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Wednesday, July 31, 2024

भारत में साजिश के तहत ‘मूल निवासी दिवस’ को ‘आदिवासी दिवस’ बनाया गया

कमलनाथ जी की देश-विघातक मांग

- प्रशांत पोळ

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने, वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन यादव जी को एक पत्र लिखा. पत्र के द्वारा उन्होंने मांग की कि ‘९ अगस्त को ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के अवसर पर, मध्यप्रदेश में छुट्टी घोषित की जाए’.

ये पत्र इस बात का सबूत है कि कमलनाथ, देश तोड़ने वाली शक्तियों के हाथों खेल रहे हैं. पहले तो, विश्व में ९ अगस्त का दिन, यह ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के रुप में नही मनाया जाता. वह ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ के रुप में मनाया जाता हैं. दोनों में अंतर है. बहुत ज्यादा अंतर है. भारत का ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ से कोई लेना – देना नही है. भारत में कोई भी बाहर से नहीं आया, सिवाय इस्लामी आक्रांताओं के. भारत को तोड़ने वाली शक्तियां, यह दिखाना चाहती हैं, कि भारत भी अप्रवासियों का देश है. बाहर से आए हुए लोगों का देश है. कमलनाथ जैसे लोग, इन देशद्रोही ताकतों के हाथों खेल रहे हैं.

सन् १९९४ में संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ (World Indigenous Day) की घोषणा की थी. इस कल्पना को लेकर सन १९८२ में Working Group on Indigenous People समूह की पहली बैठक ९ अगस्त को हुई थी. इसलिए ९ अगस्त को ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ मनाया जाता है. इसके पीछे संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका बड़ी स्पष्ट है. उनके अनुसार विश्व के लगभग ९० देशों में ४७.६ करोड़ मूल निवासी रहते हैं, जो विश्व की जनसंख्या के ५% के बराबर हैं. किन्तु दुनिया भर के गरीबों में मूल निवासियों की संख्या १५% है. ऐसे मूल निवासियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए, उनका जीवन स्तर बढ़ाने के लिए, संयुक्त राष्ट्र संघ, यह दिवस मनाता है.

प्रश्न है, मूल निवासी कौन हैं? हम सभी जानते हैं, की सन १४९२ में भारत जाने के प्रयास में, कोलंबस अमेरिका पहुंच गया. पहुंचने के बाद उसे लगा, यही ‘इंडिया’ है. इसलिए वहां पहले से जो लोग रहते थे, उन्हें ‘इंडियन’ नाम दिया गया. बाद में कोलंबस की गलतफहमी दूर हुई और उसे पता चला कि यह इंडिया (भारत) नहीं है. किन्तु वहां के मूल रहवासियों को दिया गया नाम, ‘इंडियन्स’, वैसे ही चलता रहा. पहले उन्हें ‘रेड इंडियन्स’ कहा जाता था. आज ‘अमेरिकन इंडियन्स’ (या नेटिव अमेरिकन्स) कहा जाता है.

ये हैं मूल निवासी.

१४९२ में, जब सबसे पहले कोलंबस के साथ यूरोपियन्स वहां पहुंचे, तब वहां के मूल निवासी, अर्थात अमेरिकन इंडियन्स की संख्या, हेनरी डोबीन्स (Henry F Dobyns) के अनुसार १ करोड़ ८० लाख थी. जनसंख्या वृद्धि के अनुपात के अनुसार, आज यह संख्या १५ करोड़ के लगभग होनी चाहिए थी. लेकिन पिछले चार सौ / पांच सौ वर्षों में, अमेरिका में बसने आए अंग्रेज़, फ्रेंच, स्पेनिश आदि यूरोपियन्स ने इन मूल निवासियों पर जबरदस्त अत्याचार किए, उनका वंशच्छेद किया. कई फैलने वाली बीमारियां इन ‘इंडियन्स’ के बीच लाई गईं, जिनके कारण बड़ी संख्या में अमेरिकी इंडियन्स चल बसे. इन सबके कारण २०१० की अमेरिकी जनगणना के अनुसार, इन मूल निवासियों की संख्या है, ५५ लाख, जो अमेरिकी जनसंख्या की १.६७ % मात्र है.

ये हैं अमेरिका के मूल निवासी.

