Friday, August 28, 2020

आत्मनिर्भर भारत अभियान : काशी के भाई-बहन ने ढूंढ निकाला टिक-टॉक का विकल्प

हमारे देश में आत्मनिर्भर भारत जैसे सकारात्मक पहल की आवश्यकता है. आत्मनिर्भर भारत की हवा को देश के युवाओं ने आंधी में बदल दिया. देश के युवाओं को जब यह संबल मिला कि उनके रचनात्मक कार्यों को बढ़ावा दिया जाएगा तो प्रतिदिन भारत में कोई न कोई नए अविष्कार होने लगे. इन्हीं में से एक है काशी के भाई-बहन प्रखर और स्वर्णिमा का प्रयोग. दोनों ने भाई बहन ने बहुचर्चित एप्प टिक-टॉक का विकल्प रिवाइंड एप्प के रूप में ढूंढ निकाला. हाल ही में केन्द्र सरकार ने डाटा चोरी के आरोप में बड़ी संख्या में चीनी एप्प पर देश में प्रतिबन्ध लगाया था. इनमें देश में ख़ासा लोकप्रिय हो चुका एप्प टिक-टॉक भी था. 

इंजीनियरिंग के छात्र प्रखर और एमबीए की छात्रा उनकी बहन स्वर्णिमा के साथ उनकी टीम कॉलेज बंद होने के दौरान समय का सदुपयोग करते हुए इस सफलता को प्राप्त किया है. प्रखर के अनुसार टिक-टॉक के प्रति देश के युवाओं में क्रेज ज्यादा था. इस पर पाबंदी लगने के बाद इस प्रकार के दूसरे कई एप्प बड़ी कंपनियों द्वारा बनाये गये. लेकिन उनकी टीम ने बेहतर एप्प बनाने के लिए बाद में इस पर काम शुरू किया. उन्होंने आगे कहा कि हमने टीम तैयार की और मोंकाई साल्यूशन के नाम से स्टार्टअप के तहत एप्प बनाने की सोची. करीब महीने भर की मेहनत के बाद एप्प तैयार कर २४ अगस्त को लांच किया. इस टीम में प्रखर और स्वर्णिमा के अलावा जौनपुर के रजनीश गुप्ता, असिता विजय सेठी और वैष्णवी शिवहरे इनके सहयोगी बनें.

Thursday, August 27, 2020

गोदौलिया गेट बतायेगा श्रीकाशी विश्वनाथ धाम की भव्यता और दिव्यता

Outlook India Photo Gallery - Kashi Vishwanath Corridor Project

बनारस में निर्माणाधीन श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर को भव्य रूप देने की चल रही तैयारियों में मन्दिर प्रशासन किसी तरह की कोई भी कमी छोड़ना नहीं चाहती. मन्दिर से गंगा घाट तक बनाए जा रहे कॉरिडोर की भव्यता और उसकी दिव्यता का एहसास की शुरुआत परिसर के मुख्य द्वार गोदौलिया गेट से होने लगेगी. लगभग 32 फीट ऊँचा और 90 फीट चौड़ा दो मंजिला इस गेट को गोदौलिया गेट के नाम से जाना जाएगा. इसे सड़क मार्ग से देखा जाए अथवा जल मार्ग से देखने वालों को हर तरफ से यह आकर्षित करेगा. इसके दोनों तरफ सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये जाएँगे. परिसर में प्रवेश करने वालों की पूरी तरह जाँच की जाएगी. इसके आलावा यात्री सुविधा केन्द्र भी होंगे जिससे यात्रियों को किसी असुविधा का सामना न करना पड़े. इसके साथ ही इस बात का भी विशेष ध्यान रखा गया है कि 24 भवनों वाले इस कॉरिडोर के किसी भी भवन की ऊंचाई काशी विश्वनाथ दरबार के शिखर से ऊँची न होने पाए.

प्रोजेक्ट पूर्ण होने में अभी लगेंगे 1 वर्ष 

जनवरी से शुरू इसके निर्माण कार्य में कोरोना संकट के कारण अभी तक सिर्फ 11 फीसद कार्य ही पूरा हो पाया है. शेष कार्य अगस्त 2011 तक पूरा कर लेने का लक्ष्य है. इसके लिए श्रमिकों की संख्या बढ़ा दी गयी है. 

