Monday, February 20, 2023

आध्यात्मिक एवं सामाजिक मूल्यों के प्रतिमूर्ति थे गुरु जी - रमेश जी

   जौनपुर| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूजनीय माधव सदाशिव राव गोलवलकर जी के जयन्ती के अवसर पर आयोजित सुंदर काण्ड पाठ एवम संगोष्ठी कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए काशी प्रांत प्रचारक श्रीमान रमेश जी ने कहा कि आध्यात्मिक एवं सामाजिक मूल्यों के प्रतिमूर्ति थे गुरु जी। गुरु जी को संतो का सहयोग एवम आशीर्वाद प्राप्त था। उक्त कार्यक्रम जौनपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माधव संघ आश्रम में आयोजित हुआ|

     उन्होंने आगे कहा कि श्री गुरुजी अद्वितीय प्रतिभा के धनी थे। वे काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में प्राध्यापक रहे और यही पर उन्हें विद्यार्थियों द्वारा गुरुजी की उपाधि मिली। गुरु जी युवाओं के प्रेरणा स्रोत थे। पूरे देश का सघन प्रवास कर संपूर्ण देश में संघ कार्य का विस्तार किया। विभिन्न अनुषांगिक संगठनों का निर्माण कर उन्होंने हिंदू समाज में व्याप्त छुआछूत, भेदभाव की आलोचना की। कार्यक्रम का प्रारम्भ श्रीमान रमेश जी,  डा. सुभाष जी, एवं वीरेंद्र जी द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया।

कार्यक्रम में प्रांत प्रचारक प्रमुख रामचंद्र जी, सह प्रांत प्रचारक मुनीश जी, विभाग प्रचारक जगदीश जी, जिला प्रचारक रजत जी, कार्यवाह राजनीश जी, रविन्द्र जी, नगर प्रचारक आलोक जी,  डा. वेदप्रकाश, प्रबुद्ध जन, माताएं एवं बहनें उपस्थित रही।

Sunday, February 19, 2023

वार्षिकोत्सव : राष्ट्र, समाज, धर्म तथा संस्कृति की सेवा करने वाला स्वयंसेवक होता है - डा.राकेश

काशी। लंका के माधव मार्केट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ माधव शाखा पर शाखा का वार्षिकोत्सव आयोजित किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता काशी प्रांत के सह प्रांत कार्यवाह डा.राकेश तिवारी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तीन शब्दों का समुच्चय है। राष्ट्रीय का अर्थ है जिसकी अपने देश, उसकी परम्पराओं, उसके महापुरुषों, उसकी सुरक्षा एवं समृद्धि के प्रति अव्यभिचारी एवं एकान्तिक निष्ठा हो, जो देश के साथ पूर्ण रूप से भावात्मक मूल्यों से जुड़ा हो अर्थात् जिसको सुख-दुःख, हार-जीत व शत्रु-मित्र की समान अनुभूति हो वह राष्ट्रीय कहलाता है।

स्वयंसेवक स्वयं प्रेरणा से राष्ट्र, समाज, धर्म तथा संस्कृति की सेवा करने वाले व उसकी रक्षा कर उसकी अभिवृद्धि के लिये प्रमाणिकता तथा निःस्वार्थ बुद्धि से कार्य करने वाले को स्वयंसेवक कहते हैं। जबकि संघ का शाब्दिक अर्थ संगठन या समुदाय होता है। समान विचार वाले, समान लक्ष्य को समर्पित, परस्पर आत्मीय भाव वाले व्यक्तियों के निकट आने से संगठन बनता है। ये सभी एक ही पद्धति, रीति व पूर्ण समर्पण भाव से कार्य करते हैं। An Organization is a group of workers Who think aloud wedded together to a common ideal and goal.

