दृढ़ीकरण हेतु, रूढ़ि-कुरीतियों से समाज को मुक्त कर समाज कल्याण के लिए समर्पित था। उन्होंने श्रेष्ठ जीवन के लिए हर्ष-शोक, स्तुति-निंदा, मान-अपमान, लोभ-मोह, काम-क्रोध से मुक्त जीवन जीने का उपदेश दिया। मुगलों के अत्याचारों से आतंकित समाज में उनके संदेश "भै कहु को देत नाहि, न भय मानत आनि" (ना किसी को डराना और न किसी से भय मानना) ने निर्भयता और धर्म रक्षा का भाव जागृत किया।

 भारतीय परंपरा के इस दैदीप्यमान नक्षत्र श्री गुरुतेगबहादुर जी की शिक्षाएं और उनके आत्मोत्सर्ग का महत्व जन-जन तक पहुँचाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी स्वयंसेवकों सहित सम्पूर्ण समाज से आवाहन् करता है कि उनके जीवन के आदर्शों और मार्गदर्शन का स्मरण करते हुए अपने-जीवन का निर्माण करें एवं इस वर्ष आयोजित होने वाले सभी कार्यक्रमों में श्रद्धापूर्वक भागीदारी करें।

Saturday, October 25, 2025

हिन्दू समाज के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं – मिलिंद परांडे


काशी। विश्व हिन्दू परिषद काशी कार्यालय के लोकार्पण कार्यक्रम संपन्न हुआ। विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय महामंत्री संगठन मिलिंद परांडे जी ने कहा कि यह भवन केवल निवास के लिए नहीं, बल्कि देश दुनिया से काशी आने वाले लोगों के लिए एवं संगठन गतिविधियों का केंद्र होगा। यह व्यक्तिगत वस्तु नहीं, बल्कि सार्वजनिक भवन है, जिसकी व्यवस्थाओं के लिए हमें अपने नागरिक कर्तव्य का बोध होना चाहिए। यह अनेक पुण्य आत्माओं द्वारा किए गए कार्य का प्रतिफल है। आज सैकड़ों वर्षों के बाद हिन्दू धर्म एवं संस्कृति के लिए समाज में अनुकूल वातावरण बना हुआ है, फिर भी हिन्दू समाज के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। उनकी राजनीतिक शक्तियां कमज़ोर हुई हैं, आज वह प्रत्यक्ष शारीरिक हिंसा साम्यवादी, जिहादी समाज में हिंसा का माहौल निर्माण कर रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में हम हिन्दू हैं, हमें इसको सिद्ध करना पड़ेगा। हम जाति, मत, पंथ, संप्रदाय से ऊपर उठकर हम हिन्दू हैं, इस कर्तव्य का पालन करना होगा। हिन्दू-हिन्दू से कैसे लड़ेगा, ऐसा वातावरण समाज में बनाने का प्रयास किया जा रहा है। हमें ऐसी शक्तियों को पहचान कर उनके मंसूबे नाकाम करने पड़ेंगे। घटती प्रजनन दर जनसंख्या असंतुलन का मुख्य कारण है, जो समाज में एक बड़ी खाई का रूप लेती जा रही है। इन विषयों पर समाज को चिंतन करना है। जो पोषण देने में सक्षम है, उन लोगों के यहां भी प्रजनन का अनुपात बहुत कम है।

उन्होंने कहा कि आज 10 से 15 वर्ष के बच्चों को सीमावर्ती राज्यों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, बर्मा, थाईलैंड से ड्रग की आपूर्ति की जा रही है। वर्ष में लगभग 40000 करोड़ रुपये का ड्रग पकड़ा गया है, जो हमारे संस्कार समाप्त करने की बहुत बड़ी साजिश चल रही है। गौ-हत्या और धर्मांतरण, मंदिर अधिग्रहण एक बड़ी चुनौती है, ऐसे विषयों पर समाज का जागरण हो, समाज संस्कार युक्त हो, इसके लिए समाज का प्रबोधन करने की जिम्मेदारी हम सब की है। समाज में पर्यावरण, नागरिक कर्तव्य, सामाजिक समरसता जैसे विषयों को ले जाना हम लोगों की जिम्मेदारी है।

