Friday, November 2, 2012

काशी में ‘सक्षम’ का पंचम राष्ट्रीय अधिवेशन सम्पन्न


विकलांग व्यक्ति परिवार और समाज पर बोझ नहीं: सुहास राव हिरेमठ

वाराणसी, 27 अक्टूबर। निवेदिता शिक्षा सदन के भाउÿराव देवरस सभागार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख सुहासराव हिरेमठ ने सक्षम के पंचम राष्ट्रीय अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए कहा कि विकलांग व्यक्ति, परिवार और समाज पर बोझ नहीं है, यदि उसकी योग्यता, क्षमता व प्रतिभा के विकास का अवसर मिले तो वह स्वावलंबी बनकर राष्ट्र के पुर्ननिर्माण में योगदान कर सकता है।

उन्होंने कहा कि सेवा में बड़ी शक्ति है। शारीरिक सक्षमता का होना अपने हाथ में नहीं है यह भगवान के हाथ में है। अन्तःकरण से समाज को जगाना सक्षम का कार्य हजै। व्यक्ति को बुद्धि, मर्यादा और व्यवहार से जीवन दृष्टि आती है। जो दूसरों के दुःख से द्रवित हो, वही महात्मा है। समाज दुःखी तो हम दुःखी, समाज सुःखी तो हम सुःखी उसी आस्था और भाव से हम सब कार्य करने वाले हैं। अन्त में उन्होंने विकलांगों के समायोजन की दिशा में समाज के लोगों से आगे आने का आह्वान किया।

समारोह के मुख्य अतिथि आरोग्य मन्दिर गोरखपुर के निदेशक डाॅ. विमल कुमार मोदी ने कहा कि संयमित दिनचर्या व खान-पान आरोग्य का मूलमंत्र है। उन्होंने सफेद खाद्य पदार्थों-चीनी, मैदा और नमक के कम उपयोग की सलाह दी। साथ ही दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से बचने का भी सुझाव दिया।

अधिवेशन की विशिष्ट अतिथि रेखा सिंह चैहान ने कहा कि विकलांग को विकलांग कहने वाला स्वयं मानसिक रूप से विकलांग होता है आवश्यकता यह है कि यदि ग्राम पंचायत अक्षम लोगों के उन्नयन की जिम्मेदारी उठा लें तो विकलांगों की स्थिति में काफी सुधार हो सकता है।

शोभायात्रा: नेत्रदान हो संकल्प हमारा

गत 28 अक्टूबर को सायंकाल अधिवेशन मे आये प्रतिनिधियों की शोभायात्रा निकाली गयी जो निवेदिता, महमूरगंज, सिगरा तथा रथयात्रा होते हुए अधिवेशन स्थल पर समाप्त हुई । इस शोभायात्रा में प्रतिनिधियों के नारे लोगों के आकर्षण के केन्द्र में रहे- जीते-जीते रक्तदान, जाते-जाते नेत्रदान, क्या आप मरने के बाद दुनिया देखना चाहते हैं। नेत्रदान करें और करवायें। तुच्छदान है हीरे-मोती-श्रेष्ठ दान है नत्र ज्योति। नया है सबेरा नया है, गीत नेत्रदान हो सबकी रीत। शरीर है नश्वर अमर है आत्मा, नेत्रदान से मिलता परमात्मा। हम सबका ये नारा है, नेत्रदान हो संकल्प हमारा, नेत्रदान को अपने परिवार की परंपरा बनाएं स्वतः नेत्रदान करें और दूसरों को प्रेरित करें, नेत्रदान का संकल्प लें दृष्टि का उपहार दें। नेत्रदान के लिए यह शोभायात्रा निश्चित रूप से समाज को नया सन्देश देगा।

समापन: विकलांगों के नाम पर भ्रष्टाचार करने वालों को दण्डित किया जाय

गत 29 अक्टूबर को पंचम अधिवेशन के समापन अवसर पर सक्षम के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. मिलिन्द कसबेकर ने कहा कि विकलांग केवल गलत सोच नहीं है बल्कि यह भ्रामक कल्पना है। महगाई की मार सबसे अधिक विकलांगों पर पड़ रही है। आज वर्तमान स्थिति ऐसी है जिसमें विकलांगों के जीवन-मरण का प्रश्न है। एक समय लखपति, करोड़पति का जबाना था, अब अरबपति और खरबपति का जबाना है। जिसमें लाखों करोड़ रूपये का घोटाला दिन-प्रतिदिन सामने आ रहा है।

अपने कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कसबेकर ने कहा कि सक्षम की गतिविधियां आन लाईन है। विकलांगों को नौकरी की जानकारी दी जाय। अपने-अपने प्रान्तों में विकलांगों के हित में कार्य करने वाले संगठनों की सूची बनायी जाय। जरूरत मंद विकलांगों को नौकरी देने में मदद किया जाय। काशी में स्थित हनुमान प्रसाद पोद्वार अन्धविद्यालय की बड़ी ख्याति है। काशी में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करायी जाय।

सक्षम के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डाॅ. कमलेश ने कहा कि ‘सक्षम’ (समदृष्टि क्षमता विकास एवं अनुसंधान मण्डल) राष्ट्रीय संगठन है जो विकालांगों के विकास लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन एवं सामाजिक विकास का कार्य कर रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि देशभर में प्रतिवर्ष औसतन एक करोड़ लोगों की स्वभाविक मौत होती है। इनसे नेत्रदान के रूप में 35 हजार आंखें देश के 610 आईबैंकों को प्राप्त होती है। इन 35 में सिर्फ 14 हजार आंखों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है। शेष आंखें बीमारियों से ग्रसित होती हैं, इसलिए उनका प्रत्यारोपण नहीं हो पाता है। समदृष्टि क्षमता विकास एवं अनुसंधान मंडल (सक्षम) ने तय किया है कि नेत्रों की सुरक्षा और नेत्रदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए देश में व्यापक प्रयास किए जाएंगे।

उन्होंने कहा कि संगठन द्वारा चलाये जा रहे कार्यों की समीक्षा एवं भावी योजना बनाने के लिए अधिवेशन किया जाता है। काशी में सम्पन्न ‘सक्षम’ के पंचम राष्ट्रीय अधिवेशन में सरकार से तीन मांगों को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया-

1. विकालांगों को उनके आबादी के अनुसार मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करायी जाय।

2. विधान सभा, राज्यसभा और लोकसभा में विकलांग बन्धुओं का भी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करायी जाय।

3. विकलांगों को सहायता देने के नामपर भ्रष्टाचार करने वाली संस्थाओं को चिन्हित कर काली सूची में डाला जाय और जिम्मेदार लोगों को दण्डित किया जाय।

सक्षम के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीरामजी अग्रवाल ने संगठन की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस समय 33 प्रान्तों के 104 जिलों में सक्षम की इकाईयां गठित हो चुकी हैं। इनमें यूपी के 32 जिले शामिल हैं। ‘सक्षम’ देश भर में 18 नेत्र बैंकों के जरिए 56 स्थानों पर नेत्रदान शिविरों का आयोजन करता है। कार्यक्रम के अतिथियों का परिचय अधिवेशन संयोजक यशोवर्धन त्रिपाठी एवं संचालन डाॅ. दयाल सिंह पवान ने किया। रमेश सावंत वन्देमातरम् से कार्यक्रम का समापन हुआ। इस वर्ष विकलांग सशक्तीकरण वर्ष मनाया जा रहा है अधिवेशन में लगभग 1000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। (प्रस्तुति: लोकनाथ, विसंकें, काशी)

Wednesday, October 24, 2012

विजयादशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक प.पू. सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत का उद्बोधन