ऑस्ट्रेलिया में सर्वप्रथम सन् १७७० में जेम्स कुक नामक ब्रिटिश सेना का लेफ्टिनेंट पहुंचा. तब ब्रिटिश सरकार, अपने कैदियों को रखने के लिए एक बड़ा सा द्वीप खोज रही थी. जेम्स कुक और उसके साथी जोसेफ बैंक्स के कहने पर ब्रिटिश सरकार ने ऑस्ट्रेलिया द्वीप इस कार्य के लिए निश्चित किया. १३ मई १७८७ को ११ जहाजों में भरकर, डेढ़ हजार से ज्यादा अंग्रेज़, इस द्वीप पर पहुंचे, इनमें ७३७ कैदी थे. ऑस्ट्रेलिया में उपनिवेशवाद की यह शुरुआत थी.

उस समय ऑस्ट्रेलिया में जो मूल निवासी रहते थे, वे दो प्रमुख समूहों में थे. उनके नाम भी इन अंग्रेजों ने ही रखे. वे थे – Torres Strait Islanders और Aboriginal. दोनों को मिलाकर, उन दिनों उनकी कुल संख्या थी, दस लाख से ज्यादा. जनसंख्या वृद्धि के अनुपात के अनुसार, आज वह साठ लाख से ज्यादा होना चाहिए थी. लेकिन २०१६ की जनगणना के अनुसार यह मात्र सात लाख नब्बे हजार है, जो ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या का ३.३ प्रतिशत है.

ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संख्या इतनी कम कैसे हुई..? वही, जो अमेरिका में हुआ. बर्बरता से किया गया इन मूल निवासियों का नरसंहार और बाहर के देशों से आए अनेक रोगों के कारण इन मूल निवासियों की स्वाभाविक दिखने वाली मृत्यु.

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में मूल निवासियों की हालत अत्यंत खराब थी. यूरोपियन्स ने उनको कहीं का नहीं छोड़ा था. अमेरिका ने उनको ‘सिविलियन’ बनाने की ठानी. पहले राष्ट्राध्यक्ष, जॉर्ज वॉशिंगटन के जमाने से इन मूल निवासी अर्थात ‘अमेरिकन इंडियन्स’ को जबरदस्ती ‘सिविलियन’ बनाने की नीति आज तक जारी है. इन सारे मूल निवासियों को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने जड़ों से तोड़ा है. वे कहीं के नहीं बचे हैं. अनेक अमेरिकी मूल निवासी, आज गरीबी रेखा के अंदर आते हैं.

ऐसे वंचित और उपेक्षित लोगों के लिए है, ‘मूल निवासी दिवस’!

भला भारत में इस दिवस का क्या औचित्य? यहां तो हम सभी मूल निवासी हैं. हां, मुस्लिम आक्रांता जरूर आए थे बाहर से. ईरान, इराक, अफगानिस्तान, तुर्कस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान… आदि अनेक देशों से. तो संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार चलें तो, इन आक्रांताओं को छोड़कर, भारत में सभी मूल निवासी हैं.

बाहर से आए तो अंग्रेज़ भी थे. किन्तु १९४७ में स्वतंत्रता मिलने के पश्चात वे भारत छोड़कर चले गए.

तो फिर भारत में ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ का औचित्य नहीं होना चाहिए. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के मूल निवासियों के हक के प्रति सहानुभूति और समर्थन, इतनी सीमित भूमिका हमारी होनी चाहिए थी.

किन्तु ऐसा हुआ नहीं.

आजकल अपने देश में भी यह दिवस मनाने का चलन प्रारंभ हुआ है. अनेक राज्य इसे ‘आदिवासी दिवस’ के रूप में मनाते हैं. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी, ९ अगस्त को ऐच्छिक अवकाश घोषित करते थे.

यह सब कैसे हो गया…?

इसका उत्तर है, वामपंथियों की एक बहुत सोची समझी रणनीति के कारण.

अब इसमें वामपंथ कहां से आया?

वामपंथ की मूल सोच है, समाज में वर्ग संघर्ष खड़ा करना. प्रस्थापित व्यवस्था के विरोध में संघर्ष निर्माण करना. इस संघर्ष से अराजक फैलेगा और अराजकता में ही क्रांति के बीज होते हैं. इसलिए इसमें से सर्वहारा क्रांति होगी! अर्थात वर्ग संघर्ष के लिए ‘मूल निवासी दिवस’ एक अच्छा साधन है. इसका पूरा फायदा वामपंथी विचारकों ने उठाया.

