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Monday, September 1, 2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के100 वर्ष : अखंड भारत को लेकर संघ का विचार...

‘100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज’। इस अवसर पर मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के साथ सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले, क्षेत्र संघचालक श्री पवन जिंदल और प्रांत संघचालक डॉ. अनिल अग्रवाल उपस्थित थे। व्याख्यानमाला में पहले दिन एवं दूसरे दिन सरसंघचालक ने व्याख्यान दिया तथा तीसरे दिन ‘जिज्ञासा समाधान सत्र’ का आयोजन किया गया। यहां व्याख्यानमाला के संपादित अंश दिए जा रहे हैं-

प्रश्न-

1.  आप कहते हैं कि हिंदू-मुस्लिम का डीएनए एक है। यदि ऐसा है तो बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालना क्या सही है?

2.  संघ ने विभाजन का विरोध क्यों नहीं किया?

3.  पाकिस्तान जैसे देश पर संघ का क्या विचार है?

4.  अखंड भारत को लेकर संघ का क्या विचार है?

5.  भारतवर्ष हमेशा वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत पर चला है। फिर भी गत कुछ शताब्दियों में भारत की सीमाएं संकुचित क्यों हुई हैं?

उत्तर-

डेमोग्राफी’ की चिंता होती है और होने का कारण है कि ‘डेमोग्राफी’ बदलती है तो उसके कुछ परिणाम निकलते हैं। देश का विभाजन एक परिणाम है। मैं केवल भारत की बात नहीं कर रहा हूं। इंडोनेशिया में तिमोर को ले सकते हैं। सभी देशों में जनसांख्यिकीय असंतुलन की चिंता रहती है। संख्या से ज्यादा इरादा क्या है?

पहली तो बात संख्या की है। जनसंख्या असंतुलन का पहला कारण है कन्वर्जन। यह भारतीय परंपरा का हिस्सा नहीं है। मत-मजहब अपनी पसंद है। इसमें जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।

दूसरी बात है घुसपैठ। यह ठीक है कि हमारा डीएनए एक है, लेकिन हर देश की एक व्यवस्था होती है। इसलिए अनुमति लेकर आना चाहिए। यदि अनुमति नहीं मिलती है, तो नहीं आना चाहिए। विधि-विधान को परे रखकर किसी देश में घुस जाना गलत बात है। ऐसे लोगों के आने पर उपद्रव होता है। इसलिए घुसपैठ रोकना चाहिए।

तीसरा है जन्मदर। दुनिया में सब शास्त्र कहते हैं कि जिस समाज में जन्मदर तीन से कम होता है वह धीरे-धीरे लुप्त हो जाता है। इसलिए हर माता-पिता को तीन संतान के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। संघ ने विभाजन का विरोध किया था, लेकिन उस समय संघ की ताकत क्या थी? उस समय पूरा देश गांधी जी के पीछे था। उन्होंने कहा कि विभाजन नहीं होगा, लेकिन कुछ हुआ जो उन्होंने मान लिया। फिर विभाजन को रोका नहीं जा सका।

प्रश्न-

1.  पिछले कुछ वर्षों में भारत में शिक्षा के व्यवसायीकरण से शिक्षा का स्तर तेजी से गिरा है। पढ़े-लिखे बेरोजगारों की फौज तैयार हो रही है। संघ इस समस्या का क्या समाधान देखता है?

उत्तर-

शिक्षा नौकरी के लिए है, यह मानसिकता इसके लिए जिम्मेवार है। डिग्री चाहिए। क्यों चाहिए? नौकरी के लिए चाहिए। मैं कृषि विद्यापीठ में पढ़ा हूं, जिसमें बड़ी संख्या में एग्रीकल्चर वेटरनरी के छात्र थे। ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट होने के बाद वे लोग खेती में नहीं, नौकरी में गए, जबकि उनके घरों में 70, 100 एकड़ अच्छी खेती थी। पानी था, पंप थे, लेकिन अपने व्यवसाय में वापस नहीं गए। सरकारी नौकरी हो तो और अच्छा। यह मानसिकता सबको नौकरी की तरफ बढ़ाती है। हम नौकर नहीं बनेंगे, हम नौकरी देने वाले बनेंगे। ऐसी अगर सोच हो तो नौकरी की तरफ जो बड़ा प्रवाह जा रहा है, वह कम हो जाएगा। अपना खुद का काम करने से आजीविका चलती है।

- स्रोत - पाञ्चजन्य 

Sunday, August 31, 2025

संघ और तकनीकी (Technology)

 - प्रशांत पोळ

समय आने पर संघतकनीकी को केवल आत्मसात ही नहीं करतातो पचा भी लेता है।

तकनीकी केवल एक साधन है। और संघ कभी साधनों का गुलाम नहीं रहा हैन ही रहेगा..!

