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Tuesday, May 31, 2022

नारी उत्थान की अप्रतिम प्रतीक वीरांगना रानी अहिल्याबाई होल्कर

जयन्ती पर विशेष 

 

    नारी उत्थान की अप्रतिम प्रतीक, कुशल प्रशासक, परम शिवभक्त, वीरांगना रानी अहिल्याबाई होल्कर जी की 297 वी जयंती पर उन्हें कोटिश: नमन।

    महारानी अहिल्याबाई होल्कर (जन्म: 31 मई, 1725 - मृत्यु: 13 अगस्त, 1795) मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थी। अहिल्याबाई किसी बड़े राज्य की रानी नहीं थीं लेकिन अपने राज्य काल में उन्होंने जो कुछ किया वह आश्चर्य चकित करने वाला है। वह एक बहादुर योद्धा और कुशल तीरंदाज थीं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर वीरता के साथ लड़ी।

जीवन परिचय

    अहिल्याबाई का जन्म 31 मई सन् 1725 में हुआ था। अहिल्याबाई के पिता मानकोजी शिंदे एक मामूली किंतु संस्कार वाले आदमी थे। इनका विवाह इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हार राव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। सन् 1745 में अहिल्याबाई के पुत्र हुआ और तीन वर्ष बाद एक कन्या। पुत्र का नाम मालेराव और कन्या का नाम मुक्ताबाई रखा। उन्होंने बड़ी कुशलता से अपने पति के गौरव को जगाया। कुछ ही दिनों में अपने महान पिता के मार्गदर्शन में खण्डेराव एक अच्छे सिपाही बन गये। मल्हारराव को भी देखकर संतोष होने लगा। पुत्र-वधू अहिल्याबाई को भी वह राजकाज की शिक्षा देते रहते थे। उनकी बुद्धि और चतुराई से वह बहुत प्रसन्न होते थे। मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन-भार सम्भाला था। रानी अहिल्याबाई ने 1795 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया। उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है। वे अपनी उदारता और प्रजावत्सलता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके एक ही पुत्र था मालेराव जो 1766 ई. में दिवंगत हो गया। 1767 ई. में अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को सेनापति नियुक्त किया।

निर्माण कार्य

    रानी अहिल्याबाई ने भारत के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक मन्दिरों, धर्मशालाओं और अन्नसत्रों का निर्माण कराया था। कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर , गया में विष्णु मन्दिर उनके बनवाये हुए हैं। इन्होंने घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए, भूखों के लिए सदाब्रत (अन्नक्षेत्र ) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। उन्होंने अपने समय की हलचल में प्रमुख भाग लिया। रानी अहिल्याबाई ने इसके अलावा काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और धर्म शालाएं खुलवायीं। कहा जाता है कि रानी अहिल्‍याबाई के स्‍वप्‍न में एक बार भगवान शिव आए। वे भगवान शिव की भक्‍त थीं और इसलिए उन्‍होंने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।

