Sunday, August 31, 2025

संघ और तकनीकी (Technology)

 - प्रशांत पोळ

समय आने पर संघतकनीकी को केवल आत्मसात ही नहीं करतातो पचा भी लेता है।

तकनीकी केवल एक साधन है। और संघ कभी साधनों का गुलाम नहीं रहा हैन ही रहेगा..!

ऑनलाइन बैठकों के लिए या चर्चा सत्रों के लिएसंबंधित एप्स के स्ट्रीमिंग सर्वर होते हैं। उनकी क्षमता और संख्या ज़बरदस्त होती है। विश्व के अलग-अलग डाटा सेंटर्स में यह स्ट्रीमिंग सर्वर्स रखे जाते हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले एक बड़े अधिकारी ने बताया कि, ‘कोरोना काल में ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंगपूरे विश्व में संघ के लोगों ने सर्वाधिक की। इसमें विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।

पिछली सदी के दो दशकों ने दुनिया का चेहरा ही बदल दिया। उनमें से एक था, चालीस का दशक। इस दशक में विश्व युद्ध हुआ, और इतिहास के साथ दुनिया का भूगोल भी बदला..! दूसरा दशक था, नब्बे का। यह दशक तकनीकी का था, जिसने दुनिया में आमूल-चूल बदलाव लाया। इस दशक के प्रारंभ में चार प्रमुख घटनाएं घटीं, वह भी संयोग से। लेकिन उनका इकट्ठा परिणाम, दुनिया का चेहरा बदलने में हुआ।

पहली घटना घटी, साधारण 1991 के आसपास, जब माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम को बाजार में उतारा। यह एक क्रांतिकारी बदलाव था। इसके कारण DOS जैसी कठिन प्रणालियों से घबराया हुआ सामान्य व्यक्ति, संगणक (कंप्यूटर) के निकट आया और उसका उपयोग करने लगा।

अब सामान्य व्यक्ति ने कंप्यूटर का उपयोग करना, अर्थात क्या करना? इसका उत्तर भी अगले दो-तीन वर्षों में मिल गया। 1994 में इंटरनेट का प्रवेश हुआ और दुनिया बदलने की प्रक्रिया तेज हुई। इसी समय और दो घटनाएं हुई। पहली साधारणतः 1992 में हुई, जब डिजिटल मोबाइल फोन दुनिया के सामने आए। जीएसएम तकनीकी का प्रारंभ भारत ने किया, और धीरे-धीरे मोबाइल की तकनीक विकसित होने लगी। इसी समय सैटेलाइट टीवी आया। दूरदर्शन पर एक ही चैनल देखने वाले भारतीयों को मानो लॉटरी ही लग गई। यह दूरदर्शन क्रांति का सूत्रपात था। इसी से आगे चलकर सैकड़ों अलग-अलग चैनल घर के टीवी पर दिखने वाले थे।

चार-पांच वर्षों में घटी इन घटनाओं के कारण पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची। यही थी वह सूचना क्रांति, जिसके कारण आगे चलकर सोशल मीडिया का एक अलग और प्रभावी विश्व सामने आया।

भारत में 15 अगस्त 1995 के दिन दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटी। प्रातः 10 बजे मुंबई के प्रभादेवी में, विदेश संचार निगम ने, भारत में इंटरनेट सबके लिए खुला किया। इसी दिन शाम 6 बजे, भारत का पहला हिंदी टीवी चैनल प्रारंभ हुआ। इस ‘एटीएन’ चैनल की शुरुआत, ‘मासूम’ चलचित्र दिखाकर हुई।

मजेदार बात यह कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपना प्रचार विभाग इसी समय प्रारंभ किया। संघ ने 1994 में अपने कार्य में और दो विभाग जोड़े। एक –  प्रचार विभाग और दो – संपर्क विभाग। उस समय संघ के कुछ वरिष्ठ एवं पुराने स्वयंसेवकों के लिए यह कल्चरल शॉक था। किंतु धीरे-धीरे इसका महत्व सभी के ध्यान में आया। तकनीकी के कारण समाज के बदलाव की यह दिशा बिल्कुल प्रारंभिक काल में ही संघ की समझ में कैसे आई..? आज जब हम पीछे मुड़कर उस कालखंड को देखते हैं, तो इस बात का आश्चर्य लगता है। इसका अर्थ यह है कि संघ को तकनीकी के गति की जानकारी थी और उसका निश्चित रूप से अंदाज था।