उन्होंने आगे सम्बोधित करते हुए कहा कि संघ का कार्य ईश्वरीय कार्य है| प्रार्थना के प्रथम श्लोक में हम मातृ वंदना करते है, द्वितीय श्लोक में हम प्रभु का स्मरण करते हैं| प्रार्थना की छठीं पंक्ति में हम नित्य प्रति कहते है कि त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम| यह जो त्वदीयाय कार्याय हम कहते हैं इसका अर्थ है "हे प्रभु ! यह कार्य हम जिसको कर रहे हैं वह आपका ही कार्य है, अर्थात हम ईश्वरीय कार्य करने का संकल्प लेते है| प्रार्थना में हम संकल्प करते है कि "विधायास्य धर्मस्य संरक्षणं " अर्थात धर्म का संरक्षण करते हुए ही हमको सभी कार्य करने हैं| उन्होंने ईश्वरीय कार्य के बारे में बताते हुए कहा कि अधिवक्ता, कृषक, श्रमिक, सूर्य व चन्द्र आदि के कार्य तो स्पष्ट हैं परन्तु ईश्वरीय कार्यों की स्पष्टता नहीं है| ईश्वरीय कार्य के बारे में भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट बताया है कि

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।

मुख्य अतिथि सेवा भारती काशी प्रांत के अध्यक्ष राहुल सिंह ने कहा कि स्वयंसेवक माटी को चंदन मानता है। राष्ट्र उन्नति हेतु स्वयंसेवक सदैव तत्पर रहता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता रामनगर औद्योगिक एसोसिएशन के अध्यक्ष देव भट्टाचार्य ने की। संचालन शाखा कार्यवाह अजीत जी ने किया।




नाद के देवता शिव की नगरी में स्वयंसेवकों ने किया घोष वादन

काशी। रविवार को अखिल भारतीय घोष दिवस के अवसर पर काशी महानगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घोष विभाग द्वारा  नमो घाट पर स्वयंसेवकों द्वारा घोष वादन हुआ।

स्वयंसेवकों ने घोष वादन करते हुए बंशी पर तिलंग भूप और शिवरंजनी रचना प्रस्तुत की। शंख पर श्रीराम किरण और सोनभद्र रचना प्रस्तुत की गई। कार्यक्रम के प्रारंभ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भगवा ध्वज लगाया गया। उसके बाद 50 स्वयंसेवकों ने विभिन्न रचनाएं प्रस्तुत की।

इस अवसर पर काशी प्रांत के शारीरिक शिक्षण प्रमुख संतोष जी ने कहा कि संघ की स्थापना के समय ही डॉक्टर साहब का मन अपने अलग घोष दल की स्थापना करने हेतु था। ऐसे में गोविंद राव देशमुख जी ने डॉक्टर साहब का भरपूर सहयोग किया। मार्कंडेय राव और हरी विनायक दातेय जी का नाम संघ के प्रारंभिक घोष वादकों में आता है। 1982 के एशियाड में भारतीय नौसेना ने संघ द्वारा तैयार शिवराजः की धुन बजाई थी।

उन्होंने कहा कि संगच्छध्वं संवदध्वं के मंत्र की सार्थकता घोष द्वारा तब सिद्ध होती है जब सामान्य स्वयंसेवक घोष की धुन पर कदमताल करते हुए आगे बढ़ता है।

उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय संघ सेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में अयोध्या में 10000 स्वयंसेवकों के साथ घोष वादन करेगा।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से काशी उत्तर भाग के मा. संचालक हेमंत गुप्ता जी, सुरेंद्र जी, प्रभात आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन जितेंद्र जी एवं धन्यवाद ज्ञापन विपिन जी द्वारा किया गया। 

Saturday, February 18, 2023

राष्ट्रचिंतन लेखमाला – सीमोल्लंघन का दुस्साहस न करें सनातन विरोधी

 - नरेंद्र सहगल


जाग प्रहरी फिर विधर्मी जाल बुनकर, कर रहे आघात तेरी धर्म-भू पर

धर्म रक्षण हेतु बन भगवान, प्रलय की कर गर्जना हिमवान


हाल ही में भारत की राजधानी दिल्ली में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के तत्वाधान में सम्पन्न तीन दिवसीय अधिवेशन में भारत में इस्लाम की उत्पत्ति और विस्तार पर जिस तरह से ऐतिहासिक सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर परोसा गया, उसने पहले से सुलग रही मजहबी जिहादी आग में तेल छिड़कने का काम किया है. सम्मेलन के मुख्य मौलानाओं ने सनातन भारत अर्थात हिन्दू राष्ट्र के अस्तित्व को नकारने का घृणित काम किया है. हिन्दू राष्ट्र राजनीतिक या मजहबी अवधारणा नहीं है. सभी भारतवासियों की सांझी पहचान है हिन्दू राष्ट्र. यह अवधारणा संविधान के विरुद्ध भी नहीं है. राष्ट्र चिंतन लेखमाला के दूसरे एवं तीसरे लेख में इसकी व्याख्या की गई है.