कार्यक्रम में महंत रविदास मठ के भारत भूषण जी ने संगठन के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि विश्व हिन्दू परिषद हिन्दू धर्म एवं संस्कृति के लिए हिन्दू समाज के व्यापक जागरण के कार्य में लगा रहता है। ऐसे ही संगठनों से हमारे संस्कृति का परचम पूरी दुनिया में लहरा रहा है। पूजन व मंगलाचरण संस्कृत विश्वविद्यालय के आचार्य द्वारा संपन्न हुआ। कार्यालय निर्माण में सहयोग करने वाले प्रवीण रुंगटा, अमित अग्रवाल, नवीन रुंगटा का सम्मान किया गया।

Thursday, October 16, 2025

संघ का शताब्दी वर्ष हिंदुओं की एकजुटता की गांठ को मजबूत करने का कालखण्ड — सुभाष जी

प्रतापगढ़/कुण्डा। संघ का शताब्दी वर्ष हिंदुओं की एकजुटता की गांठ को मजबूत करने का एक कालखण्ड है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संकल्पना का एकमात्र उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण रहा है। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र प्रचार प्रमुख सुभाष जी ने व्यक्त किया।

प्रतापगढ़ नगर के अर्जुन बस्ती में आयोजित श्री विजयादशमी उत्सव, शस्त्र पूजन व पथ संचलन का कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए सुभाष जी ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 100 वर्ष पूर्ण कर चुका है इस यात्रा में संघ ने समाज को परिष्कृत करने के लिए विविध प्रकार के उपक्रम किए। वास्तव में हिमालय के उत्तर में बसा हुआ यह राष्ट्र पूरे विश्व को शैक्षिक दृष्टि से एवं आध्यात्मिक दृष्टि से तथा तकनीकी दृष्टि से प्राचीन काल से ही दिशा देने का काम करता रहा है। यही नहीं हिंदुस्तान का वैदिक कालीन विचार व इसके पूर्व के कॉल खंडो में भी ऋषियों ने मुनियों ने देशकाल परिस्थित के अनुसार राष्ट्र की उन्नति में अग्रणी भूमिका निभाई है। किसी समय में भारत पूरी दुनिया का गुरु था। भारत ने ही पूरे विश्व को शून्य और रेखा गणित देकर समृद्ध किया। विगत के कॉल खंडो में हिंदू समाज विभिन्न जातियों में बिखरा हुआ था जिसका कारण था कि हमारा देश हजारों वर्ष तक पराधीनता की बेड़ियो में जकड़ा रहा। इन्हीं कारणों से डॉक्टर हेडगेवार जी ने संघ की शाखा चलाने का निर्णय लिया। जिसका उद्देश्य था भारतीय संस्कृति के अनुसार एवं भारतीय वातावरण के अनुसार व्यक्ति का निर्माण हो सके तभी देश और राष्ट्र की उन्नति संभव है। 

