- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि समाज की गरिमा और नैतिकता को नष्ट करने की छूट दी जाए
- 17वां राष्ट्रीय अधिवेशन, 7, 8, 9 नवंबर 2025 – रीवा
- अखिल
भारतीय साहित्य परिषद के रीवा अधिवेशन -2025 में पारित प्रस्ताव
परहित
सरिस धर्म नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं
अधमाई, और परोपकराय सताम् विभूतयः की मान्यता पर आधारित
हमारी संस्कृति आज अति भौतिकता से प्रभावित होकर बाजारवाद का संत्रास झेल रही है।
आज हम जिस घोर व्यावसायिक समय में जी रहे हैं, उसने जीवन के
मूलभूत संसाधनों को व्यापार में परिवर्तित कर दिया है। तकनीकों पर बाजारवादी
शक्तियों का नियंत्रण है। इसी की परिणति है कि डिजिटल मीडिया का एक अति विशाल
उद्योगतंत्र खड़ा हो गया है तथा पारंपरिक प्रसारण माध्यमों की जगह ऑनलाइन
स्ट्रीमिंग ने ले ली है। ओवर-द-टॉप (ओटीटी) के सभी प्लेटफॉर्म और गेमिंग एप्स पर
अधिकांश मनोरंजन की सामग्री का स्वरूप बदलकर नकारात्मक एवं जीवन मूल्यों रहित होता
जा रहा है।
मनोरंजन
के नाम पर इनके द्वारा जो हिंसक, अश्लील एवं
मर्यादाहीन सामग्रियां परोसी जा रही हैं, वे अत्यंत
लज्जास्पद एवं निंदनीय हैं। ये युवावर्ग और बालमन व मस्तिष्क में उग्रता, अश्लीलता, विकृत यौनाचार और नशाखोरी जैसे दुराचारों
को महिमा मंडित कर उन्हें अधोपतन की ओर अग्रसित कर रही हैं। इन माध्यमों में
प्रदर्शित अधिकांश दृश्य, वोकिज़्म और नकारात्मक दृष्टिकोण
को बढ़ावा देने वाली होती हैं। आज इस तरह के प्लेटफॉर्म और गेमिंग एप्स युवाओं को
आत्महत्या के लिए प्रेरित कर रहे हैं। साथ ही अधिकांश प्लेटफॉर्म भारत के
सांस्कृतिक मूल्यों एवं परम्पराओं पर आघात कर उनको विकृत रूप में चित्रित करती
हैं। इनका अनियंत्रित प्रसारण समाज एवं राष्ट्र जीवन के लिए अत्यधिक घातक है।
अखिल
भारतीय साहित्य परिषद, जो भारतीय साहित्य,
संस्कृति और चिंतन के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए समर्पित है,
इस गंभीर स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करती है। परिषद का यह मानना
है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि समाज की गरिमा और नैतिकता को
नष्ट करने की छूट दी जाए। स्वतंत्रता और अनुशासन, सृजन और
मर्यादा, ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
अतः
यह अधिवेशन भारत सरकार तथा सभी राज्य सरकारों से मांग करता है कि –
1. ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म एवं गेमिंग एप्स पर प्रसारित होने वाली प्रत्येक
सामग्री के परीक्षण, नियमन, और वर्गीकरण हेतु शासन द्वरा एक सशक्त, स्वायत्त
विधायी नियामक संस्था का गठन किया जाए।
2. डिजिटल माध्यमों में प्रस्तुत किसी भी दृश्य, संवाद या विचार जो भारत की संविधानिक गरिमा, धार्मिक
आस्था, सांस्कृतिक मूल्यों या सामाजिक मर्यादा और सनातन
परंपरा को आहत करते हों, उन पर कड़ी निगरानी रखी जाए।
3. किशोरों और युवाओं के लिए उपयुक्त सामग्री के आयु आधारित नियंत्रण
तंत्र को अनिवार्य बनाया जाए।
4. जो मंच या माध्यम अश्लीलता, हिंसा, नशाखोरी या विकृत जीवन मूल्यों का प्रचार
करते हैं, उनके विरुद्ध कठोर कानूनी दंडात्मक कार्रवाई की
जाए।
5. भारतीय भाषाओं और संस्कृति के संवर्धन हेतु भारतीय मूल्यों पर आधारित
वैकल्पिक मनोरंजन माध्यमों को प्रोत्साहित किया जाए।
अंत
में, अखिल भारतीय साहित्य परिषद का मानना है कि साहित्य,
संस्कृति और समाज की शुचिता तभी सुरक्षित रह सकती है, जब जनमानस में सजगता, संवेदनशीलता और नैतिकता बनी
रहे। अतः अखिल भारतीय साहित्य परिषद भारत सरकार तथा सभी राज्य सरकारों से यह मांग
करती है कि उपर्युक्त सभी विषयों का संज्ञान लेकर इस दिशा में उचित कदम उठाए।

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