Wednesday, August 26, 2020

काशी की संस्कृति में बसे डोमराजा जगदीश चौधरी का निधन

  • संघ के प्रखर समर्थक थे डोमराजा,  श्रीगुरूजी की जन्मशताब्दी कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़ कर लिया था हिस्सा
  • प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने व्यक्त किया शोक 
  • संतों के साथ महंत अवेद्यनाथ ने अस्पृश्यता के विरुद्ध अभियान चलाकर डोमराजा के घर किया था भोज 
  • डोमराजा ने मोदी को प्रधानमंत्री बनने का दिया था आशीर्वाद 
  • राजा हरिश्चंद्र को ख़रीदा था डोमराजा परिवार ने 
SP chief Akhilesh Yadav mourns death Domraja Jagdish Chaudhary Kashi
महादेव की मोक्ष नगरी काशी के डोमराजा जगदीश चौधरी का मंगलवार को निधन हो गया. उन्होंने त्रिपुरा भैरवी घाट स्थित आपने आवास पर अंतिम सांस ली. डोमराजा एक माह से पैर में गंभीर घाव के कारण अस्वस्थ थे. उनका निजी चिकित्सालय में इलाज चल रहा था. उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को ही सायंकाल महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर ही किया गया. संघ के प्रखर समर्थक रहे डोमराजा ने द्वितीय सरसंघचालक प० पू० माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरूजी की जन्मशताब्दी कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था.
ऐसी मान्यता है कि जगदीश चौधरी की मां जमुना देवी को डोम राजमाता माना जता है, जिनके दिशा-निर्देश पर मणिकर्णिका घाट पर अग्नि देने का काम शुरू किया गया. डोमराजा के निधन की सुचना मिलते ही भैरवी घाट स्थित उनके आवास पर जिलाधिकारी समेत अनेक गणमान्य लोगों की जुटान शुरू हो गयी. डोमराजा अपने पीछे अपनी मां के अलावा पत्नी रुक्मणी, दो पुत्री व एक पुत्र से भरा परिवार छोड़ गये. 
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने व्यक्त किया शोक 
डोमराजा जगदीश चौधरी के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गहरा दुःख व्यक्त करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रर्थना की. प्रधानमंत्री ने कहा कि वह काशी की संस्कृति में रचे बसे थे और वहां की सनातन परम्परा के संवाहक थे. 
संतों के साथ महंत अवेद्यनाथ ने अस्पृश्यता के विरुद्ध अभियान चलाकर डोमराजा के घर किया था भोज 
.धर्मान्तरण का मुख्य कारण हिन्दू समाज में अस्पृश्यता को कोढ मानते हुए उसके विरुद्ध अभियान छेड़ने वाले गोरक्षपीठ के महंत अवेद्यनाथ ने ढ़ाई दशक पहले संतों के साथ सहभोज करके सामाजिक क्रांति ला दी थी. उक्त बातें अपने सन्देश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताई. उन्होंने सन्देश में चर्चा किया कि डोमराजा काशी ही नहीं अध्यात्म के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं. यहाँ महंत अवेद्यनाथ से जुड़े उस क्रांतिकारी  प्रसंग की चर्चा लाजिमी है, जिससे डोमराज परिवार और नाथ पीठ के उस आध्यात्मिक रिश्ते की नींव पड़ी थी. 19 फरवरी 1980  में मिनाक्षीपुरम में घटित धर्मांतरण की घटना ने महंत जी को विचलित कर दिया था. फिर उन्होंने अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था. इस अभियान के दौरान ही उन्होंने संतों और धर्माचार्यों के साथ काशी के डोमराजा सुजीत चौधरी के घर उनकी मां सारंगी देवी के हाथ का बना भोजन किया. उनके इस कार्य की देश भर में प्रशंसा और स्वागत हुई. उन्होंने इससे छुआछूत मिटाने के प्रयासों की नींव रखी.
डोमराजा ने मोदी को प्रधानमंत्री बनने का दिया था आशीर्वाद 
डोमराजा जगदीश चौधरी ने लोकसभा चुनाव - 2019 के दौरान नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री बनने का आशीर्वाद दिया था. उन्होंने कहा था कि 'हमारा आशीर्वाद है कि वह फिर से प्रधानमंत्री बनें और देश की सेवा करें'. लोकसभा चुनाव - 2019 में वाराणसी लोकसभा नामांकन के लिए जगदीश चौधरी को मोदी का प्रस्तावक बनाया गया था. इस पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा था कि पहली बार किसी नेता या प्रधानमंत्री ने डोमराजा की बारे में सोचा है. डोम समाज दुनिया के सबसे पुराने शहर बनारस ने सबसे पिछड़ा समाज है. वह पीढ़ियों से मणिकर्णिका घाट पर शवों के दाह संस्कार का काम करता आया है. कोई नेता कभी हमारे बारे में नहीं सोचता है, जिस तरह प्रधानमंत्री ने मेरे बारे में, मेरे पूरे परिवार समेत पूरे समाज के बारे में सोचा है, वह नेक पहल है.
राजा हरिश्चंद्र को ख़रीदा था डोमराजा परिवार ने 
 कहा जाता है कि जगदीश चौधरी के पुरखे-पुरनियों ने कभी सत्यवादी, चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र को इसी काशी नगरी की घाट पर मुंह-मांगा मोल देकर ख़रीदा था. बस इसी गौरव बोध की थाती को सीने से लगाए वे सदियों से मोक्ष नगरी काशी के महाश्मशान पर अपनी समान्तर सत्ता चलाते रहें है.  

Monday, August 24, 2020

देश में कोरोना से स्वस्थ होने की रफ्तार तेज, मृत्यु दर में भी आई कमी

corona cases continuously increasing as covid cases rise amid ...
भारत में कोरोना संक्रमण को लेकर अच्छे संकेत आने शुरू हो गये हैं. भारत में अब सक्रीय मामलों की स्थिति एक चौथाई से भी कम हैं. देश में जहाँ संक्रमित लोगों के स्वस्थ होने की रफ़्तार तेज हुई है वहीं मृत्यु दर में भी कमी आई है. अब तक भारत में कुल संक्रमितों की संख्या 30 लाख 99 हजार 765 पहुँच चुकी है जबकि लभभग 75 फीसद लोग स्वस्थ होकर अपने घर पहुँच चुके हैं. भारत में अब सिर्फ 7 लाख 14 हजार 568 मामले सक्रिय हैं. इसके साथ ही कोरोना से होने वाली मृत्यु का दर भी कम हुआ है, अब मृत्यु दर 1.86 फीसद पर आ गयी है. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार भारत में कोरोना संक्रमितों के स्वस्थ होने का आंकड़ा 23 लाख 27 हजार पहुँच चुका है. विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा भारत में स्वस्थ होने वालों का दर अधिक और मृत्यु दर सबसे कम है.

Thursday, August 20, 2020

सारे संसार में भारत वर्ष का और भारत में हिन्दू समाज का मस्तक ऊंचा होना चाहिए – चम्पत राय


नई दिल्ली. विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष एवं श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चम्पत राय ने कहा कि हमने आलोचनाओं की ओर ध्यान नहीं दिया. काम परिपूर्ण होना चाहिए, योजना के अंतर्गत होना चाहिए. सारे संसार में भारत वर्ष का और भारत में हिन्दू समाज का मस्तक ऊंचा होना चाहिए. यह हमारी दृष्टि थी. 05 अगस्त को दुनिया का वातावरण कैसा बना, देश का वातावरण कैसा बना, यह बताने की आवश्यकता नहीं है. चम्पत राय आज दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण को लेकर मीडिया को जानकारी दी.

उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को अडवाणी जी, जोशी, कल्याण सिंह की हमसे ज्यादा चिंता हो गई कि उन्हें नहीं बुलाया. वे हमारे घर के पितामह हैं. उन्होंने अपनी तरुणाई में इस आंदोलन को आकाश पर पहुंचाया. उनके स्वास्थ्य और शरीर के लिए क्या हितकारी है, यह हम ज्यादा अच्छा जानते हैं. इस पर चर्चा करते रहिये, न उन पर कोई परिणाम है, न हम पर.

एक विषय चला कि दलित संत कौन है? किसी ने मेरे से फोन करके पूछा तो मैंने कहा कि हमने तो संतों को बुलाया है, दलते हुए किसी को बुलाया नहीं, इतना सुनते ही चुप हो गया वो. इस पर मुझे कहना पड़ रहा है कि जिसे दुनिया दलित कहती है, हमारे लिए वो साधु है. एक बार साधु जीवन में आया, अपना संस्कार कर लिया, अपने मां-बाप का और अपना नाम बदल दिया, उसके बाद वो साधु है. 36 आध्यात्मिक परंपराओं के संतों को हमने बुलाया. ये देश में भेद खड़े करने वालों की वृत्ति है कि दलित कौन? सभी राज्य, सभी भाषाएं, तमिल, कन्नड़, तेलगू, मलयालम भी, इसका अर्थ सभी. जंगल में रहने वाला समाज का अंग वनवासी साधु भी आए. 36 परंपराओं के 184 संत उपस्थित थे. सार्वजनिक जीवन के कुछ लोग थे, राजनीति से जुड़े प्रधानमंत्री और उमा भारती थे,इसके अलावा राज्यसत्ता से जुड़े हुए लोग नहीं थे.

एक विषय उठा कि मुसलमान को क्यों बुला रहे हैं, हमने तीन लोगों को बुलाया था. फैजाबाद में एक मुस्लिम है मोहम्मद शरीफ. कभी उसके बेटे की अकाल मृत्यु हो गई, जिसकी लाश को लावारिस मानकर अंतिम संस्कार कर दिया गया. तब से उस व्यक्ति ने संकल्प ले लिया कि फैजाबाद जिले में कोई लावारिस लाश नहीं रहेगी. इस तरह वो हर लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करता था. 10 हजार शवों का अंतिम संस्कार उसने किया है. भारत सरकार ने उसे पद्मश्री पुस्कार दिया. फैजाबाद का हर नागरिक उसे जानता हिन्दू-मुसलमान. हमने उसमें गौरव देखा इसलिए उसे बुलाया. दूसरा इकबाल अंसारी को बुलाया. वही एक व्यक्ति था, जिसने सुन्नी बोर्ड का रिविजन फाइल नहीं दिया, सिग्नेचर करने से इंकार कर दिया. इन लोगों ने मन में ठान लिया था कि मंदिर-मस्जिद विवाद को अब खत्म करना है. अयोध्या में अंसारी के छह माह में स्टेटमेंट को पढ़िए, सब समझ में आ जाएगा कि उसकी क्या दृष्टि रही. बाबर के नाम से कुछ नहीं बनना चाहिए, नहीं तो फिर झगड़े होंगे. हमने उनकी भावना को देखा. ऐसी कुछ बाधाएं आई, हमने उनका सामना किया, उससे प्रभावित नहीं हुए, मीडिया को सच्चाई समझ में आई. शेष 05 अगस्त का कार्यक्रम आप सबने देखा.

एक हजार साल का विचार करके मंदिर निर्माण

एक हजार साल का विचार करके मंदिर का निर्माण करवा रहे हैं. इसका आधार है पत्थरों की आयु. हवा, धूप और पानी से पत्थरों का क्षरण टिके, उसके आधार पर आयु और उतनी आयु जमीन के ऊपर है तो उससे अधिक आयु की उसकी नींव. इसके लिए एलएंडटी ने योग्यतम लोगों को अपने साथ जोड़ा है. मिट्टी की ताकत नापने के लिए आईआईटी चैन्नई की सलाह ली है और दो स्थानों पर 60 मीटर गहराई तक मिट्टी के सैंपल भेज गए हैं, 5 स्थानों पर 40 मीटर पर मिट्टी के सैंपल लिए गए हैं. सीबीआरआई रूड़की और चैन्नई आईआईटी के एक प्रोफेसर ने मिलकर भूकंप संबंधी प्रभाव को नापा है. भूकंप आएगा तो तरंगों को मिट्टी कितनी मात्रा में एब्जॉर्ब कर लेगी, अंततः नींव पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा. ये जांच हो गई है. अन्य तकनीकी बातों पर भी ध्यान दिया जा रहा है.

मंदिर निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं होगा

मंदिर निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं होगा, एक ग्राम लोहे का भी नहीं. नींव में लोहा नहीं है. पीसीसी (प्लेन कंक्रिटिंग), 2.77 एकड़ के मंदिर के क्षेत्र में 35 से 40 मीटर की गहराई तक 1200 स्थानों पर एक मीटर डायमीटर के पीसीसी के खंभे होंगे. इसके ऊपर पीसीसी का एक प्लेटफॉर्म बनाया जाएगा. इसकी ड्राइंग बन रही है. देश के योग्यतम लोगों के हाथ में एलएंडटी ने यह काम दिया है.

उन्होंने कहा कि बहुत ही सोच विचार कर एक-एक कदम आगे बढ़ा रहे है. मंदिर कितने दिन में बनेगा, अभी कुछ कहना संभव नहीं. फिऱ भी कम से कम 36 महीने का समय लगेगा, इससे अधिक 40 हो सकते हैं. उतना धैर्य रखना ही पड़ेगा.