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ‘मूल निवासी दिवस’ की घोषणा होने के बाद, अपने देश में ‘आदिवासी ही इस देश के असली (मूल) नागरिक हैं, और बाकी सारे बाहर से आए हैं’ यह विमर्श चल पड़ा. ‘आर्य बाहर से आए’ यह सिद्धांत तो प्रस्थापित था ही, जो शालाओं में भी पढ़ाया जाता था. यह सिद्धांत अंग्रेजों ने बनाया. उन्होंने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में जाकर, वहाँ के मूल निवासियों को भगाकर या मारकर अपना साम्राज्य प्रस्थापित किया था. इसलिए ‘भारत में भी सारे बाहर से ही आए हैं, तो अंग्रेजों के आने से कोई फरक नहीं पड़ता’ यह उस सिद्धांत का आधार था.

किन्तु, स्वतंत्रता मिलने के बाद भी, हमारे वामपंथी विचारकों द्वारा इस प्रकार का विमर्श खड़ा करना यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण था. आज से नौ वर्ष पहले, अर्थात १२ जनवरी, २०११ को ‘द हिन्दू’ अंग्रेजी समाचार पत्र में एक आलेख छपा, “India, largely a country of immigrants’. इसमें कहा गया, “If North America is predominantly made up of new immigrants, India is largely a country of old immigrants. इसमें ज़ोर देकर प्रतिपादित किया गया है कि इस देश के मूल निवासी तो केवल आदिवासी ही हैं, जो ८ % हैं. बाकी सारे ९२ % लोग बाहर से आए हुए हैं. These facts lend support to the view that about 92 per cent of the people living in India are descendants of immigrants.

इस बात का आधार क्या है…?

अंग्रेजों द्वारा लिखी हुई, The Cambridge History of India (Volume 1) का उद्धरण इस आलेख के लिए लिया गया है.

इससे बड़ा व्यंग क्या हो सकता है…? ऐसे अनेक आलेख पिछले कुछ वर्षों में माध्यमों में आए हैं. ‘आर्य बाहर से आए’ यह विमर्श अब गलत साबित हुआ है. सारे तथ्य, प्रमाण और DNA की जांच से यह सिद्ध हुआ है कि हम सब इसी भारत देश के मूल निवासी हैं. इसके ठीक विपरीत, OIT (Out ऑफ India Theory) की मान्यता बढ़ रही है. इस सिद्धांत के अनुसार भारत जैसे संपन्न देश से, कुछ समुदाय भारत से बाहर स्थलांतरित हुए हैं. केल्टिक समुदाय, येजीदी समुदाय इनके उदाहरण हैं. कोनराड ईस्ट जैसे विचारकों ने इसे प्रतिपादित किया है.

संयुक्त राष्ट्र लगभग पांच सौ से एक हजार वर्षों में, जिन देशों में बाहर से आए लोगों ने सत्ता और शासन प्राप्त किया, उन्हीं देशों के मूल निवासियों को ‘मूल निवासी’ का दर्जा दे रहा है. किन्तु अपने देश में तो वेद / उपनिषद / पुराण कई हजार वर्ष पहले के हैं. सारे उदाहरण, सारे प्रमाण, सारे तथ्य कम से कम सात / आठ हजार वर्षों तक के इतिहास तक हमें पहुचाते हैं. अर्थात् मुस्लिम आक्रांताओं का अपवाद छोड़ा तो हम सभी मूल निवासी हैं.

और जिन्हें ‘आदिवासी’ कहा जाता है, वे ‘आदिम युग’ में जीने वाले आदिवासी नहीं हैं, अपितु वनों में, ग्रामों में रहने वाले ‘वनवासी’ हैं. ये अत्यंत प्रगत और प्रगल्भ समाज हैं. इनका जल व्यवस्थापन, इनका समाज जीवन, इनका पर्यावरण के साथ जीना…. सभी अद्भुत है. लगभग पांच सौ वर्ष पहले, हमारे गोंडवाना की वनवासी रानी दुर्गावती, बंदूक चलाने में माहिर थी. ऐसा समाज वंचित, शोषित कैसा हो सकता है? इसलिए मूल निवासियों के मामले में हमारी तुलना अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ करना गलत और अन्यायपूर्ण है.

एक गहरी साजिश के तहत, भारत में ‘मूल निवासी दिवस’ को ‘आदिवासी दिवस’ बनाया गया है. यह देश की एकता तोड़ने वाला कृत्य है. इसे पूरी ताकत लगाकर रोकना चाहिए. भारत में हम सभी मूल निवासी हैं, यही सत्य है और यही भाव होना चाहिए..!

