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Thursday, June 26, 2025

हिटलर की तानाशाही का पुनरावृत्ति रहा इंदिरा का आपातकाल — रामाशीष जी

उच्च न्यायालय के 1700 कमरों पर चलाया गया था बुलडोजर

काशी। जर्मनी में 1933 में जिस प्रकार हिटलर द्वारा मौलिक अधिकारों का शमन किया गया था, 42 वर्षों बाद भारत में 1975 में इन्दिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाकर उस प्रकार के वातावरण की पुनरावृत्ति की गयी। 26 जून 1975 को पूरे भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस सहित बड़े विपक्षी नेताओं को जेल में डालकर घोर यातना दी गयी। उक्त विचार बुधवार को मुख्य वक्ता के रूप में प्रज्ञा प्रवाह के अ0भा0 केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष जी ने संस्कार भारती एवं विश्व संवाद केन्द्र काशी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित "आपातकाल में राजनीतिक अस्थिरता" विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किया।

आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित इस संगोष्ठी को लंका स्थित विश्व संवाद केन्द्र काशी के माधव सभागार में मुख्य वक्ता ने कहा कि 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित सरकार का विरोध करने हेतु रैली में अपार जनसमूह आया। जिससे घबराकर मध्य रात्रि को अनुच्छेद 352 का आधार लेकर देश को आपातकाल में झोक दिया गया। विदित हो कि 12 जून 1975 इला​हाबाद उच्च न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार के आधार पर इन्दिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध माना गया था। लोकतंत्र का यह काला अध्याय 21 महीनों तक चला। मुख्य वक्ता ने बताया कि वास्तव में आपातकाल का प्रभाव केवल राजनैतिक न होकर समाज के प्रत्येक आयाम पर पड़ा। इन्दिरा गांधी ने विपक्षी नेताओं सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर विशेष रूप से कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगाए। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जेल में विभिन्न प्रकार की यातानाएं दी गयी। इसके विरोध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह चलाया। 14 अगस्त 1975 से 26 जनवरी 1976 तक एक लाख ​स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारी दी। जिनमें 98 स्वयंसेवक यातना के कारण दिवगंत हो गये। इस आपातकाल का दुष्प्रभाव न्यायपालिका एवं लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ प​त्रकारिता पर भी पड़ा। संजय गांधी द्वारा उच्च न्यायालय के 1700 कमरों पर बुलडोजर चलाया गया। परन्तु प्रेस पर प्रतिबन्ध के कारण यह समाचार कही भी उल्लिखित नहीं है। निरंकुश इन्दिरा गांधी द्वारा संविधान की मूल भावना ​के विपरीत 42वां संशोधन किया गया। जिसमें संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष एवं समाजवादी शब्दों को सम्मिलित किया गया।

आपातकाल की यातना के दिनों के साक्षी रहे संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक रामसूचित पाण्डेय ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन दिनों वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के गणित विभाग में कार्यरत थे। प्राय: प्रतिदिन ही संघ के अन्य कार्यकर्ताओं के विषय में सीआईडी के अधिकारियों द्वारा उनसे पूछताछ की जाती थी। अपने घर वह पुलिस अधिकारियों से छुपछुपाकर जाते थे। उन्हीं दिनों काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित संघ भवन को गिरा दिया गया। संघ के स्वयंसेवकों के लिए आपातकाल दूसरा स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन जैसा था। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कार भारती काशी महानगर के अध्यक्ष रामवीर शर्मा ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचस्थ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन किया गया। संस्कार भारती का ध्येय गीत नवीन जी द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का सहसंयोजन के0वी0 जनकल्याण ट्रस्ट द्वारा किया गया। संचालन कार्यक्रम संयोजिका डॉ0प्रेरणा चतुर्वेदी द्वारा किया गया। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से संघ के वरिष्ठ प्रचारक जागेश्वर जी, संस्कार भारती के उपाध्यक्ष प्रेमनारायण, संजय सिंह, प्रमोद पाठक, प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्र संयोजक डॉ0कमलेश शर्मा, सुष्मिता सेठ, विष्णु भाई, सुधीर, दिनेश, डॉ0 आशीष सहित बड़ी संख्या में मातृशक्ति एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहें।



