प्रयागराज। बाबा
साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी किसी जाति विशेष के नहीं बल्कि समाज के सभी शोषित
पीड़ित एवं कमजोर वर्ग के उत्थान के हिमायती थे। उन्हें किसी जाति के संकुचित
दायरे में लाना उनके विराट व्यक्तित्व को छोटा करना है। सामाजिक विसंगतियों से
पीड़ित होते हुए भी उन्होंने हिंदू धर्म का परित्याग नहीं किया। सामाजिक समरसता
एवं बंधुत्व की स्थापना कर बाबा साहब ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मजबूती देने का
काम किया। उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के काशी
प्रांत प्रचारक रमेश जी ने कही| वे मंगलवार को स्थानीय केपी
कम्युनिटी हॉल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामाजिक समरसता विभाग की ओर से
आयोजित 'डा.भीमराव अंबेडकर का चिंतन तथा सांस्कृतिक
राष्ट्रवाद' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के
रूप में कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे।
रमेश जी ने आह्वान किया कि
सभी लोग बाबा साहब के आदर्श को आत्मसात कर समरस एवं सबल समाज के निर्माण में अपनी
भागीदारी निभाएं। बाबा साहब डॉक्टर भीमराव
के संपूर्ण जीवन को नए सिरे से समझने की जरूरत है। संघ के सह सरकार्यवाह डॉ कृष्ण
गोपाल जी की लिखी पुस्तक का उद्धरण देते हुए प्रांत प्रचारक ने कहा कि बाबा साहब
के जीवन के उत्थान के लिए उनके ब्राह्मण गुरु ने प्रयास किया। ब्राह्मणों का उपनाम
अंबेडकर उन्होंने ही दिया। इसी तरह भीमराव अंबेडकर जी ने भी सामाजिक कुरीतियों के
खिलाफ संघर्ष करते हुए सभी जातियों के उत्थान के लिए कठोर परिश्रम किया। वे सच्चे
अर्थों में महापुरुष थे| कोई भी महापुरुष किसी जाति के
संकीर्ण दायरे में नहीं बंधता। संपूर्ण मानवता का उत्थान करना ही उसके जीवन का
लक्ष्य होता है। बाबा साहब ने भी यही किया।
संगोष्ठी में
उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि यह सही है कि उन्हें अपने जीवन में तमाम तरह की
सामाजिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा, लेकिन इसके कारण न तो
वे निराश हुये और ना ही किसी के प्रति विद्वेश का भाव रखा। महिलाओं की समानता, शोषित
पीड़ित वर्ग के उत्थान के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया। कम्युनिज्म को उन्होंने
कभी भी देश के लिए अच्छा नहीं माना। जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने बौद्ध धर्म
स्वीकार कर राष्ट्र की सांस्कृतिक धारा को मजबूती दी। उनका स्पष्ट चिंतन था कि यदि
वे इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार कर लेंगे तो उनके लाखों अनुयाई भी उसी पद पर चल
पड़ेंगे। इससे देश की मुख्यधारा कमजोर होगी। उनका परिवार तथा वे स्वयं प्रभु श्री
राम के भक्त थे। उनके नाम के साथ भी राम शब्द जुड़ा हुआ है। कुरीतियों के खिलाफ
उनके द्वारा छेडा गया संघर्ष नई प्रेरणा देता है। आज संपूर्ण देश को उस पर चलने की
आवश्यकता है।
रमेश जी ने आगे कहा कि बाबा
साहब का स्पष्ट मत था कि आध्यात्मिकता के बिना राष्ट्रीयता कभी मजबूत नहीं होगी।
इसीलिए उन्होंने धर्म का कभी तिरस्कार नहीं किया। जात-पात में बंटे भारतीय समाज
में समरसता एवं आत्मीयता का भाव जगा कर उन्होंने जो काम किया है, देश उस के लिए चिर ऋणी रहेगा। उन्होंने
आगे कहा कि समाज सुधार के साथ वे निरंतर अध्ययन एवं लेखन से भी जुड़े रहे| लगातार पढने के कारण उनकी आंखें भी प्रभावित हो गई थी| इसके बावजूद उन्होंने स्वाध्याय का क्रम बंद नहीं किया। देश की तत्कालीन
चुनौतीपूर्ण एवं विषम परिस्थितियों में भी विदेशों में रहकर कई विषयों में मास्टर
डिग्री प्राप्त कर पीएचडी की और सामाजिक समस्याओं का गहन अध्ययन किया। चिंतन मनन के द्वारा ही वे भारतीय समाज की समस्याओं को हल करने में काफी
हद तक कामयाब रहे।
विशिष्ट अतिथि इलाहाबाद
विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. राजेश गर्ग ने संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन
किया। उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने वंचित समाज को अग्रिम पंक्ति में खड़ा करने के
लिए जीवन भर संघर्ष किया। इस अभियान में उन्हें संपूर्ण समाज ने सहयोग दिया| इसी के फलस्वरूप भारतीय समाज में सामाजिक समरसता स्थापित हो सकी। उनके
योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते
हुए काशी प्रांत के प्रांत संघचालक डॉ विश्वनाथ लाल निगम ने कहा कि भारतीय समाज
में व्याप्त जात-पात, ऊंच-नीच
के भेदभाव को समाप्त कर बाबा साहब ने देश की बहुत बड़ी सेवा की। आज समाज के सभी
बंधुओं को एक साथ लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है, यही
बाबा साहब का संदेश है।
मंच पर उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के निबंधक हरिश्चंद्र राम विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता एवं बाबा साहब की प्रतिमा के समक्ष अतिथियों की ओर से दीप प्रज्वलन करने के बाद वंदेमातरम गीत के साथ गोष्ठी से हुआ। सामाजिक समरसता विभाग की ओर से सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह एवं वस्त्र भेंट कर सम्मानित किया गया। गोष्ठी में सह सेवा प्रमुख सुरेश जी, प्रांत प्रचार प्रमुख मुरारजी त्रिपाठी, विभाग प्रचारक डा.पीयूष जी, विभाग प्रचार प्रमुख वसू जी, पूर्व विधायक प्रभाशंकर पांडेय समेत बड़ी संख्या में अधिवक्ता, शिक्षक, मातृशक्ति एवं समाज के विभिन्न वर्गों की लोग उपस्थित थे। संचालन रामेश्वर शुक्ल एडवोकेट ने किया।
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