उन्होंने
कहा कि जब-जब भारत की शक्ति जागृत हुई है, तब तब ग्रीक, शक, हुण को हमने
पराजित किया. जब भी देश विखंडित हुआ है, मुट्ठी भर चने लेकर
आने वाले लोग भी यहां शासन करने लगे. हमें रक्षाबंधन के पर्व पर संकल्प लेना होगा
कि हमारी कृति, मन, आचरण, व्यवहार सनातन दर्शन के अनुकूल होना चाहिए. संविधान ने भारत के लोगों को
समरसता का अधिकार दिया है, परंतु संविधान के आधार पर ही नहीं
अपितु हमारे मन में भी समरसता का भाव स्पष्ट दिखना चाहिए.
हिन्दू
समाज का विगत 1000 वर्षों का संघर्ष हमें बताता
है कि यदि हम संगठित नहीं रहेंगे तो जिस प्रकार पूर्वकाल से खंडित होते हमारे देश
का स्वरूप हमें दिख रहा है, यदि भविष्य में लोग अपने देश और
संस्कृति के बारे में सजग नहीं होंगे एवं अपनी जीवन शैली में शामिल नहीं करेंगे तो
यह खंडित होता स्वरूप कहां तक जाएगा?
सह
सरकार्यवाह ने कहा कि हमने नक्षत्र की गति नापी, नाड़ी देखकर रोग का निदान किया. मंदिर रचना, लौह
स्तंभ रचना, व्याकरण, दर्शन, न्याय, गणित, बीजगणित, खगोल विज्ञान, बड़े जहाज द्वारा व्यापार, नालंदा-तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय यह हमारे गौरव के प्रतीक थे. प्राचीन
भारत आध्यात्मिक एवं आर्थिक दोनों रूपों से विश्व का सिरमौर था. किंतु मात्र एकता
के अभाव में हमें विगत एक हजार वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा.
1905
में जब बंग भंग आंदोलन प्रारंभ हुआ, तब कवि
रवींद्र नाथ टैगोर एवं उनके साथियों ने रक्षाबंधन के दिन बंगाल के लोगों को गंगा
किनारे बुलाकर नदी में स्नान करवाया एवं वहां से सभी लोग जुलूस निकालते हुए एक
दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते हुए आगे बढ़े. यह आंदोलन इतना सफल रहा कि 1911
आते-आते बंग भंग का निर्णय समाप्त कर दिया गया. इस आंदोलन के प्रभाव
से कोलकाता से राजधानी दिल्ली कर दी गई.
काशी की जीवन शैली में समरसता का भाव निहित
काशी
का वर्णन करते हुए कहा कि यहां भारत एवं उसकी विभिन्न प्राचीन गौरवमयी संस्कृतियों
का दर्शन होता है. यहां तीर्थंकरों, शंकराचार्य, महात्मा बुद्ध, संत
रविदास एवं संत कबीर जैसे मुनियों के विचारों का भी दर्शन होता है. यहां पर सभी ने
अपने विचारों का तत्व बोध कराया. विभिन्न प्रकार की उपासना पद्धति को काशी ने
विशेष स्थान दिया है. इसी प्रकार संघ भी हिन्दू समाज में समन्वय को स्थापित करने
का उद्देश्य लेकर कार्य कर रहा है.
काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित विश्वनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर जो श्लोक वर्णित है, उसमें महामना के विचारों को स्पष्ट देखा जा सकता है – विश्वनाथ जी की कृपा
प्रसाद से काशी में भागीरथी के किनारे पर एक महान विश्वविद्यालय की स्थापना हो रही
है जो हिन्दू नाम के मान वर्धन करने के लिए हो रही है. संघ भी इस हिन्दू मान वर्धन
हेतु कार्य कर रहा है.
जब
तक हम सभी अपने आसपास के वंचित लोगों को अपने परिवार में बैठा कर उन्हें पवित्र
हिन्दू समाज का अंग नहीं मानेंगे, तब तक समरसता केवल
उद्बोधन में ही रहेगी.
कार्यक्रम
के अध्यक्ष प्रो. वांगचुक दोरजी नेगी (कुलपति, तिब्बती अध्ययन उच्च संस्थान सारनाथ) ने कहा कि माता-पिता का दायित्व है
कि बच्चों में संस्कार दें. बालकों में बौद्धिकता के विकास हेतु उन्हें किसी
प्रकार के दबाव में नहीं डालना चाहिए. सेवा भाव के समर्पण को अपने जीवन में
आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए.
कार्यक्रम
के प्रारंभ में काशी विभाग के विभाग संघचालक प्रो. जेपी लाल एवं काशी दक्षिण भाग
के संघचालक अरुण कुमार सहित मंचस्थ अतिथियों ने भगवा ध्वज को रक्षा सूत्र बांधा.
हनुमान
प्रसाद पोद्दार महाविद्यालय से संबंधित पूर्वोत्तर भारत के बालक एवं बालिकाएं
पारंपरिक वेशभूषा में आकर्षण का केंद्र रहे. कार्यक्रम का संचालन भाग कार्यवाह
रामकुमार जी ने किया l
इस अवसर पर काशी प्रांत के प्रान्त प्रचारक रमेश
जी, प्रांत कुटुंब संयोजक शुकदेव त्रिपाठी, काशी प्रांत
अभिलेखागार प्रमुख सत्य प्रकाश पाल, विभाग कार्यवाह
राजेश, विभाग प्रचारक नितिन, भाग प्रचारक आदर्श सहित बड़ी संख्या
में समाज के बंधु, माताएं एवं भगिनी उपस्थित रही l
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