कैम्ब्रिज से अपनी पढाई पूरी कर सेंट्रल हिन्दू स्कूल में प्रधानाचार्य और इतिहास के शिक्षक जार्ज सिडनी अरुन्डेल ने हमेशा बनारस के क्रांतिकारियों का सहयोग किया और कभी अंग्रेजी फ़ौज को सीएचएस की बाउंड्री पार नहीं करने दी. ब्रिटेन में 1 दिसंबर को जन्में जार्ज सिडनी अरुन्डेल कैम्ब्रिज से मास्टर डीग्री की पढ़ाई पूरी करते वक़्त भारत के एनी बेसेंट के बारे में और उनके भाषणों को सुन रखा था. मन ही मन उनकी भावना हिन्दुस्तान आने की होने लगी. वह अवसर भी आया जब उनकी पढाई पूरी हो गयी और अरुन्डेल अपनी मौसी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, जिसमें थियोसोफी संस्था से जुड़कर काम करने के लिए बनारस चलने की बात थी. एनी बेसेंट उस दौरान बनारस में सेंट्रल हिन्दू स्कूल की नींव रख चुकी थीं, जो कि बीएचयू की स्थापना का अहम पड़ाव बना. लीलाधर शर्मा की पुस्तक भारतीय चरित कोष के अनुसार २५ साल की आयु में अरुन्डेल १९०२-०३ में अपनी मौसी के साथ बनारस आ गये और सेंट्रल हिन्दू स्कूल में ही इतिहास पढ़ाना शुरू कर दिया. वह धीरे-धीरे दस सालों में छात्रों के काफी पसंदीदा प्रोफेसर बन गये जिसके चलते एनी बेसेंट ने उन्हें प्रिंसिपल बना दिया. इस दौरान उनके कई शिष्य बने लेकिन उनमें से सबसे ख़ास थे महान दर्शनशास्त्री जे. कृष्ण मूर्ति.
बनारस में रहते हुआ
भारतीयकरण
जार्ज अरुन्डेल ने देखा कि
कॉलेज में ज्यादातर छात्र क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, लेकिन एक
ब्रिटिश नागरिक होते हुए छात्रों को रोका नहीं. बल्कि हर आन्दोलन में उनका सहयोग
भी किया. एक बार उनके प्रधानाचार्य रहते हुए पुलिस कैंपस में घुस कर छात्रों की
गिरफ़्तारी करनी चाही मगर मुख्य द्वार उन्होंने बंद करवा दिए. अंग्रेजी फ़ौज को
परिसर में घुसने नहीं दिया. होमरूल लीग आन्दोलन के दौरान आवाज उठाई, और जेल गये.
कालांतर में मद्रास चले गये जहां पर 12 अगस्त 1912 को निधन होने के बाद मद्रास के
अडयार में ही एनी बेसेंट के बगल में समाधी बना दी गयी.
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