महिला सशक्तीकरण की पक्षधर

    भारतीय संस्कृति में महिलाओं को दुर्गा और चण्डी के रूप में दर्शाया गया है। ठीक इसी तरह अहिल्याबाई ने स्त्रियों को उनका उचित स्थान दिया। नारीशक्ति का भरपूर उपयोग किया। उन्होंने यह बता दिया कि स्त्री किसी भी स्थिति में पुरुष से कम नहीं है। वे स्वयं भी पति के साथ रणक्षेत्र में जाया करती थीं। पति के देहान्त के बाद भी वे युध्द क्षेत्र में उतरती थीं और सेनाओं का नेतृत्व करती थीं। अहिल्याबाई के गद्दी पर बैठने के पहले शासन का ऐसा नियम था कि यदि किसी महिला का पति मर जाए और उसका पुत्र न हो तो उसकी संपूर्ण संपत्ति राजकोष में जमा कर दी जाती थी, परंतु अहिल्या बाई ने इस क़ानून को बदल दिया और मृतक की विधवा को यह अधिकार दिया कि वह पति द्वारा छोड़ी हुई संपत्ति की वारिस रहेगी और अपनी इच्छानुसार अपने उपयोग में लाए और चाहे तो उसका सुख भोगे या अपनी संपत्ति से जनकल्याण के काम करे। अहिल्या बाई की ख़ास विशेष सेवक एक महिला ही थी। अपने शासनकाल में उन्होंने नदियों पर जो घाट स्नान आदि के लिए बनवाए थे, उनमें महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था भी हुआ करती थी। स्त्रियों के मान-सम्मान का बड़ा ध्यान रखा जाता था। लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने का जो घरों में थोड़ा-सा चलन था, उसे विस्तार दिया गया। दान-दक्षिणा देने में महिलाओं का वे विशेष ध्यान रखती थीं।

कुछ उदाहरण

    एक समय बुन्देलखंड के चन्देरी मुकाम से एक अच्छा धोती-जोड़ाआया था, जो उस समय बहुत प्रसिद्ध हुआ करता था। अहिल्या बाई ने उसे स्वीकार किया। उस समय एक सेविका जो वहां मौजूद थी वह धोती-जोड़े को बड़ी ललचाई नजरों से देख रही थी। अहिल्याबाई ने जब यह देखा तो उस कीमती जोड़े को उस सेविका को दे दिया।

    इसी प्रकार एक बार उनके दामाद ने पूजा-अर्चना के लिए कुछ बहुमूल्य सामग्री भेजी थी। उस सामान को एक कमज़ोर भिखारिन जिसका नाम था सिन्दूरी, उसे दे दिया। किसी सेविका ने याद दिलाया कि इस सामान की जरूरत आपको भी है परन्तु उन्होंने यह कहकर सेविका की बात को नकार दिया कि उनके पास और हैं।

    किसी महिला का पैरों पर गिर पड़ना अहिल्या बाई को पसन्द नहीं था। वे तुरंत अपने दोनों हाथों का सहारा देकर उसे उठा लिया करती थीं। उनके सिर पर हाथ फेरतीं और ढाढस बंधाती। रोने वाली स्त्रियों को वे उनके आंसुओं को रोकने के लिए कहतीं, आंसुओं को संभालकर रखने का उपदेश देतीं और उचित समय पर उनके उपयोग की बात कहतीं। उस समय किसी पुरुष की मौजूदगी को वे अच्छा नहीं समझती थीं। यदि कोई पुरुष किसी कारण मौजूद भी होता तो वे उसे किसी बहाने वहां से हट जाने को कह देतीं। इस प्रकार एक महिला की व्यथा, उसकी भावना को एकांत में सुनतीं, समझतीं थीं। यदि कोई कठिनाई या कोई समस्या होती तो उसे हल कर देतीं अथवा उसकी व्यवस्था करवातीं। महिलाओं को एकांत में अपनी बात खुलकर कहने का अधिकार था। राज्य के दूरदराज के क्षेत्रों का दौरा करना, वहां प्रजा की बातें, उनकी समस्याएं सुनना, उनका हल तलाश करना उन्हें बहुत भाता था। अहिल्याबाई, जो अपने लिए पसन्द करती थीं, वही दूसरों के लिए पसंद करती थीं। इसलिए विशेषतौर पर महिलाओं को त्यागमय उपदेश भी दिया करती थीं।

    एक बार होल्कर राज्य की दो विधवाएं अहिल्याबाई के पास आईं, दोनों बड़ी धनवान थीं परन्तु दोनों के पास कोई सन्तान नहीं थी। वे अहिल्याबाई से प्रभावित थीं। अपनी अपार संपत्ति अहिल्या बाई के चरणों में अर्पित करना चाहती थीं। संपत्ति न्योछावर करने की आज्ञा मांगी, परन्तु उन्होंने उन दोनों को यह कहकर मना कर दिया कि जैसे मैंने अपनी संपत्ति जनकल्याण में लगाई है उसी प्रकार तुम भी अपनी संपत्ति को जनहित में लगाओ। उन विधवाओं ने ऐसा ही किया और वे धन्य हो गईं।