धार्मिक भाईचारा बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित इस सम्मेलन में मौलाना महमूद मदनी और उसके चाचा अरशद मदनी द्वारा दिए गए व्याख्यानों की समीक्षा करना वर्तमान समय की आवश्यकता है. इन्होंने पूरे जोश से ऐलान किया कि खुदा द्वारा भेजा गया पहला पैगंबर भारत में ही आया था. इसलिए इस्लाम का जन्म भारत की धरती पर ही हुआ था. भारत में इस्लाम कहीं बाहर से नहीं आया. भारत की धरती पर प्रकट हुआ इस्लाम संसार का सबसे प्राचीन धर्म है. महमूद मदनी ने यह भी कहा कि भारत हमारी (मुसलमानों) की मातृभूमि है.



यह मौलाना यहीं नहीं रुके. सम्मेलन के अंतिम दिन महमूद मदनी के चाचा मौलाना अरशद मदनी ने और आगे बढ़कर यहां तक कह दिया कि आदम और ओम एक ही हैं. दोनों को अल्लाह ने बनाया है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश और श्रीराम को भी अल्लाह ने ही जन्म दिया है. इस तरह दोनों मौलानाओं ने एक ही स्वर में संसार के सबसे प्राचीन हिन्दू धर्म (भारतीय जीवन प्रणाली). इसाइयत, सिक्ख, जैन, बौद्ध इत्यादि सिद्धांतों को इस्लाम के आगे बौना सिद्ध करने का विफल प्रयास किया.

हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्र के सजग प्रहरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी को अपशब्द कहे गए. उल्लेखनीय है कि संघ प्रमुख ने कहा था कि भारत में रहने वाले सभी नागरिक हिन्दू पूर्वजों की संताने हैं. सनातन काल से चला आ रहा हिन्दू राष्ट्र भारत की सनातन संस्कृति, सनातन समाज, सनातन भूगोल (अखंड भारत) और गौरवशाली सनातन इतिहास का सामूहिक परिचय है. सभी भारतीय इस राष्ट्र के अभिन्न अंग हैं. अपनी मातृभूमि की पूजा एवं सेवा ही हमारा राष्ट्रधर्म है.

धर्म के नाम पर बुलाए गए इस अधर्मसम्मेलन में उठाए गए कुछ मुद्दों पर प्रश्न खड़े होना स्वाभाविक ही है. यदि अल्लाह और ओम एक ही है तो ओम के अनुयायियों का सर तन से जुदाकर देने की मजहबी मानसिकता को क्या कहा जाएगा? इस्लाम में ओम के उच्चारण से शुरू होने वाले वैदिक मंत्रों को मान्यता क्यों नहीं? ओम सूर्याय नमः से शुरू किए जाने वाले यौगिक व्यायाम सूर्य नमस्कार से घृणा क्यों? पवित्र कुरान की आयतों से पहले क्या ओम लगाना संभव है? यदि अल्लाह और ओम एक है तो फिर यह भी बताओ कि दारुल इस्लाम, निजाम-ए-मुस्तफा की हुकुमत और गजवा-ए-हिन्द के लिए निहत्थे और बेकसूर लोगों को काफ़िर कह कर मार डालने की दहशतगर्दी को मान्यता क्यों?