ऑनलाइन बैठकों के लिए या चर्चा सत्रों के लिएसंबंधित एप्स के स्ट्रीमिंग सर्वर होते हैं। उनकी क्षमता और संख्या ज़बरदस्त होती है। विश्व के अलग-अलग डाटा सेंटर्स में यह स्ट्रीमिंग सर्वर्स रखे जाते हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले एक बड़े अधिकारी ने बताया कि, ‘कोरोना काल में ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंगपूरे विश्व में संघ के लोगों ने सर्वाधिक की। इसमें विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।

पिछली सदी के दो दशकों ने दुनिया का चेहरा ही बदल दिया। उनमें से एक था, चालीस का दशक। इस दशक में विश्व युद्ध हुआ, और इतिहास के साथ दुनिया का भूगोल भी बदला..! दूसरा दशक था, नब्बे का। यह दशक तकनीकी का था, जिसने दुनिया में आमूल-चूल बदलाव लाया। इस दशक के प्रारंभ में चार प्रमुख घटनाएं घटीं, वह भी संयोग से। लेकिन उनका इकट्ठा परिणाम, दुनिया का चेहरा बदलने में हुआ।

पहली घटना घटी, साधारण 1991 के आसपास, जब माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम को बाजार में उतारा। यह एक क्रांतिकारी बदलाव था। इसके कारण DOS जैसी कठिन प्रणालियों से घबराया हुआ सामान्य व्यक्ति, संगणक (कंप्यूटर) के निकट आया और उसका उपयोग करने लगा।

अब सामान्य व्यक्ति ने कंप्यूटर का उपयोग करना, अर्थात क्या करना? इसका उत्तर भी अगले दो-तीन वर्षों में मिल गया। 1994 में इंटरनेट का प्रवेश हुआ और दुनिया बदलने की प्रक्रिया तेज हुई। इसी समय और दो घटनाएं हुई। पहली साधारणतः 1992 में हुई, जब डिजिटल मोबाइल फोन दुनिया के सामने आए। जीएसएम तकनीकी का प्रारंभ भारत ने किया, और धीरे-धीरे मोबाइल की तकनीक विकसित होने लगी। इसी समय सैटेलाइट टीवी आया। दूरदर्शन पर एक ही चैनल देखने वाले भारतीयों को मानो लॉटरी ही लग गई। यह दूरदर्शन क्रांति का सूत्रपात था। इसी से आगे चलकर सैकड़ों अलग-अलग चैनल घर के टीवी पर दिखने वाले थे।

चार-पांच वर्षों में घटी इन घटनाओं के कारण पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची। यही थी वह सूचना क्रांति, जिसके कारण आगे चलकर सोशल मीडिया का एक अलग और प्रभावी विश्व सामने आया।

भारत में 15 अगस्त 1995 के दिन दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटी। प्रातः 10 बजे मुंबई के प्रभादेवी में, विदेश संचार निगम ने, भारत में इंटरनेट सबके लिए खुला किया। इसी दिन शाम 6 बजे, भारत का पहला हिंदी टीवी चैनल प्रारंभ हुआ। इस ‘एटीएन’ चैनल की शुरुआत, ‘मासूम’ चलचित्र दिखाकर हुई।