Tuesday, July 23, 2024

भारतीय मजदूर संघ : देश के श्रमिकों को सक्षम बनाने के लिए अभियान चलाएगा भारतीय मजदूर संघ


भारतीय मजदूर संघ के अखिल भारतीय महामंत्री रवींद्र हिमते ने कहा कि भामसं के सभी प्रांतों एवं 40 महासंघों, 5778 यूनियनों के कार्यकर्ता 70 वर्ष के गौरवशाली इतिहास ग्राम से लेकर महानगरों तक पहुंचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाएँगे. इसके अंतर्गत 70 वर्ष के कार्य, आने वाले वर्षों में श्रमिकों को पूरी तरह से सक्षम बनाने के लिए भामसं के प्रयासों की जानकारी दी जाएगी. साथ ही पंच-परिवर्तन के विषय पर श्रमिकों के बीच पर्यावरण, कुटुंब प्रबोधन, समरसता, नागरिक कर्तव्य एवं  स्वदेशी पर भी कार्य करेगा.

भारतीय मजदूर संघ 23 जुलाई, 2024 को अपने 70 वें वर्ष में पदार्पण कर रहा है. रवींद्र हिमते ने भोपाल में आयोजित पत्रकार वार्ता में पदार्पण समारोह के संबंध में जानकारी प्रदान की. पदार्पण समारोह में ठेंगड़ी भवन भारत माता चौराहा से लेकर रवींद्र भवन तक शोभायात्रा निकाली जाएगी. शोभायात्रा में हजारों कार्यकर्ता सम्मिलित होंगे. रवीद्र भवन में होने वाले उद्घाटन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य वी भागैय्या जी विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे.

भारतीय मजदूर संघ की स्थापना 23 जुलाई, 1955 को हुई थी. संगठन की स्थापना श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी (प्रमुख चिंतक, अर्थशास्त्री) ने अपने कुछ साथियों के साथ भोपाल में अग्रवाल धर्मशाला में की थी. स्थापना के पश्चात पत्रकारों द्वारा श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी को सदस्य संख्या के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया था – एक सदस्य मैं हूं और दूसरे ईश्वर हैं. इसीलिए भामसं के कार्य को ईश्वरीय कार्य कहा जाता है.

स्थापना के समय भारतीय मजदूर संघ का ना कोई संगठन, ना कोई सदस्य, ना कोई धनराशि थी. लेकिन वैचारिक प्रबलता के आधार पर राष्ट्रहित- उद्योगहित -श्रमिकहित के त्रि-सूत्र को अपने कार्य का आधार बनाया. साथ ही दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्र हित में काम करने का निश्चय हुआ. भामसं श्रमिकों ने, श्रमिकों के लिए, श्रमिकों द्वारा चलाया जाने वाला संगठन होगा. स्थापना के पश्चात 12 वर्षों तक संगठन को देने के लिए श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी एव अन्य वैचारिक कार्यकर्ताओं के समूह ने देश भर में प्रवास कर कार्यकर्ताओं को जोड़ा. अगस्त 1967 में संगठन के प्रथम अधिवेशन में अनुभवी कार्यकर्ताओं को ज़िम्मेदारी सौंपी गई.

1967 से 1989 तक 22 वर्षों के कार्यकाल में श्रमिक जगत में अपने कार्य की नई उचाईयाँ स्थापित कीं और 1989 के श्रमिक सदस्यता सत्यापन में भामसं देश का सर्वाधिक सदस्यता वाला संगठन घोषित हुआ. आज 2024 तक 35 वर्षों से भारतीय मजदूर संघ सर्वाधिक सदस्यता वाला संगठन बनकर श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए अग्रसर है.

भारतीय मजदूर संघ का कार्य 28 प्रदेशों, 40 महासंघों, 5778 यूनियनों  के माध्यम से देश भर में फैला हुआ है.

INTERNATIONAL LABOUR ORGANISATION के अंतर्गत होने वाली INTERNATIONAL LABOUR CONFERRENCE में विगत 35 वर्षों से भारतीय मजदूर संघ श्रमिकों का प्रतिनिधित्व कर रहा है.

विगत वर्ष देश को गौरवान्वित करने वाले G-20 सम्मेलन की अध्यक्षता भारत कर रहा था. G-20 के अंतर्गत L-20 की अध्यक्षता भारतीय मजदूर संघ को देश का सबसे बड़ा संगठन होने के नाते प्राप्त हुई.

L-20 कार्यक्रम का उद्घाटन समारोह पंजाब के अमृतसर एवं समापन समारोह बिहार के पटना में संपन्न हुआ. जन भागीदारी के तहत करीब 550 जिलों में कार्यक्रम संपन्न हुए. यह उपलब्धि भामसं की संगठनात्मक शक्ति को दर्शाती है.