कुण्डा जिले के लालगंज नगर में आयोजित विजयदशमी उत्सव पर स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान राम की विजय धर्म की विजय थी। भगवान राम की विजय सत्य की विजय थी और संगठित शक्ति की विजय थी। भगवान राम की सेना में एक अच्छा नियोजन था जिसके कारण रावण का संघार किया। डॉक्टर हेडगेवार ने इतिहास का अवलोकन किया था और उन्होंने यह सोचा कि देश कभी पराधीन ना हो इसलिए हमें हिंदू समाज के संगठन की आवश्यकता है यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की गई। संघ का उद्देश्य है धर्म की जय हो यानी भारत के रहने वाले लोग धर्म के अनुसार अपनी संस्कृति के अनुसार अपना आचरण करेंगे और आलस्य को त्याग कर ,सत्य के मार्ग पर चलना और सब के हित का चिंतन करना तभी विश्व का कल्याण हो सकता है। सर्वे भवंतु सुखिना की भावना सभी के मन मस्तिष्क में होनी चाहिए। इसलिए हमें व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की तरफ बढ़ना चाहिए तभी हम भारत के वैभव को स्थापित कर सकते हैं। शताब्दी वर्ष में नागरिक कर्तव्य, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण तथा स्व का जागरण जैसे विषयों को लेकर हमे समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में काम करने का संकल्प लेना चाहिए।  कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर महेंद्र मिश्रा ने किया। विभाग कार्यवाह हरीश जी उपस्थित रहे। इस अवसर पर जिला कार्यवाह हेमंत कुमार, विभाग प्रचार प्रमुख प्रभा शंकर पांडे, जिला प्रचार प्रमुख अंकुर श्रीवास्तव, नगर कार्यवाह अंकित आदि उपस्थित रहे।





Monday, October 13, 2025

हिन्दू धर्म और संस्कृति की रक्षा हिन्दू नवयुवकों द्वारा ही सम्भव — रामाशीष जी

1925 से संघ ने केवल एक ही कार्य किया है ,स्वयंसेवकों का व्यक्तित्व निर्माण - नितिन जी


काशी। हिन्दू धर्म और संस्कृति की रक्षा हिन्दू नवयुवकों द्वारा ही सम्भव है। वर्तमान हिन्दू नवयुवक अपने इतिहास से अनभिज्ञ है, जबकि इतिहास के पाठ को अपने जीवन में सम्मिलित करना आवश्यक है। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी दक्षिण भाग में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित एनसीसी ग्राउण्ड में मुख्य वक्ता के रूप में प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष जी ने व्यक्त किये।

संघ बना रहा समरस समाज

विजयादशमी उत्सव एवं पथ संचलन कार्यक्रम में स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता ने कहा कि संघ का उद्देश्य राष्ट्र के लिए ऐसे नागरकि का निर्माण करना है जिसमें छुआछूत का भेदभाव न हो। संघ ''ना हिन्दू पतितो भवेत'' की भावना के साथ समरस समाज बना रहा है। वर्तमान भारत की स्थिति पर रामाशीष जी ने कहा कि यहां ऐसे देशभक्त उत्पन्न हो गये है जिनकी निष्ठा वक्फ, मक्का या पाकिस्तान के साथ है। ऐसे लोग भारत के टुकड़े होने पर विचलित नहीं होंगे। वह हिन्दू समाज ही है, जो भारत माता के प्रति आत्मीय भाव रखता है। डाक्टर हेडगेवार जी ने संघ स्थापना के समय यह उद्देश्य स्पष्ट किया था कि हिन्दुओं को अपनी संस्कृति पर हो रहे वाह्य एवं आन्तरिक आक्रमणों का निदान करना होगा। संघ संस्थापक डा0 हेडगेवार के जीवन कथा के बारे में वक्ता ने कहा कि डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने जन्म से ही देशभक्ति को दिखाया। यह राष्ट्र भक्ति केवल ट्रेन से फेंक दिये जाने के फलस्वरूप उत्पन्न नहीं हुई।