संघ ने तकनीकी को हमेशा एक उपयोगी साधन के रूप में देखा है। किंतु एक परहेज भी रखा – तकनीक को हावी नहीं होने देना है। ‘व्यक्ति के लिए तकनीकी है, तकनीकी के लिए व्यक्ति नहीं’ यह सूत्र दिमाग में पक्का था। और इसी कारण 20-20 दिनों के संघ शिक्षा वर्ग आज भी बिना मोबाइल के होते हैं। इस प्रशिक्षण वर्ग में आने वाले स्वयंसेवकों को मोबाइल की अनुमति नहीं होती। दो-तीन दिन में एक बार, वह भी आवश्यक हो तो ही, वे मोबाइल का उपयोग कर सकते हैं।

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गुरुवार, 26 दिसंबर, 2024 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत जी ने नागपुर में सोमलवार शिक्षण संस्था के 70वें वर्धापन दिन के उपलक्ष्य में एक उद्बोधन दिया। इसमें उन्होंने तकनीकी के बारे में संघ की सोच स्पष्ट रूप से सबके सामने रखी। उन्होंने कहा, “तकनीकी महत्वपूर्ण है। तकनीकी का विकास, व्यक्ति का काम अधिक जल्द गति से और अचूकता से करेगा। परंतु इसका उपयोग मानवीय दृष्टिकोण से प्रभावी रूप से होना चाहिए।” महात्मा गांधी जी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “नैतिकता के बिना तकनीकी और विज्ञान का उपयोग गलत है।”

अर्थात संघ की भूमिका स्पष्ट है। आवश्यकता के अनुसार तकनीकी का उपयोग होना चाहिए। परंतु तकनीकी का अतिरेक ना हो। संघ का मुख्य काम है, ‘देशहित के लिए व्यक्ति निर्माण’। यह काम कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से नहीं हो सकता। उसके लिए व्यक्ति ही आवश्यक है। व्यक्ति की भाव-भावनाओं की, अकृत्रिम स्नेह की आवश्यकता होती है। एआई से यह साध्य नहीं होता। यह तकनीकी की मर्यादा है।

व्यवस्थापन’ संघ कार्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है। गत 100 वर्षों में संघ कार्य अत्यंत प्रभावी रूप से चल रहा है। इसमें परिणामकारक और उत्कृष्ट व्यवस्थापन का भी हिस्सा है। व्यवस्थापन शास्त्र का कोई औपचारिक प्रशिक्षण ना लेते हुए भी, संघ के स्वयंसेवकों ने एक आदर्श, जिम्मेदार और आश्वासक व्यवस्थापन तंत्र खड़ा किया है। रोज की शाखाओं से, अलग-अलग बैठकों से लेकर तो लाख – डेढ़ लाख स्वयंसेवकों के भव्य – दिव्य शिविरों तक, संघ का नियोजन और व्यवस्थापन तंत्र प्रभावी रहा है। इस व्यवस्थापन में संघ ने समय-समय पर तकनीकी का भरपूर उपयोग किया है।

पुणे में तळजाई की पहाड़ी परदिनांक 14, 15 और 16 जनवरी 1983 को संघ ने एक बड़ा प्रांतिक शिविर आयोजित किया था। इस शिविर में 35,000 स्वयंसेवक उपस्थित थे। शिविर का मंच भी शिविर जैसा ही भव्य था। पृथ्वी के आकार का गोल मंच और उस पर शेषनाग ने अपना फन निकाला हैऐसी पृष्ठभूमि का यह दो मंजिला विशाल मंच था। इस मंच पर जाने के लिए ‘लिफ्ट‘ का प्रयोग किया गया था। उन दिनों मैदान के मंच के लिए ‘लिफ्ट‘ तैयार करनायह भारत में अभूतपूर्व घटना थी। तकनीकी का ऐसा प्रयोग, यह विशेष था।

इस शिविर  के बहुत पहलेवर्ष 1948 में संघ पर गांधी हत्या का झूठा आरोप लगाकर प्रतिबंध लगाया गया था। 1949 में इस मिथ्या आरोप से संघ की मुक्तता हुई और प्रतिबंध हटाया गया। इसके बादतत्कालीन सरसंघचालक परम पूज्य गुरुजी ने संपूर्ण देश का प्रवास किया। जगह-जगह पर सामान्य जनता ने श्री गुरुजी का भव्य स्वागत किया। इस संपूर्ण प्रवास का और अनेक ऐतिहासिक स्वागत समारोहों का, 35 mm कैमरा से चित्रण किया गया। उस समय भी ऐसी तकनीकी का उपयोग करते हुए सामाजिक विषयों से संबंधित डॉक्यूमेंट्री तैयार करने वाला संघ एकमात्र गैर राजनीतिक संगठन था..!

