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Thursday, April 28, 2022

राजस्थान : राजनीति विज्ञान के प्रश्न पत्र में कांग्रेस से संबंधित प्रश्नों का अंबार

 

राजस्थान सरकार एक बार फिर विवादों के घेरे में है. इस बार विवाद का कारण प्रश्न पत्र में कांग्रेस को लेकर पूछे गए प्रश्न हैं. बारहवीं कक्षा के राजनीति विज्ञान के प्रश्न पत्र में कांग्रेस से संबंधित कई सारे प्रश्न पूछे गए हैं. ये प्रश्न अब छात्रों के बीच कम, राजनीतिक गलियारे में अधिक चर्चा का विषय बना हुआ है.

दुर्भाग्य इस बात का है कि राजस्थान के अंदर उच्च माध्यमिक परीक्षाओं के अंदर इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाएंगे. कांग्रेस ने 1967 का चुनाव किन परिस्थितियों में लड़ा व क्या जनादेश मिला, 1971 का चुनाव कांग्रेस की पुनर्स्थापना का चुनाव साबित हुआ-व्याख्या कीजिए, 1984 के चुनावों में किस पार्टी को कितनी सीटें मिली, प्रथम तीन चुनावों के अंदर कौन सी पार्टी का प्रभुत्व रहा और कांग्रेस की सामाजिक व विचारधारात्मकगठबंधन की विवेचना कीजिए….आदि

राजस्थान भारतीय जनता पार्टी प्रदेश मुख्य प्रवक्ता विधायक रामलाल शर्मा ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार ने शिक्षा के केंद्र को भी राजनीतिकरण करने का काम किया है और दुर्भाग्य इस बात का है की बारहवीं कक्षा के राजनीति विज्ञान के पेपर में पूछे गए प्रश्नों से लगता है कि एक तरीके से कांग्रेस के पदाधिकारियों का चयन किया जा रहा है.

उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि दुर्भाग्य इस बात का है कि आपकी सरकार के अंदर कांग्रेस की पृष्ठभूमि के बारे में बच्चों से सवाल करने का काम किया जा रहा है या आप सिर्फ बच्चों को कांग्रेस का इतिहास पढ़ाने का काम करोगे. भारतीय जनता पार्टी मांग करती है कि किसी भी संस्था प्रधान या शिक्षक जिसने भी प्रश्न पत्र बनाने में इस तरीके के प्रश्न तैयार किए हैं, उनको तत्काल निलंबित किया जाए और भविष्य के अंदर सिर्फ राजनीतिक विषय के ऊपर प्रश्न पूछे जाएं. इस तरीके से किसी पार्टी की विचारधारा के बारे में आप कौन सी पीढ़ी को तैयार करने का काम कर रहे हो.


Friday, April 22, 2022

इस नफरत के पीछे कौन छिपे हैं..!

 जयराम शुक्ल

नवसंवत्सर से हनुमान जयंती तक के बीच में देश में सात घटनाएं हुईं. रामनवमी के दिन मध्यप्रदेश का खरगोन आग से झुलस उठा. रामदरबार की झाँकी के साथ निकल रही शोभायात्रा पर पत्थरों, पेट्रोल बमों की बारिश हुई. कुछ सिरफिरे युवाओं ने भीड़ में तलवार बाजी की. उसके कवर कर रहे शैतानों ने गोलियां दागीं.

गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस अधीक्षक को गोली लगी, वे अस्पताल में है. एक मासूम अस्पताल में जीवन-मृत्यु से संघर्ष कर रहा है. हमले मंदिरों पर भी हुए. उन्हें तोड़ा और मूर्तियां नष्ट की गईं. बताने की आवश्यकता नहीं कि यह क्यों और किन लोगों ने किया. यह भी बहस का अलग विषय है कि खुफिया तंत्र और प्रशासन फेल रहा. विमर्श का विषय यह कि नफरत की आग यकायक इतनी तेज कैसे होने लगी?

हम जितनी तरक्की करते जा रहे हैं. पढ़ने-अध्ययन करने में जितने प्रवीण होते जा रहे हैं, उससे दूनी रफ्तार से दकियानूस और खुदगर्ज भी. दरअसल यह खेल उन लोगों का है जो देश के भीतर और बाहर यह बात तेजी से फैला रहे हैं कि भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं.