Thursday, May 22, 2025

आपरेशन सिन्दूर : काशी में शक्ति के सम्मान में उतरीं मातृशक्ति, गौरव यात्रा में गूंजा भारत माता की जय

 - मातृशक्तियों ने एक स्वर में कहा कि सिंदूर का अर्थ अब सिर्फ श्रृंगार नहीं, ये भारत की सुरक्षा का पहचान है

काशी। आपरेशन सिन्दूर देश के दुश्मनों के लिए एक संदेश सिद्ध हुआ। आतंकिस्तान के साथ पाकिस्तान को भी हिला कर रख देने वाला भारतीय सेना का यह मिशन भारत की शक्ति को पुनः स्थापित किया। भारत में बेटियों को शक्ति का रूप माना गया है और इस मिशन में भारतीय सेना का नेतृत्व कर रही दो बेटियों ने बता दिया कि सिन्दूर की ओर आंख उठाने का परिणाम क्या होगा। आपरेशन सिन्दूर के बाद देश भर में हर्ष का माहौल है। इसी क्रम में बुधवार को वाराणसी में भी मातृशक्तियों ने भारतीय मातृशक्ति गौरव समिति, काशी द्वारा आयोजित विशाल गौरव यात्रा निकालकर भारत की सैन्य शक्ति का सम्मान किया है। सीमा पर युद्ध में वीरगति को प्राप्त भारत माता के बलिदानी वीर सपूतों को श्रद्धांजलि दी है। सिगरा नगर निगम स्थित शहीद उद्यान से निकली इस यात्रा में हजारों की संख्या में उपस्थित मातृशक्ति ने गगनभेदी उद्घोष  से भारत की तरफ आंख उठाने वालों को सन्देश दिया कि सेना के साथ हम भी डटे हैं। मातृशक्तियों ने एक स्वर में कहा कि सिंदूर का अर्थ अब सिर्फ श्रृंगार नहीं, ये भारत की सुरक्षा की पहचान है। इसी के साथ वन्देमातरम और भारत माता की जय के उद्घोष महानगर गुंजायमान होता रहा। यह यात्रा अपने विश्राम स्थल भारत माता मन्दिर पहुंची। मन्दिर परिसर में उपस्थितजनों को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता एन.सी.सी. बीएचयू की सीनियर गर्ल्स कैडेट श्रुति श्रीवास्तव ने कहा कि आपरेशन सिन्दूर से हमारी सेना ने बता दिया कि हम शान्ति चाहते है, किन्तु अगर कोई युद्ध थोपेगा तो विजय हम ही लिखेंगे। उन्होंने कहा कि आज का दिन मात्र एक आयोजन नहीं, गौरव का उत्सव है। बलिदानियों के बलिदान का प्रणाम करने का संकल्प है, और भारत माता के प्रति अपनी निष्ठा को दोहराने का अवसर है। इसके पूर्व मन्दिर परिसर में भारत माता की प्रतिमूर्ति बालिका का माल्यार्पण किया गया। दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। विषय प्रस्तावना सह संयोजिका प्रो0 अमिता सिंह ने किया। अतिथि परिचय एवं धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजिका प्रो0 मंजू द्विवेदी एवं संचालन डॉ.शिप्राधर व सीए जमुना शुक्ला ने किया। इस अवसर पर डॉ.आनन्द प्रभा, डॉ.रंजना श्रीवास्तव, प्रो0 भावना, डॉ.रूचि, गूंजन नन्दा, सीमा तिवारी ने अपने महत्वपूर्ण योगदान से कार्यक्रम को सफल बनाया।

भारत माता एवं अहिल्याबाई की झांकी से यात्रा का नेतृत्व

यात्रा का नेतृत्व भारत माता एवं देवी अहिल्याबाई की झांकी से किया गया। देवी अहिल्या के नौ रूपों में शिवलिंग लेकर आयी बालिकाओं ने भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और प्राचीन नारीशक्ति से परिचित कराया, जिसका संयोजन डॉ.शिप्राधर ने किया। देवी अहिल्याबाई श्रीकाशी विश्वनाथ की अनन्य भक्त रहीं। यह झांकी लोगों में आकर्षण का केन्द्र रही।