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सूचना क्रांति के बिल्कुल प्रारंभिक काल में संघ ने अपना ‘प्रचार विभाग’ प्रारंभ किया। पर केवल प्रारंभ करके संघ शांति से नहीं बैठा। संघ ने इस सूचना तकनीकी का, अपने कार्य विस्तार हेतु कैसा उपयोग हो सकता है, इसका गहराई में जाकर अध्ययन किया। आने वाले इंटरनेट युग के लिए संघ तैयार था। और इसीलिए, बड़े शांति से, सोच समझकर निर्णय लेते हुए, प्रारंभिक काल में ही संघ ने अपनी वेबसाइट चालू की। rss.org यह यूआरएल संघ को आरंभ में ही मिला। धीरे-धीरे संघ ने सोशल मीडिया के क्षेत्र में भी अपना स्थान पक्का किया। आज संघ के आधिकारिक फेसबुक पेज के 54 लाख फॉलोअर्स हैं। युवा पीढ़ी में लोकप्रिय, इंस्टाग्राम पर भी संघ हैं। यहां 10 लाख से ज्यादा लोग संघ को फॉलो करते हैं।

साधारणतः 2010 से संघ विचारों की ओर आकर्षित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती गई। इनमें से अनेकों को संघ में सक्रिय भाग लेना था। संघ जॉइन करना था। इन सब नए लोगों के लिए संघ ने Join RSS का बटन संघ की वेबसाइट पर दिया। वेबसाइट पर ‘जॉइन आरएसएस’ का एक फॉर्म आता है, जो गूगल फॉर्म जैसा होता है। यह फॉर्म भरकर सबमिट करने के बाद, वह जानकारी केंद्रीय व्यवस्था के पास जाती है। वहां इन फॉर्म्स का स्वयंचलित पद्धति से वर्गीकरण होता है। फॉर्म भरने वाले व्यक्ति की जानकारी संबंधित प्रांत के पास भेजी जाती है। प्रांत से वह शहर – ग्राम, और वहां से उस व्यक्ति के घर के पास जो शाखा होती है, वहां तक पहुंचती है। उस व्यक्ति को निकट की शाखा का कोई स्वयंसेवक संपर्क करता है, और उसे शाखा में सक्रिय करने का प्रयास करता है।

जॉइन आरएसएस’ प्रारंभ होने के बाद अनेक पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के मन में इसके बारे में आशंकाएं थीं। ‘ऐसे इंटरनेट अभियान से संघ के स्वयंसेवक कैसे बन सकते हैं..?’ जैसे प्रश्न भी अनेकों ने पूछे। परंतु कुछ ही दिनों में सबका शंका निरसन हो गया। ‘जॉइन आरएसएस’ को अभूतपूर्व प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। ‘जॉइन आरएसएस’ के माध्यम से संघ को आज तक लाखों कार्यकर्ता मिले हैं। उनमें से कुछ विस्तारक / प्रचारक भी बने हैं। संघ, तकनीकी का कितने प्रभावी रूप से उपयोग करता है, इसका यह उत्तम उदाहरण है।

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संघ स्वयंसेवक तकनीकी को अत्यंत सहजता से आत्मसात करते हैं, यह कोरोना काल में अधिक स्पष्टता से समझ में आया।

4 जुलाई 1975 को कांग्रेस की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संघ पर प्रतिबंध लगाया। प्रधानमंत्री समवेत अनेक नेताओं को लगा कि अब संघ नहीं रहेगा। अगले दो-तीन वर्षों में संघ की शाखाएं नहीं लगेगी, कार्यक्रम नहीं होंगे तो लोग संघ से दूरी बनाएंगे और संघ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा।

परंतु इंदिरा गांधी सहित कांग्रेस के नेताओं को, संघ पर प्रतिबंध लगाने वाले सभी को, संघ की ठीक से समझ ही नहीं थी। प्रतिबंध होने के कारण शाखाएं नहीं लग रही थी। किंतु फिर भी संघ स्वयंसेवक एक दूसरे से मिल ही रहे थे। विविध कारणों से से एकत्रित होते थे। इसलिए, 21 मार्च 1977 को जब संघ का प्रतिबंध हटा, तब संघ और अधिक ताकत से, शक्तीशाली होकर खड़ा रहा। संघ प्रचारक कहते थे, “जब तक एक दूसरे से मिलने पर प्रतिबंध नहीं आता, तब तक कोई चिंता नहीं। संघ का काम रूकेगा नहीं।”

किंतु कोरोना की चुनौती इससे भी बड़ी थी, कठिन थी। संघ के काम पर या शाखाओं पर प्रतिबंध नहीं था। परंतु लॉकडाउन के कारण, एक दूसरे से मिलने पर प्रतिबंध था। किसी भी कारण से एकत्रित आने पर पाबंदी थी।

