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Saturday, January 18, 2025

महाकुम्भ- भारत की प्राचीन परंपराएं, विश्व को सही दिशा प्रदान करने में सक्षम

महाकुम्भ नगर। दिव्य प्रेम सेवा मिशन, हरिद्वार द्वारा तीर्थराज प्रयाग की पावन भूमि पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। प्रेरणादायक और वैचारिक कार्यक्रम का विषय था – “भारत की गौरव गाथा बनाम आत्महीनता की भावना”, जो भारतीय संस्कृति की उज्ज्वल परंपराओं और सामाजिक चेतना को जागृत करने का सार्थक प्रयास था।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आचार्य महामंडलेश्वर निरंजनी अखाड़ा स्वामी कैलाशनन्द गिरी जी महाराज ने आध्यात्मिक अनुभव और गीता के गहन अर्थों को साझा करते हुए सनातन धर्म की अनंत महिमा का वर्णन किया। भारत की प्राचीन परंपराएं, जैसे ध्यान, तप और यज्ञ, आज भी विश्व को सही दिशा प्रदान करने में सक्षम हैं।

मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने भारत की महान सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक समरसता के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत की गरिमा को पुनः स्थापित करने के लिए सभी वर्गों को एकजुट होकर कार्य करना होगा। उनका उद्बोधन समाज में व्याप्त ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त कर “वसुधैव कुटुंबकम्” के आदर्श को साकार करने की प्रेरणा देता है।

कार्यक्रम अध्यक्ष उत्तर प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण जी ने कहा कि भारत को पुनः विश्वगुरु के स्थान पर पहुंचाने के लिए युवाओं को आत्मविश्वास और भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ना होगा। उन्होंने आयुर्वेद, योग और भारतीय चिंतन के महत्व पर जोर देते हुए इसे जीवन में अपनाने की आवश्यकता बताई।

मंच पर दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. आशीष गौतम जी, संयोजक संजय चतुर्वेदी जी, अपर महाधिवक्ता महेश चतुर्वेदी जी, और सह संयोजक राघवेंद्र सिंह जी सहित मिशन के अनेक पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे। श्रद्धालुओं और गणमान्य अतिथियों ने भी बड़ी संख्या में सहभागिता की।

स्वामी कैलाशनन्द गिरी जी महाराज ने आत्महीनता की भावना को त्यागने और सनातन धर्म के आलोक में जीवन को श्रेष्ठ बनाने का आह्वान किया। भारतीय संस्कृति के मौलिक तत्व, जैसे धर्म, सत्य, और अहिंसा, ही मानवता का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

दिव्य प्रेम सेवा मिशन के आयोजन ने भारतीय संस्कृति, सनातन परंपरा, और राष्ट्रीय गौरव के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया। कार्यक्रम राष्ट्र निर्माण और समाज में सकारात्मक परिवर्तन के प्रति एक समर्पित पहल के रूप में सभी के हृदय में अमिट छाप छोड़ गया। 


Friday, December 27, 2024

संघ ने मनाया वीर बाल बलिदान दिवस, गुरु गोविन्द सिंह जी के चार साहबजादों के बलिदान को दी श्रद्धांजली