मृत्यु

    राज्य की चिंता का भार और उस पर प्राणों से भी प्यारे लोगों का वियोग। इस सारे शोक-भार को अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका। और 13 अगस्त सन् 1795 को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई। अहिल्याबाई के निधन के बाद उनके विश्वास पात्र तुकोजी राव होलकर इन्दौर की गद्दी पर बैठाया गया।

Friday, May 27, 2022

वर्गों के माध्यम से शारीरिक, बौद्धिक और व्यवहारिक दृष्टि से परिपक्व कर समाज व देश के प्रति सर्वस्व समर्पण का भाव जगाता है संघ - रमेश जी

 

प्रयागराज| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रखर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत युवा पीढ़ी के निर्माण में सतत संलग्न है| संघ वर्गों के माध्यम से शारीरिक, बौद्धिक और व्यवहारिक दृष्टि से परिपक्व कर उनमें समाज व देश के प्रति सर्वस्व समर्पण का भाव जगाता है| वर्ग का ध्येय सामाजिक समरसता, सामूहिक जीवन शैली, नेतृत्व क्षमता का विकास, समाज व राष्ट्र के प्रति समर्पित कार्यकर्ता तैयार करना है। उक्त विचार गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काशी प्रांत प्रचारक रमेश जी ने नैनी स्थित माधव ज्ञान केंद्र इंटर कॉलेज में संघ शिक्षा वर्ग-प्रथम वर्ष (सामान्य) के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए व्यक्त किया|

    उन्होंने कहा कि सूचना व व्यवस्था का अक्षरश: पालन करना ही श्रेष्ठ कार्यकर्ता बनने का मार्ग है। जो कार्यकर्ता वर्ग की दिनचर्या तथा अनुशासन एवं व्यवस्था का पालन करते हुए अपना प्रशिक्षण पूरा करते हैं, वह समाज तथा अपने विविध कार्य क्षेत्रों में भी अग्रणी भूमिका निभाने में अवश्य सफल होते हैं। 21 दिवसीय वर्ग के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए प्रान्त प्रचारक ने आगे कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना काल से ही व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के ध्येय को लेकर आगे बढ़ रहा है। संघ शिक्षा वर्ग के माध्यम से निरंतर संस्कारित, अनुशासनबद्ध एवं प्रखर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत युवा पीढ़ी का निर्माण हो रहा है, जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों में पहुंचकर अपनी विशेष छाप छोड़ रहे हैं।  प्रशिक्षित कार्यकर्ता ही हिंदू जगे तो देश जगेगाके भाव को और भी पुष्ट बनाने में सक्षम होंगे। कार्यकर्ताओं को अनुशासन के प्रति पूरी तरह से सजग करते हुए उन्होंने आगे कहा कि संघ की व्यवस्था में ढलकर जो निकलेगा वही परिपक्व कार्यकर्ता बनेगा।

    उन्होंने कहा कि व्यक्ति निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र हमारी शाखाएं हैं। शाखाओं के माध्यम से संस्कार, अनुशासन, सेवा, नेतृत्व क्षमता समरसता सामूहिक जीवन शैली, समर्पण तथा राष्ट्रभक्ति का भाव जागृत होता है| नर से नारायण का निर्माण वास्तव में हमारी शाखा ही करती हैं। वर्ग में प्रशिक्षित कार्यकर्ता अपने-अपने कार्य क्षेत्र में जाकर शाखा के माध्यम से व्यक्ति निर्माण और समाज परिवर्तन के काम में लगें, यही उनसे अपेक्षा है।