ये वही लोग हैं, जिन्होंने ऐसी ही असुरक्षा की भावना फैलाकर छह दशकों तक मुसलमान वोटरों को दुहा और मंचों से गंगा-जमुनी संस्कृति की दुहाई दी. मुसलमानों को एक कौम के रूप में पाले और बनाए रखा. कौम का मतलब राष्ट्र होता है तो क्या राष्ट्र भीतर या समानांतर कोई दूसरा राष्ट्र (कौम) भी है. हम अक्सर तकरीरें सुनते हैं कि हम अपने कौम के लोगों से यह इल्तिजा करते हैं’. क्या मतलब हुआ इसका? क्या हम और आप कौम (राष्ट्र) में शामिल नहीं हैं..?

जिस किसी ने गंगा-जमुनी संस्कृति की थ्योरी दी और जिन्होंने इसे स्थापित किया, वे ही आज नफरत की इस लहलहाती फसल के लिए जिम्मेदार हैं. एक राष्ट्र में दो समानांतर संस्कृति नहीं बह सकती. उनमें क्षेत्र और समय के हिसाब से वैविध्य अवश्य हो सकता है, पर प्रतिद्वंदिता नहीं. यहाँ दशकों से गंगा के समानांतर जमुना की बात की जाती है.
जमुना का अस्तित्व तो प्रयाग में आकर समाप्त हो जाता है. न जाने कितने नद-नदियां और नाले गंगा में आकर गंगामय हो जाते हैं. उनका अस्तित्व विलीन हो जाता है. उसी तरह देश की विभिन्न सभ्यताएं, परंपराएं और संस्कृतियाँ मिलकर राष्ट्रीय संस्कृति गढ़ती हैं.

हिन्दू कभी असहिष्णु नहीं रहे. आज भी वे न जाने कितने पीर और औलिया को मानते हैं. मजारों में जाकर मन्नतें माँगते व मत्था टेकते हैं. अजमेर शरीफ और निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में जाइए आपको मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू ही मिलेंगे. लेकिन हिन्दू तीर्थ स्थलों व उनके देवी-देवताओं को लेकर जो भाव महमूद गजनवी और बाबर में था, कमोबेश वही आज भी है. जबकि उनमें से बड़ी संख्या (90 प्रतिशत के करीब) के मुसलमानों की पितृभूमि व उनके पुरखों की पुण्यभूमि यही भारत है.

पता नहीं, इस यथार्थ को क्यों नहीं समझाया जाता? जब यही समझाइश राही मासूम रजा और आरिफ मोहम्मद खान जैसे विशुद्ध मुस्लिम स्कॉलर देते हैं तो उन्हें काफिर घोषित कर दिया जाता है. उनके दकियानूसी विचारों और परदे के पीछे के पापों को जब तस्लीमा नसरीन और सैटनिक वर्सेस के लेखक सलमान रश्दी देने लगते हैं तो उनके सिर को कलम करने का हुक्म सुना दिया जाता है.

मध्ययुग में रसखान, रहीम, जायसी, नजीर और न जाने कितने मुस्लिम स्कॉलर हुए, जिन्होंने अपने धर्म को नहीं बदला. लेकिन भारतीय संस्कृति और उनके महापुरुषों पर इतना सुंदर लिखा, जिसे हम भजन-कीर्तन की तरह याद रखते हैं. क्या यह धारा फिर नहीं बह सकती. यदि हम निजामुद्दीन औलिया और अजमेर शरीफ सहित अनगिनत पीर-औलिया-और बाबाओं को सिरमाथे पर रखते हैं, उनके दर पर जाकर आस्था व्यक्त करते हैं तो दूसरों के धर्म के प्रति सद्भाव की यह धारा देवबंद और बरेली से क्यों नहीं फूटनी चाहिए?

जो धर्म जड़ होता है, आज नहीं तो कल उसका मरना तय है. उदात्तता ही उसे सतत् बनाए रखती है. इसीलिए हमारा धर्म, धर्म है रिलीजन नहीं, वह सनातन धर्म है. कभी-कभी प्रश्न उठता है कि ईसाइयत को आए 22 सौ वर्ष हुए और इस्लाम के मुश्किल से 17 सौ वर्ष.

जब ये धर्म नहीं थे, तब आज के इनके अनुयायियों के पुरखे किस धर्म के अनुयायी रहे होंगे. इससे पहले के धर्मों में अग्निपूजकों का धर्म था, उनके पहले भी कोई धर्म रहा होगा. और वह धर्म सनातन ही है. जिससे विश्वभर में अलग-अलग नए पंथ तैयार होते गए. यानि कि सभी के मूल में सनातन धर्म. भगवान तक पहुँचने के पंथ, पद्धति और मार्ग में विभेद हो सकता है. विवेकानंद ने अपने संभाषणों में यही कहा. रामधारी सिंह दिनकर ने संस्कृति के चार अध्याय में भी लगभग ऐसी ही व्याख्याएं दीं.

कभी-कभी लगता है कि गाँव के अनपढ़ और आधुनिक शिक्षा से दूर कहे जाने वाले लोग धर्माचार्यों और मौलवियों की अपेक्षा धर्म के मर्म को न सिर्फ ज्यादा जानते हैं, अपितु उसे जीते भी हैं.

मुझे अपने गाँव का वो अली और बजरंगबली वाला दृष्टान्त याद आ रहा है. जब इन दोनों देवों में बँटवारा नहीं हुआ था…. “बात 67-68 की है. मेरे गाँव में बिजली की लाइन खिंच रही थी. तब दस-दस मजदूर एक खंभे को लादकर चलते थे. मेंड़, खाईं, खोह में गढ्ढे खोदकर खड़ा करते. जब ताकत की जरूरत पड़ती, तब एक बोलता.. या अलीईईईई.. जवाब में बाँकी मजदूर जोर से एक साथ जवाब देतेमदद करें बजरंगबली..और खंभा खड़ा हो जाता.

सभी मजदूर एक कैंप में रहते, साझे चूल्हे में एक ही बर्तन पर खाना बनाते. जहाँ तक याद आता है..एक का मजहर नाम था और एक का मंगल.

वो हम लोग इसलिए जानते थे कि दोनों में जय-बीरू जैसी जुगुलबंदी थी. जब काम पर निकलते तो एक बोलता चल भई मजहर..दूसरा कहता हाँ भाई मंगल.

उनकी एक ही जाति थी..मजदूर और एक ही पूजा पद्धति मजदूरी करना. तालाब की मेंड़ के नीचे लगभग महीना भर उनका कैंप था. न किसी को हनुमान चालीसा पढ़ते देखा न ही नमाज.

सब एक जैसी चिथड़ी हुई बनियान पहनते थे, पसीना भी एक सा तलतलाके बहता था. खंभे में हाथ दब जाए तो कराह की आवाज़ भी एक सी ही थी. और हां लहू का रंग भी पीला नहीं लाल ही था.

तुलसी बाबा कह गए

रामसीय मैं सब जगजानी. करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी..

बाद में गालिब ने इसकी पुष्टि करते हुए ..मौलवियों से पूछाया वो जगह बाता दे, जहाँ  खुदा न हो..!

Thursday, April 21, 2022

विश्वस्तरीय होगी उच्च शिक्षा की गुणवत्ता, देश में मिलेगी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की डिग्री


नई दिल्ली. भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान विदेशी शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से जल्द ही संयुक्त व दोहरी डिग्री या संयुक्त कार्यक्रम प्रारंभ कर सकते हैं. उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को विश्वस्तरीय बनाने सहित छात्रों के विदेश में होने वाले पलायन को थामने के लिए सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. इसके तहत उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को अब विदेश जाने की जरूरत नहीं होगी. वे देश में रहकर दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ पढ़ाई कर सकेंगे.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने कहा कि यूजीसी ने इन कार्यक्रमों के लिए आवश्यक नियमों को स्वीकृति दे दी है. यह निर्णय मंगलवार को उच्च शिक्षा नियामक की बैठक में लिया गया था.

उन्होंने कहा कि 3.01 के न्यूनतम स्कोर के साथ राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) की तरफ से मान्यता प्राप्त कोई भी भारतीय संस्थान किसी भी ऐसे विदेशी संस्थान के साथ सहयोग कर सकते हैं, जो टाइम्स उच्च शिक्षा या क्यूएसविश्व रैंकिंग के टॉप 500 संस्थानों में शामिल हो. इसी के साथ राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) की विश्वविद्यालय श्रेणी में टॉप 100 में शामिल संस्थान भी इन विदेशी शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग कर सकते हैं.

ऐसा करने के लिए भारतीय संस्थानों को यूजीसी से पूर्व स्वीकृति नहीं लेनी होगी. इन कार्यक्रमों के तहत भारतीय छात्रों को विदेशी संस्थान से 30 प्रतिशत से अधिक क्रेडिट प्राप्त करने होंगे. हालांकि, यह नियम ऑनलाइन, मुक्त व दूरस्थ शिक्षा माध्यम के तहत आने वाले कार्यक्रमों पर लागू नहीं होंगे. जगदीश कुमार ने स्पष्ट करते हुए कहा कि इन नियमों के तहत किसी भी विदेशी उच्च शिक्षण संस्थान और भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान के बीच किसी भी प्रकार की फ्रेंचाइजीव्यवस्था या अध्ययन केंद्र की अनुमति नहीं दी जाएगी.

अनुमोदित नियमों के अनुसार सभी शैक्षिक कार्यक्रम एक सहयोगात्मक व्यवस्था होगी. इसके तहत भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में रजिस्टर्ड छात्र आंशिक रूप से यूजीसी नियमों का पालन करते हुए एक विदेशी उच्च शिक्षण संस्थान में अध्ययन कर सकेंगे. इस तरह के शैक्षिक कार्यक्रमों के तहत दी जाने वाली डिग्री भारतीय संस्थानों की ओर से दी जाएगी. संयुक्त डिग्री कार्यक्रम के लिए पाठ्यक्रम भारतीय और विदेशी उच्च शिक्षण संस्थान मिलकर तैयार करेंगे. साथ ही कार्यक्रम के पूरा होने पर दोनों संस्थानों की ओर से एक ही प्रमाणपत्र के साथ छात्रों को डिग्री दी जाएगी.

इन नियमों के तहत दी जाने वाली डिग्री किसी भी भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान की ओर से प्रदान की जाने वाली संबंधित डिग्री के बराबर होगी.

नए नियमों के तहत भारतीय छात्रों को देश में ही रहते हुए एक सहयोगी तंत्र के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षामिल सकेगी. इस पहल के चलते भारत में आकर पढ़ाई करने वाले विदेशी छात्र भी भारत, भारतीय संस्कृति और भारतीय समाज के बारे में और अधिक जानकारी ले पाएंगे. कम से कम चार करोड़ विदेशी छात्र भारत में आकर पढ़ाई करते हैं और यह संख्या आने वाले समय में बढ़कर 10 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है.

Wednesday, April 20, 2022

अमृत महोत्सव – स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने पर प्रातः काल 6:30 बजे वंदे मातरम् का गायन

 कला जगत के उन्नयन  हेतु संस्कार भारती ने केंद्र व राज्य सरकारों, कला संस्थाओं एवं समस्त समाज से आह्वान किया

जोधपुर में संस्कार भारती अखिल भारतीय प्रबंधकारिणी की बैठक संपन्न

नई दिल्ली. 15 एवं 16 अप्रैल को जोधपुर राजस्थान में संस्कार भारती के अखिल भारतीय प्रबंधकारिणी की बैठक संपन्न हुई, जिसमें संस्कार भारती के विभिन्न प्रांतों से पदाधिकारियों ने भाग लिया.

प्रबंधकारिणी की आठ सत्रों में चली दो दिवसीय बैठक में कला एवं कला क्षेत्र से संबंधित विभिन्न विषयों पर गहन चिंतन किया गया.

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के आग्रह पर पंडित ओमकारनाथ ठाकुर द्वारा आकाशवाणी पर 15 अगस्त, 1947 को प्रातः 6:30 पर बजे वंदे मातरम का गायन प्रस्तुत किया गया था. उसकी स्मृति में इस वर्ष 15 अगस्त को स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने पर प्रातः काल 6:30 बजे वंदे मातरम् का गायन संस्कार भारती के कला साधकों द्वारा देशभर में किया जाएगा.

मूलतः कोरोना महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण देशभर में कलाओं की प्रत्यक्ष प्रस्तुति पर पाबंदियां अभी भी जारी हैं, जिससे कला साधकों के समक्ष जीवन यापन एवं जीवन रक्षा की गंभीर स्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रबंधकारिणी ने प्रस्ताव पारित करते हुए केंद्र व राज्य सरकारों, कला संस्थाओं एवं समस्त समाज से आह्वान किया है कि कला जगत के उन्नयन के लिए प्रत्यक्ष कार्यक्रम आयोजन तुरंत प्रारंभ करें. साथ ही रुकी हुई विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियां, फैलोशिप, सम्मान, आकाशवाणी के कार्यक्रम, मंदिरों में होने वाले कार्यक्रम तथा कला साधकों की पेंशन इत्यादि शीघ्र प्रारंभ होनी चाहिए. प्रबंधकारिणी ने अपने सभी कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि कोरोना काल में रुका नियमित कार्यक्रम का क्रम तथा अमृत महोत्सव के विशेष आयोजन शीघ्रता से प्रारंभ हों.

अखिल भारतीय प्रबंधकारिणी बैठक में पारित प्रस्ताव के अंतर्गत स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के निमित्त देशभर में 75  विस्मृत नायकों के जीवन प्रसंगों पर 75 नाटकों के मंचन का संकल्प लिया गया. इनमें से अब तक 11 भाषाओं के 51 नाटक तैयार हो चुके हैं और उनमें से 17 नाटकों का तो मंचन भी हो चुका है. चित्रकला विधा के माध्यम से देश भर में अपरिचित नायकों की चित्र प्रदर्शनी का आयोजन हो रहा है. साथ ही आगामी 13 से 14 मई 2022 को मुंबई विश्वविद्यालय के साथ मिलकर सिने-टॉकीज़”  सेमिनार का आयोजन किया जाएगा, जिसमें भारतीय सिनेमा का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान  विषय पर विस्तृत विचार विमर्श किया जाएगा और सेमिनार का उद्घाटन केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी द्वारा करने की संभावना है. सिनेजगत की मुख्य हस्तियां इस आयोजन में सम्मिलित होंगी.

Monday, April 18, 2022

अनुशासन के साथ समरसता की भी सीख देता है कबड्डी - डॉ.जेपी लाल

 





काशी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी उत्तर भाग की ओर से रविवार को कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। लहुराबीर स्थित आजाद संघ स्थान महामंडल नगर में आयोजित इस प्रतियोगिता में भाग के  चार नगरों ने  प्रतिभाग किया जिसमें रविदास नगर को विजेता घोषित किया गया।

    इस अवसर पर उपस्थित काशी विभाग संघचालक डॉ जेपी लाल ने कबड्डी के महत्व को बताते हुए कहा कि कबड्डी हमें अनुशासित रहने के साथ आपसी समरसता बनाए रखने की भी सीख देता है। कबड्डी हमें शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ बनाता है क्योंकि इसमें हमें अपने शारीरिक अंगों में स्फूर्ति बनाए रखने के साथ ध्यान को एकाग्र रखने की आवश्यकता होती है। स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार जी ने प्रथम दिन से ही कबड्डी को लोकप्रिय खेल के रूप में स्थान दिया। उन्होंने कहा कि इस खेल के माध्यम से हिंदू धर्म का पूरा अनुभव हो जाता है जैसे- हिंदू धर्म का पूर्ण विश्वास है कि प्रत्येक मनुष्य अपने कर्म के अनुसार पुनर्जन्म लेता है वैसे ही कबड्डी के खेल में भी बार-बार जीने और मरने का क्रम चलता रहता है। उन्होंने अंत में सभी स्वयंसेवकों को इस खेल में भाग लेने के लिए बधाई देते हुए उत्साहवर्धन किया।

     कार्यक्रम में खेल पर्यवेक्षक के रुप में उपस्थित पूर्वी उत्तर प्रदेश ग्राम विकास प्रमुख चंद्र मोहन जी ने जीवन में खेल के महत्व पर प्रकाश डाला।
इस प्रतियोगिता में काशी उत्तर भाग के चार नगर रविदास नगर, भारतेंदु नगर, लाजपत नगर एवं चेतसिंह नगर से कुल 137 स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया। कुल 3 चक्र में आयोजित इस प्रतियोगिता में विजेताओं की घोषणा डॉक्टर जेपी लाल ने किया। इस दौरान काशी उत्तर भाग संघचालक वीरेंद्र गुप्त जी उपस्थित रहें।

स्वदेशी और स्वावलंबन की भावना जगाने के लिए निरंतर कार्य कर रहा संघ - डा.मुरारजी

 

प्रयागराज। स्वदेशी और स्वावलंबन की भावना जगाने के लिए संघ निरंतर कार्य कर रहा है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में प्रस्ताव पारित होने के बाद इस दिशा में काशी प्रांत में तेजी से कार्य प्रारंभ हो गया है। रोजगार के अवसर बढ़ाकर आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना साकार हो सकेगी। उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, काशी प्रान्त के प्रांत प्रचार प्रमुख डा.मुरारजी त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में कही| वे रविवार को प्रयागराज के प्रयाग दक्षिण भाग के नयापुरा करेली के भवापुर स्थित राम बारात पार्क में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, लोकमान्य नगर की महावीर शाखा के वार्षिकोत्सव कार्यक्रम को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे|

उन्होंने आगे कहा कि हमारी शाखाएं खेल एवं व्यायाम ही नहीं सिखाती बल्कि ये शाखाएं सामाजिक परिवर्तन का मुख्य आधार है। इसलिए शाखाओं को सुदृढ़ करने एवं शताब्दी वर्ष तक देश के सभी गांवों एवं बस्तियों में संगठन ने शाखाओं को पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को पाने के लिए स्वयंसेवकों को अपने प्रयास और तेज करने  होंगे। कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में बार एसोसिएशन हाईकोर्ट के पूर्व महासचिव अविनाश चन्द्र  ने संघ की देशभक्ति एवं सामाजिक समरसता के लिए किए जा रहे कार्यो की सराहना की। कार्यक्रम में शाखा के स्वयंसेवकों द्वारा विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रदर्शन- दंड योग, दंड प्रहार, योग आसन, खेल एवं समता का प्रदर्शन किया गया| इस दौरान सामूहिक देश भक्ति गीत, सुभाषित का गायन हुआ।


कार्यक्रम में नगर संघचालक नंदलाल जी, जय बाबू, रवि प्रकाश, अमित, पंकज, वंश नारायण, मोमी डे समेत बड़ी संख्या में गणवेशधारी स्वयंसेवक एवं स्थानीय नागरिकों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन देवव्रत जी ने किया।

 

Friday, April 15, 2022

भारतीय संविधान की चर्चा डॉ. अंबेडकर के बिना अधूरी - डॉ पीयूष

 आंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर अधिवक्ता परिषद ने किया संगोष्ठी का आयोजन

प्रयागराज| भारतीय संविधान की चर्चा डॉक्टर अंबेडकर के बिना अधूरी है. जब कभी भी संविधान की बात आती है तो उनकी चर्चा अवश्य होती है| उक्त विचार डॉ.अम्बेडकर की जयंती की पूर्व संध्या पर अधिवक्ता परिषद हाई कोर्ट इकाई द्वारा आयोजित संगोष्ठी "लोकतंत्र में डॉ.अंबेडकर की भूमिका" को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रयागराज विभाग प्रचारक डॉ पीयूष ने व्यक्त किया| उन्होंने कहा कि कोई भी राष्ट्र महापुरुषों से मिलकर बनता है. ऐसे ही महापुरुष डॉ अम्बेडकर है जिन्होंने समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम किया|

कार्यक्रम में प्रयागराज हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राधाकांत ओझा ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति में प्रतिभा है तो समाज उसे आगे बढ़ाता है| अम्बेडकर ऐसी एक प्रतिभा थे जिनको उस वक्त के समाज ने प्रोत्साहित किया| जिसका परिणाम है उनके जैसा व्यक्तित्व हमको मिला| वे न सिर्फ संविधान के बल्कि अर्थशास्त्र और समाज के भी गंभीर चिंतक थे|  अधिवक्ता परिषद के प्रदेश महासचिव शीतल गौड़ ने कहा कि अम्बेडकर ने किसी एक वर्ग के लिए नहीं बल्कि सर्व समाज के लिए काम किया| उन्होंने समाज के पिछड़ों, वंचितों को आगे बढ़ाने और समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए काम किया| उनके पास 32 विषयों में डिग्रियां थी| उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा|

संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे अधिवक्ता परिषद हाईकोर्ट इकाई के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता बीपी श्रीवास्तव ने कहा कि अंबेडकर ने हर तरह का जीवन जिया है| डॉ.अंबेडकर का व्यक्तित्व ऐसा रहा की उन पर कोई उंगली नहीं उठा सकता| उन्होंने संविधान के माध्यम से एक ऐसे समाज की संरचना की जिसमें हर किसी को मौलिक अधिकार प्राप्त है| संगोष्ठी का शुभारंभ वह डॉक्टर अंबेडकर के चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया गया| कार्यक्रम में अलोक त्रिपाठी, आशुतोष त्रिपाठी, सत्य प्रकाश सिंह. अतुल शाही, सत्यम पाण्डेय, लब्ध प्रतिष्ठ मिश्र, अलोक कृष्ण त्रिपाठी, ज्योति सिंह, सूर्य प्रकाश मौर्य आदि उपस्थित रहें| धन्यवाद ज्ञापन अजय कुमार मिश्र एवं संचालन आलोक मिश्र ने किया|

Wednesday, April 13, 2022

सामाजिक विसंगतियों से पीड़ित होते हुए भी बाबा अंबेडकर ने नहीं किया हिंदू धर्म का परित्याग - रमेश जी


प्रयागराज। बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी किसी जाति विशेष के नहीं बल्कि समाज के सभी शोषित पीड़ित एवं कमजोर वर्ग के उत्थान के हिमायती थे। उन्हें किसी जाति के संकुचित दायरे में लाना उनके विराट व्यक्तित्व को छोटा करना है। सामाजिक विसंगतियों से पीड़ित होते हुए भी उन्होंने हिंदू धर्म का परित्याग नहीं किया। सामाजिक समरसता एवं बंधुत्व की स्थापना कर बाबा साहब ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मजबूती देने का काम किया। उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काशी प्रांत प्रचारक रमेश जी ने कही| वे मंगलवार को स्थानीय केपी कम्युनिटी हॉल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामाजिक समरसता विभाग की ओर से आयोजित 'डा.भीमराव अंबेडकर का चिंतन तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवादविषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे।

    रमेश जी ने आह्वान किया कि सभी लोग बाबा साहब के आदर्श को आत्मसात कर समरस एवं सबल समाज के निर्माण में अपनी भागीदारी निभाएं। बाबा साहब डॉक्टर भीमराव के संपूर्ण जीवन को नए सिरे से समझने की जरूरत है। संघ के सह सरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल जी की लिखी पुस्तक का उद्धरण देते हुए प्रांत प्रचारक ने कहा कि बाबा साहब के जीवन के उत्थान के लिए उनके ब्राह्मण गुरु ने प्रयास किया। ब्राह्मणों का उपनाम अंबेडकर उन्होंने ही दिया। इसी तरह भीमराव अंबेडकर जी ने भी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए सभी जातियों के उत्थान के लिए कठोर परिश्रम किया। वे सच्चे अर्थों में महापुरुष थे| कोई भी महापुरुष किसी जाति के संकीर्ण दायरे में नहीं बंधता। संपूर्ण मानवता का उत्थान करना ही उसके जीवन का लक्ष्य होता है। बाबा साहब ने भी यही किया।

    संगोष्ठी में उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि यह सही है कि उन्हें अपने जीवन में तमाम तरह की सामाजिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा, लेकिन इसके कारण न तो वे निराश हुये और ना ही किसी के प्रति विद्वेश का भाव रखा। महिलाओं की समानताशोषित पीड़ित वर्ग के उत्थान के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया। कम्युनिज्म को उन्होंने कभी भी देश के लिए अच्छा नहीं माना। जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर राष्ट्र की सांस्कृतिक धारा को मजबूती दी। उनका स्पष्ट चिंतन था कि यदि वे इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार कर लेंगे तो उनके लाखों अनुयाई भी उसी पद पर चल पड़ेंगे। इससे देश की मुख्यधारा कमजोर होगी। उनका परिवार तथा वे स्वयं प्रभु श्री राम के भक्त थे। उनके नाम के साथ भी राम शब्द जुड़ा हुआ है। कुरीतियों के खिलाफ उनके द्वारा छेडा गया संघर्ष नई प्रेरणा देता है। आज संपूर्ण देश को उस पर चलने की आवश्यकता है।

    रमेश जी ने आगे कहा कि बाबा साहब का स्पष्ट मत था कि आध्यात्मिकता के बिना राष्ट्रीयता कभी मजबूत नहीं होगी। इसीलिए उन्होंने धर्म का कभी तिरस्कार नहीं किया। जात-पात में बंटे भारतीय समाज में समरसता एवं आत्मीयता का भाव जगा कर उन्होंने जो काम किया है, देश उस के लिए चिर  ऋणी रहेगा। उन्होंने आगे कहा कि समाज सुधार के साथ वे निरंतर अध्ययन एवं लेखन से भी जुड़े रहे| लगातार पढने के कारण उनकी आंखें भी प्रभावित हो गई थी| इसके बावजूद उन्होंने स्वाध्याय का क्रम बंद नहीं किया। देश की तत्कालीन चुनौतीपूर्ण एवं विषम परिस्थितियों में भी विदेशों में रहकर कई विषयों में मास्टर डिग्री प्राप्त कर पीएचडी की और सामाजिक समस्याओं का गहन अध्ययन किया।  चिंतन मनन के द्वारा ही वे भारतीय समाज की समस्याओं को हल करने में काफी हद तक कामयाब रहे।

    विशिष्ट अतिथि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. राजेश गर्ग ने संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने वंचित समाज को अग्रिम पंक्ति में खड़ा करने के लिए जीवन भर संघर्ष किया। इस अभियान में उन्हें संपूर्ण समाज ने सहयोग दिया| इसी के फलस्वरूप भारतीय समाज में सामाजिक समरसता स्थापित हो सकी। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

    संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए काशी प्रांत के प्रांत संघचालक डॉ विश्वनाथ लाल निगम ने कहा कि भारतीय समाज में व्याप्त  जात-पात, ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त कर बाबा साहब ने देश की बहुत बड़ी सेवा की। आज समाज के सभी बंधुओं को एक साथ लेकर आगे बढ़ने की जरूरत हैयही बाबा साहब का संदेश है।

    मंच पर उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के निबंधक हरिश्चंद्र राम विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता एवं बाबा साहब की प्रतिमा के समक्ष अतिथियों की ओर से दीप प्रज्वलन करने के बाद वंदेमातरम गीत के साथ गोष्ठी से हुआ। सामाजिक समरसता विभाग की ओर से सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह एवं वस्त्र भेंट कर सम्मानित किया गया। गोष्ठी में सह सेवा प्रमुख सुरेश जी, प्रांत प्रचार प्रमुख मुरारजी त्रिपाठी, विभाग प्रचारक डा.पीयूष जी, विभाग प्रचार प्रमुख वसू जी, पूर्व विधायक प्रभाशंकर पांडेय समेत बड़ी संख्या में अधिवक्ता, शिक्षक, मातृशक्ति एवं समाज के विभिन्न वर्गों की लोग उपस्थित थे। संचालन रामेश्वर शुक्ल एडवोकेट ने किया।

Sunday, April 10, 2022

स्वयंसेवकों ने किया कन्या पूजन

काशी| सनातन धर्म में कन्या को साक्षात् मां दुर्गा का रूप माना जाता है| ऐसी मान्यता है कि नवरात्र में कन्या पूजन करने से माँ दुर्गा प्रसन्न होती हैं| इस परम्परा का निर्वहन लोग प्राचीन काल से करते चले आ रहे हैं| शनिवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी दक्षिण भाग के मानस नगर में भी स्वयंसेवको ने कन्या पूजन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया|

मानस नगर सेवा प्रमुख चन्द्रकांति पाल ने बताया कि चैत्र नवरात्र अष्टमी के पुण्य अवसर पर सामाजिक समरसता भाव को बनाये रखने उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी दक्षिण के मानस नगर में 21 कन्याओ का पूजन किया गया| नगर के स्वयंसेवको ने सपत्निक दीनदयाल पार्क में उपस्थित होकर वैदिक पद्धति से कन्या पूजन किया| कन्याओ के पाँव धुलकर उन्हें नवीन वस्त्र दिया गया| पाँव में महावर, श्रृंगार सामग्री अर्पण करने के बाद आरती की गयी| भोग लगाने के बाद कन्याओ को विभिन्न उपहार दिए गए| कार्यक्रम का प्रारम्भ ब्राह्मणों द्वारा मंगलाचरण से हुआ| इस दौरान पारम्परिक भक्ति गीतों से वातावरण भक्तिमय हो रहा था| कार्यक्रम में प्रमुख रूप से राम प्यारे चौबे जी, विनय, रविकान्त, हरीश वालिआ, ज्ञानेश्वर, कृष्णदेव, सुबोध सहित अनेक स्वयंसेवक सपरिवार उपस्थित रहें|