   (बुधवार दिनांक 24 अक्तुबर 2012) के अवसर पर दिये गये उद्बोधन -


आज के दिन हमें स्व. सुदर्शन जी जैसे मार्गदर्शकों का बहुत स्मरण हो रहा है। विजययात्रा में बिछुड़े हुये वीरों की स्मृतियॉं आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। विजयादशमी विजय का पर्व है। संपूर्ण देश में इस पर्व को दानवता पर मानवता की, दुष्टता पर सज्जनता की विजय के रूप में मनाया जाता है। विजय का संकल्प लेकर, स्वयं के ही मन से निर्मित दुर्बल कल्पनाओं ने खींची हुई अपनी क्षमता व पुरुषार्थ की सीमाओं को लांघ कर पराक्रम का प्रारंभ करने के लिये यह दिन उपयुक्त माना जाता है। अपने देश के जनमानस को इस सीमोल्लंघन की आवश्यकता है, क्योंकि आज की दुविधा व जटिलतायुक्त परिस्थिति में से देश का उबरना देश की लोकशक्ति के बहुमुखी सामूहिक उद्यम से ही अवश्य संभव है। यह करने की हमारी क्षमता है इस बात को हम सबने स्वतंत्रता के बाद के 65 वर्षों में भी कई बार सिद्ध कर दिखाया है। विज्ञान, व्यापार, कला, क्रीड़ा आदि मनुष्य जीवन के सभी पहलुओं में, देश-विदेशों की स्पर्धा के वातावरण में, भारत की गुणवत्ता को सिद्ध करनेवाले वर्तमान कालीन उदाहरणों का होना अब एक सहज बात है। ऐसा होने पर भी सद्य परिस्थिति के कारण संपूर्ण देश में जनमानस भविष्य को लेकर आशंकित, चिन्तित व कहीं-कहीं निराश भी है। पिछले वर्षभर की घटनाओं ने तो उन चिन्ताओं को और गहरा कर दिया है। देश की अंतर्गत व सीमान्त सुरक्षा का परिदृश्य पूर्णत: आश्व स्त करनेवाला नहीं है। हमारे सैन्य-बलों को अपनी भूमि की सुरक्षा के लिये आवश्यक अद्ययावत शस्त्र, अस्त्र, तंत्र व साधनों की आपूर्ति, उनके सीमास्थित मोर्चों तक साधन व अन्य रसद पहुँचाने के लिये उचित रास्ते, वाहन, संदेश वाहन आदि का जाल आदि सभी बातों की कमियों को शीघ्रातिशीघ्र दूर करने की तत्परता उन प्रयासों में दिखनी चाहिए। इसके विपरीत, सैन्यबलों के मनोबल पर आघात हो इस प्रकार, सेना अधिकारियों का कार्यकाल आदि छोटी तांत्रिक बातों को बिनाकारण तूल देकर नीतियों व माध्यमोें द्वारा अनिष्ट चर्चा का विषय बनाया गया हुआ हमने देखा है। सुरक्षा से संबंधित सभी वस्तुओं के उत्पादन में स्वावलंबी बनने की दिशा अपनी नीति में होनी चाहिए। सुरक्षा सूचना तंत्र में अभी भी तत्परता, क्षमता व समन्वय के अभाव को दूर कर उसको मजबूत करने की आवश्यकता 
ध्यान में आती है। हमारी भूमिसीमा एवं सीमा अर्न्तगत द्वीपों सहित सीमा क्षेत्र का प्रबन्धन पक्का करने व रखने की पहली आवश्यकता है। देश की सीमाओं की सुरक्षा, उनके सामरिक प्रबंध व रक्षण व्यवस्था के साथ-साथ, सुरक्षा की दृष्टि से अपने अंतरराष्ट्रीय राजनय के प्रयोग-विनियोग पर भी आजकल निर्भर होती है। उस दृष्टि से कुछ वर्ष पूर्व से एक बहुप्रतीक्षित नयी व सही दिशा की घोषणा "Look East Policy" नामक वाक्यप्रयोग से शासन के उच्चाधिकारियों से हुयी थी। दक्षिण पूर्व एशिया के सभी देशों में इस सत्य की जानकारी व मान्यता है कि भारत तथा उनके राष्ट्रजीवन के बुनियादी मूल्य समान है, निकट इतिहास के काल तक व कुछ अभी भी सांस्द्भतिक तथा व्यापारिक दृष्टि से उनसे हमारा आदान-प्रदान का घनिष्ट संबंध रहा है। इस दृष्टि से यह ठीक ही हुआ कि हमने इन सभी देशों से अपने सहयोगी व मित्रतापूर्ण संबंधों को फिर से दृढ़ बनाने का सुनिश्च य किया। वहां के लोग भी यह चाहते हैं। परन्तु घोषणा कितनी व किस गति से द्भति में आ रही है इसका हिसाब वहां और यहां भी आशादायक चित्र नहीं पैदा करता। इस क्षेत्र में हमसे पहले हमारा स्पर्धक बनकर चीन दल-बल सहित उतरा है यह बात ध्यान में लेते है तो यह गतिहीनता चिन्ता को और गंभीर बनाती है। अपनी आण्विक तकनीकी पाकिस्तान को देने तक उसने पाकिस्तान से दोस्ती बना ली है यह हम अब जानते हैं ही। नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका ऐसे निकटवर्ती देशों में भी चीन का इस दृष्टि से हमारे आगे जाना सुरक्षा की दृष्टि से हमारे लिये क्या अर्थ रखता है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। इन सभी क्षेत्रों में भारतीय मूल के लोग भी बड़ी मात्रा में बसते हैं, उन के हितों की रक्षा करते हुये इन हमारे परम्परागत स्वाभाविक मित्र देशों को साथ में रखने की व उन के साथ रहने की दृष्टि हमारे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी होनी चाहिये।
परन्तु राष्ट्र का हित हमारी नीति का लक्ष्य है कि नहीं यह प्रश्न  मन में उत्पन्न हो ऐसी घटनाएँ पिछले कुछ वर्षों में हमारे अपने शासन-प्रशासन के समर्थन से घटती हुई सम्पूर्ण जनमानस के घोर चिन्ता का कारण बनी है। जम्मू-कश्मीर की समस्या के बारे में पिछले दस वर्षों से चली नीति के कारण वहां उग्रवादी गतिविधियों के पुनरोदय के चिन्ह दिखायी दे रहे हैं। पाकिस्तान के अवैध कैंजे से कश्मीर घाटी के भूभाग को मुक्त करना; जम्मू, लेह-लद्दाख व घाटी के प्रशासन व विकास के भेदभाव को समाप्त करते हुये शेष भारत के साथ उस राज्य के सात्मीकरण की प्रक्रिया को गति से पूर्ण करना; घाटी से विस्थापित हिंदू पुनश्चक ससम्मान सुरक्षित अपनी भूमि पर बसने की स्थिति उत्पन्न करना; विभाजन के समय भारत में आये विस्थापितों को राज्य में नागरिक अधिकार प्राप्त होना आदि न्याय्य जनाकांक्षा के विपरित वहां की स्थिति को अधिक जटिल बनाने का ही कार्य चल रहा है। राज्य व केन्द्र के शासनारूढ़ दलों के सत्ता स्वार्थ के कारण राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करना व विदेशी दबावों में झुकने का क्रम पूर्ववत चल रहा है। इतिहास के क्रम में राष्ट्रीय वृत्ति की हिन्दू जनसंख्या क्रमश: घटने के कारण देश के उत्तर भूभाग में उत्पन्न हुयी व बढ़ती गयी इस समस्यापूर्ण स्थिति से हमने कोई पाठ नहीं पढ़ा है ऐसा देश के पूर्व दिशा के भूभाग की स्थिति देखकर लगता है। असम व बंगाल की सच्छिद्र सीमा से होनेवाली घुसपैठ व शस्त्रास्त्र, नशीले पदार्थ, बनावटी पैसा आदि की तस्करी के बारे में हम बहुत वर्षों से चेतावनियॉं दे रहे थे। देश की गुप्तचर संस्थाएँ, उच्च व सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों के राज्यपालों तक ने समय-समय पर खतरे की घंटियॉं बजायी थीं। न्यायालयों से शासन के लिये आदेश भी दिये गये थे। परंतु उन सबकी अनदेखी करते हुये सत्ता के लिये लांगूलचालन की नीति चली, स्पष्ट राष्ट्रीय दृष्टि के अभाव में गलत निर्णय हुये व ईशान्य भारत में संकट का विकराल रूप खड़ा हुआ सबके सामने है। घुसपैठ के कारण वहॉं पैदा हुआ जनसंख्या असंतुलन वहॉं के राष्ट्रीय जनसंख्या को अल्पमत में लाकर संपूर्ण देश में अपने हाथ पैर फैला रहा है। व्यापक मतांतरण के साये में वहां पर फैले अलगाववादी उग्रवाद की विषवेल को दब्बू नीतियॉं बार-बार संजीवनी प्रदान करती है। उत्तर सीमापर आ धड़की चीन की विस्तारवादी नीति का हस्तक्षेप भी होने की भनक वहॉं पर लगी है। विश्वी की “अल कायदा” जैसी कट्टरपंथी ताकतें भी उस परिस्थिति का लाभ लेकर वहॉं चंचुप्रवेश करना चाह रही है। ऐसी स्थिति में अपने सशस्त्र बलों की समर्थ उपस्थिति व परिस्थिति की प्रतिकार में उभरा जनता का दृढ़ मनोबल ही राष्ट्र की भूमि व जन की सुरक्षा के आधार के रूप में बचे हैं। समय रहते हम नीतियों में अविलम्ब सुधार करें। ईशान्य भारत में तथा भारत के अन्य राज्यों में भी घुसपैठियों की पहचान त्वरित करते हुये तथा मतदाता सुची सहित (राशन पत्र, पहचान पत्र आदि) अन्य प्रपत्रों से इन अवैध नागरिकों के नाम बाहर कर देने चाहिये व विदेशी घुसपैठियों को भारत के बाहर भेजने के प्रबंध करने चाहिये। विदेशी घुसपैठियों के पहचान के काम में किसी प्रकार का गड़बड़झाला न हो यह दक्षता बरती जानी चाहिये। सीमाओं की सुरक्षा के तारबंदी आदि के दृढ़ प्रबंध व रक्षण व्यवस्था में अधिक सजगता से चौकसी बरतने के उपाय अविलम्ब किये जाने चाहिये। राष्ट्रीय नागरिक पंजी (National Register of Citizens) को न्यायालयों द्वारा स्पष्ट रूप से निर्देशित, जन्मस्थल, माता-पिता के स्थान अथवा मातामहों-पितामहों के स्थानों के पुख्ता प्रमाणों के आधार पर तैयार करना चाहिए। ईशान्य भारत के क्षेत्र में व अन्यत्र भी यह पूर्व का अनुभव है कि जनमत के व न्यायालय के आदेशों के दबाव में विदेशी नागरिकों अथवा संशयास्पद मतदाताओं ( D voters) की  पहचान करने का दिखावा जब-जब प्रशासन या शासन करने गया तब-तब बंगलादेशी घुसपैठियों को तो उसने छोड़ दिया व वहॉं से पीड़ित कर निकाले गये व अब भारत में अनेक वर्षों से बसाये गये निरुपद्रवी व निरीह हिन्दुओं पर ही उनकी गाज गिरी।
हम सभी को यह स्पष्ट रूप से समझना व स्वीकार करना चाहिए कि विश्वओभर के हिन्दू समाज के लिये पितृ-भू व पुण्य-भू के रूप में केवल भारत-जो परम्परा से हिन्दुस्थान होने से ही भारत कहलाता है, हिन्दू अल्पसंख्यक अथवा निष्प्रभावी होने से जिसके भू-भागों का नाम तक बदल जाता है- ही है। पीड़ित होकर गृहभूमि से निकाले जाने पर आश्रय के रूप में उसको दूसरा देश नहीं है। अतएव कहीं से भी आश्रयार्थी होकर आनेवाले हिन्दू को विदेशी नहीं मानना चाहिये। सिंध से भारत में हाल में ही आये आश्रयार्थी हो अथवा बंगलादेश से आकर बसे हों, अत्याचारों के कारण भारत में अनिच्छापूर्वक धकेले गये विस्थापित हिन्दुओं को हिन्दुस्थान भारत में सस्नेह व ससम्मान आश्रय मिलना ही चाहिये। भारतीय शासन का यह कर्तव्य बनता है वह विश्व्भर के हिन्दुओं के हितों का रक्षण करने में अपनी अपेक्षित भूमिका का तत्परता व दृढ़ता से निर्वाह करें। इस सारे घटनाक्रम का एक और गंभीर पहलू है कि विदेशी घुसपैठियों की इस अवैध कारवाई को केवल वे अपने संप्रदाय के है इसलिये कहीं पर कुछ तत्त्वों ने उनके समर्थन का वातावरण बनाने का प्रयास किया। शिक्षा अथवा कमाई के लिये भारत में अन्यत्र बसे ईशान्य भारत के लोगों को धमकाया गया। मुंबई के आजाद मैदान की घटना प्रसिद्ध है। म्यांमार के शासन द्वारा वहां के रोहिंगियाओं पर हुयी कार्यवाही का निषेध भारत में जवान ज्योति का अपमान करने में गर्व महसूस करनेवाली भारत विरोधी ताकतों को अंदर से समर्थन देनेवाले तत्त्व अभी भी देश में विद्यमान है यह संदेश साफ है।
      “ यह चिन्ता, क्षोभ व ग्लानी का विषय है कि देश हित के विपरित नीति का प्रशासन द्वारा प्रदर्शन हुआ व राष्ट्र विरोधी पंचमस्तम्भियों के बढ़े हुये साहस के परिणाम स्वरूप उन तत्त्वों द्वारा कानून व शासन का उद्दंड अपमान हुआ। सब सामर्थ्य होने के बाद भी तंत्र को पंगु बनाकर देश विरोधी तत्त्वों को खुला खेल खेलने देने की नीति चलाने वाले लोग दुर्भाग्य से स्वतंत्र देश के अपने ही लोग हैं। समाज में राष्ट्रीय मनोवृति को बढ़ावा देना तो दूर हमारे अपने हिन्दुस्थान में ही मतों के स्वार्थ से, कट्टरता व अलगाव से अथवा विद्वेषी मनोवृत्ति के कारण पिछले दस वर्षों में हिन्दू समाज का तेजोभंग व बल हानि करने के नीतिगत कुप्रयास व छल-कपट बढ़ते हुये दिखाई दे रहे हैं। हमारे परमश्रद्धेय आचार्यों पर मनगढंत आरोप लगाकर उनकी अप्रतिष्ठा के ओछे प्रयास हुये। वनवासियों की सेवा करने वाले स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की षडयन्त्रपूर्वक हत्या की गयी, वास्तविक अपराधी अभी तक पकड़े नहीं गये। हिन्दू मन्दिरों की अधिग्रहीत संपत्ति का अपहार व अप-प्रयोग धड़ल्ले से चल रहा है, संशय व आरोपों का वातावरण, निर्माण किया गया, हिंदू संतों द्वारा निर्मित न्यासों व तिरुअनन्तपुरम् के पद्मनाभ स्वामी मंदिर जैसे मंदिरों की संपत्ति के बारे में हिन्दू समाज की मान्यताओं, श्रेष्ठ परंपरा व संस्कारों को कलुषित अथवा नष्ट करनेवाला वातावरण निर्माण करनेवाले विषय जानबूझकर समाज में उछाले गये। बहुसंख्य व उदारमनस्क होते हुये भी हिन्दुसमाज की अकारण बदनामी कर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले कानून लाने का प्रयास तो अभी भी चल रहा है। प्रजातंत्र, पंथनिरपेक्षता व संविधान के प्रति प्रतिबद्धता का दावा करने वाले ही मतों के लालच में तथाकथित अल्पसंख्यकों का राष्ट्र की संपत्ति पर पहला हक बताकर साम्प्रदायिक आधार पर आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं। लव जिहाद व मतांतरण जैसी गतिविधियों द्वारा हिन्दू समाज पर प्रच्छन्न आक्रमण करनेवाली प्रवृत्तियों से ही राजनीतिक साठगांठ की जाती है। फलस्वरूप इस देश के परम्परागत रहिवासी बहुसंख्यक राष्ट्रीयमूल्यक स्वभाव व आचरण का निधान बनकर रहने वाले हिन्दू समाज के मन में यह प्रश्नक उठ रहा है कि हमारे लिए बोलनेवाला व हमारा प्रतिनिधित्व करनेवाला नेतृत्व इस देश में अस्तित्व में है कि नहीं?” 
। हिन्दुत्व व हिन्दुस्थान को मिटाना चाहनेवाली दुनिया की एकाधिकारवादी, जड़वादी व कट्टरपंथी ताकतों तथा हमारे राज्यों के व केन्द्र के शासन में घुसी मतलोलुप अवसरवादी प्रवृत्तियों के गठबंधन के षडयंत्र के द्वारा और एक सौहार्दविरोधी कार्य करने का प्रयास हो रहा है। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर परिसर के निकट विस्तृत जमीन अधिग्रहीत कर वहां पर मुसलमानों के लिये कोई बड़ा निर्माण करने के प्रयास चल रहे हैं ऐसे समाचार प्राप्त हो रहे हैं। जब अयोध्या में राममंदिर निर्माण का प्रकरण न्यायालय में है तब ऐसी हरकतों के द्वारा समाज की भावनाओं से खिलवाड़ सांप्रदायिक सौहार्द का नुकसान ही करेगी। 30 सितंबर 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को ध्यान में लेते हुए वास्तव में हमारी संसद के द्वारा शीघ्रातिशीघ्र भव्य मंदिर के निर्माण की अनुमति रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास को देनेवाला कानून बने व अयोध्या की सांस्द्भतिक सीमा के बाहर ही मुसलमानों के लिये किसी स्थान के निर्माण की अनुमति हो यही इस विवाद में घुसी राजनीति को बाहर कर विवाद को सदा के लिये संतोष व सौहार्दजनक ढंग से सुलझाने का एकमात्र उपाय है। परंतु देश की राजनीति में आज जो वातावरण है वह उसके देशहितपरक, समाजसौहार्दपरक होने की छवि उत्पन्न नहीं करता। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के माध्यम से बड़ी विदेशी कंपनियों का खुदरा व्यापार में आना विश्वर में कहीं पर भी अच्छे अनुभव नहीं दे रहा है। ऐसे में खुदरा व्यापार तथा बीमा व पेंशन के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाना हमें लाभ पहुँचाने के बजाय अंततोगत्वा छोटे व्यापारियों के लिये बेरोजगारी, किसानों के लिये अपने उत्पादों का कम मूल्य मिलने की मजबूरी तथा ग्राहकों के लिये अधिक मंहगाई ही पैदा करेगा। साथ ही अपनी खाद्यान्न सुरक्षा के लिये भी खतरा बढ़ेगा। देश की प्राद्भतिक संपदा की अवैध लूट तथा विकास के नामपर जैव विविधता व पर्यावरण के साथ ही उनपर निर्भर लोगों को बेरोजगारी से लेकर तो विस्थापन तक समस्याओं के भेट चढ़ाना अनिर्बाध रूप से चल ही रहा है। देश के एक छोटे वर्गमात्र की उन्नति को जनता की आर्थिक प्रगति का नाम देकर हम जिस तेज विकास दर की डींग हांकते थे वह भी आज 9 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तक नीचे आ गया है। संपूर्ण देश नित्य बढ़ती महंगाई से त्रस्त है। अमीर और गरीब के बीच लगातार बढ़ते जा रहे अन्तर में विषमता की समस्या को और अधिक भयावह बना दिया है। न जाने किस भय से हड़बड़ी में इतने सारे अधपके कानून बिना सोच-विचार-चर्चा के लाये जा रहे हैं। इन तथाकथित “सुधारों” के बजाय में जहॉं वास्तविक सुधारों की आवश्यकता है उन क्षेत्रों में-चुनाव प्रणाली, करप्रणाली, आर्थिक निगरानी की व्यवस्था, शिक्षा नीति, सूचना अधिकार कानून के नियम- सुधार की मॉंगों की अनदेखी व दमन भी हो रहा है। अधूरे चिन्तन के आधार पर विश्व  में आज प्रचलित विकास की पद्धति व दिशा ही ऐसी है कि उससे यही परिणाम सर्वत्र मिलते हैं। ऊपर से अब यह पद्धति धनपति बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठानों के खेलों से उन्हीं के लिये अनुकूल बनाकर चलायी जाती है। हम जब तक अपनी समग्र व एकात्म दृष्टि के दृढ़ आधार पर जीवन के सब आयामों के लिये, अपनी क्षमता, आवश्यकता व संसाधनों के अनुरूप व्यवस्थाओं के नये कालसुसंगत प्रतिमान विकसित नहीं करेंगे तबतक न भारत को सभी को फलदायी होनेवाला संतुलित विकास व प्रगति उपलब्ध होगी न अधूरे विसंवादी जीवन से दुनिया को मुक्ति मिलेगी। चिन्तन के अधूरेपन के परिणामों को अपने देश में राष्ट्रीय व व्यक्तिगत शील के अभाव ने बहुत पीड़ादायक व गहरा बना दिया है। मन को सुन्न करनेवाले भ्रष्टाचार-प्रकरणों के उद्‌घाटनों का तांता अभी भी थम नहीं रहा है। भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाने के, कालाधन वापस देश में लाने के, भ्रष्टाचार को रोकनेवाली नयी कड़ी व्यवस्था बनाने के लिये छोटे-बड़े आंदोलनों का प्रादुर्भाव भी हुआ है। संघ के अनेक स्वयंसेवक भी इन आंदोलनों में सहभागी हैं। परन्तु भ्रष्टाचार का उद्गम शील के अभाव में है यह समझकर संघ अपने चरित्रनिर्माण के कार्य पर ही केन्द्रित रहेगा। लोगों में निराशा व व्यवस्था के प्रति अश्रद्धा न आने देते हुये व्यवस्था परिवर्तन की बात कहनी पड़ेगी अन्यथा मध्यपूर्व के देशों में अराजकता सदृश स्थिति उत्पन्न कर जैसे कट्टरपंथी व विदेशी ताकतों ने अपना उल्लू सीधा कर लिया वैसे होने की संभावना नकारी नहीं जा सकती। अराजनैतिक सामाजिक दबाव का व्यापक व दृढ़ परन्तु व्यवस्थित स्वरूप ही भ्रष्टाचार उन्मूलन का उपाय बनेगा। उसके फलीभूत होने के लिये हमें व्यापक तौर पर शिक्षाप्रणाली, प्रशासनपद्धति तथा चुनावतंत्र के सुधार की बात आगे बढ़ानी होगी। तथा व्यापक सामाजिक चिन्तन-मंथन के द्वारा हमारी व्यवस्थाओं के मूलगामी व दूरगामी परिवर्तन की बात सोचनी पड़ेगी। अधूरी क्षतिकारक व्यवस्था के पीछे केवल वह प्रचलित है इसलिये आँख मूंद कर जाने के परिणाम समाज जीवन में ध्यान में आ रहे है। बढ़ता हुआ जातिगत अभिनिवेश व विद्वेष, पिछड़े एवं वंचित वर्ग के शोषण व उत्पीड़न की समस्या, नैतिक मूल्यों के ह्‌रास के कारण शिक्षित वर्ग सहित सामान्य समाज में बढती हुई महिला उत्पीडन, बलात्कार, कन्या भू्रणहत्या, स्वच्छन्द यौनाचार ,हत्याएँ व आत्महत्याएँ , परिवारों का विघटन, व्यसनाधीनता की बढती प्रवृत्ति, अकेलापन के परिणाम स्वरूप तनावग्रस्त जीवन आदि हमारे देश में न दिखी अथवा अत्यल्प प्रमाण वाली घटनाएँ अब बढ़ते प्रमाण में दृग्गोचर हो रही है। हमें अपने शाश्वलत मूल्यों के आधार पर समाज के नवरचना की काल सुसंगत व्यवस्था भी सोचनी पड़ेगी।