काशी। गुरुवार को महमूरगंज स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय पर सर्ववंशदानी दशम पिता गुरु गोविन्द सिंह जी के चार साहबजादों के बलिदान दिवस पर शबद कीर्तन का आयोजन किया गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सरदार हरमिन्दर सिंह ने कहा कि भारतीय इतिहास व परम्परा विश्व की महानतम संस्कृतियों और भारतीय इतिहास व परम्परा विश्व की महानतम संस्कृतियों और सभ्यताओं में से एक है। पुण्यभूमि भारत में प्राचीन काल से महापुरुषों, साधु महात्माओं, विचारकों व गुरुओं ने अपने अनूठे ढंग से मानव समाज को सदगुण युक्त आदर्श जीवन जीने को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि भारत की इस पावन धरा पर एक ओर अध्यात्म और भक्ति का संदेश गूँजा तो दूसरी ओर देश प्रेमी, धर्मनिष्ठ महामानवों ने जनसमाज में वीरत्व, शौर्य और त्याग जैसे गुणों को रोपित करते हुये उन्हें धर्म व राष्ट्र की रक्षा हेतु अपने प्राण तक न्योछावर करने का साहस भी दिया। भारतीय इतिहास में खालसा पंथ प्रवर्तक गुरु नानक देव जी से लगाकर दसवें व अन्तिम गुरु गोबिन्दसिंह जी तक की गौरवमयी गाथाओं का विशिष्ट स्थान है। सिख गुरुओं के धर्मनिष्ठ त्याग, राष्ट्रप्रेम एवं महान वीरोचित परम्पराओं से यह देश धन्य हुआ है। मुख्य वक्ता ने आगे कहा कि खालसा पंथ में गुरु तेगबहादुर जी का तप, त्याग व बलिदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे सिक्खों के नौवें गुरु थे। उस समय भारत में मुगल साम्राज्य था। औरंगजेब एक क्रूर और अत्याचारी शासक था। उसने हिन्दुओं को इस्लाम स्वीकार कराने के लिए अनेक प्रकार के कष्ट दिये। वह संपूर्ण हिन्दू समाज को इस्लाम का अनुयायी बना कर भारत का इस्लामीकरण करना चाहता था।

कार्यक्रम में उपस्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रान्त के प्रान्त प्रचारक रमेश जी ने कहा कि आज हम अपने पूर्वजों के बलिदान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उनका स्मरण कर रहे हैं। अपने आने वाली पीढ़ी को यह बताना जरुरी है कि समाज में अज्ञानी व भटके हुए लोगों के कारण विकट परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं। यदि गंगू ने धोखा न दिया होता तो वीर बालक शहीद न हुए होते। उन्होंने कहा कि गुरु गोविन्द सिंह जी के दो साहबजादें अजीत सिंह एवं जुझार सिंह धर्म की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए। उनके अन्य दो साहबजादों जोरावर एवं फतेह सिंह को इस्लाम न स्वीकार करने के कारण सरहिन्द की दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया। काजी ने अन्तिम बार बच्चों को इस्लाम स्वीकार करने को कहा तो साहबजादों ने मुस्कुराकर साहसपूर्ण उत्तर दिया ‘‘हम इस्लाम स्वीकार नहीं करेंगे। संसार की कोई भी शक्ति हमें अपने धर्म से नहीं डिगा सकती। हमारा निश्चय अटल है।‘‘

बालकों की अपूर्व धर्मनिष्ठा देखकर जनसमूह स्तब्ध था-

वक्ता ने आगे कहा कि जैसे जैसे दीवार ऊंची हो रही थी। सभी एकत्रित लोग नन्हें बालकों की वीरता देख आश्चर्य कर रहे थे। बड़े भाई जोरावर सिंह ने अन्तिम बार अपने छोटे भाई फतेह सिंह की ओर देखा। जोरावर सिंह की आंखे भर आई। फतेह सिंह बडे़ भाई जोरावर की आंखों में आंसू देखकर विचलित हो गया। उसने कहा ‘‘क्यों वीर जी, आपकी आंखों में ये आंसू ? क्या बलिदान से डर रहे हों ?’’ जोरावर ने कहा इस संसार में तुमसे पहले मैं आया लेकिन धर्म के लिए मुझसे पहले तुम्हारा बलिदान हो रहा है।

कार्यक्रम का प्रारम्भ भाई नरिन्दर सिंह, भाई सुरिन्दर सिंह, भाई लवप्रीत सिंह द्वारा श्री गुरु ग्रन्थ साहब में वर्णित सामाजिक समरसता, त्याग-तप पर केन्द्रित शबद कीर्तन से किया गया। मुख्य ग्रन्थी अजीत सिंह ने पवित्र ग्रन्थ के कुछ अंशों का पाठ किया।

