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Thursday, January 30, 2020

संघ के पथ संचलन से घबडाते हैं आतंकवादी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संघ के पथ संचलन की परम्परा है पुरानी

वाराणसी, 30 जनवरी। महामना के जीवनकाल से ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बसंत पंचमी के अवसर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विश्वविद्यालय से जुड़े स्वयंसेवकों का पथ संचलन निरन्तर निकलता आ रहा है। यह संचलन स्वयंसेवकों के नियमित वार्षिक कार्य का हिस्सा है। यह विचार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक श्रीमान अनिल जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के मैदान में आयोजित पथ संचलन के शुभारम्भ समारोह में उपस्थित स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से जुड़े स्वयंसेवकों द्वारा आयोजित पथ संचलन की परम्परा पुरानी है। कृषि विज्ञान संस्थान से प्रारम्भ होकर स्थापना स्थल (ट्रामा सेन्टर) पहुंचकर वन्देमातरम उद्घोष के साथ समाप्त हुआ। 
क्षेत्र प्रचारक जी ने कहा कि संघ के कार्यकर्ता प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर रहे है। संघ की कार्यवृद्धि 94 वर्ष की तपस्या का फल है। हिन्दू धर्म संस्कृति के उत्थान के लिए वही उद्देश्य ध्यान में रखकर महामना मालवीय जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय सर्व विद्या की राजधानी का अधिष्ठान हिन्दू मानवर्द्धन ही था। मालवीय जी का बहुत ही आत्मीय सम्बन्ध संघ के संस्थापक व श्रीगुरू जी से था। इसी कारण संघ कार्य के वृद्धि हेतु संघ कार्यालय के लिए विश्वविद्यालय में भवन दिया जिसे आपातकाल के दौरान अंधेरी रात में तोड़ दिया गया जो दुर्भाग्यपूर्ण है। भारतवर्ष में दुर्गम क्षेत्र, वनवासी क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना कार्य करता है। जहां शासन प्रशासन के लोग नहीं पहुंच पाते वहां भी स्वयंसेवकों द्वारा सेवा कार्य किया जाता है। विगत दिनों तेलंगाना राज्य के हैदराबाद महानगर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा निकाले गये विशाल पथ संचलन पर विरोध प्रतिक्रिया व्यक्त की गयी। जिससे स्पष्ट है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रहित में कार्य करता है तथा जिससे आतंकवादी भी घबड़ाते है। स्वामी विवेकानन्द जी के सपनों को साकार करने हेतु नई ऊर्जा के साथ युवा वर्ग को आगे आना होगा। 
पथ संचलन शुभारम्भ समारोह की अध्यक्षता कर रहे श्री मनोज मेश्राम प्रोफेसर इलेक्ट्रानिक्स इंजिनियरिंग आईआईटी बीएचयू ने कहा कि महामना ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना लोक सहयोग से दान लेकर किया जिसमें सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल की संस्थापिका एवं प्रसिद्ध समाज सेविका एनी बेसेन्ट ने भी महामना को उस समय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना में पूर्ण सहयेग दिया। जिसका उद्देश्य हिन्दू संस्कृति एवं मूल्यों की रक्षा के साथ साथ भारत को शिक्षा के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने के लिए था।
यह पथ संचलन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के मैदान से अपरान्ह 4 बजे प्रारम्भ हुआ तथा वाणिज्य संकाय, हिन्दी विभाग चौराहा, पूर्व छात्रसंघ भवन, मधुबन चौराहे से महिला महाविद्यालय चौराहा, सिंह द्वार, रविदास गेट से ट्रामा सेन्टर स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना स्थल पर पहुंचकर समाप्त हुआ। पथ संचलन का स्वागत महिला महाविद्यालय चौराहे पर पुष्प वर्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्राओं द्वारा किया गया। इस संचलन में सबसे आगे खुली जीप पर महामना की प्रतिमा थी उसके पश्चात घोषवादक चल रहे थे, जिसके पीछे तीन पंक्तियों में पूर्ण गणवेश में बड़ी संख्या में स्वयंसेवक चल रहे थे। इस पथ संचलन के देखने के लिए बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक सड़क के दोनों ओर उपस्थित थे।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के  शिक्षकों, कर्मचारियों के परिवारों के सदस्य स्वयंसेवक विद्यार्थी एवं नगर के प्रमुख गणमान्य नागरिकों के साथ साथ मणिपुर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 आद्या प्रसाद पाण्डेय व प्रज्ञा प्रवाह उत्तर भारत के संयोजक श्रीमान रामाशीष जी, प्रो0 जेपी लाल जी के साथ ही संघ के विभिन्न दायित्वों के पदाधिकारी व कार्यकर्ता उपस्थित थे।