अतएव सारा उत्तरदायित्व राजनीति, शासन, प्रशासन पर डालकर हम सब दोषमुक्त भी नहीं हो सकते। अपने घरों से लेकर सामाजिक वातावरण तक क्या हम स्वच्छता, व्यवस्थितता, अनुशासन, व्यवहार की भद्रता व शुचिता, संवेदनशीलता आदि सुदृढ़ राष्ट्रजीवन की अनिवार्य व्यवहारिक बातों का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं? सब परिवर्तनों का प्रारम्भ हमारे अपने जीवन के दृष्टिकोण व आचरण के प्रारंभ से होता है यह भूल जाने से, मात्र आंदोलनों से काम बननेवाला नहीं है। स्व. महात्मा गांधी जी ने 1922 के Young India के एक अंक में सात सामाजिक पापों का उल्लेख किया था। वे थे। Politics without Principles Wealth without Work pleasure without Conscience तत्त्वहीन राजनीतिश्रमविना संपत्तिविवेकहीन उपभोग शील Knowledge without Character Commerce without Morality Science Without Humanity Worship without Sacrifice विना ज्ञाननीतिहीन व्यापारमानवता विना विज्ञानसमर्पणरहित पूजा आज के अपने देश के सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य का ही यह वर्णन लगता है। ऐसी परिस्थिति में समाज की सज्जनशक्ति को ही समाज में तथा समाज को साथ लेकर उद्यम करना पड़ता है। इस चुनौति को हमें स्वीकार कर आगे बढ़ना ही पड़ेगा। भारतीय नवोत्थान के जिन उद्गाताओं से प्रेरणा लेकर स्व. महात्मा जी जैसे गरिमावान लोग काम कर रहे थे उनमें एक स्वामी विवेकानन्द थे। उनके सार्ध जन्मशती के कार्यक्रम आनेवाले दिनों में प्रारंभ होने जा रहे हैं। उनके संदेश को हमें चरितार्थ करना होगा। निर्भय होकर, स्वगौरव व आत्मविश्वाउस के साथ, विशुद्ध शील की साधना करनी होगी। कठोर निष्काम परिश्रम से जनों में जनार्दन का दर्शन करते हुए नि:स्वार्थ सेवा का कठोर परिश्रम करना पड़ेगा धर्मप्राण भारत को जगाना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य इन सब गुणों से युक्त व्यक्तियों के निर्माण का कार्य है। यह कार्य समय की अनिवार्य आवश्यकता है। आप सभी का प्रत्यक्ष सहभाग इसमें होना ही पड़ेगा। निरंतर साधना व कठोर परिश्रम से समाज अभिमंत्रित होकर संगठित उद्यम के लिये खड़ा होगा तब सब बाधाओं को चीरकर सागर की ओर बढ़नेवाली गंगा के समान राष्ट्र का भाग्यसूर्य भी उदयाचल से शिखर की ओर कूच करना प्रारम्भ करेगा। अतएव स्वामीजी के शब्दों में “उठो जागो व तबतक बिना रूके परिश्रम करते रहो जबतक तुम अपने लक्ष्य को नहीं पा लोगे।” उत्तिष्ठत! जाग्रत!! प्राप्यवरान्निबोधत!!!
- भारत माता की जय -

पूर्व सरसंघचालक की अस्थियां संगम में विसर्जित इलाहाबाद 27 सितम्बर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक कुपहल्ली सीतारमैय्या सुदर्शन की अस्थियां गुरूवार को वैदिक मंत्रों के साथ गंगा-यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में विसर्जित कर दी गयी। इस अवसर पर संघ परिवार से जुड़े पूरे राज्य के वरिष्ठ पदाधिकारी एवं भाजपा नेता भारी संख्या में संगम तट पर मौजूद रहे। अस्थियों को विसर्जित करने के लिए संगम स्थल पर बांस और तख्त का एक विशेष मंच बनाया गया था जहां संघ मुख्यालय नागपुर के प्रचारक सुनील नियाड़े व संघ के अन्य पदाधिकारी स्टीमर से अस्थि कलश लेकर पहुंचे। संगम में अस्थियों को प्रवाहित करने से पहले वैदिक विद्वानों एवं आचार्यों द्वारा आवश्यक पूजन की प्रक्रिया भी पूरी की गयी। इससे पहले पूर्व सरसंघचालक का अस्थि कलश ज्वाला देवी इण्टर कालेज से संगम तक एक सजे हुए विशेष वाहन से लाया गया। साथ में हजारों की संख्या में संघ परिवार के स्वयंसेवक और भारतीय जनता पार्टी के नेता व कार्यकर्ता अस्थि कलश के साथ चल रहे थे। श्री सुदर्शन का अस्थि कलश बुधवार शाम को नागपुर से सुनील नियाड़े लेकर यहां पहुंचे। अस्थि कलश को रात भर के लिए संघ के सिविल लाइंस कार्यालय पर रखा गया था। गुरूवार को प्रातः सात बजे ज्वाला देवी इण्टर कालेज में अस्थि कलश को लोगों के दर्शन एवं श्रद्धांजलि के लिए रखा गया था। स्वावलम्बन के पक्के पक्षधर थे सुदर्शन-डा.जोशी इलाहाबाद 27 सितम्बर (हि.स.)। भाजपा के वरिष्ठ नेता डा0 मुरली मनोहर जोशी का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक कुपहल्ली सीतारमैय्या सुदर्शन स्वावलम्बन के पक्के पक्षधर थे। वह व्यक्ति, समाज और देश में स्वावलम्बन की स्थिति कैसे आए इसके लिए भी सतत् चिन्तनशील रहते थे। आवश्यकता पड़ने पर लोगों का मार्गदर्शन भी करते थे। श्रद्धांजलि देते डा0 मुरली मनोहर जोशी डा0 जोशी गुरूवार को नगर के ज्वाला देवी इण्टर काॅलेज प्रांगण में केएस सुदर्शन की श्रद्धाजंलि सभा में बोल रहे थे। डा0 जोशी ने कहा कि पूर्व सरसंघचालक चाहते थे कि देश की अपनी भाषा और अपना विज्ञान हो। वह विज्ञान के अतिरिक्त कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, उद्योग और ऊर्जा सभी क्षेत्र में देश को स्वावलम्बी देखना चाहते थे। वैकल्पिक ऊर्जा के वे प्रबल पक्षधर थे। पूर्व सरसंघचालक से अपने निकटतम संबंधों की चर्चा करते हुए देश के पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा0 जोशी ने बताया कि जब वे केन्द्र में मंत्री थे श्री सुदर्शन उन्हें अक्सर शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुझाव देते रहते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गरिमामयी सरसंघचालक पद से हटने के बाद भी उनका कृषि के प्रति अटूट प्रेम नहीं हटा और वे भोपाल प्रवास के दौरान अपने छोटे से आवास के छत पर भी जैविक खेती का प्रयोग करते थे और यदि उनके पास कोई कृषि वैज्ञानिक पहुंचता था तो उसे वह उस खेती को दिखाकर यह कहना भी नहीं भूलते थे कि हमारे देश के किसान इस तरह की खेती करके भारतवर्ष को स्वावलम्बी बना सकते हैं। डा0 जोशी ने बताया कि श्री सुदर्शन अद्भुत राष्ट्रप्रेमी थे। शायद इसीलिए वे देश में हिन्दू और मुस्लिम समन्वय के प्रति सतत् चिन्तनशील रहे। साथ ही देश के सारे समाज को हिन्दुत्व की धारा से जोड़े रखना और उसके लिए सदैव प्रयत्नशील रखना श्री सुदर्शन के व्यक्तित्व का अनूठा लक्षण था। उ0प्र0 के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने उक्त अवसर पर कहा कि लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्मयोग का सहारा लेते हैं लेकिन श्री सुदर्शन के अन्दर इन तीनों का सम्मिश्रण विद्यमान था। यद्यपि उनके अन्दर कर्मयोग ज्यादा प्रधान था। श्री सिंह ने बताया कि पूर्व सरसंघचालक सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विषयों पर जो भी चिन्तन प्रस्तुत करते थे वह सदैव मौलिक हुआ करता था। भारत की चुनाव प्रणाली भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हो, इसके वह प्रबल पक्षधर रहे। साथ ही श्री सुदर्शन अपने विचारों को बेबाक रूप से प्रस्तुत करते थे। संघ के क्षेत्र संघचालक ईश्वर चंद्र गुप्त एवं सह क्षेत्र संघचालक प्रो. देवेन्द्र प्रताप सिंह ने श्री सुदर्शन के साथ कार्य करने का अनुभव बांटा और बताया कि हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम था। इसीलिए उनके सामने बात करते वक्त हम सबको अधिक सावधान रहना पड़ता था। प्रो0 सिंह ने बताया कि पूर्व सरसंघचालक देश में चिकित्सा और अभियांत्रिकी की शिक्षा को भी हिन्दी माध्यम से करवाना चाहते थे। पूर्व में क्षेत्र कार्यवाह रामकुमार ने श्री सुदर्शन के जीवन परिचय पर प्रकाश डाला। श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए सच्चा बाबा अरैल के महन्त गोपालजी महाराज ने आशा व्यक्त की कि अपने अधूरे कार्यों को पूरा करने हेतु श्री सुदर्शन इस धरती पर पुनः किसी न किसी रूप में अवश्य आयेंगे। कार्यक्रम का संचालन विभाग कार्यवाह नागेन्द्र जायसवाल ने किया। कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार, कलराज मिश्र, प्रदेश अध्यक्ष डा0 लक्ष्मी कान्त बाजपेयी, डा0 महेन्द्र सिंह, प्रदेश के पूर्वमंत्री डा0 नरेन्द्र सिंह गौर, जय प्रकाश, डा0 यज्ञ दत्त शर्मा, उदयभान करवरिया, योगेश शुक्ला, प्रांत संघचालक विश्वनाथ लाल निगम, गोरक्ष प्रांत संघचालक डा0 उदय प्रताप सिंह, अवध प्रांत संघचालक प्रभुचंद्र श्रीवास्तव, उ0प्र0 लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 केबी पाण्डेय, क्षेत्र प्रचारक शिव नारायण, काशी प्रांत प्रचारक अभय कुमार, गोरक्ष प्रांत प्रचारक अनिल, सह प्रान्त प्रचारक राजेन्द्र, अवध प्रांत प्रचारक संजय, विभाग प्रचारक मनोज, कानपुर प्रान्त कार्यवाह काशीराम, विहिप के प्रान्त संगठन मंत्री मनोज कुमार, भारतीय मजदूर संघ के अनुपम कुमार, प्रो0 गिरीश चन्द्र त्रिपाठी, श्री चिन्तामणी सिंह, अम्बरीश, रामानन्दाचार्य, विनोद प्रकाश श्रीवास्तव, विभाग संघचालक राम शिरोमणि, ओमप्रकाश, दिनेश कुमार, अशोक मेहता सहित हजारों की संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित रहे। गौरतलब है कि पूर्व सरसंघचालक श्री सुदर्शन का विगत 15 सितम्बर को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में निधन हो गया था। उनका अंतिम संस्कार 16 सितम्बर को संघ के मुख्यालय नागपुर में सम्पन्न हुआ। बुधवार शाम को उनका अस्थि कलश संगम में प्रवाहित करने हेतु इलाहाबाद लाया गया था।