स्वतंत्रता संग्राम में संघ संस्थापक का योगदान

संघ के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान की भूमिका पर वक्ता ने कहा कि डाक्टर साहब के जीवन में ऐसी अनेक घटनाएं हैं जो उन्हें क्रांतिकारी सिद्ध करती हैं। इन्होंने लोकमान्य तिलक, महिर्षि अरविन्द के साथ भी स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया था। भगिनी निवेदिता द्वारा स्थापित अनुशीलन समिति में डाक्टर साहब क्रांतिकारियों के सहायक थे। संघ शताब्दी वर्ष में पंच परिवर्तन को सामान्य जीवन में अपनाने का आग्रह भी वक्ता ने अपने वक्तव्य में किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो0 एस.एन संखवार ने एनएमओ के सेवा कार्य की विस्तृत चर्चा की। स्वयंसेवकों को राष्ट्र प्रथम की भावना अपने हृदय में सदैव संरक्षित करनी चाहिए। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मालवीय नगर के माननीय संघचालक प्रो0 विवेक पाठक सहित मंचस्थ अतिथियों ने शस्त्र पूजन किया। अमृत वचन कुणाल, एकल गीत सौरभ एवं संचालन पुण्यांश ने किया। प्रार्थना के पश्चात पूर्ण गणवेश में स्वयंसेवकों ने घोष की धुन पर पथ संचलन किया। पथ संचलन आईआईटी बीएचयू एनसीसी ग्राउण्ड से निकलकर आईआईटी चौराहा, हैदराबाद गेट से धनराजगिरी छात्रावास चौराहा होते हुए कार्यक्रम स्थल पहुंचा l

1925 से संघ ने केवल एक ही कार्य किया हैस्वयंसेवकों का व्यक्तित्व निर्माण - नितिन जी

काशीl अपने स्थापना काल से संघ केवल एक ही कार्य कर रहा है, स्वयंसेवकों का व्यक्तित्व निर्माण l संघ में एक सूक्ति प्रचलित है, संघ कुछ नहीं करता स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ताl

संघ की शाखा में व्यक्ति निजी स्वार्थ का त्याग कर केवल राष्ट्रभक्ति को अपना ध्येय मानता हैl उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ,काशी दक्षिण भाग के शिवाला बस्ती में काशी विभाग के विभाग प्रचारक नितिन जी ने व्यक्त किएl विजयादशमी उत्सव एवं पथ संचलन कार्यक्रम में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता ने कहा कि संघ के 100 वर्षों के इतिहास में उस पर तीन बार बड़े प्रतिबंध लगाए गए परंतु हर बार संघ ने उन चुनौतियों से पार पायाl

जब संघ पर 1948 में प्रथम प्रतिबंध लगा था तब स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए गुरु जी ने कहा था ,कि यदि दांत के बीच में जीभ आ जाए तो दांत को तोड़ा नहीं करतेl संघ पर दूसरा बड़ा प्रबंध 1975 में आपातकाल के समय में लगा थाl उस समय संघ के तृतीय सरसंघ चालक बाला साहब देवरस जी ने कहा था की आज जो समाज हम पर आरोप लगा रहा हैं ,वही समाज हमें आरोप से मुक्त करेगाl वर्ष 2008 में जब भगवा आतंकवाद नाम से एक नए विमर्श को हवा दी गई तब भी प्रतिबंध लगाने की योजना थी, परंतु संघ की समाज में व्यापकता के कारण  सफलता नहीं मिलीl

शताब्दी वर्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में चलने वाले वर्ष भर के कार्यक्रमों की चर्चा करते हुए वक्ता ने बताया कि आगामी नवंबर माह में घर-घर संपर्क अभियान, दिसंबर माह में वृहद हिंदू सम्मेलन, जनवरी माह में युवाओं की भूमिका पर आधारित कार्यक्रम, फरवरी माह में सद्भाव बैठक, अगस्त, 2026 में प्रमुख नागरिक संगोष्ठी तथा सितंबर माह में सर्वत्र शाखा की योजना बनी हैl

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कांचीकाम कोटेश्वर मठ के प्रबंधक सुब्रमण्यम मणि जी ने बताया कि काशी में संघ के आरंभ से ही कई सारे महापुरुषों का संघ से जुड़ाव बना रहा उन्होंने  शंकर तत्ववादी, गोविंदाचार्य जी  की चर्चा कीशिवाला बस्ती में शाखा पर कार्यक्रम का संचालन शाखा कार्यवाह रंजीत, एकल गीत जयप्रकाश ने प्रस्तुत कियाl

