‘100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज’। इस अवसर पर मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के साथ सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले, क्षेत्र संघचालक श्री पवन जिंदल और प्रांत संघचालक डॉ. अनिल अग्रवाल उपस्थित थे। व्याख्यानमाला में पहले दिन एवं दूसरे दिन सरसंघचालक ने व्याख्यान दिया तथा तीसरे दिन ‘जिज्ञासा समाधान सत्र’ का आयोजन किया गया। यहां व्याख्यानमाला के संपादित अंश दिए जा रहे हैं-
प्रश्न-
1. आप कहते हैं कि हिंदू-मुस्लिम का डीएनए एक है। यदि ऐसा है तो
बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालना क्या सही है?
2. संघ ने विभाजन का विरोध क्यों नहीं किया?
3. पाकिस्तान जैसे देश पर संघ का क्या विचार है?
4. अखंड भारत को लेकर संघ का क्या विचार है?
5. भारतवर्ष हमेशा वसुधैव कुटुम्बकम् के सिद्धांत पर चला है। फिर भी गत
कुछ शताब्दियों में भारत की सीमाएं संकुचित क्यों हुई हैं?
उत्तर-
‘डेमोग्राफी’ की चिंता होती है
और होने का कारण है कि ‘डेमोग्राफी’ बदलती है तो उसके कुछ परिणाम निकलते हैं। देश
का विभाजन एक परिणाम है। मैं केवल भारत की बात नहीं कर रहा हूं। इंडोनेशिया में
तिमोर को ले सकते हैं। सभी देशों में जनसांख्यिकीय असंतुलन की चिंता रहती है।
संख्या से ज्यादा इरादा क्या है?
पहली तो बात संख्या की है। जनसंख्या असंतुलन का पहला कारण है कन्वर्जन। यह भारतीय परंपरा का हिस्सा नहीं है। मत-मजहब अपनी पसंद है।
इसमें जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।
दूसरी बात है घुसपैठ। यह ठीक है कि हमारा डीएनए एक है, लेकिन हर देश की एक
व्यवस्था होती है। इसलिए अनुमति लेकर आना चाहिए। यदि अनुमति नहीं मिलती है,
तो नहीं आना चाहिए। विधि-विधान को परे रखकर किसी देश में घुस जाना
गलत बात है। ऐसे लोगों के आने पर उपद्रव होता है। इसलिए घुसपैठ रोकना चाहिए।
तीसरा है जन्मदर। दुनिया में सब
शास्त्र कहते हैं कि जिस समाज में जन्मदर तीन से कम होता है वह धीरे-धीरे लुप्त हो
जाता है। इसलिए हर माता-पिता को तीन संतान के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। संघ ने
विभाजन का विरोध किया था, लेकिन उस समय संघ की
ताकत क्या थी? उस समय पूरा देश गांधी जी के पीछे था।
उन्होंने कहा कि विभाजन नहीं होगा, लेकिन कुछ हुआ जो
उन्होंने मान लिया। फिर विभाजन को रोका नहीं जा सका।
प्रश्न-
1. पिछले कुछ वर्षों में भारत में शिक्षा के व्यवसायीकरण से शिक्षा का
स्तर तेजी से गिरा है। पढ़े-लिखे बेरोजगारों की फौज तैयार हो रही है। संघ इस
समस्या का क्या समाधान देखता है?
उत्तर-
शिक्षा नौकरी के लिए है, यह मानसिकता इसके लिए जिम्मेवार है। डिग्री चाहिए। क्यों चाहिए? नौकरी के लिए चाहिए। मैं कृषि विद्यापीठ में पढ़ा हूं, जिसमें बड़ी संख्या में एग्रीकल्चर वेटरनरी के छात्र थे। ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट होने के बाद वे लोग खेती में नहीं, नौकरी में गए, जबकि उनके घरों में 70, 100 एकड़ अच्छी खेती थी। पानी था, पंप थे, लेकिन अपने व्यवसाय में वापस नहीं गए। सरकारी नौकरी हो तो और अच्छा। यह मानसिकता सबको नौकरी की तरफ बढ़ाती है। हम नौकर नहीं बनेंगे, हम नौकरी देने वाले बनेंगे। ऐसी अगर सोच हो तो नौकरी की तरफ जो बड़ा प्रवाह जा रहा है, वह कम हो जाएगा। अपना खुद का काम करने से आजीविका चलती है।
- स्रोत - पाञ्चजन्य
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