सभी रामभक्त मन्दिर को बनते हुए तथा जमीन में से मिले चिन्हों के दर्शन कर सकें, ऐसी व्यवस्था कर रहे हैं. उसके लिए स्थान चिंहित किया जा रहा है.

तांबे की 20,000 पत्तियां व रॉड चाहिए

मंदिर के खंभों को जोड़ने के लिए कॉपर की पत्तियां चाहिएं. खंभों को जोड़ने के लिए तांबे की पट्टी का जोड़ सही रहेगा भूकंप के दौरान. कम से कम 18 इंच लंबी, 3 मिलीमीटर मोटी और 30 मिलीमीटर चौड़ी, कॉपर की ऐसी दस हजार पत्तियां चाहिएं. ऐसी पत्तियां समाज भेजे और उस पर अपने गांव, मुहल्ले, गांव के मंदिर का नाम लिखकर भेजे. तांबा भी एक हजार साल तक रहता है, तांबा और पत्थर की आयु एक हजार वर्ष तक होती है. ये हिन्दुस्तान के योगदान का सीधा-सीधा प्रमाण होगा.

इसी प्रकार खम्भे एक के ऊपर एक पत्थर रखे जाएंगे तो उसमें रॉड पड़ेगी, दोदो इंच की रॉड, इसकी भी गणना की जा रही है, लगभग साढ़े 9 हजार चाहिए है. इस रॉड से एक पत्थर को चार जगह से लॉक किया जाएगा. ये बहुत बड़ा कंट्रीब्यूशन देश का होगा. पैसा तो खर्च हो जाएगा, और वो सुरक्षित रहेगा मंदिर के साथ.

प्रेस वार्ता में विहिप कार्याध्यक्ष आलोक कुमार व प्रचार-प्रसार प्रमुख विजय शंकर तिवारी भी उपस्थित थे.

पार्थिव शरीर देख आँखें हुई नम, वाराणसी एयरपोर्ट पर शहीद रवि सिंह को दी गयी श्रद्धांजली, गुरुवार को मीरजापुर में होगी अंत्येष्टि

  • आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए थे गौरा ग्राम के रवि सिंह  
  • शहादत पर है गाँव को गर्व 
कश्मीर के बारामुला में आतंकी हमले में शहीद हुए रवि सिंह का पार्थिव शरीर बुधवार की देर रात वाराणसी एयरपोर्ट पहुंचा. गुरुवार को उनका पार्थिव शरीर सेना के जवानों द्वारा उनके गाँव गौरा पहुंचाने के बाद उनका अंतिम सस्कर किया जाएगा. बुधवार की देर रात 10.30 बजे वायु सेना के विशेष विमान से शहीद का पार्थिव शरीर वाराणसी एयरपोर्ट पहुंचा. एयरपोर्ट पर उपस्थित 39 जीटीसी बटालियन के अधिकारियों, जवानों और जिला प्रशासन के अधिकारीयों ने उन्हें सशस्त्र सलामी और श्रद्धांजली दी.
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शहीद रवि सिंह (लाल घेरे में)
आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए थे गौरा ग्राम के रवि सिंह  
कश्मीर के बारामुला में सोमवार को आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान मीरजापुर के रवि सिंह वीरगति को प्राप्त हो गये थे. इसकी जानकारी फोन द्वारा उनके परिजनों को दी गयी. सूचना मिलते ही मीरजापुर के गौर ग्राम में शोक की लहर दौड़ पड़ी. गाँव के लोग शहीद रवि सिंह के परिजनों को सांत्वना देने उनके घर पहुँचने लगे.
शहादत पर है गाँव को गर्व 
शहादत की सूचना मिलते ही गाँव के लोग ग़मगीन हो गये थे. शहीद रवि के घर के बाहर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गयी. गाँव के लोगों को बेटे के खोने का दुःख जरुर था लेकिन उनका सीना गर्व से चौड़ा था. 
सोमवार को ही वीडियो कॉल से परिजनों की हुई थी बात 
रवि सिंह ने सोमवार को दोपहर डेढ़ बजे वीडियो कॉल के माध्यम से एक-एककर परिजनों से बात की थी. वह शीघ्र ही घर आने की बात भी कर रहे थे. उन्होंने फोन पर ही अचानक आतंकियों से मुठभेड़ और ऑपरेशन में जाने की जानकारी भी दी. इसके बाद लगभग ढाई बजे दिन में ही उनके शहीद होने की सूचना फोन पर मिली.

Tuesday, August 18, 2020

नहीं रहें शास्त्रीय गायन के रसराज, सोमवार को पंडित जसराज का निधन

On Hanumant Jayanti Festival, Pandit Jasraj Presented A Tribute In ...
भारतीय शास्त्रीय गायन के बड़े स्तम्भ सुर सम्राट पं जसराज ने सोमवार को संसार से विदा ले लिया. इस घटना से न सिर्फ शास्त्रीय गायन को अपूरणीय क्षति हुई बल्कि पूरे देश को सदमा पहुंचा. 90 वर्षीय पं जसराज का निधन कार्डियक अटैक के कारण हुआ. 
28 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार में जन्मे पं जसराज मेवाती घराने से जुड़े थे. उनके पिता पं मोतीराम मेवाती घराने के संगीतज्ञ थे. 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने व्यक्त किया शोक 
सुर सम्राट पंडित जसराज के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि पंडित जसराज जी के निधन से भारतीय शास्त्रीय विधा में एक बड़ी रिक्तता पैदा हो गयी है. न केवल उनका संगीत अप्रतिम था बल्कि उन्होंने कई अन्य शास्त्रीय गायकों के लिए अनोखे मार्गदर्शक के रूप में एक छाप छोड़ी. उनके परिवार एवं समस्त विश्व में उनके प्रशंसकों के प्रति संवेदना. ओम शांति.
बड़े प्रशंसक थे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 
पं जसराज को रस के राजा अर्थात रसराज कहते थे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी. वे जसराज जी के बड़े प्रशंसक हुआ करते थे. ये जानकारी स्वयं पं जसराज जी ने दी थी. 