आज विश्व के कई श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ के नेतृत्व में कार्य करना चाहते हैं. अपनी वैचारिक भूमिका के कारण ही आगे बढ़ने का अवसर मिला है. भारतीय मजदूर संघ की कार्यप्रणाली में सामूहिक निर्णय प्रक्रिया ही उसकी सफलता का प्रमाण है.

Saturday, July 20, 2024

उत्तर प्रदेश में बड़ा निर्णय – कांवड़ यात्रा मार्ग की सभी दुकानों पर लिखना होगा संचालकों, मालिकों का नाम

लखनऊ. उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ा निर्णय लेते हुए आदेश दिया है कि कांवड़ यात्रा के दौरान मार्ग में पड़ने वाली दुकानों पर संचालकों को अपना नाम लिखना होगा. पहल मुजफ्फरनगर जिले में दुकानों और ठेलों पर मालिकों के नाम लिखे होने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. अब इसे पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया है. कांवड यात्रियों की आस्था की शुचिता बनाए रखने को लेकर निर्णय लिया है. हलाल सर्टिफिकेशन वाले उत्पाद बेचने वालों पर भी कार्रवाई की जाएगी. आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि हर हाल में दुकानों पर संचालक मालिक का नाम लिखा होना चाहिए.

योग साधना केंद्र के संस्थापक स्वामी यशवीर महाराज का कहना था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर मुस्लिमों ने हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर होटल खोले हैं. इससे श्रद्धालु भ्रमित होकर वहां खाना खाते हैं. पुलिस ने जब इसकी जांच कराई तो पता चला कि 8 मुस्लिम संचालकों ने अपने होटल हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर रखे थे. इसी के बाद मुजफ्फरनगर में एसएसपी अभिषेक सिंह ने मालिकों का का नाम लिखने की अपील की थी.

कांवड़ यात्रा

भगवान शिव के भक्त हर साल कांवड़ यात्रा पर जाते हैं. यह पवित्र यात्रा सावन के महीने में शुरू होती है. यात्रा में कांवड़िए भगवा वस्त्र पहन कर यह यात्रा करते हैं. इस साल कांवड़ यात्रा 22 जुलाई, 2024 से शुरू हो रही है. यात्रा को लेकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विशेष प्रबंध किए जा रहे हैं क्योंकि अधिकतर लोग दोनों राज्यों से कांवड़ लेकर गुजरते हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान हथियारों के प्रदर्शन पर रोक लगाने के संबंध में एक एडवाइजरी जारी की है. एक माह चलने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान डीजे और धार्मिक गाने तय सीमा के भीतर बजाए जाएंगे.

डीजीपी प्रशांत कुमार ने बताया कि यात्रा के मद्देनजर यातायात व्यवस्था में बदलाव किया गया है. भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक रहेगी. इसके अलावा 21 जुलाई की मध्य रात्रि से दिल्ली एक्सप्रेसवे, देहरादून एक्सप्रेसवे और चौधरी चरण सिंह कांवड़ मार्ग पर भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक रहेगी.

कांवड़ियों को भाला, त्रिशूल या किसी भी तरह का हथियार लेकर न चलने की सलाह दी है. कांवड़ यात्रा मार्ग पर डीजे बजाने पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा, लेकिन आवाज निर्देशों के अनुसार तय सीमा के भीतर ही होगी. यात्रा मार्गों पर शराब और मांस की दुकानें भी बंद रहेंगी. अयोध्या-बस्ती मार्ग पर सामान्य यातायात प्रतिबंधित रहेगा. केवल एंबुलेंस और अन्य आपातकालीन वाहनों को ही जाने की अनुमति रहेगी.

Friday, July 5, 2024

विद्या भारती : वर्ष 2024 की बोर्ड परीक्षाओं में विद्या भारती के 6600 छात्रों ने मेरिट में स्थान हासिल किया

मिशन चंद्रयान की लीड टीम में 9 पूर्व छात्रों का सहभाग, 2023 सिविल सेवा परीक्षा में 16 पूर्व छात्रों का चयन

समाज के सहयोग से समाज के हर वर्ग तक विद्या भारती

नई दिल्ली. विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान की ओर से कंस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता में संगठन के कार्य के बारे में जानकारी प्रदान की. विद्या भारती के अध्यक्ष डी. रामकृष्ण राव ने विद्या भारती के कार्य की विस्तृत जानकारी साझा की.