    कार्यक्रम के आरम्भ में रमेश जी के साथ माननीय प्रांत संघचालक डॉ. विश्वनाथ लाल निगम, वर्गाधिकारी रमेश चंद्र त्रिपाठी जी, प्रांत कार्यवाह मुरली पाल जी ने भारत माता की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन किया| इस दौरान प्रांत कार्यवाह मुरली पाल जी ने प्रशिक्षण प्राप्त करने आए स्वयंसेवकों की सामूहिक बैठक कर वर्ग से संबंधित सभी विषयों की जानकारी प्राप्त की। इस बैठक में गण विभाजन तथा गट विभाजन का कार्य पूरा हुआ। वर्ग की व्यवस्था में अलग-अलग कार्यों में लगभग 100 कार्यकर्ता लगे हुए हैं।

     वर्ग में प्रयागराज के अतिरिक्त प्रतापगढ़, कौशांबी, अमेठी, सुल्तानपुर, समेत पांच जिलों के 320 सवयंसेवक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहें हैं। विभाग प्रचारक डॉ पीयूष जी, संजीव जी, डॉ प्रमोद जी,  हरीश कुमार जी, घनश्याम जी, सह प्रांत प्रचारक मुनीष जी, डॉ राज बिहारी जी, डॉ. मुरारजी एवं गोकुल जी वर्ग के प्रमुख दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं।

Thursday, May 26, 2022

वर्ग की दिनचर्या-अनुशासन का पालन करने वाले कार्यकर्ता समाज में अग्रणी भूमिका निभाने में होते हैं सफल – रमेश जी


चुनार। निष्ठावान कार्यकर्ता तैयार करना ही वर्ग का ध्येय होता है। सूचना का अक्षरश: पालन करना ही श्रेष्ठ कार्यकर्ता बनने का मार्ग है। जो कार्यकर्ता वर्ग की दिनचर्या तथा अनुशासन एवं व्यवस्था का पालन करते हुए अपना प्रशिक्षण पूरा करते हैं, वह समाज तथा अपने विविध कार्य क्षेत्रों में भी अग्रणी भूमिका निभाने में अवश्य सफल होते हैं। संघ प्रखर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत ऐसी युवा पीढ़ी के निर्माण करने में ही सतत संलग्न है| उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काशी प्रांत प्रचारक श्रीमान रमेश जी ने  व्यक्त किया। वे स्थानीय रामबाग में संघ शिक्षा वर्ग (सामान्य) के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे|

            उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना काल से ही व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के ध्येय को लेकर आगे बढ़ रहा है। संघ शिक्षा वर्ग के माध्यम से निरंतर संस्कारित, अनुशासनबद्ध एवं प्रखर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत युवा पीढ़ी का निर्माण हो रहा है जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों में पहुंचकर अपनी विशेष छाप छोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा प्रशिक्षित कार्यकर्ता ही हिंदू जगे तो देश जगेगाके भाव को और भी  पुष्ट बनाने में सक्षम होंगे। कार्यकर्ताओं को अनुशासन के प्रति पूरी तरह से सजग  करते हुए उन्होंने आगे कहा कि संघ की व्यवस्था में ढलकर जो निकलेगा वही परिपक्व कार्यकर्ता बनेगा। अपने उद्बोधन के दौरान श्रीमान रमेश जी ने बल देते हुए कहा कि व्यक्ति निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र हमारी शाखाएं हैं। शाखाओं के माध्यम से संस्कार, अनुशासन सेवा, समर्पण तथा राष्ट्रभक्ति का भाव जागृत होता है| नर से नारायण का निर्माण वास्तव में हमारी शाखा ही करती हैं। वर्ग में प्रशिक्षित कार्यकर्ता अपने-अपने कार्य क्षेत्र में जाकर शाखा के माध्यम से व्यक्ति निर्माण और समाज परिवर्तन के काम में लगें, यही उनसे अपेक्षा है।