इस अवसर पर गुरुद्वारा गुरुबाग के मुख्य सेवादार परमजीत सिंह अहलूवालिया, प्रबन्धक दलजीत सिंह, सेवादार हरमिन्दर सिंह दुआ, डा0वीरेन्द्र जायसवाल, जयप्रकाश जी, रामचन्द्र जी, प्रो0मनोज चतुर्वेदी, राकेश अग्रहरि, मनोज सोनकर, अरविन्द श्रीवास्तव समेत राष्ट्रीय सिक्ख संगत के पदाधिकारी एवं अनेक सनातन धर्मी उपस्थित रहें। संयोजन संजय चौरसिया, संचालन नीतेश मल्होत्रा ने किया।






Thursday, December 19, 2024

महाकुम्भ : विश्व हिन्दू परिषद का कुटुम्ब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, मतांतरण, हिन्दू जन्म दर पर मंथन

प्रयागराज. सबसे बड़ा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समागम महाकुम्भ 2025, प्रयागराज में 40 करोड़ भक्तों के एकत्रित होने का अनुमान है. दिव्य-भव्य महाकुम्भ के सफल आयोजन के लिए सरकार के साथ विविध संगठन भी प्रयासरत हैं.

इस संबंध में विश्व हिन्दू परिषद शिविर की कार्य योजना पर प्रकाश डालते हुए विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय महामंत्री संगठन मिलिंद परांडे जी ने प्रेस वार्ता में बताया कि शिविर में 13 जनवरी से 28 फरवरी तक संगठन की गतिविधियाँ संचालित होंगी, जिसमें पूरे देश के 150 संप्रदायों के धर्मगुरु पूज्य संत शामिल होंगे.

केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में कुटुम्ब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, मतांतरण, हिन्दू जन्म दर, घटती हिन्दू जन्म दर पर चर्चा और मार्गदर्शन प्राप्त होगा. शिविर में युवा संत सम्मेलन, साध्वी संत सम्मेलन का आयोजन होगा. साथ ही भारत के दक्षिण हिस्से से बड़ी मात्रा में इस वर्ष संत आचार्य गंगा स्नान के लिए पधारेंगे, साथ में उत्तर पूर्व प्रांत से बड़ी संख्या में संतों का आगमन होगा. देश-विदेश के बौद्ध मत के बड़े आचार्य एवं विश्व हिन्दू परिषद की सेवा में लगे लोगों का आगमन होगा. जनजातीय विस्तार वनांचल समाज का आगमन भी बड़ी संख्या में होगा.

सामाजिक समरसता की दृष्टि से समाज के सभी वर्गों का आगमन बड़ी संख्या में होगा. वि.हि.प के माध्यम से गौ रक्षा एवं गौ संवर्धन के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं, कार्यकर्ताओं का बड़ा सम्मेलन आयोजित होगा. हम पहले हिन्दू हैं, भाव रखने वाले सभी जातियों के बीच कार्य करने वाले हजारों कार्यकर्ता, संस्थाओं का सम्मेलन शिविर में आयोजित होगा. कुटुम्ब प्रबोधन, लव जिहाद, हिन्दू संस्कारों का क्षरण, महिला सम्मान स्त्री शक्ति, ऐसे विचारों को लेकर एक विशाल माता-भगिनी सम्मेलन आयोजित होगा.

देश भर में हिन्दू समाज का मतांतरण रोकने के लिए तथा जो अन्य मजहब के लोगों को हिन्दू धर्म में लौटाना चाहते हैं, इनके स्वागत के कार्य में जुटे हजारों कार्यकर्ताओं का सम्मेलन, वेद तथा संस्कृत प्रचार के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं, कार्यकर्ताओं का सम्मेलन आयोजित होगा. वि.हि.प शिविर में दिन प्रतिदिन कुंभ स्नान, गंगा स्नान करने वाले सामान्य भक्त गणों एवं धर्माचार्यों की सेवा प्रसाद का आयोजन शिविर के माध्यम से निरंतर किया जाएगा. महाकुम्भ मेले में प्रतिदिन सीता रसोई भंडारा का आयोजन भी होगा.