तीन दिवसीय युवा संकल्प शिविर 31 जनवरी से गुना में, सरसंघचालक जी भी रहेंगे उपस्थित


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मध्यभारत प्रांत के महाविद्यालयीन विद्यार्थी शिविर का आयोजन गुना में 31 जनवरी से 2 फरवरी तक होना है. शिविर में प्रांत से कॉलेज विद्यार्थी शामिल होंगे. एक महीने से ज्यादा समय से गुना के वीर सावरकर नगर में स्वयंसेवकों के स्वागत की तैयारियां चल रही हैं.
तीन दिनों तक चलने वाले युवा संकल्प शिविर में भाग लेने के लिए मध्यभारत प्रांत के सभी 31 जिलों से कॉलेज विद्यार्थी गुना पहुंचेंगे. तीन दिन के शिविर का उद्देश्य प्रांत में महाविद्यालयीन विद्यार्थियों में संघ कार्य का विस्तार एवं दृढ़ीकरण करना एवं युवाओं को राष्ट्र निर्माण के कार्य के लिए प्रेरित करना है. शिविर में आगंतुकों के लिए प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जा रहा है. प्रदर्शनी में राष्ट्रगौरव का भाव जागृत करने के लिए आठ विषयों पर आधारित 250 पेंटिंग्स प्रदर्शित की जाएँगी.
शिविर में विद्यार्थियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार जी एवं अन्य क्षेत्रीय अधिकारियों का सान्निध्य प्राप्त होगा. तीन दिन तक चलने वाले शिविर में शिक्षार्थी विभिन्न शारीरिक एवं बौद्धिक गतिविधियों में भाग लेंगे, साथ ही प्रांत में महाविद्यालयीन कार्यों की समीक्षा भी होगी एवं आगे की कार्ययोजना पर चर्चा की जाएगी.
प्लास्टिक मुक्त होगा परिसर
युवा संकल्प शिविर के लिए ए.बी. रोड, छत्तरपुरिया गार्डन में वीर सावरकर नगर तैयार किया गया है. यह नगर चार हिस्सों में बंटा है. एक तरफ शिविर में आने वाले शिक्षार्थियों के लिए आवास की व्यवस्था की गई है, वहीं दूसरी तरफ अधिकारियों के लिए आवास बनाए गए हैं. शिक्षार्थियों के लिए बने आवास शिविर को 11 नगरों में बांटा गया है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से आये विद्यार्थी रहेंगे. इसके साथ ही भोजन कक्ष एवं संघ स्थान के लिए विशाल मैदान भी तैयार किया गया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लंबे समय से पर्यावरण के लिए काम कर रहा है, इसी प्रयास के अंतर्गत शिविर को पूरी तरह प्लास्टिक मुक्त रखा गया है.
शिविर को लेकर गुना के स्थानीय निवासियों में भी उत्साह देखा जा रहा है. नगरवासी विभिन्न स्तरों पर शिविर को सफल बनाने के लिए अपना सहयोग दे रहे हैं. सह प्रांत संघचालक अशोक पाण्डेय जी ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह महत्वपूर्ण आयोजन हमारे शहर में हो रहा है, यह हमारे लिए गर्व का विषय है. हम इसे लेकर उत्साहित हैं और शिविर में आने वाले शिक्षार्थियों के स्वागत के लिए तैयारियां कर रहे हैं.