            उन्होंने चुनारगढ़ की ऐतिहासिकता की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि यह ऋषियों मुनियो तथा साधकों की पवित्र भूमि है। सुरम्य वातावरण वाला यह स्थान मां दुर्गा की शक्ति का केंद्र है। विक्रमादित्य तथा राजा भरथरी की यह तपस्थली तथा साधना स्थली भी है। यहां से साधना करके निकलने वाले कार्यकर्ता इस तपस्थली का मान अवश्य बढ़ाएंगे ऐसा विश्वास है।

            उद्घाटन सत्र का आरम्भ भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया| इस वर्ग में सोनभद्र विंध्याचल जौनपुर तथा काशी विभागों के 350 प्रशिक्षणार्थी तथा व्यवस्था के लिए लगभग 100 कार्यकर्ता पूरा समय दे कर प्रतिभाग कर रहे हैं। उद्घाटन सत्र के पश्चात यह वर्ग विधिवत प्रारंभ हो गया 13 जून को वर्ग का विधिवत समापन होगा। इस दौरान प्रांत कार्यवाह मुरली पाल जी, वर्ग अधिकारी सच्चिदानंद जी मंच पर विशेष रूप से उपस्थित थे।

            वर्ग में वर्गाधिकारी सच्चिदानंद जी, वर्गकार्यवाह डॉ कुलदीप जी,  सह वर्ग कार्यवाह सुरेंद्र जी, वर्ग पालक काशी प्रांत प्रचारक प्रमुख रामचंद्र जी, सह प्रांत कार्यवाह, डॉ राकेश जी, मुख्य शिक्षक ओम प्रकाश जी, सर्व व्यवस्था प्रमुख गौतम जी, सह सर्व व्यवस्था प्रमुख चंद्रशेखर जी, पर्यवेक्षक रजनीश जी तथा बौद्धिक प्रमुख कृष्णचंद्र जी अपने दायित्व का निर्वहन रहे हैं। 20 दिवसीय इस वर्ग में कार्यकर्ताओं की दिनचर्या प्रातः काल 5:00 से प्रारंभ होकर रात्रि 10:00 बजे  तक चलेगी, जिसमे  वे शारीरिक, बौद्धिक चर्चा आदि विषयों में पूरी दक्षता प्राप्त करेंगे। वर्ग की सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि  सभी प्रशिक्षणार्थी तथा व्यवस्था में लगे कार्यकर्ता अपना निर्धारित शुल्क देकर इसमें प्रतिभाग कर रहे हैं।

Wednesday, May 25, 2022

संस्थानों में हो रहे शोध को इच्छुक उद्यमियों तक पहुंचाने में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका - हरेश प्रताप

प्रयागराज| राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रयागराज विभाग के प्रचार विभाग द्वारा विश्व संवाद केंद्र काशी के आयोजकत्व में आदि पत्रकार देवर्षि नारद जयंती एवं पत्रकार सम्मान समारोह का आयोजन ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज सिविल लाइंस प्रयागराज के सभागार में किया गया। 'आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में पत्रकारिता की भूमिका' विषयक संगोष्ठी के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता हरेश प्रताप सिंह (सदस्य, लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश) ने कहा कि नौकरी के बजाय उद्यमिता को ज्यादा महत्व मिले तो हम मैनुफैक्चरिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकते हैं। हमारे विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों में बहुत शोध हो रहे हैं। इनके परिणामों की सूचनाओं को इच्छुक उद्यमियों तक पहुंचाने में पत्रकार अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि देवर्षि नारद आद्य पत्रकार थे। वे देवराज इंद्र के मंत्रिमंडल में सूचना प्रसारण मंत्रालय संभालते थे। उनकी जयंती पर हम भारत की आत्मनिर्भरता में पत्रकारों की भूमिका की चर्चा कर रहे हैं। सूचनाओं के प्रसारण में पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। अब नौकरी के बजाय उद्यमिता को ज्यादा महत्व मिले तो हम मैनुफैक्चरिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकते हैं। हमारे विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों में बहुत शोध हो रहे हैं। इनके परिणामों की सूचनाओं को इच्छुक उद्यमियों तक पहुंचाने का गुरुतर भार पत्रकारों पर है। कृषि क्षेत्र में हुए शोध किसानों तक पहुंचा कर कृषि उपजों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने में पत्रकारों का अमूल्य योगदान है। हमारे वैज्ञानिकों ने गीर, थारपारकर एवं साहीवाल नस्ल के साड़ों का ऐसा वीर्य तैयार किया है जिससे बछिया ही पैदा होगी, बछड़े पैदा ही नहीं होंगे। इससे छुट्टा जानवरों की समस्या भी कम होगी और देशी गायों के नस्ल सुधार से दुग्ध उत्पादन भी बढ़ेगा। ऐसी खबरें किसानों/ पशुपालकों तक पहुंचा कर हम देश की आत्मनिर्भरता में योगदान कर सकते हैं।

