Sunday, January 15, 2023

श्रद्धा-ममता और आत्मीयता की संगमनगरी है प्रयागराज - रमेश जी

प्रयागराज| प्रयागराज श्रद्धा, ममता और आत्मीयता की संगमनगरी है। यहां उपासना पद्धतियों के सारे भेद स्वयं मिट जाते हैं। सब मिलकर यहां एक माह कल्पवास करते हैं। उक्त विचार काशी प्रांत प्रचारक श्रीमान रमेश जी ने व्यक्त किया| वे प्रयागराज उत्तर भाग स्थित मेडिकल कॉलेज में विद्यार्थी कार्य विभाग की ओर से प्रीतमदास मेहता प्रेक्षागृह में आयोजित राष्ट्रीय युवा संगम एवं सहभोज कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे|

उन्होंने आगे कहा कि प्रयागराज की धरती समन्वय तथा समरसता की शिक्षा देती है। मकर संक्रांति पर पूरे देश भर के लोग यहां आकर समरसता का ही भाव ग्रहण करते हैं। यह क्रांतिवीरों की धरती है। हुतात्मा चंद्रशेखर आजाद के बलिदान की यह पवित्र भूमि है जो हमें त्याग और समर्पण की शिक्षा देती है। उन्होंने आह्वान करते हुए नौजवानों से कहा कि देश को सर्वोच्च स्थान पर ले जाना चाहते हैं तो अपने सर्वस्व का त्याग करना पड़ेगा। तभी यह देश परम वैभव को प्राप्त कर सकेगा। प्रभु श्री राम ने भी कहा था सबसे बड़ा धर्म राष्ट्रधर्म है। मां और मातृभूमि स्वर्ग से भी महान है। यह देश उस सर्वस्पर्शी राम का है जिन्होंने शबरी के जूठे बेर खाकर मानव समाज में समरसता का सन्देश दिया था। अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी ने भी ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसपी सिंह ने की| मंच पर मा. सह विभाग संघचालक नागेंद्र जी, विभाग प्रचारक डॉ. पीयूष जी, नितिन जी, जिला प्रचारक बृजेश जी, कार्यवाह मुकेश जी समेत बड़ी संख्या में छात्र उपस्थित रहें।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रयाग विभाग के सभी 40 नगरों में मकर संक्रांति का पर्व सामाजिक समरसता दिवस के रुप में मनाया गया| इस अवसर पर सेवा बस्तियों में वंचितों एवं उपेक्षित जनों के साथ संघ के कार्यकर्ताओं ने मिलकर खिचड़ी खाई।

"संगठन गढ़े चलो, सुपथ पर बढ़े चलो, भला हो जिसमें देश का वो काम सब किए चलो।"

प्रयागराज दक्षिण भाग के सहभोज मे प्रांत प्रचारक जी ने कहा कि विदेशी और विधर्मी आक्रमणकारियों के कारण हमारे समाज को जो क्षति को पूर्ण करने का, जो भी विषम परिस्थितियां उत्पन्न हुई थी उन्हें दूर करने का समय आ गया है। इसीलिए संघ सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी, स्वभाषा,  धर्म-संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रयास कर रहा है। हमें राम जी का नाम सुमिरन करना है पर यह पर्याप्त नहीं। हमें राम जी के काम का भी अनुसरण करना है। माता शबरी, सखा निषाद राज का सम्मान कर राम से नारायण हो गये। आतताई रावण का नाश भगवान राम अपनी दैवी शक्ति से चुटकियों में कर सकते थे, पर उन्होंने वानर-भालुओं की संगठित शक्ति का गठन कर रावण विजय की। उनके इसी संगठन मंत्र को संघ ने अपनाया। इसीलिए हम गीत गाते हैं "संगठन गढ़े चलो, सुपथ पर बढ़े चलो, भला हो जिसमें देश का वो काम सब किए चलो।" उन्होंने धर्मान्तरण पर अपना विचार रखते हुए कहा कि हम एक नहीं हैं इसी कारण से हमारी बहनों को बहला-फुसलाकर उनका धर्मांतरण कराया जाता है| यदि वे ऐसा नहीं करती हैं तो उनके 36 टुकड़े कर दिए जाते हैं। इसका एकमात्र कारण यही है कि हम विचारों से बंटे हुए हैं और अच्छे संस्कार अपने बच्चों में नहीं डाल पा रहे हैं|

...हमें भी सबको एक स्थान देना चाहिए

उन्होंने वार्षिक माघ मेला पर आगे कहा कि हम प्रयागराज के रहने वाले लोग हैं| यहां हर वर्ष माघ मेला लगता है| मां गंगा के आंचल में सभी स्नान करते हैं| स्नान करने वाला व्यक्ति नहीं जानता कि हमारे बगल में कौन स्नान कर रहा है? वह किस जाति का है? वह किस स्थान का है? जब मां गंगा समरसता का आंचल बिखेर कर सबको एक स्थान देती है तो हमें भी सबको एक स्थान देना चाहिए, हिन्दू दर्शन यही है ।

इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता तिलक राज सोनकर जी ने की| मंच पर रामगोपाल अग्निहोत्री जी (मा. भाग संघचालक प्रयाग दक्षिण भाग) भी उपस्थित रहे| कार्यक्रम में संजय जी, वीर कृष्ण जी, वसु जी, ऋषभ जी, आशीष जी एवं हजारों की संख्या में स्वयंसेवक बंधु और बहने उपस्थित रहीं।

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