काशी। भगवान शंकर का अति प्रिय माना जाने वाला सोमवार का दिन काशीवासियों के लिए विशेष रहा। काशी में सोमवार को बाबा विश्वनाथ की अनन्य भक्त देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का प्रथम आगमन हुआ। उन्होंने बाबा विश्वनाथ और काशी के कोतवाल बाबा कालभैरव के दर्शन-पूजन किए। विश्व प्रसिद्ध मां गंगा की आरती देखी। उन्होंने देश के लिए मंगलकामना करते हुए ट्वीट किया कि "आलौकिक स्वरों और दिव्य दृश्य ने पूरे वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया। जीवनदायिनी मां गंगा का आशीर्वाद सभी देशवासियों को सदा मिलता रहे, यही मेरी मंगलकामना है।"
काशी आगमन पर अपना विचार साझा करते हुए राष्ट्रपति ने जनजाति समाज के लोगों का आह्वान किया कि हमें अपने विचारों में परिवर्तन लाना चाहिए कि हम जनजाति है, हम पीछे हैं। हमें सरकार के सहारे न होकर सकारात्मक कार्यों के माध्यम से स्वयं आगे बढ़ने की हिम्मत दिखानी चाहिए। यह सुखद है कि अब जनजाति समाज की महिलाएं राजनीति समेत अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं। इसके साथ ही हमें अपने परंपरागत व्यवसाय कृषि व पशुपालन से जुड़कर स्वरोजगार के क्षेत्र में भी प्रगति लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं भी आपके बीच से हूं। हम भी कुछ कर पाएंगे, ये सोच और शक्ति रखनी चाहिए।अपने बच्चों को पढ़ाएं, इसके लिए आवश्यक सुविधाएं टेक्नोलॉजी, विद्यालय, डिग्री कॉलेज आदि की मांग पूरी होगी।
सनातन परंपरा को जीने वाली राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जनजाति समाज की परंपरा, आदर्श एवं विचारों से आज भी जुड़ी है
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू देश
की प्रथम नागरिक और जनजाति समाज से प्रथम राष्ट्रपति का गौरव प्राप्त करने के बाद
भी अपने समाज की परंपरा, आदर्श एवं
विचारों को आज भी नहीं भूली है। वे अपने आज भी अपने समाज की परंपरा, आदर्श एवं विचारों से जुड़ी हैं। उन्होंने राष्ट्रपति पद के शपथ समारोह
में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि "रानी लक्ष्मीबाई, रानी वेलु नचियार, रानी गाइदिन्ल्यू और रानी
चेन्नम्मा जैसी अनेकों वीरांगनाओं ने राष्ट्ररक्षा और राष्ट्र निर्माण में
नारीशक्ति की भूमिका को नई ऊंचाई दी थी।
संथाल क्रांति, पाइका क्रांति से लेकर कोल
क्रांति और भील क्रांति ने स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज के योगदान को सशक्त
किया था। सामाजिक उत्थान एवं देश-प्रेम के लिए ‘धरती आबा’
भगवान् बिरसा मुंडा जी के बलिदान से हमें प्रेरणा मिली थी।
दशकों पहले मुझे रायरंगपुर
में श्री अरबिंदो इंटीग्रल स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला
था। कुछ ही दिनों बाद श्री अरबिंदो की 150वीं जन्मजयंती मनाई जाएगी। शिक्षा के बारे में श्री अरबिंदो
के विचारों ने मुझे निरंतर प्रेरित किया है।
मैंने देश के युवाओं के
उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है। हम सभी के श्रद्धेय अटल जी कहा करते थे कि
देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे सिर्फ अपना ही भाग्य नहीं बनाते, बल्कि देश का भी भाग्य बनाते
हैं। आज हम इसे सच होते देख रहे हैं।
मेरा जन्म तो उस जनजातीय
परंपरा में हुआ है, जिसने हजारों
वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और
जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन
लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं। मैंने अपने अब तक के
जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है।
जगन्नाथ क्षेत्र के एक
प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है –
“मो जीवन पछे
नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ”
अर्थात, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा
जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है।
जगत कल्याण की भावना के साथ, मैं आप सब के विश्वास पर खरा
उतरने के लिए पूरी निष्ठा व लगन से काम करने के लिए सदैव तत्पर रहूंगी।
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी के विचार अत्यंत उच्च और सामयिक है।
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