आरम्भ से ही हिंदी को आत्मसात की काशी

हिंदी साहित्य को समर्पित साथी
देश भर में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है. देश भर में हिंदी को सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त है. हिन्दी को काशी ने भक्ति काल से लेकर आधुनिक काल के हर दौर में आत्मसात किया है. कबीरदास से प्रारम्भ होकर हिंदी भाषा की यह श्रृंखला आधुनिक काल के जयशंकर प्रसाद के बाद आज भी अनेक सहित्योकारों तक पहुँच रही है. काशी ने हिंदी साहित्य के निर्माण एवं विकास में अपनी मुख्य भूमिका निभायी है. 
साहित्यकार सुरेन्द्र वाजपेयी के अनुसार नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना  के साथ ही काशी में हिंदी आन्दोलन की शुरुआत हुई. संस्था की स्थापना का  उद्देश्य हिंदी एवं देवनागिरी लिपि का राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार था. उस समय न्यायालयों या सरकारी कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग नहीं होता था. हिन्दी की शिक्षा वैकल्पिक रूप से मिडिल पाठशालाओं तक ही सीमित थी. 
हिन्दी के लिए काशी में हुआ पहला सत्याग्रह 
साहित्यकार पं0 जितेन्द्रनाथ मिश्र के अनुसार हिंदी प्रदेशों में देवनागिरी लिपि में हिंदी के प्रयोग की के लिए खूब आन्दोलन हुए. नागरी प्रचारिणी सभा ने सरकार को नागरी लिपि की वैज्ञानिकता के सम्बन्ध में मेमोरेंडम प्रस्तुत किया जो देवनागिरी लिपि को संसार की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि सिद्ध करने वाला पहला विस्मृत, प्रमाणिक और सर्वमान्य दस्तावेज हैं. इस आन्दोलन में सभा के कई कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए और इस आन्दोलन को हिंदी का पहला सत्याग्रह माना जता है.  

Monday, August 17, 2020

छात्रा ने बनाया वायरलेस तकनीक से युक्त रोबोट हेलमेट, फ्रीक्वेंसी पर करेगा काम, गोलियां भी चलाएगा


आत्मनिर्भर भारत की हवा चली तो देश की प्रतिभाओं को पर लग गये. देश की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी की एक छात्रा ने एक ऐसा हेलमेट तैयार किया है जो पीछे से आ रहे दुश्मनों के बारे में जानकारी देने के साथ ३६० डीग्री पर घुमकर गोलियां भी चलाएगा.
वाराणसी के आशापुर क्षेत्र की बीटेक उत्तीर्ण अंजलि ने इस हेलमेट को ऐसा बनाया है कि रोबोट हेलमेट पीछे से हमला करने वाले दुश्मनों से सावधान करेगा. इसकी अनेक विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि इसे सर पर रखने के साथ जमीन पर रख कर चला भी जा सकता है. विशेष रूप से सेना के लिए तैयार किया गया यह हेलमेट फ्रीक्वेंसी पर काम करेगा. वायरलेस तकनीक से युक्त इस रोबो हेलमेट में वायरलेस फायर ट्रिगर है जो रेडियो फ्रीक्वेंसी की मदद से हेलमेट में लगी बैरल से जुड़ा होता है. इसकी विशेषता यह भी है कि यह किसी भी तरह के राइफल गन के ट्रिगर के पास लगाया जा सकता है. यदि धोखे से कोई दुश्मन पीछे से हमला करने की कोशिश करता है तो हेलमेट जवान को अलर्ट कर देता है.

Saturday, August 15, 2020

काशी में स्वतन्त्रता दिवस (15 अगस्त 2020) पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह मा0 सुरेश (भैय्याजी) जोशी का उद्बोधन

आत्मनिर्भर भारत हमारा संकल्प - भैय्याजी जोशी

मा0 सरकार्यवाह ने ध्वजारोहण के पश्चात् कार्यक्रम को किया संबोधित 

ध्वजारोहण करते मा0 सरकार्यवाह जी 

आज भारत का 74वाँ स्वतन्त्रता दिवस है। वर्तमान परिस्थिति में कोविड-19 के कारण यह कालखण्ड चर्चा का विषय बना हुआ है। कोरोना जैसी महामारी का प्रकोप अपने देश में और सम्पूर्ण विश्व में चल रहा हैं। इस परिस्थिति में भारत की कुछ भिन्न विशेषता ध्यान में आई है। संख्यात्मक जानकारी के आधार पर दुनिया के अन्य समृद्ध देशों कि अपेक्षा भारत में बीमारी का संक्रमण और मृत्यु दर कम है। इसका कारण यहाँ का रहन-सहन जीवन शैली एवं लोगो की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है। यहाँ की जलवायु, परम्परायें और सांस्कृतिक जीवन शैली लोगो को ऐसे संघर्ष के समय में जीवन शक्ति प्रदान करती है। तुलनात्मक दृष्टि से सर्वाधिक सम्पन्न और स्वच्छ अमेरिका इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। भारत वर्ष के कुछ प्रान्तों में कोरोना वायरस का प्रभाव अधिक है परन्तु कुछ प्रान्तों में न के बराबर है। यह हमारी अलग पहचान को सिद्ध करता है।