प्रेस वार्ता में मिलिंद जी के साथ क्षेत्र संगठन मंत्री गजेन्द्र जी और काशी प्रान्त अध्यक्ष कविन्द्र प्रताप सिंह जी भी उपस्थित रहे.

Thursday, December 12, 2024

न्यूनतम सुविधा में उत्तम सुशासन का कालखण्ड लोकमाता अहिल्याबाई का जीवन - मुकुन्द जी

- जो राजसत्ता अपनी प्रजा की हर समस्या का समुचित समाधान करें उसे पुण्यश्लोक कहा गया

काशी। न्यूनतम सुविधा में उत्तम सुशासन का कालखण्ड लोकमाता अहिल्याबाई होलकर का था। अहिल्याबाई के प्रशासनिक नेतृत्व को देखते हुए ’लेस गवर्नमेंट मोर गवर्नेंस’ सदृश सूक्ति चरितार्थ होती प्रतीत होती है। जो राजसत्ता अपनी प्रजा की हर समस्या का समाधान करें उसे पुण्यश्लोक कहा गया। उक्त विचार लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी जयन्ती समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री मुकुंद जी ने व्यक्त किया।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन सभागार में कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन से मातृत्व, नेतृत्व और कृतित्व धर्म की शिक्षा लेनी चाहिए। आज के समय में ’मातृत्व’ में होते क्षरण को देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि लोकमाता अहिल्याबाई को याद किया जाए। साथ ही अपने नेतृत्व में उन्होंने जो लोककल्याणकारी कार्य किए वे अभूतपूर्व हैं। भारतीय समाज में विश्वास और आत्मसम्मान जगाने का कार्य लोकमाता ने मंदिरों और घाटों के पुनरोद्धार के माध्यम से किया। उन्होंने आगे कहा कि यूरोपीय स्त्रियों और भारतीय स्त्रियों को तुलनात्मक रूप में देखने से पता चलता है कि भारतीय महिलाओं की स्थिति राजनीति, प्रशासन और धार्मिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक उत्तम थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं अहिल्याबाई होलकर हैं। स्त्री और पुरुष की समानता की बात करते हुए मुकुंद जी ने कहा कि इस समाज को पुरुषत्व की जितनी आवश्यकता है, उतनी ही मातृत्व की भी। आज अर्थशास्त्री बताते हैं कि राष्ट्र की जीडीपी में महिलाओं का भरपूर योगदान हैं। वर्तमान में सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा सेवा के एक लाख तीस हजार से अधिक सेवा कार्य चल रहे हैं। जिनमें महिलाएं आगे हैं। इन कार्यों में निर्णय लेने की क्षमता पुरुषों की तुलना में मातृशक्ति में कहीं अधिक सुदृढ़ है। माताएं संवेदनशीलता, एकाग्रता में पुरुषों से कहीं आगे हैं। वर्तमान युवा पीढ़ी जिस भी माध्यम से अहिल्याबाई के संदेशों को ग्रहण करती हो, हमें उसी माध्यम से ऐसे महापुरुषों के संदेश को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए, यही हमारे इस कार्यक्रम का भी ध्येय है। कार्यक्रम के आयोजन तिथि पर मुख्य वक्ता ने बताया कि 11 दिसम्बर को ही देवी अहिल्याबाई होलकर मालवा राज्य का शासन सम्भाला। आज गीता जयन्ती पर श्रीमद्भगवत्गीता के एक श्लोक का उदाहरण देते हुए कहा कि अर्जुन को समझाते हुए श्री कृष्ण भगवान कहते है ‘‘यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते।। अर्थात श्रेष्ठ जन अपने जीवन में जो जो आचरण करते हैं समान्यजन उनके जीवन से प्रेरित होते हैं।