चाचा-भतीजा मौलानाओं के अनुसार यदि इस्लाम का जन्म भारत में हुआ था तो फिर 1400 वर्ष पहले साऊदी अरब में किसने जन्म लिया था? यदि संसार में शांति का संदेश लेकर पहला पैगंबर भारत में आया था तो फिर भारत में ही आक्रांता के रूप में आए मुस्लिम हमलावरों ने पैगंबर की भूमि पर खून की नदियां क्यों बहाईं? तलवार के जोर से धर्मांतरण करने की इजाजत किसने दी? सभी धर्मों का सम्मान करने का नाटक करने वाले मुल्ला-मौलवी जरा बताएं कि मंदिरों को तोड़कर उन पर मस्जिदी ढांचे खड़ा करना क्या जायज़ है?

यह भी बताया जाए कि भारत को लूटने और भारतीयता (हिन्दू राष्ट्र) को बर्बाद करने के लिए बाहर से आए आक्रमणकारी: मुहम्मद बिन कासिम, मुहम्मद गौरी, महमूद गजनवी, बाबर, तैमूर, नादिरशाह, चंगेजखान जैसे दुर्दान्त आक्रान्ताओं ने इस्लाम के नाम पर जो कत्लोगारत भारत में की, उसकी इज़ाजत क्या पवित्र कुरान अथवा हदीस ने दी थी? सभी धर्म ग्रंथों का सम्मान करने वालों से पूछा जाना चाहिए कि नालंदा विश्वविद्यालय और इसके पुस्तकालयों को बख्तियार खिलजी ने क्यों जलाया था?
मौलाना महमूद मदनी के अनुसार यदि भारत मुस्लमानों की मातृभूमि है तो फिर भारत माता की जय क्यों नहीं बोलते? राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम से नफरत क्यों? कितनी आश्चर्यचकित और दिलचस्प बात है कि भारत को मातृभूमि तो मान लिया, परंतु मातृभूमि की वंदना नहीं करना चाहते. भारतवासी इन मौलानाओं से पूछना चाहते हैं कि मादरे वतन और मातृभूमि में क्या अंतर है? यदि सभी भारतवासी अल्लाह द्वारा भेजे गए पहले पैगंबर की ही संताने हैं तो फिर मूर्तिपूजक हिन्दुओं को काफ़िर किसने बनाया?

यदि सभी भारतवासी अल्लाह के पहले पैगंबर की संताने हैं तो भारतवासियों (हिंदुओं) पर सैंकड़ों वर्षों तक मजहबी आतंकवाद की तलवार क्यों चलाई गई? हिन्दुओं पर जज़िया टैक्स लगाना, हिन्दू महिलाओं और बच्चों पर भयानक अत्याचार करना, हिन्दू धर्मस्थलों को तोड़ना क्या यह सब अमानवीय कुकृत्य भारत में अवतरित होने वाले इस्लाम की नसीहतें हैं?

संभवतया भारतीय मुल्ला-मौलवियों को अभी तक यही समझ में नहीं आया कि भारत का हिन्दू समाज संगठित होकर अब किसी भी मजहबी आतंक का प्रतिकार कर सकता है. ध्यान दें कि सद्भावना के नाम पर आयोजित इसी अधिवेशन में जब भारतीय संस्कृति और समाज अर्थात हिन्दू राष्ट्र को मनगढ़ंत और तथ्यहीन तर्कों से नीचा दिखाने का प्रयास किया गया तो जैन मुनि आचार्य लोकेश के नेतृत्व में हिन्दू धर्म गुरुओं ने एक साथ सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया. हिन्दू संतों ने मौलानाओं के दुस्साहस को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और खुली चर्चा का न्योता देकर मंच से उतर गए.

अतः हमारे देश में सक्रिय मुल्ला-मौलवियों को चाहिए कि वे वास्तविक इतिहास को पढ़ें और इस्लाम का वर्चस्व थोपने की राष्ट्रघातक मानसिकता को छोड़ें और अपने पूर्वजों की सनातन संस्कृति का सम्मान करें. अपने इस्लामिक जुनून के वशीभूत होकर यह कहना छोड़ दें कि हम हिंदुस्तान पर राज करने वाले बादशाहों की संताने हैं. यही जनून और अहंकार उन्हें भारत और भारतीयता से दूर किए जा रहा है. यदि अब आपने वास्तव में भारत को अपनी मातृभूमि कहा तो फिर मातृभूमि के सुपुत्र के फर्ज को भी निभाएं. छिपछिप कर नहीं, बल्कि सीना तानकर कहें कि सभी भारतीय हिन्दू पूर्वजों की संतानें हैं और हिन्दू राष्ट्र भारत की सांस्कृतिक, भौगोलिक, सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान है.