इलाहाबाद 27 सितम्बर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक कुपहल्ली सीतारमैय्या सुदर्शन की अस्थियां गुरूवार को वैदिक मंत्रों के साथ गंगा-यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में विसर्जित कर दी गयी। इस अवसर पर संघ परिवार से जुड़े पूरे राज्य के वरिष्ठ पदाधिकारी एवं भाजपा नेता भारी संख्या में संगम तट पर मौजूद रहे। 
अस्थियों को विसर्जित करने के लिए संगम स्थल पर बांस और तख्त का एक विशेष मंच बनाया गया था जहां संघ मुख्यालय नागपुर के प्रचारक सुनील नियाड़े व संघ के अन्य पदाधिकारी स्टीमर से अस्थि कलश लेकर पहुंचे। संगम में अस्थियों को प्रवाहित करने से पहले वैदिक विद्वानों एवं आचार्यों द्वारा आवश्यक पूजन की प्रक्रिया भी पूरी की गयी। 
इससे पहले पूर्व सरसंघचालक का अस्थि कलश ज्वाला देवी इण्टर कालेज से संगम तक एक सजे हुए विशेष वाहन से लाया गया। साथ में हजारों की संख्या में संघ परिवार के स्वयंसेवक और भारतीय जनता पार्टी के नेता व कार्यकर्ता अस्थि कलश के साथ चल रहे थे। 
श्री सुदर्शन का अस्थि कलश बुधवार शाम को नागपुर से सुनील नियाड़े लेकर यहां पहुंचे। अस्थि कलश को रात भर के लिए संघ के सिविल लाइंस कार्यालय पर रखा गया था। गुरूवार को प्रातः सात बजे ज्वाला देवी इण्टर कालेज में अस्थि कलश को लोगों के दर्शन एवं श्रद्धांजलि के लिए रखा गया था। 
स्वावलम्बन के पक्के पक्षधर थे सुदर्शन-डा.जोशी
इलाहाबाद 27 सितम्बर (हि.स.)। भाजपा के वरिष्ठ नेता डा0 मुरली मनोहर जोशी का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक कुपहल्ली सीतारमैय्या सुदर्शन स्वावलम्बन के पक्के पक्षधर थे। वह व्यक्ति, समाज और देश में स्वावलम्बन की स्थिति कैसे आए इसके लिए भी सतत् चिन्तनशील रहते थे। आवश्यकता पड़ने पर लोगों का मार्गदर्शन भी करते थे। 

श्रद्धांजलि देते डा0 मुरली मनोहर जोशी
डा0 जोशी गुरूवार को नगर के ज्वाला देवी इण्टर काॅलेज प्रांगण में केएस सुदर्शन की श्रद्धाजंलि सभा में बोल रहे थे। डा0 जोशी ने कहा कि पूर्व सरसंघचालक चाहते थे कि देश की अपनी भाषा और अपना विज्ञान हो। वह विज्ञान के अतिरिक्त कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, उद्योग और ऊर्जा सभी क्षेत्र में देश को स्वावलम्बी देखना चाहते थे। वैकल्पिक ऊर्जा के वे प्रबल पक्षधर थे।
पूर्व सरसंघचालक से अपने निकटतम संबंधों की चर्चा करते हुए देश के पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा0 जोशी ने बताया कि जब वे केन्द्र में मंत्री थे श्री सुदर्शन उन्हें अक्सर शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुझाव देते रहते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गरिमामयी सरसंघचालक पद से हटने के बाद भी उनका कृषि के प्रति अटूट प्रेम नहीं हटा और वे भोपाल प्रवास के दौरान अपने छोटे से आवास के छत पर भी जैविक खेती का प्रयोग करते थे और यदि उनके पास कोई कृषि वैज्ञानिक पहुंचता था तो उसे वह उस खेती को दिखाकर यह कहना भी नहीं भूलते थे कि हमारे देश के किसान इस तरह की खेती करके भारतवर्ष को स्वावलम्बी बना सकते हैं। 
डा0 जोशी ने बताया कि श्री सुदर्शन अद्भुत राष्ट्रप्रेमी थे। शायद इसीलिए वे देश में हिन्दू और मुस्लिम समन्वय के प्रति सतत् चिन्तनशील रहे। साथ ही देश के सारे समाज को हिन्दुत्व की धारा से जोड़े रखना और उसके लिए सदैव प्रयत्नशील रखना श्री सुदर्शन के व्यक्तित्व का अनूठा लक्षण था।
उ0प्र0 के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने उक्त अवसर पर कहा कि लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्मयोग का सहारा लेते हैं लेकिन श्री सुदर्शन के अन्दर इन तीनों का सम्मिश्रण विद्यमान था। यद्यपि उनके अन्दर कर्मयोग ज्यादा प्रधान था। श्री सिंह ने बताया कि पूर्व सरसंघचालक सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विषयों पर जो भी चिन्तन प्रस्तुत करते थे वह सदैव मौलिक हुआ करता था। भारत की चुनाव प्रणाली भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हो, इसके वह प्रबल पक्षधर रहे। साथ ही श्री सुदर्शन अपने विचारों को बेबाक रूप से प्रस्तुत करते थे। 
संघ के क्षेत्र संघचालक ईश्वर चंद्र गुप्त एवं सह क्षेत्र संघचालक प्रो. देवेन्द्र प्रताप सिंह ने श्री सुदर्शन के साथ कार्य करने का अनुभव बांटा और बताया कि हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम था। इसीलिए उनके सामने बात करते वक्त हम सबको अधिक सावधान रहना पड़ता था। प्रो0 सिंह ने बताया कि पूर्व सरसंघचालक देश में चिकित्सा और अभियांत्रिकी की शिक्षा को भी हिन्दी माध्यम से करवाना चाहते थे। 
पूर्व में क्षेत्र कार्यवाह रामकुमार ने श्री सुदर्शन के जीवन परिचय पर प्रकाश डाला। श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए सच्चा बाबा अरैल के महन्त गोपालजी महाराज ने आशा व्यक्त की कि अपने अधूरे कार्यों को पूरा करने हेतु श्री सुदर्शन इस धरती पर पुनः किसी न किसी रूप में अवश्य आयेंगे। कार्यक्रम का संचालन विभाग कार्यवाह नागेन्द्र जायसवाल ने किया। 
कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार, कलराज मिश्र, प्रदेश अध्यक्ष डा0 लक्ष्मी कान्त बाजपेयी, डा0 महेन्द्र सिंह, प्रदेश के पूर्वमंत्री डा0 नरेन्द्र सिंह गौर, जय प्रकाश, डा0 यज्ञ दत्त शर्मा, उदयभान करवरिया, योगेश शुक्ला, प्रांत संघचालक विश्वनाथ लाल निगम, गोरक्ष प्रांत संघचालक डा0 उदय प्रताप सिंह, अवध प्रांत संघचालक प्रभुचंद्र श्रीवास्तव, उ0प्र0 लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 केबी पाण्डेय, क्षेत्र प्रचारक शिव नारायण, काशी प्रांत प्रचारक अभय कुमार, गोरक्ष प्रांत प्रचारक अनिल, सह प्रान्त प्रचारक राजेन्द्र, अवध प्रांत प्रचारक संजय, विभाग प्रचारक मनोज, कानपुर प्रान्त कार्यवाह काशीराम, विहिप के प्रान्त संगठन मंत्री मनोज कुमार, भारतीय मजदूर संघ के अनुपम कुमार, प्रो0 गिरीश चन्द्र त्रिपाठी, श्री चिन्तामणी सिंह, अम्बरीश, रामानन्दाचार्य, विनोद प्रकाश श्रीवास्तव, विभाग संघचालक राम शिरोमणि, ओमप्रकाश, दिनेश कुमार, अशोक मेहता सहित हजारों की संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित रहे।
गौरतलब है कि पूर्व सरसंघचालक श्री सुदर्शन का विगत 15 सितम्बर को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में निधन हो गया था। उनका अंतिम संस्कार 16 सितम्बर को संघ के मुख्यालय नागपुर में सम्पन्न हुआ। बुधवार शाम को उनका अस्थि कलश संगम में प्रवाहित करने हेतु इलाहाबाद लाया गया था।