लेकिन, स्वयंसेवकों ने इस परिस्थिति में भी काम रुकने नहीं दिया। इसमें से नया मार्ग ढूंढा। ऑनलाइन बैठकें प्रारंभ की। लॉकडाउन लगने के बाद, अक्षरश: 15 से 20 दिनों में, संघ की ऑनलाइन शाखाएं, ऑनलाइन मिलन और ऑनलाइन साप्ताहिक / पाक्षिक / मासिक बैठकें के प्रारंभ हुई।

यह सब आश्चर्यजनक था, अद्भुत था। क्योंकि संघ ने ग्राम स्तर तक, शहर के बस्तियों में, सामान्यतः कम पढ़े-लिखे समझे जाने वाले लोगों तक यह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की, जूम बैठकों की, ऑनलाइन चर्चा सत्रों की तकनीकी पहुंचाई थी। इस क्षेत्र में काम करने वालों को बेहद्द आश्चर्य हो रहा था कि यह सब कैसे हो गया..! इतने दिनों में, इतने वर्षों में जो कॉर्पोरेट जगत को भी संभव नहीं हुआ, वह संघ ने अल्पावधी में, सामान्य स्वयंसेवकों तक तकनीकी पहुंचाकर, कर दिखाया।

अर्थात, यह सब आसान नहीं था। इसमें अनेक समस्याएं थीं। जूम एप डाउनलोड करना, जूम या इसके जैसे अन्य ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंग एप की लिंक ओपन करने से लेकर, तो कई बातें थीं। अन्य लोग यदि बात कर रहे हैं, तो स्वयं म्यूट रहना, बात करने के लिए अनम्यूट करना, बैंडविथ (रेंज) कम हो तो वीडियो बंद करके केवल ऑडियो चालू रखना… जैसी अनेक बातें कार्यकर्ताओं की समझ में नहीं आती थी। प्रौढ़ कार्यकर्ताओं के लिए तो यह और भी कठिन था। परंतु संघ पद्धति के अनुसार और संघ की कार्यशैली के अनुसार, सबने इसको सकारात्मक ही लिया। सीखने का उत्साह दिखाया। ऑनलाइन बैठकें लेने का प्रशिक्षण भी प्रारंभ हुआ। और कुछ ही दिनों में सब कुछ ठीक हो गया।

ऐसी ऑनलाइन बैठकों के लिए या चर्चा सत्रों के लिए, संबंधित एप्स के स्ट्रीमिंग सर्वर होते हैं। उनकी क्षमता और संख्या ज़बरदस्त होती है। विश्व के अलग-अलग डाटा सेंटर्स में यह स्ट्रीमिंग सर्वर्स रखे जाते हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले एक बड़े अधिकारी ने बताया कि, ‘कोरोना काल में ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंग, पूरे विश्व में संघ के लोगों ने सर्वाधिक की। इसमें विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।’ इसका आधार क्या है..? कुछ भी नहीं। कोई आधार नहीं। क्योंकि, संघ की देश भर की विविध शाखाएं, अलग-अलग अनुषांगिक संगठन.. इन सब ने, जूम और तत्सम एप्स का उपयोग अलग-अलग नाम से किया था। इसलिए समेकित (consolidated) डाटा उपलब्ध नहीं है। लेकिन, विभिन्न कॉन्फ्रेंसिंग करते समय, शीर्षक देते समय, जिन ‘की वर्ड्स’ का उपयोग किया गया, उनका विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष आता है, कि विश्व में संघ से संबंधित लोगों ने ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग, कोरोना काल में सबसे अधिक किया है।

किंतु कोरोना की दूसरी लहर के बाद, जैसे-जैसे कोरोना का प्रकोप कम होता गया, वैसे-वैसे संघ स्वयंसेवकों ने ऑनलाइन बैठकों का उपयोग कम किया और प्रत्यक्ष बैठकों पर जोर दिया। आज भी जहां आवश्यक है, वहीं ऑनलाइन बैठकें होती हैं। अन्यथा प्रत्यक्ष मिलने का ही आग्रह रहता है।

कुल मिलाकर, तकनीकी से संघ का कोई झगड़ा नहीं है। समय आने पर संघ, तकनीकी को केवल आत्मसात ही नहीं करता, तो पचा भी लेता है। लेकिन उसके साथ यह भी सच है कि तकनीकी यह केवल एक साधन है। और संघ कभी साधनों का गुलाम नहीं रहा है, न ही रहेगा..!

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