Friday, June 2, 2023

देश की अखंडता बनाए रखना सबकी सामूहिक जिम्मेदारी – डॉ. मोहन भागवत जी

नागपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग समापन समारोह में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि देश की स्वाधीनता के 75 साल पूरे हो गए हैं. इसके माध्यम से हजारों अनुकरणीय चरित्र हमारे सामने आए और हमारी स्मृतियों को जाग्रत किया. देश के प्रति गौरव और स्वाभिमान भी जाग्रत हुआ. पूरी दुनिया में हमारे देश का गौरव हो रहा है. कोरोना, आर्थिक संकट में भारत ने बेहतर कार्य किया. हमारे देश की तरक्की देखकर दुनिया अचंभित है. भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिली. नए संसद भवन का उद्घाटन किया गया. दुनिया ने वहां की तस्वीर और वहां का समग्र माहौल देखा. जागरूकता लाने का प्रयास किया जा रहा है, जिसकी वास्तव में हमारे देश को आवश्यकता थी. भारत प्रगति कर रहा है, कई आंतरिक मामलों में सुधार कर रहा है. तो आम लोग इससे खुश नजर आ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि देश के कई हिस्सों में आंतरिक विवाद भी हैं. आपस में भाषा, पंथ, रिवाज को लेकर विवाद हैं. हम दुश्मन को अपनी ताकत दिखाने की जगह आपस में लड़ रहे हैं. हम भूल रहे हैं कि हम एक देश हैं. हमारे देश में चल रहे आंतरिक कलह को प्रोत्साहित करने वाले कई लोग हैं. राजनीति में विभिन्न दल होते हैं और उनमें सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा भी होती है. उन्हें एक दूसरे की आलोचना करनी चाहिए. लेकिन कम से कम विवेक तो होना चाहिए कि लोगों में कलह न हो और देश का नाम खराब न हो. देश की अखंडता को बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है. एक-दूसरे पर दोषारोपण करने से कुछ हासिल नहीं होगा.

मध्य युग में हमारे मन में जाति और संप्रदाय के आधार पर भेदभाव पैदा हुआ. लेकिन बाहर से आए लोग अब अपने हो गए हैं. उन्हें बाहरी लोगों से संबंध भूलकर इस देश में रहना चाहिए. हमें भी उन्हें अपना मानना चाहिए और गलत होने पर उन्हें समझाना चाहिए. अन्यथा ऐसे भेद गंभीर क्षति का कारण बन सकते हैं. कुछ बाहरी लोग अपने स्वार्थ के लिए भारत में कलह पैदा करने का प्रयास करते हैं. उन्हें मौका मिलता है और विवाद को बढ़ाने के लिए दुष्चक्र बनाते हैं. सही स्थिति को जानकर, अतीत और वर्तमान की स्थिति को समझ कर सभी को मिलकर काम करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अहंकार, मतभेद के कारण हमने अतीत का बोझ अपने मन पर डाल रखा है. सारा भारत हमारी मातृभूमि है. इसमें सामंजस्य से किसी की पहचान नहीं मिटेगी. भारत में हर कोई एक विशिष्ट पहचान के साथ सुरक्षित है. भारत के बाहर ऐसी कोई तस्वीर नहीं है. अगर एक निश्चित पहचान हो तो नागरिकों का जीना मुश्किल हो जाता है.

मुसलमानों ने स्पेन, मंगोलिया पर आक्रमण किया. वहां के लोग जागे और वहां बदलाव लाए. लेकिन  हमारे देश में इस्लाम की उपासना सुरक्षित रूप से की जा सकती है. सहजीवन सदियों से चल रहा है. हमें इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए कि हमारे पूर्वज इस देश के पूर्वज हैं. विविधता हमारे लिए संघर्ष का कारण नहीं है. लेकिन हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. पहले हम खुद को भूल जाते हैं और फिर बाहरी लोगों के हमलों का शिकार हो जाते हैं.

जाति भेद के कारण हमारे देश में अन्याय हुआ है. हम अतीत को नहीं बदल सकते. अपनी छोटी सी पहचान खोने के भ्रम में देश की एकता को क्यों नज़रअंदाज किया जा रहा है. हम विविधता का उत्सव मनाते हैं. जिन्हें दुनिया में कहीं भी शरण नहीं मिलती, उन्हें भारत में सुरक्षित स्थान मिल जाता है. हम भारत के प्रति भावुक भक्ति रखते हुए विविधता के साथ सह-अस्तित्व में रह सकते हैं. स्व के आधार पर जीवन का पुनर्गठन करना है. क्षुद्र कारणों से आपस में लड़ना अनुचित है.

उन्होंने कहा कि दुनिया भारत से एक नई दिशा की उम्मीद कर रही है. हमारे पास वह क्षमता है. हम अभी तक पूरी तरह से उस दिशा को नहीं समझ पाए हैं, जिसकी इस संभावना को जरूरत है. उसके लिए दृष्टि जगानी पड़ती है. हम सब बाहर से अलग दिखते हैं, लेकिन अंदर से हम सब एक हैं. भारत हमारी मातृभूमि है और वही एकता की प्रेरणा है.