Thursday, May 1, 2025

विश्व में अपनेपन के भाव से ही शांति आएगी – डॉ. मोहन भागवत जी

काशी के खोजवां क्षेत्र में शंकुलधारा पोखरे पर बुधवार को आयोजित अक्षय कन्यादान महोत्सव की पावन बेला पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी उपस्थित रहे। समारोह में कुल 125 कन्याओं का विवाह संपन्न हुआ। सरसंघचालक जी ने सोनभद्र के रेणूकूट की जनजाति समाज की बेटी राजवंती का कन्यादान किया, उसके वर अमन के पांव पखारे। सरसंघचालक जी ने परिणय सूत्र में बंधने पर सभी दंपत्तियों को शुभाशीर्वाद दिया।

सरसंघचालक जी ने कहा कि विश्व में अपनेपन से शांति लाई जा सकती है। जिसने भी विश्व को अपना कुटुंब माना, उसके सामने सब झुक जाते हैं। जैसे ठोस मकान के निर्माण में पक्की ईंट की भूमिका होती है। उसी तरह कुटुंब संस्कारों से पक्का होता है। प्रत्येक समाज की ईंट परिवार होता है और यह परिवार संस्कारों से, अपनेपन से पक्का होता है। संस्कारित व्यक्ति, समाज और देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अच्छे मनुष्य का प्रशिक्षण कुटुंब में ही होता है। जो समाज का अविभाज्य अंग होता है। कई बार अपनों के लिए हमें त्याग करना पड़ता है, जो संस्कार से आता है। यह अपनेपन को और मजबूती देता है। इसी अपनेपन से विश्व में शांति आएगी। यह स्वभाव हम सभी को अपने में विकसित करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि विवाह के बाद दूसरे घर से आई कन्या को हम अपनेपन के कारण ही परिवार का सदस्य बना पाते हैं। अपनेपन की ऐसी रीति है कि वह सतत बढ़ता है। भारतीय समाज का यही अपनापन जब एक व्यक्ति में उत्पन्न होता है, तो वह सारी दुनिया को अपना परिवार मानता है। भारत का संस्कार इस प्रकार का है कि अपनों के लिए कार्य करने की हमारी पुरानी परंपरा है और यही संस्कार देश का उद्धार करने वाला होगा, यही संस्कार संपूर्ण विश्व में शांति की स्थापना करेगा।

अक्षय कन्यादान महोत्सव आयोजक एवं संघ के क्षेत्र कार्यवाह वीरेंद्र जायसवाल जी को शुभकामनाएं देते हुए इस कार्यक्रम को आगे भी जारी रखने का संकल्प दिलाया।

यह विवाह कार्यक्रम उपकार की भावना से आयोजित नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे अपनत्व का भाव कार्य कर रहा है। विवाह से कुटुंब, कुटुंब से समाज और उससे देश का निर्माण होता है। भारतीय समाज में कुटुंब अपनेपन के कारण स्थायी रहता है। उन्होंने दो महत्वपूर्ण बिंदुओं को लेकर आग्रह किया, प्रथम आज जिन-जिन यजमानों ने कन्यादान किया है, वह सभी उन परिवारों से वर्ष में कम से कम एक बार मिलने जाएंगे। दूसरा सामूहिक विवाह जैसे संस्कारित कार्यक्रम समाज में प्रतिवर्ष आयोजित होने चाहिए क्योंकि ऐसे ही संस्कार युक्त कार्यक्रम मर्यादा की सीमा से बाहर आकर स्वभाव में आते हैं। सामूहिक विवाह का प्रतिवर्ष आयोजन समाज में अपनेपन की भावना में वृद्धि करेगा।