(वरिष्ठ पत्रकार व लेखक)

आगामी साप्ताहिक लेख का विषय :

हिन्दू राष्ट्रका अर्थ हिन्दुओं का राज नहीं.

सभी मजहब हिन्दू राष्ट्र के अभिन्न अंग हैं.

प्रेरणा का जीवन्त केंद्र बनेगा यह जिला कार्यालय - मिथिलेश जी

प्रयागराज। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के फूलपुर स्थित बौडई मे गंगा पार जिला कार्यालय 'केशव सदनका विधिवत पूजन हवन अनुष्ठान एवं शंख ध्वनि के साथ शुक्रवार को लोकार्पण संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख मिथिलेश नारायण ने कहा कि यह संघ कार्यालय केवल ईट पत्थर का भवन नहीं बल्कि संघ दर्शन की प्रेरणा का जीवन्त केंद्र बनेगा। इस कार्यालय के बन जाने से संघ कार्य 10 गुनी गति से इस जिले में आगे बढ़ेगा।

उन्होंने आगे कहा कि संघ बढ़ता रहे स्वयंसेवकत्व जीवित रहेसंघ की भावना बलवती हो मैं और मेरी शाखा में सदा अटूट संबंध बना रहे यही मेरी कामना है। जन-जन तक संघ पहुंचाना हमारा लक्ष्य है। संपूर्ण हिंदू समाज हमारा हैकोई भी पराया नहीं है। संघ समस्त हिंदुओं को संगठित करने में लगा हुआ है। प्रभु श्री राम पर टिप्पणी करने वालों पर तीखा प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे लोग कालनेमि और पूतना की तरह है। इस तरह की प्रवृत्तियां पहले भी थी और आज भी है| पूरे देश को इनसे सावधान रहने की जरूरत है। संघ कार्यकर्ता इन पर ध्यान दिए बिना सभी के ह्रदय में देशभक्ति जगाने के अपने अभियान में पूरी तरह तत्पर रहें। देश में प्रचारित की जा रही कथित असहिष्णुता पर चुटकी लेते हुए मिथिलेश जी ने कहा कि असहिष्णुता तो वह थी जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महामना जी द्वारा भेंट किए गए संघ भवन को राजनीतिक संकेत पर तत्कालीन कुलपति द्वारा धराशाई करा दिया गया था। यह भवन 1940से 1975 तक संगठन के प्रमुख केंद्र के रूप में विश्वविद्यालय के भीतर मालवीय जी की भावनाओं के अनुरूप अपना कार्य संचालित करता रहा है।

जन सेवा न्यास द्वारा एक वर्ष में निर्मित इस भवन के लोकार्पण के अवसर पर विशिष्ट अतिथि काशी प्रांत प्रचारक रमेश जी ने कहा कि अनेक विघ्न, बाधाओं एवं चुनौतियों का सामना करते हुए क्षेत्र प्रचारक श्रीमान अनिल जी की इच्छा के अनुरूप इस कार्यालय का निर्माण कार्यकर्ताओं के सहयोग से किया गया। कार्यकर्ताओं के प्रयास से गंगापार जिला पूर्ण जिला हो गया है। सभी मंडलों में शाखाएं लग रही है। शताब्दी वर्ष में सेवा कार्य को और भी गति देनी है। उन्होंने कहा कि बड़ा कार्यालय बनाना उद्देश्य नहीं है, कार्य बड़ा हो यह हम सभी का लक्ष्य है।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मा. सह प्रांत संघचालक अंगराज जी ने कहा कि इस कार्यालय के निर्माण से संघ कार्य को विस्तार देने में सरलता होगी। गंगा तट पर स्थित दुर्वासा ऋषि की पूजा के लिए यहां से फूल भेजा जाता था, इसलिए इस स्थान का नाम फूलपुर पड़ा। अब इसकी सुगंध पूरे जिले में पहुंचेगी। समारोह को मा.प्रांत संघचालक डॉ. विश्वनाथ लाल जी निगम, प्रांत कार्यवाह मुरली पाल जी ने भी संबोधित किया। जन सेवा न्यास काशी प्रांत के अध्यक्ष दीनदयाल पांडे तथा सह जिला संघचालक बद्रीनारायण भी मंच पर उपस्थित रहे।