                                                                                                        साभार- विश्व संवाद केंद्र, भारत

Wednesday, January 29, 2020

प्रोफेसर राजेंद्र सिंह – राष्ट्र को समर्पित जीवन


प्रो. राजेंद्र सिंह (29 जनवरी 1922 – 14 जुलाई 2003), उपाख्य रज्जू भैया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक थे. वह 1994 से 2000 तक सरसंघचालक रहे. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग में प्रोफेसर और विभाग प्रमुख के रूप में काम किया था. 1960 के दशक के मध्य में पद छोड़कर अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समर्पित कर दिया. व्यक्ति अपने कार्य और कार्यशीलता से व्यक्तित्व बन जाता है और प्रोफेसर राजेंद्र सिंह ने यह साबित कर दिया. उनका व्यक्तित्व वर्तमान पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उनकी विचारधारा राष्ट्रीय समृद्धि और खुशी के मूल मूल्यों को विकसित करने के लिए सही दिशा देती है.
भौतिकविद् और नोबेल पुरस्कार-विजेता, सर सीवी रमन, जब एमएससी में उनके परीक्षक थे तो प्रोफेसर राजेंद्र सिंह प्रतिभाशाली छात्र के रूप में हर विषय में सर्वोतम रहे. उन्होंने राजेंद्र सिंह को परमाणु भौतिकी में उन्नत अनुसंधान के लिए फेलोशिप की पेशकश की. भौतिकी में पढ़ाई करने के बाद, स्पेक्ट्रोस्कोपी पढ़ाने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पदभार ग्रहण किया. विज्ञान उनके दिल का मूल था और इसीलिए प्रोफेसर राजेंद्र सिंह को परमाणु भौतिकी का विशेषज्ञ भी माना जाता था जो कि भारत में उन दिनों बहुत कम थे. वह सादगी और स्पष्ट अवधारणाओं का उपयोग करते हुए इस विषय के लोकप्रिय शिक्षक थे. जहां तक ​​उनके नेक और सामाजिक जीवन की बात है, राजेंद्र सिंह 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय थे और इसी दौरान वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए. तभी से संघ ने उनके जीवन को प्रभावित किया. उन्होंने 1966 में विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र के विभागाध्यक्ष पद से त्याग पत्र दिया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में कार्य शुरू किया.
किसी भी व्यक्ति के जीवन में विचारधारा बहुत महत्वपूर्ण होती है. अन्य सरसंघचालकों की तरह उनका स्वदेशी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की अवधारणा में दृढ़ विश्वास था. ग्रामीण विकासात्मक गतिविधियों की शुरुआत करते हुए, उन्होंने 1995 में घोषणा की थी कि गांवों को भूख मुक्त, रोग मुक्त और शिक्षित बनाने में पूरी प्राथमिकता दी जानी चाहिए. आज 100 से अधिक गांव हैं, जहां स्वयंसेवकों द्वारा किए गए ग्रामीण विकास कार्य ने आसपास के गांवों के लोगों को प्रेरित किया है और उन लोगों द्वारा उनके प्रयोगों का अनुकरण किया जा रहा है. उनका जीवन बहुत शुद्ध और सरल था, हर दिन नियमित योग और व्यायाम के कारण, शरीर मजबूत था और गर्व से भरा हुआ था, और उनके तेज की छाप जीवन भर उन पर बनी रही.
भारत के सामाजिक बंधन और संस्कृति पर उन्होंने कहा कि हर किसी को उत्तेजक भाषा में बात करने या उत्तेजक कार्यों में लिप्त होने से दूर रहना चाहिए. तथाकथित नेता-जो एक विशिष्ट समुदाय के हितों की वकालत करने के नाम पर हमारे समाज के दो समुदायों के बीच टकराव पैदा करते हैं और उन्होंने स्व-अभिनंदन के लिए अपने प्रयासों से एक उद्योग बनाया है, उनको संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए देश में पर्याप्त कानून मौजूद हैं. उन्हें ईमानदारी से और सख्ती से लागू किया जाना चाहिए.
वे मानते थे कि जीवन में आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए, उन्हें शांत मन और आत्मविश्वास के साथ संभालना चाहिए. इसी तरह से उन्होंने आपातकाल की अवधि में कार्य किया,; जो उनके जीवन में, और देश के जीवन में सबसे कठिन समय था.
