Friday, September 18, 2020

प्रशासनिक पद का त्याग कर राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल हुए काशी के प्रथम भारत रत्न डॉ भगवान दास

डॉ भगवान दास की पुण्यतिथि पर विशेष

देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी विद्या और विद्वता का गढ़ माना जाता है शिक्षा, ज्ञान, साहित्य, कला, पत्रकारिता आदि क्षेत्रों में काशी की धरती को ऐसे कई विभूतियों ने भी अपनी विद्वता से सुशोभित किया है जिनकी देश में अमिट छाप है। इनमें से ही एक डॉ भगवान दास। प्रतिबद्ध गाँधीवादी डॉ भगवान दास जी का जन्म काशी में 12 जनवरी 1869 को हुआ था

डॉ भगवान दास जी के पुण्यतिथि पर हिन्दी पत्रकारिता संस्थान, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के निदेशक प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डॉ. भगवान दास जी ऐसे मनीषि है जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपना सम्पूर्ण योगदान दिया है, भारत राष्ट्र की सेवा किया है। वे हमारे लिए सदैव स्मरणीय हैं और आजीवन रहेंगे। प्रों सिंह ने चर्चा करते हुए बताया कि डॉ. भगवान दास जी प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। गांधी जी के आह्वान पर प्रशासनिक पद का त्याग कर वे राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल हो गये। अंग्रेजों का बहिष्कार करने के लिए गांधी जी के साथ मिलकर वे स्वदेशी अपनाने की लड़ाई भी लड़े। डॉ. भगवान दास जी ने भारतीय दर्शन को भी दिशा दी है। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ समेत अन्य शिक्षण संस्थाओं के वे संस्थापक सदस्य भी रहें हैं। शिक्षा क्षेत्र के विकास के लिए काशी में शिक्षा शास्त्रीयों का 21 दिवसीय सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें डॉ भगवान दास के नेतृत्व में ‘‘भारत की भावी शिक्षा नीति क्या हो’’ इस पर विचार किया गया। उन्हें सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। इस प्रकार वे काशी क्षेत्र के प्रथम भारत रत्न बनें। प्रो. सिंह ने आगे बताया कि यह कहा जा सकता है कि उस समय गांधी जी के नेतृत्व में चलने वाला जो भी राष्ट्रीय आन्दोलन था उसकी वैचारिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि को बनाने में डॉ भगवान दास जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

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