Saturday, January 18, 2025

महाकुम्भ- भारत की प्राचीन परंपराएं, विश्व को सही दिशा प्रदान करने में सक्षम

महाकुम्भ नगर। दिव्य प्रेम सेवा मिशन, हरिद्वार द्वारा तीर्थराज प्रयाग की पावन भूमि पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। प्रेरणादायक और वैचारिक कार्यक्रम का विषय था – “भारत की गौरव गाथा बनाम आत्महीनता की भावना”, जो भारतीय संस्कृति की उज्ज्वल परंपराओं और सामाजिक चेतना को जागृत करने का सार्थक प्रयास था।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आचार्य महामंडलेश्वर निरंजनी अखाड़ा स्वामी कैलाशनन्द गिरी जी महाराज ने आध्यात्मिक अनुभव और गीता के गहन अर्थों को साझा करते हुए सनातन धर्म की अनंत महिमा का वर्णन किया। भारत की प्राचीन परंपराएं, जैसे ध्यान, तप और यज्ञ, आज भी विश्व को सही दिशा प्रदान करने में सक्षम हैं।

मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने भारत की महान सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक समरसता के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत की गरिमा को पुनः स्थापित करने के लिए सभी वर्गों को एकजुट होकर कार्य करना होगा। उनका उद्बोधन समाज में व्याप्त ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त कर “वसुधैव कुटुंबकम्” के आदर्श को साकार करने की प्रेरणा देता है।

कार्यक्रम अध्यक्ष उत्तर प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण जी ने कहा कि भारत को पुनः विश्वगुरु के स्थान पर पहुंचाने के लिए युवाओं को आत्मविश्वास और भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ना होगा। उन्होंने आयुर्वेद, योग और भारतीय चिंतन के महत्व पर जोर देते हुए इसे जीवन में अपनाने की आवश्यकता बताई।

मंच पर दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. आशीष गौतम जी, संयोजक संजय चतुर्वेदी जी, अपर महाधिवक्ता महेश चतुर्वेदी जी, और सह संयोजक राघवेंद्र सिंह जी सहित मिशन के अनेक पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे। श्रद्धालुओं और गणमान्य अतिथियों ने भी बड़ी संख्या में सहभागिता की।

स्वामी कैलाशनन्द गिरी जी महाराज ने आत्महीनता की भावना को त्यागने और सनातन धर्म के आलोक में जीवन को श्रेष्ठ बनाने का आह्वान किया। भारतीय संस्कृति के मौलिक तत्व, जैसे धर्म, सत्य, और अहिंसा, ही मानवता का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

दिव्य प्रेम सेवा मिशन के आयोजन ने भारतीय संस्कृति, सनातन परंपरा, और राष्ट्रीय गौरव के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का सफल प्रयास किया। कार्यक्रम राष्ट्र निर्माण और समाज में सकारात्मक परिवर्तन के प्रति एक समर्पित पहल के रूप में सभी के हृदय में अमिट छाप छोड़ गया। 


Friday, December 27, 2024

संघ ने मनाया वीर बाल बलिदान दिवस, गुरु गोविन्द सिंह जी के चार साहबजादों के बलिदान को दी श्रद्धांजली

काशी। गुरुवार को महमूरगंज स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय पर सर्ववंशदानी दशम पिता गुरु गोविन्द सिंह जी के चार साहबजादों के बलिदान दिवस पर शबद कीर्तन का आयोजन किया गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सरदार हरमिन्दर सिंह ने कहा कि भारतीय इतिहास व परम्परा विश्व की महानतम संस्कृतियों और भारतीय इतिहास व परम्परा विश्व की महानतम संस्कृतियों और सभ्यताओं में से एक है। पुण्यभूमि भारत में प्राचीन काल से महापुरुषों, साधु महात्माओं, विचारकों व गुरुओं ने अपने अनूठे ढंग से मानव समाज को सदगुण युक्त आदर्श जीवन जीने को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि भारत की इस पावन धरा पर एक ओर अध्यात्म और भक्ति का संदेश गूँजा तो दूसरी ओर देश प्रेमी, धर्मनिष्ठ महामानवों ने जनसमाज में वीरत्व, शौर्य और त्याग जैसे गुणों को रोपित करते हुये उन्हें धर्म व राष्ट्र की रक्षा हेतु अपने प्राण तक न्योछावर करने का साहस भी दिया। भारतीय इतिहास में खालसा पंथ प्रवर्तक गुरु नानक देव जी से लगाकर दसवें व अन्तिम गुरु गोबिन्दसिंह जी तक की गौरवमयी गाथाओं का विशिष्ट स्थान है। सिख गुरुओं के धर्मनिष्ठ त्याग, राष्ट्रप्रेम एवं महान वीरोचित परम्पराओं से यह देश धन्य हुआ है। मुख्य वक्ता ने आगे कहा कि खालसा पंथ में गुरु तेगबहादुर जी का तप, त्याग व बलिदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे सिक्खों के नौवें गुरु थे। उस समय भारत में मुगल साम्राज्य था। औरंगजेब एक क्रूर और अत्याचारी शासक था। उसने हिन्दुओं को इस्लाम स्वीकार कराने के लिए अनेक प्रकार के कष्ट दिये। वह संपूर्ण हिन्दू समाज को इस्लाम का अनुयायी बना कर भारत का इस्लामीकरण करना चाहता था।

कार्यक्रम में उपस्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रान्त के प्रान्त प्रचारक रमेश जी ने कहा कि आज हम अपने पूर्वजों के बलिदान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उनका स्मरण कर रहे हैं। अपने आने वाली पीढ़ी को यह बताना जरुरी है कि समाज में अज्ञानी व भटके हुए लोगों के कारण विकट परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं। यदि गंगू ने धोखा न दिया होता तो वीर बालक शहीद न हुए होते। उन्होंने कहा कि गुरु गोविन्द सिंह जी के दो साहबजादें अजीत सिंह एवं जुझार सिंह धर्म की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए। उनके अन्य दो साहबजादों जोरावर एवं फतेह सिंह को इस्लाम न स्वीकार करने के कारण सरहिन्द की दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया। काजी ने अन्तिम बार बच्चों को इस्लाम स्वीकार करने को कहा तो साहबजादों ने मुस्कुराकर साहसपूर्ण उत्तर दिया ‘‘हम इस्लाम स्वीकार नहीं करेंगे। संसार की कोई भी शक्ति हमें अपने धर्म से नहीं डिगा सकती। हमारा निश्चय अटल है।‘‘

बालकों की अपूर्व धर्मनिष्ठा देखकर जनसमूह स्तब्ध था-

वक्ता ने आगे कहा कि जैसे जैसे दीवार ऊंची हो रही थी। सभी एकत्रित लोग नन्हें बालकों की वीरता देख आश्चर्य कर रहे थे। बड़े भाई जोरावर सिंह ने अन्तिम बार अपने छोटे भाई फतेह सिंह की ओर देखा। जोरावर सिंह की आंखे भर आई। फतेह सिंह बडे़ भाई जोरावर की आंखों में आंसू देखकर विचलित हो गया। उसने कहा ‘‘क्यों वीर जी, आपकी आंखों में ये आंसू ? क्या बलिदान से डर रहे हों ?’’ जोरावर ने कहा इस संसार में तुमसे पहले मैं आया लेकिन धर्म के लिए मुझसे पहले तुम्हारा बलिदान हो रहा है।

कार्यक्रम का प्रारम्भ भाई नरिन्दर सिंह, भाई सुरिन्दर सिंह, भाई लवप्रीत सिंह द्वारा श्री गुरु ग्रन्थ साहब में वर्णित सामाजिक समरसता, त्याग-तप पर केन्द्रित शबद कीर्तन से किया गया। मुख्य ग्रन्थी अजीत सिंह ने पवित्र ग्रन्थ के कुछ अंशों का पाठ किया।

इस अवसर पर गुरुद्वारा गुरुबाग के मुख्य सेवादार परमजीत सिंह अहलूवालिया, प्रबन्धक दलजीत सिंह, सेवादार हरमिन्दर सिंह दुआ, डा0वीरेन्द्र जायसवाल, जयप्रकाश जी, रामचन्द्र जी, प्रो0मनोज चतुर्वेदी, राकेश अग्रहरि, मनोज सोनकर, अरविन्द श्रीवास्तव समेत राष्ट्रीय सिक्ख संगत के पदाधिकारी एवं अनेक सनातन धर्मी उपस्थित रहें। संयोजन संजय चौरसिया, संचालन नीतेश मल्होत्रा ने किया।






Thursday, December 19, 2024

महाकुम्भ : विश्व हिन्दू परिषद का कुटुम्ब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, मतांतरण, हिन्दू जन्म दर पर मंथन

प्रयागराज. सबसे बड़ा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समागम महाकुम्भ 2025, प्रयागराज में 40 करोड़ भक्तों के एकत्रित होने का अनुमान है. दिव्य-भव्य महाकुम्भ के सफल आयोजन के लिए सरकार के साथ विविध संगठन भी प्रयासरत हैं.

इस संबंध में विश्व हिन्दू परिषद शिविर की कार्य योजना पर प्रकाश डालते हुए विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय महामंत्री संगठन मिलिंद परांडे जी ने प्रेस वार्ता में बताया कि शिविर में 13 जनवरी से 28 फरवरी तक संगठन की गतिविधियाँ संचालित होंगी, जिसमें पूरे देश के 150 संप्रदायों के धर्मगुरु पूज्य संत शामिल होंगे.

केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में कुटुम्ब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, मतांतरण, हिन्दू जन्म दर, घटती हिन्दू जन्म दर पर चर्चा और मार्गदर्शन प्राप्त होगा. शिविर में युवा संत सम्मेलन, साध्वी संत सम्मेलन का आयोजन होगा. साथ ही भारत के दक्षिण हिस्से से बड़ी मात्रा में इस वर्ष संत आचार्य गंगा स्नान के लिए पधारेंगे, साथ में उत्तर पूर्व प्रांत से बड़ी संख्या में संतों का आगमन होगा. देश-विदेश के बौद्ध मत के बड़े आचार्य एवं विश्व हिन्दू परिषद की सेवा में लगे लोगों का आगमन होगा. जनजातीय विस्तार वनांचल समाज का आगमन भी बड़ी संख्या में होगा.

सामाजिक समरसता की दृष्टि से समाज के सभी वर्गों का आगमन बड़ी संख्या में होगा. वि.हि.प के माध्यम से गौ रक्षा एवं गौ संवर्धन के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं, कार्यकर्ताओं का बड़ा सम्मेलन आयोजित होगा. हम पहले हिन्दू हैं, भाव रखने वाले सभी जातियों के बीच कार्य करने वाले हजारों कार्यकर्ता, संस्थाओं का सम्मेलन शिविर में आयोजित होगा. कुटुम्ब प्रबोधन, लव जिहाद, हिन्दू संस्कारों का क्षरण, महिला सम्मान स्त्री शक्ति, ऐसे विचारों को लेकर एक विशाल माता-भगिनी सम्मेलन आयोजित होगा.

देश भर में हिन्दू समाज का मतांतरण रोकने के लिए तथा जो अन्य मजहब के लोगों को हिन्दू धर्म में लौटाना चाहते हैं, इनके स्वागत के कार्य में जुटे हजारों कार्यकर्ताओं का सम्मेलन, वेद तथा संस्कृत प्रचार के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं, कार्यकर्ताओं का सम्मेलन आयोजित होगा. वि.हि.प शिविर में दिन प्रतिदिन कुंभ स्नान, गंगा स्नान करने वाले सामान्य भक्त गणों एवं धर्माचार्यों की सेवा प्रसाद का आयोजन शिविर के माध्यम से निरंतर किया जाएगा. महाकुम्भ मेले में प्रतिदिन सीता रसोई भंडारा का आयोजन भी होगा.

प्रेस वार्ता में मिलिंद जी के साथ क्षेत्र संगठन मंत्री गजेन्द्र जी और काशी प्रान्त अध्यक्ष कविन्द्र प्रताप सिंह जी भी उपस्थित रहे.

Thursday, December 12, 2024

न्यूनतम सुविधा में उत्तम सुशासन का कालखण्ड लोकमाता अहिल्याबाई का जीवन - मुकुन्द जी

- जो राजसत्ता अपनी प्रजा की हर समस्या का समुचित समाधान करें उसे पुण्यश्लोक कहा गया

काशी। न्यूनतम सुविधा में उत्तम सुशासन का कालखण्ड लोकमाता अहिल्याबाई होलकर का था। अहिल्याबाई के प्रशासनिक नेतृत्व को देखते हुए ’लेस गवर्नमेंट मोर गवर्नेंस’ सदृश सूक्ति चरितार्थ होती प्रतीत होती है। जो राजसत्ता अपनी प्रजा की हर समस्या का समाधान करें उसे पुण्यश्लोक कहा गया। उक्त विचार लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी जयन्ती समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री मुकुंद जी ने व्यक्त किया।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन सभागार में कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन से मातृत्व, नेतृत्व और कृतित्व धर्म की शिक्षा लेनी चाहिए। आज के समय में ’मातृत्व’ में होते क्षरण को देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि लोकमाता अहिल्याबाई को याद किया जाए। साथ ही अपने नेतृत्व में उन्होंने जो लोककल्याणकारी कार्य किए वे अभूतपूर्व हैं। भारतीय समाज में विश्वास और आत्मसम्मान जगाने का कार्य लोकमाता ने मंदिरों और घाटों के पुनरोद्धार के माध्यम से किया। उन्होंने आगे कहा कि यूरोपीय स्त्रियों और भारतीय स्त्रियों को तुलनात्मक रूप में देखने से पता चलता है कि भारतीय महिलाओं की स्थिति राजनीति, प्रशासन और धार्मिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक उत्तम थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं अहिल्याबाई होलकर हैं। स्त्री और पुरुष की समानता की बात करते हुए मुकुंद जी ने कहा कि इस समाज को पुरुषत्व की जितनी आवश्यकता है, उतनी ही मातृत्व की भी। आज अर्थशास्त्री बताते हैं कि राष्ट्र की जीडीपी में महिलाओं का भरपूर योगदान हैं। वर्तमान में सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा सेवा के एक लाख तीस हजार से अधिक सेवा कार्य चल रहे हैं। जिनमें महिलाएं आगे हैं। इन कार्यों में निर्णय लेने की क्षमता पुरुषों की तुलना में मातृशक्ति में कहीं अधिक सुदृढ़ है। माताएं संवेदनशीलता, एकाग्रता में पुरुषों से कहीं आगे हैं। वर्तमान युवा पीढ़ी जिस भी माध्यम से अहिल्याबाई के संदेशों को ग्रहण करती हो, हमें उसी माध्यम से ऐसे महापुरुषों के संदेश को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए, यही हमारे इस कार्यक्रम का भी ध्येय है। कार्यक्रम के आयोजन तिथि पर मुख्य वक्ता ने बताया कि 11 दिसम्बर को ही देवी अहिल्याबाई होलकर मालवा राज्य का शासन सम्भाला। आज गीता जयन्ती पर श्रीमद्भगवत्गीता के एक श्लोक का उदाहरण देते हुए कहा कि अर्जुन को समझाते हुए श्री कृष्ण भगवान कहते है ‘‘यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते।। अर्थात श्रेष्ठ जन अपने जीवन में जो जो आचरण करते हैं समान्यजन उनके जीवन से प्रेरित होते हैं।

विशिष्ट अतिथि लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के वंशज उदय सिंह राजे होलकर जी ने कहा कि पुण्यश्लोक अहिल्याबाई का जीवन साधारण नहीं रहा। अपने ही जीवन काल में उन्हें सास, श्वसुर, पति, पुत्र-पुत्री सभी की मृत्यु देखनी पड़ी। पति के साथ सती होने से श्वसुर मल्हार राव होलकर ने उन्हें रोका। घाट, धर्मशाला का निर्माण अथवा मन्दिरों का जीर्णोंद्धार लोकमाता ने अपने स्त्रीधन से किया था। देवी अहिल्याबाई होलकर कुशल प्रशासिका के साथ आध्यात्मिक महिला भी थी। उनके हाथ की लिखी श्रीमद्भागवत गीता भोपाल संग्रहालय में संरक्षित है। लोकमाता ने  धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किये जो 300 वर्ष बाद भी आज याद किए जा रहे हैं और किये जाते रहेंगे। महेश्वर में सभी छोटे बड़े लोगों के साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करके समता और समभाव प्रदर्शित करना तथा सामान्य जन की जीविका हेतु  महेश्वर में हथकरघा उद्योग की स्थापना करना इत्यादि लोकमाता के कल्याणकारी कार्यों में प्रतिष्ठित है।

विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. माधुरी कानिटकर जी ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन संघर्ष से प्रेरणा लेनी चाहिए। देश का भविष्य युवा पीढी के हाथों में ही होता है। लोकमाता के तीन विशिष्ट भूमिकाएं सैनिक, प्रजावत्सल ममतामयी अभिभावक और शिक्षिका जिनसे प्रेरित होकर मैंने अपने जीवन को संवारा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी जयन्ती समारोह समिति की अखिल भारतीय अध्यक्षा प्रो.चंद्रकला पाड़िया जी ने कहा कि भारतीय नारी उस पक्षी की तरह है जो दिन में तो आकाश में विचरण करती है, लेकिन शाम होते-होते वह अपने नीड़ में वापस आने की इच्छा भी रखती है। उन्होंने महादेवी वर्मा जी के ’श्रृंखला की कड़ियां’ निबंध-संग्रह का उल्लेख करते हुए  लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम का प्रारंभ मंचस्थ अतिथियों द्वारा देवी अहिल्या बाई के तैल चित्र और मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन तथा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। मंगलाचरण वेंकटरमन घनपाठी तथा संगीत मंचकला संकाय की छात्राओं ने कुलगीत गायन किया। मंचस्थ अतिथियों का परिचय एवं स्वागत प्रान्त सम्पर्क प्रमुख दीनदयाल पाण्डेय ने किया। आयोजन समिति की सदस्या डॉ. नीरजा माधव जी ने विषय प्रस्तावना की।

वो अहिल्या है नृत्य नाटिका से जीवन्त हुआ लोकमाता का जीवन चरित -

निवेदिता शिक्षा सदन एवं संत अतुलानंद के छात्र- छात्राओं ने  देवी अहिल्याबाई होलकर के जीवन पर आधारित लघु नाटिकाओं का मंचन किया। छात्राओं के प्रस्तुति से लोकमाता का जीवन चरित की प्रस्तुति ने लोगों को प्रभावित किया। संत अतुलानन्द के विद्यार्थियों ने लघु नाटिका द्वारा काशी विश्वनाथ मन्दिर के स्थापना के प्रसंग को प्रदर्शित किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी प्रान्त की जागरण पत्रिका ’चेतना प्रवाह’ के लोकमाता अहिल्याबाई होलकर पर केंद्रित विशेषांक का लोकार्पण किया गया। इसके साथ ही गुंजन नंदा जी की पुस्तक देवी अहिल्याबाई : महेश्वर से मोक्षदायिनी काशी तक का भी लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम में स्वतंत्रता भवन की वीथिका में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर से संबंधित चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन भी हुआ।

चेतना प्रवाह के रानी अहिल्यहोलकर विशेषांक का लोकार्पण

समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, काशी प्रान्त की जागरण पत्रिका चेतना प्रवाह के लोकमाता अहिल्याबाई होलकर विशेषांक का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। लोकार्पण सह सरकार्यवाह मा0 मुकुन्द जी, उदय सिंह राजे होलकर जी, डॉ0 माधुरी कानिटकर जी, डॉ0चन्द्रकला पाडिया एवं काशी प्रान्त के प्रान्त प्रचारक मा0 रमेश जी, के द्वारा डॉ0 हेमन्त गुप्त, श्री नागेन्द्र जी (प्रबन्ध सम्पादक), एवं प्रो0 ओम प्रकाश सिंह (सम्पादक) के माध्यम से सम्पन्न हुआ।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय गौसेवा संयोजक अजित महापात्रा, अ.भा.सामाजिक समरसता संयोजक रवीन्द्र किलकोले, प्रज्ञा प्रवाह के अ.भा.कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष जी, क्षेत्र सेवा प्रमुख यृद्धवीर जी, क्षेत्र पर्यावरण संयोजक अजय जी, प्रान्त संघचालक अंगराज जी, प्रान्त प्रचारक रमेश जी सहित बड़ी संख्या में काशी के गणमान्य नागरिक एवं मातृशक्ति की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संयुक्त संचालन डॉ. भावना त्रिवेदी और गुंजन नंदा जी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रामनारायण द्विवेदी जी ने किया।