उन्होंने बताया कि गोरखपुर में 1952 में प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर प्रारम्भ हुआ. वर्तमान में भारत के 682 जिलों में 12,094 औपचारिक विद्यालयों का सञ्चालन किया जा रहा है. इनमें से लगभग 100 विद्यालय आवासीय हैं. 200 से अधिक सीबीएसई और शेष स्थानीय राज्य शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध हैं. सामाजिक उत्तरदायित्त्व को निभाते हुए विद्या भारती पूर्वोत्तर क्षेत्र तक सुदूर दुर्गम तथा जनजातीय क्षेत्रों, महानगरों की सेवा बस्तियों इत्यादि में 8000 से ज्यादा अनौपचारिक शिक्षा केंद्र निःशुल्क चला रही है. संवेदनशील व अशांत क्षेत्रों में और मणिपुर में शरणार्थी शिविरों में रह रहे 480 परिवारों के विद्यार्थियों के लिए स्कूल ऑन व्हील्स का नवीन प्रयोग भी किया गया है. एक आयाम के रूप में विद्या भारती लगभग पिछले चार दशकों से बालिका शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना विशेष योगदान दे रही है. सभी विद्यालयों में तकरीबन 34 लाख छात्र-छात्राएँ अध्ययनरत हैं. विद्या भारती लगभग 1 लाख 37 हज़ार शिक्षक बंधु- बहनों के उद्यम से विद्यार्थियों में नवीन शिक्षा कौशल और नैतिक चरित्र मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास कर रही है. यही नहीं, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती 54 महाविद्यालय तथा एक विश्वविद्यालय भी संचालित करती है. इसी प्रकार आई. टी. आई., कृषि विज्ञान केंद्र और विद्यालय स्तर पर कौशल विकास केन्द्रों के माध्यम से विद्या भारती जन-शिक्षण और विकास के कार्यक्रमों में लगातार अपना योगदान दे रही है. संविधान की 8वीं अनुसूची की 22 भाषाओं में से 20 भाषा माध्यमों में विद्या भारती शिक्षा का कार्य कर रही है.

डी. रामकृष्ण राव ने कहा कि “सा विद्या या विमुक्तये” के ध्येय वाक्य के साथ विद्या भारती लगातार शिक्षा और शिक्षण के विकास में योगदान के लिए प्रयासरत है. समय के साथ शिक्षा और शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता में सतत सुधार की आवश्यकता रहती है. इसी उद्देश्य से विद्या भारती अपने विस्तृत और व्यापक कार्यप्रणाली के अनुभवों को विभिन्न सरकारों के आमंत्रण पर उनसे साझा करती रही है. विद्या भारती एक समाज-केंद्रित व समाज-पोषित संस्था है. विद्या भारती शिक्षा और शैक्षणिक संस्थाओं में आधुनिक रूप से कार्यकुशल और भारतीय जीवन मूल्य केंद्रित नई पीढ़ी के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है. विद्या भारती द्वारा संचालित शिक्षण संस्थान शैक्षणिक संस्था के साथ-साथ सामाजिक चेतना के केंद्र भी हैं.

देश भर में वर्ष 2024 की हाई स्कूल मेरिट लिस्ट में 2755 तथा हायर सेकेंडरी मेरिट लिस्ट में 3922 छात्रों ने स्थान प्राप्त किया. सिविल सेवा परीक्षा 2023 में 16 पूर्व छात्रों ने स्थान पाया. शिक्षा के महत्त्वपूर्ण आयाम जैसे कि बच्चों में वैज्ञानिक समझ, रुचि तथा नवाचार को प्रोत्साहित करने के सतत प्रयास विद्या भारती करती रही है. उदाहरण के लिए, अटल टिंकरिंग लैब प्रकल्प की 770 विद्यालयों में स्थापना हो चुकी है. विद्या भारती के पूर्व छात्रों ने भी समाज के विभिन्न कार्य क्षेत्रों में अपनी सहभागिता से न सिर्फ विद्या भारती अपितु पूरे देश को गौरवान्वित किया है. मिशन-चंद्रयान की लीड टीम में विद्या भारती के 9 पूर्व छात्रों का सहभाग जैसी प्रासंगिक उपलब्धियां उदाहरण हैं. वर्तमान में पूर्व छात्र पोर्टल पर 9,33,209 पूर्व छात्र पंजीकृत हैं. यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि विद्या भारती के पूर्व छात्र समाज के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में कार्यरत हैं.

नवाचार

शैक्षणिक गुणवत्ता के विकास हेतु विद्या भारती द्वारा कुछ विशेष संस्थान भी खड़े किये गए हैं. जिनमें मुख्य हैं, ‘विद्वत परिषद’ – जो विद्या भारती के अकादमिक काउंसिल जैसा काम करता है. विभिन्न शैक्षणिक विषयों पर गोष्ठियां और विमर्श द्वारा समस्या-निदान व भविष्य की कार्यनीति पर चर्चा होती है.