विशिष्ट अतिथि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के वंशज उदय सिंह राजे होलकर जी ने कहा कि पुण्यश्लोक अहिल्याबाई का जीवन साधारण नहीं रहा। अपने ही जीवन काल में उन्हें सास, श्वसुर, पति, पुत्र-पुत्री सभी की मृत्यु देखनी पड़ी। पति के साथ सती होने से श्वसुर मल्हार राव होलकर ने उन्हें रोका। घाट, धर्मशाला का निर्माण अथवा मन्दिरों का जीर्णोंद्धार लोकमाता ने अपने स्त्रीधन से किया था। देवी अहिल्याबाई होलकर कुशल प्रशासिका के साथ आध्यात्मिक महिला भी थी। उनके हाथ की लिखी श्रीमद्भागवत गीता भोपाल संग्रहालय में संरक्षित है। लोकमाता ने  धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किये जो 300 वर्ष बाद भी आज याद किए जा रहे हैं और किये जाते रहेंगे। महेश्वर में सभी छोटे बड़े लोगों के साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करके समता और समभाव प्रदर्शित करना तथा सामान्य जन की जीविका हेतु  महेश्वर में हथकरघा उद्योग की स्थापना करना इत्यादि लोकमाता के कल्याणकारी कार्यों में प्रतिष्ठित है।

विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी कानिटकर जी ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन संघर्ष से प्रेरणा लेनी चाहिए। देश का भविष्य युवा पीढी के हाथों में ही होता है। लोकमाता के तीन विशिष्ट भूमिकाएं सैनिक, प्रजावत्सल ममतामयी अभिभावक और शिक्षिका जिनसे प्रेरित होकर मैंने अपने जीवन को संवारा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी जयन्ती समारोह समिति की अखिल भारतीय अध्यक्षा प्रो.चंद्रकला पाड़िया जी ने कहा कि भारतीय नारी उस पक्षी की तरह है जो दिन में तो आकाश में विचरण करती है, लेकिन शाम होते-होते वह अपने नीड़ में वापस आने की इच्छा भी रखती है। उन्होंने महादेवी वर्मा जी के ’श्रृंखला की कड़ियां’ निबंध-संग्रह का उल्लेख करते हुए  लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम का प्रारंभ मंचस्थ अतिथियों द्वारा देवी अहिल्या बाई के तैल चित्र और मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन तथा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। मंगलाचरण वेंकटरमन घनपाठी तथा संगीत मंचकला संकाय की छात्राओं ने कुलगीत गायन किया। मंचस्थ अतिथियों का परिचय एवं स्वागत प्रान्त सम्पर्क प्रमुख दीनदयाल पाण्डेय ने किया। आयोजन समिति की सदस्या डॉ. नीरजा माधव जी ने विषय प्रस्तावना की।

वो अहिल्या है नृत्य नाटिका से जीवन्त हुआ लोकमाता का जीवन चरित -

निवेदिता शिक्षा सदन एवं संत अतुलानंद के छात्र- छात्राओं ने  देवी अहिल्याबाई होलकर के जीवन पर आधारित लघु नाटिकाओं का मंचन किया। छात्राओं के प्रस्तुति से लोकमाता का जीवन चरित की प्रस्तुति ने लोगों को प्रभावित किया। संत अतुलानन्द के विद्यार्थियों ने लघु नाटिका द्वारा काशी विश्वनाथ मन्दिर के स्थापना के प्रसंग को प्रदर्शित किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रान्त की जागरण पत्रिका ’चेतना प्रवाह’ के लोकमाता अहिल्याबाई होलकर पर केंद्रित विशेषांक का लोकार्पण किया गया। इसके साथ ही गुंजन नंदा जी की पुस्तक देवी अहिल्याबाई : महेश्वर से मोक्षदायिनी काशी तक का भी लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम में स्वतंत्रता भवन की वीथिका में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर से संबंधित चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन भी हुआ।