Saturday, September 15, 2012

पूर्व सरसंघचालक कुप्प् सी. सुदर्शन जी का निधन


Source: VSK- BHOPAL      Date: 9/15/2012 12:04:44 PM
$img_titleभोपाल, 15 सितंबर 2012 :  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक पूजनीय श्री. सुदर्शन जी का आज, शनिवार सुबह 6:50 पर हृदयाघात से रायपुर प्रवास के दौरान निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। स्व. श्री. सुदर्शन जी का अंतिम संस्कार कल, रविवार  दिनांक 16 सितंबर 2012  को अपरान्ह 3:00 बजे नागपुर में होगा।
स्व. श्री. सुदर्शन संघ प्रमुख के पद से हटने के बाद से भोपाल में रह रहे थे और संघ के विभिन्न कार्यों में मार्गदर्शक की भूमिका में थे। कल शाम वह एक पुस्तक के विमोचन के सिलसिले में रायपुर गए थे। संयोग से उनका जन्म भी रायपुर में ही हुआ था।
आज सुबह जब अपना नित्य का टहलने का क्रम पूरा कर सुदर्शन जी वापस लौटे तभी उन्हें कुछ थकावट और बैचेनी महसूस हुई। उसके कुछ देर बाद ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
संक्षिप्त परिचयबाल्यकाल से ही अद्भुत प्रतिभा संपन्न तथा अनेक विषयों का गहन अध्ययन अन्वेषक वृत्ति से करनेवाले, कई भाषाओं के मर्मज्ञ, प्रभावी वक्ता, तथा कई पुस्तकों के रचयिता निवर्तमान सरसंघचालक श्री. सुदर्शन जी का जन्म छत्तीसगढ़ प्रान्त के रायपुर नगर में १८ जून १९३१ को हुआ था। आपका पूरा नाम कुप्पहल्ली सीतारामय्या सुदर्शन है। उनका परिवार कर्नाटक प्रान्त का रहने वाला माना जाता है। परन्तु वास्तव में उनके पूर्वज तमिलनाडु के संकेती के रहने वाले है और इसलिए उनकी मातृभाषा तमिल और तेलुगु मिश्रित शकैटी है। सुदर्शन जी के पिताजी श्री. सीतारामय्या मध्य प्रदेश शासन के वन विभाग में सेवारत होने के कारण मध्य प्रदेश आये थे। अपने सेवाकाल में प्रान्त के कई स्थानों पर रहे। उनके साथ रहते हुए ही दमोह, मंडला, रायपुर आदि स्थानों पर सुदर्शन जी की प्राथमिक शिक्षा पूरी हुई। आज के महाराष्ट्र का चंद्रपुर उस समय मध्य प्रदेश में ही हुआ करता था। अत: जब पिता जी चंद्रपुर में पदस्थ थे तब वहां से उन्होंने अपनी हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके पश्चात सन १९५४ में जबलपुर से दूरसंचार विषय में अभियांत्रिकी स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
तीन भाई व एक बहन में सबसे बड़े सुदर्शन जी ही थे। बचपन से ही उनका सम्बन्ध संघ से हो गया था। परिणाम यह हुआ की अभियांत्रिकी उपाधि प्राप्त करते ही उन्होंने जीवनभर अविवाहित रहते हुए संघ के माध्यम से समाज कार्य करने के लिए प्रचारक जीवन स्वीकार कर लिया और उनकी पहली नियुक्ति छत्तीसगढ़ प्रान्त के रायगढ़ जिला प्रचारक के रूप में हुई। वे रीवा विभाग प्रचारक भी रहे। १९६४ में ही उन की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर उन्हें मध्य भारत के प्रान्त प्रचारक की जिम्मेदारी सौंपी गई।
मध्य भारत के प्रान्त प्रचारक रहते हुए ही सन १९६९ में उन्हें अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का दायित्व भी दिया गया। सन १९७५ में आपातकाल की घोषणा हुई और पहले ही दिन इंदौर में उन को गिरफ्तार कर लिया गया। पुरे उन्नीस माह उन्होंने कारावास में बिताये। आपातकाल समाप्ति के पश्चात सन १९७७ में उन्हें पूर्वांचल [असम, बंगाल और पूर्वोत्तर राज्य] का क्षेत्र प्रचारक बनाया गया। क्षेत्र प्रचारक के रूप में उन्होंने वहाँ के समाज में सहज रूप से संवाद करने के लिए असमिया, बंगला भाषाओँ पर प्रभुत्व प्राप्त किया तथा पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातियों की अलग अलग भाषाओँ का भी पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। कन्नड़, बंगला, असमिया, हिंदी, इंग्लिश, मराठी, इत्यादि कई भाषाओँ में उन्हें धाराप्रवाह बोलते हुए देखना यह कई लोगों के लिए एक आश्चर्य तथा सुखद अनुभूति का विषय होता था।
सन १९७९ में उन्हें अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख व १९९० में सह-सरकार्यवाह का दायित्व सौंपा गया। अपनी लंबी शारीरिक अस्वस्थता के कारण श्री. राजेंद्र सिंह जी ने १० मार्च २००० को अवकाश लेने की घोषणा करते हुए अपने स्थान पर सुदर्शन जी को सरसंघचालक मनोनीत किया। इतनी प्रतिभा और संघ के सर्वोच्च स्थान पर होने के बावजूद उनकी सहजता व सरलता के कारण समाज के विभिन्न स्तरों के लोग तथा स्वयंसेवक उन्हें विना संकोच मिलकर अपनी अपनी बात रखते थे।
उनके ९ वर्ष के कार्यकाल में संघ के ७५ वर्ष की पूर्ति के निमित्त राष्ट्र जागरण अभियान, द्वितीय सरसंघचालक श्री. गुरूजी की जन्मशती, आदि कई अभियानों के माध्यम से संघ कार्य का विस्तार हुआ। ग्रामविकास के कार्य, स्वदेशी तंत्रज्ञान, आदि विषयों के माध्यम से साम्यवाद तथा पाश्चिमात्य जगत के भौतिकवाद से अलग हटकर हिंदू समग्र चिंतनपर आधारीत विकासपथ के अन्वेषण को उन्होंने प्रोत्साहित किया।
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RSS former Sarasanghachalak KS Sudarshanji no more
Raipur, September 15, 2012 : Former Sarsanghachalak Shri. Sudarshanji breathed his last this morning at 6.55 am at Raipur in Chattisgarh state. He was 81. He went for a morning walk as usual today, returned and was doing his usual course of Yogasana and Pranayama exercise, when he suffered from a massive cardiac attack. The funeral will be held at Nagpur on 16th September 2012 at 3 pm.
Shri. Kupahalli Sitaramayya Sudarshan ji was born on 18 June 1931 at Raipur. He started working as a Pracharak [full time worker of RSS] in 1954. In year 2000 he became Sarsanghachalak. In 2009 he handed over the responsibility to Shri. Mohan ji Bhagwat because of receding health and advancing age.

About Sudarshan ji :
Born on June 18, 1931 in Raipur, it was then part of Madhya Pradesh, at the age of 9, Sudarshan ji joined RSS. He did his Bachelor of Engineering in Telecommunications (honours) from Sagar University. He became RSS- pracharak in 1954. His first posting as a pracharak was in Raigarh district. In 1964, he was become Prant Pracharak of Madhya Bharat at a fairly young age. This was followed by a stint in the North-East (1977) and then, he took over as the Akhil Bharaiya Boudhik Pramukh (chief of RSS think-tank) 2 years later. In 1990, he was appointed Sah-Sarakaryavah (Joint General Secretary) of the organisation. He has the rare distinction of having held both posts of sharirik (physical exercises) and baudhik (intellectual) pramukh on different occasions.
On March 10, 2000 KS Sudarshan ji became 5th Sarsanghachalak (Supreme Chief) of the RSS. He succeeded Prof. Rajendra Singh. He then stepped down on due to ill-health in March 2009. Mohan ji Bhagwat is presently heading the organisation since March 2009.
Condolence message by Shri Bhayyaji Joshi :
With utmost sadness I inform the Swamsevaks and the people of the country about the sad demise of Man. K.S. Sudarshan Ji (former Sar Sanghchalak of RSS). He was 81 years old.
Man. Sudarshan Ji was at Raipur on his routine pravaas. After his morning walk he experienced severe unease and soon his life mission came to an abrupt end.
Man. Sudarshan Ji was an engineer by training. He spent more than five decades in the service of our Motherland as Pracharak. He was Sar Sanghchalak of RSS between 2000 and 2009.
His body will be brought to Nagpur today evening and will be kept for darshan at the Resham Bagh Ground in Nagpur till afternoon tomorrow.
The final journey of his mortal remains will commence at 3 PM tomorrow (September 16, 2012) from Resham Bagh grounds.

-Suresh (Bhayyaji) Joshi
Sar Karyavah, RSS
15 September 2012
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$img_titleस्व. श्री. सुदर्शन जी के कुछ स्मृति-चित्र-
१) आत्मीय व्यक्तित्व : मा. सुदर्शन जी बैठक में.
२) बालकों मे बालक समान : ३ अगस्त २०१२- मैसूर मे बाल स्वयंसेवकों के साथ मा. सुदर्शन जी.
३) सादगी का स्वाभाविक परिचय : सरसंघचालक पद छोडने के बाद किसी भी बैठक में मा. सुदर्शन जी सामान्य स्वयंसेवक के भांति सहभागी होते थे.
४) सुसंवादी : मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, बंगलोर द्वारा २०१२ में मा. सुदर्शन जी का सत्कार.
५) समरसता का ध्यास : महाराष्ट्र के दलित पंथर के संस्थापक नेता तथा साहित्यिक श्री. नामदेव ढसाल श्री. सुदर्शन जी से मिलते हुए.
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Saturday, July 28, 2012

असम में हुए हिंसा के विरोध में काशी के संतों ने भरी हुंकार



       
 वाराणसी 28 जुलाई (विश्व संवाद केन्द्र, काशी)। असम में हो रहे हिंसा के विरोध में काशी के सभी प्रमुख मठों, मंदिरों और अखाड़ों के साधु संतों औए सामाजिक संगठनों ने सुमेरु मठ से अस्सी घाट तक विरोध मार्च निकाला। मार्च का नेतृत्व कर रहे श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती जी महराज ने कहा कि असम में अपने ही घर से बेघर  किये गए मूल निवासियों को तत्काल समुचित आवास व्यवस्था प्रदान की जाय तथा उन्हें अपने घरों में वापस सुरक्षात्मक प्रबंध सहित रहने की व्यवस्था एक सप्ताह के अन्दर की जाय। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि इसमें विलम्ब हुआ तो देश के लाखों राष्ट्र भक्त हिन्दू असम के लिए कूच करेंगे और ऐसी स्थिति में संत समाज अपना चातुर्मास्य व्रत त्यागने को मजबूर होगा। जिसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी जो संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का केंद्र सरकार हनन माना जायगा।      
       इस अवसर पर काशी विद्वत परिषद् के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. कामेश्वर उपाध्याय ने कहा कि असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों  की तलाश कर उन्हें बाहर किया जाय अथवा उन्हें बंदी बनाकर राष्ट्र द्रोह कानून के तहत जेलों में बंद किया जाय। असम में कानून व्यवस्था कायम रखने में वहां की सरकार असफल रही है। अतः राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था शांति स्थापन काल तक पूरी तरह सेना को सौप दिया जाय। 
        उन्होंने केंद्र और असम सरकार को आगाह करते हुए कहा कि असम में हो रहे नर संहार के लिए जिम्मेदार लोगों को तत्काल खोजकर उनके खिलाफ कठोर दमनात्मक कारवाई की जाय, ताकि उनके हिंसक मनोबल को नियंत्रित किया जा सके, अन्यथा ढिलाई बरतने पर ये घुसपैठिये देश के अन्य प्रान्तों में अपना जल फैलाकर राष्ट्रीय अस्थिरता और अशांति की भयावह स्थिति पैदा कर सकते हैं।
        संतों के इस विरोध मार्च में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व वेड विभागाध्यक्ष प्रो. व्यास मिश्र, दंडी सन्यासी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मठ मछलीबंदर के महंत स्वामी विमल देव, अनंत विज्ञान मठ के महंत स्वामी इन्द्र प्रकाश आश्रम (नाग बाबा), आचार्य आद्या प्रसाद द्विवेदी, आचार्य नन्द किशोर, आनंद त्रिपाठी, जयप्रकाश त्रिपाठी, स्वामी दुर्गेश्वरानंद तीर्थ , स्वामी श्यामदेव आश्रम, स्वामी शिव आश्रम सहित अनेक संत और सदगृहस्त शामिल थे। 

Saturday, July 7, 2012

संघ के सह सरकार्यवाह डाॅ. कृष्ण गोपाल जी के भाषण का विडीयो



 वाराणसी, 6 मई।  निवेदिता शिक्षा सदन के भाऊराव देवरस सभागार में विश्व संवाद केन्द्र, काशी द्वारा आदि पत्रकार देवर्षि नारद जयन्ती (ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया) की पूर्व संध्या पर आयोजित पत्रकार-सम्मान समारोह एवं  ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा और पत्रकारिता के दायित्व’’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी  के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डाॅ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर देश चिन्तित है। देश आन्तरिक सुरक्षा के गम्भीर संकट का सामना कर रहा है। अंग्रेजों ने देश को धर्म, समाज, जातपात वर्ग आदि कई टुकड़ों में बांटने का षड्यंत्र किया। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री सर विंस्टन चर्चिल इस षड्यंत्र के पीछे थे लेकिन तीन साल पहले उसी ब्रिटेन के वित्तमंत्री ने भारत दौरे के बाद कहा कि किसी भी आपदा के समय यह देश एकसूत्र में बंध जाता है और संकट से जल्दी ही उबर जाता है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता समाज के पीछे देखने वाली आँख है। समाज ने जो नहीं देखा उसे आगे लाने का काम पत्रकार करता है। पत्रकार इतिहास में जाकर खोज करता है और भूतकाल से समाचार निकालकर समाज के सामने रखता है। 