कार्यक्रम के अंत में स्वयंसेवकों द्वारा गणवेश में पथ संचलन किया गया जो शिवाला  से सोनारपूरा चौराहा एवं पुनः हरिश्चंद्र घाट होते हुए माता आनंदमई अस्पताल के पास से वापस शाखा पर आकर समाप्त हुआl

कार्यक्रम में मुख्य रूप से गंगानगर के माननीय संघ चालक के वेंकटरमन घनपाठी,काशी दक्षिण भाग के सहभाग कार्यवाह सौरभ सहित बड़ी संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित थेl

इसके अतिरिक्त काशी दक्षिण भाग के कर्दमेश्वर नगर में अभिनव जी, शूलटनकेेश्वर नगर में काशी विभाग के महाविद्यालय कार्य प्रमुख आशुतोष जी, हनुमान नगर में कृष्णकांत जी ने विजयादशमी उत्सव एवं पद संचलन के कार्यक्रम को संबोधित कियाl






पंच संकल्प हमारे आचरण में उतरेगा तो एक नए और स्वस्थ भारत का स्वरूप दिखेगा - मुरली पाल

यमुनापार। पंच संकल्प हमारे आचरण में उतरेगा तो एक नए और स्वस्थ भारत का स्वरूप दिखेगा। उक्त विचार मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रांत के प्रांत कार्यवाह मुरली पाल ने व्यक्त किया। प्रयागराज के यमुनापार जिले  के उरुवाखंड के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुकुलपुर मंडल के कार्यकर्ताओं ने जवनिया स्थित सिद्धेश्वर महादेव मंदिर परिसर में विजयादशमी के उपलक्ष्य में शस्त्र पूजन कर उत्सव मनाया। पथ संचलन से पूर्व स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता ने कहा कि मानवकृत प्रयास और ईश्वरीय कृपा के मिलन बिंदु पर एक शंखनाद होता है जो विजय का संकेत देता है। संघ कार्य भी एक ईश्वरीय कार्य है। स्वयंसेवकों के तन मन धन और निःस्वार्थ भाव से किए जा रहे प्रयास से संगठन यशस्वी हो रहा है। इसी के बल पर संघ स्थापना के इस शताब्दी वर्ष में हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय अवश्य मिलेगी। भारत पुनः परम वैभव के शिखर पर पहुंचेगा और विश्वगुरू के रूप में पूरे विश्व का मार्गदर्शन करेगा।

उन्होंने कहा शताब्दी वर्ष में सात विषयों के लेकर आगामी एक वर्ष की कार्य योजना के साथ हम समाज के लोगों के साथ मिलकर कार्य करने वाले है। विजयादशमी उत्सव से शुरुआत करके उत्साह के साथ विजय अभियान के लिए हम निकल पड़े है। विजयकी पटकथा लिखने का यही आधार है। इसके बाद घर घर संपर्क की व्यापक योजना बनाई गई है तो सुप्त शक्ति के जागरण, सज्जन शक्ति और नारी शक्ति के साथ मिलकर संघ प्रत्येक मंडल और बस्ती में हिंदू सम्मेलन करके जन चेतना की अलख जगाएगा।युवाओं के लिए कार्यक्रम के साथ ही सामाजिक सद्भाव की बैठकों के जरिए एकजुट भेदरहित समाज के वातावरण का संदेश हम विश्व को देगे। इतना ही नहीं प्रमुख नागरिक गोष्ठी कर देश निर्माण में सबकी भूमिका तय करना संघ शताब्दी की सार्थकता है। आगामी विजयादशमी तक सर्वत्र शाखा का माहौल तैयार हो जाय इसके लिए हम कृत संकल्प है। ऐसा परिवर्तन होते ही एक नए भारत का स्वरूप दिखेगा किंतु इसके लिए हमें पंच संकल्प को आचरण में उतारना पड़ेगा।सामाजिक समरसता,कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण,स्व की भावना और नागरिक कर्तव्य जैसे पंच परिवर्तन के विषय से ही हम समाज परिवर्तन में समर्थ होंगे। समाज परिवर्तन होते ही हम देश ही नहीं विश्व में शांति एवं कल्याण स्थापित करने में सफल होंगे और विश्वगुरू बनकर दुनिया का मार्गदर्शन करेंगे। अध्यक्षता उमाशंकर तथा संचालन खंड कार्यवाह डा अभय राय ने किया। मुख्यरूप से जिला कार्यवाह ब्रह्मप्रताप  प्रोफेसर आनंद पाल अखिलेश्वर राहुल अमलेश पवन रोहित शाश्वत विहिप के जिला उपाध्यक्ष रमाकांत दर्जनों लोगों की सक्रिय सहभागिता रही।