भारतीय शिक्षा शोध संस्थान’, लखनऊ द्वारा शिक्षा के नए विषयों पर अनुसन्धान का क्रियान्वन व सञ्चालन होता है.

मानक परिषद’- जो विद्यालयों की गुणवत्ता के मानदंड निर्धारित करता है और ‘प्रशिक्षण’ – जिसमें नियुक्ति पूर्व तथा पश्चात आचार्यों को शिक्षण शैली व अन्य विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है. अन्य महत्त्वपूर्ण नवाचारों में विद्या भारती द्वारा आयोजित विज्ञान मेला, गणित मेला, और अखिल भारतीय संस्कृति महोत्सव इत्यादि हैं.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के 5-3-3-4 के प्रारूप अनुसार बाल्यावस्था से शिक्षा की शुरुआत बालवाटिका से करने के सुझाव पर विद्या भारती पहले से ही कार्यरत है. विद्या भारती द्वारा संचालित शिशु वाटिका- बस्ता विहीन, परीक्षा विहीन, गृह कार्य विहीन, तनाव विहीन, गतिविधि आधारित शिक्षा पद्धति का समावेश करती आ रही है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति अनुसार बाल्यावस्था की देखभाल और शिक्षा पर राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा अनुसार विद्या भारती अपने शिशु वाटिका के पाठ्यक्रम में अपेक्षित परिवर्तन और स्कूल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा के अनुरूप पाठ्यक्रम के विकास के लिए उपयुक्त कदम उठा रहा है.

12 से 14 जुलाई तक रांची में होगी प्रांत प्रचारक बैठक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिवर्ष होने वाली अखिल भारतीय स्तर की प्रांत प्रचारक बैठक इस वर्ष आगामी 12, 13 एवं 14 जुलाई 2024 को झारखंड प्रदेश की राजधानी रांची में आयोजित हो रही है. मई-जून में संपन्न संघ के प्रशिक्षण वर्गों की लगभग दो माह की श्रृंखला के पश्चात देशभर के सभी प्रांत प्रचारक बैठक में उपस्थित रहेंगे. संघ की संगठन योजना में कुल 46 प्रांत बनाए गए हैं.

बैठक में संघ के प्रशिक्षण वर्ग के वृत्तांत एवं समीक्षा, आगामी वर्ष की योजना का क्रियान्वयन, सरसंघचालक जी का वर्ष 2024-25 की प्रवास योजना जैसे विषयों पर चर्चा की जाएगी. साथ ही संघ शताब्दी वर्ष ( 2025-26) के आग्रह व उपक्रमों पर बैठक में विचार विनिमय होगा.

सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी, सभी सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी, सी आर मुकुंद जी, अरुण कुमार जी, रामदत्त जी, आलोक कुमार जी, अतुल लिमये जी सहित कार्यकारिणी के सदस्य बैठक में भाग लेने वाले हैं. बैठक हेतु सरसंघचालक जी का 8 जुलाई को राँची में आगमन होगा.

सुनील आंबेकर

अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख

Tuesday, July 2, 2024

अपनी मातृभूमि, प्राचीन संस्कृति के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले परमवीर अब्दुल हमीद हम सबके आदर्श – डॉ. मोहन भागवत जी

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धामूपुर, गाजीपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने परमवीर अब्दुल हमीद की जयन्ती के अवसर पर धामूपुर (गाज़ीपुर) में ‘मेरे पापा परमवीर’ पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम में कहा कि अपनी मातृभूमि, प्राचीनकाल से चलती आयी संस्कृति के लिए अपना प्राणोत्सर्ग करने वाले वीर योद्धा परमवीर अब्दुल हमीद हम सबके आदर्श हैं. उनके जीवन का आदर्श हम सबको एक सूत्र में बांधता है. कितना भी विपरीत समय हो, कुछ बातें हैं जो विस्मृत नहीं होतीं, मिटती नहीं हैं और समय आने पर हृदय से प्रकट होती हैं. परमवीर अब्दुल हमीद जी का बलिदान हमारे लिए सदैव स्मरणीय रहेगा. उनका जीवन अपनी मातृभूमि के लिए, राष्ट्र के लिए समर्पित हुआ. और हमारे लिए उदाहरण बन गया.