Wednesday, July 4, 2012

वनवासी कल्याण आश्रम को उपहार राशि का दान

 वनवासी कल्याण आश्रम के विभाग संगठन मंत्री आनन्द जी को उपहार राशि भेंट करती हुई  सुनीता मिश्रा एवं चन्द्र प्रकाश मिश्र
        उत्तर प्रदेश के काशी महानगर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र शारीरिक प्रमुख चन्द्रमोहन जी के भतीजे का गत्दिनों विवाह सम्पन्न हुआ। चन्द्रमोहन जी संघ के प्रचारक हैं उनकी प्रेरणा से वर चन्द्र प्रकाश मिश्र एवं वधु सुनीता मिश्रा ने समाज के लिए अनुकरणीय कार्य किया। हुआ यूं कि 30 जून 2012 को माधवकुंज पार्क में प्रीतिभोज कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में आये स्वजनों ने आशीर्वाद स्वरूप वर और वधु को उपहार और राशि भेट की गयी। आशीर्वाद राशि के रूप में 11,122 रुपये मिले थे। चन्द्रप्रकाश और सुनीता ने इस रूपये को सहज भाव से वनवासी कल्याण आश्रम के विभाग संगठन मंत्री आनन्द जी के माध्यम से ‘‘सेवाकुंज आश्रम’’ कारीडाड़, चपकी, सोनभद्र छात्रावास को दान कर दिया। चन्द्र प्रकाश की बहन रंजना मिश्रा ने भी अपने उपहार राशि को छात्रावास को दे दिया। उल्लेखनीय है कि यह छात्रावास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक रज्जूभैया के इच्छा और प्रेरणा से सन् 1999 में सेवाकुंज आश्रम की स्थापना सोनभद्र में हुई। स्वयंसेवकों के अथक परिश्रम, सेवाभावना समाज के सहयोग से यह आश्रम प्रगति पथ की ओर बढ़ रहा है। इस छात्रावास में वनवासी छात्र रहते हैं। आश्रम की विश्वसनियता सेवा करने की भावना तथा इसकी ख्याति ही प्रगति की प्रतीक बन गयी है।  
       सेवा समर्पण संस्थान द्वारा संचालित सेवाकुंज आश्रम, कारीडाड़, चपकी, सोनभद्र जिले के बभनी ब्लाक में स्थित है। 1996 के जुलाई माह में वनवासी क्षेत्र के विषय में कार्यकर्ताओं में चर्चा चली एवं यह तय किया गया कि बभनी ब्लाॅक में वनवासी क्षेत्र के विकास के लिये कुछ कार्य किया जाय, उस क्षेत्र में 80 प्रतिशत वनवासी रहते हैं। यहाँ पर शिक्षा स्वास्थ्य एवं स्वावलम्बन के नाम पर कुछ भी नहीं हैं यहाँ पर अशिक्षा, बेरोजगारी एवं स्वास्थ्य के लिए कोई भी सुविधा नहीं है। इसके अभाव में भोले-भोले वनवासी बन्धु मिशनरियों के चंुगुल में फसकर इसाई बनते जा रहे है। सामाजिक उपेक्षा के कारण यह क्षेत्र राष्ट्रीय विचारधारा से कटता जा रहा है। 95 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार है, शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है। उपरोक्त समस्याओं पर विचार कर यह योजना बनी की सुदूर दक्षिणांचल में एक केन्द्र बनाया जाय जो अपने प्रयासों से उनके जीवन स्तर को सुधारने का कार्य करें। अप्रैल 1999 में यहाँ जमीन क्रय कर प्रकल्प की स्थापना की गयी।
      छात्रावास- सर्वप्रथम 4 विद्यार्थियों को लेकर छात्रावास की स्थापना की गई। वर्तमान समय में 80 विद्यार्थी 60 गाँवों के 12 जनजाति के लोग निवास कर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
ल् विद्यालय- जुलाई 2000 में प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की गयी। प्रथम वर्ष में 65 छात्र थे, इस समय 125 छात्र आसपास के गाँवों से आकर पढ़ते हैं। पढ़ाने के लिये तीन अध्यापक एवं एक अध्यापिका कार्यरत हैं। शुरू में विद्यालय भवन का अभाव था लेकिन दानदाताओं के सहयोग से भवन का निर्माण हुआ एवं 23 मार्च को उसका लोकार्पण प्रान्तीय अध्यक्ष श्री आनन्द भूषण शरण, वरिष्ठ अधिवक्ता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के करकमलों से हुआ।
     मंदिर- सितम्बर 1999 में वनवासियों की मांग पर पूजन करने हेतु शिवलिंग की स्थापना परम पूजनीय शंकराचार्य श्री वासुदेवानन्द जी के करकमलों द्वारा रूद्राभिषेक से की गई। यहां पर वनवासी बन्धु प्रति सोमवार रात्रि में कीर्तन करते हैं एवं नित्य पूजन चल रहा है।
     स्वास्थ्य- वनवासियों के स्वास्थ्य सुधार के लिए एक डाॅक्टर सदैव उपलब्ध रहते हैं जो होमियो पैथिक एवं एलोपैथिक दवाओं से उपचार करते है। वहाँ पर 8 मरीजों को परीक्षण करने की व्यवस्था अभी बनपाई है। प्रतिमाह वहाँ पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डाॅक्टरों की टीम जाकर उनका निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण एवं उपचार करती है। वर्ष में 2 बार आँखों का परीक्षण एवं आपरेशन होता है और निःशुल्क चश्में प्रदान किये जाते हैं। वर्ष 2001-12 में 45 आँखों के आपरेशन किये गये वर्ष में 2 बार हाइड्रोसील एवं हार्निया के आपरेशन भी किये, जिसका 25 वनवासियों ने लाभ उठाया।
     पौधशाला- जमीन सुधार हेतु यहाँ पर पौधशाला चालू की है। अल्प में करीब 3000 पेड़ लगाये गये है। जिसमें फलदार   एवं छायादार पौधे लगे हैं।
ल् स्वावलम्बन- वनवासी महिलाओं एवं बालिकाओं को आत्मनिर्भर करने हेतु यहाँ पर महिला सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र 2001 में चालू किया गया जिसमें 12 महिलाओं ने प्रशिक्षण लिया एवं उसके दूसरे दौर में 10 महिलाओं एवं छात्र छात्राओं के द्वारा प्रशिक्षण कार्य चल रहा है। प्रशिक्षण पूर्ण होने पर उनको आधी किमत पर मशीन दी जाती है।
    खेल-कूद केन्द्र- उस समय बालकों के स्वास्थ्य के लिए 2 खेलकूद केन्द्र चलते हैं जिसमें खेलकूद के अलावा व्यायाम एवंहणं बौद्धिक विकास का कार्य भी चलता है। खेलकूद प्रतिभा के विकास हेतु तीरन्दाजी एक बड़ा केन्द्र खेल विभाग में सहयोग चल रहा है। जिसमें 92 तीरन्दाज नियमित प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। वहां से निकलकर 90 तीरन्दाज उ0प्र0 खेत विभाग के तीरन्दाजी छात्रावास में चयनित होकर राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण, रजत पदक प्राप्त किये है। - प्रस्तुति: लोकनाथ, 63 माधवकुंज, माधव मार्केट कालोनी, लंका, वाराणसी

Friday, June 15, 2012

सुलतानपुर में संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष का समापन


आंतरिक व बाह्य संकटों से घिरा है भारत: कन्नन 

 सुलतानपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह के.सी. कन्नन ने कहा कि आज देश आंतरिक एवं बाहरी संकटों से घिरा हुआ है। इसके लिए सबकुछ सरकार ही करें, ऐसा सोच कर बैठे रहना हमारा काम नहीं है। समाज में परिवर्तन की जरूरत है। देश चारों तरफ की सीमाओं पर दुश्मनों से घिरा हुआ है। जिसमें चीन सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है। सीमाओं पर दुश्मन तो देश के अन्दर भ्रष्टाचार व घोटाले का घुन लगा हुआ है। तमाम संकटों में संघ ने राष्ट्र रक्षा के लिए काम किया है और आगे भी करता रहेगा।  
उक्त बातें उन्होंने सुलतानपुर नगर के विवेकानन्दनगर स्थित सरस्वती विद्या मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय विवेकानन्दनगर परिसर में पिछले 21 मई से चल रहे काशी प्रान्त के प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का आज समापन था। इस अवसर पर आयोजित समारोह में श्री कन्नन ने स्पष्ट रूप से कहा कि चीन भारत के खिलाफ लड़ने का मौका तलाश रहा है। देश की सीमा कराची पोस्ट व दक्षिण सीमा पर आना शुरू हो गया है। चीन कई बार भारत की सीमा में घुस चुका है। भारत सरकार कुछ भी नकी करती है। पाकिस्तान जन्मजात दुश्मन है। अब तालिबान के पास भी अणुबम हो गया है। जिसका खतरा सबसे ज्यादा भारत के लिए है। ऐसी परिस्थिति में सबकुछ सरकार पर छोड़ देना ठीक नहीं है। हम देश के जिम्मेदार नागरिकों को जागरूक होकर आगे आना होगा। 
उन्होंने कहा कि देश के अन्तर की स्थिति भी कम नहीं है। देश में भ्रष्टाचार व घोटाला अपने चरम पर है। जिसके लिए आन्दोलन भी चल रहे है किन्तु यह सब कानून बनाने से खत्म होने वाला नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वह कानून बनाने के विरोधी नहीं हैं किन्तु देश मंे कानून की कमी नहीं है। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लोगों में मानसिक परिवर्तन की जरूरत है। इसके लिए शिक्षा में सबसे ज्यादा सुधार की जरूरत है। आज भी हम पाश्चात्य संस्कृति के पीछे चल रहे हैं। हमें अपने देश के त्यागी व गौरवपूर्ण गाथाओं को शिक्षा में लाना होगा। चुनावी प्रक्रिया पर भी प्रतिक्रिया करते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव में भी सुधार की जरूरत है। आज सांसद व विधायक करोड़ों खर्च करके जनप्रतिनिधि बन रहे हैं इसी कारण वह सत्ता में आते ही अपना हिसाब बराबर करने में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे है। उन्हीं के कारण उपर से नीचे तक भ्रष्टाचार है। उन्होंने जम्मू कश्मीर की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त करते हुए नागरिकों को झकझोरने का प्रयास किया। 
श्री कन्नन ने कहा कि संघ का एकमात्र उद्देश्य भारत को परमवैभव तक ले जाना है। इसलिए सम्पूर्ण हिन्दू समाज सका संगठन करना है। संघ एक सोसियो साइकोथेरिपी है। संघ सुधारवादी, राष्ट्रवादी संगठन है। केरल के एक कट्टर माक्र्सवादी प्रोफेसर ने सुधार के लिए अपने बेटे को भेजा जहाॅं वह सुधार गया। शाखा ने मलेशिया में होनी वाली आत्महत्या समाप्त होगी। यह बड़ा परिवर्तन मलेशिया ने डब्ल्यू एच ओ को बताया। भारत में संघ का सबसे बड़ा टेªड यूनियन भारतीय किसान संघ है। 
समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात चिकित्सक डाॅ0 आर0ए0 वर्मा ने कहा कि आज देश की सीमाएं जिस तरह से दुश्मनों से घिरी पड़ी हैं, उसमें हमें ऐसे नवजवानों की जरूरत है। जो राष्ट्रसेवा के लिए काम कर सके। 
इसके पहले वर्गाधिकारी नरेन्द्र बहादुर सिंह ने वर्ग का वृत्त प्रस्तुत करते हुए बताया कि प्रथम वर्ष का संघ शिक्षा वर्ग देश के कुल 41 प्रान्तों में प्रान्त सह नियोजित है और काशी प्रान्त के कुल 24 जिलों (12 शासकीय जिलों) से कुल 446 स्वयंसेवक सुदूर दक्षिण के वनांचल (सोनभद्र) से लेकर सुलतानपुर तथा कौशाम्बी से लेकर गाजीपुर तक के स्वयंसेवक अपने खर्च पर पूर्ण गणवेश की तैयारी कर, अपना-अपना यात्रा एवं अन्य शुल्क वहन कर प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह प्रशिक्षण वर्ग 21 मई से प्रारम्भ होकर 10 जून 2012 को पूर्ण हुआ। इन तरुण स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देने हेतु कुल 50 शिक्षक एवं लगभग 50 व्यवस्था के अन्य लोग दिन-रात अपनी सेवायें प्रदान किये। जिसमें 406 विद्यार्थी तथा 40 गैर विद्यार्थी भाग लिये। स्वयंसेवकों की दिनचर्या प्रातः 4.00 बजे जागरण से प्रारम्भ होकर रात्रि 10.00 बजे दीप विसर्जन के साथ पूर्ण होती है। इस अत्यधिक व्यस्त दिनचर्या में योजनानुसार 2.30 घण्टे प्रातः एवं 1.30 घण्टे सायं, कुल 4 घण्टे का विभिन्न शारीरिक कार्यक्रम जिसमें योग, दण्डयोग, समता एवं आसन आदि का प्रशिक्षण देकर चुस्त, दुरूस्त, अनुशासित कार्यकर्ता का निर्माण किया जा रहा है। शारीरिक के साथ-साथ स्वयंसेवकों के अन्दर राष्ट्रभाव को पुष्ट करने हेतु विभिन्न बौद्धिक कार्यक्रम जैसे 1 घण्टे का बौद्धिक, चर्चा, प्रवचन आदि होता है। इन सम्पूर्ण कार्यक्रमों को स्वयंसेवकों ने बडे़ ही मनोयोग के साथ आत्मसात किया, कुछ का प्रदर्शन आप स्वयं देख सकते हैं। 
कार्यक्रम में प्रान्त संघचालक विश्वनाथ लाल निगम, प्रान्त प्रचारक अभय जी, प्रान्त व्यवस्था प्रमुख जय प्रकाश, प्रान्त शारीरिक प्रमुख रत्नाकर, सह प्रान्त कार्यवाह बांकेलाल, वर्ग कार्यवाह डाॅ0 रमाशंकर पाण्डेय, वर्ग बौद्धिक प्रमुख डाॅ0 सत्य पाल तिवारी, विभाग प्रचारक धनंजय, मनोज, सुभाष सहित संघ के तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। 
प्रस्तुति: सत्य प्रकाश गुप्ता, सुलतानपुर।

देश की पहचान हिंदुत्व :बाल कृष्ण त्रिपाठी

                                                               प्रेस विज्ञप्ति 
वाराणसी 09 जून (वि.सं.के.) | तुलसीपुर  स्थित निवेदिता शिक्षा सदन के परिसर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्वावधान में २० दिवसीय संघ शिक्षा वर्ग (विशेष) प्रथम एवं द्वितीय वर्ष के समापन अवसर पर मुख्य वक्ता संघ के अखिल भारतीय सह-व्यस्था प्रमुख बाल कृष्ण त्रिपाठी ने कहा कि  देश की पहचान  हिंदुत्व से है| संघ समाजजीवन में प्रत्येक वस्तु समाज के लिये संचित करता है | संस्थापक  डॉक्टर हेडगवार ने  यह माना था कि इस देश की पहचान हिन्दुओं से है और यह शब्द उपासना वाचक न होकर भौगोलिक एवं सांस्कृतिक है |  

उन्होंने कहा कि भारत माता कभी भी गुलाम न हो इसलिए स्वयं सेवक सदा सतर्क रहता है इस कार्य के लिये युवा, वृद्ध, सभी को संघ में प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे की वो राष्ट्र के लिये तत्पर तथा सतर्क रहे इन शिक्षा वर्गों में गर्मी,जाड़ा की चिता त्याग कर स्वयं सेवक भारत माता के लिये कार्य करता है    

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आपदा आदि में  स्वयं सेवक पीड़ितों की सहायता करता है| संघ ने पाकिस्तानी  हमले का दौर में सेना का हरसम्भव मदद किया संघ समाज में एकता और पारिवारिता का भाव बढ़ाता है| इसी भाव के कारण राष्ट्र पाकिस्तान के खिलाफ विजयी हुआ| उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में समाज में विश्वास की कमी हुई है इसलिए समाज में विश्वास बढ़ाना जरूरी है और विजय के लिये शक्ति संगठन जरूरी है| 
समापन समारोह के अध्यक्ष राजर्षिटंडन विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के संघचालक प्रोफ़ेसर देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि यह जीवन का पहला अवसर है, जब इस प्रकार के कार्यक्रम में अध्यक्षीय भाषण का मौका मिला| इस शिक्षा वर्ग में अपने व्यय पर आये स्वयं सेवक आज सबका सामने एक उदाहरण हैं |