मजेदार बात यह कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपना प्रचार विभाग इसी समय प्रारंभ किया। संघ ने 1994 में अपने कार्य में और दो विभाग जोड़े। एक –  प्रचार विभाग और दो – संपर्क विभाग। उस समय संघ के कुछ वरिष्ठ एवं पुराने स्वयंसेवकों के लिए यह कल्चरल शॉक था। किंतु धीरे-धीरे इसका महत्व सभी के ध्यान में आया। तकनीकी के कारण समाज के बदलाव की यह दिशा बिल्कुल प्रारंभिक काल में ही संघ की समझ में कैसे आई..? आज जब हम पीछे मुड़कर उस कालखंड को देखते हैं, तो इस बात का आश्चर्य लगता है। इसका अर्थ यह है कि संघ को तकनीकी के गति की जानकारी थी और उसका निश्चित रूप से अंदाज था।

संघ ने तकनीकी को हमेशा एक उपयोगी साधन के रूप में देखा है। किंतु एक परहेज भी रखा – तकनीक को हावी नहीं होने देना है। ‘व्यक्ति के लिए तकनीकी है, तकनीकी के लिए व्यक्ति नहीं’ यह सूत्र दिमाग में पक्का था। और इसी कारण 20-20 दिनों के संघ शिक्षा वर्ग आज भी बिना मोबाइल के होते हैं। इस प्रशिक्षण वर्ग में आने वाले स्वयंसेवकों को मोबाइल की अनुमति नहीं होती। दो-तीन दिन में एक बार, वह भी आवश्यक हो तो ही, वे मोबाइल का उपयोग कर सकते हैं।

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गुरुवार, 26 दिसंबर, 2024 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत जी ने नागपुर में सोमलवार शिक्षण संस्था के 70वें वर्धापन दिन के उपलक्ष्य में एक उद्बोधन दिया। इसमें उन्होंने तकनीकी के बारे में संघ की सोच स्पष्ट रूप से सबके सामने रखी। उन्होंने कहा, “तकनीकी महत्वपूर्ण है। तकनीकी का विकास, व्यक्ति का काम अधिक जल्द गति से और अचूकता से करेगा। परंतु इसका उपयोग मानवीय दृष्टिकोण से प्रभावी रूप से होना चाहिए।” महात्मा गांधी जी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “नैतिकता के बिना तकनीकी और विज्ञान का उपयोग गलत है।”

अर्थात संघ की भूमिका स्पष्ट है। आवश्यकता के अनुसार तकनीकी का उपयोग होना चाहिए। परंतु तकनीकी का अतिरेक ना हो। संघ का मुख्य काम है, ‘देशहित के लिए व्यक्ति निर्माण’। यह काम कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से नहीं हो सकता। उसके लिए व्यक्ति ही आवश्यक है। व्यक्ति की भाव-भावनाओं की, अकृत्रिम स्नेह की आवश्यकता होती है। एआई से यह साध्य नहीं होता। यह तकनीकी की मर्यादा है।

व्यवस्थापन’ संघ कार्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है। गत 100 वर्षों में संघ कार्य अत्यंत प्रभावी रूप से चल रहा है। इसमें परिणामकारक और उत्कृष्ट व्यवस्थापन का भी हिस्सा है। व्यवस्थापन शास्त्र का कोई औपचारिक प्रशिक्षण ना लेते हुए भी, संघ के स्वयंसेवकों ने एक आदर्श, जिम्मेदार और आश्वासक व्यवस्थापन तंत्र खड़ा किया है। रोज की शाखाओं से, अलग-अलग बैठकों से लेकर तो लाख – डेढ़ लाख स्वयंसेवकों के भव्य – दिव्य शिविरों तक, संघ का नियोजन और व्यवस्थापन तंत्र प्रभावी रहा है। इस व्यवस्थापन में संघ ने समय-समय पर तकनीकी का भरपूर उपयोग किया है।

पुणे में तळजाई की पहाड़ी परदिनांक 14, 15 और 16 जनवरी 1983 को संघ ने एक बड़ा प्रांतिक शिविर आयोजित किया था। इस शिविर में 35,000 स्वयंसेवक उपस्थित थे। शिविर का मंच भी शिविर जैसा ही भव्य था। पृथ्वी के आकार का गोल मंच और उस पर शेषनाग ने अपना फन निकाला हैऐसी पृष्ठभूमि का यह दो मंजिला विशाल मंच था। इस मंच पर जाने के लिए ‘लिफ्ट‘ का प्रयोग किया गया था। उन दिनों मैदान के मंच के लिए ‘लिफ्ट‘ तैयार करनायह भारत में अभूतपूर्व घटना थी। तकनीकी का ऐसा प्रयोग, यह विशेष था।

