Wednesday, July 8, 2020

स्वदेशी समाज की सुख-समृद्धि, सुरक्षा व शांति सहित समग्र व्यवस्थाओं का आधार है – वी. भगैय्या


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह वी भगैय्या ने कहा कि स्वदेशी कोई नारा नहीं है या अभियान मात्र नहीं है, बल्कि यह समाज की सुख समृद्धि, सुरक्षा और शांति सहित समग्र व्यवस्थाओं का आधार है. वर्तमान आर्थिक विकास के मॉडल का अनुसरण करते हुए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करके मनुष्य के उपयोग के लिए व्यवस्थाएं खड़ी की गई हैं, जिसके कारण विश्व में अशांति, अविश्वास, अराजकता और असंतोष बढ़ता जा रहा है. इसके कारण विश्व में इस व्यवस्था से यू टर्न लेने की व्याकुलता बढ़ गई है. विकास के इस विनाशकारी मॉडल को बदलने हेतु स्वदेशी जागरण मंच द्वारा, स्वदेशी स्वावलंबन अभियान प्रारंभ हुआ है. उन्होंने कहा कि विचार परिवार के संगठनों के अतिरिक्त गायत्री परिवार, जग्गी जी महाराज सहित अन्य संगठनों ने भी इस अभियान को अपना अभियान माना है. 26 अप्रैल को पूज्य सरसंघचालक जी ने भी स्वदेशी का आह्वान किया है. पिछले 250 वर्षों को छोड़ दें तो भारत सदैव ही संपन्न गांवों का देश रहा है. तेलंगाना के गांव का लोहा इंग्लैंड जाता था, बंगाल और तमिलनाडु के गांवों से कपड़ा निर्यात होता था. वर्तमान में भी विजयवाड़ा में गो आधारित संस्था ने ₹5 करोड़ का लाभदायक उत्पादन किया है. इस अभियान का उद्देश्य यही है कि कृषि को विकास का आधार बनाया जाए और इसका केंद्र ग्राम हो. वर्तमान में आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन के उद्देश्य की पूर्ति हेतु सरकार की नीतियों में यह परिलक्षित भी हो, यह इस अभियान का हेतु है.


