सरकार
ने चीनी कंपनियों का साथ छोड़ने का दिया था अवसर
पटना.
बॉयकॉट चाइना अभियान में सरकार व जनता सभी सक्रिय हैं. इसी क्रम में अब बिहार
सरकार भी सक्रिय हुई है. बिहार सरकार ने चीन की साझेदारी वाली दो कंपनियों को दिया
पुल निर्माण का टेंडर रद्द कर दिया है. इन कंपनियों की साझेदारी राजधानी पटना में
महात्मा गांधी सेतु पर बन रहे समानांतर पुल निर्माण में थी. इन्हें पटना में गंगा
नदी पर महात्मा गांधी सेतु के सामानांतर एक नया पुल बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी.
कंपनियों को चीन की कंपनी के साथ साझेदारी छोड़ने का अवसर दिया गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
महात्मा
गांधी सेतु नदी पर निर्मित कभी विश्व का सबसे बड़ा पुल था. उत्तर बिहार और दक्षिण
बिहार को जोड़ने वाला यह राज्य का दूसरा पुल था. 80 के
दशक में नदी पर बने पुल का उद्घटान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया
था. लेकिन 25 वर्ष
बाद ही पुल की स्थिति खराब होने लगी. केंद्र में एनडीए की सरकार आने के बाद
राजधानी में गंगा नदी पर एक दूसरे पुल के निर्माण की अनुमति मिली. कुछ वर्ष पूर्व
राज्य सरकार ने महात्मा गांधी सेतु के समानांतर
पुल
बनाने का निर्णय लिया था. और टेंडर आवंटित किये थे.
बिहार
के पथ निर्माण मंत्री नंद किशोर यादव ने बताया कि पटना में गंगा नदी पर महात्मा
गांधी सेतु के बराबर एक और नए पुल का निर्माण होना है. इसके लिए 4 कंपनियों का चयन किया गया था, जिनमें से 2 कंपनियों
की चीनी कंपनियों के साथ साझेदारी थी. चीन की कंपनी से सहभागिता के कारण 4 में से 2 कंपनियों
के टेंडर को राज्य सरकार ने रद्द कर दिया है.
नंद
किशोर यादव ने कहा कि सरकार ने ये कदम उठाने से पहले दोनों कंपनियो को अपना
पार्टनर बदलने को कहा था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. लद्दाख के गलवान घाटी में चीन के कुकृत्यों से भारत का जनमानस आहत है. इसे देखते
हुए राज्य सरकार ने ऐसा निर्णय लिया है. अब सरकार ने इस पुल निर्माण के लिए फिर से
आवेदन मांगा है ताकि टेंडर दूसरों को दिया जा सके.
पूरी
परियोजना पर 2,900 करोड़
रुपये का पूंजीगत खर्च आने का अनुमान है. योजना के अनुसार 5.6 किलोमीटर लंबा मुख्य पुल, के
साथ चार अंडर पास, एक
रेल उपरगामी पुल, 1.58 मार्ग
सेतु, फ्लाईओवर, चार
छोटे पुल, पांच बस पड़ाव और 13 रोड
जंक्शन का निर्माण किया जाना है. परियोजना के लिए निर्माण की अवधि साढ़े तीन साल
की थी और जनवरी 2023 तक
पूरी होने वाली थी.
श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत
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