इस शिविर  के बहुत पहलेवर्ष 1948 में संघ पर गांधी हत्या का झूठा आरोप लगाकर प्रतिबंध लगाया गया था। 1949 में इस मिथ्या आरोप से संघ की मुक्तता हुई और प्रतिबंध हटाया गया। इसके बादतत्कालीन सरसंघचालक परम पूज्य गुरुजी ने संपूर्ण देश का प्रवास किया। जगह-जगह पर सामान्य जनता ने श्री गुरुजी का भव्य स्वागत किया। इस संपूर्ण प्रवास का और अनेक ऐतिहासिक स्वागत समारोहों का, 35 mm कैमरा से चित्रण किया गया। उस समय भी ऐसी तकनीकी का उपयोग करते हुए सामाजिक विषयों से संबंधित डॉक्यूमेंट्री तैयार करने वाला संघ एकमात्र गैर राजनीतिक संगठन था..!

………….

सूचना क्रांति के बिल्कुल प्रारंभिक काल में संघ ने अपना ‘प्रचार विभाग’ प्रारंभ किया। पर केवल प्रारंभ करके संघ शांति से नहीं बैठा। संघ ने इस सूचना तकनीकी का, अपने कार्य विस्तार हेतु कैसा उपयोग हो सकता है, इसका गहराई में जाकर अध्ययन किया। आने वाले इंटरनेट युग के लिए संघ तैयार था। और इसीलिए, बड़े शांति से, सोच समझकर निर्णय लेते हुए, प्रारंभिक काल में ही संघ ने अपनी वेबसाइट चालू की। rss.org यह यूआरएल संघ को आरंभ में ही मिला। धीरे-धीरे संघ ने सोशल मीडिया के क्षेत्र में भी अपना स्थान पक्का किया। आज संघ के आधिकारिक फेसबुक पेज के 54 लाख फॉलोअर्स हैं। युवा पीढ़ी में लोकप्रिय, इंस्टाग्राम पर भी संघ हैं। यहां 10 लाख से ज्यादा लोग संघ को फॉलो करते हैं।

साधारणतः 2010 से संघ विचारों की ओर आकर्षित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती गई। इनमें से अनेकों को संघ में सक्रिय भाग लेना था। संघ जॉइन करना था। इन सब नए लोगों के लिए संघ ने Join RSS का बटन संघ की वेबसाइट पर दिया। वेबसाइट पर ‘जॉइन आरएसएस’ का एक फॉर्म आता है, जो गूगल फॉर्म जैसा होता है। यह फॉर्म भरकर सबमिट करने के बाद, वह जानकारी केंद्रीय व्यवस्था के पास जाती है। वहां इन फॉर्म्स का स्वयंचलित पद्धति से वर्गीकरण होता है। फॉर्म भरने वाले व्यक्ति की जानकारी संबंधित प्रांत के पास भेजी जाती है। प्रांत से वह शहर – ग्राम, और वहां से उस व्यक्ति के घर के पास जो शाखा होती है, वहां तक पहुंचती है। उस व्यक्ति को निकट की शाखा का कोई स्वयंसेवक संपर्क करता है, और उसे शाखा में सक्रिय करने का प्रयास करता है।

जॉइन आरएसएस’ प्रारंभ होने के बाद अनेक पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के मन में इसके बारे में आशंकाएं थीं। ‘ऐसे इंटरनेट अभियान से संघ के स्वयंसेवक कैसे बन सकते हैं..?’ जैसे प्रश्न भी अनेकों ने पूछे। परंतु कुछ ही दिनों में सबका शंका निरसन हो गया। ‘जॉइन आरएसएस’ को अभूतपूर्व प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। ‘जॉइन आरएसएस’ के माध्यम से संघ को आज तक लाखों कार्यकर्ता मिले हैं। उनमें से कुछ विस्तारक / प्रचारक भी बने हैं। संघ, तकनीकी का कितने प्रभावी रूप से उपयोग करता है, इसका यह उत्तम उदाहरण है।

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संघ स्वयंसेवक तकनीकी को अत्यंत सहजता से आत्मसात करते हैं, यह कोरोना काल में अधिक स्पष्टता से समझ में आया।