उन्होंने स्वदेशी जागरण मंच के स्वदेशी स्वावलंबन अभियान के समन्वयक सतीश कुमार द्वारा लिखित पुस्तक भारत मार्चिंग टूवर्ड स्वदेशी एण्ड सेल्फ़ रिलायंस ‘(अंग्रेजी), ‘स्वदेशी स्वावलंबन की ओर भारतके ऑनलाइन विमोचन के अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये.
स्वदेशी जागरण मंच द्वारा 20 मई, 2020 से स्वदेशी स्वावलंबन अभियान शुरू किया गया था. इस कार्यक्रम के पहले चरण में, डिजिटल हस्ताक्षर अभियान शुरू किया गया था, जिसमें लोग चीनी सामानों के बहिष्कार का संकल्प ले रहे हैं. अब तक 10 लाख से अधिक लोग इस संबंध में शपथ ले चुके हैं और संख्या तेजी से बढ़ रही है.
स्वदेशी स्वावलंबन अभियान का उद्देश्य स्वदेशी और आत्म-निर्भरता के लिए जागृति और प्रतिबद्धता जगाना है. स्वावलंबन को स्वदेशी उद्योग का कायाकल्प करके प्राप्त किया जा सकता है, जिसमें लघु उद्योग, लघु व्यवसाय, कारीगर, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सहित ग्रामीण उद्योग और अन्य गैर-कृषि गतिविधियाँ शामिल हैं, जिनका उद्देश्य रोजगार को प्रोत्साहन के साथ समावेशी विकास करना है.
हम देश के लगभग 700 जिलों तक पहुँच चुके हैं. इस अवधि के दौरान, टीवी चैनल, स्वयंसेवी संगठनों द्वारा आयोजित सर्वेक्षणों से भी यह पता चलता है कि देश में लगभग हर कोई स्वदेशी का उपयोग करने और चीनी का पूर्ण बहिष्कार करने का संकल्प ले रहा है. चीनी निवेश के लिए सरकारी अनुमति अनिवार्य करके सरकार ने पहले ही चीनी निवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. उसके बाद चीन से आयातों  पर कई प्रतिबंध लगाए गए हैं, चीनी कंपनियों की निविदाएं बड़ी संख्या में रद्द की जा रही हैं और कुछ दिनों पहले 59 चीनी ऐप को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर दिया गया है.
पिछले लगभग डेढ़ महीने में, एक प्रक्रिया शुरू की गई है, जिसमें छोटे उद्योगों को फिर से जीवंत करने के उद्देश्य से श्रमिकों, किसानों, छोटे पैमाने के उद्यमियों, शिक्षाविदों, टेक्नोक्रेट और उद्योग और व्यापार जगत के नेताओं सहित सभी क्षेत्रों के लोगों को शामिल किया गया है. विभिन्न संगठनों और संघों के सहयोग से, हम लोगों तक पहुंच बना रहे हैं और उन्हें स्वदेशी / स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने और स्वदेशी / स्थानीय उत्पादों की सूची वितरित करके स्वावलंबन के लाभों से अवगत कराया जाएगा. इस उद्देश्य के लिए उद्योग, व्यापार से जुड़े लोगों को शामिल करते हुए जिला स्तरीय समितियों का गठन किया जा रहा है.
सामान्य रूप से लोग समझने लगे हैं कि यह उन स्थानीय उद्योगों को पुनर्जीवित करने का समय है, जो वैश्वीकरण के युग में हाशिये पर चले गए थे. यह उन आर्थिक नीतियों की शुरुआत करने का भी समय है जो कल्याण, स्थायी आय, रोजगार सृजन में मदद करती हैं और सभी के लोगों में विश्वास पैदा करती हैं.
देश में 700 से अधिक एमएसएमई क्लस्टर हैं. इन समूहों का औद्योगिक विकास का एक लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है. चीन से अनुचित प्रतिस्पर्धा और अनुचित आयात नीतियों के कारण इनमें से कई औद्योगिक समूहों को नुकसान हुआ. उन्हें हर तरह से समर्थन और मजबूत किया जाना चाहिए ताकि वे न केवल रोजगार के अवसर पैदा करें, बल्कि सबसे किफायती लागत में उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन करें. विनिर्माण क्षेत्र में भविष्य में वृद्धि की शुरुआत के लिए पूरे देश में जिला स्तर पर ऐसे औद्योगिक समूहों की पहचान की जा रही है.
भारत में आत्मनिर्भर बनने में ग्रामीण शिल्प और कृषि आधारित उत्पाद भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, कृषि आधारित गतिविधियों के माध्यम से रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में असीमित अवसर उपलब्ध हैं, जिसमें खाद्य प्रसंस्करण, मुर्गी पालन, डेयरी, मछली पालन, मशरूम की खेती, बांस की खेती शामिल हैं. फूलों की खेती, बागवानी और अन्य. एकीकृत ग्रामीण विकास समय की जरूरत है. इसके लिए जागरूकता पैदा की जा रही है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एकीकृत दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.
स्वदेशी स्वावलंबन अभियान के तहत, स्थानीय, छोटे पैमाने के निर्माताओं, कारीगरों और छोटे व्यवसायों को संभालने का यह समय है. स्वदेशी जागरण मंच ने उद्योग के लिए समस्याओं की पहचान करने के लिए कई क्लस्टर अध्ययन किए हैं. कई मामलों में स्वदेशी जागरण मंच का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण साबित हुआ है. इस तरह के अध्ययनों को घरेलू उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए एक मिशन मोड में किया जाएगा.
ग्रामीण क्षेत्रों में सफल प्रयोगों को ग्रामीण लोगों के बीच प्रचारित किया जाएगा ताकि वे खाद्य प्रसंस्करण और कृषि आधारित अन्य गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित हो सकें.
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत

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