चेतना प्रवाह के रानी अहिल्यहोलकर विशेषांक का लोकार्पण

समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, काशी प्रान्त की जागरण पत्रिका चेतना प्रवाह के लोकमाता अहिल्याबाई होलकर विशेषांक का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। लोकार्पण सह सरकार्यवाह मा0 मुकुन्द जी, उदय सिंह राजे होलकर जी, डॉ0 माधुरी कानिटकर जी, डॉ0चन्द्रकला पाडिया एवं काशी प्रान्त के प्रान्त प्रचारक मा0 रमेश जी, के द्वारा डॉ0 हेमन्त गुप्त, श्री नागेन्द्र जी (प्रबन्ध सम्पादक), एवं प्रो0 ओम प्रकाश सिंह (सम्पादक) के माध्यम से सम्पन्न हुआ।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय गौसेवा संयोजक अजित महापात्रा, अ.भा.सामाजिक समरसता संयोजक रवीन्द्र किलकोले, प्रज्ञा प्रवाह के अ.भा.कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष जी, क्षेत्र सेवा प्रमुख यृद्धवीर जी, क्षेत्र पर्यावरण संयोजक अजय जी, प्रान्त संघचालक अंगराज जी, प्रान्त प्रचारक रमेश जी सहित बड़ी संख्या में काशी के गणमान्य नागरिक एवं मातृशक्ति की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन डॉ. भावना त्रिवेदी और गुंजन नंदा जी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रामनारायण द्विवेदी जी ने किया।








Wednesday, December 4, 2024

काशीवासियों की हुंकार, बांग्लादेश में बन्द हो हिन्दुओं पर अत्याचार

 - हिन्दू जेनोसाइड के लिए डीप स्टेट का मोहरा बना मो0युनुस

- भारत सरकार से आह्वान है कि वह बांग्लादेश में हिन्दुओं तथा अन्य सभी अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के प्रयासों को हरसंभव जारी रखे

काशी। बांग्लादेश में पिछले 4 महीनों से जारी हिन्दुआें पर अत्याचार के विरोध में काशी के हिन्दू समाज ने आवाज बुलन्द की। मंगलवार को 102 सामाजिक/धार्मिक/आर्थिक संगठनों ने एक स्वर में विरोध करते हुए कहा कि बांग्लादेश में हिन्दू एवं अल्पसंख्यक समुदायों पर हो रहे अत्याचार बंद हो।

हिन्दू रक्षा समिति वाराणसी के तत्वाधान में भारत के महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन देने एवं विरोध प्रदर्शन का आयोजन नदेसर स्थित मिंट हाउस तिराहा (स्वामी विवेकानन्द प्रतिमा स्थल) से आरम्भ किया गया। प्रदर्शन स्वामी विवेकानन्द प्रतिमा स्थल से निकलकर दूरदर्शन केन्द्र होते हुए वरुणापुल, कचहरी होते हुए जिला मुख्यालय पहुंचा। जहां जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया।

ज्ञापन देते हुए अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि बांग्लादेश के अन्दर चुनी हुई सरकार को षड़यंत्र के तहत गिराकर हिन्दू जेनोसाइड का प्लान डीप स्टेट ने रचा और इस षड़यंत्र के तहत मो0युनुस को शान्ति का नोबेल पुरस्कार दिया गया। इसी पुरस्कार के आधार पर मो0युनुस को बांग्लादेश की अन्तरिम सरकार चलाने की जिम्मेदारी दी गयी। जो कानून की दृष्टि से भी विधि सम्मत नहीं थी। उन्होंने कहा कि मो0 युनुस के नेतृत्व में हिन्दुआें के कत्ल का आगाज किया गया। मन्दिर तोड़े गये, हिन्दू बहन-बेटियों का मान मर्दन किया जा रहा। बांग्लादेश के ज्ञात तिहास में अब तक सबसे बड़ा हमला हिन्दुओं पर वर्तमान कार्यवाहक प्रधानमंत्री मो0युनुस के कार्यकाल में हो रहा। उन्होंने कहा कि अब हिन्दू समाज विश्व भर में उठ खड़ा हुआ है और ऐसी घटनाओं को सहन नहीं करेगा। स्वामी जितेन्द्रानन्द ने कहा कि ऐसे ही शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में हिन्दुओं का नेतृत्व कर रहे इस्कॉन के संन्यासी चिन्मय कृष्ण दास को बांग्लादेश सरकार द्वारा कारावास भेजना अन्यायपूर्ण है। काशी का हिन्दू समाज बांग्लादेश सरकार से यह आह्वान करता है कि वे यह सुनिश्चित करें कि बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार तत्काल बंद हों तथा श्री चिन्मय कृष्ण दास को कारावास से मुक्त करें। काशी का हिन्दू समाज भारत सरकार से भी यह आह्वान करता है कि वह बांग्लादेश में हिन्दुओं तथा अन्य सभी अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के प्रयासों को हरसंभव जारी रखे तथा इस के समर्थन में वैश्विक अभिमत बनाने हेतु यथाशीघ्र आवश्यक कदम उठायें।

 उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् एवं अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन की चुप्पी पर प्रश्न करते हुए कहा कि बांग्लादेश में हो रहे अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के सन्दर्भ में अभी तक उपरोक्त सभी ने क्या कार्यवाही की ? यह सम्पूर्ण हिन्दू समाज और भारत वर्ष जानना चाहता है।

दिव्यांगजनों ने की विरोध प्रदर्शन की अगुवाई

बात धर्म पर आयी तो दिव्यांगजन भी पीछे नहीं रहे। ‘‘शांति और सौहार्द चाहिए, जीने का अधिकार चाहिए। कल नहीं कुछ हल बचेगा, आज लड़े तो कल बचेगा।’’ जैसे उद्घोषों से लिखी तख्तियां लेकर अपने ट्राइसाइकल पर उन्होंने रैली की अगुवाई की। विरोध प्रदर्शन में उन्होंने बढ़चढ़कर अपनी सहभागिता दिखायी। प्रदर्शन में उपस्थित दिव्यांगजनों ने कहा कि जिस हिन्दू का खून न खौले, खून नहीं वो पानी है। कहा कि हिन्दू समाज में बहन-बेटियों को देवी का स्वरुप माना गया है। बांग्लादेश में हिन्दू बहन-बेटियों के पर हो रहे अत्याचार एवं हिन्दू के साथ अमानवीय व्यवहार हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रान्त के प्रान्त प्रचारक रमेश कुमार,  वाराणसी के महापौर अशोक तिवारी, डा.राकेश तिवारी, सत्यप्रकाश सिंह, अरविन्द श्रीवास्तव, विद्यासागर राय, बिपिन सिंह, राजेश विश्वकर्मा, नितिन जी, कन्हैया सिंह, एमएलसी धर्मेन्द्र सिंह, एमएलसी हंसराज विश्वकर्मा, पूजा दीक्षित, राघवेन्द्र समेत 102 संगठनों के सक्रिय कार्यकर्ता एवं नागरिक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संयोजन भारत विकास परिषद के प्रमोद राम त्रिपाठी एवं संचालन नवीन श्रीवास्तव ने किया।

इन संगठनों के लोगों ने निभाई सहभागिता

भारत विकास परिषद, अखिल भारतीय संत समिति, विश्व हिन्दू परिषद्, विश्व संवाद केन्द्र, काशी, बजरंग दल, क्रीड़ा भारती, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत, भाजपा, सेवा भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद्, महिला व्यापार मण्डल, जिला व्यापार मण्डल समेत काशी में संचालित अन्य धार्मिक/सामाजिक/आर्थिक संगठन के लोगों की सहभागिता रही।





Friday, November 15, 2024

काशी का प्रकाशोत्सव है देव दीपावली पर्व

काशी देव दीपावली, अर्थात् देवताओं की दीपावली, कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन भगवान विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौराणिक त्यौहार है, जिसे प्रतिवर्ष दिव्य और भव्य रूप में मनाया जाता है। यूँ तो काशी में प्रतिदिन माँ गंगा की भव्य संध्या आरती का आयोजन किया जाता है, परंतु देव दीपावली के दिन की गंगा आरती अपने आप में एक विशेष महत्व रखती है। तो आइए जानते हैं कि देव दीपावली का क्या महत्व है और कैसे इसका नाम देव दीपावली पड़ा?