समस्या के समाधान का तरीका है, भावनाओं में विश्वास और आपसी विश्वास. एकतरफा संवाद से अंतरंगता नहीं बढ़ सकती. देश के लिए सभी को कुछ न कुछ कुर्बानी देनी होगी. इसकी आदत पड़ती है. इस प्रक्रिया को संस्कार कहा जाता है. यह काम सभी को मिलकर करना चाहिए. पिछले सौ सालों में जिन देशों ने तरक्की की और धराशायी हुए, उनमें आम लोगों की भूमिका का अध्ययन करें. राष्ट्रहित के लिए जब जनता साथ आई तो वे देश प्रगति के शिखर पर पहुंचे.

सरसंघचालक जी ने कहा कि शिवाजी महाराज ने राष्ट्र की स्वतंत्रता की घोषणा की थी और हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी. शिव राय ने पुराने मूल्यों को जगाया. गोहत्या बन्द कर मातृभाषा में व्यापार करने लगे. नौसेना की स्थापना हुई. उन्होंने जनता को एकजुट किया. उन्होंने उन लोगों की रक्षा की जो देश के प्रति वफादार थे. कल देश शिव राय के गौरवशाली कार्य को याद रखेगा. एक सामान्य व्यक्ति आदर्शों को रखना चाहता है. स्वयंसेवकों को हनुमान और छत्रपति शिवाजी महाराज का अनुसरण करना चाहिए. संघ को कुछ नहीं चाहिए और न ही संघ किसी चिज का श्रेय लेना चाहता है. समाज स्वयंसेवकों के साथ काम कर रहा है और अच्छी चीजें हो रही हैं.

प. पू. अदृश्य काडसिद्धेश्वर स्वामीजी

स्वामी जी ने कहा कि संघ के पिछले कई वर्षों के कार्यों से समाज प्रभावित हुआ है. जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व का सबसे बड़ा देश है. हमारे देश के पड़ोस में दोस्तों से ज्यादा दुश्मन हैं. लेकिन हमारा सबके साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार है. फिर भी हमारे देश पर कई बार हमले हुए.

हमारे देश की प्राचीन परंपरा रही है. देश के कई राजा और प्रशासक दुनिया के लिए रोल मॉडल बने हैं. उन्होंने भारतीय संस्कृति और सभ्यता की शिक्षाओं को विश्व में फैलाया. दुनिया के कई लोगों ने हमारी सांस्कृतिक परंपराओं का पालन किया. लेकिन हमारे लोग इसे कुछ हद तक भूल गए हैं. समाज को अपनी भूली-बिसरी परंपराओं को याद दिलाने की जरूरत है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस दिशा में काम कर रहा है और देश को वैश्विक नेता के रूप में फिर से स्थापित करने का प्रयास कर रहा है.

हमारा देश युवाओं का देश है. जनसंख्या देश के लिए समस्या नहीं है. अपनी परंपरा और गौरवशाली संस्कृति को भूलना एक बड़ी समस्या है. संघ अनुशासन, सेवा और समर्पण, हिन्दुत्व, राष्ट्रीयता, ज्ञान, सज्जनता, सकारात्मकता, समरसता का प्रतीक है.

मैं संघ का स्वयंसेवक नहीं हूं. लेकिन मैं संघ का प्रशंसक हूं. संघ मूल्यों को युवाओं में बिठाना चाहिए. केवल शस्त्र से देश की रक्षा नहीं होती. समाज को सुरक्षित रखने के लिए संस्कार, ज्ञान, सामान्य ज्ञान, समझ की जरूरत है. संघ इन मूल्यों की दिशा में काम कर रहा है.

उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति में कुछ गुण छिपे होते हैं. उन गुणों को खोजना होगा. संघ शिक्षा वर्ग इन गुणों को प्रकट करने वाला मंथन है. मुझे भी तीन दिनों में बहुत अच्छा अनुभव हुआ. मुझे भी सीखने को मिला और मेरा नागपुर में आना सार्थक रहा.

बच्चे शाखा में जाकर अवश्य ही सही दिशा में जाएंगे. यदि बच्चों को सुरक्षित रखना है तो उन्हें संघ की शाखाओं में भेजा जाना चाहिए. उसी से बच्चे देशभक्त, समाज चिंतक, स्वावलंबी बनेंगे.

देश के संतों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ना चाहिए. कीर्तन प्रवचन के बाद शेष समय संघकार्य करते हुए व्यतीत करना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो धर्म के साथ-साथ राष्ट्र की भी उन्नति होगी.

संघ द्वारा समाज में सभी प्रकार के मुद्दों पर विचार किया जाता है. देश के लोगों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को भी यही संस्कार दें. विभिन्न लोग हमारे देश को नष्ट करने के लिए युवाओं को नशेड़ी बना रहे हैं. इसमें विदेशी तत्व भी शामिल हैं. संस्कारों के द्वारा ही इन्हें रोका जा सकता है.













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