श्रमिकों को किया गया सम्मानित

समारोह में जिला कार्यालय का निर्माण करने वाले श्रमिकों को मंच पर बुलाकर उन्हें अंगवस्त्रम प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया गया। समारोह में गंगापार में अब तक जिला प्रचारक रह चुके संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों को भी अंगवस्त्रम भेंट कर सम्मानित किया गया। गृह प्रवेश अनुष्ठान मे सूर्य नारायण सिंह, बद्री प्रसाद सिंह एवं जगत नारायण आदि यजमान के रूप में सम्मिलित हुए।

 इस अवसर पर सह प्रान्त प्रचारक मुनीष जी, प्रान्त प्रचारक प्रमुख श्री रामचन्द्र जी, विभाग प्रचारक डॉक्टर पीयूष जी, सह विभाग प्रचारक नितिन जी, मा.सह विभाग संघ चालक नागेन्द्र जी, सह विभाग कार्यवाह घनश्याम जी, गंगा समग्र के प्रान्त संगठन मंत्री अंबरीष जी, श्री अशोक उपाध्याय, प्रांत व्यवस्था प्रमुख गौरी शंकर दुबे जी प्रांत प्रचार प्रमुख डॉ. मुरारजी त्रिपाठीसंजय जी, भोलेन्द्र जी, कृष्णमोहन जी आदि बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहें| संचालन शिव कैलाश सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन जिला कार्यवाह बेचन सिंह ने किया।






Friday, February 17, 2023

समाज की सकारात्मक ऊर्जा का केन्द्र बनेगा माधव संघ आश्रम - रमेश जी

काशी| यह आश्रम हमारे कार्य का प्रेरणा स्रोत होना चाहिए। संघ यहां से सेवाशिक्षाचिकित्सासंस्कारराष्ट्रहित की भावना व हिंदू समाज के लिए कार्य करेगा। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रान्त के मा.सह प्रान्त संघचालक अंगराज जी ने व्यक्त किया। वे शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी जिला के कार्यालय माधव संघ आश्रम कार्यालय के पूजन एवं लोकार्पण में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने आगे कहा कि संघ अनुशासन से पहचाना जाता है। संघ समाज को शिक्षित और संस्कारित कर रहा है। संघ का विषय राष्ट्र और राष्ट्रीयता है। इस आश्रम के माध्यम से संघ अपने उद्देश्यों को पूरा करेगा|

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रांत प्रचारक श्रीमान रमेश जी ने प्रस्तावना रखते हुए कहा कि वर्तमान एवं भविष्य की परिस्थिति को देखते हुए इस आश्रम का निर्माण किया गया है। यह स्थान समाज में व्याप्त समस्या के समाधान का केंद्र बिंदु बने। हम सभी को इस आश्रम के प्रति हमेशा श्रद्धा बनी रहनी चाहिए। इसके अतिरिक्त आश्रम निर्माण करने वाले श्रमिकों को सम्मानित किया गया|

कार्यक्रम में उपस्थित काशी प्रान्त कार्यवाह डॉ.मुरलीपाल जी ने कहा कि यह कार्यालय हमारी प्रेरणा का केंद्र हैयह समाज को संस्कारित करने में महती भूमिका निभाएगा। धन्यवाद ज्ञापन जनसेवा न्यास के अध्यक्ष दीनदयाल जी ने किया|

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से काशी प्रान्त के मा. संघचालक डॉ. विश्वनाथ लाल जी निगम, प्रान्त प्रचारक प्रमुख रामचंद्र जी, सह प्रान्त प्रचारक मुनीश जी, सह प्रान्त कार्यवाह डॉ.राकेश जी, प्रान्त कार्यालय प्रमुख श्याम जी के अतिरिक्त काशी विभाग एवं काशी जिला के अनेक कार्यकर्ता उपस्थित रहे|