गोष्ठी के अध्यक्षता करते हुए वीरेंद्र पाठक (वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रमुख एएनआई, प्रयागराज) ने कहा, "पत्रकारिता का आधार शिक्षा, सूचना, संचार और उद्देश्य है| लोकमंगल यानी जन सरोकार। एक पत्रकार में विषय का ज्ञान, उपयुक्त एवं शिष्ट भाषा एवं सत्य के अभिव्यक्ति की कला का होना आवश्यक है। लेकिन सत्य जो अमंगल करे उसे छिपाना ही उचित है। आत्मनिर्भरता के विषय में कहना है कि यदि भारतीय संस्कृति के अनुसार चलें तो आत्मनिर्भरता हमें स्वतः प्राप्त होगी। हमारा परंपराओं एवं उत्सवधर्मिता का देश है जो स्वयं मांग और उत्पादन दोनों पैदा करता है। इसीलिए हम कभी मंदी के शिकार नहीं होते। लेकिन अनैतिक व्यापार हमें अतिशय मंहगाई में ढकेल सकता है| अतः इसे रोकने में भी पत्रकारों की महती लेकिन संकट पूर्ण भूमिका है।

विभाग प्रचारक डॉ पीयूष जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि समाज में सोशल मीडिया का भी प्रभाव बढ़ा है और इसके माध्यम से समाज में सकारात्मक संदेश पहुंच रहे हैं। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में इस सशक्त माध्यम का प्रयोग किया जाना चाहिए।


संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए प्रांत प्रचार प्रमुख डॉ मुरार जी ने नारद जी के जीवन चरित तथा उनकी लोकमंगल पत्रकारिता की चर्चा की तथा आज के समय में देश-विदेश में हो रहे विभिन्न शोधों तथा सरकार के प्रोत्साहन योजना की सूचनाएं नव उद्यमियों तक पहुंचाने की भूमिका निभाने का आग्रह पत्रकारों से किया जो निश्चित तौर पर आत्मनिर्भर भारत के लिए सहायक होंगे। उन्होंने स्वदेशी तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं सेवा के अधिकाधिक अवसर सृजित कर आत्मनिर्भर भारत की दिशा में सभी से सहयोग करने का आह्वान किया।

इस अवसर पर पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाले पत्रकारगण मंगेश, ज्योतिराव फुले एवं पवन उपाध्याय को अंगवस्त्र, सम्मान पत्र, प्रतीक चिन्ह एवं हेडगेवार चरित भेंट कर नारद पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम में वसु पाठक, आशीष जायसवाल, रविशंकर, विष्णु, दिनेश, श्रीधर, मनु समेत सैकड़ों शिक्षक, अधिवक्ता एवं पत्रकार उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन आशीष मोहन ने किया।