4 जुलाई 1975 को कांग्रेस की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संघ पर प्रतिबंध लगाया। प्रधानमंत्री समवेत अनेक नेताओं को लगा कि अब संघ नहीं रहेगा। अगले दो-तीन वर्षों में संघ की शाखाएं नहीं लगेगी, कार्यक्रम नहीं होंगे तो लोग संघ से दूरी बनाएंगे और संघ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा।

परंतु इंदिरा गांधी सहित कांग्रेस के नेताओं को, संघ पर प्रतिबंध लगाने वाले सभी को, संघ की ठीक से समझ ही नहीं थी। प्रतिबंध होने के कारण शाखाएं नहीं लग रही थी। किंतु फिर भी संघ स्वयंसेवक एक दूसरे से मिल ही रहे थे। विविध कारणों से से एकत्रित होते थे। इसलिए, 21 मार्च 1977 को जब संघ का प्रतिबंध हटा, तब संघ और अधिक ताकत से, शक्तीशाली होकर खड़ा रहा। संघ प्रचारक कहते थे, “जब तक एक दूसरे से मिलने पर प्रतिबंध नहीं आता, तब तक कोई चिंता नहीं। संघ का काम रूकेगा नहीं।”

किंतु कोरोना की चुनौती इससे भी बड़ी थी, कठिन थी। संघ के काम पर या शाखाओं पर प्रतिबंध नहीं था। परंतु लॉकडाउन के कारण, एक दूसरे से मिलने पर प्रतिबंध था। किसी भी कारण से एकत्रित आने पर पाबंदी थी।

लेकिन, स्वयंसेवकों ने इस परिस्थिति में भी काम रुकने नहीं दिया। इसमें से नया मार्ग ढूंढा। ऑनलाइन बैठकें प्रारंभ की। लॉकडाउन लगने के बाद, अक्षरश: 15 से 20 दिनों में, संघ की ऑनलाइन शाखाएं, ऑनलाइन मिलन और ऑनलाइन साप्ताहिक / पाक्षिक / मासिक बैठकें के प्रारंभ हुई।

यह सब आश्चर्यजनक था, अद्भुत था। क्योंकि संघ ने ग्राम स्तर तक, शहर के बस्तियों में, सामान्यतः कम पढ़े-लिखे समझे जाने वाले लोगों तक यह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की, जूम बैठकों की, ऑनलाइन चर्चा सत्रों की तकनीकी पहुंचाई थी। इस क्षेत्र में काम करने वालों को बेहद्द आश्चर्य हो रहा था कि यह सब कैसे हो गया..! इतने दिनों में, इतने वर्षों में जो कॉर्पोरेट जगत को भी संभव नहीं हुआ, वह संघ ने अल्पावधी में, सामान्य स्वयंसेवकों तक तकनीकी पहुंचाकर, कर दिखाया।

अर्थात, यह सब आसान नहीं था। इसमें अनेक समस्याएं थीं। जूम एप डाउनलोड करना, जूम या इसके जैसे अन्य ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंग एप की लिंक ओपन करने से लेकर, तो कई बातें थीं। अन्य लोग यदि बात कर रहे हैं, तो स्वयं म्यूट रहना, बात करने के लिए अनम्यूट करना, बैंडविथ (रेंज) कम हो तो वीडियो बंद करके केवल ऑडियो चालू रखना… जैसी अनेक बातें कार्यकर्ताओं की समझ में नहीं आती थी। प्रौढ़ कार्यकर्ताओं के लिए तो यह और भी कठिन था। परंतु संघ पद्धति के अनुसार और संघ की कार्यशैली के अनुसार, सबने इसको सकारात्मक ही लिया। सीखने का उत्साह दिखाया। ऑनलाइन बैठकें लेने का प्रशिक्षण भी प्रारंभ हुआ। और कुछ ही दिनों में सब कुछ ठीक हो गया।