कार्यक्रम को संबोधित करते मा0 सरकार्यवाह जी

            इस परिवेश में स्वतन्त्रता की 74वीं वर्षगाठ पर हमें व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर बनने का संकल्प लेना चाहिए। पिछले 74 वर्षों में हमने विभिन्न प्रकार के प्रयोग और प्रयास किये हैं। किन्तु हमें विदेशी सहायता पर निर्भर रहना पड़ा। आज भी हमारी कुछ अन्य देशों पर निर्भरता बनी हुई है। इस कोरोना कालखण्ड में हमें आत्मनिर्भरता की ओर सोचने का अवसर दिया है। देश की जलवायु, परम्परा और विभिन्न संसाधनों में आत्मनिर्भरता अपेक्षित हैं।

            हम स्वयं आत्मनिर्भर बनें। और अपने प्रिय भारत राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनायें जिससे दुनिया के तमाम छोटे-छोटे देश प्रेरित होकर आत्मनिर्भर बनें और बड़े देशों के चंगुल से मुक्त होकर अपना स्वयं का कास करें और आत्मनिर्भर बनें। इसी भाव को ग्रहण कर हम अपने लक्ष्य पर पहुंच पायेगें और दुनिया के अन्य देश भी भारत के ही आधार पर आगे बढ़ सकेगें।

            अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुये सुरभि शोध संस्थान के संस्थापक सूर्यकान्त जालान (कानू भाई) ने कहा कि इस परिसर में हम भारत की आजादी के 74वें वर्षगांठ पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह मा0 सुरेश भैय्याजी जोशी को पाकर अत्यन्त आनन्दित हैं और उनके हाथ से ध्वजारोहण सुरभि शोध संस्थान परिवार को गौरवान्वित कर रहा है। मैं संघ परिवार का आभारी हुँ।

Friday, August 14, 2020

बनारस के रेलवे स्टेशनों पर देखा जा सकेगा विश्व प्रसिद्द गंगा आरती का सजीव प्रसारण

jawans detonating for parcel for five days - पार्सल के ...
काशी में होने वाली विश्व प्रसिद्द   को देखने के लिए अब गंगा घाटों तक नहीं जाना पड़ेगा. आरती का सीधा प्रसारण अब शहर के दो प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर किया जाएगा. स्मार्ट सिटी के अंतर्गत इस माह के अंत तक  पंचों प्रहर की आरती मंडुआडीह और कैंट रेलवे स्टेशन पर बड़े स्क्रीन पर प्रसारित की जाएगी. इसके साथ ही अन्य रेलगाड़ियों के आने के समय आरती की सूचना डिस्प्ले पर दी जाएगी. 
हाईमास्ट पोल पर कैंट और शहर की सुन्दरता काशी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली विश्वप्रसिध्द आरती दर्शन की भी सुविधा मिलेगी. यह प्रसारण  दोनों स्ततिओनोन पर 18 फुट लम्बी और 16 फुट चौड़ी स्क्रीन पर की जाएगी. 
दूर तक देखी जा सकेगी आरती 
कैंट रेलवे स्टेशन के सर्कुलेटिंग एरिया में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के हेल्प डेस्क के पास ही एलईडी स्क्रीन लगाईं जाएगी. स्क्रीन ऊंचाई तक लगाईं जाएगी, जिससे सर्कुलेटिंग एरिया से स्क्रीन पर आरती सिर्फ कैंट स्टेशन पर ही नहीं चौकाघाट-लहरतारा फ्लाईओवर से भी देखा जा सके. 

Thursday, August 13, 2020

ब्रिटेन के अरुन्डेल के दिल में बसते थे काशी के क्रांतिकारी

जॉर्ज सिडनी अरुंडेल

कैम्ब्रिज से अपनी पढाई पूरी कर सेंट्रल हिन्दू स्कूल में प्रधानाचार्य और इतिहास के शिक्षक जार्ज सिडनी अरुन्डेल ने हमेशा बनारस के क्रांतिकारियों का सहयोग किया और कभी अंग्रेजी फ़ौज को सीएचएस की बाउंड्री पार नहीं करने दी. ब्रिटेन में 1 दिसंबर को जन्में जार्ज सिडनी अरुन्डेल कैम्ब्रिज से मास्टर डीग्री की पढ़ाई पूरी करते वक़्त भारत के एनी बेसेंट के बारे में और उनके भाषणों को सुन रखा था. मन ही मन उनकी भावना हिन्दुस्तान आने की होने लगी. वह अवसर भी आया जब उनकी पढाई पूरी हो गयी और अरुन्डेल अपनी मौसी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, जिसमें थियोसोफी संस्था से जुड़कर काम करने के लिए बनारस चलने की बात थी. एनी बेसेंट उस दौरान बनारस में सेंट्रल हिन्दू स्कूल की नींव रख चुकी थीं, जो कि बीएचयू की स्थापना का अहम पड़ाव बना. लीलाधर शर्मा की पुस्तक भारतीय चरित कोष के अनुसार २५ साल की आयु में अरुन्डेल १९०२-०३ में अपनी मौसी के साथ बनारस आ गये और सेंट्रल हिन्दू स्कूल में ही इतिहास पढ़ाना शुरू कर दिया. वह धीरे-धीरे दस सालों में छात्रों के काफी पसंदीदा प्रोफेसर बन गये जिसके चलते एनी बेसेंट ने उन्हें प्रिंसिपल बना दिया. इस दौरान उनके कई शिष्य बने लेकिन उनमें से सबसे ख़ास थे महान दर्शनशास्त्री जे. कृष्ण मूर्ति.

बनारस में रहते हुआ भारतीयकरण

जार्ज अरुन्डेल ने देखा कि कॉलेज में ज्यादातर छात्र क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, लेकिन एक ब्रिटिश नागरिक होते हुए छात्रों को रोका नहीं. बल्कि हर आन्दोलन में उनका सहयोग भी किया. एक बार उनके प्रधानाचार्य रहते हुए पुलिस कैंपस में घुस कर छात्रों की गिरफ़्तारी करनी चाही मगर मुख्य द्वार उन्होंने बंद करवा दिए. अंग्रेजी फ़ौज को परिसर में घुसने नहीं दिया. होमरूल लीग आन्दोलन के दौरान आवाज उठाई, और जेल गये. कालांतर में मद्रास चले गये जहां पर 12 अगस्त 1912 को निधन होने के बाद मद्रास के अडयार में ही एनी बेसेंट के बगल में समाधी बना दी गयी.

