Monday, July 6, 2020

लक्ष्मीबाई केलकर : नारी को जिन्होंने बनाया नारायणी (भाग -2)


कहते हैं जब आप दिल से कोई कामना करते हैं तो वह पूरी भी हो जाती है। एक दिन उनके बेटे ने कहा कि आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सर संघचालक डाॅ. केशव राव बलिराम हेडगेवार शहर में आ रहे हैं तो लक्ष्मीबाई केलकर भी अपने बेटे के साथ उनसे मिलने गई और मन की इच्छा उनके सामने रखी। डाॅ. हेडगेवार ने उनकी बातों को गम्भीरता से सुना और फिर उनके बीच नागपुर और वर्धा में कई बैठकें हुई। लक्ष्मीबाई केलकर के लिए हेडगेवार जी बड़े भाई और पथ-प्रदर्शक बन गए थे। लक्ष्मीबाई केलकर ने उनके मस्तिष्क में यह विचार डाल दिया था कि बिना महिलाओं को सशक्त किए समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता साथ ही देश का विकास नहीं हो सकता। डाॅ. हेडगेवार ने लक्ष्मीबाई केलकर से कहा कि वह उनकी बातों से सहमत हैं। महिलाओं में सही मूल्यों का विकास कर उन्हें देश की सेवा के लिए तैयार करने के लिए प्रशिक्षण देना बहुत आवश्यक है, लेकिन उन्होंने कहा महिलाओं का संगठन पुरुषों से अलग होना चाहिए। उनके संगठन की गतिविधियां भी पुरुषों से अलग तरह की होनी चाहिए। डाॅ.हेडगेवार ने लक्ष्मीबाई केलकर को समझाया कि उनका काम राष्ट्रीय महत्व का होगा। इसलिए उन्हें पूरी निष्ठा एवं समर्पण से काम करना होगा। यह ऐसा काम होगा, जिसके लिए पूरे राष्ट्र और देश के लोगों को उन गर्व होगा और अन्ततः वो दिन आ ही गया जिस दिन की लक्ष्मीबाई केलकर बरसों से कल्पना कर रही थीं। वर्ष 1936 की विजयादशमी एक नया इतिहास रचने जा रही थी। भारत में महिलाओं के लिए यह दिन नई प्रेरणा का दिन साबित होने जा रहा था। उन दिनों महिलाएं घरों की चहारदीवारी में कैद रहती थीं, लेकिन 25 अक्टूबर 1936 को वर्धा में लक्ष्मीबाई केलकर के नेतृत्व में बड़ी संख्या में महिलाएं समिति का कामकाज करने के लिए पुरानी परम्परा तोड़कर घरों से निकलीं। यह भारत के इतिहास में एक क्रान्तिकारी घटना थी। समिति ने महिलाओं को अनुशासित सेविका बनाने के लिए प्रशिक्षण मुहिम शुरू की। एक शाखा से आरम्भ हुई राष्ट्र सेविका समिति की शाखाएं बढ़ती गयी। स्वतंत्रता आंदोलन के दिन भी थे। समिति का विस्तार सिंध, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब तक हो गया। वर्धा के अलावा शिक्षा वर्ग पुणे और नागपुर में भी हुए। वर्ष 1943-44 के दौरान कराची में भी शिक्षा वर्ग आयोजित किया गया।
लक्ष्मीबाई केलकर में नेतृत्व की अपार प्रतिभा थी। सभी महिलाओं ने उन्हें प्यार से मौसी जी पुकारना आरम्भ कर दिया। प्रारम्भिक सफलताओं के बाद मौसी जी ने सोचा कि समिति के काम के आयाम बढ़ाए जायें। बैठकें नियमित हो रही थी। शिक्षा वर्ग लगातार लगाए जा रहे थे। उन्होंने बच्चों की शिक्षा के लिए शिशु मन्दिर, घरेलू स्तर पर कुटीर और लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए उद्योग मन्दिर स्थापित करने की योजना बनाई। शिशु और उद्योग मन्दिरों का संचालन सेविकाओं द्वारा किया जाना था। इन योजनाओं का विभिन्न स्तरों पर स्वागत हुआ।
राष्ट्र सेविका समिति ने दिन दूनी रात चैगुनी उन्नति और विस्तार किया। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, नैतिक, देशभक्ति की भावना, देशसेवा, राष्ट्रीय आपदाओं के समय योगदान, सीमा पर जाकर देश के रक्षकों को मान-सम्मान देना, समिति चारों दिशाओं तो क्या दशों दिशाओं में अपना विस्तार करती गयी। मौसी जी ने जो मजबूत नींव रखी उस पर एक सुदृढ़ राष्ट्रीय संगठन खड़ा हुआ। ये वो संगठन है जो परिवार, समाज और देश के हित के बारे में सोचता है। पश्चिमी और वामपंथी संगठनों की उस सोच से बिल्कुल अलग, जो नारी को पुरुष से बगावत कर अपनी अलग दुनिया बनाने को कहते हैं। ये संगठन मातृत्व, कृतितव, नेतृत्व और स्त्री के नैसर्गिक गुणों के साथ समाज को योगदान दे रहा हैै। आने वाली पीढ़ियां लक्ष्मीबाई केलकर को अपना आदर्श मानेंगी, क्यांेकि जब तक हम अपनी जड़ों से नहीं जुड़ेंगे तब तक फले-फूलेंगे नहीं। मौसी जी ने इसी सिद्धान्त को अपनाया था कि अपनी जड़ों से जुड़कर आगे बढ़ो। राष्ट्र सेविका समिति उसी सिद्धान्त पर चलते हुए आज दिग दिगंत में ख्याति पा रही है।
 (लेखिका सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं)

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