ऐसी ऑनलाइन बैठकों के लिए या चर्चा सत्रों के लिए, संबंधित एप्स के स्ट्रीमिंग सर्वर होते हैं। उनकी क्षमता और संख्या ज़बरदस्त होती है। विश्व के अलग-अलग डाटा सेंटर्स में यह स्ट्रीमिंग सर्वर्स रखे जाते हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले एक बड़े अधिकारी ने बताया कि, ‘कोरोना काल में ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंग, पूरे विश्व में संघ के लोगों ने सर्वाधिक की। इसमें विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।’ इसका आधार क्या है..? कुछ भी नहीं। कोई आधार नहीं। क्योंकि, संघ की देश भर की विविध शाखाएं, अलग-अलग अनुषांगिक संगठन.. इन सब ने, जूम और तत्सम एप्स का उपयोग अलग-अलग नाम से किया था। इसलिए समेकित (consolidated) डाटा उपलब्ध नहीं है। लेकिन, विभिन्न कॉन्फ्रेंसिंग करते समय, शीर्षक देते समय, जिन ‘की वर्ड्स’ का उपयोग किया गया, उनका विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष आता है, कि विश्व में संघ से संबंधित लोगों ने ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग, कोरोना काल में सबसे अधिक किया है।

किंतु कोरोना की दूसरी लहर के बाद, जैसे-जैसे कोरोना का प्रकोप कम होता गया, वैसे-वैसे संघ स्वयंसेवकों ने ऑनलाइन बैठकों का उपयोग कम किया और प्रत्यक्ष बैठकों पर जोर दिया। आज भी जहां आवश्यक है, वहीं ऑनलाइन बैठकें होती हैं। अन्यथा प्रत्यक्ष मिलने का ही आग्रह रहता है।

कुल मिलाकर, तकनीकी से संघ का कोई झगड़ा नहीं है। समय आने पर संघ, तकनीकी को केवल आत्मसात ही नहीं करता, तो पचा भी लेता है। लेकिन उसके साथ यह भी सच है कि तकनीकी यह केवल एक साधन है। और संघ कभी साधनों का गुलाम नहीं रहा है, न ही रहेगा..!

Thursday, August 28, 2025

अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल स्वेच्छा से होना चाहिए, दबाव में नहीं – डॉ. मोहन भागवत जी

संघ का कार्य शुद्ध सात्त्विक प्रेम और समाजनिष्ठा पर आधारित है – सरसंघचालक जी

तीन दिवसीय व्याख्यानमाला ‘100 वर्ष की संघ यात्रा - नए क्षितिज’ का दूसरा दिन

नई दिल्ली, 27 अगस्त। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि समाज और जीवन में संतुलन ही धर्म है, जो किसी भी अतिवाद से बचाता है। भारत की परंपरा इसे मध्यम मार्ग कहती है और यही आज की दुनिया की सबसे बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया के समक्ष उदाहरण बनने के लिए समाज परिवर्तन की शुरुआत घर से करनी होगी। इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन बताए हैं - कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्व-बोध (स्वदेशी) और नागरिक कर्तव्यों का पालन। आत्मनिर्भर भारत के लिए स्वदेशी को प्राथमिकता दें तथा भारत का अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल स्वेच्छा से होना चाहिए, किसी दबाव में नहीं।

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला ‘100 वर्ष की संघ यात्रा - नए क्षितिज’ के दूसरे दिन संबोधित कर रहे थे। इस दौरान सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, उत्तर क्षेत्र संघचालक पवन जिंदल और दिल्ली प्रांत संघचालक डॉ. अनिल अग्रवाल मंच पर उपस्थित रहे।

संघ कार्य कैसे चलता है

मोहन भागवत जी ने कहा कि संघ का कार्य शुद्ध सात्त्विक प्रेम और समाजनिष्ठा पर आधारित है। “संघ का स्वयंसेवक कोई व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा नहीं रखता। यहाँ इंसेंटिव नहीं हैं, बल्कि डिसइंसेंटिव अधिक हैं। स्वयंसेवक समाज-कार्य में आनंद का अनुभव करते हुए कार्य करते हैं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि जीवन की सार्थकता और मुक्ति की अनुभूति इसी सेवा से होती है। सज्जनों से मैत्री करना, दुष्टों की उपेक्षा करना, कोई अच्छा करता है तो आनंद प्रकट करना, दुर्जनों पर भी करुणा करना - यही संघ का जीवन मूल्य है।