स्वतंत्रता दिवस पर काशी में प्रशासन का अभिनव पहल : कोरोना योद्धाओं के प्रतिनिधि के रूप में संविदा नर्स मुख्य अतिथि बन करेंगी ध्वजारोहण

देशभर में पिछले 6 माह से चल रहे वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के दौरान लोगों की देखरेख एवं सेवा भाव के लिए स्वतंत्रता दिवस पर कोरोना योद्धाओं का सम्मान अनोखे तरह से किया जाएगा। वाराणसी प्रशासन कोरोना योद्धाओं के प्रतिनिधि के रूप में  दीनदयाल अस्पताल की संविदा नर्स अनुराधा को ध्वजारोहण का मुख्य अतिथि बना कर यह सम्मान देगी।

स्वतंत्रता दिवस पर कमिश्नरी में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि नर्स अनुराधा को पूरे सम्मान के साथ मंडलायुक्त की फ्लीट और गाड़ी उन्हें घर से लेकर आएगी। निचले क्रम के कर्मचारियों के सम्मान के उद्देश्य से पिछले वर्ष से मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल द्वारा किए गए इस अभिनव पहल के अंतर्गत सफाई कर्मचारी चंदा को मंडलायुक्त कार्यालय में ध्वजारोहण का मुख्य अतिथि बनाया गया था। मंडलायुक्त ने बताया कि कोरोना योद्धाओं का सेवा-भाव सभी के लिए प्रेरणा है। नर्स के रूप में अनुराधा का सम्मान सभी पूर्णा योद्धाओं को समर्पित है।

Wednesday, August 12, 2020

12 अगस्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष : समग्र क्रांति के अग्रदूत योगेश्वर श्रीकृष्ण

नरेन्द्र सहगल 

अधर्मियोंआतंकवादियोंसमाजघातकोंदेशद्रोहियों और भ्रष्टाचारियों को समाप्त करने के उद्देश्य से धराधाम पर अवतरित हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्म से लेकर अंत तक अपने निर्धारित उद्देश्य के लिए सक्रिय रहे। वे एक आदर्श क्रांतिकारी थे। कृष्ण के जीवन की समस्त लीलाएं/क्रियाकलाप प्रत्येक मानव के लिए प्रेरणा देने वाले अदभुत प्रसंग हैं। इस संदर्भ में देखें तो श्रीकृष्ण का सारा जीवन ही कर्म क्षेत्र में उतरकर समाज एवं राष्ट्र के उत्थान के लिए निरंतर संघर्षरत रहने का अतुलनीय उदाहरण है। आदर्शों/सिद्धान्तों को व्यवहार में उतारने का दिशा निर्देश है।

योगेश्वर कृष्ण की जीवनयात्रा कंस के कारावास की कठोर कोठरी से प्रारम्भ होती है। जेल में यातनाएं सह रहे वासुदेव और देवकी की कोख से जन्म लेकर और फिर जेल के सीकचों को तोड़कर मुक्त होकर उन्होंने आतंकवाद और अधर्म के साथ युद्ध करने का बिगुल बजा दिया। जेल से मुक्त होकर नंदग्राम में सुरक्षित पहुंच जाने के समाचार से अत्याचारी शासक कंस और उसके मददगार सभी राक्षसी राजा भय से कांप उठे। नंदग्राम में माता यशोदा की गोद में खेल कर और बालसखाओं के साथ कृष्ण ने जो साहसिक लीलाएं कीं उनसे समाज-सेवासामाजिक समरसताधर्म-रक्षणनारी सशक्तिकरण और संगठन में शक्ति का दर्शन शास्त्र समाया हुआ है।

अन्याय के विरुद्ध संगठित सशस्त्र प्रतिकार

बाल सखाओं का संगठन बनाकर मक्खन की मटकियां फोड़नापूंजीवादी तानाशाह के विरुद्ध क्रांति का संकेत है। किसानोंमजदूरों द्वारा परिश्रमपूर्वक कमाया गया धन (मक्खन के मटके) कंस जैसे तानाशाहों (पूंजीपतियों) के घरों में जाते थे। कृष्ण की बाल सेना ने इस धन को रोक कर ग्रामवासियों में वितरित करने की प्रथा को जन्म दिया। इस लिए तो किसानों की पत्नियोंमाताओं-बहनों (गोपियों) ने कृष्ण के इस कार्य को सदैव प्रेमपूर्वक स्वीकृति दी। बाल कृष्ण को ग्रामवासियों ने माखनचोर’ कहकर अपना स्नेहिल आर्शीवाद भी दिया।

जब पूरे क्षेत्र में मूसलाधार वर्षा होने से घर परिवार पर संकट छाने लगा तो बाल कृष्ण ने अपनी हथेली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सबको इसके नीचे शरण दी। इंद्र देवता के कथित आतंक से समाज को सुरक्षित करके कृष्ण ने यह संदेश दिया कि एक नेता के नेतृत्व में संगठित होकर प्रत्येक संकट से छुटकारा पाया जा सकता है। सामाजिक सुरक्षा का यही सर्वोत्तम मार्ग है। बाल सखाओं के संगठन के माध्यम से अनुशासन के महत्व को समझा दिया गया।

बाल कृष्ण ने अपने सखाओं को सैनिक प्रशिक्षणमलयुद्धगोपनीयता और अन्याय के विरुद्ध सशक्त प्रतिकार करना भी सिखाया। परिणाम स्वरूप कृष्ण के नेतृत्व में इन्हीं सैनिकों ने कंसशिशुपालपूतना जैसे राक्षसी तानाशाहों का संहार करने में सफलता प्राप्त की। आम जनता का शोषण करने वाले इन अत्याचारी शासकों/असमाजिक एवं अराजक तत्वों को समाप्त करके कृष्ण ने सामाजिक भेद-भाव को समाप्त करने की आवश्यकता का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