क्या है देव दीपावली की कथा

सनातन संस्कृति में देव दीपावली की कथा अत्यंत पौराणिक है। कथा के अनुसार एक बार त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस ने स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था, और वह देवताओं पर अत्यंत अत्याचार करने लगा। देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त होना था परंतु उन्हें मुक्ति का कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था। अंत में सभी देवतागण भगवान शिव के पास गए और उनसे त्रिपुरासुर का वध करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने समस्त देवगणों की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध किया और देवताओं को उसके आधिपत्य से मुक्त कराया। त्रिपुरासुर के वध के बाद देवताओं ने स्वर्गलोक में दीप जलाकर भगवान शिव का स्वागत किया और खुशी के इस अवसर को देव दीपावली का नाम दिया।

काशी में क्यों मनाते हैं देव दीपावली

जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर दिया तो देवताओं ने मिलकर उन्हें काशी में त्रिपुरारी के रूप में स्थापित किया और यहाँ भी दीप जलाए, तभी से लेकर आज तक प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन काशी में देव दीपावली हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। माँ गंगा के किनारे लाखों की संख्या में दीप प्रज्ज्वलित किये जाते हैं, और दीपदान के साथ माँ गंगा की भव्य आरती की जाती है। यह दृश्य न केवल देखने में अत्यंत सुंदर होता हैबल्कि एक धार्मिक और आध्यात्मिक माहौल का भी निर्माण करता है।

देव दीपावली का महत्व

देव दीपावली केवल काशी में ही नहीं बल्कि कई अन्य धार्मिक नगरों में भी मनाई जाती है। इस दिन के अवसर पर भगवान गणेश, माता लक्ष्मी समेत विभिन्न देवी देवताओं की पूजा की जाती है परंतु भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन घरों और मंदिरों में दीप जलाने के साथ-साथ मंत्रोच्चारण भी किया जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

गुरु नानक देव जी की शिक्षा में सेवा और समानता का संदेश

- गुरुद्वारों और आसपास के क्षेत्रों को रोशनी और दीपों से सजाया गया

देश भर के साथ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में गुरु नानक जयंती का पर्व बड़े श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर गुरुद्वारों में प्रभात फेरी का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु सुबह-सुबह एकत्र होकर गुरबानी का कीर्तन करते हुए गुरुद्वारों के आस-पास के क्षेत्रों में निकलते हैं। इस दौरान लोग गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रचार करते हुए शबद-कीर्तन में लीन होते हैं।

शबद कीर्तन-

गुरुद्वारों में गुरु नानक देव जी के उपदेशों और उनके शबद कीर्तन का आयोजन किया जाता है। भक्तगण "सतगुरु नानक परगटया" और अन्य पवित्र शबद गाते हैं, जिससे पूरे वातावरण में भक्ति का माहौल बन जाता है। ये शबद कीर्तन सुबह से शाम तक चलते हैं और लोगों को आध्यात्मिकता से जोड़ने का काम करते हैं।

लंगर का आयोजन-

गुरु नानक जयंती के मौके पर गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन भी होता है, जिसमें सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग एक साथ भोजन करते हैं। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में सेवा और समानता का संदेश महत्वपूर्ण है, और लंगर इसी का प्रतीक है। इसमें निःशुल्क भोजन सभी को परोसा जाता है, और सेवादार पूरी श्रद्धा और प्रेम से लोगों की सेवा करते हैं।

शाम को आतिशबाजी का आयोजन-

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कई गुरुद्वारों में शाम को आतिशबाजी का भी आयोजन होता है, जो इस पर्व को और भव्य बना देता है। आतिशबाजी से आसमान रंग-बिरंगे प्रकाश से जगमगाने लगता है, और यह नज़ारा सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बनता है। इस दौरान गुरुद्वारों और आसपास के इलाकों को रोशनी और दीयों से सजाया जाता है, जिससे माहौल और भी दिव्य हो जाता है।

इस तरह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी गुरु नानक जयंती को पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है, और इस पर्व पर सभी को गुरु नानक देव जी के संदेश को आत्मसात करने और मानवता की सेवा करने की प्रेरणा मिलती है।