Monday, October 6, 2025

बाल व तरूण स्वयंसेवकों के बल पर हमने राष्ट्रोत्थान का कार्य कर सौ वर्ष की यात्रा पूर्ण किये- सचिदानन्द जी

गाजीपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष 2025 उत्सव के अवसर पर रविवार को नगर के शिवाजी शाखा क्षेत्र में स्थित सरस्वती शिशु मंदिर रायगंज में विजयदशमी उत्सव  मनाया गया। शस्त्र पूजन कर कार्यक्रय का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप मे विभाग संचालक सचिदानन्द जी ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विजयादशमी के दिन सन् 1925 में स्थापित हुई। हम अपने बालव तरूण स्वयंसेवकों के बल पर हमने राष्ट्रोत्थान का कार्य कर आज सौ वर्ष पूर्ण कर शताब्दी समारोह मना रहें हैं। इन सौ वर्षो में अनेक उपलब्धियो को प्राप्त कर संघ ने समाज को एकरूप व एकतार मे खड़े करने का जो अदभुत प्रयास किया है वो अविस्मरणीय हैहमारे समाज को अपने पूराने गौरवशाली इतिहास को स्मरण कराते हुए उससे सीख लेने व निरंतर आगे बढ़ते रहने की सीख ही हमारा कतर्व्य व दायित्वो का बोध कराता है। इन सौ वर्षो में हमारे समाज की बहुप्रतिक्षित लक्ष्य राम मंदिर निर्माण कर रामराज की आधारशीला रखने का कार्य किया है। मुगलो व अंग्रेजो ने जो हमारे सनातनी विरासत को नष्ट कर पाश्चात्य सभ्यता को थोपने का कार्य किया है उसे हमे धीरे धीरे नियंत्रित करना होगा। हम अपने सांस्कृतिक विरासत के बल पर अपने भारत के गौरव को पुनः स्थापित करने का कार्य करेंगे। जिससे लिए समाज में समरसतास्वदेशी का भावपर्यावरण सुरक्षानागरिक कतर्व्यकटुम्ब प्रबोधन के माध्यम से राष्ट्रीय भावना कायम करना होगा। जो अपने वाली नवयुवको की पीढी को हम विरासत मे दे सके। इसके पूर्व अतिथियों ने संयुक्त रूप से संघ के संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार व माधव सदाशिवराव गोलवकर के चित्र पर पुष्प अर्पित कर ध्वज प्रणाम किया। इसके पश्चात पथ संचलन निकाला गया। पथ संचलन सरस्वती शिशु मंदिर रायगज से प्रारम्भ होकर लालदरवाजापावरहाउसहरिशंकरी होते हुए अमरनाथ मंदिर रायगंज पहुचां और जगह जगह पुष्पवर्षा कर पथ संचलन में सम्मिलित स्वयसेवकों का स्वागत किया गया।