हिन्दुत्व क्या है

हिन्दुत्व की मूल भावना पर कहा कि हिन्दुत्व सत्य, प्रेम और अपनापन है।’ हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें सिखाया कि जीवन अपने लिए नहीं है। यही कारण है कि भारत को दुनिया में बड़े भाई की तरह मार्ग दिखाने की भूमिका निभानी है। इसी से विश्व कल्याण का विचार जन्म लेता है।

दुनिया किस दिशा में जा रही है

सरसंघचालक ने चिंता जताई कि दुनिया कट्टरता, कलह और अशांति की ओर जा रही है। पिछले साढ़े तीन सौ वर्षों में उपभोगवादी और जड़वादी दृष्टि के कारण मानव जीवन की भद्रता क्षीण हुई है। उन्होंने गांधी जी के बताए सात सामाजिक पापों, “काम बिना परिश्रम, आनंद बिना विवेक, ज्ञान बिना चरित्र, व्यापार बिना नैतिकता, विज्ञान बिना मानवता, धर्म बिना बलिदान और राजनीति बिना सिद्धांत” का उल्लेख करते हुए कहा कि इनसे समाज में असंतुलन गहराता गया है।

धर्म का मार्ग अपनाना होगा

सरसंघचालक जी ने कहा कि आज दुनिया में समन्वय का अभाव है और दुनिया को अपना नजरिया बदलना होगा। दुनिया को धर्म का मार्ग अपनाना होगा। “पूजा-पाठ और कर्मकांड से परे धर्म है। सभी प्रकार के रिलिजन से ऊपर धर्म है। धर्म हमें संतुलन सिखाता है - हमें भी जीना है, समाज को भी जीना है और प्रकृति को भी जीना है।” धर्म ही मध्यम मार्ग है जो अतिवाद से बचाता है। धर्म का अर्थ है मर्यादा और संतुलन के साथ जीना। इसी दृष्टिकोण से ही विश्व शांति स्थापित हो सकती है।

धर्म को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा, “धर्म वह है जो हमें संतुलित जीवन की ओर ले जाए, जहाँ विविधता को स्वीकार किया जाता है और सभी के अस्तित्व को सम्मान दिया जाता है।” उन्होंने बल दिया कि यही विश्व धर्म है और हिन्दू समाज को संगठित होकर इसे विश्व के सामने प्रस्तुत करना होगा।

विश्व की वर्तमान स्थिति और उपाय

वैश्विक संदर्भ में उन्होंने कहा कि शांति, पर्यावरण और आर्थिक असमानता पर चर्चा तो हो रही है, उपाय भी सुझाए जा रहे हैं, लेकिन समाधान दूर दिखाई देता है। “इसके लिए प्रमाणिकता से सोचना होगा और जीवन में त्याग तथा बलिदान लाना होगा। संतुलित बुद्धि और धर्म दृष्टि का विकास करना होगा।”

भारत ने नुकसान में भी संयम बरता

भारत के आचरण की चर्चा करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि “हमने हमेशा अपने नुकसान की अनदेखी करते हुए संयम रखा है। जिन लोगों ने हमें नुकसान पहुँचाया, उन्हें भी संकट में मदद दी है। व्यक्ति और राष्ट्रों के अहंकार से शत्रुता पैदा होती है, लेकिन अहंकार से परे हिन्दुस्तान है।” उन्होंने कहा कि भारतीय समाज को अपने आचरण से दुनिया में उदाहरण प्रस्तुत करना होगा।

उन्होंने कहा कि आज समाज में संघ की साख पर विश्वास है। “संघ जो कहता है, उसे समाज सुनता है।” यह विश्वास सेवा और समाजनिष्ठा से अर्जित हुआ है।

भविष्य की दिशा

भविष्य की दिशा पर सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ का उद्देश्य है कि सभी स्थानों, वर्गों और स्तरों पर संघ कार्य पहुँचे। साथ ही समाज में अच्छा काम करने वाली सज्जन शक्ति आपस में जुड़े। इससे समाज स्वयं संघ की ही तरह चरित्र निर्माण और देशभक्ति के कार्य को करेगा। इसके लिए हमें समाज के कोने-कोने तक पहुंचना होगा। भौगोलिक दृष्टि से सभी स्थानों और समाज के सभी वर्गों एवं स्तरों में संघ की शाखा पहुंचानी होगी। सज्जन शक्ति से हम संपर्क करेंगे और उनका आपस में भी संपर्क कराएंगे।