गोपियों के संग रासलीला करने के प्रसंगों को भी अध्यात्मिक आधार पर नारी सशक्तिकरण और मातृशक्ति के संदर्भ में समझना चाहिए। गोपियों में अगुवा गोपी अर्थात नारी संगठन का नेतृत्व सम्भालने वाली गोपी राधा को शास्त्रों में श्रीकृष्ण की शक्ति कहा गया है। इसका अर्थ बहुत गहरा है। ईश्वरीय शक्ति श्रीकृष्ण को भी मातृशक्ति का सहारा लेना पड़ा। रासलीला तो नारी शक्ति को संगठित करने और दिशा देने का मार्ग मातृ था। इन रास लीलाओं में जातिमजहबक्षेत्र के लिए कोई स्थान नहीं था। बेटी बचाओबेटी पढ़ाओ’ का संदेश था गोपियों के संग रासलीला के आध्यात्मिक आयोजनों में।

क्रांति का आधार: बांसुरी और सुदर्शन चक्र

आज हम देखते हैं कि सेना में सैनिकों के प्रशिक्षणअनुशासनसंचलन इत्यादि में बैंड’ का बहुत योगदान होता है। इस बैंड की धुन सुन कर न केवल सैनिकों के ही अपितु साधारण नागरिकों के मन में भी उत्साहनिष्ठा और लगन के भाव जागृत हो जाते हैं। श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन से समाज के सभी वर्ग मंत्रमुग्ध होकर एक सूत्र में बंध जाने की प्रेरणा लेते थे। किसानमजदूरबालवृद्धमहिलाएंशहरवासी और ग्रामवासी इन सबको संगठित करने की शक्ति थी कृष्ण की बांसुरी की धुन में।

समाज और धर्म की रक्षा के लिए समय आने पर श्रीकृष्ण ने बांसुरी छोड़कर सुदर्शन चक्र भी उठा लिया था। महाभारत के युद्ध के पहले श्रीकृष्ण पांडवों के दूत बनकर दुर्योधन को धर्म शिक्षा देने के लिए सीधे उसके दरबार में जा पहुंचेकिसी प्रकार से युद्ध टल जाएइसका प्रयास उन्होंनंे किया। शांतिवार्ता से ही समस्यायें सुलझनी चाहिएं युद्ध तो अंतिम रास्ता है। योगेश्वर श्रीकृष्ण तो मातृ पांच गांव मिलने पर भी पांडवों को संतुष्ट करने की नीति पर चल रहे थे। परन्तु युद्ध के बिना एक इंच भूमि भी नहीं दूंगा’ के उत्तर से युद्ध अनिवार्य हो गया। श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह और विदुर जैसे विद्वानों के माध्यमों से भी दुराचारी दुर्योधन को समझाने की कोशिश की थी। परन्तु उसके ऊपर तो युद्ध का भूत सवार था। इस भूत को उतारने का एक ही रास्ता बचा था - कुरुक्षेत्र का मैदान।

युद्ध के मैदान में कर्मयोग का उपदेश

युद्ध के मैदान में भी श्रीकृष्ण ने आदर्श राजनीति/कूटनीति का परिचय दिया। धर्म और अधर्म के मध्य होने जा रहे युद्ध से पहले अर्जुन को गीता के उपदेश के माध्यम से सारे संसार को कर्मयोग का उपदेश देना उनके ईश्वरी अवतार का सबसे महत्वपूर्ण कार्य था। मानव के समस्त क्रियाकलापों को सुचारू दिशा देकर उसे अंतिम लक्ष्य मोक्ष तक पहुंचाने का रास्ता है गीता। गीता का उपदेश देकर क्रांतिकारी योगेश्वर श्रीकृष्ण ने जगदगुरु की भूमिका निभाते हुए अपने पूर्णावतार को सार्थक कर दिया था। अर्जुन को घोर अवसाद और निराशावाद से निकालकर कर्मपथ पर अग्रसर कर के श्रीकृष्ण ने गीता का रहस्य/मुख्य उपदेश समस्त विश्व के सामने रखा।

श्रीकृष्ण ने अधर्म का साथ दे रहे भीष्म पितामह जैसे दिग्गज विद्वानों तथा दुर्योधनअश्वत्थामा और कर्ण जैसे योद्धाओं को भी समाप्त करवाने में संकोच नहीं किया। श्रीकृष्ण का अध्यात्मिक कर्मयोगी जीवन मानव की सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। अतः जन्माष्टमी के पवित्र अवसर पर उन राष्ट्रभक्त संस्थाओं को कृष्ण के जीवन एवं कार्यपद्धति से प्रेरणा/शिक्षा लेनी चाहिएजो समाज के संगठन और राष्ट्र के उत्थान के उद्देश्य के लिए कार्यरत हैं।

इन संगठनों पर साम्प्रदायिकफासिस्टदंगे करवानेसमाज को तोड़ने जैसे आरोप लगते हैं। ध्यान दें कि श्रीकृष्ण को भी चोरनटखटछलियारसियारणछोड़ और झूठ बोलकर योद्धाओं को मरवाने वाला इत्यादि न जाने क्या-क्या कहा गया। परन्तु योगेश्वर कृष्ण ने इस सब आरोपों को चुपचाप बर्दाश्त किया और अपने निर्धारित उद्देश्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर लिया। अधर्म पर धर्म की विजय हुई और असत्य सत्य के हाथों पराजित हुआ।

 होने लगता है चीर हरणतब शंख बजाया जाता है।

बांसुरी फैंक वृंदावन मेंसुदर्शन चक्र उठाया जाता है।।

- लेखक पूर्व संघ प्रचारक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं