उच्च न्यायालय के 1700 कमरों पर चलाया गया था बुलडोजर
काशी। जर्मनी में 1933 में जिस प्रकार हिटलर
द्वारा मौलिक अधिकारों का शमन किया गया था, 42 वर्षों बाद भारत में 1975 में इन्दिरा गांधी
द्वारा आपातकाल लगाकर उस प्रकार के वातावरण की पुनरावृत्ति की गयी। 26 जून 1975 को
पूरे भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस सहित
बड़े विपक्षी नेताओं को जेल में डालकर घोर यातना दी गयी। उक्त विचार बुधवार को
मुख्य वक्ता के रूप में प्रज्ञा प्रवाह के अ0भा0 केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य
रामाशीष जी ने संस्कार भारती एवं विश्व संवाद केन्द्र काशी के संयुक्त तत्वावधान
में आयोजित "आपातकाल में राजनीतिक अस्थिरता" विषयक संगोष्ठी को संबोधित
करते हुए व्यक्त किया।
आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित इस
संगोष्ठी को लंका स्थित विश्व संवाद केन्द्र काशी के माधव सभागार में मुख्य वक्ता
ने कहा कि 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जनता युवा मोर्चा द्वारा
आयोजित सरकार का विरोध करने हेतु रैली में अपार जनसमूह आया। जिससे घबराकर मध्य
रात्रि को अनुच्छेद 352 का आधार लेकर देश को आपातकाल में झोक दिया गया। विदित हो
कि 12 जून 1975 इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार के आधार पर इन्दिरा
गांधी के निर्वाचन को अवैध माना गया था। लोकतंत्र का यह काला अध्याय 21 महीनों तक चला।
मुख्य वक्ता ने बताया कि वास्तव में आपातकाल का प्रभाव केवल राजनैतिक न होकर समाज
के प्रत्येक आयाम पर पड़ा। इन्दिरा गांधी ने विपक्षी नेताओं सहित राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ पर विशेष रूप से कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगाए। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं
को जेल में विभिन्न प्रकार की यातानाएं दी गयी। इसके विरोध में राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह चलाया। 14 अगस्त 1975 से 26 जनवरी 1976
तक एक लाख स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारी दी। जिनमें 98 स्वयंसेवक यातना के कारण
दिवगंत हो गये। इस आपातकाल का दुष्प्रभाव न्यायपालिका एवं लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ
पत्रकारिता पर भी पड़ा। संजय गांधी द्वारा उच्च न्यायालय के 1700 कमरों पर
बुलडोजर चलाया गया। परन्तु प्रेस पर प्रतिबन्ध के कारण यह समाचार कही भी उल्लिखित
नहीं है। निरंकुश इन्दिरा गांधी द्वारा संविधान की मूल भावना के विपरीत 42वां संशोधन
किया गया। जिसमें संविधान की प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष एवं समाजवादी शब्दों को
सम्मिलित किया गया।
आपातकाल की यातना के दिनों के साक्षी रहे संघ
के वरिष्ठ स्वयंसेवक रामसूचित पाण्डेय ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन
दिनों वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के गणित विभाग में कार्यरत थे। प्राय:
प्रतिदिन ही संघ के अन्य कार्यकर्ताओं के विषय में सीआईडी के अधिकारियों द्वारा
उनसे पूछताछ की जाती थी। अपने घर वह पुलिस अधिकारियों से छुपछुपाकर जाते थे।
उन्हीं दिनों काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित संघ भवन को गिरा दिया गया। संघ के
स्वयंसेवकों के लिए आपातकाल दूसरा स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन जैसा था। कार्यक्रम
की अध्यक्षता संस्कार भारती काशी महानगर के अध्यक्ष रामवीर शर्मा ने किया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचस्थ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन किया गया।
संस्कार भारती का ध्येय गीत नवीन जी द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का
सहसंयोजन के0वी0 जनकल्याण ट्रस्ट द्वारा किया गया। संचालन कार्यक्रम संयोजिका
डॉ0प्रेरणा चतुर्वेदी द्वारा किया गया। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से संघ के वरिष्ठ
प्रचारक जागेश्वर जी, संस्कार भारती के उपाध्यक्ष प्रेमनारायण, संजय सिंह, प्रमोद पाठक, प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्र संयोजक
डॉ0कमलेश शर्मा, सुष्मिता
सेठ, विष्णु
भाई, सुधीर, दिनेश, डॉ0 आशीष सहित बड़ी संख्या में मातृशक्ति एवं
गणमान्य नागरिक उपस्थित रहें।