चाह नहीं में सुरबाला के, गहनों में गुथा जाऊँ!
चाह नहीं प्रेमी माला में, विंध, प्यारी को ललचाऊँ!!
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक!
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक!!
राष्ट्रकवि स्व. श्री माखन लाल
चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविता 'पुष्प की अभिलाषा' की इन्हीं पक्तियों को अपना ध्येय
मानकर राष्ट्र हित में समाज की अपेक्षाओं पर अपना जीवन समर्पित करते गये अन्तर्राष्ट्रीय
सहयोग परिषद के संस्थापक बालेश्वर अग्रवाल|
बालेश्वर
अग्रवाल का जन्म 17 जुलाई 1921 को उड़ीसा के बालासोर (बालेश्वर) नगर में
हुआ। 1939 में उन्होंने मैट्रिकुलेशन परीक्षा उत्तीर्ण की।
पिताजी की इच्छा थी कि वे सरकारी नौकरी करें। बड़े भाई डाक्टर और दूसरे भाई
माइनिंग इंजीनियर थे। उन्हें भी इलेक्ट्रिकल इंजिनीयरिंग के लिये चुना गया और
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इंजिनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया। इंजीनियरिंग
उनकी पसंद का विषय नहीं था। प्रथम और द्वितीय वर्ष परीक्षा में अच्छे अंक मिले। वे
चार वर्ष में इंजीनियर बन गये। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र जीवन में उनका
सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ। उन्होंने उसके अनुरूप जीवन ढालने का
प्रयास किया। इसके लिये उन्होंने अविवाहित रहकर काम करने का निर्णय किया। डालमिया
नगर (बिहार) में इंजीनियर के पद पर नियुक्त होकर 1945 से 1948
तक तीन वर्ष तक वहां कार्य किया और समाज की सेवा की। दिसम्बर 1948
में संघ के सत्याग्रह के अवसर पर भूमिगत हो गये| संघ पर प्रतिबंध
लगने पर 1948 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया| तत्पश्चात पटना
में उनके लिये नया कार्यक्षेत्र चुना गया। प्रकाशन कार्य से नया सम्बन्ध शुरू हुआ।
प्रवर्तक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन किया। चन्द्रगुप्त प्रकाशन लिमिटेड नामक
प्रकाशन संस्था की स्थापना की।
1951 में उनके जीवन का नया अध्याय प्रारम्भ हुआ। भारतीय भाषाओं में समाचार देने
वाली ‘हिन्दुस्थान समाचार' नामक संवाद
संस्था के संस्थापक सदस्य बनें| हिन्दुस्थान समाचार समिति के पटना क्षेत्र का
उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा गया, जिसका निवर्हन 30 वर्षों तक (1982 तक) करते रहे। उन्होंने 1954
में देवनागरी में टेलीप्रिंटर सेवा की शुरुआत की। पटना में
सफलतापूर्वक कार्य करने के बाद 1955 में उनका स्थानांतरण
दिल्ली कर दिया गया और दिल्ली कार्यालय का उत्तरदायित्व सौंपा गया। 1956 में (1982 तक) ‘हिन्दुस्थान
समाचार' के प्रधान सम्पादक व महाप्रबंधक रहें|
दस वर्षों के
बाद 1965 में हिन्दुस्थान
समाचार की पूरी जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी गई। इस अवधि में कार्य विस्तार तेजी से
हुआ। सारे देश में इसका कार्य फैल गया। 1974 में एक नया प्रयोग पत्रकारिता के क्षेत्र में किया गया। हिन्दुस्थान
समाचार के कर्मचारियों ने सहकारिता के आधार पर एक सोसायटी का गठन किया, जिसने कानूनी ढंग से हिन्दुस्थान समाचार समिति का स्वामित्व भी प्राप्त
किया। पत्रकारिता के क्षेत्र में यह एक अभिनव प्रयोग था।
1982 में राजनीतिक कारणों से, हिन्दुस्थान
समाचार के कर्मचारियों में आपसी मतभेद पैदा हो गया जिसके कारण सहकारिता विभाग ने
हिन्दुस्थान समाचार समिति का कार्य अपने जिम्मे ले लिया। इस स्थिति में उनके लिये
हिन्दुस्थान समाचार में काम करना संभव नहीं था।
इसके बाद समाज
ने उनके लिये एक नया कार्यक्षेत्र चुना - वह था अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद। विभिन्न
देशों में फैले हुए भारतीय मूल के लगभग 2 करोड़ लोगों से सम्पर्क करना, उनकी समस्याओं के समाधान में सहयोग देना, संगठन के
रूप में कार्य करना बहुत ही कठिन काम था। सभी के सहयोग से इस कार्य में भी उन्होंने
सफलता प्राप्त की। इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भी उनके कार्यों की सराहना
की। 30 वर्षों के अथक परिश्रम से अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग
परिषद को दृढ आधार मिल गया। 1997 में बालेश्वर जी के नेतृत्व
में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद दल न्यूज़ीलैंड के दौरे पर आया था। 1998 में उन्होंने विदेशों में बसे भारतवंशी सांसदों का सम्मेलन किया। वर्ष 2000
में ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन' किया। 09 जनवरी, 2003 को
बालेश्वर जी की प्रेरणा से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अप्रवासी
भारतीय सम्मेलन किया।
भारत सरकार ने
दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर प्रवासी भवन के लिये एक प्लाट आवंटित किया। प्रवासी भवन
का निर्माण उनके लिये एक सपना था, जो सभी के सहयोग से पूर्ण हो गया। इस भवन का शिलान्यास भारत के तत्कालीन
प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 14 दिसम्बर,
2003 को किया और इसका उद्घाटन मॉरीशस के राष्ट्रपति सर अनिरुद्ध
जगन्नाथ ने 1 दिसम्बर, 2009 को किया। 28
फरवरी 2009 को माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता
विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी.लिट् की मानद उपाधि दी गयी। 23 मई, 2013 को बालेश्वर जी ब्रम्हलीन हो गये।
मरणोपरांत अगस्त,
2018 में भारत की
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मॉरीशस की शिक्षा मंत्री लीला देवी दूकन ने विश्व
हिंदी सचिवालय के अंतर्गत ग्रंथालय को बालेश्वर अग्रवाल के नाम समर्पित किया। 21
से 23 जनवरी 2019 तक
वाराणसी में आयोजित 'प्रवासी भारतीय दिवस' के अवसर पर स्व बालेश्वर अग्रवाल की स्मृति में 'श्री
बालेश्वर अग्रवाल नगर' बनाया गया।
संकलन - अमित प्रकाश
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