सरसंघचालक जी ने उपस्थित लोगों का आह्वान किया कि राष्ट्र जीवन में परमवीर अब्दुल हमीद के समर्पण, देश भक्ति एवं राष्ट्रीय एकता के भाव का स्मरण कर अपने जीवन में अगर कुछ कमी हो तो उसे प्रति वर्ष सुधारना चाहिए. हम एकदम अच्छे नहीं बन सकते, लेकिन थोड़ा-थोड़ा कर अच्छा बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि बलिदानियों की चिताओं पर जो हर वर्ष मेले लगते हैं, उनका यही प्रयोजन होता है.

अपनी मातृभूमि के लिए प्राणों का बलिदान करने वाले वीर योद्धा परमवीर सेनानी अब्दुल हमीद को जीवन पर्यन्त लोग याद करेंगे. बलिदानी अमर हो जाते हैं, उनका बलिदान अपने आप में एक महान कृति है. जीवन जीना है तो उपभोग के लिए नहीं जीना, आनन्द के लिए नहीं जीना, जीवन जीकर उसके अनुभवों के आधार पर इस सृष्टि को बनाने वाले रचनाकार से साक्षात मिलना है. तो ये बहुत कठिन तपश्चर्या है. इसमें कौन सफल होते हैं? ऐसे दो प्रकार के लोग होते हैं. एक वह होता है जो योगी बनकर सतत सक्रिय रहता है, आत्म साधना में एवं लोक सेवा में और दूसरा रण में सत्य के लिए, न्याय के लिए, पराक्रम पूर्वक सीने पर घाव झेलकर अपनी आत्माहुति देने वाला होता है.

अपनी मातृभूमि के लिए परमवीर अब्दुल हमीद ने जो पराक्रम कच्छ के रण में किया, अपने आप ही वो उत्तम गति के अधिकारी हो गए हैं. परन्तु उनकी स्मृति सतत जागृत रखना, उस स्मृति को जागृत रखते हुए अपने जीवन को भी इसी प्रकार स्वार्थ को छोड़कर राष्ट्र के लिए लगाना, ये जितने भी दिन, जितने भी वर्ष तथा युगों तक चलाते हैं, उतने युगों तक बलिदानी अमर होते हैं क्योंकि मनुष्य के जीवन की कल्पना यही है.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि मनुष्य का विकास पशुओं की तरह केवल अपनी चिंता करना नहीं, मनुष्य जितने ज्यादा लोगों की चिंता करता है, वह उतना ही बड़ा होता है. केवल अपनी चिंता करने वाले को कोई बड़ा नहीं कहता. उन्होंने कहा कि परमवीर अब्दुल हमीद जैसे लोग हमारे सामने उदाहरण हैं. एकाएक नहीं होता. जवान देश की सीमा पर लड़ते हैं. लड़ाई में गोली आ गई, लग गई, इसलिए मर गए, ऐसा नहीं होता. उन गोलियों के सामने जो आदमी खड़ा है, उसके सामने दो ही विकल्प होते हैं, वो चाहे तो भाग सकता है, लेकिन वह भागता नहीं. वह कहता है – मुझे सीमा के रक्षण का दायित्व मिला है. इतनी सारी गोलियां चल रहीं, पता नहीं किस गोली पर मेरा नाम लिखा होगा. लेकिन मुझे भागना नहीं है. प्राण देकर भी रक्षा करनी है, क्योंकि यह भूमि मेरी मातृभूमि है. इस भूमि में रहने वाले सब अपने भाई-बहन हैं, मैं उनके लिए जीता हूं, मरना है तो उनके लिए मरूंगा. अपने लिए जीना नहीं, अपने लिए मरना नहीं, ये मन बना होता है सैनिक का.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत की सेना के सैनिक अपने वेतन के लिए नहीं लड़ते, वे अपने देश के लिए लड़ते हैं. इसलिए उनका उदाहरण होता है. देश के लिए जिये और देश के लिए बलिदान दिया. जीवन ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अनुकरणीय उदाहरण बने. हम इसीलिए उनका स्मरण करते हैं.

इससे पूर्व सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने परमवीर अब्दुल हमीद एवं उनकी धर्मपत्नी स्व. रसूलन बीबी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्चन कर नमन किया. तदोपरान्त उनके जीवन पर आधारित ‘मेरे पापा परमवीर’ नामक पुस्तक का विमोचन किया. डॉ. जैनुल हसन से बातचीत के आधार पर डॉ. रामचंद्रन श्रीनिवासन ने पुस्तक का लेखन किया है. मंच पर कैप्टन मकसूद गाज़ीपुरी एवं परमवीर अब्दुल हमीद के ज्येष्ठ पुत्र जैनुल हसन भी उपस्थित थे.