Tuesday, January 17, 2023

दिवस विशेष : जानें कौन हैं रणछोड़दास रबारी ‘पागी’, जिन्होंने 1,200 पाकिस्तानी सैनिकों को धुल चटा दी

भारत की अपने पड़ोसी चीन और पाकिस्तान से सीमा पर प्रायः मुठभेड़ होती रहती है। इनमें जहां सैनिक आगे बढ़कर मोर्चे पर लड़ते हैं, वहां स्थानीय नागरिक पीछे से सेना का सहयोग करते हैं। ऐसे ही एक पशुपालक रणछोड़दास रबारी पागीने 1965 में सेना की जो सहायता की, उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। वे गुजरात से लगे पेथापुर गथडो गांव के पशुपालक गडरिये थे; पर 1947 में यह गांव पाकिस्तान में चला गया। इससे वहां हिन्दुओं का उत्पीड़न होने लगा। अतः वे सपरिवार गुजरात के बनासकांठा में बस गये।

राजस्थान और गुजरात के गडरिये अपने ऊंट, भेड़, बकरी आदि के साथ कई-कई दिन तक रेगिस्तानी क्षेत्रों में घूमते रहते हैं। चांद, सूर्य, तारे तथा अन्य नक्षत्रों की सहायता से उन्हें समय, मौसम तथा दिशा का ठीक ज्ञान होता है। रणछोड़दास तो इसके विशेषज्ञ ही थे। इसलिए 58 वर्ष की अवस्था में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हें रास्ता दिखाने वाले मार्गदर्शक (पागी) के रूप में रख लिया। रणछोड़दास रेत पर पड़े पैरों के निशान देखकर बता देते थे इधर से गये व्यक्ति या पशु कितनी देर पहले गये हैं तथा कितनी दूर पहुंच गये होंगे। वे उनकी उम्र और कितना बोझ लेकर चल रहे हैं, इसका भी ठीक आकलन कर लेते थे। पशुओं की गंध और मल-मूत्र से वे उनके नर या मादा होने का अनुमान लगा लेते थे।

1965 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने गुजरात में कच्छ सीमा पर स्थित विद्याकोटथाने पर कब्जा कर लिया। इस लड़ाई में लगभग 100 भारतीय सैनिक शहीद हुए। अतः दस हजार सैनिकों एक बड़ी टुकड़ी वहां भेजी गयी। उनके मार्गदर्शक थे रणछोड़दास। रेगिस्तान में तेज आंधी से रेत के टीले जगह बदल लेते हैं। इससे लोग भ्रमित हो जाते हैं; पर रणछोड़दास के साथ सेना अनुमान से 12 घंटे पहले ही छारकोटके मोर्चे पर पहुंच गयी और पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। इतना ही नहीं, भारतीय सीमा में छिपे 1,200 शत्रु सैनिक भी पकड़ लिये गये। इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कारदिया गया। 

1971 के युद्ध में भी रणछोड़दास ने कच्छ के रण और सीमावर्ती सर क्रीक में कई जगह भारतीय सेना की ऐसी ही सहायता की। ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहते हैं। जहां जीप और ट्रक भी हार जाते हैं, वहां ऊंट ही काम आता है। बिना खाये-पिये वह दिन भर चलता रहता है। रणछोड़दास ने कई बार अपने ऊंटों पर लादकर बम, गोले और अन्य सैन्य सामग्री मोर्चे तक पहुंचायी। पाकिस्तान के पालीनगर को जीतने में उनकी बड़ी भूमिका थी। तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल मानेकशा ने इसके लिए उन्हें 300 रु. नकद पुरस्कार दिया।

1965 और 1971 के युद्ध में भारतीय सेना को दिये गये अमूल्य योगदान के लिए उन्हें संग्राम पदक, पुलिस पदक तथा समर सेवा पदक मिले। जनरल मानेकशा तो रणछोड़दास से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने एक बार सैन्य हैलिकाॅप्टर भेजकर उन्हें अपने साथ भोजन के लिए बुलाया। रणछोड़दास के पास कपड़े की एक छोटी सी पोटली थी। उसमें दो मोटी रोटी, प्याज और गुजरात में प्रचलित बेसन से बना गांठिया था। जनरल मानेकशा ने दो में से एक रोटी खुद खाकर रणछोड़दास को अनूठा सम्मान दिया। अपने अंतिम दिनों में भी उन्होंने कई बार इस अनूठे योद्धा रणछोड़दास पागीको याद किया।

2009 में 108 वर्ष की अवस्था में रणछोड़दास ने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। 17 जनवरी, 2013 को 112 वर्ष की भरपूर आयु में उनका निधन हुआ। गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्र के लोकगीतों में पागीबाबा आज भी जीवित हैं। भारतीय सेना ने उनके सम्मान में उत्तर गुजरात में सुइगांव अंतरराष्ट्रीय सीमा की एक चैकी को रणछोड़दास पोस्टनाम दिया है। उनके जीवन पर एक हिन्दी फिल्म भी बन रही है। 

(अंतरजाल पर उपलब्ध सामग्री)

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