समापन समारोह में प्रतिभागियों द्वारा पथ संचलन, दंड प्रहार,योग, प्राणायाम,आसन.सूर्य नमस्कार आदि का प्रदर्शन किया गया| तीन सप्ताह के इस विशेष संघ शिक्षा वर्ग में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर सहित भारत के आठ राज्यों एवं नेपाल राष्ट्र के 423 शिक्षार्थियों ने भाग लिया| 

मंच पर विशेष शिक्षा वर्ग के सर्वाधिकारी श्रीकृष्ण सिंघल एवं वर्गाधिकारी श्री मालेंदु प्रताप उपस्थित थे| मंचासीन अधिकारियों का परिचय वर्ग के कार्यवाहक लालराम ने कराया| 

इस  अवसर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र के कार्यवाहक श्री राम दुलार वर्मा जी, सुभाष वोहरा,  क्षेत्रीय धर्मजागरण प्रमुख रामलखन जी, प्रान्त कार्यवाहक श्री विरेन्द्र जी आदि उपस्थित थे|  समापन समारोह का संचालन गेशव गोपाल जी एवं आभार ज्ञापन दीनदयाल जी ने किया| 

विश्व संवाद केंद्र काशी

सरकारी वार्ताकारों द्वारा तुष्टीकरण के आधार पर तैयार की गई रपट का अर्थ है एक और पाकिस्तान


नरेन्द्र सहगल

जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के दायरे से बाहर करने (1952) तुष्टीकरण की प्रतीक और अलगाववाद की जनक अस्थाई धारा 370 को विशेष कहने, भारतीय सुरक्षा बलों की वफादारी पर प्रश्नचिन्ह लगाने, पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर एक पक्ष बनाने, पाक अधिकृत कश्मीर को पाक प्रशासित मानने और प्रदेश के 80 प्रतिशत देशभक्त नागरिकों की अनदेखी करके मात्र 20 प्रतिशत पृथकतावादियों की ख्वाइशों/ जज्बातों की कदर करने जैसी सिफारिशें किसी देशद्रोह से कम नहीं हैं।

लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त वार्ताकारों ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए एक रपट तैयार की है। यदि मुस्लिम तुष्टीकरण में डूबी सरकार ने उसे मान लिया तो देश के दूसरे विभाजन की नींव तैयार हो जाएगी। यह रपट जम्मू-कश्मीर की अस्सी प्रतिशत जनसंख्या की इच्छाओं, जरूरतों की अनदेखी करके मात्र बीस प्रतिशत संदिग्ध लोगों की भारत विरोधी मांगों के आधार पर बनाई गई है। तथाकथित प्रगतिशील वार्ताकारों द्वारा प्रस्तुत यह रपट श्स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्र का श्रोड मैपश् है।
रपट का आधार अलगाववाद
1952-53 में जम्मू केन्द्रित देशव्यापी प्रजा परिषद महाआंदोलन के झंडे तले डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाए रखने के लिए अपना बलिदान देकर जो जमीन तैयार की थी उसी जमीन को बंजर बनाने के लिए अलगाववादी मनोवृत्ति वाले वार्ताकारों ने यह रपट लिख दी है। इस रपट के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति, संसद, संविधान, राष्ट्र ध्वज, सेना के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिए गए हैं। देश के संवैधानिक संघीय ढांचे अर्थात एक विधान, एक निशान और एक प्रधान की मूल भावना को चुनौती दी गई है।
आईएसआई के एक एजेंट गुलाम नबी फाई के हमदर्द दोस्त दिलीप पडगांवकर, वामपंथी चिंतक एम. एम. अंसारी और मैकाले परंपरा की शिक्षाविद् राधा कुमार ने अपनी रपट में जो सिफारिशें की हैं वे सभी कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक दलों, अलगाववादी संगठनों, आतंकी गुटों और कट्टरपंथी मजहबी जमातों द्वारा पिछले 64 वर्षों से उठाई जा रहीं भारत विरोधी मांगें और सरकार, सेना विरोधी लगाए जा रहे नारे हैं। स्वायत्तता, स्वशासन, आजादी, पाकिस्तान में विलय, भारतीय सेना की वापसी, सुरक्षा बलों के विशेषाधिकारों की समाप्ति, जेलों में बंद आतंकियों की रिहाई, पाकिस्तान गए कश्मीरी आतंकी युवकों की घर वापसी, अनियंत्रित नियंत्रण रेखा और जम्मू-कश्मीर एक विवादित राज्य इत्यादि सभी श्अलगाववादी जज्बातों, ख्वाइशों को इस रपट का आधार बनाया गया है।
तुष्टीकरण की पराकाष्ठा
रपट के अनुसार एक संवैधानिक समिति का गठन होगा जो 1953 के पहले की स्थिति बहाल करेगी। 1952 के बाद भारतीय संसद द्वारा बनाए गए एवं जम्मू-कश्मीर में लागू सभी कानूनों को वापस लिया जाएगा जो धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दी गई स्वायत्तता का हनन करते हैं। इस सीमावर्ती प्रदेश के विशेष दर्जे को स्थाई बनाए रखने के लिए धारा 370 के साथ जुड़े अस्थाई शब्द को विशेष शब्द में बदल दिया जाएगा, ताकि स्वायत्तता कायम रह सके।
रपट में स्पष्ट कहा गया है कि प्रदेश में तैनात भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बलों की टुकडि़यां कम की जाएं और उनके विशेषाधिकारों को समाप्त किया जाए। वार्ताकार कहते हैं कि राज्य सरकार के मनपसंद का राज्यपाल प्रदेश में होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर में कार्यरत अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की संख्या पहले घटाई जाए और बाद में समाप्त कर दी जाए। जिन्होंने पहली बार अपराध किया है उनके केस (एफ आई आर) रद्द किए जाएं। अर्थात् एक-दो विस्फोट माफ हों, भले ही उनमें सौ से ज्यादा बेगुनाह मारे गए हों।
पाकिस्तान का समर्थन
रपट की यह भी एक सिफारिश है कि कश्मीर से संबंधित किसी भी बातचीत में पाकिस्तान, आतंकी कमांडरों और अलगाववादी नेताओं को भी शामिल किया जाए। रपट में पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को पाक प्रशासित जम्मू-कश्मीर (पीएजेके) कहा गया है। वार्ताकारों के अनुसार कश्मीर विषय में पाकिस्तान भी एक पार्टी है और पाकिस्तान ने दो तिहाई कश्मीर पर जबरन अधिकार नहीं किया, बल्कि पाकिस्तान का वहां शासन है, जो वास्तविकता है।
ध्यान से देखें तो स्पष्ट होगा कि वार्ताकारों ने पूरे जम्मू-कश्मीर को श्आजाद मुल्क की मान्यता दे दी है। इसी मान्यता के मद्देनजर रपट में कहा गया है कि पीएजेके समेत पूरे जम्मू-कश्मीर को एक इकाई माना जाए। इसी एक सिफारिश में सारे के सारे जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले करने के खतरनाक इरादे की गंध आती है। पाकिस्तान के जबरन कब्जे वाले कश्मीर को पाक प्रशासित जम्मू-कश्मीर मानकर वार्ताकारों ने भारतीय संसद के उस सर्वसम्मत प्रस्ताव को भी अमान्य कर दिया है जिसमें कहा गया था कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न भाग है। 1994 में पारित इस प्रस्ताव में पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का संकल्प भी दुहराया गया था।
राष्ट्रद्रोह की झलक
कश्मीर विषय पर पाकिस्तान को भी एक पक्ष मानकर वार्ताकारों ने जहां जम्मू-कश्मीर में सक्रिय देशद्रोही अलगाववादियों के आगे घुटने टेके हैं, वहीं उन्होंने पाकिस्तान द्वारा कश्मीर को हड़पने के लिए 1947, 1965, 1972 और 1999 में भारत पर किए गए हमलों को भी भुलाकर पाकिस्तान के सब गुनाह माफ कर दिए हैं। भारत विभाजन की वस्तुस्थिति से पूर्णतया अनभिज्ञ इन तीनों वार्ताकारों ने महाराजा हरिसिंह द्वारा 26 अक्तूबर, 1947 को सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर का भारत में किया गया विलय, शेख अब्दुल्ला के देशद्रोह को विफल करने वाला प्रजा परिषद् का आंदोलन, 1972 में हुआ भारत-पाक शिमला समझौता, 1975 में हुआ इन्दिरा-शेख समझौता और 1994 में पारित भारतीय संसद का प्रस्ताव इत्यादि सब कुछ ठुकराकर जो रपट पेश की है वह राष्ट्रद्रोह का जीता-जागता दस्तावेज है।
केन्द्र सरकार के इशारे और सहायता से लिख दी गई 123 पृष्ठों की इस रपट में केवल अलगाववादियों की मंशा, केन्द्र सरकार का एकतरफा दृष्टिकोण और पाकिस्तान के जन्मजात इरादों की चिंता की गई है। जो लोग भारत के राष्ट्र ध्वज को जलाते हैं, संविधान फाड़ते हैं और सुरक्षा बलों पर हमला करते हैं, उनकी जी-हुजूरी की गई है। यह रपट उन लोगों का घोर अपमान है, जो आज तक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को थामकर भारत माता की जय के उद्घोष करते हुए जम्मू-कश्मीर के लिए जूझते रहे, मरते रहे।
कांग्रेस और एनसी की मिलीभगत
वार्ताकारों ने जम्मू-कश्मीर की आम जनता के अनेक प्रतिनिधिमंडलों से वार्ता करने का नाटक तो जरूर किया है, परंतु महत्व उन्हीं लोगों को दिया है जो भारत के संविधान की सौगंध खाकर सत्ता पर काबिज हैं (कांग्रेस के समर्थन से) और भारत के संविधान और संसद को ही धता बताकर स्वायत्तता की पुरजोर मांग कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अनेक बार अपने दल नेशनल कांफ्रेंस (एन.सी.) के राजनीतिक एजेंडे श्पूर्ण स्वायत्तता की मांग की है। स्वायत्तता अर्थात् 1953 के पूर्व की राजनीतिक एवं संवैधानिक व्यवस्था। इस रपट से पता चलता है कि इसे केन्द्र की कांग्रेसी सरकार, नेशनल कांफ्रेंस, आईएसआई के एजेंटों और तीनों वार्ताकारों की मिलीभगत से घढ़ा गया है।
अगर यह मिलीभगत न होती तो जम्मू-कश्मीर की 80 प्रतिशत भारत-भक्त जनता की जरूरतों और अधिकारों को नजरअंदाज न किया जाता। देश विभाजन के समय पाकिस्तान, पीओके से आए लाखों लोगों की नागरिकता का लटकता मुद्दा, तीन- चार युद्धों में शरणार्थी बने सीमांत क्षेत्रों के देशभक्त नागरिकों का पुनर्वास, जम्मू और लद्दाख के लोगों के साथ हो रहा घोर पक्षपात, उनके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक अधिकारों का हनन, पूरे प्रदेश में व्याप्त आतंकवाद, कश्मीर घाटी से उजाड़ दिए गए चार लाख कश्मीरी हिन्दुओं की सम्मानजनक एवं सुरक्षित घरवापसी और प्रांत के लोगों की अनेकविध जातिगत कठिनाइयां इत्यादि किसी भी समस्या का समाधान नहीं बताया इन सरकारी वार्ताकारों ने।
फसाद की जड़ धारा 370
इसे देश और जनता का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि पिछले छह दशकों के अनुभवों के बावजूद भी अधिकांश राजनीतिक दलों को अभी तक यही समझ में नहीं आया कि एक विशेष मजहबी समूह के बहुमत के आगे झुककर जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के तहत दिया गया विशेष दर्जा और अपना अलग प्रांतीय संविधान ही वास्तव में कश्मीर की वर्तमान समस्या की जड़ है। संविधान की इसी अस्थाई धारा 370 को वार्ताकारों ने अब विशेष धारा बनाकर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण स्वायत्तता देने की सिफारिश की है। क्या यह भारत द्वारा मान्य चार सिद्धांतों, राजनीतिक व्यवस्थाओं-पंथ निरपेक्षता, एक राष्ट्रीयता, संघीय ढांचा और लोकतंत्र का उल्लंघन एवं अपमान नहीं है?
यह एक सच्चाई है कि भारतीय संविधान की धारा 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान ने कश्मीर घाटी के अधिकांश मुस्लिम युवकों को भारत की मुख्य राष्ट्रीय धारा से जुड़ने नहीं दिया। प्रादेशिक संविधान की आड़ लेकर जम्मू-कश्मीर के सभी कट्टरपंथी दल और कश्मीर केन्द्रित सरकारें भारत सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय महत्व के प्रकल्पों और योजनाओं को स्वीकार नहीं करते। भारत की संसद में पारित पूजा स्थल विधेयक, दल बदल कानून और सरकारी जन्म नियंत्रण कानून को जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जा सकता।
देशघातक और अव्यवहारिक सिफारिश
सरकारी वार्ताकारों ने आतंकग्रस्त प्रदेश से सेना की वापसी और अर्धसैनिक सुरक्षा बलों के उन विशेषाधिकारों को समाप्त करने की सिफारिश की है जिनके बिना आधुनिक हथियारों से सुसज्जित प्रशिक्षित आतंकियों का न तो सफाया किया जा सकता है और न ही सामना। आतंकी अड्डों पर छापा मारने, गोली चलाने एवं आतंकियों को गिरफ्तार करने के लिए सामूहिक कार्रवाई के अधिकारों के बिना सुरक्षा बल स्थानीय पुलिस के अधीन हो जाएंगे जिसमें पाक समर्थक तत्वों की भरमार है। वैसे भी जम्मू-कश्मीर पुलिस इतनी सक्षम और प्रशिक्षित नहीं है जो पाकिस्तानी घुसपैठियों से निपट सके।
अलगाववादी, आतंकी संगठन तो चाहते हैं कि भारतीय सुरक्षा बलों को कानून के तहत इतना निर्बल बना दिया जाए कि वे मुजाहिद्दीनों (स्वतंत्रता सेनानियों) के आगे एक तरह से समर्पण कर दें। विशेषाधिकारों की समाप्ति पर आतंकियों के साथ लड़ते हुए शहीद होने वाले सुरक्षा जवान के परिवार को उस आर्थिक मदद से भी वंचित होना पड़ेगा जो सीमा पर युद्ध के समय शहीद होने वाले सैनिक को मिलती है।
क्या आजाद मुल्क बनेगा कश्मीर?
1953 से पूर्व की राज्य व्यवस्था की सिफारिश करना तो सीधे तौर पर देशद्रोह की श्रेणी में आता है। इस तरह की मांग, सिफारिश का अर्थ है कश्मीर में भारतीय प्रभुसत्ता को चुनौती देना, देश के किसी प्रदेश को भारतीय संघ से तोड़ने का प्रयास करना और भारत के राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान, संविधान एवं संसद का विरोध करना। सर्वविदित है कि 1953 से लेकर आज तक भारत सरकार ने अनेक संवैधानिक संशोधनों द्वारा जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ जोड़कर ढेरों राजनीतिक एवं आर्थिक सुविधाएं दी हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों द्वारा चुनी गई संविधान सभा ने 14 फरवरी, 1954 को प्रदेश के भारत में विलय पर अपनी स्वीकृति दे दी थी। 1956 में भारत की केन्द्रीय सत्ता ने संविधान में सातवां संशोधन करके जम्मू-कश्मीर को देश का अभिन्न हिस्सा बना लिया।
इसी तरह 1960 में जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में लाया गया। 1964 में प्रदेश में लागू भारतीय संविधान की धाराओं 356-357 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन की संवैधानिक व्यवस्था की गई। 1952 की संवैधानिक व्यवस्था में पहुंचकर जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के जबड़े में फंस जाएगा। पाक प्रेरित अलगाववादी संगठन यही तो चाहते हैं। तब यदि राष्ट्रपति शासन, भारतीय सुरक्षा बल और सर्वोच्च न्यायालय की जरूरत पड़ी तो क्या होगा? क्या जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले कर देंगे?
भारत की अखण्डता से खिलवाड़
पाकिस्तान का अघोषित युद्ध जारी है। वह कभी भी घोषित युद्ध में बदल सकता है। जम्मू-कश्मीर सरकार अनियंत्रित होगी। हमारी फौज किसके सहारे लड़ेगी। जब वहां की स्वायत्त सरकार, सारी राज्य व्यवस्था, न्यायालय सब कुछ भारत सरकार के नियंत्रण से बाहर होंगे तो उन्हें भारत के विरोध में खड़ा होने से कौन रोकेगा? अच्छा यही होगा कि भारत की सरकार इन तथाकथित प्रगतिशील वार्ताकारों के भ्रमजाल में फंसकर जम्मू-कश्मीर सहित सारे देश की सुरक्षा एवं अखंडता के साथ खिलवाड़ न करे।