उन्होंने कहा कि संघ मानता है कि हमें समाज में सद्भावना लानी होगी और समाज के ओपिनियन मेकर्स से निरंतर मिलना होगा। इनके माध्यम से एक सोच विकसित करनी होगी। वे अपने समाज के लिए काम करें, उसमें हिन्दू समाज को अंग होने का अनुभव पैदा हो और वे भौगोलिक परिस्थितियों से जुड़ी चुनौतियों का स्वयं समाधान ढूँढे। दुर्बल वर्गों के लिए काम करें। संघ ऐसा करके समाज के स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहता है।

मोहन भागवत जी ने बाहर से आक्रामकता के कारण धार्मिक विचार भारत में आए। किसी कारण से उन्हें कुछ लोगों ने स्वीकार किया। “वे लोग यहीं के हैं, लेकिन विदेशी विचारधारा होने के कारण जो दूरियाँ बनीं, उन्हें मिटाने की ज़रूरत है। हमें दूसरे के दर्द को समझना होगा। एक देश, एक समाज और एक राष्ट्र के अंग होने के नाते, विविधताओं के बावजूद, समान पूर्वजों और साझा सांस्कृतिक विरासत के साथ आगे बढ़ना होगा। यह सकारात्मकता और सद्भाव के लिए आवश्यक है। इसमें भी हम समझ-बूझकर एक-एक कदम आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं।”

आर्थिक प्रगति के नए रास्ते

आर्थिक दृष्टि पर उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे प्रयोग हुए हैं, लेकिन अब राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक प्रतिमान गढ़ना होगा। हमें एक ऐसा विकास मॉडल प्रस्तुत करना होगा, जिसमें आत्मनिर्भरता, स्वदेशी और पर्यावरण का संतुलन हो। ताकि वे विश्व के लिए उदाहरण बने।

पड़ोसी देशों से रिश्तों पर उन्होंने कह कि “नदियाँ, पहाड़ और लोग वही हैं, केवल नक्शे पर लकीरें खींची गई हैं। विरासत में मिले मूल्यों से सबकी प्रगति हो, इसके लिए उन्हें जोड़ना होगा। पंथ और संप्रदाय अलग हो सकते हैं, पर संस्कारों पर मतभेद नहीं है।”

पंच परिवर्तन – अपने घर से शुरुआत

उन्होंने कहा कि दुनिया में परिवर्तन लाने से पहले हमें अपने घर से समाज परिवर्तन की शुरुआत करनी होगी। इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन बताये हैं। यह हैं कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्व की पहचान तथा नागरिक कर्तव्यों का पालन। उन्होंने उदाहरण दिया कि पर्व-त्योहार पर पारंपरिक वेशभूषा पहनें, स्वभाषा में हस्ताक्षर करें और स्थानीय उत्पादों को सम्मानपूर्वक खरीदें।

उन्होंने कहा कि हंसते-हंसते हमारे पूर्वज फाँसी पर चढ़ गए, लेकिन आज आवश्यकता है कि हम 24 घंटे देश के लिए जीएँ। “हर हाल में संविधान और नियमों का पालन करना चाहिए। यदि कोई उकसावे की स्थिति हो तो न टायर जलाएँ, न हाथ से पत्थर फेंकें। उपद्रवी तत्व ऐसे कार्यों का लाभ उठाकर हमें तोड़ने का प्रयास करते हैं। हमें कभी उकसावे में आकर अवैध आचरण नहीं करना चाहिए। छोटी-छोटी बातों में भी देश और समाज का ध्यान रखकर अपना काम करना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम बढ़ाने होंगे और इसके लिए स्वदेशी को प्राथमिकता देनी होगी। 

अंत में सरसंघचालक जी ने कहा कि “संघ क्रेडिट बुक में नहीं आना चाहता। संघ चाहता है कि भारत ऐसी छलांग लगाए कि उसका कायापलट तो हो ही, पूरे विश्व में सुख और शांति कायम हो जाए।”