Tuesday, February 14, 2023

हम जनजाति हैं, पीछे हैं, की भावना को बदल कर आगे बढ़ना होगा - राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू

काशी। भगवान शंकर का अति प्रिय माना जाने वाला सोमवार का दिन काशीवासियों के लिए विशेष रहा। काशी में सोमवार को बाबा विश्वनाथ की अनन्य भक्त देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का प्रथम आगमन हुआ। उन्होंने बाबा विश्वनाथ और काशी के कोतवाल बाबा कालभैरव के दर्शन-पूजन किए। विश्व प्रसिद्ध मां गंगा की आरती देखी। उन्होंने देश के लिए मंगलकामना करते हुए ट्वीट किया कि "आलौकिक स्वरों और दिव्य दृश्य ने पूरे वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया। जीवनदायिनी मां गंगा का आशीर्वाद सभी देशवासियों को सदा मिलता रहे, यही मेरी मंगलकामना है।" 

काशी आगमन पर अपना विचार साझा करते हुए राष्ट्रपति ने जनजाति समाज के लोगों का आह्वान किया कि हमें अपने विचारों में परिवर्तन लाना चाहिए कि हम जनजाति है, हम पीछे हैं। हमें सरकार के सहारे न होकर सकारात्मक कार्यों के माध्यम से स्वयं आगे बढ़ने की हिम्मत दिखानी चाहिए। यह सुखद है कि अब जनजाति समाज की महिलाएं राजनीति समेत अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं। इसके साथ ही हमें अपने परंपरागत व्यवसाय कृषि व पशुपालन से जुड़कर स्वरोजगार के क्षेत्र में भी प्रगति लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं भी आपके बीच से हूं। हम भी कुछ कर पाएंगे, ये सोच और शक्ति रखनी चाहिए।अपने बच्चों को पढ़ाएं, इसके लिए आवश्यक सुविधाएं टेक्नोलॉजी, विद्यालय, डिग्री कॉलेज आदि की मांग पूरी होगी।


सनातन परंपरा को जीने वाली राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जनजाति समाज की परंपरा, आदर्श एवं विचारों से आज भी जुड़ी है 

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू देश की प्रथम नागरिक और जनजाति समाज से प्रथम राष्ट्रपति का गौरव प्राप्त करने के बाद भी अपने समाज की परंपरा, आदर्श एवं विचारों को आज भी नहीं भूली है। वे अपने आज भी अपने समाज की परंपरा, आदर्श एवं विचारों से जुड़ी हैं। उन्होंने राष्ट्रपति पद के शपथ समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि "रानी लक्ष्मीबाई, रानी वेलु नचियार, रानी गाइदिन्ल्यू और रानी चेन्नम्मा जैसी अनेकों वीरांगनाओं ने राष्ट्ररक्षा और राष्ट्र निर्माण में नारीशक्ति की भूमिका को नई ऊंचाई दी थी।

संथाल क्रांति, पाइका क्रांति से लेकर कोल क्रांति और भील क्रांति ने स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज के योगदान को सशक्त किया था। सामाजिक उत्थान एवं देश-प्रेम के लिए धरती आबाभगवान् बिरसा मुंडा जी के बलिदान से हमें प्रेरणा मिली थी।

दशकों पहले मुझे रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला था। कुछ ही दिनों बाद श्री अरबिंदो की 150वीं जन्मजयंती मनाई जाएगी। शिक्षा के बारे में श्री अरबिंदो के विचारों ने मुझे निरंतर प्रेरित किया है।

मैंने देश के युवाओं के उत्साह और आत्मबल को करीब से देखा है। हम सभी के श्रद्धेय अटल जी कहा करते थे कि देश के युवा जब आगे बढ़ते हैं तो वे सिर्फ अपना ही भाग्य नहीं बनाते, बल्कि देश का भी भाग्य बनाते हैं। आज हम इसे सच होते देख रहे हैं।

मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है, जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं। मैंने अपने अब तक के जीवन में जन-सेवा में ही जीवन की सार्थकता को अनुभव किया है।