रज्जू भैया ने भारत की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के माध्यम से राष्ट्र की भलाई के बारे में सोचा. भारत के सच्चे नागरिक होने के नाते, यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की रक्षा करें ताकि मूल मूल्यों को अक्षुण्ण रखा जा सके.
रज्जू भैया एक प्रभावशाली शिक्षक रहे और पढ़ाना उनका शौक था. प्रयाग विश्वविद्यालय में पढ़ाने के दौरान, उन्होंने संघ के कार्यों में अपना योगदान जारी रखा. भौतिक विज्ञान जैसे रहस्यमय विषयों पर असामान्य शक्तियों के साथ-साथ, रज्जू भैया अपने शिष्यों के लिए सरल और दिलचस्प शिक्षण शैली और स्नेह के कारण प्रयाग विश्वविद्यालय के सबसे लोकप्रिय और सफल प्राध्यापक थे. वरिष्ठता और योग्यता के कारण, उन्हें प्राध्यापक के साथ कई वर्षों तक विभाग के अध्यक्ष के पद की जिम्मेदारी लेनी पड़ी. लेकिन यह सब करते हुए भी वे संघ कार्य में अपनी जिम्मेदारियों को निभाते रहे. सह प्राध्यापक या प्राध्यापक बनने की कोई इच्छा उनके मन में कभी नहीं जगी. प्रयाग विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग में सह प्राध्यापक के पद के लिए आवेदन मांगा गया, लेकिन उन्होंने आवेदन पत्र नहीं दिया. सह कर्मियों ने पूछा कि भाई तुमने ऐसा क्यों किया? तब उन्होंने बड़े ही सहज भाव से उत्तर दिया – “अरे, मेरा जीवन-कार्य एक संघ कार्य है, विश्वविद्यालय का प्राध्यापक नहीं है. मुझे कक्षा में सप्ताह में चार दिन लगते हैं. मैं संघ कार्य के लिए तीन दिनों का दौरा करता हूँ. बहुत कोशिश करने के बाद भी विवि समय पर नहीं पहुंच पाता. अब विभाग के सभी शिक्षक मेरा समर्थन करते हैं, लेकिन अगर मैं सह प्राध्यापक पद के लिए उम्मीदवार बन जाता हूं, तो वो मुझे एक प्रतिद्वंदी मानेंगे. इसलिए, इस मुकदमे में क्यों फंसे?” रज्जू भैया का पूरा जीवन इस बात का साक्षी है कि वह कभी आकांक्षी नहीं रहे. विश्वविद्यालय में शिक्षक होने के बावजूद, उन्होंने अपने लिए पैसा नहीं कमाया. वे अपने वेतन का एक-एक पैसा संघ के काम में खर्च करते थे. एक सम्पन्न परिवार में पैदा होने के बाद भी, पब्लिक स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने, संगीत और क्रिकेट जैसे खेलों में रुचि रखने के बाद भी, वे अपने लिए कम से कम राशि खर्च करते थे. वे मितव्ययता का एक उत्कृष्ट उदाहरण थे. वर्ष के अंत में, उनके वेतन में से जो कुछ बचता था, वह उसे गुरु-दक्षिणा के रूप में समाज को दे देते थे.
निःस्वार्थ स्नेह और अथक परिश्रम के कारण, रज्जू भैया को सभी प्यार करते थे. संघ के भीतर भी और बाहर भी. उन्होंने पुरुषोत्तम दास टंडन और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं के साथ-साथ, प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जैसे संतों का विश्वास और स्नेह अर्जित किया. रज्जू भैया बहुत यथार्थवादी होने के साथ-साथ बहुत ही संवेदनशील थे. वे किसी से कुछ नहीं कहते थे, और उनकी बात को टालना मुश्किल होता था. आपातकाल के बाद, जब जनता पार्टी सरकार में नानाजी देशमुख को औद्योगिक मंत्री का पद दिया गया, तो रज्जू भैया ने उनसे कहा कि अगर आप, अटलजी और आडवाणी जी, तीनों सरकार में जाएं तो संगठन से बाहर कौन बचेगा? उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए, नानाजी ने अपना पद ठुकरा दिया और जनता पार्टी का महासचिव बनना स्वीकार कर लिया.
प्रो राजेंद्र सिह एक उत्कृष्ट शिक्षक, और महान व्यक्तित्व थे. जिन्होंने राष्ट्र की रुचि और सांस्कृतिक विरासत के विकास के लिए काम किया. उनकी विचारधारा और राष्ट्र प्रेम लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया. वे स्वयं में विचारधारा, दृढ़ संकल्प और आत्म-त्याग आदर्श की छवि थे. इसलिए रज्जू भैया हमेशा सभी के दिलों में जिंदा रहेंगे.

