Thursday, June 11, 2020

11 जून / जन्मदिवस – काकोरी कांड के नायक पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को नमन


नई दिल्ली. पंडित रामप्रसाद का जन्म 11 जून, 1897 को शाहजहांपुरउत्तर प्रदेश में हुआ था. इनके पिता मुरलीधर जी शाहजहांपुर नगरपालिका में कर्मचारी थे. पर, आगे चलकर उन्होंने नौकरी छोड़कर निजी व्यापार शुरू कर दिया. रामप्रसाद जी बचपन से महर्षि दयानन्द तथा आर्य समाज से बहुत प्रभावित थे. शिक्षा के साथ साथ वे यज्ञसंध्या वन्दनप्रार्थना आदि भी नियमित रूप से करते थे. स्वामी दयानन्द द्वारा विरचित ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पढ़कर उनके मन में देश और धर्म के लिए कुछ करने की प्रेरणा जगी. इसी बीच शाहजहांपुर आर्य समाज में स्वास्थ्य लाभ करने के लिए स्वामी सोमदेव नामक एक संन्यासी आये. युवक रामप्रसाद ने बड़ी लगन से उनकी सेवा की. उनके साथ वार्तालाप में रामप्रसाद को अनेक विषयों में वैचारिक स्पष्टता प्राप्त हुई. रामप्रसाद जी बिस्मिलउपनाम से हिन्दी तथा उर्दू में कविता भी लिखते थे.
वर्ष 1916 में भाई परमानन्द को ‘लाहौर षड्यन्त्र केस’ में फांसी की सजा सुनाई गई. बाद में उसे आजीवन कारावास में बदलकर उन्हें कालेपानी (अन्दमान) भेज दिया गया. इस घटना को सुनकर रामप्रसाद बिस्मिल ने प्रतिज्ञा कर ली कि वे ब्रिटिश शासन से इस अन्याय का बदला अवश्य लेंगे. इसके बाद वे अपने जैसे विचार वाले लोगों की तलाश में जुट गये.
लखनऊ में उनका सम्पर्क क्रान्तिकारियों से हुआ. मैनपुरी को केन्द्र बनाकर उन्होंने प्रख्यात क्रान्तिकारी गेंदालाल दीक्षित के साथ गतिविधियां शुरू कीं. जब पुलिस ने पकड़ धकड़ शुरू कीतो वे फरार हो गये. कुछ समय बाद शासन ने वारंट वापस ले लिया. अतः घर आकर रेशम का व्यापार करने लगेपर इनका मन तो कहीं और लगा था. उनकी दिलेरी, सूझबूझ देखकर क्रान्तिकारी दल ने उन्हें अपने कार्यदल का प्रमुख बनाया. क्रान्तिकारी दल को शस्त्रास्त्र मंगाने तथा अपनी गतिविधियों के संचालन के लिए पैसे की बहुत आवश्यकता पड़ती थी. अतः बिस्मिल जी ने ब्रिटिश खजाना लूटने का सुझाव रखा. यह बहुत खतरनाक काम थापर जो डर जायेवह क्रान्तिकारी ही कैसा ? पूरी योजना बना ली गयी और इसके लिए नौ अगस्त, 1925 की तिथि निश्चित हुई.
निर्धारित तिथि पर दस विश्वस्त साथियों के साथ पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने लखनऊ से खजाना लेकर जाने वाली रेल को काकोरी स्टेशन से पूर्व दशहरी गांव के पास चेन खींचकर रोक लिया. गाड़ी रुकते ही सभी साथी अपने-अपने काम में लग गये. रेल के चालक तथा गार्ड को पिस्तौल दिखाकर चुप करा दिया गया. सभी यात्रियों को भी गोली चलाकर अन्दर ही रहने को बाध्य किया गया. कुछ साथियों ने खजाने वाले बक्से को घन और हथौड़ों से तोड़ दिया और उसमें रखा सरकारी खजाना लेकर चले गए.
परन्तु आगे चलकर चन्द्रशेखर आजाद को छोड़कर इस कांड के सभी क्रान्तिकारी पकड़े गये. इनमें से रामप्रसाद बिस्मिलरोशन सिंहअशफाकउल्ला खां तथा राजेन्द्र लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनायी गयी. रामप्रसाद जी को गोरखपुर जेल में बन्द कर दिया गया. वे वहां फांसी वाले दिन तक मस्त रहे. अपना नित्य का व्यायामपूजासंध्या वन्दन उन्होंने कभी नहीं छोड़ा. 19 दिसम्बर, 1927 को बिस्मिल को गोरखपुरअशफाकउल्ला को फैजाबाद तथा रोशन सिंह को प्रयाग में फांसी दे दी गयी.
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत

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