जगन्नाथ क्षेत्र के एक प्रख्यात कवि भीम भोई जी की कविता की एक पंक्ति है

मो जीवन पछे नर्के पड़ी थाउ, जगत उद्धार हेउ

अर्थात, अपने जीवन के हित-अहित से बड़ा जगत कल्याण के लिए कार्य करना होता है।

जगत कल्याण की भावना के साथ, मैं आप सब के विश्वास पर खरा उतरने के लिए पूरी निष्ठा व लगन से काम करने के लिए सदैव तत्पर रहूंगी।




Monday, February 6, 2023

संत रविदास का कार्य सदैव मानव जाति के लिए पथ प्रदर्शक रहा है - रमेश जी

मीरजापुर| समाज को सदैव एकजुट रखने का कार्य संतों ने किया है। संत रविदास का कार्य सदैव मानव जाति के लिए पथ प्रदर्शक रहा है। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मिर्जापुर नगर के द्वारा राजस्थान इंटर कॉलेज के सभागार में आयोजित संत शिरोमणि रविदास जयंती कार्यक्रम में मुख्य वक्ता काशी प्रांत प्रचारक रमेश जी ने उपस्थित स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किया|

उन्होंने आगे कहा कि संत रविदास ने छुआछूत व अस्पृश्यता के लिए बहुत संघर्ष किया तथा लोगों को इस कुरीति से दूर रहने के लिए प्रेरित किया। संत रविदास का जन्म वाराणसी के सीर गोवर्धन में हुआ तथा गुरु शारदानंद के सानिध्य में उन्होंने शिक्षा ग्रहण कियाबाल्यकाल से ही संत रविदास ईश्वर में आस्था रखने वाले तथा कर्म को प्रधान बताने वाले रहे हैं। उनका संपूर्ण जीवन समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने में लगा रहासंत रविदास मां गंगा के अनन्य भक्त थे| वे कहते थे "मन चंगा तो कठौती में गंगा"। उनका मानना था कि गंगा में स्नान करने से तन शुद्ध होता है, मन नहीं| इसलिए अपने कर्म को प्रामाणिक ढंग से करना चाहिए| तभी ईश्वर प्रसन्न होते हैं तथा समाज व राष्ट्र सशक्त बनता है। अपने उद्बोधन में रमेश जी ने संत रविदास को हिंदू धर्म का कट्टर अनुयायी बताया| उन्होंने संत रविदास के हिंदू धर्म के प्रति श्रद्धा का वर्णन करते हुए एक प्रसंग की चर्चा की| कहा कि मुगल शासक सिकंदर लोधी ने संत रविदास को इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा तो संत रविदास ने उसे बताया कि हमारा हिंदू धर्म गंगा के समान पवित्र व निर्मल है, जबकि आपका इस्लाम एक पोखरे के समान है तो मैं गंगा को छोड़कर पोखरे में क्यों जाऊंजिस पर नाराज होकर सिकंदर लोधी ने संत रविदास को बंदी बना लियाइसके पश्चात लोधी को सोते-जागतेउठते - बैठतेनमाज पढ़ते सिर्फ संत रविदास का ही चेहरा सामने दिखाई देने लगा| इससे परेशान होकर सिकंदर लोधी ने उन्हें मुक्त कर दिया तथा उन्हें अपना गुरु स्वीकार कर लिया| इसी प्रकार वह मीरा के भी गुरु रहे तथा कई बार उनकी रक्षा भी किया। संत रविदास के जीवन व कार्य से हमें यही संदेश मिलता है कि भेदभाव रहित समरस समाज होने से हिंदू संगठित व एकजुट होगा| यदि हिंदू संगठित रहा तो राष्ट्र स्वत: ही सशक्त बन जाएगा।

   इस कार्यक्रम में मा.विभाग संघचालक तिलकधारी जीमा.सह विभाग संघचालक धर्मराजविभाग प्रचारक प्रतोष कुमारमा.जिला संघचालक शरद चंद्र जीमा.जिला सह संघचालक अशोक सोनी जीसंजय जयसवाल जीजिला प्रचारक धीरज जी, पवन जी समेत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।