साभार- विश्व संवाद केंद्र, भारत

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे सरसंघचालक जी, बाबा का दर्शन कर मां गंगा को प्रणाम किया, कॉरिडोर भी देखा

...अब तो अंग्रेज भी बोलने लगें भारत माता की जय

Friday, January 24, 2020

सनातन धर्म केवल हिन्दुओं के लिए नहीं, मनुष्य मात्र के लिए है – डॉ. मोहन भागवत

मुंबई (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि ‘राष्ट्र और संस्कृति के प्रति हर नागरिक में प्रेम भाव होता है. हमारे पास विश्व कल्याण की धरोहर है, जिसने हमें अभी तक बनाए रखा है. सुख को लोग बाहर खोजते हैं, पर वह हमारे अंदर है. एक समय के बाद बाहरी सुख फीका पड़ जाता है, जबकि हमारे अंदर उपस्थित सुख कभी फीका नहीं होता. हर धर्म का मूल ही है, सत्य को अपने अंदर खोजना, यही सनातन धर्म की मर्यादा है. सनातन धर्म कहता है कि सत्य सबके अंदर है और वो एक है. हम सब एक ही हैं. इसलिए सनातन धर्म के आचरण को धारण करना सबका कर्तव्य है.
सरसंघचालक मोहन भागवत जी  विलेपार्ले (पश्चिम) स्थित संन्यास आश्रम में आयोजित पांच दिवसीय अमृत महोत्सव के अंतिम दिन (20 जनवरी, 2020) संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने अनुशासन को देशहित में बताते हुए कहा कि समूह में चलने के लिए अनुशासन आवश्यक है, उसके लिए संयम जरूरी है. हम प्रकृति का अभिन्न अंग हैं. उसे भूलने के बाद लोगों ने प्रकृति का गलत तरीके से दोहन किया. साधू संतों का जीवन हमें शिक्षा देता है कि अपने आचरण और शौर्य से धर्म की रक्षा करो. सनातन धर्म केवल हिन्दुओं के लिए नहीं है, वह मनुष्य मात्र के लिए है. इसके समाप्त होने पर संसार समाप्त हो जाएगा. इस सनातन संस्कृति को सदा के लिए प्रवाहमान बनाने के लिए आद्य शंकराचार्य और अन्य कई संतों ने अपने जीवन को झोंक दिया. यही हमारा इतिहास है.
सरसंघचालक जी ने कहा कि पूर्व में बनी गलत परंपरा का आदरपूर्वक बहिष्कार होना चाहिए. महापुरुष केवल सिखाते नहीं, बल्कि आचरण द्वारा दिखाते हैं. अगर व्यक्ति सत्य और करूणा रखता है तो उसके आचरण में भी लक्षित होना चाहिए. सत्य का आचरण करना और करूणा का आचरण करना यही धर्म है. परंपरा का निर्वाह सत्य और निर्भयता पूर्वक करो, यही धर्म कहता है. प्रामाणिकता के साथ बिना निःस्वार्थ बुद्धि से तन-मन-धन पूर्वक धर्म के आचरण से स्वरक्षण करो.. संस्कृति को अपने आचरण से चलाओ और संस्कृति पर आक्रमण करने वालों का बहिष्कार करो. प्रामाणिकता के साथ तन-मन-धन से निःस्वार्थ बुद्धि से आचरण करते समय प्राणों की परवाह किए बिना आगे बढ़ो. ये संदेश महापुरूषों के लिए नहीं है, हम सबके लिए है. धर्म सबकी उन्नति एक साथ करता है. इस सनातन धर्म के अनुसार चलकर अपने जीवन को उपयोगी और उज्जवल बनाना है.
कार्यक्रम के पांचवें और अंतिम दिन प्रसिद्ध कथावाचकों ने आद्य गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा और उसके पालन पर केंद्रित प्रवचन दिए. इससे पूर्व पहले सत्र में प्रातः 9 से 12 बजे तक भगवान शिव का विशेष अभिषेक एवं अर्चन किया गया. इस दौरान ब्रह्मलीन सूरतगिरि बंगला हरिद्वार नवम् पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी महेश्वरानंद की पुस्तक ‘चातुर्वर्ण्य – भारत समीक्षा’ के हिंदी अनुवाद का विमोचन हुआ.
कार्यक्रम के अध्यक्ष और संन्यास आश्रम के व्यवस्थापक महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि जी ने आभार प्रकट किया.. महामंडलेश्वर स्वामी हृदयानंद गिरि, महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती और कार्ष्णि आचार्य महामंडलेश्वर गुरुशरणानंद ने प्रवचन दिए.

 साभार - विश्व संवाद केन्द्र भारत