आखिर चाहते क्या हैं आप? कुख्यात
अपराधी विकास का समूल विनाश हो गया तो ऐसे कौन से राज दफन हो गए? गुंडागर्दी, हत्या, लूट
एवं रंगदारी के लिए आतंक का पर्याय बना विकास क्या अकेले के दम पर यह सब कर रहा था? कौन
नहीं जानता उत्तरप्रदेश के किस-किस राजनीतिक दल के आका, कौन-कौन
से प्रशासनिक आला अधिकारी विकास की खैरात पर पल रहे थे. ये कोई राज नहीं है. सब
जानते हैं. पर कानून की पतली गलियों से ये सब बचे हुए थे और आगे भी बचने ही वाले
थे. और जो तमाम विकास जेलों में बंद हैं, उनसे
क्या उगलवाकर सफेदपोश सींखचों में अब तक आ पाए हैं. हां, ऐसे
विकास विधानसभा, विधान परिषद में जरूर पहुंच गए. अरे, इस
देश में याकूब मैनन जैसे आतंकी के लिए कानून की पेचीदगियों की आड़ में सर्वोच्च
न्यायालय को जगाया जा सकता है. इसी देश में निर्भया के दरिंदे फांसी की सजा सालों
तक टलवा सकते हैं, वहां
विकास जैसा हिस्ट्रीशीटर चार नाम बता भी देता तो किसके गले में फंदा पड़ने वाला था?
कहने का यह आशय कतई नहीं कि अपराधी को
त्वरित न्याय ऐसा ही एनकाउंटर है. पर विकास के ढेर होने पर जार-जार रोने वाले क्या
चौबेपुर में शहीद आठ बेकसूर पुलिस अधिकारी कर्मचारियों के नाम बताएंगे? वे
विकास की अब तक की यात्रा ऐसे बताएंगे, जैसे
कोई महापुरुष का जीवन वृत्तांत हो. वह यह भी बता देंगे कि उनकी पत्नी का नाम ऋचा
है और मां का नाम सरला देवी. खबरें यह भी चल रही हैं कि विकास ने प्रेम विवाह किया
था. मां ज्ञान दे रही है, पत्नी
लाइव मुठभेड़ देख रही है. वह तो कोरोना चल रहा है, अन्यथा
कोई आश्चर्य नहीं एक फिल्म की ही घोषणा मुंबई से हो जाती. बहरहाल जिस विकास ने
सत्ता के दम पर चांदी के जूतों की खनक से नियम कायदों को खूंटी पर टांग दिया था, अगर
वह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया तो इतना विलाप क्यों? अगर
यह मुठभेड़ पूर्व नियोजित भी है तो इसकी जांच होने दीजिए, परिणाम
की प्रतीक्षा कीजिए और वैसे भी हर मुठभेड़ को एक जांच प्रक्रिया से गुजरना ही होता
है. पर इससे पहले उत्तरप्रदेश पुलिस को खलनायक हत्यारा बताने का प्रयास बेहद
आपत्तिजनक है. प्रशंसा करनी होगी ऑपरेशन क्लीन के चलते प्रदेश में गुंडे ठीक वैसे
ही ठुक रहे हैं, जैसे घाटी में आतंकी. उत्तरप्रदेश के
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि प्रदेश में गुंडे या
तो जेल में होंगे या फिर ढेर. बेल पर रह कर वह प्रदेश में आतंक नहीं फैला पाएंगे.
योगी की यह मुहिम रंग ला रही है. यही कारण है कि दुर्दांत गुंडे भी गिरफ्तारी के
लिए अर्जी लगा रहे हैं. जेल भी आबाद हैं और जो हरकत कर रहे हैं, उन्हें
न्याय भी मिल रहा है. जाहिर है, जिनकी
राजनीतिक दुकानदारी के शटर धड़धड़ाकर गिर रहे हैं, वे
बिलबिला रहे हैं. मुठभेड़ को हत्या बताकर पुलिस का मनोबल तोड़ने का प्रयास किया जा
रहा है, यह
खतरनाक है. वे यह भूल रहे हैं, गुंडे
जिन्हें वे आज पाल रहे हैं, कल
उनके लिए भी काल बन सकते हैं. कारण आज अपराधी या डकैती बीहड़ों में नहीं है, वे
मंचों पर हैं, सत्ता के गलियारों में हैं, इसलिए
समाज हित में इनके खिलाफ एक आक्रामक अभियान आवश्यक ही है. बेशक खतरे इसके भी हैं, पुलिस
निरंकुश हो सकती है. संभव है, मुठभेड़
कई बार फर्जी भी हों. यह बिलकुल भी अपेक्षित नहीं. पर अब तक का अनुभव क्या बता रहा
है. सारी प्रक्रिया का पालन कर क्या अपराधियों को समय पर दंड मिल पा रहा है? क्या
देरी से न्याय स्वयं एक अन्याय नहीं है. आखिर क्या कारण है कि जन सामान्य की
प्रतिक्रिया सकारात्मक है? क्यों
देश भर में पुलिस जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं. हैदराबाद में बलात्कारियों को मिला
न्याय भी देशभर में प्रशंसा पा चुका है. आखिर क्यों न्याय पाने की अंतहीन
प्रक्रिया ने व्यवस्था से ही विश्वास डिगा दिया है. यह स्वस्थ परंपरा नहीं है, पर
आज यह एक वस्तु स्थिति है. अत: विचार इस पर करना चाहिए. विकास जैसे गुंडे बदमाश के
ढेर होने पर मातम मनाने वाले ऐसे बदमाशों के सताए परिजनों के आंसू पोंछेंगे और जिस
राज के दफन होने की बात कह कर वे मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हैं, वे
आंखें साफ करके देखेंगे कि विकास को पालने वाले उनकी ही बगल में बैठे हैं. विकास
अपने साथ अपराध एवं समाज विज्ञान के कोई गोपनीय सूत्र नहीं ले गया है, जिस
पर वे दुखी हैं. अच्छा हो वह प्रदेश हित में समाज हित में स्वयं उन्हें कानून के
हवाले करें तो वे सच्चे जनसेवक कहलाएंगे, अन्यथा
योगी इतिहास रचने का संकल्प ले चुके हैं.
हां, योगी
सरकार से यह अपेक्षा अवश्य रहेगी कि वह विकास के इस अध्याय को समाप्त न मानें, राजनीतिक
विवशताएं, कानून
की गलियां रास्ता रोकेंगी. पर अच्छा हो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विकास को पनाह
देने वाले, विकास से उपकृत होने वाले जो शासन की
निगाह में भी हैं, उनके
नाम सार्वजनिक करें तो यह एक सोशल एनकाउंटर होगा.
(लेखक दैनिक स्वदेश के समूह संपादक)
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत
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