रपट से संबन्धित समीक्षात्मक बिन्दू
 इस रपट में पाकिस्तान की ओर से हो रही सशस्त्र घुसपैठ, प्रायः सभी मुस्लिम देशों की सहायता से जम्मू-कश्मीर में व्याप्त हिंसक जेहादी आतंकवाद और चार लाख भारत भक्त कश्मीरी हिन्दुओं के बलात् विस्थापन से आंखें मूंद ली गई हैं।
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 जम्मू-कश्मीर की वर्तमान ज्वलनशील/विस्फोटक गतिविधियों के लिए भारत की सरकार, संविधान और सेना को भी दोषी मानकर पाकिस्तान, अलगाववादियों, आतंकवादियों और स्वायत्तता/स्वशासन के झण्डाबरदारों के सब गुनाह माफ कर दिए गए हैं। 
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 वार्ताकारों ने जिन 700 (?) प्रतिनिधि मंडलों से कथित बातचीत करने का दावा किया है उनके नामों, टिप्पणियों और सुझावों का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया। जिस वृहत साहित्य (?) का वार्ताकारों ने अध्ययन करने का दावा किया है उनमें से एक भी पुस्तक अथवा लेख का नाम तक नहीं बताया गया। 
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 वास्तविकता यह है कि इन सरकारी वार्ताकारों ने उन भारत विरोधी अलगाववादी संगठनों, आतंकवादी गुटों, कट्टरपंथी मजहबी संगठनों के एजेंडों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है, जिनके नेताओं ने उनसे बात करना भी उचित नहीं समझा। 
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ये सारी रपट पाकिस्तान की कश्मीर नीति, पूर्व पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कश्मीर फार्मूले, सत्ताधारी एन.सी. के घोषित मेनिफेस्टो, पी.डी.पी. के दलीय दस्तावेज सेल्फरूल और  हुर्रियत काॅनफ्रेंस के तथाकथित उदारवादी नेता मीरवाइज उमर फारुख के दिमाग की उपज युनाईटेड स्टेट्स आॅफ कश्मीर पर आधारित है।
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वार्ताकारों ने मजहबी जुनून पर आधारित जेहादी आतंकवाद, मजहबी कश्मीर केन्द्रित राजनीति पर आधारित क्षेत्रीय भेद-भाव, 1947 में पाक/पाक अधिकृत कश्मीर से उजड़ कर आए लगभग 14 लाख हिन्दुओं के अधिकारों के हनन और 4 लाख कश्मीरी हिन्दुओं के बलात् जाति आधारित विस्थापन की वास्तविक पृष्ठभूमि (इस्लामिक फंडामेंटलिज्म) की जानकारी लेने की रत्ती भर भी कोशिश नहीं की।
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 कश्मीर समस्या से सम्बधित सभी मामलों में पाकिस्तान को शामिल करने का सुझाव देकर वार्ताकारों ने भारत और पाकिस्तान को बराबरी का दर्जा दे दिया है। जबकि ये एक तथ्यात्मक सच्चाई है कि पकिस्तान हमलावर (युद्ध एवं आतंकवाद दोनों में) और भारत पीडि़त है। 
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 पाक अधिकृत कश्मीर को पाक प्रशासित कह कर वार्ताकारों ने दो तिहाई भारतीय कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा मान लिया है। यही वास्तव में कश्मीर में सक्रिय अलगाववादियों की भाषा है। यहां वार्ताकारों ने भारत की संसद और यू.एन.ओ. के प्रस्तावों की भी धज्जियां उड़ा दी हैं। 
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 वार्ताकारों ने जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक घड़ी की सुईयों को जिस साठ साल पुराने दिल्ली समझौते की ओर मोड़ने की बेबुनियाद कोशिश की है वह समझौता केवल दो व्यक्तियों नेहरू और शेख के बीच हुए जुबानी जमाखर्च का असंवैधानिक दस्तावेज है जिसे शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के कुछ कश्मीर केन्द्रित पिठ्ठुओं को छोड़कर शेष सारे जम्मू-कश्मीर और देश ने नकार दिया था। 
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 वार्ताकारों ने 1952 के बाद जम्मू-कश्मीर पर लागू हुए सभी भारतीय कानूनों, संवैधानिक संशोधनों एवं अनेक विकास की योजनाओं की समीक्षा करने के लिए एक संवैधानिक समिति गठित करने का सुझाव भी दिया है। ये समिति भारत के संविधान, संसद और सरकार को चुनौती देने वाली एक ऐसी टोली होगी जो इन वार्ताकारों की ही अलगाववादी मानसिकता की लकीरों पर चलेगी। 
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 जम्मू-कश्मीर में व्याप्त विदेश प्रेरित अलगाववाद की जन्मदाता, पोषक और संरक्षक भारतीय संविधान की धारा 370 को विशेष शब्द से नवाजने की सिफारिश करके वार्ताकारों ने एक विशेष प्रकार के राष्ट्र विरोधी मजहबी जुनून को संवैधानिक मान्यता देने का अत्यंत निंदनीय प्रयास किया है। 
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 वार्ताकारों ने सुरक्षाबलों के विशेषाधिकारों तथा अशांत क्षेत्रों की समीक्षा करने और नागरिक सुरक्षा कानून में संशोधन करने की शिफारिश करके भारतीय सुरक्षा बलों को कटघरें में खड़ा करने का जघन्य प्रयास किया है। 
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 मजहबी, क्षेत्रीय एवं जातिगत कुंठा से ग्रस्त वार्ताकारों ने कश्मीर घाटी में बनी बेनाम कब्रों की जांच के लिए न्यायिक आयोग गठित करने की बात तो की है परन्तु आतंकियों के हाथों मारे गए लाखों बेगुनाह लोगों के मुद्दे को छुआ तक नहीं। 
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 गहराई से इस रिपोर्ट का अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि यह रिपोर्ट अगर सरकारी स्तर पर मान ली गई तो यह दूसरे पाकिस्तान का शिलान्यास साबित होगी। 
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प्रस्तुति: नरेन्द्र सहगल
मोबाइल न. 9811802320
स्थाई स्तम्भकार पांचजन्य 

Saturday, June 2, 2012

संघ शिक्षा वर्ग के स्वयंसेवकों ने किया पथ संचलन






वाराणसी, 2 जून। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 20 दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग के स्वयंसेवकों ने शहर के प्रमुख मार्गों से पथ संचलन निकाला। पथ संचलन कर रहे स्वयंसेवकों का अनेक स्थानों पर नागरिकों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया।
 निवेदिता शिक्षा सदन के प्रांगण में 423 की संख्या में देश के कोने-कोने (उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, चण्डीगढ़, उत्तराखण्ड, हिमांचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर एवं नेपाल राष्ट्र) से आये स्वयंसवेकों ने कदम से कदम मिलाकर पथसंचलन किया। यह संचलन निवेदिता शिक्षा सदन से होते हुए, सिगरा महमूरगंज रोड, रघुनाथ नगर, तुलसीपुर त्रिमुहानी, आकाशवाणी मार्ग, माहेश्वरी भवन, पाणिनी कन्या महाविद्यालय होते हुए निवेदिता बालिका इण्टर कालेज में जाकर स्वयंसेवकों ने हिन्दू साम्राज्य दिवस मनाया। स्थानीय निवेदिता शिक्षा सदन परिसर में संघ का 20 दिवसीय संघ शिक्षा वर्ग प्रथम व द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण चल रहा है। संघ शिक्षा वर्ग अपने आप में एक उदहारण हैं जहाँ स्वयंसेवक स्वयं अपना व्यय वहन करके प्रशिक्षण लेने आते हैं। यही संघ में कार्यकर्ता निर्माण की प्रक्रिया है। यहां पर स्वयंसेवकों में देशभक्ति, अनुशासन, संस्कारित नागरिक बनने व राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। 
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में कार्यकर्ता निर्माण हेतु प्रशिक्षण शिविरों की चार स्तरीय योजना होती है। इसमें प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष विशेष, द्वितीय वर्ष विशेष और तृतीय वर्ष विशेष के प्रशिक्षण वर्ग होते हैं। प्राथमिक संघ शिक्षा वर्ग की अवधि 7 दिन, प्रथम और द्वितीय वर्ष की अवधि 20-20 दिन, तथा तृतीय वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग की अवधि 30 दिन होती है। विशेष संघ शिक्षा वर्ग में 40 वर्ष की आयु पूर्ण करने वाले स्वयंसेवक ही भाग लेते हैं। शिविर में दिन का आरम्भ प्रातः 4.00 बजे होता है। इसके बाद प्रातः 5.00 बजे एकात्मता स्त्रोत, प्राणायाम तथा शाखा के साथ दैनिक गतिविधियाँ आरम्भ होती हैं। इनमें अनेक सत्र होते हैं, जहाँ स्वयंसेवकों को शारीरिक, बौद्धिक, सेवा कार्य, आपदा प्रबन्धन, ग्राम विकास, स्वास्थ्य चेतना, पत्रकारिता इत्यादि विषयों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
हिन्दू साम्राज्यदिवस (ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी) पर वक्ताओं ने कहाकि छत्रपति शिवाजी के जन्म से पहले देश में निराशा का वातावरण था। भारत की सत्ता विदेशियों द्वारा संचालित होती थी, आज भी देश लगभग वैसी ही स्थिति से गुजर रहा है। ऐसे में केवल वीर शिवाजी का जीवन ही हमारे लिए प्रेरणादायी व मार्गदर्शक हो सकता है। 
 इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय अधिकारी, सर्वश्री बालकृष्ण जी, हस्तीमल जी, वर्ग कार्यवाह, सुभाष बोहरा, वर्ग पालक रामलखन सिंह, मुख्य शिक्षक गेशव गोपाल, राधेश्याम जी, सह मुख्यशिक्षक राजीव जी, वर्ग बौद्धिक प्रमुख नरेन्द्र जी, सेवा प्रमुख अजय जी, पर्यवेक्षक जागेश्वर जी आदि मौजूद थे।